Book Title: Agam 43 Mool 04 Uttaradhyayana Sutra ka Shailivaigyanik Adhyayana
Author(s): Amitpragyashreeji
Publisher: Jain Vishva Bharati
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एगया देवलोएसु नरएसु वि एगया। एगया आसुरं कायं आहाकम्मेहिं गच्छई। उत्तर. ३/३ न इमं सव्वेसु भिक्खूसु, न इमं सव्वेसुऽगारिसु। उत्तर. ५/१९ मणगुत्तो वयगुत्तो कायगुत्तो जिइंदिओ। उत्तर. १२/३ खणमेत्तसोक्खा बहुकालदुक्खा पगामदुक्खा अणिगामसोक्खा। उत्तर. १४/१३ चंपाए पालिए नाम सावए आसि वाणिए। उत्तर. २१/१ 'अण्णवंसि महोहंसि' उत्तर. २३/७० इन उदाहरणों में पदान्त अनुप्रास
है।
श्लेष अलंकार
श्लेष शब्द श्लिष् धातु से निष्पन्न है, जिसका अर्थ है चिपकना या सटना। विश्वनाथ ने श्लेष की परिभाषा करते हुए कहा-'श्लिष्टः पदैरनेकार्थाभिधाने श्लेष इष्यते ७८ श्लिष्ट शब्दों के द्वारा अनेक अर्थ के अभिधान या कथन को श्लेष कहते हैं। यथाश्रुत-महिमा
जहा सुई ससुत्ता पडिया विन विणस्सइ। तहा जीवे ससुत्ते संसारे न विणस्सइ॥ उत्तर. २९/६०
जिस प्रकार धागे सहित (ससूत्र) सूई गिरने पर गुम नहीं होती, आसानी से मिल जाती है, उसी प्रकार ससूत्र जीव संसार में रहने पर भी विनष्ट नहीं होता। यहां एक ससूत्र का अर्थ धागा सहित तथा दूसरे ससूत्र का अर्थ सूत्र सहित है। एक शब्द भिन्न अर्थ में प्रयुक्त होने से श्लेष अलंकार है। इस गाथा से श्रुत-महिमा प्रकट हो रही है। निरपेक्षता का बोध
सन्निहिं च न कुव्वेज्जा लेवमायाए संजए। पक्खी पत्तं समादाय निरवेक्खो परिव्वए ॥ उत्तर. ६/१५
संयमी मुनि पात्रगत लेप को छोड़कर अन्य किसी प्रकार के आहार का संग्रह न करे। पक्षी अपने पंखों को साथ लिए उड़ जाता है वैसे ही मुनि अपने पात्रों को साथ ले, निरपेक्ष हो, परिव्रजन करे। यहां पत्त शब्द पत्र (पंख) और भिक्षापात्र दोनों के लिए प्रयुक्त होने से इसमें श्लेष अलंकार है।
उत्तराध्ययन में रस, छंद एवं अलंकार
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