Book Title: Agam 43 Mool 04 Uttaradhyayana Sutra ka Shailivaigyanik Adhyayana
Author(s): Amitpragyashreeji
Publisher: Jain Vishva Bharati
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तीव्र, चण्ड, प्रगाढ़, घोर, अत्यन्त दुःसह, भीम और अत्यन्त भयंकर वेदना का मैंने नरक-लोक में अनुभव किया है।
यहां नारकीय वेदनाओं के भावबिम्ब की प्रभावी अभिव्यंजना हुई है।
आन्तरिक अनुराग की अनुभूति का साक्षात्कार कराने वाला भावबिम्ब है
सोऊण रायकन्ना पव्वज्ज सा जिणस्स उ। नीहासा य निराणंदा सोगेण उ समुत्थया।। उत्तर. २२/२८
अरिष्टनेमि के प्रव्रज्या की बात को सुनकर राजकन्या राजीमती अपनी हंसी-खुशी और आनन्द को खो बैठी। वह शोक से स्तब्ध हो गई।
प्रत्यक्ष रूप से सर्वप्रथम यहां अरिष्टनेमि की दीक्षा का बिम्ब उभरता है। उसके बाद राजकन्या के रूप में राजीमती का श्रोताओं के सम्मुख चित्र की भांति आगमन तथा उसकी शोकगमन स्थिति भाव- बिम्ब की सशक्त अभिव्यंजना में समर्थ है।
__ संयम के लिए तत्पर अरिष्टनेमि और राजीमती को आशीर्वाद देते हुए श्रीकृष्ण का भाव बिम्ब द्रष्टव्य है
वासुदेवो य णं भणइ लुत्तकेसं जिइन्दियं। इच्छियमणोरहे तुरियं पावेसू तं दमीसरा।। उत्तर. २२/२५
वासुदेव ने लुंचितकेश और जितेन्द्रिय अरिष्टनेमि से कहा-दमीश्वर! तुम अपने इच्छित मनोरथ को शीघ्र प्राप्त करो।
वासुदेवो य णं भणइ लुत्तकेसं जिइन्दियो । संसारसागरं घोरं तर कन्ने! लहुं लहुं।। उत्तर. २२/३१
वासुदेव ने लुंचित केशवाली और जितेन्द्रिय राजीमती से कहा-हे कन्ये! तू घोर संसार-सागर का अतिशीघ्रता से पार प्राप्त कर।
इस प्रसंग में कृष्ण के शुभ आशीर्वाद, दमीश्वर अरिष्टनेमि, जितेन्द्रिय राजीमती, संसार-सागर आदि का सुन्दर बिम्ब बना है। समुद्र की अगाधता, अथाहता और दुस्तरता के साथ संसार की तदरूपता भी रूपक अलंकार द्वारा अभिव्यंजित है।
उत्तराध्ययन में प्रतीक, बिम्ब, सूक्ति एवं मुहावरे
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