Book Title: Agam 43 Mool 04 Uttaradhyayana Sutra ka Shailivaigyanik Adhyayana
Author(s): Amitpragyashreeji
Publisher: Jain Vishva Bharati
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न उत्पत्ति के पूर्व किसी वस्तु की सत्ता होती है, न विनाश के बाद उसका कोई अस्तित्व—इसी तथ्य को प्रतिपादित करने के लिए अरणि और आग, तिल और तेल आदि को उपमान बनाया गया है।
'जहा' के प्रयोग से यहां निदर्शना अलंकार भी है। अपुत्रस्य गति : ....
पंखाविहूणो व्व जहेह पक्खी, भिच्चाविहूणो व्व रणे नरिन्दो विवन्नसारो वणिओ व्व पोए, पहीणपुत्तो मि तहा अहं पि ॥
उत्तर. १४/३० बिना पंख का पक्षी, रणभूमि में सेना रहित राजा और जलपोत पर धन-रहित व्यापारी जैसा असहाय होता है, पुत्रों के चले जाने पर मैं भी वैसा ही हो गया हूं।
'अपुत्रस्य गतिर्नास्ति', 'अनपत्यस्य लोका न सन्ति' लोकप्रसिद्ध इस तथ्य को उजागर करने के लिए पंखविहीन पक्षी, सेना रहित राजा और जलपोत पर धन रहित व्यापारी- इन उपमानों का सटीक प्रयोग किया गया है। इन उपमानों के माध्यम से यहां पुत्र रहित भृगु पुरोहित की असहायदशा का प्रकटीकरण हुआ है। मालोपमा का यह सुन्दर उदाहरण है।
___ पंखविहीन पक्षी के उपमान की तुलना महाभारत के स्त्रीपर्व से की जा सकती है। व्यासजी ने स्त्रीपर्व में सौ पुत्रों के मारे जाने पर धृतराष्ट्र की उपमा पंखविहीन जराजीर्ण पक्षी से की है। जिसके पंख काट लिये गये हों उस जराजीर्ण पक्षी के समान पुत्रों से हीन हुए मुझे अब इस जीवन से क्या प्रयोजन है? 'लूनपक्षस्य इव मे जराजीर्णस्य पक्षिणः।६३ बंधन में सुख कहां?
प्रसंग उस समय का है जब भृगु पुरोहित प्रचुर धन-धान्य छोड़ पुत्र और पत्नी सहित दीक्षित हो गया। यह बात सुनकर जब ईषुकार राजा परित्यक्त धन लेना चाहता है तब कमलावती प्रियतम को कहती है-जैसे पक्षिणी पिंजरे में सुख का अनुभव नहीं करती, वैसे ही मैं इस बंधन में सुख नहीं पा रही हूं_ 'नाहं रमे पक्खिणि पंजरे वा' उत्तर., १४/४१
संयम की नब्ज छूते कमलावती के ये स्वर सराहनीय हैं । कमलावती
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उत्तराध्ययन का शैली-वैज्ञानिक अध्ययन
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