Book Title: Agam 43 Mool 04 Uttaradhyayana Sutra ka Shailivaigyanik Adhyayana
Author(s): Amitpragyashreeji
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 229
________________ V V V V कदाचित् > कयाइ (३/७) तस्मात् तम्हा (६/१२) बलात् > बला (१९/५८) पश्चात् > पच्छा (२९/२९) अनुस्वार न को अनुस्वार-आयुष्मन् > आउसं (२९/१) म् को अनुस्वार - जनम् > जणं (२२/१७) अन्य व्यंजन को भी कभी-कभी अनुस्वार हो जाता हैसम्यग् > सम्म (२४/२७) स्वरान्त पृथग् > पुढो (३/२) आपद् > आवई (७/१७) समीकरण (Assimilation) दो विषम ध्वनियों के एकत्र होने पर एक ध्वनि दूसरी ध्वनि को प्रभावित करके अपने सदृश बना लेती है, उच्चारण सौकर्य के लिए विषमवर्गीय व्यंजन समवर्ग में परिवर्तित हो जाते हैं, इसे ही समीकरण या समीभवन कहते है। समीकरण तीन प्रकार के हैं१. पुरोगामी समीकरण (Progressive Assimilation) संयुक्त व्यजंनों में पूर्ववर्ती ध्वनि पश्चाद्वर्ती ध्वनि को प्रभावित कर अपने सदृश बना लेती है, यह पुरोगामी समीकरण है। जैसे कल्याणम् > कल्लाण (१/३९) हिरण्यम् > हिरण्णं (९/४६) अब्रवीत् > अब्बवी (२३/६७) क्षिप्रम् > खिप्पं (२४/२७) मन्ये मन्ने (२७/१२) चरित्र > चरित्त (२९/१५) इत्वरिकम् > इत्तिरिया (३०/९) दवाग्निः > (३२/११) V V V 212 उत्तराध्ययन का शैली-वैज्ञानिक अध्ययन ____Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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