Book Title: Agam 43 Mool 04 Uttaradhyayana Sutra ka Shailivaigyanik Adhyayana
Author(s): Amitpragyashreeji
Publisher: Jain Vishva Bharati
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है, उस देदीप्यमान ज्योति-पुंज को बिम्बायित करने में 'भाणू' प्रतीक सटीक और सक्षम है
उग्गओ विमलो भाणू सव्वलोगप्पभंकरो। सो करिस्सइ उज्जोयं सव्वलोगंमि पाणिणं॥ उत्तर. २३/७६
समूचे लोक में प्रकाश करने वाला एक विमल भानु उगा है। वह समूचे लोक में प्राणियों के लिए प्रकाश करेगा।
तेजस्विता का पुंज सूर्य यहां प्राणियों के अज्ञान तथा मोह रूपी अंधकार को नष्ट करने वाले अर्हत रूपी भास्कर का प्रतीक बनकर उपस्थित हुआ है।
महावीर रूपी सूर्य का पृथ्वी पर अवतरण प्राणियों के लिए उज्ज्वल भविष्य का सूचक है। सारही (सारथि:)
सारथि शब्द पथप्रदर्शक का प्रतीक है। कवि ने इस प्रचलित अर्थ को ध्यान में रखकर आचार्य के प्रतीक के रूप में यहां प्रस्तुत किया -
अह सारही विचिंतेइ खलुंकेहिं समागओ। किं मज्झ दुट्ठसीसेहि अप्पा मे अवसीयई। उत्तर. २७/१५
कुशिष्यों द्वारा खिन्न होकर सारथी (आचार्य) सोचते हैं - इन दुष्ट शिष्यों से मुझे क्या? इनके संसर्ग से मेरी आत्मा अवसन्न-व्याकुल होती है।
'सारही' का शाब्दिक अर्थ है – रथवान, मार्गप्रदर्शक । प्रस्तुत प्रसंग में यह लाक्षणिक प्रयोग आचार्य के प्रतीक के रूप में हुआ है। जैसे सारथि उत्पथगामी या मार्गच्युत बैल या घोड़े को सही मार्ग पर ला देता है, वैसे ही आचार्य भी अपने शिष्यों को सन्मार्ग पर ले ओते हैं।१५ अंतकिरियं (अन्तक्रिया)
मोक्ष के प्रतीक-रूप में 'अंत' शब्द का प्रयोग - नाणदंसणचरित्तबोहिलाभसंपन्ने य णं जीवे अंतकिरियं कप्पविमाणो ववत्तिगं आराहणं आराहेइ॥ उत्तर. २९/सूत्र १५
ज्ञान, दर्शन और चारित्र के बोधिलाभ से संपन्न व्यक्ति मोक्ष-प्राप्ति या वैमानिक देवों में उत्पन्न होने योग्य आराधना करता है।
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उत्तराध्ययन का शैली-वैज्ञानिक अध्ययन
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