Book Title: Agam 43 Mool 04 Uttaradhyayana Sutra ka Shailivaigyanik Adhyayana
Author(s): Amitpragyashreeji
Publisher: Jain Vishva Bharati
View full book text
________________
कहते हैं। यह नियत अक्षर के लिए निश्चित भी हो सकता है और स्वतंत्र भी हो सकता है। इसके कारण शब्दों में मात्रात्मक एवं गुणात्मक परिवर्तन परिलक्षित होते हैं। उत्तराध्ययन में स्वराघात के कारण परिवर्तन के कुछ उदाहरणमात्रात्मक परिवर्तन
जब स्वराघात कोई शब्दांश विशेष पर होता है तो उसके पूर्ववर्ती या पश्चात्वर्ती स्वर हस्व या दीर्घ हो जाता है
आनुपूर्त्या - आणुपुब्विं (१/१) आत्मनः > अप्पणो (१/६) मनुष्याः > मणूसा (४/२) विश्वस्यात् > वीससे (४/६) मुहूर्त्ता > मुहुत्ता (४/६) स्पर्शा > फासा
(४/१२) कान्दी कंदप्पं (३६/२६३) भावनां > भावणं (३६/२६३)
धर्माचार्यस्य > धम्मायरियस्स (३६/२६५) गुणात्मक परिवर्तन
स्वरों के उच्चारण स्थान में परिवर्तन गुणात्मक परिवर्तन है। यथाबृंहयिता > बूहइत्ता (४/७) पौरुषी > पोरिसिं (२६/१२) द्विपदा > दुपया
(२६/१३) मृदुमार्दव > मिउमद्दव (२७/१७)
म्रियन्ते > मरंति (३६/२५८) २. पद
भाषा का आधार वाक्य है। वाक्य का आधार शब्द है। सार्थक शब्द की पद संज्ञा होती है। 'सुप्तिङन्तं पदम्' अर्थात् सुबन्त और तिङन्त को पद कहते हैं। शब्द या धातु से विशेष अर्थ के बोधक सुप् या तिङ् आदि प्रत्यय लगाने पर प्रयोग के योग्य पद या रूप बनते हैं। महाभाष्य के अनुसार-'न
218
उत्तराध्ययन का शैली-वैज्ञानिक अध्ययन
___Jain Education International 2010_03
For Private &Personal Use Only
www.jainelibrary.org