Book Title: Agam 43 Mool 04 Uttaradhyayana Sutra ka Shailivaigyanik Adhyayana
Author(s): Amitpragyashreeji
Publisher: Jain Vishva Bharati
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(iii) संयुक्त वाक्य : इसमें एक से अधिक प्रधान उपवाक्य होते हैं। इनके साथ आश्रित उपवाक्य एक या अनेक होते हैं अथवा नहीं भी होते हैं। यथा- निग्गंथस्स खलु इत्थीणं कहं कहेमाणस्स बंभयारिस्स बंभचेरे संका वा, कंखा वा, वितिगिच्छा वा समुप्पज्जिज्जा, भेयं वा लभेजा, उम्मावं वा पाउणिज्जा, दीहकालियं वा रोगायंकं हवेज्जा, केवलिपण्णत्ताओ वा धम्माओ भंसेज्जा। (१६/सू. ४) २. अर्थमूलक वाक्य
अर्थ या भाव की दृष्टि से वाक्य के मुख्य आठ भेद किए जाते हैं - १. विधि वाक्य-से निग्गंथे। (१६/सू. ६) २. निषेध वाक्य-नो विभूसाणुवाई हवइ। (१६/सू ११) ३. प्रश्न वाक्य-पडिक्कमणेणं भंते! जीवे किं जणयइ? (२९/१२) ४. अनुज्ञा वाक्य-नापुट्ठो वागरे किंचि। (१/१४) ५. सन्देह वाक्य-कहिं मन्नेरिसं रूवं, दिठ्ठपुव्वं मए पुरा|
(१९/६) ६. इच्छार्थक वाक्य-इच्छियमणोरहे तुरियं, पावेसू तं दमीसरा!
(२२/२५) ७. संकेतार्थक वाक्य-अणुजाणह पव्वइस्सामि अम्मो! (१९/१०) ८. विस्मयार्थक वाक्य-अहो! भोगे असंगया। (२०/६)
अहोसुभाण कम्माणं निज्जाणं पावगं इम। (२१/९) ३. क्रियामूलक वाक्य
वाक्य में क्रिया के आधार पर दो भेद होते हैं१. क्रियायुक्त वाक्य-- खणं पि न रमामह। (१९/१४)
२. क्रियाविहीन वाक्य-'इमं सरीरं अणिच्ची' (१९/१२) ४. अर्थविज्ञान
___ 'अर्थ' शब्द की आत्मा है। ध्वनिविज्ञान, पदविज्ञान और वाक्यविज्ञान भाषा के शरीर हैं। इनमें भाषा के बाह्यपक्ष का विवेचन किया जाता है। अर्थविज्ञान में शब्दार्थ के आन्तरिक पक्ष का विश्लेषण किया जाता है। भर्तृहरि ने अर्थ का लक्षण बताते हुए कहा
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उत्तराध्ययन का शैली-वैज्ञानिक अध्ययन
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