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२५ आमंत्रण आरोग्य को
है । उसके उद्गम स्रोत की जानकारी नहीं मिलती । उद्गम की दृष्टि से ज्ञान की प्राथमिकता है । 'ज्ञान प्रथमो धर्मः' इसका मूल्यांकन किए बिना ‘आचार प्रथमो धर्मः' का मूल्यांकन नहीं किया जा सकता । वास्तव में हम लोग एकांगी अधिक होते हैं । एक सापेक्ष बात के निरपेक्ष मूल्य दे देते हैं । ज्ञान और आचार दोनों सापेक्ष हैं । ज्ञान के बिना आचार का मूल्य कम होता है और आचार के विना ज्ञान का भी मूल्य कम होता है । दोनों की युति को ही पूर्ण मूल्य दिया जा सकता है ।
साक्षरता : प्रथम चरण
अन्तर्ज्ञान का सम्बन्ध साक्षरता से नहीं है । उसका स्रोत व्यक्ति के भीतर में होता है । कुछ निरक्षर साक्षर लोगों की अपेक्षा अधिक समझदार, अधिक विकशील और अधिक आचारवान होते हैं । अंतर्ज्ञान की ज्योति सवमें प्रकट नहीं होती । साक्षरता एक सामान्य प्रक्रिया है | अन्तर्ज्ञान की कोई सामान्य प्रक्रिया नहीं है । वह वैयक्तिक उपलब्धि है | हम सामान्य प्रक्रिया का उपयोग कर सकते हैं । एक साक्षर व्यक्ति कुछ पढ़ता है ? पढ़ने का मतलब है- वह दूसरे विचारों को ग्रहण करता है, दूसरों के अनुभवों के प्रकाश में अपनी ज्ञानराशि का संवर्धन करता है । जो पढ़ना नहीं जानता, उसके सामने नये ज्ञान पाने का राजपथ नहीं होता, पगडंडियां होती हैं, वे भी बहुत संकरी । एक व्यक्ति प्रतिदिन कोई न कोई नयी बात न पढ़े, कोई न कोई नया ज्ञान न पाए, उसका जीवन कैसा होता होगा ? शिक्षा के अभाव में केवल आर्थिक गरीबी की संभावना ही नहीं होती, वैचारिक गरीबी की संभावना भी होती है । साक्षरता को शिक्षा का विकास नहीं कहा जा सकता पर वह प्रथम चरण है । उसके अभाव में अग्रिम चरण आगे कैसे बढ़ेगा ? इसलिए साक्षरता की दिशा में कदम बढ़ाना, राष्ट्रीय विकास की एक अनिवार्य प्रेरणा है । क्या यह प्रेरणा का स्वर अब भी अनवोला और अनसुना रहेगा ?
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