Book Title: Agam 43 Mool 04 Uttaradhyayana Sutra ka Shailivaigyanik Adhyayana
Author(s): Amitpragyashreeji
Publisher: Jain Vishva Bharati
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जो कार्य जिस समय का हो, उसे उसी समय करे। कोसिय जातक में कहा गयाकाले निक्खमणा साधु, नाकाले साधु निक्खमो अकालेन हि निक्खम्म, एककम्पि बहुजनो । न किंचि अत्थं जोतेति, धयसेना व कोसिय।। ५
साधु समय पर निष्क्रमण करे, असमय में नहीं। अकाल में जाने से एकाकी को बहुजन मार गिराते हैं।
समय का महत्त्व हर चिन्तक और मनीषणी अपने-अपने ढंग से प्रतिपादित करते हैं। उत्तराध्ययनकार ने समय के अंकन को सूक्ति के द्वारा जीवन के पर्याय के रूप में 'दुमपत्तयं अध्ययन की गाथाओं के साथ प्रस्तुत किया - 'समयं गोयम! मा पमायए, उत्तर. १०/१
हे गौतम! तू क्षण भर भी प्रमाद मत कर। समय के महत्त्व को उजागर करते हुए गौतम के माध्यम से जागरूकता का संदेश प्राणियों को देने के लिए भगवान महावीर ने एक ही अध्ययन में छत्तीस बार इस सूक्ति का प्रयोग किया। चाणक्य सूत्र में इसे इस रूप में प्रस्तुत किया -
'क्षणं प्रति कालविक्षेपं न कुर्यात् सर्वकृत्येषु ४७
मनुष्य सभी कार्यों में क्षण मात्र भी विलम्ब न करें। साधना की ओर
मनुष्य के भीतर अनंत सुख है, किन्तु उन पर आवरण आया हुआ है। उस सुख को देखने के, प्राप्त करने के दरवाजे बंद हैं। उसके लिये साधना की ओर अग्रसर होने की आवश्यकता है। हमारी इन्द्रियां जो बहिर्मुखता की
ओर भाग रही हैं, साधना के द्वारा उन्हें अन्तर्मुखता में लायें। इन्द्रियों की दिशा बदलें तब दरवाजे खुलते नजर आएंगे। प्रज्ञा, श्रद्धा, अनासक्ति आदि अपना वर्चस्व स्थापित कर बंद दरवाजों को खोलने का प्रयास करती हैं। तब होता है आवरण से अनावरण की ओर प्रस्थान। त्याज्य हैं क्रोध
असत् का वर्जन और सत् का स्वीकरण ही धार्मिक जीवन की आधार-शिला है। यही श्रेयस् का मार्ग है। क्रोध अपनी शक्ति से संसार को
उत्तराध्ययन में प्रतीक, बिम्ब, सूक्ति एवं मुहावरे
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