Book Title: Agam 43 Mool 04 Uttaradhyayana Sutra ka Shailivaigyanik Adhyayana
Author(s): Amitpragyashreeji
Publisher: Jain Vishva Bharati
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वैषम्य देखा जा सकता है। कलात्मक, भावात्मक और विचारात्मक विकास का ऐतिहासिक विश्लेषण भी किया जा सकता है।
सर्वांगीण अध्ययन के लिए इन सभी पक्षों को अपनाना उचित है। किन्तु प्रस्तुत प्रसंग में तुलनात्मक दृष्टि से विभिन्न कवियों में कल्पना, भाव और विचार का साम्य दिखाने का यत्न किया गया है।
सूक्ति का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण एवं प्रभावशाली तत्त्व है उसमें अभिव्यक्त मानव जीवन संबंधी तथ्य। मानव-जीवन अपने आप में इतना विशाल है कि उससे सम्बद्ध सभी तथ्यों का वैविध्य बताना संभव नहीं, फिर भी जीवन के जिस अंग को जितने अंशों में सूक्ति स्पर्श करती है उसका संक्षिप्त विवेचन करने का प्रयास किया गया है।
सूक्ति-विभाजन
विषय की दृष्टि से उत्तराध्ययन की सूक्तियों का विभाजन इस प्रकार किया गया है
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पर्यावरण
१. पर्यावरण
३. जीवन का सत्य
५. साधना की ओर
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पर्यावरण पर हमारा अस्तित्व अवलम्बित है। उसकी रक्षा परस्पर मैत्री, समानता और संयम आदि पर निर्भर है। हजारों वर्ष पूर्व स्वयं सत्य का साक्षात् कर महावीर ने एक सूक्त दिया 'पुढो सत्ता' - सबकी स्वतंत्र सत्ता है। अतः 'मेत्तिं भूएस कप्पए'- सभी जीवों के साथ मैत्री करो, सबको अपनी ओर से अभयदान दो, किसी भी जीव को त्रस्त मत करो, बिना प्रयोजन एक मिट्टी के ढेले को भी इधर-उधर मत करो - महावीर की इस वाणी को मनुष्य आचरण में लाये, पर्यावरण की विकट समस्या से उबरने के लिए ये आध्यात्मिक सूत्र महत्त्वपूर्ण समाधान प्रस्तुत करते हैं।
त्रस्त न करें
२. अर्थशास्त्र
४. व्यक्तित्व विकास
६. जैन सिद्धांत
सब जीवों को अपने समान समझनेवाला आत्मदर्शी साधक ही सुखी होता है। अतः हर साधक के लिए सतत स्मरणीय है
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उत्तराध्ययन का शैली - वैज्ञानिक अध्ययन
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