Book Title: Agam 43 Mool 04 Uttaradhyayana Sutra ka Shailivaigyanik Adhyayana
Author(s): Amitpragyashreeji
Publisher: Jain Vishva Bharati
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शैलीविज्ञान एक नवीनतम समीक्षा-सिद्धांत है जिसका चिन्तन वस्तुपरक है और दृष्टि भाषावादी।२८
निष्कर्षतः कवि द्वारा भाषा की संरचनागत एवं अनुभूतिगत विशिष्ट प्रविधियों के प्रयोग का अध्ययन ही शैलीवैज्ञानिक अध्ययन है।
कई बार प्रचलित भाषा-संरचना-विधियों के अध्ययन से उद्देश्य की पूर्ति नहीं होती, तब शैलीविज्ञान खोज करता है-रचनाकार ने कहां-कहां भाषा की सामान्य विधियों से 'विपथन' या 'विचलन' किया है। 'विचलन' अर्थात् सामान्य रचना-मार्ग से हटकर अपनी अनुभूतियों की अभिव्यक्ति के लिए विशिष्ट रचनामार्ग का आश्रयण करना। शैलीविज्ञान उसमें यह देखता है कि कवि ने उस अधिकार का उपयोग किस सीमा तक किस परिमाण में किया है।२९
शैलीविज्ञान का प्रमुख तत्त्व शैली है। शैली क्या है? शैली-पाश्चात्य मत
शैलीविज्ञान का आज हम जिस अर्थ में अध्ययन करते हैं उसका रूप निर्धारण पाश्चात्य विचारकों ने भी किया है।
बफन के अनुसार व्यक्ति की अभिव्यक्ति के साथ शैली हमारे विचारों को व्यवस्था एवं गति प्रदान करने में निहित है।३०
मिडिलटन मरे का कहना है-शैली भाषा का वह गुण है, जो लाघव से कवि के मनोभावों या विचारों अथवा प्रणाली का संवाहन करता है।३१ शैली व्यक्ति के अनुभूति की सीधी अभिव्यक्ति है।३२
कुछ पाश्चात्य विचारकों का मत है कि शैली शब्द अंग्रेजी के Style शब्द के आधार पर उसके पर्यायवाची के रूप में गढ़ा गया है। अंग्रेजी में शैली के लिए स्टाइल शब्द का प्रयोग किया गया है। वह स्टाइल शब्द लैटिन भाषा के 'स्टाइलास' (Stylas) से बना है। स्टाइलास का अर्थ कलम है। प्राचीन रोमन काल में लौह लेखनी से मोम चढ़ी पट्टियों अथवा कागज पर लिखा जाता था। वही कालान्तर में अभिव्यक्ति का प्रतीक बनकर लिखने की विशिष्ट शैली या अभिव्यक्ति के ढंग के लिए प्रयुक्त होने लगा।२२ स्टाइल का अर्थ अब लक्षण द्वारा लेखक की शैली हो गया है।
उत्तराध्ययन में शैलीविज्ञान : एक परिचय
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