Book Title: Agam 43 Mool 04 Uttaradhyayana Sutra ka Shailivaigyanik Adhyayana
Author(s): Amitpragyashreeji
Publisher: Jain Vishva Bharati
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अनुयोगद्वार में नौ रसों की परम्परा स्वीकृत है- वीर, श्रृंगार, अद्भुत, रौद्र, ब्रीडनक, बीभत्स, हास्य, करुण और प्रशान्त । इसमें क्रम-व्यत्यय के साथ-साथ मान्यता में भी कुछ अन्तर है। काव्य के नौ रसों में भयानक रस है। अनुयोगद्वार में भयानक रस नहीं है। वृत्तिकार ने भयानक रस का अन्तर्भाव रौद्र रस में मानकर अलग ग्रहण न करने की बात कही है।
अनयोगद्वार में नौ रसों के क्रम में भयानक के स्थान पर वीड़नक (लज्जा) रस का उल्लेख हैं। काव्यशास्त्र के किसी भी ग्रंथ में लज्जा रस का उल्लेख नहीं है। अनुयोगद्वार में किस आधार पर लज्जा रस का उल्लेख किया गया है, यह विचारणीय है। अनुयोगद्वार में निर्दिष्ट रस-सामग्री इस प्रकार हैक्रम रस उत्पत्ति
लक्षण १. वीर परित्याग, तपश्चरण, शत्रुविनाश आदि अपश्चात्ताप, धैर्य, पराक्रम २. शृंगार रति, संयोग की अभिलाषा आदि विभूषा, विलास, कामचेष्टा,
हास्य, लीला रमण आदि ३. अद्भुत अपूर्व और अनुभूतपूर्व वस्तु आदि । हर्ष और विषाद ४. रौद्र , भयंकर रूप आदि, अंधकार, चिन्ता सम्मोह, संभ्रम, विषाद भयंकर कथा आदि
और मरण ५. वीड़नक गुह्य और गुरुस्त्री की मर्यादा का लज्जा, शंका
अतिक्रमण आदि ६. बीभत्स अशुचि पदार्थ, शव, अनिष्ट द्रव्य, निर्वेद और जीव हिंसा के दुर्गन्ध आदि
प्रति होने वाली घृणा ७. हास्य रूप, वय, वेश और भाषा का मुख, नेत्र का विकास
विपर्यय ८. करुण प्रिय-वियोग, वध, बंध, विनिपात, शोक, विलाप, म्लान, व्याधि, संभ्रम आदि
रोदन ९. शांत एकाग्रता और प्रशांत भाव अविकार उत्तराध्ययन में रस-सामग्री
. आगम का प्रत्येक पद, वाक्य औचित्य से परिपूर्ण है। अनुचित, अप्रासंगिक प्रयोग को अवसर ही नहीं मिला है। अपनी मेधा द्वारा सत्य का
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उत्तराध्ययन का शैली-वैज्ञानिक अध्ययन
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