Book Title: Agam 43 Mool 04 Uttaradhyayana Sutra ka Shailivaigyanik Adhyayana
Author(s): Amitpragyashreeji
Publisher: Jain Vishva Bharati
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बिम्ब
अनेकानेक भावनाएं इसी प्रतीक द्वारा उबुद्ध हुई हैं। प्रतीक व्यष्टि में समष्टि का संपोषण है।
काव्यभाषा प्रतीकों के रथ पर सवार होकर अपना सफर तय करती है। प्रतीक गुह्य अर्थ-पटल को खोलने वाली वह कुंजी है जो आकार में लघु होते हुए भी भाव जगत के विशाल प्रासाद में प्रवेश के द्वार उन्मुक्त करती है। काल की सम्प्रेष्य भावनाएं अभिव्यक्ति के द्वार बन्द देखती हैं तब प्रतीक अनायास उनकी उन्मुक्ति का नया मार्ग प्रशस्त करते हैं। शैलीविज्ञान के अनुसार प्रतीक में निबद्ध काव्यभाषा अमूर्त को मूर्त, अदृश्य को दृश्य अथवा अप्रस्तुत को प्रस्तुत बनाने वाले प्रसंग गर्भित विशिष्ट संरचना-बिंदुओं को उजागर करती है। मितव्ययिता प्रतीक का धर्म है।
__प्रतीक और बिम्ब ये दोनों शब्द प्राय: एक जैसा अर्थ ध्वनित करते हैं, पर दोनों में बहुत अन्तर हैं -
प्रतीक १. बिम्ब में निश्चित वस्तु के निश्चित १. प्रतीक में स्थिति सदैव अनिश्चित रूप का संकेत रहता है।
ही रहती है। २. बिम्ब में चित्रात्मकता प्रधान रहती है। २. प्रतीक संकेत/व्यंग्य प्रधान रहता है। ३. बिम्ब का वैशिष्ट्य उसके पूर्ण ३. प्रतीक का वैशिष्ट्य संक्षिप्तता में हैं।
विवरण में है। ४. बिम्ब सामान्य पाठक में भी ४. प्रतीक में बौद्धिकता अधिक सन्निहित भावोत्तेजन करने में सक्षम है।
रहती है। कभी ये इतने दुरूह होते हैं कि उन्हें समझने के लिए बौद्धिक
संस्कार आवश्यक है। प्रतीक-प्रयोग का हेतु विषय की व्याख्या, स्पष्टीकरण व अर्थ को दीप्त करना है। प्रतीक का रूप सम्पूर्ण तथ्य का द्योतन मात्र होता है, इसमें पूर्ण तथ्य की अभिव्यक्ति प्रत्यक्ष नहीं होती।
___ उत्तराध्ययन के ऋषि ने अपने काव्य में प्रतीकात्मक भाषा का प्रयोग किया है। उत्तराध्ययन के प्रतीक वे जलते हुए दीपक हैं, जिनकी रोशनी में हम शाश्वत सत्यों का, शक्तियों का कुछ रहस्य प्राप्त कर सकते हैं। मानवीय मनोभाव, धर्म, दर्शन, सिद्धान्त आदि के गहन रहस्यों को समझाने के लिए : विविध प्रतीकों का सुन्दर प्रयोग हुआ है।
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उत्तराध्ययन का शैली-वैज्ञानिक अध्ययन
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