Book Title: Agam 43 Mool 04 Uttaradhyayana Sutra ka Shailivaigyanik Adhyayana
Author(s): Amitpragyashreeji
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 228
________________ अनुत्तरज्ञानी > एडकम् > विपुले आवेशे विलोपकः अज शठः सुकुमारम् > लोकपूजितः > अवधिज्ञान > अथ प्रथमाम् प्रतिमासु यतते सूत्रकृतेषु > दशादीनाम् > लोभः वसतिः दुःखित वियोगे > उदाहरण स्वरूप लोप कुत्रचित् क्वचित् > अणुत्तरनाणी (६/१७) (७/१) (७/२) (७/३) (७/५) (७/९) (७/१७) (२०/४) (२३/१) (२३/३) (२३/१४) (२६/१२) (३१ / ११) (३१/१४) (३१/१६) (३१/१७) (३२/८) (३२/१३) (३२/३१) (३२/९३) (३६/१४७) > एलयं विउले आएसे विलोवए अय सढे Jain Education International 2010_03 सुकुमालं लोगपूइओ ओहिनाण दुहिओ विओगे शृङ्गरीट्यः सिंगिरीडी अन्त्य-स्थित अह पढमं पडमासु जयई १. अन्तिम व्यंजन का लोप हो जाता है। २. अन्त्यव्यंजन को अनुस्वार हो जाता है। ३. अन्तिम व्यंजन स्वरान्त कर दिया जाता है। सूयगडे दसाइणं लोहो वसही कत्थई उत्तराध्ययन की भाषिक संरचना (२/२७) (२/४६) For Private & Personal Use Only 211 www.jainelibrary.org

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