Book Title: Agam 43 Mool 04 Uttaradhyayana Sutra ka Shailivaigyanik Adhyayana
Author(s): Amitpragyashreeji
Publisher: Jain Vishva Bharati
View full book text
________________
'कः कं शक्तो रक्षितुं मृत्युकाले २६
मृत्यु का समय उपस्थित होने पर कौन किसे बचा सकता है? काल हर समय उठा लेता है, बुढ़ापे की प्रतीक्षा नहीं करता
'नित्यं हरति कालो हि स्थाविर्य न प्रतीक्षते।'२७
आई हुई मृत्यु को टाला नहीं जा सकता-यह शाश्वत सत्य इस सूक्ति में प्रस्फुटित हुआ है। क्षणभंगुरता
जीवन की क्षणभंगुरता का संदेश दे रही है यह पंक्ति'जीवियं चेव रूवं च विज्जुसंपायचंचलं' उत्तर. १८/१३ जीवन और सौन्दर्य बिजली की चमक के समान चंचल है। इसी बात की पुष्टि पद्मपुराण में द्रष्टव्य है - जलबुद्बुद्वत्कायः सारेण परिवर्जितः। विधुल्लताविलासेन सदृषं जीवितं चलम्।।२८
शरीर पानी के बुलबुले के समान निःसार है तथा यह जीवन विद्युत् के समान चंचल है। अभिप्राय-वैचित्र्य
संसार में भिन्न-भिन्न प्रकति तथा भिन्न-भिन्न विचार वाले प्राणी होते हैं। मानव मन एक जटिल पहेली है
'अणेगछन्दा इमाणवेहिं' उत्तर. २१/१६
संसार में मनुष्यों में अनेक अभिप्राय/विचार होते हैं। विचारों को जान पाना कठिन कार्य है। कवि इसकी दुरूहता का वर्णन करते हुए कहते हैं
'विचित्ररूपाः खलु चित्तवृत्तयः२९ चित्त की वृत्तियां विचित्र रूपों वाली हैं। इसी से रुचि-वैविध्य दृष्टिगोचर होता हैं- 'भिन्न रुचिर्हि लोकः'४० लोग भिन्न-भिन्न रूचियों वाले हैं। भिन्न रूचि और भिन्न-भिन्न संस्कारों के कारण मनोविचार एक से नहीं होते। चंचल चित्त
जीवन के प्रायः समग्र कार्य-कलापों का मुख्य आधार मन है। व्यक्ति
उत्तराध्ययन में प्रतीक, बिम्ब, सूक्ति एवं मुहावरे
63
Jain Education International 2010_03
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org