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अधूरी सचाई समस्याओं का जाल तोड़ नहीं सकती १५
प्रचार किया था । क्या अब यह दृष्टिकोण बदल रहा है ?
अवश्य बदल रहा है । समझदार लोग अनुभव करने लगे हैं कि रासायनिक खाद से उपजा खाद्य शरीर में विष को भर रहा है ।
विदेश से मांग यह है कि प्राकृतिक खाद से उपजा हुआ गेंहू चाहिए ।
कृत्रिम साधन और कृत्रिम विकास एक बार चलता है और कुछ दूर चलकर वह रुक जाता है । क्या यह निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता कि आज का युग प्रवृत्ति के लिए आतुर है, परिणाम के क्षेत्र में दीर्घदर्शी नहीं है ।
सूक्ष्मदर्शी बनें
विज्ञान के क्षेत्र में सूक्ष्म दर्शन का बहुत विकास हुआ है । जीवन के क्षेत्र में स्थूल दर्शन ही चल रहा है | जनता का बहुत बड़ा भाग स्थूलदर्शी होता है । उसका नेता या संचालक स्थूलदर्शी नहीं होना चाहिए । लोकतंत्र में नेतृत्व स्थूलदर्शन के मत पर निर्भर है इसलिए सूक्ष्मदर्शी नेतृत्व की कल्पना करना बहुत कठिन है । एक मंत्री घोटाला कर सकता है, रिश्वत ले सकता है, विशाल दायित्व के प्रति आंखमिचौनी कर सकता है- यह सोचा नहीं जा सकता । कुछ बातें सोच से परे होती हैं । स्थूलदर्शी व्यक्तित्व में यह सब कुछ हो सकता है । केवल परिस्थिति को ही देखने वाला और उसके आधार पर उतार-चढ़ाव की कल्पना करने वाला सूक्ष्मदर्शी नहीं हो सकता । सूक्ष्मदर्शी वही होता है, जो पहले उपादान को देखता है, फिर परिस्थिति का मूल्यांकन करता है । उपादान को बदलने के साथ-साथ परिस्थिति को बदलने की बात सोचता है । बहुत सारे चिन्तकों ने परिस्थिति या व्यवस्था को बदलने की बात पर अधिक भार दिया इसलिए समूचा विश्व उसी धारा के साथ चल रहा है । परिस्थिति को बदलने वाला न बदले और परिस्थिति बदल जाए, क्या यह संभव है ?
मनःस्थिति : परिस्थिति
इस शताब्दी में परिस्थिति या व्यवस्था को बदलने के अनेक प्रयत्न हुए। इस दिशा में साम्यवाद और समाजवाद के प्रयत्नों को आंखों से ओझल नहीं किया जा सकता । उनके परिणाम हमारे सामने हैं । वैज्ञानिक प्रणालियों ने भी बदलाव के बहुत प्रयत्न किए ? उनकी निष्पत्तियां भी अगम्य नहीं हैं । आज
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