Book Title: Agam 43 Mool 04 Uttaradhyayana Sutra ka Shailivaigyanik Adhyayana
Author(s): Amitpragyashreeji
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 230
________________ २. पश्चगामी समीकरण (Regressive Assimilation) इसमें परवर्ती ध्वनि पूर्ववर्ती ध्वनि को अपने समान बना लेती है। जैसेअर्थम् > अत्थं (१/२३) मुक्तिः > मुत्ति (९/५७) प्रतिपूर्णम् > पडिपुण्णं (९/४९) उत्पतितः > उप्पइओ (९/६०) धर्मः > धम्मो (२३/६८) उद्गतः > उग्गओ (२३/७६) निर्गता > निग्गया (२७/१२) ३. मिथोगामी समीकरण (Mutual Assimilation) संयुक्त व्यंजनों में दोनों व्यंजन एक दूसरे को प्रभावित करते हैं, इससे उनके स्थान पर एक नया ही युग्म या एकल व्यंजन आ जाता है, वह मिथोगामी समीकरण है। यथा -- आत्मार्थम् > अप्पणट्ठा (१/२५) कृत्यानाम् > किच्चाणं (१/४५) मृत्युना > मच्चुणा (१४/२३) प्रज्ञा पण्णा (२३/६४) पर्यवचरकः > पज्जवचरओ (३०/२४) शय्या > सेज्जा (३२/१२) ध्यान > झाण (३२/१५) विषमीकरण (Dissimilation) यह समीकरण का विपरीत है। दो सम ध्वनियों के होने पर भी कभीकभी एक ध्वनि विषम हो जाती है, उसे विषमीकरण कहते हैं। उच्चारण की सुविधा व अर्थ की स्पष्टता के लिए ऐसा किया जाता है। कुछ उदाहरण द्रष्टव्य हैंलोकः > लोगो (१४/२२) चपेटाम् > चवेडं (१९/६७) कूटकार्षापणः > कूडकहावणे (२०/४२) याजकः > जायगो (२५/६) AAAAAA V V V उत्तराध्ययन की भाषिक संरचना 213 Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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