Book Title: Agam 43 Mool 04 Uttaradhyayana Sutra ka Shailivaigyanik Adhyayana
Author(s): Amitpragyashreeji
Publisher: Jain Vishva Bharati
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अहं विसर्जन कर चुका है वही गुरु की आराधना कर सकता है। राग-द्वेष, अभिमान के अभाव में ही विनय घटित होता है।
अप्पा चेव दमेयव्वो अप्पा हु खलु दुद्दमो। अप्पा दन्तो सुही होइ अस्सिं लोए परत्थ य| उत्तर. १/१५
आत्मा का ही दमन करना चाहिए क्योंकि आत्मा ही दुर्दम है। दमित आत्मा ही इहलोक और परलोक में सुखी होता है।
जीव, पुद्गल, भूत, सत्त्व, प्राणी आदि आत्मा के अनेक पर्यायवाची शब्दों में यहां आत्मा शब्द का प्रयोग अधिक उपयुक्त है। आत्मा शब्द आप्M व्याप्तौ, आ उपसर्गपूर्वक दाञ् दाने, अन प्राणने, अत सातत्यगमने आदि धातुओं से निष्पन्न है। टीकाकार ने लिखा है-'अतति संततं गच्छति शुद्धिसंक्लेशात्मकपरिणामान्तराणीत्यात्मा'१७ जो विविध भाव में परिणत होता है वह आत्मा है। समयसार के टीकाकार ने कहा-'दर्शनज्ञानचारित्राणि अतति इति आत्मा'-'दर्शन, ज्ञान, चारित्र को सदा प्राप्त हो, वह आत्मा है।
प्रस्तुत प्रसंग 'आत्मा का ही दमन करना चाहिए' में आत्मा शब्द भंगिभणिति से युक्त है। यहां दमन या शमन का अर्थ आत्म व्यतिरिक्त पदार्थों रागादि से आत्मा को अलग करना काम्य है। रागादि पदार्थों में आत्मा परिणत होती है, इसलिए दमन आत्मा का ही होगा जीवादि का नहीं क्योंकि 'परिणतिविशेष' का वाचक आत्मा शब्द ही है जीवादि नहीं।
__'साहू कल्लाण मन्नई' उत्तर. १/३९-गुरु के अनुशासन को विनीत शिष्य कल्याणकारी मानता है।
यहां कवि ने विनीत शिष्य के लिए 'साहू' पर्याय का प्रयोग किया है। साधु शब्द 'साध-संसिद्धौ' धातु से निष्पन्न है। जो निर्वाण, शान्ति, संयम, रत्नत्रयी आदि की साधना करता है वह साधु होता है। 'णिव्वाणसाहणेण साधवः १८ जो निर्वाण की साधना करते हैं वे साधु हैं। विनीत शिष्य की मोक्षसाधना में अनुरक्तता की अभिव्यंजना के लिए 'साहू' पर्याय का प्रयोग किया गया है।
जावन्तविज्जापुरिसा, सव्वे ते दुक्खसंभवा। लुप्पंति बहुसो मूढा, संसारंमि अणंतए|| उत्तर. ६/१
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उत्तराध्ययन का शैली-वैज्ञानिक अध्ययन
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