Book Title: Agam 43 Mool 04 Uttaradhyayana Sutra ka Shailivaigyanik Adhyayana
Author(s): Amitpragyashreeji
Publisher: Jain Vishva Bharati
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४. आर्हत- जीवन दर्शन का समुद्घाटन
५. धर्म-दर्शन के तथ्यों का संवाद- शैली में प्रस्तावन
६. कान्तासम्मित उपदेश
७. दुर्बलताएं पात्रों पर हावी नहीं हैं।
उत्तराध्ययन के चरित्र इन्हीं विशेषताओं को उजागर करने वाले हैं। उत्तराध्ययन में प्रयुक्त मुख्य पात्रों को दो वर्गों में विभाजित कर सकते हैं
१. मानवीय पात्र
२. मानवेतर पात्र
मानवीय पात्र
अध्ययन की सुविधा के लिए इस वर्ग को भी अनेक वर्गों में विभक्त कर सकते हैं.
तीर्थंकर
परम अर्हता सम्पन्न, अर्हत, तीर्थ के प्रवर्तक तीर्थंकर कहलाते हैं । उत्तराध्ययन में तीर्थंकर अरिष्टनेमि (अध्ययन २२) तथा महावीर (अध्ययन २३) का उल्लेख उपलब्ध है ।
चक्रवर्ती
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छह खंड के अधिपति चक्रवर्ती कहलाते हैं। चक्रवर्ती के रूप में यहां ब्रह्मदत्त (अध्ययन १३ ) का चित्रण है ।
महाव्रती
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अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह इन पांचो महाव्रतों का पालन करने वाले महाव्रती कहलाते हैं। उत्तराध्ययन में हरिकेशी ( अध्ययन १२), इभ्य पुत्र - चित्र का जीव (अध्ययन १३), अनाथी मुनि आदि संयमी व्यक्तियों का विवेचन है ।
नमि राजर्षि (अध्ययन ९ ), महाराज इषुकार व रानी कमलावती ( अध्ययन १४), भृगु पुरोहित, पत्नी यशा व पुरोहित पुत्र ( अध्ययन १४), राजा संजय (अध्ययन १८), मृगापुत्र ( अध्ययन १९) अरिष्टनेमि, राजीमती और रथनेमि (अध्ययन २२) आदि भी महाव्रत स्वीकार करते हैं। ये सभी पात्र आत्म- उन्नति करते हुए अनुत्तर गति को प्राप्त होते हैं ।
उत्तराध्ययन का शैली वैज्ञानिक अध्ययन
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