Book Title: Agam 43 Mool 04 Uttaradhyayana Sutra ka Shailivaigyanik Adhyayana
Author(s): Amitpragyashreeji
Publisher: Jain Vishva Bharati
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३. उत्तराध्ययन में वक्रोक्ति
वक्र और उक्ति दो शब्दों के योग से वक्रोक्ति शब्द बना है । वक्र का अर्थ है कुटिल, टेढ़ा, अन्यथासिद्ध आदि। उक्ति शब्द वचन, कथन आदि का वाचक है। वैसी उक्ति वक्रोक्ति है, जो व्यंग्यात्मक हो, असामान्य हो, चामत्कारिक हो। शब्द और अर्थ का विशिष्ट विन्यास वक्रोक्ति है। साहित्य में वक्र भाषा का प्रयोग उसकी उत्कृष्टता का सूचक है।
वक्रोक्ति सिद्धान्त भारतीय आलोचना का नित्य मौलिक और अत्यन्त प्रौढ़ काव्य सिद्धान्त है। प्राचीनकाल से ही इसका प्रचलन है, किन्तु व्यवस्थित आलोचना सिद्धान्त के रूप में इसके प्रतिष्ठापक आचार्य कुन्तक है। उन्होंने इसे काव्य सिद्धान्त के व्यापक रूप में प्रतिष्ठित किया।
वक्रोक्ति का स्वरूप
वक्रोक्ति सिद्धान्त के प्रवर्तक आचार्य कुन्तक है - यह सर्वमान्य है, पर उसका रूप पूर्ववर्ती ग्रंथों में भी प्राप्त होता है। महाकवि कालिदास ने वक्र शब्द का प्रयोग टेढ़ा अर्थ में किया है- वक्रः पंथा यदपि भवतः प्रस्थितस्योत्तराषाम्।' बाणभट्ट ने छल (वाक्छल), क्रीडालाप, परिहास आदि अर्थो में वक्रोक्ति शब्द का प्रयोग किया है.
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वक्रोक्ति निपुणेन विलासजनेन, वक्रोक्तिनिपुणेन आख्यायिकाख्यानपरिचयचतुरेण।'
आलंकारिक आचार्यों में सर्वप्रथम भामह ने वक्रोक्ति का प्रयोग किया तथा उसे समस्त अलंकारों की चारूता का हेतु बताया। दंडी वक्रोक्ति को सामान्य अलंकार के साथ अन्यान्य अलंकारों का आधार भी मानते हैं।
वामन की दृष्टि में वक्रोक्ति एक अर्थालंकार है - 'सादृश्याल्लक्षणा वक्रोक्तिः ' सादृश्य को लेकर चलने वाली लक्षणा वक्रोक्ति है।
रुद्रट और आनंदवर्धन ने भी इसे एक अलंकार के रूप में स्वीकार
उत्तराध्ययन में वक्रोक्ति
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