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आमंत्रण आरोग्य को
या ईमानदारी के अनुयायियों की भीड़ कहीं नहीं है ।
साधन-शुद्धि का प्रश्न
चीनी छात्रों का आंदोलन उस अनुयायित्व की खोज का आन्दोलन है । साध्य की प्राप्ति पर बल देने वाला मार्क्सवाद क्या अब चिन्तन के नये मोड़ पर नहीं खड़ा है ? साधन शुद्धि के विचार को ताक पर रखकर येन-केन-प्रकारेण साध्य की प्राप्ति कर ली जाती है । उसका परिणाम क्या होता है, यह वर्तमान की साम्यवादी शासन की घटनाओं के आलोक में देखा जा सकता है । साम्यवादी शासन-प्रणाली में भ्रष्टाचार की कल्पना नहीं की जा सकती पर वह.जीवन्त है। यही निष्कर्ष नितर आता है कि साध्य और साधन की शद्धि को बांटना संगत नहीं होता । महात्मा गांधी ने साध्य और साधन की शुद्धि पर समतुल्य बल दिया था पर अनुयायी आखिर अनुयायी होते है । वे पीछे चलना पसंद करते हैं, साथ में चलना पसन्द नहीं करते । उनके अनुयायी साधन-शुद्धि के प्रश्न पर मार्क्सवाद से बहुत दूर नहीं है । वाचिक दूरी हो भी सकती है, क्रियान्विति में कहीं दूरी दिखाई नहीं देती । साध्य और साधन-~~ दोनों की शुद्धि पर वल देने वालों में आचार्य भिक्षु अग्रणी थे । उनके सूत्र आज भी ज्योति-स्तम्भ बने हुए हैं । क्या अंधेरे में राह खोजती दुनिया को मार्ग दिखाने की उनकी क्षमता को अभिव्यक्ति मिलेगी ?
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