Book Title: Agam 43 Mool 04 Uttaradhyayana Sutra ka Shailivaigyanik Adhyayana
Author(s): Amitpragyashreeji
Publisher: Jain Vishva Bharati
View full book text
________________
दूसरों को भी अभयदाता बनने की प्रेरणा देता है। इसलिए अंतर के आलोक से आलोकित गर्दभालि अनगार का अंतःस्वर गूंज उठा
'अभयदाया भवाहि य' उत्तर. १८/११
तू भी अभयदाता बन । वैयक्तिक तथा सामाजिक जीवन में भी अभय का महत्त्वपूर्ण स्थान है। पद्मपुराण में कहा है
सर्वेषामेव दानानामिदमेवैकमुत्तमम् ।
३०
अभयं सर्वभूतानां नास्ति दानमतः परम् ॥
सभी दानों में अभयदान ही उत्तम दान है, इससे उत्तम अन्य कोई दान नहीं है।
प्रकृति की व्यवस्था
प्रकृति को प्रकृति में रहने देने की प्रेरक है यह पंक्ति'पडिकम्मं को कुणई अरण्णे मियपक्खिणं?' उत्तर. १९/७६ जंगल में हिरण और पक्षियों की चिकित्सा कौन करता है? अर्थशास्त्र
अर्थशास्त्र का सूत्र है - इच्छा बढ़ाओ, उत्पादन बढ़ेगा। फलतः वहां तृष्णा, आकांक्षा, अपेक्षा अथवा इच्छाओं के अल्पीकरण का सिद्धांत मान्य नहीं है। किन्तु अध्यात्मशास्त्र परा शान्ति का मार्ग निर्दिष्ट करता है। जितनी तृष्णा बढ़ती है, उतनी ही प्रवृत्ति बढ़ती है। जितनी प्रवृत्ति बढ़ती है, उतनी ही अशांति बढ़ती है। इसलिए आवश्यक है मनुष्य इच्छाओं का अल्पीकरण करे, आत्मत्राण का प्रयत्न करें।
तृष्णा
तृष्णा अपरिसीम है। येन-केन प्रकारेण इच्छापूर्ति की तीव्र लालसा तृष्णा है। तृष्णा एक प्रकार का उन्माद है, जो व्यक्ति को विवेक शून्य बना देता है। ऐसी तृष्णा कवि की दृष्टि में समादर नहीं पा सकी
'भवतण्हा लया वुत्ता भीमा भीमफलोदया' उत्तर. २३/४८
तृष्णा भयंकर फल देने वाली विष बेल है। तृष्णा से युक्त मनुष्य समृद्ध होने पर भी दरिद्र ही है, उसे सन्तुष्टि नहीं होती - 'यावत् सतर्षः
60
Jain Education International 2010_03
उत्तराध्ययन का शैली वैज्ञानिक अध्ययन
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org