Book Title: Agam 43 Mool 04 Uttaradhyayana Sutra ka Shailivaigyanik Adhyayana
Author(s): Amitpragyashreeji
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 246
________________ वाले को मनुष्य कहते हैं। यह अर्थ सिमटकर मनुष्य जातिवाचक नाम हो गया, इसलिए चिन्तन करने वाले और मूर्ख सभी मनुष्य हैं। प्रस्तुत सन्दर्भ में यह शब्द मनुष्य-अर्थ में प्रयुक्त हुआ है। समास, उपसर्ग, प्रत्यय, विशेषण, नामकरण, पारिभाषिकता आदि में भी अर्थ संकोच हो जाता है। समास - सिक्खासीले (११/४) उपसर्ग पमत्ते (४/५) संगो (२/१६) संजोगा (११/१) प्रत्यय भोगे . (२०/६) विशेषण - चारूभासिणि!, सुतनु! (२२/३७) नामकरण - रामकेसवा (२२/२७) अर्थादेश ___एक अर्थ के स्थान पर दूसरे अर्थ का आ जाना अर्थादेश है। अर्थादेश में प्राचीन अर्थ लुप्त हो जाता है और उसका स्थान नया अर्थ ले लेता है। जैसे १. एगया आसुरं कायं (३/३) असुर का मूल अर्थ असु+र (प्राणशक्तिसंपन्न) 'देवता' था किन्तु बाद में सुर (देवता) का उल्टा अ+सुर राक्षस अर्थ हो गया। उत्तराध्ययन में भी असुर शब्द इसी अर्थ को द्योतित कर रहा है। २. सहिए (१५/१), सहई (३१/५) वेद में सह धातु का अर्थ जीतना था। अब यह सहन करना, सहिष्णु अर्थ में प्रयुक्त होती है। ३. 'अयं साहसिओ भीमो' (२३/५५) __ पहले इसका अर्थ बिना विचारे काम करने वाला, डाका डालना, चोरी, व्यभिचार करना आदि था। अब इसका अर्थ 'साहस वाला', 'साहसिक' उत्तराध्ययन की भाषिक संरचना 229 Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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