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साक्षरता और आचार
आज का प्रश्न है—एक पढ़ा-लिखा आदमी बैंक डकैती में संलग्न है, चोरी करने में अपनी दक्षता का परिचय दे रहा है, शराब पीता है, मादक कस्तुओं का सेवन करता है और एक निरक्षर आदमी इन सारी बुराइयों से बचा हुआ है | क्या साक्षरता उसके लिए कोई वरदान है? क्या निरक्षरता दूसरे के लिए कोई अभिशाप है? यह प्रश्न सही सोच में से नहीं उपजा है | चरित्र का सम्बन्ध साक्षरता और निरक्षरता से नहीं है। उसका सम्बन्ध आन्तरिक चेतना की जागरूकता से है । साक्षरता का संबंध सभ्यता, संस्कृति और भौतिक विकास से जुड़ा हुआ है । तथ्यों को समझने की क्षमता भी साक्षरता से जुड़ी हुई है |
सत्य की यात्रा का पहला पड़ाव है साक्षरता । आचार विकास के लिए हेय और उपादेय अथवा कल्याण और अकल्याण का बोध आवश्यक है । वह ज्ञान के बिना कैसे होगा? आयुर्वेद हित और अहित अथवा स्वास्थ्य और अस्वास्थ्य का बोध कराने वाला शास्त्र है । शास्त्र अक्षरात्मक है | जो साक्षर ही नहीं है, उसके लिए शास्त्र का क्या मूल्य होगा ? यदि आंख ही नहीं है तो दर्पण का कितना मूल्य होगा ? हम प्रथम दरवाजे को बंद रखकर भीतर में प्रवेश की बात नहीं सोच सकते । साक्षरता और आचार-दोनों के स्रोतों की भिन्नता होने पर भी उनके बंटवारे की बात नहीं सोची जा सकती । उन्हें तराजू के दोनों पल्लों को एक साथ रखकर ही तोलना संगत होगा ।
दोनों सापेक्ष हैं
गरीबी की समस्या हिन्दुस्तान की एक बड़ी समस्या है । दुनिया के अनेक देशों में मात्रा भेद से इस समस्या का अस्तित्व बना हुआ है । इसका कारण केवल अशिक्षा अथवा केवल व्यवस्था की त्रुटि नहीं है | कारण का एक चक्र है । अशिक्षा एक बड़ा कारण है, यह स्वीकारने में कोई कठिनाई नहीं होनी चाहिए । इस सन्दर्भ में हिन्दुस्तान की यह चिंता समझ में आ सकती हैनिरक्षरता का अंत आवश्यक है । 'पूरा देश साक्षर हो, सब लोगों में पढ़नेलिखने की क्षमता हो तो विकास की पृष्ठभूमि तैयार हो सकती है । आचार को प्राथमिकता दी जा सकती है । 'आचारः प्रथमो धर्मः' के स्वर का उद्घोष किया जा सकता है । उसमें आचार के मूल्यांकन का दृष्टिकोण प्रस्फुटित होता
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