Book Title: Agam 43 Mool 04 Uttaradhyayana Sutra ka Shailivaigyanik Adhyayana
Author(s): Amitpragyashreeji
Publisher: Jain Vishva Bharati
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सामर्थ्य सत्-संकल्प में है-इसका स्पष्ट निदर्शन राजर्षि नमि व मुनि अनाथी के आख्यान से होता है।
यज्ञादि क्रियाकांडों में ही धर्म मानने वालों के सामने घोर पराक्रमी हरिकेशी का दृष्टान्त मननीय है। यज्ञ का आध्यात्मिकीकरण ही आध्यात्मिक आरोहण का सोपान है।
दुर्मत का निग्रह करने वाली अनेक गाथाएं उत्तराध्ययन में प्रयुक्त हैं। शरीर से भिन्न चैतन्य नहीं है। पांच भूतों के समवाय से चैतन्य की उत्पत्ति और उसके अलग होते ही चैतन्य भी नष्ट हो जाता है - इस नास्तिक मत कां निरसन उत्तराध्ययन के शब्दों में
नो इंदियगेज्झ अमुत्तभावा। अमुत्तभावा वि य होइ निच्चो (१४/१९)
व्रतों की परंपरा का स्रोत श्रमण संस्कृति है। इस संस्कृति का आदर्श है कि व्यक्ति अपने पुरुषार्थ के बल पर अपना उच्चतम उत्कर्ष करने में सक्षम है। 'केसिगोयमिज्ज' अध्ययन उलझे विकल्पों का समाधान कैसे किया जा सकता है? मन को अनुशासित करने का उपाय क्या है? इसकी मौलिक उद्भावना के साथ-साथ यह अध्ययन चिन्तन के परिष्कार, परिवर्द्धन के नये आयाम उद्घाटित करता है।
ब्राह्मण कौन? 'जन्नइज्ज' अध्ययन में विजयघोष और उनके साथियों द्वारा जिज्ञासा किए जाने पर मुनि जयघोष ब्राह्मण के यथार्थ स्वरूप का निरूपण करते हैं
जो आर्य-वचन में रमण करता है। जो त्रस-स्थावर जीवों की मन, वचन, काया से हिंसा नहीं करता। जो क्रोध, हास्य, लोभ या भय के कारण असत्य नहीं बोलता-आदि गुणों से युक्त व्यक्ति ही ब्राह्मण कहलाता है। ब्राह्मण का यह वास्तविक स्वरूप यज्ञादि क्रियाकांड में रत ब्राह्मणों को अपने स्वरूप की सही पहचान कराने में सक्षम है।
__उत्तराध्ययन का अध्ययन जीवन के अनेक पक्षों को उजागर कर रहा है। पवयण-माया, सामायारी, चरणविही, अणगारमग्गगई आदि अध्ययन साध्वाचार पर विस्तृत प्रकाश डालते हैं। 'मोक्खमग्गगई' में मोक्षमार्ग का व 'सम्मत्तपरक्कमे' में साधना-मार्ग का सुंदर निरूपण है। 'जीवाजीवविभत्ती' संयम का मूल आधार जीव-अजीव का ज्ञान कराता है। कम्मपयडी, लेसज्झयणं
निकष
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