Book Title: Agam 43 Mool 04 Uttaradhyayana Sutra ka Shailivaigyanik Adhyayana
Author(s): Amitpragyashreeji
Publisher: Jain Vishva Bharati
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अव्यय
उत्तराध्ययन में प्रयुक्त अव्यय इस प्रकार हैंतत्तो (ततः) (३०/११) अहवा
(३०/१३) तत्थ
(३२/३२) व (इव) (३२/३७)
पद के तीन भेद भी किये जा सकते हैं-१. तत्सम २. तद्भव और ३. देश्य
शब्द प्रकृति और प्रत्यय के संयोग से निष्पन्न है या नहीं, इस आधार पर इनका विभाग किया जा सकता है। संस्कृत में शब्दों के दो विभाग किए गए हैं-व्युत्पन्न और अव्युत्पन्न। व्याकरण के नियमों से सिद्ध होने वाले शब्द व्युत्पन्न तथा व्याकरण सम्मत न होकर लोक-परम्परा या व्यवहार से सिद्ध होने वाले शब्द अव्युत्पन्न कहलाते हैं। त्रिविक्रमदेव ने प्राकृत शब्दों के तीन प्रकार बताए हैं-तत्सम, तद्भव और देश्य। १. तत्सम
संस्कृत के समान शब्द 'तत्सम' कहलाते हैं। ये बिना किसी रूपपरिवर्तन के प्राकृत में प्रयुक्त होते हैं। संस्कृतसम° और तत्तुल्य' शब्द इसी के वाचक हैं। २. तद्भव
संस्कृत की प्रवृत्ति से सिद्ध शब्द 'तद्भव' है। ये शब्द वर्णागम, वर्णविकार, ध्वनि-परिवर्तन आदि के कारण अपना रूप बदल देते हैं। हेमचन्द्र ने इसके लिए संस्कृतयोनि' शब्द का प्रयोग किया है।१२ ३. देश्य
देष्य शब्द व्युत्पत्ति-सिद्ध नहीं होते। आचार्य हेमचन्द्र ने देशी शब्द की सार्थक एवं व्यापक परिभाषा दी -
जे लक्खणे ण सिद्धा ण पसिद्धा सक्कयाहिहाणेसु। ण य गउणलक्खणासत्तिसंभवा ते इह णिबद्धा।।
उत्तराध्ययन की भाषिक संरचना
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