Book Title: Agam 43 Mool 04 Uttaradhyayana Sutra ka Shailivaigyanik Adhyayana
Author(s): Amitpragyashreeji
Publisher: Jain Vishva Bharati
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दण्डविधान की ओर संकेत करता है। तत्कालीन राज्य-व्यवस्था का उल्लेख भी इस अध्ययन में हुआ है। २२. रहनेमिज्जं
यदुवंशी अरिष्टनेमि, श्रीकृष्ण, राजीमती, रथनेमी का चरित्र-चित्रण इसमें हुआ है। पथच्युत रथनेमी का राजीमती चरण-स्थिरीकरण करती है। इसमें आए हुए भोज, अन्धक और वृष्णि शब्द प्राचीन कुलों के द्योतक हैं। २३. केसिगोयमिज्जं
इसमें पापित्यीय केशी और महावीर के शिष्य गौतम के बीच एक ही धर्म में सचेल-अचेल, चातुर्याम-पंचयाम आदि परस्पर विपरीत धर्म के विषय भेद को लेकर संवाद होता है। इससे पता चलता है कि महावीर ने कैसे अपने संघ में परिष्कार, परिवर्द्धन और सम्वर्द्धन किया था। आत्मविजय और मनोनुशासन के उपायों का भी अच्छा चित्रण है। २४. पवयण-माया
इसमें बताया गया है कि प्रवचन-माताओं के पालन में विशुद्धता से ही श्रामण्य का शुद्ध पालन संभव है। सम्पूर्ण साधु जीवन का आधार यह अध्ययन है। माता जैसे पुत्र को सन्मार्ग पर चलने की प्रेरणा देती है, वैसे ही प्रवचनमाता साधक को सम्यक् विधि से साधनापथ पर चलने की प्रेरणा देती है। २५. जन्नइज्ज
वास्तविक यज्ञ भावयज्ञ (तप और संयम में यतना) तथा सच्चा ब्राह्मण ब्रह्मचर्य का पालन करने वाला होता है-इसका प्रतिपादन इस अध्ययन में हुआ है। प्रसंगानुकूल इसमें ब्राह्मण के मुख्य गुणों का उल्लेख है। २६. सामायारी
सामाचारी का अर्थ है-मुनि का आचार-व्यवहार। इसमें साधक का साधना क्रम वर्णित है। आवश्यकी, नैषेधिकी, आपृच्छा आदि सामाचारी के साथ प्रस्तुत अध्ययन में अन्यान्य कर्तव्यों का निर्देश भी हुआ है। २७. खलुंकिज्जं
___ इसमें अविनीत शिष्य की तुलना दुष्ट बैल से की गई है और उसके माध्यम से अविनीत की उद्दण्डता का चित्रण किया गया है।
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उत्तराध्ययन का शैली-वैज्ञानिक अध्ययन
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