Book Title: Agam 43 Mool 04 Uttaradhyayana Sutra ka Shailivaigyanik Adhyayana
Author(s): Amitpragyashreeji
Publisher: Jain Vishva Bharati
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श्रव्य-बिम्ब
कर्णेन्द्रिय द्वारा ग्राह्य बिम्ब को श्रव्य - बिम्ब ध्वनि - बिम्ब या श्रौत्रबिम्ब कहते हैं। शब्दों की विविध तरंगें कर्णगत होकर सम्बन्धित रागतंतुओं को प्रकंपित कर देती है। जहां शब्द के उच्चारण से ही सम्बन्धित कार्य की अभिव्यक्ति चेतना को झंकृत करती है वहीं शब्द- बिम्ब की सृष्टि हो जाती है।
कवि जब किसी वस्तुस्थिति का साक्षात्कार ध्वनि द्वारा कराने में प्रवृत्त होता है तब उसकी काव्यभाषा में अनायास श्रव्य- बिम्ब उभरने लगते हैं। पदार्थ, दृष्य, वस्तुस्थिति, व्यक्ति, परिवेश आदि मौन होते हुए भी मुखर हो उठते हैं।
'नमिपव्वज्जा' में प्रतीक के माध्यम से मिथिलावासियों की मनःस्थिति का बिंबन करने में मिथिला के प्रासादों एवं गृहों में कोलाहल युक्त दारूण शब्द श्रव्य- बिम्ब का सृजन कर रहे हैं
वाएण रमाणमि चेइयंमि मणोरमे।
दुहिया असरणा अत्ता एए कंदंति भो ! खगा। उत्तर. ९/१०
एक दिन हवा चली और उस मनोरम चैत्यवृक्ष को उखाड़ कर फेंक दिया। हे ब्राह्मण! उसके आश्रित रहने वाले ये पक्षी दुःखी, अशरण और पीड़ित होकर आक्रन्दन कर रहे हैं।
नमि के अभिनिष्क्रमण के कारण पौरजन तथा राजर्षि के स्वजनों का आक्रन्दन पूरे मिथिला के वातावरण को कंपित कर देता है। ससीम शब्दों में भावों की तीव्रता को कवि ने सघन रूप में प्रस्तुत किया है। आक्रन्दन का हेतु अपना स्वार्थ है। स्वार्थ - विघटन का यह आक्रन्दन ध्वनि - बिम्ब का सुंदर निदर्शन है।
भोगों में आसक्त चक्री को जन्म-मरण के चक्कर से बचाने के लिए वार्तालाप के प्रसंग में चित्त मुनि की उर्वर कल्पना श्रव्य- बिम्ब का निदर्शन है
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पंचालराया! वयणं सुणाहि ।
मा कासि कम्माई महालयाइं । उत्तर. १३ / २६
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उत्तराध्ययन का शैली - वैज्ञानिक अध्ययन
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