Book Title: Agam 43 Mool 04 Uttaradhyayana Sutra ka Shailivaigyanik Adhyayana
Author(s): Amitpragyashreeji
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 251
________________ अंतर्गत परिगणित है, पर जैन दर्शन सम्मत चारों अनुयोगों का इसमें समावेश है। लक्ष्य प्राप्ति के जो साधन इसमें निर्दिष्ट हैं उन्हें अपनाकर व्यक्ति साध्य तक पहुंच सकता है। 'उत्तराध्ययन श्रमण काव्य है' इस मत से कुछ विचारक सहमत नहीं है। शैली की दृष्टि से आद्योपान्त अनुशीलन के पश्चात् प्रशस्तिपूर्वक कहा जा सकता है - इसका आदि, मध्य, अंत काव्यात्मक गुणों से गुम्फित है। यथा- पक्खी पत्तं समादाय निरवेक्खो परिव्वए ६ / १५ पक्षी अपने पंखों को साथ लिए उड़ जाता है वैसे ही मुनि अपने पात्रों को साथ ले, निरपेक्ष हो, परिव्रजन करे । यहां मुनि के संयमी जीवन की विषेषता को लक्षित करते हुए अनासक्तता प्रदर्शित करने के भाव रचनाकार की भावभिव्यञ्जना से उगीत हैं। वर्णन की यह वक्र शैली कुन्तक के शब्दों में वक्रता से अभिहित है | चेतन पंखों में अचेतन भिक्षा पात्र की कल्पना लक्षणा के चमत्कार से सार्थक बनी है। श्लेष पर आधारित इस प्रतीक में प्रच्छन्न चिन्तारहितता चमत्कार का कारण है। नाद - सौन्दर्य की दृष्टि से वर्ण - सामंजस्य पर आश्रित पद्य-सृजन है। यहां रमणीय भाव उक्तिवैचित्र्य एवं वर्ण-लय- संगीत सब मिलकर काव्य का सृजन कर रहे हैं। कोई भी भाव, जिसमें हमारे मन को रमाने की शक्ति हो रमणीय है। हमारे आचार्यों की स्थापना - 'शब्दार्थौ काव्यम्' - ' रसात्मक शब्दार्थ ही काव्य है' (डॉ. नगेन्द्र के सर्वश्रेष्ठ निबन्ध, पृ. २२, २५) । इस दृष्टि से काव्य के अनिवार्य तत्त्व रमणीय अनुभूति, उक्तिवैचित्र्य, छंद - इन सभी का समन्वित रूप उत्तराध्ययन में है । काव्य के लिए अनुभूति मेरूदंड है । कवि का अनुभूति क्षेत्र जितना व्यापक होगा उतनी ही विविधतापूर्ण उसकी काव्यभाषा होगी। उत्तराध्ययन के कर्ता के विशाल एवं विशद अनुभूति - क्षेत्र में प्रयुक्त अभिनव प्रयोगों को खोजने का प्रयास अनुसंधित्सु ने किया है। कवि की निर्मल मेधा से सहज प्रसूत कुछ ऐसे प्रतीक, मुहावरे, उपमाएं जिनका साहित्य में प्रचलन नहीं के बराबर है, उनकी खोज भी प्रस्तुत शोध प्रबंध में की गई है। लादे (कष्टसहिष्णु व्यक्ति का प्रतीक) लाढ़ एक देश का नाम होते हुए भी यहां कष्ट-सहिष्णु के प्रतीक के 234 Jain Education International 2010_03 उत्तराध्ययन का शैली - वैज्ञानिक अध्ययन For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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