Book Title: Agam 43 Mool 04 Uttaradhyayana Sutra ka Shailivaigyanik Adhyayana
Author(s): Amitpragyashreeji
Publisher: Jain Vishva Bharati
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सदृशं त्रिषु लिङ्गेषु सर्वासु च विभक्तिणु। वचनेषु च सर्वेषु यन्न व्येति तदव्यम्।।५६ यास्क ने अव्ययों (निपातों) को तीन रूपों में वर्गीकृत किया हैं - १. उपमार्थक–इव, यथा, न, चित्, वा आदि। २. पादपूरणार्थक-उ, खलु, नूनम्, हि, सिम् आदि। ३. कर्मोपसंग्रहार्थक (अर्थसंग्रहार्थक)-च, वा, समं, सह आदि।
आगम में प्रयुक्त अव्ययों को तीन भागों में विभाजित किया जा सकता है - १. तद्धितान्त, २. कृदन्त, ३. रूढ़ तद्धितान्त
तद्धितप्रत्ययों से निष्पन्न अव्यय तद्धितान्त कहलाते हैं। यथा-तत्थ, इह, एगया, सव्वओ आदि।
'एगया खत्तिओ होइ तओ चंडाल वोक्कसो।' उत्तर. ३/४ वही जीव कभी क्षत्रिय होता है, कभी चाण्डाल, कभी बोक्कस।
'एगया' कालवाची तद्धित प्रत्यान्त अव्यय है। एक शब्द से काल अर्थ में 'दा' प्रत्यय करने से एकदा रूप बनता है।
यहां ‘एगया' अव्यय कृतकर्मों के अनुसार मनुष्यों के संसार भ्रमण का सूचक है।
'तओ' अव्यय तद् शब्द से तस् प्रत्यय लगकर निष्पन्न हुआ है। 'तत्थ ठिच्चा जहाठाणं जक्खा आउक्खए चुया।' उत्तर. ३/१६
वे देव उन कल्पों में अपनी शील-आराधना के अनुरूप स्थानों में रहते हुए आयु-क्षय होने पर वहां से च्युत होते हैं।
तत्थ अव्यय काल एवं देशवाचक है। यह उस स्थान पर, वहां, उस ओर, उसके लिए आदि अर्थों में प्रयुक्त होता है। तद् सर्वनाम शब्द से तद्धित का बल् प्रत्यय करने पर तत्र शब्द बनता है। प्राकृत में 'वल्' प्रत्यय . के स्थान पर हि, ह, त्थ का प्रयोग होता है।६८
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उत्तराध्ययन का शैली-वैज्ञानिक अध्ययन
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