Book Title: Agam 43 Mool 04 Uttaradhyayana Sutra ka Shailivaigyanik Adhyayana
Author(s): Amitpragyashreeji
Publisher: Jain Vishva Bharati
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कुमुद को निर्लेपता का प्रतीक बना भगवान ने गौतम को स्नेहमुक्त होने का उपदेश दिया। कुमुद पहले जलमग्न होता है, बाद में जल के ऊपर आ जाता है। चिर संसृष्ट, चिरपरिचित होने के कारण गौतम का महावीर से स्नेहबंधन है। महावीर नहीं चाहते कि कोई उनके स्नेहबंधन में बंधे। इसलिए महावीर ने स्नेह के अपनयन के लिए कुमुद को प्रतीक बना गौतम को प्रेरणा दी। बहुस्सुतो के प्रतीक
बहुश्रुत कौन ? 'बहुस्सुयं जस्स सो बहुस्सुतो'११ – जो श्रुत का धारक है वह बहुश्रुत है। 'बहुस्सुयपुज्जा' में बहुश्रुत के प्रसंग में रूढ़ उपमानों के रूप में प्रतीकों का प्रभूत प्रयोग हुआ है।
बहुश्रुत के व्यक्तित्व का सर्वांगीण परिचय कराने वाली सोलह विशेषताएं प्रतीक रूप में प्रस्तुत हैं - १. निर्मलता : शंख में निहित दूध की तरह निर्मल आभा वाला २. जागरूकता : आकीर्ण अश्व की तरह निरन्तर जागरूक ३. शौर्यवीरता : अजेय योद्धा की तरह पराक्रमी ४. अप्रतिहतता : बलवान हाथी की तरह समर्थ/ अप्रतिहत ५. भारनिर्वाहकता : यूथाधिपति वृषभ की तरह भार-निर्वाहक/ गण-प्रमुख ६. दुष्प्रधर्षता : दुष्पराजेय सिंह की तरह अनाक्रमणीय (अन्यदर्शनी
अनाक्रमणीयता उस पर वैचारिक आक्रमण नहीं कर सकते) ७. अबाधित बल : वासुदेव की भांति अबाधित बल वाला ८. लब्धिसंपन्नता : ऋद्धिसंपन्न चक्रवर्ती की तरह योगज विभूतियों से संपन्न ९. स्वामित्व : देवाधिपति शक्र की भांति दिव्य शक्तियों का अधिपति १०.तेजस्विता : सूर्य की भांति तेजस्वी (तप के तेज से) ११.कलाओं से : पूर्णिमा के चन्द्रमा की भांति समस्त कलाओं से परिपूर्ण
परिपूर्णता १२. श्रुतसंपन्नता : कोष्ठागार की भांति श्रुत से परिपूर्ण १३. श्रेष्ठता : जम्बू वृक्ष की तरह श्रेष्ठ
उत्तराध्ययन में प्रतीक, बिम्ब, सूक्ति एवं मुहावरे
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