Book Title: Agam 43 Mool 04 Uttaradhyayana Sutra ka Shailivaigyanik Adhyayana
Author(s): Amitpragyashreeji
Publisher: Jain Vishva Bharati
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अलंकार : अर्थ एवं स्वरूप
अलंकार का शाब्दिक अर्थ है-सुशोभित करने वाला या जिससे सुशोभित हुआ जाता है। यह कर्त्ता व साधन दोनों रूपों में प्रयुक्त होता है।
अलंकार का सामान्य अर्थ है-आभूषण। आभूषण शरीर के अंग नहीं हैं, धारण किये जाने वाले पदार्थ हैं। वैसे ही काव्य में अलंकार मूल विषयवस्तु के अंग न होकर उसकी शैली से सम्बन्धित तत्त्व हैं। आनन्दवर्धन ने शब्दार्थभूत काव्य-साहित्य के आभूषक धर्म को अलंकार कहा है।५५
आचार्य मम्मट ने लिखा है-- अलंकार शब्दार्थ का शोभावर्धन करते हुए मुख्यतः रस के उपकारक होते हैं। यह शब्दार्थ का अस्थिर या अनित्य धर्म है और इसका स्थान कटक, कुण्डल आदि आभूषणों की भांति अंग को विभूषित करना है।
उपकुर्वन्ति तं सन्तं येऽद्धारेण जातुचित्।
हारादिवदलङ्कारास्तेऽनुप्रासोपमादयः ।।१६ अलंकार का महत्त्व ____ अलंकार काव्य का सौन्दर्य है। युवती का अत्यधिक लावण्यपूर्ण शरीरसौन्दर्य बाह्य अलंकार से संपृक्त होकर अधिक विलसित होता है, वैसे ही आत्मा के आलोक से उत्पन्न काव्य का सौन्दर्य अनुप्रास, उपमा आदि बहुविध अलंकारों का सहयोग पाकर उत्कृष्ट हो जाता है। राजशेखर ने अलंकार के महत्त्व को अंकित करते हुए उसे वेद का सातवां अंग माना है- 'उपकारकत्वात् अलंकारः सप्तमंगमिति यायावरीयः ऋते च तत्स्वरूप परिज्ञानात् वेदार्थानवगतिः।५७ राजशेखर के अनुसार अलंकार अर्थ के उपकारक होते
भावावेश की स्थिति में अलंकारों का स्वतः प्रस्फुटन हो जाता है तथा कल्पना या भावावेश के कारण भाषा का अलंकृत होना सहज संभाव्य है। अलंकार काव्य के मात्र बाह्य धर्म न होकर मन में आए भाषा के रत्न हैं, जिनमें कल्पना का नित्य विहार है।५८ उत्तराध्ययन में अलंकार
उत्तराध्ययन में अलंकार स्वतः स्फूर्त हैं और इनका प्रयोग सहज
उत्तराध्ययन में रस, छंद एवं अलंकार
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