Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयद्योतिका टीका
प्र. १ अजीवाभिगमस्वरूपनिरूपणम् ३३
समासतः - संक्षेपेण पञ्चविधाः - पञ्चप्रकारकाः प्रज्ञप्ताः कथिताः प्रकारभेदमेव दर्शयति- 'तं जहा ' Reet 'aणपरिणया गंधपरिणया रसपरिणया फासपरिणया संठाणपरिणया' वर्णपरिणताः, गन्धपरिणताः, रसपरिणताः, स्पर्शपरिणताः, संस्थानपरिणताः, 'एवं ते पंच जहा पण्णवणाए ' एवं ते - उपरि दर्शिताः पञ्च यथा येन रूपेण प्रज्ञापनाया प्रथमपदे प्रदर्शिता स्तथैवात्रापि ज्ञातव्याः तथाहि 'तत्थ णं जे ते वण्णपरिणया ते पंचविहा पण्णत्ता' तत्र खलु ये वर्णपरिणताः स्कन्धादय स्ते पञ्चविधाः पञ्चप्रकारका भवन्ति 'तं जहा ' तद्यथा 'कालवन्नपरिणया १, नीलवन्नपरिणया २, लोहियवन्नपरिणया ३, हालिद्दवन्नपरिणय ४, सुक्किल्लवन्नपरिणया ५, कालवर्ण परिणताः नीलवर्णपरिणताः, रक्तवर्णपरिणताः, पीतवर्णपरिणताः शुक्लवर्णपरिणताः ५ । मधुरादि पञ्चरस - परिणता, गन्धद्वयपरिणताः, कर्कशादचष्टविधस्पर्शपरिणता इत्यादीनां प्रज्ञापनाप्रकरणकथि
'ते समास पंचविह पन्नत्ता" ये स्कन्ध स्कन्ध देश स्कन्ध प्रदेश और परमाणु संक्षेप से पाँच प्रकार के कहे गये हैं- 'तं जहा" जैसे 'वण्णपरिणया गंधपरिणया रसपरिणया फासपरिणया संठाणपरिणया' वर्ण परिणत गन्धपरिणत रस परिणत स्पर्श परिणत और संस्थान परिणत ' एवं ते पंच जहा पण्णवणाए" इस प्रकार जिस रूप से ये पाँच प्रज्ञापना में प्रकट किये गये है उसी रूप से यहाँ पर भी जानना चाहिये अर्थात् 'तत्थ णं जे वण्णपरिणया ते पंचविहा पन्नत्ता" इनमें जो वर्ण परिणत स्कन्ध आदि हैं । वे कृष्णवर्णपरिणत नीलवर्णपरिणत रक्तवर्णपरिणत, हरिद्वर्ण परिणत एवं शुक्लवर्णपरिणत के भेद से पाँच प्रकार के हैं । रस परिणतस्कन्ध आदि मधुररस परिणत आदि के भेद से पाँच प्रकार के हैं । गंध परिणत स्कन्ध दो प्रकार के हैं । स्पर्शपरिणत स्कन्ध आदि कर्कशस्पर्शादि के भेद से आठ प्रकार के हैं । इत्यादि सब प्रज्ञापना सूत्रका कथन यहाँ संगृहीत हुआ है । ' से तं रूचि अजीवाभिगमे '
पन्नत्ता" | २४न्ध, २अन्धदेश, सुन्धप्रदेश अने परभागुना सक्षितभा यांच अमर ह्या छे. "तंजहा" भेवां ... "वण्णपरिणया, गंधपरिणया, रसपरिणया, फासपरिणया, ठाणपरिणया" ( 1 ) वर्षा परित, (२) गंधपरित, ( 3 ) रसपरित, (४) स्पर्श परिशुत मने (4) संस्थानपरित "एवं ते पंच जहा पण्णवणार" प्रज्ञापनासूत्रभां भी पांयेनी જેવી પ્રરૂપણા કરવામાં આવી છે, એવી જ પ્રરૂપણા અહીં પણ કરવી જોઈએ. એટલે કે " तत्थ णं जे वण्णपरिणया ते पंचविहा पन्नत्ता'' तेमां ने वपरित २४ध आदि छे तेभना नीचे प्रभाषे पांच लेह छे : - ( १ ) ष्णुवर्ण परियुत, (२) नीसवर्ष परित, (3) २४વણુ પરિણત, (૪) શુકલવર્ણ પરિણત અને (૫) હરિતવ પરિણત. રસપરિણત સ્કન્ધ આદિના મધુરરસપરિણત આદિ પાંચ ભેદ છે, ગધપરિણત સ્કન્ધ આદિના સુગંધપરિણત અને દુર્ગંધપરિણત રૂપ એ ભેદ છે. સ્પ પરિણત સ્ક ંધ આદિના કર્કશસ્પશ પરિજીત આદિ આઠ ભેદ छे. या अार प्रज्ञापनासूत्रनु अथन सहीं श्रवु लेहये. "से त्तं रूवि अजीवा
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જીવાભિગમસૂત્ર