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६. साक्षरता का मूल्य
अशिक्षा और गरीबी में क्या कोई गठबंधन है ? बहुत सारे गरीब अशिक्षित हैं। इससे यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि उनकी गरीबी का कारण अशिक्षा है । शिक्षित गरीबों की संख्या भी कम नहीं है इसलिए यह तथ्य उलट जाता है । शिक्षा के प्रकार अनगिनत हैं । व्यावसायिक शिक्षा को कला, विज्ञान और साहित्य के बटखरों से नहीं तोला जा सकता | मानवीय मस्तिष्क में असंख्य कोष्ठ है । उनसे संचालित होने वाली असंख्य प्रवृत्तियां हैं । सबके लिए कोई एक सार्वभौम नियम नहीं गढ़ा जा सकता ।
एकांगी धारणा टूटे
हिन्दुस्तान में अभी साक्षरता का अभियान चल रहा है । इस बात की चिन्ता है कि यदि लोगों को तेजी से साक्षर नहीं बनाया गया तो हिन्दुस्तान कछ वर्षों में निरक्षर देशों की श्रेणी में अग्रणी बन जाएगा । लगता है-साक्षरता को विकास का मानदंड मान लिया गया है । अज्ञान निश्चित ही अंधेरा है । उसमें व्यक्ति न अपने आपको खोज पाता है, न किसी दूसरे को । ज्ञान जरूरी है, इसमें कोई विकल्प भी नहीं हो सकता, कोई दो मत भी नहीं हो सकता। ज्ञान का पहला चरण है अक्षर-ज्ञान । अक्षर-ज्ञान ही ज्ञान है, यह एकांगी धारणा टूट जाए तो साक्षरता का अभियान बहुत सार्थक हो सकता है । शिक्षा, समझ, सोचने की शक्ति और विवेक-इनकी उपेक्षा कर साक्षरता को मूल्य नहीं दिया जा सकता । साक्षरता का अभियान चरित्र विकास के साथ जुड़ जाए तो सही अर्थ में उसे मूल्य दिया जा सकता है ।
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