Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Sudharmaswami, Hemchandraji Maharaj, Amarmuni, Nemichandramuni
Publisher: Atmagyan Pith
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प्रथम श्रुतस्कंध : उपोद्घात
अर्थात् की उसका नाम 'सूत्रकृत' हो गया। यह सूत्र अनेक योगंधर साधुओं को स्वाभाविक भाषा अर्थात् प्राकृतभाषा में प्रभाषित किया गया है । इसलिये इसका नाम 'सूत्रकृत' है । सूत्र रचनाकार गणधर भी साधारण पुरुष न थे, किन्तु अनेक योगों के धारक थे । क्षीराश्रव आदि अनेक लब्धियों की प्राप्ति को योग कहते हैं । इस प्रकार के अनेक योगों को वे धारण किये हुए थे । गणधरों के समक्ष अर्थरूप से यह शास्त्र (आगम) भगवान् ने प्रकाशित किया था। गणधरों ने भगवान् से उस अर्थ को सुनकर वाक्योग के द्वारा जीव के स्वाभाविक गुणानुसार इस शास्त्र की रचना की थी।
इस शास्त्र में बौद्धमत के उल्लेख के साथ बुद्ध का नाम भी स्पष्ट आता है एवं बुद्धोपदिष्ट एक रूपक कथा का भी जिक्र किया गया है । इससे यह कल्पना की जा सकती है कि जब बौद्धपिटकों के संकलन के लिए संगीतिकाएँ हुईं, उनकी वाचना निश्चित होकर तथागत बुद्ध के विचार लिपिबद्ध हुए, वह काल इस सूत्र के निर्माण का काल रहा होगा।
गणधरों ने अक्षरगुणमतिसंघटना और कर्मपरिशाटना (कर्म-संक्षय) इन दोनों के योग से अथवा वाक्योग और मनोयोग से इस सूत्र की रचना की थी, इसलिए इसका नाम 'सूत्रकृत' है ?
सूत्रकृतांग की नित्यता अर्थस्य सूचनात् सूत्रम्- सूत्र की इस व्याख्या के अनुसार जो अर्थ को सूचित करता है, वह सूत्र कहलाता है। सूत्र में कई (अर्थ) बातें साक्षात् कही हुई होती हैं, वे मुख्यरूप से गृहीत होती हैं, लेकिन कई बातें (अर्थ) साक्षात् कही हुई नहीं
१. अचेल परम्परा में इस अंग (सूत्रकृतांग) के प्राकृत में तीन नाम मिलते हैं - सुद्दयड, सूदयड और सूदयद । इनमें प्रयुक्त 'सुद्द' अथवा 'सूद' शब्द 'सूत्र' का
और 'यड' अथवा 'यद' शब्द कृत का सूचक है। इस अंग के प्राकृत नामों का संस्कृत रूपान्तर 'सूत्रकृत' ही प्रसिद्ध है । आचार्य पूज्यपाद स्वामी से लेकर श्रुतसागर तक के सभी तत्त्वार्थवृत्तिकारों ने 'सूत्रकृत' नाम का ही उल्लेख किया है । सचेलक परम्परा में भी इसके लिए सूतगड, सूयगड और सुत्तकड ये तीन प्राकृत नाम प्रसिद्ध हैं । इनका संस्कृत रूपान्तर भी हरिभद्र आदि आचार्यों ने 'सूत्रकृत' ही दिया है।
अर्थबोधक संक्षिप्त शब्दरचना को 'सूत्र' कहते हैं और इस प्रकार की रचना जिसमें 'कृत' अर्थात् की गई है, वह 'सूत्रकृत' है ।
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