Book Title: Agam 43 Mool 04 Uttaradhyayana Sutra ka Shailivaigyanik Adhyayana
Author(s): Amitpragyashreeji
Publisher: Jain Vishva Bharati
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प्रकार से उत्पन्न व विलीन होकर स्थायी भाव को पुष्ट करते हैं। एक ही स्थायी भाव में परिस्थितिवश अनेक भावों का संचार होता रहता है। यथा-प्रेम स्थायीभाव के क्षेत्र में प्रिय मिलन पर हर्ष, वियोग से दु:ख, उपेक्षा पर क्षोभ, अहित की आशंका पर चिंता आदि। ये क्षणिक होते हुए भी स्थायी भावों को रस-दशा तक पहुंचाने में विशेष उपकारक हैं। निर्वेद, ग्लानि, शंका, असूया, मद आदि के रूप में इनकी संख्या ३३ बताई गई हैं।११
स्थायी भाव व्यक्ति के हृदय में आलम्बन के द्वारा उत्तेजित होकर, उद्दीपन के प्रभाव से उद्दीप्त होकर, संचारी भावों से पुष्ट होता हुआ, अनुभावों के माध्यम से व्यक्त होता है। जब काव्यगत स्थायीभाव की अनुभूति पाठक को होती है तो वही रसानुभूति या रसनिष्पत्ति कहलाती है।
___ मनोविज्ञान के इमोशन व सेंटीमेंट संचारी भाव व स्थायी भाव के ही पर्याय हैं। मनोविज्ञान के संवेग को साहित्य-शास्त्र के स्थायी भावों का पर्याय माना जा सकता है। संवेग ही मूल प्रवृत्तियों को उत्प्रेरित करते हैंक्रम संवेग
मूल प्रवृत्तियां स्थायीभाव रस १. भय
पलायन, आत्मरक्षा भय भयानक २. क्रोध
युयुत्सा
क्रोध रौद्र ३. घृणा
निवृत्ति/वैराग्य जुगुप्सा बीभत्स ४. करुणा
शरणागति
शोक करुण ५. काम
कामप्रवृत्ति
रति श्रृंगार ६. आश्चर्य कौतूहल, जिज्ञासा विस्मय अद्भूत ७. हास
आमोद
हास हास्य ८. दैन्य
आत्महीनता निर्वेद शांत ९. आत्मगौरव/उत्साह आत्माभिमान उत्साह वीर १०. वात्सल्य/स्नेह पुत्रैषणा
वात्सल्य वात्सल्य स्थायी भाव नौ माने गए, जिनमें नौ रसों की निष्पत्ति मानी गई है। वात्सल्य व भक्ति को भी रस में परिगणित करने से इनकी संख्या ग्यारह हो जाती है।
उत्तराध्ययन में रस, छंद एवं अलंकार
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