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आग्रह जन्म देता है विरोधाभास का ३९ मनोवृत्ति विरोधाभास को उभारती है । मिथ्या दृष्टिकेण एक जैसा ही नहीं होता। कोई व्यक्ति किसी झूठी बात को आग्रह के साथ पकड़ता है और दूसरा व्यक्ति नहीं जानता कि यह मिथ्या है इसलिए उसे माने बैठा है । दूसरा दृष्टिकोण मिथ्या है पर उसके साथ मिथ्या को पकड़े रहने का आग्रह नहीं है | पहले दृष्टिकोण में मिथ्या को पकड़े रहने का आग्रह है। कुछ लोग इतने आग्रह के साथ अपनी बात प्रस्तुत करते हैं, मानो वह अंतिम सचाई है । फिर उस बात को बदलते हैं तब विरोधाभास की अनुभूति होती है ।
विग्रही मनोवृत्ति
सचाई की प्रस्तुति विनम्रता और सापेक्षता के साथ हो तो पूर्वापर में विरोधाभास जैसा कुछ नहीं लगता । हर व्यक्ति को अपना विचार बदलने की स्वतन्त्रता है | किन्तु उसे यह स्वतंत्रता नहीं है कि वह अपने से भिन्न विचार रखने वालों को कोसता चला जाए, भिन्न विचार का निरन्तर खंडन करता चला जाए | यह खंडन करने की मनोवृत्ति राग-द्वेष की प्रबलता से उपजी मनोवृत्ति है । अनेकान्त दर्शन ने इस मनोवृत्ति को विग्रही मनोवृत्ति बतलाया है । विग्रह आग्रह का अवश्यंभावी परिणाम है ।
निर्णायक कौन ?
___ दृष्टिकोण का दूसरा पहलू इससे भिन्न है । कुछ लोग किसी विचार पर टिक ही नहीं पाते । वे एक दिन में गिरगिट की भांति अनेक रंग बदल लेते हैं । यह भी मिथ्या दृष्टिकोण का एक प्रकार है । आगे बढ़ने के लिए किसी एक विचार के साथ चलना जरूरी है । प्रश्न हो सकता है-- किसके साथ चलें? कौन-सा विचार सही है ? इसका निर्णय कौन करे ? निर्णय करने में हर व्यक्ति स्वतंत्र है इसीलिए विचारों और सिद्धांतों की एक भीड़ है । इस भीड़ में से चुनाव करना एक जटिल प्रश्न है । फिर भी हर आदमी किसी-न-किसी सिद्धांत या विचार का निर्णय करता है और उसके सहारे चलता है । उस पर पूरी आस्थ रखता है और पूर्ण आस्था के साथ उसे प्रतिपादित करता है । इसे क्या मान जाए ? उसकी अपनी दृष्टि में वह विचार सही है, दूसरे की दृष्टि में वह सह नहीं है। वास्तव में वह सही है या नहीं है, इसका निर्णय कौन करें ?
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