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अशाश्वत में शाश्वत की खोज ३३
चाहिए।' ली ने गोर्बाच्योव से कहा-'चीन को आधुनिकीकरण के लिए शांतिपूर्ण वातावरण में स्थिर आंतरिक स्थिति की जरूरत है ।' ये स्वर साम्यवादी मंच से उभरे, इसलिए पुराने होते हुए भी नए हैं । अशांति, हिंसा और आंतक आधुनिकीकरण के सबसे बड़े रोड़े बने हए हैं । शांतिपूर्ण वातावरण ही व्यक्ति, समाज और देश को आगे बढ़ा सकता है । यह सचाई स्वर्णाक्षरों में अंकित सचाइयों में से एक है । जनतंत्र और मानवाधिकार का प्रश्न स्वतंत्रता से जुड़ा हुआ है । धर्मसूत्रों में स्वतंत्रता को इसलिए महत्त्व दिया गया था कि उसके बिना नैतिकता और उत्तरदायित्व की भावना का विकस नहीं हो सकता ।
अनुयायिओं की भीड़
देंग ने कहा- 'विज्ञान और तकनीक सहित विश्व-स्थिति में ज्ञानात्मक परिवर्तन हो रहे हैं । इस स्थिति में पुराने नियमों से चिपके रहने पर विफलता ही हाथ आएगी ।' जिनकी उपयोगिता समाप्त हो जाती है, उन नियमों से चिपके रहना सचमुच खतरनाक होता है । इस संदर्भ में अनेकान्त का यह दृष्टिकोण बहुत उपयोगी है- नये पुराने की भाषा को बदलो, सांप्रत और असांप्रत की भाषा को मान्य करो । जो सांप्रत है, जिसकी प्रासंगिकता या उपयोगिता बनी हुई है, वह बहुत पुराना होने पर भी हमारे लिए सद्यस्क है । जो सांप्रत नहीं है, वह नवीन होने पर भी अपने अस्तित्व को प्रतिष्ठित नहीं कर सकता । अतीत के प्रति लगाव एक स्वाभाविक मनोवृत्ति है | मनुष्य जिस विचारधारा को लेकर चलता है, अधिकांशतः अतीत में जन्मे होते हैं । अतीत के परिधान में लिपटा हुआ विचार ही आकर्षक बनता है | नया-नया विचार समझ के क्षेत्र में सहज प्रवेश ही नहीं पाता । इसीलिए अनुयायी की परम्परा चल रही है । केवल धर्म के क्षेत्र में ही नहीं, राजनीति के क्षेत्र में भी सव अनुयायी हैं । शास्त्रों की दुहाई केवल धर्म के क्षेत्र में ही नहीं दी जाती, राजनीति के क्षेत्र में भी उसका काफी उपयोग होता है । वर्तमान चिन्तन की सीमा में आता है, अतीत आस्था की सीमा में | साम्यवादी या समाजवादी प्रणाली के अनुयायियों की वहत बड़ी संख्या है | गांधी के अनुयायी कहने में गौरव का अनुभव करनेवाले भी कम नहीं हैं। लोकतंत्र का अनुगमन करने में गौरव की अनुभूति किसे नहीं है ? सारा संसार नाना प्रकार के धर्मों के अनुयायियों से भरा हुआ है । आश्चर्य है-- नैतिकता
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