Book Title: Agam 43 Mool 04 Uttaradhyayana Sutra ka Shailivaigyanik Adhyayana
Author(s): Amitpragyashreeji
Publisher: Jain Vishva Bharati
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- प्रतीक का संदेश है कि किंपाकफल देखने में बहुत सुन्दर और खाने में अति स्वादिष्ट होता है। किन्तु उसको खाने का परिणाम प्राणान्त है। वैसे ही भोग भोगते समय सुखानुभूति होती है पर उनका परिणाम सुखद नहीं होता।
परिणाम-अभद्रता का प्रतीक किंपाकफल भोग सेवन के दु:खद परिणाम का निर्देश करता है।
विज्जुसोयामणिप्पभा (विधुत्सौदामिनीप्रभा)
क्षणिकता, स्फूर्ति, त्वरिता, दीप्ति, ओज आदि जीवन-तत्त्वों का अंत:करण में एक साथ संचार करने वाले प्रतीक का प्रयोग उत्तराध्ययन में राजीमती की शारीरिक कान्ति/दीप्ति द्योतित करने के प्रसंग में हुआ है
अह सा रायवरकन्ना सुसीला चारुपेहिणी। सव्वलक्खणसंपुन्ना विज्जुसोयामणिप्पभा। उत्तर. २२/७
वह राजकन्या सुशील चारुप्रेक्षिणी, स्त्रियोचित सर्व-लक्षणों से परिपूर्ण और चमकती हई बिजली जैसी प्रभा वाली थी।
सर्वलक्षण-युक्त राजीमती के शारीरिक सौन्दर्य की अभिव्यक्ति के लिए 'विद्युत' प्रतीक के रूप में उपन्यस्त किया गया है। दुट्ठस्सो (दुष्टाश्व:)
अश्व को मन का प्रतीक बनाकर कवि कहते हैं - अयं साहसिओ भीमो दट्टस्सो परिधावई। जंसि गोयम ! आरूढो कहं तेण न हीरसि? || उत्तर. २३/५५
यह साहसिक, भयंकर, दुष्ट-अश्व दौड़ रहा है। गौतम ! तुम उस पर चढ़े हुए हो। वह तुम्हें उन्मार्ग में कैसे नहीं ले जाता? _इस प्रतीक से कवि कहना चाहते हैं कि मन रूपी अश्व को श्रुत रूपी लगाम से बांधकर सन्मार्गगामी बनाओ। भाणू (भानु:)
'तमसो मा ज्योतिर्गमय' अंधकार से प्रकाश की ओर ले चल । यह प्रकाश अस्मिता व सर्वज्ञता का है। मोक्ष का मार्ग तपोमयी साधना की अपेक्षा रखता है। जिसका संसार क्षीण हो चुका है, जो सर्वज्ञ है, तप के तेज से दीप्त
उत्तराध्ययन में प्रतीक, बिम्ब, सूक्ति एवं मुहावरे
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