Book Title: Agam 43 Mool 04 Uttaradhyayana Sutra ka Shailivaigyanik Adhyayana
Author(s): Amitpragyashreeji
Publisher: Jain Vishva Bharati
View full book text
________________
हिंसायाम् धातु से ल्युट् प्रत्यय करने पर शरण शब्द निष्पन्न होता है। शृ धातु हिंसा, छेदन-भेदन के अर्थ में प्रयुक्त है। धर्म कर्मों का छेदन-भेदन कर दुष्कृत्यों से व्यक्ति की रक्षा करने के कारण उत्तम शरण है। इस प्रकार धर्म का अनेक प्रकार से कथन होने से यहां उल्लेख अलंकार है। * स्वभावोक्ति अलंकार
पदार्थ की जाति, गुण, क्रिया, या स्वरूप का तद्वत् वर्णन स्वभावोक्ति अलंकार है। इसमें जातिगत या स्वभावगत विशेषता का वास्तविक एवं चमत्कारपूर्ण वर्णन होता है।
उत्तराध्ययन में जगह-जगह पर स्वभावोक्ति अलंकार का प्रयोग हुआ
है।
घोरा मुहुत्ता ४/६ काल बड़ा घोर/क्रूर होता है।
घोरा मुहुत्ता से कवि ने संकेत किया है कि मनुष्य की आयु अल्प है। मृत्यु का काल अनियमित होता है। 'घोरा मुहत्ता' यह स्वभावोक्ति अलंकार मनुष्य की चेतना को यह सोचने के लिए उद्वेलित करता है कि आने वाली सुबह उसके लिए जीवन का संदेश लायेगी या मरण का? पता नहीं मृत्यु कब आ जाए और प्राणी को उठाकर ले जाए।
२६ जनवरी, २००१ में गुजरात ने भूकम्प से उत्पन्न तबाही व प्रलय के दृश्य से 'मुहूर्त्त घोर है' इस दुःखद यथार्थ को भोगा है तथा समूची मानवजाति ने देखा व सुना है।
अणिच्चे जीवलोगम्मि किं हिंसाए पसिज्जसि? उत्तर. १८/११
इस अनित्य जीवलोक में तू क्यों हिंसा में आसक्त हो रहा है? राजा संजय हिरणों को व्यथित कर रहा था। मरे हुए हिरणों के स्थान में ही ध्यान में लीन अनगार को देख राजा भयभीत हो गया। अपने दुष्कृत्य के लिए अनगार से क्षमा मांगी। अनगार ने कहा-पार्थिव! मैं तुझे अभयदान देता हूं। तू भी अभयदाता बन। तू स्वयं पराधीन है। हिंसा कर पाप-कर्मों का उपार्जन क्यों कर रहा है। संसार अनित्य है। इस संसार में अहिंसा के आधारभूत तत्त्व अभय और अनित्यता का बोध ये दो ही हैं। इस स्वभावोक्ति से कवि प्रेरणा दे रहा है
उत्तराध्ययन में रस, छंद एवं अलंकार
179
Jain Education International 2010_03
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org