Book Title: Niryukti Sangraha
Author(s): Bhadrabahuswami, Jinendrasuri
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री हर्षपुष्यामृत जैन ग्रंथमाला -ग्रन्थाङ्कः १८९ श्रुतकेवलिश्री भद्रबाहुस्वामिविरचितः निर्युक्ति - सङ्ग्रहः संपादक : संशोधक श्च : पू.आ.श्री विजयामृतसूरीश्वर पट्टधरः पू. आ. श्री विजयजिनेसूरीश्वर : : प्रकाशिका : श्री हर्षपुष्पासून जैन ग्रन्थमाला लाखालावक शांतिपुरी (सौराष्ट्र) 2010_04 Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 0 २०० 000000000000 श्री हर्षपुष्पामृत जैन ग्रंथमाला - ग्रन्थाङ्कः १८९ श्री महावीर जिनेन्द्राय नमः श्री मणिबुद्ध्याणंद हर्ष कर्पूरामृतसूरिभ्यो नमः चतुर्दशपूर्वधर श्रुतकेवलिश्री भद्रबाहुस्वामिविरचितः निर्युक्ति-सङ्ग्रहः -: संपादक: संशोधकश्च :तपोमूर्ति पूज्याचार्य देव श्रीमद्विजय कर्पूरसूरीश्वरपट्टधर - हालारदेशोद्धारक पूज्याचार्यदेव श्रीमद् - विजयामृतसूरीश्वर - पट्टधर : पूज्याचार्यदेवश्रीविजयजिनेन्द्रसूरीश्वरः -: सहायक : परम शासन प्रभावक व्या. वा. तपागच्छशिरोरत्न पूज्याचार्यदेवेश श्रीमद्विजय रामचन्द्रसूरीश्वराणां सदुपदेशेन मुंबई वालकेश्वरस्थ श्री श्रीपालनगर जैन श्व ेतांबर मूर्तिपूजक देरासर ट्रस्ट: -: प्रकाशिका : 000 ooc श्री हर्षपुष्पामृत जैन ग्रन्थमाला लाखाबावल - शांतिपुरी ( सौराष्ट्र ) පපපපපපපපපපත් 000 2010_04 cooooooooc Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रकाशिका : श्री हर्षपुष्पामृत जैन ग्रन्थमाला (लाखाबावल) C/0. श्रुतज्ञान भवन, ४५, दिग्विजय प्लोट, जामनगर वीर सं. विक्रम सं. सन् प्रथमावृत्तिः २५१५ २०४५ १९८९ . ७५० प्रतयः आ भा र दर्शन ॥ अमारी ग्रन्थमाला तरफथी प्राचीन साहित्य प्रकाशन योजना द्वारा प्रकाशित थता ग्रन्थोमा आ. पू. श्रीमद्भद्रबाहु स्वामी महाराजा द्वारा रचित नियुक्तिओना संग्रह रूप नियुक्ति संग्रह प्रगट करतां आनंद अनुभवीए छीए. आ कठीन संपादन संशोधनपूर्वक पू. आ. श्री विजयजिनेन्द्रसूरीश्वरजी महाराजे करेलुं छे. . आ नियुक्ति संग्रह महाशास्त्रना प्रकाशन माटे प. पू. सिद्धांतमहोदधि आचार्य देवेश श्रीमद्विजयप्रेमसूरीश्वरजी महाराजाना पट्टधर परमपूज्य महाराष्ट्रादिदेशोद्धारक शासन संरक्षक संघस्थविर पूज्यपाद आचार्यदेवेशश्रीमद्विजयरामचन्द्रसूरीश्वरजी महाराजाना सदुपदेशथी मुंबइ वालकेश्वर श्री श्रीपालनगर जैन श्वेतांबर मूर्तिपूजक देरासर ट्रस्ट तरफथी दान मलेल छे. तेमना तरफथो आ ग्रंथ प्रकाशित कर्यो छे. आ माटे पूज्यपाद परम गुरुदेव तथा श्रीपालनगर जैन श्व . मू. दे. ट्रस्टनो आभार मानीए छीए. ता. १९-८-८९ महेता मगनलाल चत्रभुज शाक मारकेट सामे, व्यवस्थापक जामनगर. श्री हर्ष पुष्पामृत जैन ग्रंथमाला 2010_04 Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ************ * अल्प वक्तव्य *** ************* श्री जैन शासन जीव मात्रना श्रेयनुं साधन छे. योग्यता आव्या विना जीव जैन शासन पामी शकतुं नथी. भवनी इच्छा मांग्या विना भवमुक्तिना धर्मनो प्रारंभ थतो नथी.. जीव शिव छे तेम कहीए छोए परंतु जीवने अजीवनी आशा खसे नहि त्यां सुधी जीवने शिव बनावी शकीए नहि. . . . ___जैन शासनमा ४५ आगम आदि गणधरदेवादि कृत मूल आगम छे तेनो संक्षेपमा भाच समजाववा माटे निर्यक्तिओ छे. अने विशेष भाव कहेवा भाष्य छे अने आगमना अर्थाने झीणवटथी चर्चवा चूणि छे. आगम सूत्रोना अर्थ अने भावार्थने समजाववा टीका छे. आ ग्रन्थमां चौद पूर्वधर श्रुतकेवली श्री भद्रबाहुस्वामी विरचित नियुक्तिओनो संग्रह छे. आ नियुक्तिओ नीचे मुजब दश हती-(१) श्री आचारांगनियुक्ति (२) आवश्यकनियुक्ति (३) उत्तराध्ययननियुक्ति (४) बृहत्कल्पनियुक्ति (५) दशवैकालिकनियुक्ति (६) दशाश्रुतनियुक्ति (७) व्यवहारनियुक्ति (८) सूत्रकृतांगनियुक्ति (९) सूर्यप्रज्ञप्तिनियुक्ति (१०) ऋषिभाषितनियुक्ति. __ आमांथो. (४) बृहत्कल्पनियुक्ति (७) व्यवहारनियुक्ति भाष्यमां भळी गइ छ तथा (९) सूर्यप्रज्ञप्तिनियुक्ति तथा (१०) ऋषिभाषितनियुक्ति मलती नथी. बाकी ६ निर्यक्ति 2010_04 Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ छे. तथा तेमां (१) आवश्यक निर्युक्तिनी १६५ मी गाथामां ओघ नियुक्ति छे. (२) दशवैकालिक सूत्रना पांचमा अध्ययन उपर पिण्डनिर्युक्ति छे. ( ३ ) दशाश्रुतस्कन्धना ८ मा अध्ययन पर्युषणाकल्प उपर कल्पनिर्युक्ति छे. मात्र छ अने आ त्रण मलिने ९ निर्युक्तिओनो अहि समावेश कर्यो छे. आ नव निर्युक्तिओनो आसरे ६९१७ ग्रन्थाग्रं थाय छे. I नियुक्ति निबंधना मुद्दा नोंधवा जेवा छे जेथी ते ते आगम अंगे संक्षेपमां घणुं घणुं ज्ञान प्राप्त थइ शके । जेथी मूल निर्युक्तिओना आ संग्रह करवामां आव्यो छे. आ निर्यु - क्तिओ सगंग गणीने तेनी एक साथ टीका होय तो टुंकमां घणु ज्ञान थइ शके. गोविंदनिर्यु कितना उल्लेख आवे छे, परंतु ते उपलब्ध नथी. संसक्तनियुक्ति पण कोइनी छे तेम नोंध मली. निशीथ नियुक्ति आचारांगनिर्युक्तिमां समायेली छे तेम कहेवाय छे. महापुरुष प्रणीत आगम, नियुक्ति, टीकाओ वांच्या पछी अधिकारी मुजब निर्यू क्तिओना स्वाध्यायथी संक्षेप आगम अने विस्तृत टीकाओनो भावार्थ समजी शकाय छे. आजे पूर्ण आगम के टीका वांचनारा विरल छे. आगमो टीकाओ वांचनारा विरल छे तो पछी मूल निर्युक्तिओना उपयोग शुं थशे ? तेम प्रश्न थाय ? वली ज्यारे आगम आदिनी वात थाय त्यारे हवे आगम वांचनार कोण छे ? बीजा प्रकरण टीकाओ चरित्रो वि.नी वात थाय तो अमारा भंडारमां पडेला पुस्तक सडे छे काइ वांचनार नथी - एम कहीने शास्त्री उपर अरुचि बतावाय छे ते हानिकारक छे. 2010_04 Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ घरमां रत्नो सोनाना घरेणा विगेरे पडया होय तेना उपर अभाव बतावाय छे ? नहि केम? तेना उपर रुचि छे. तो ए रीते शास्त्र उपर रुचि होय तो आवं अनादर रूप न बोलाय. अर्थात् अनादरनु वचन कथनारने शास्त्र उपर रुचि नथी तेवं लागे. आ नियुक्तिनो मुनिराजो आदि स्वाध्याय वांचन मननादि करी शास्त्रोना रहस्या समजे उपलब्ध राखे अने अमल-आचार माटे आतुरता बतावे तो आ नियुक्तिओ क्लेषने बदले कल्याण रूप बनशे. जूदा जूदा आगमोमांथी एकत्रित करीने एक साथे संपादन करवानो प्रथम प्रयास छे. वली नियुक्तिनो गाथाओना ठेर ठेर टीकाओ आदिमां उपयोग थया छे, ए गाथाओ कइ नियुक्तिमा वयां छे ? ते जाणी शकाय ते माटे सातेक हजार श्लोक प्रमाण नियुक्तिओनी गाथाओना खास अकारादि क्रम तैयार करीने प्रांते मूक्यो छे. जे अभ्यासीओने अति उपयोगी थशे. छ मास पहेला नियुक्तिओ छपाइ गइ हती परंतु गाथाक्रम तैयार करवामां अने पछी छपाववामां समय नीकली जवाथी आ ग्रंथ प्रकाशित थवामां मोडं थयं छे. आगमोना अभ्यासी मुनिराजो आदि आ नियुक्तिओनी स्वाध्याय आदि उपयोग करी मारा प्रयत्नने सफल बनावे. ए द्वारा आत्मश्रेयनां अणिशुद्ध मार्गमा स्थिर थइ सौ शिव सुखना भोक्ता बना एज शुभ भावना. २०४५, श्रावण सुद-५ ओसवाल यात्रिक गह, पालीताणा. -जिनेन्प्रसूरि 2010_04 Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नियुक्ति ग्रन्थनां संक्षिप्त क्रमः कम नियुक्तिनाम ग्रन्थाओं १ श्री आवश्यकनियुक्ति २५०० २ श्रीमती ओघनियुक्तिः १३५५ ३ श्री पिण्डनियुक्तिः ८३५ ४ श्री दशवैकालिकनियुक्तिः ५०० ५ श्री उत्तराध्ययननियुक्तिः । ६ श्री आचाराङ्गनियुक्तिः ७ श्री सूत्रकृताङ्गनियुक्तिः ८ श्री दशाश्रुतस्कन्धनियुक्तिः २२० ९ श्री पर्युषणाकल्पनियुक्तिः १० श्री नियुक्तिगाथानां अकारादिक्रमः ४५० २६५ ४७६ ६९१७ 2010_04 Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमः अनुक्रमः विषयः ||१|| आवश्यक निर्युक्तिः (ग्रं. २५०० ) पीठिका १ सामायिकाध्ययनं २ उपोद्घातनिर्युक्तिः ३ नमस्कारनिर्यक्ति: ४ सूत्रस्प शिनिर्युक्तिः ५ सामायिक निर्युक्तिः २ चतुर्विंशतिस्तवाध्ययनं ६ चतु विंशतिस्तवनिर्युक्तिः वन्दनकाध्ययनं ७ वन्दनकनिर्यक्ति: ४ प्रतिक्रमणाध्ययनं ८ प्रतिक्रमणनियुक्तिः ९ पारिष्ठापनिकानिर्युक्तिः १० अस्वाध्यायनिर्युक्तिः ५ कायोत्सर्गाध्ययनं ११ कायोत्सर्ग नियुक्तिः 2010_04 पृष्ठ ८७ १०१ १०१ १०५ १०५ १११ १११ १२४ १२४ १३१ १५१ १६० १६० Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमः विषयः पृष्ट o ६ प्रत्याख्यानाध्ययनं १७७ १२ प्रत्याख्याननियुक्तिः १७७ ॥२॥ श्रीमती ओघनियुक्तिः (ग्रंन्थाग्रं १३५५) वीरस्तवः २६५ ॥३॥ श्री पिण्डनियुक्तिः ।। (ग्र. ८३५) २६६ ॥४॥ श्री दशवकालिकसूत्र नियुक्तिः ॥ (ग्रं ३७१) ३२८ १ प्रथमाध्ययन नियुक्तिः २ द्वितीयाध्ययन नियुक्तिः ३ तृतीयाध्ययन नियुक्तिः ४ चतुर्थाध्ययन नियुक्तिः ५ पञ्चमाध्ययन नियुक्तिः ६ षष्ठाध्ययन नियुक्तिः ७ सप्तमाध्ययन नियुक्तिः ८ अष्टमाध्ययन नियुक्तिः ३५७ ९ नवमाध्ययन नियुक्तिः ३५८ १० दशमाध्ययन , १ चूला २ चूला ॥५॥ श्री उत्तराध्ययन नियुक्तिः ।। (ग्रं ७००) ३६५ १ प्रथमाध्ययन निर्यक्तिः ३४८ ३५२ mmmmmmm m mr mr m m 2010_04 Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृष्ठ ३७१ ३७८ w w MAA 6 w w ३८२ ३८२ ३८७ w ३८८ ३९८ w ३८९ क्रम: विषयः २ द्वितीयाध्ययन नियुक्तिः ३ तृतीयाध्ययन ४ चतुर्थाध्ययन , ५ पञ्चमाध्ययन ६ षष्ठाध्ययन ७ सप्तमाध्ययन ८ अष्टमाध्ययन ९ नवमाध्ययन १० दशमाध्ययन ११ एकादशाध्ययन १२ द्वादशाध्ययन १३ त्रयोदशाध्ययन । १४ चतुर्दशाध्ययन १५ पञ्चदशाध्ययन । १६ षोडशाध्ययन , १७ सप्तदशाध्ययन , १८ अष्टादशाध्ययन , १९ एकोनविशाध्ययन,, २० विशतितमाध्ययन नियुक्तिः २१ एविशतितमाध्ययन २२ द्वाविंशतितमाध्ययन , २३ त्रयोविंशतितमाध्ययन , २४ चतुविंशतितमाध्ययन २५ पञ्चविंशतितमाध्ययन , २६ षड्विंशतितमाध्ययन " ३९९ w er K 4KWWWW UN ४०१ ४०२ ४०८ ४०९ ४०९ ४१२ K 2010_04 Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विषय: क्रमः २७ सप्तविंशाध्ययन निर्युक्तिः २८ अष्टाविंशाध्ययन २९ एकोनत्रिंशदध्ययन ३० त्रिंशदध्ययन ३१ एकत्रिंशत्तमाध्ययन ३२ द्वात्रिंशत्तमाध्ययन १० १. प्रथमाध्ययननियुक्तिः १- ३ तृतीयोदेशक १- ४ चतुर्थोदेशक १- ५ पञ्चमोदेशक " १- ६ षष्ठोदेशक १-७ सप्तमोदेशक 11 "1 11 ३३ त्रयत्रिंशत्तमाध्ययन ३४ चतुस्त्रिंशत्तमाध्ययन ३५ पञ्चत्रिंशत्तमाध्ययन ३६ षट्त्रिंशत्तमाध्ययन || ६ || श्री आचाराङ्गनिर्युक्तिः ।। ( ४५० ) ४२० ||१|| प्रथम श्रुतस्कन्धः || " " 73 33 १ - १ प्रथमोदेशक निर्युक्तिः १-२ द्वितीयादेशक }) "7 " ** 37 17 "3 २ द्वितीयाध्ययननिर्युक्तिः २- १ प्रथमोदेशक निर्युक्तिः पृष्ठ ४१२ ४१३ ४१४ ४१४ ४१५ ४१५ ४१६ ४१७ ४१८ ४१८ 2010_04 ४२० ४२० ४२६ ४३० ४३१ ४३२ ४३४ ४३५ ४३६ ४३६ Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ऋमः विषयः पृष्ठ ४३८ ४३९ ४३९ ४४१ ४४१ ४४२ ४४३ २-२ द्वितीयोदेशक नियुक्ति ३ तृतीयाध्ययन नियुक्तिः ३-१ प्रथमोदेशक नियुक्तिः ४ चतुर्थाध्यासान नियुक्तिः ४-१ प्रथमोदेशक नियुक्तिः ४-२ द्वितीयोदेशक , ५ पञ्चामाध्यायन नियुक्तिः ५-१ प्रथमोदेशक नियुक्ति षष्टाध्यायन नियुक्तिः ६-१ प्रथमोद्देशक नियुक्तिः ७. सप्तमाध्यायन नियुक्तिः ८ अष्टमाध्ययन नियुक्तिः ८-१ प्रथमोद्देशक नियुक्तिः ९ नवमाध्ययन नियुक्तिः ..४४३ ४४४ ४४४ ४४४ ४४५ ४४५ ४४७ ॥२॥ द्वितीयश्रुतस्कन्धः ४४८ ४५१ १. प्रथमचूलानियुक्तिः २ द्वितीय चूलानियुक्तिः ३ तृतीयचूलिकानियुक्तिः ४ चतुर्थचूलिकानियुक्तिः ४५२ ४५३ 2010_04 Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४५८ ४५९ w क्रमः विषयः पृष्ठ ।।७।। श्री सुत्रकृताङ्ग सूत्र नियुक्तिः [ग्रं. २६५ ] ४५५ प्रथम श्रुतस्कन्ध नियुक्तिः उपाद्घातनियुक्तिः ४५५ १ प्रथमध्ययन नियुक्तिः ४५८ २ द्वितीयध्ययन " ३ तृतीयध्ययन ४ चतुर्थाध्ययन ४६० ५ पञ्चामाध्ययन " ४६१ ६ षष्ठाध्ययन ४६३ ७ सप्तमाध्ययन ८ अष्टमाध्ययन ९ नवमाध्ययन १० दशमाध्ययन ११ एकादशाध्ययन १२ द्वादशाध्ययन " १३ त्रयोदशाध्ययन , १४ चतुर्दशाध्ययन , ४६७ १५ पञ्चदशाध्ययन , १६ षोडशाध्ययन " ४६८ द्वितीय श्रुतस्कधं नियुक्ति २-१ प्रथमध्ययन नियुक्तिः dka - w w ४६५ ४६७ ४६८ 2010_04 Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विषय: क्रमः २- २ द्वितीयध्ययन २-३ तृतीयाध्ययन " 19 २-४-५-६ तुर्ययञ्चमषष्ठाध्ययन निर्युक्तिः २- ७ सप्तमाध्ययन सप्तमाध्ययन "" ||८|| श्री दशाश्रुतस्कन्ध निर्युक्तिः [ग्रं. २२० ] १ प्रथमाध्ययन ४७६ २-३ द्वितीयतृतीयाध्ययन ४७७ ४ चतुर्थाध्ययन ५-६ पञ्चमषष्ठाध्ययन ७ निर्युक्तिः " १३ 11 13 11 || ९ || श्री पर्युषणा कल्प निर्युक्तिः ८ अष्टमपर्युपणाकल्पाध्ययननिर्युक्तिः ९ नवमाध्ययननियंक्तिः १० दशमाध्ययननियंक्ति: निर्युक्तिगाथानां अकारादिक्रमः पृष्ठ ४७१ ४७२ ४७३ ४७५ 2010_04 ४७८ ४७९ ४८० ४८१ ४८७ ४८८ ४९१ Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ | शुद्धिपत्रकम् । पृष्ठं पंक्तिः शुद्धं ९ १२ परमणिउणस्स ८ गेही १६ २० ११ ० सय सहस्सा २१ ३ संगहो ७ नीइ २१ २१ १७ चित्त ३ २३ २१ आसमययंमि २५ ९.० ० भद्दवय ३२ ३ तूराणि ४० ९ सहस्सा ४१ ११ रंगंमि ४८ १४ कुम्मार ५२ १४ इमोति बझो अ ५२ २२ दट्ठूण ५६ २ ० चिधसंठाणे ५८ ८ ० माहंसु ५८ १८ सव्वेसिपि ६२ २२ सव्वण ६५ १४ बायाल ६५ २० एवं पृष्ठं पंक्ति: शुद्धं ८६ ४ नायव्वो ८९ १७ मुक्खत्थीणंपि ९० १९ अरिभूअं ९१ २२ ० मणु सु ९४३ आउअं ९४ २० तीस चेव ९८ ९ बुहेहिं ९८ ११ उवओगकरणे ९८ ११ ज्झत्ति १०१ ५ सोऽभिहिओ १०२ १८ मरुदेवी १०५ ९० निर्युक्तिः १०९ ८ नमी ११४ १४ समणा ११५ ७ नाणपक्खेव ११५ ९ पावेइ १३१ ५ जं काऊण ३. संवि ( चि) क्खे १३७ १३७ १४ उदयपह १३७ १७ नोमणुएहि 2010_04 Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . पृष्ठं पंक्तिः शुद्धं | पृष्ठं पंक्तिः शुद्धं १३८ १ आणुपुवीए २१८ ३ संविग्गा १३८ ३ अभिओगिए २२० १९ पंथे . १३८ १५ वंका पाए य २२२ ९ दंडे . १४० ८ चोहसग्गामा २२७ २१ लिप्पमाणं १४९ २० सेवंति २२८ १६ असंघाडो १५० १२ अपडिसुणणे २३४ २ भद्दगाणं १५० १७ कंठसमुद्दिट्ठा २३५ १० ससिणिद्धे १५१ ६ ० उप्पा (वधा)ए २३६ ५ वणिया १५३ ७ ० मल्लबुद्धे य. २३७ ७ वोसिटुं० १५८ १५ आलोअंमि २३९ ४ पूइया १६२ १७ अदिस्समाणोऽवि | २४८ ५ पुन्वद्दिट्ठो १६२ २० सालिगामसेणा २६१ ५ मुणेयव्वं १६७ ७ धम्म २६७ २ पंचेदिया १७० २१ निमेसजत्तं २७२ १४ नाणाइ० १७५ २२ लंबुत्तर २७३ १३ आणा य १७७ ६ विभज्जमाणा २७८ २० कट्ठ० १८५ १४ अण्णत्थणा० २७८ ७ नीसमनीसा । १८६ १७ छच्च २८४ २२ असुद्धं . १८७ १९ खीर० २९४ १२ कुणइ ३०१ १८ तिण्ह १९२ ५ थेरो ३०३ १६ मूलकम्मे १९९ २ दीहं ३०५ १७ उभयेऽवि १९९ ९ समोसरणे य पच्छन्ना १९९ १९ मित्तमणेसणं ३०६ १२ व सुएइ २०७ १२ संघाडेगो ३०७ १६ पुयाऽपूया २१५ ८ ॥६६॥ ३१७ ९ पिहियंपि 2010_04 Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६ पृष्ठं पंक्तिः शुद्धं ३१९ १५ छुभेज्ज ३२३ १९ डज्झेज्ज ३२५ १७ कंजियाणं ३५८ ९ ०जोगी ३५८ ९ ०दोसेहि ३६२ ५ खंते अ दंत ३६४ १५ विवित्त० ३६६ १४ मियचारिया ३६७ ७ ०विजहण० ३८७ १६ भिक्खुगुणा ३८८ १३ कापालीया० ३८९ ८ निट्रियं ३९८ २ थेररूवं ३९८ १८ चित्तस्स ४०२ १४ ।।८।। ४१० १३ ०विजयघोसा ४१२ १६ ०सप्त० ४१४ ८ ०भवियसरीरे ४१६ ७ वद्धमाणस्स ४१६ १३ ॥३३॥ ४२८ १७ निसीयण ४२९ ३ परकाय ४३२ १ ०ने पञ्चम० ४३६ ११. ० शस्त्रपरिज्ञा० . ४३७ ६ अगुणगुणे ४३७ २२ इय mmmmmmmm पृष्ठं पंक्तिः शुद्धं ४३८ १५ छेत्तुमणो ४४० १ सीयधरो ४४१ १५ निवित्ति ४४२ ३ अईया ४४२ ४ विवदिति ४४२ १९ (सोत्थ) ४४९ १७ जंघासतार ४७५ १६ इत्थिसद्देण ४७९ १३ षष्ठोपासका ४८५ २ इरिय० ४९१ ९ अकूमारखयं ४९३ २२ ३९२ ४९३ १६ ३९ ४९४ ६ अणुकंप ४९५ १५ ४८७ ४९६ १८ अपडिहणतो ५१३ ११ ३६४ ५१३ २२ छहिं आः ३१५ ४ १६१ ५१५ २७ एभविय ४१६ २० जं ५१७ ८ अ ८१० । ५१८ ८ २७२ | ५१८ १३ २९४ ५१९ १९ २२८ | ५१९ २५ ३८ 2010_04 Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंक्तिः पृष्ठं ५२० ५२१ ५२२ ५२५ ५२६ शुद्धम् कम्मप्पवाय १९८ किइकम्ममि ५८८ ५२७ ३०८ २६१ गुणसंयवण ३९९ ८१० १७ ५२७ ५२९ ५३२ د "" د २९८ ९५६-९४ १२७-२४० ११६-२०१ १५९-२६० २३७-३८१ ५३५ WWW.WWW.WW s ७५-२६१ ५४० ८०४ ५८१ ५४२ ३५-३२२ ३७८ ४६८ ५४२ ५४४ ४१८ ५४७ ५४८ ९१७ १९५ 2010_04 Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृष्ठं पंक्तिः २३ ५४८ ५४९ ५५० १० शुद्धम् ६५-३७४ १-१४२ ४-४५९ दव्वं आचा ७०-४२६ ,, जाणा २८-४२३ ५५० २१ ५५० ५५२ ३८९ ५५२ २११९ ३ WWW १० ५५३ ५५३ ५५३ ५५३ ५५४ २।१६ २।२४ २।१२ २२६ २८८ २३९ ७८-८ नाणे पि १४१-२७९ २९७-२९ ३९१ ५५६ ५५७ ५५८ १६० ३०२ १९८-४३९ ४२९ ७६-२६० २।३ ५५८ ५६१ २०१६ ५६२ २४० १।१२ ७६०-२६० ५६५. ४८२ ५६६ २० २९३ ३९८-३९९ १४१-४८९ ५६६ २।२३ 2010_04 Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृष्यं ५६९ ५७२ ५७२ ५७२ ५७२ ५७३ ५७५ ५७५ ५७५ ५७५ ५७६ ५७६ ५७७ ५७७ ५७७ ५७८ ५८१ ५:२ ५८३ ५८५ ५८५ ५८५ ५८५ ५८६ ५८६ पंक्ति: १७ ३ ሪ १३ २४ १६ ८ १८ २४ २/९ ७ ८ २।१३ २।१५ १८ २२ २१२४ २१७ ११ २० २/६ २/२३ १२ २।१७ १९ शुद्धम् २०९ ६५५ १३-९८ ३३६ ५४-३७ २२९ ४-१४५ ३९७ २१२ ૨૪ २८६ ४६८ ३५२ माया आचा १९५-४३८ ४९९ ५५९ १९४५ २९-३५६ ६९० ३७९ Yo ५६-७ ५८२-३१८ १५५-२०८ ६५८-१९६ 2010_04 Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृष्ठ ५८६ ५८७ ५८७ ५८९ ५८९ ५९१ ५९१ ५९३ ५९३ ५९५ ५९५ ५९६ ५९८ ५९८ पंक्तिः २।२६ २ १३ २३ २१५ ४ २।९ १२ २६ २९३ २२ २२ १२ १७ २० शुद्धम् १०६-१७ ३३२ ८९-४३४ ३६९ ६५७-६९ ७०-३०० १७-१९२ ५७६-२४३ २४-११ ५५१ १६२ ३०९ २१६ २०९ 2010_04 Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 卐 પરમ શાસન પ્રભાવક પૂજ્યપાદ્ આ. ભ. શ્રીમદ્ વિજય રામચંદ્રસૂરીશ્વરજી મહારાજા 2010_04 卐 5 Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 2010_04 Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ।। अहम् ।। तपागच्छनायक पू० आ० श्रीविजयरामचन्द्रसूरिभ्यो नमः ॥ नियुक्ति-सङ्ग्रहः ॥ श्रुतके वलि-युग-प्रधान चतुर्दशपूर्वधर श्रीमद् भद्रबाहुस्वामि विरचिता ॥१॥प्रावश्यक-नियुक्तिः ॥ ॥१॥ अथ नियुक्ति-पीठिका ॥ ॥ अथ सामायिकाख्यं प्रथममध्ययनम् ॥ आभिणिबोहियनाणं, सुयनाणं चेव मोहिनाणं च । तह मरणपज्जव (य)नाणं, केवलनाणं च पंचमयं ॥१॥ 10 उग्गहो ईहाऽवाओ य धारणा एव हुँति चत्तारि । आभिणिबोहियनाणस्स भेयवत्थू समासेणं ।। २ ।। प्रत्थाणं उग्गहणं अवग्गहं तह विप्रालणं इहं । ववसायं च अवायं धरणं पुण धारणं बेति ।। ३ ।। (अस्थाणं प्रोगहणाम्मि उग्गहो तह वियार (ल)णे ईहा । 15 ववसायम्मि प्रवाओ धरणं पुण धारणं बेंति ३ ) उग्गह इक्कं समयं ईहाऽवाया मुहुत्तमद्धं (मंतं) तु । कालमसंखं संखं च धारणा होइ णायव्वा ॥४॥ 2010_04 Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २] [ नियुक्तिसंग्रहः पुट्ट सुइ सई रूवं पुण पासई प्रपुटुंतु । गंधं रसं च फासं च बद्धपुट्ट वियागरे ॥५॥ भासासमसेढीओ, सदं जं सुणइ मोसयं सुणई । वीसेढी पुण सइं. सुणेइ नियमा पराधाए ।॥ ६ ॥ गिण्हइ य काइएणं, निस्सरइ तह वाइएगा जोएणं । एगंतरं च गिण्हइ, निसिरइ एगंतरं चेव ।।७।। तिविहंमि सरीरंमि उ, जीवपएसा हवंति जीवस्स । जेहि उ गिण्हइ गहणं, तो भासइ भासओ भासं ।। ८ ।। पोरालियवेउम्वियामाहारो (रतो उ) गिण्हई मुय इ मासं । 10 सच्चं सच्चामोसं मोसं च असच्चमोसं च ॥ ६ ॥ काहिं समएहि लोगो, भासाइ निरंतरं तु होइ फुडो। लोगस्स य क इभागे, कहभागो होइ भासाए ? ।। १० ।। चहि समएहि लोगो, भासाइ निरंतरं तु होइ फुडो। लोगस्स य चरमंते चरमंतो होइ भासाए ॥११॥ 15 ईहा अपोह वीमंसा, मग्गणा य गवेसरणा । सण्णा सई मई पण्णा, सव्वं आमिनिबोहियं ॥ १२ ॥ संतपयपरूवणया, दश्वपमाणं च खित्त फुसणा य । कालो अ अंतरं भाग, भावे अप्पाबहुं चेव ॥१३ ।। गइ इंदिए य काए, जोए वेए कसायलेसासु । 20 सम्मत्तनाणदंसण-संजयउवयोगआहारे ॥१४॥ भासगपरित्त पज्जत्त, सुहुमे सण्णी य होइ भवचरिमे । माभिणिबोहिअनाणं, मग्गिज्जइ एसु ठाणेसु ॥ 2010_04 Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १ सामायिकाध्ययनम् १ - " पीठिका " ] । ३ ( चू० एएहिं तु पदेहि संतपदे होति ववखाणं । प्रo पुण्वपडिवन्नए वा मग्गिज्जइ एसु ट्ठाणे ) ।। १५ ।। भणिबोहियनाणे, अट्ठावीसह हवंति पयडीम्रो । सुप्रनाणे पयडीओ वित्थरनो प्रावि वोच्छामि ।। १६ ।। 5 पत्तेयमक्खराई, अक्खरसंजोग जत्तिश्रा लोए । एवइया पयडीओ, सुयनाणे हंति णायव्वा ।। १७ ।। कत्तो मे वण्णेउं सत्ती सुघणाणसव्वपयडीनो ? | 1 चउदस विहनिक्खेवं सुयनाणे प्रावि वोच्छामि ।। १८ ॥ प्रक्खर सण्णी सम्मं, साईयं खलु सपज्जवसिअं च । 10 गमियं श्रंगपविठ्ठ, सत्तवि एए सप डिवक्खा ।। १९ ।। ऊससि नोससिअं निच्छूढं खासिअं च छोअं च । णीसिंधियमणुसारं, प्रणवखरं छेलियाईअं ।। २० ।। श्रागमसत्यग्गहणं, जं बुद्धिगुणेहि अट्ठहिं दिट्ठ ं । 1 बिति सुयनाणलंभं तं पुव्वविसारया धीरा ।। २१ ।। 15 सुस्सूसइ पडिपुच्छइ, सुणेइ गिण्हइ य ईहए वावि । तत्तो अपोहए वा (या), धारेइ करेइ वा सम्मं ।। २२ ।। मूचं हुंकारं वा बाढकारपडिपुच्छवोमंसा । तत्तो पसंगपारायणं च परिणिट्ठ सत्तमए ॥ २३ ॥ सुत्तस्थो खलु पढमो, बीओ निज्जुत्तिमीसम्रो भणिओ । 20 तइओ य निरवसेसो, एस विही होइ प्रणुओगे ।। २४ ।। संखाईप्राप्रो खलु श्रोहीनाणस्स सव्यपयडीश्रो । काओ भवपच्चया, खग्रोवसमिआश्रो काओऽवि ।। २५ ।। 2010_04 Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ नियुक्तिसंग्रह :: १ आवश्यकनियुक्तिः कत्तो मे वण्णे, सत्तो प्रोहिस्स सव्वपयडोयो ? | चउदसविहनिक्खेवं, इड्डीपत्ते य वोच्छामि ॥२६ ।। ओहि खित्तपरिमाणे, संठाणे प्राणुगामिए । अवट्ठिए चले तिब्वमंदपडिवाउप्पया इअ ।। २७ ।। नाणदसणविन्भंगे, देसे खित्ते गई इन । इड्ढीपत्ताणुप्रोगे य, एमेआ पडिवत्तीप्रो ।। २८ ।। नाम ठवणादविए, खित्ते काले भवे य भावे य । एसो खलु निक्खेवो, ओहिस्सा होइ सत्तविहो ।। २९ ।। जावइया तिसमयाहारगस्स सुहुमस्स पणगजीवस्स । 10 ओगाहणा जहण्णा, ओहोखित्तं जहण्णं तु ॥३० ।। सव्वबअगणिजीवा, निरंतरं जत्तियं भरिज्जंसु । खित्तं सवदिसागं, परमोही खित्त निद्दिट्ठो ॥ ३१ ।। अंगुलमावलियाणं, भागमसंखिज्ज दोसु संखिज्जा । अंगुलमावलिग्रंतो, प्रावलिमा अंगुलपुहुत्तं ।। ३२ ।। 15 हत्थंमि मुहत्तंतो, दिवसंतो गाउअंमि बोद्धव्यो । जोयण दिवसपुत्रा, पक्खंतो पग्णवीसाम्रो ॥ ३३ ॥ भरहंमि अद्धमासो, जंबूदीवंमि साहिमो मासो । वासं च मणुप्रलोए, वासपुहुत्तं च रुयगंमि ॥ ३४ ॥ संखिज्जमि उ काले, दोवसमुद्दा य हुँति संखिज्जा । 20 कालंमि प्रसंखिज्जे, दोवसमुद्दा उ भइयव्वा ।। ३५ ।। काले चउण्ह वुड्डी, कालो भइयव्वु खित्तवृड्डीए । वुड्डीई दवपज्जव, भइयव्वा खित्तकाला उ ।। ३६ ।। 2010_04 Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १ सामायिकाध्ययनम् :: १-"पीठिका"] सुहुमो य होइ कालो तत्तो सुहुमयरयं हवइ खित्तं । अंगुलसेढीमित्ते, मोसप्पिणीश्रो असंखेज्जा ॥३७॥ तेआभासादध्वाण, अंतरा इत्थ लहइ पट्टवओ । गुरुलहुप्रगुरुयलहुग्रं, तंपि प्र तेणेव निट्ठाइ ॥ ३८ ।। 5 ओरालविउध्वाहार-तेप्रभासाणपाण-मणकम्मे । प्रह दध्ववग्गणाणं, कमो विधज्जासओ खित्ते ।। ३६ । कम्मोरि धुवेयरसुण्णेयरवग्गणा अणंताओ । चउधुवणंतरतणुवग्गणा य मीसो तहाऽचित्तो ।। ४० ।। मोरालिप्रवेउविन प्राहरगतेअ गुरुलहू दवा । 10 कम्मगमणभासाई, एमाइं, अगुरुलाई ॥४१ ।। संखिज्ज मणोदव्वे, भागो लोगपलियस्स बोद्धव्यो। संखिज्ज कम्मदम्वे, लोए थोवरणगं पलियं ॥ ४२ ॥ तेआकम्मशरीरे, तेआदब्वे अ भास दम्वे प्र। बोद्धव्वमसंखिज्जा, दोवसमुद्दा य कालो अ॥ ४३ ।। 15 एगपएसोगाढं, परमोही लहइ कम्मगसरीरं ।। लहइ य प्रगुरुयलहुअं तेयसरीरे भवपुहुत्तं ।। ४४ ।। परमोहि प्रसंखिज्जा, लोगमित्ता समा असंखिज्जा। रूवगयं लहइ सब्वं, खित्तोवमि अगणिजीवा ।। ४५ ।। आहारतेयलंभो, उक्कोसेणं तिरिक्खजोणीसु । 20 गाउय जहण्णमोही, नरएसु उ जोयणुक्कोसो ॥ ४६ ।। चत्तारि गाउयाई, अधुढाई तिगाउया चेव । अड्डाइज्जा दुण्णि य, दिवड्डमेगं च निरएसु ।। ४७ ।। 2010_04 Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६ ] [ नियुक्तिसंग्रह :: १ आवश्यक नियुक्तिः सक्कीसाणा पढमं दुच्चं च सणकुमारमाहिंदा । तच्चं च बंभलंतग, सुक्कसहस्सारय चस्थों ॥। ४८ ।। आणयपाणयकप्पे, देवा पासंति पंचम पुढवीं । तं चैव श्रारणच्चय श्रोहीनाणेण पासंति ॥ ४६ ॥ 5 छट्ठ हिट्टिममज्झिमगेविज्जा सत्तमि च उवरिल्ला । संभिण्णलोगनालि पासंति प्रणुत्तरा देवा ॥ ५० ॥ एएसिमसंखिज्जा, तिरियं दीवा य सागरा चेव । बहुप्रयरं उवरिमगा, ऊड्ड सगकप्पथूभाई ।। ५१ ।। संखेज्जजोयरणा खलु, देवाणं प्रद्धसागरे ऊ । 10 तेण परमसंखेज्जा, जहण्णयं पंचवीसं तु ।। ५२ ।। उक्कोसो मणुएसु, मणुस्सतिरिएसु य जहण्णो य । उक्कोस लोगमित्तो, पडिवाइ परं अपडिवाई ।। ५३ ।। थिबुयायार जहण्णो, वट्टो उक्कोसमायओ किंची । प्रजहण्णमणुक्कोसो य, खित्तओऽणेगसंठाणो ।। ५४ ।। 15 तप्पागारे पल्लग पडहग झल्लरि मुइंग पुष्फ जवे । तिरियमणुएसु श्रोही, नाणाविहसंठिश्रो भणिओ ।। ५५ ।। अणुगामिश्रो उ ओही, नेरइयाणं तहेव देवाणं । अनुगामी प्रणणुगामी, मीसो य मणुस्सतेरिच्छे ।। ५६ ।। खित्तस्स प्रवद्वाणं, तित्तीसं सागरा उ कालेणं । 20 दध्वे भिण्णमुहत्तो, पज्जवलंभे य सत्तट्ठ ।। ५७ ।। श्रद्धाइ प्रवट्ठाण छावट्ठी सागरा उ कालेणं । उक्कोसगं तु एयं, इनको समझो जहण्णेणं ।। ५८ ।। 2010_04 Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १ सामायिकाध्ययनम् १-पीठोका" ] [ ७ वुड्डी वा हाणी वा, चउठिवहा होइ खित्तकालाणं । दव्वे सु होइ दुविहा, छविह पुण पज्जवे होइ ॥५९।। फड्डा य प्रसंखिज्जा, संखेज्जा यावि एगजीवस्स । एकफडडुवओगे, नियमा सम्वत्थ उवउत्तो ॥६० ।। फड्डा य प्राणुगामी, प्रणाणुगामी य मीसगा चेव । पडिवाइ अपडिवाई, मीसो य मणुस्सतेरिच्छे ।। ६१ ।। बाहिरलंभे भज्जो, दवे खित्ते य कालभावे य । उप्पा पडिवाओऽवि य, तं उभयं एगसमएणं ।। ६२ ॥ प्रभितरलद्धीए उ तदुभयं नस्थि एगसमएणं । 10 उप्पा पडिवाओऽवि य, एगयरो एगसमएणं ।। ६३ ।। दव्याओ असंखिज्जे संखेज्जे आवि पज्जवे लहइ । दो पज्जवे दुगुणिए, लहइ य एगाउ दवाउ ।। ६४ ।। सागारमणागारा, प्रोहिविभंगा जहण्णमा तुल्ला। उवरिमगेवेज्जेसु उ, परेण प्रोही असंखिज्जो ।। ६५ ।। 15 नेरइयदेवतित्थंकरा य ओहिस्सऽबाहिरा ति । पासंति सम्वो खलु, सेसा देसेण पासंति ॥ ६६ ।। संखिज्जमसंखिज्जो, पुरिसमबाहाइ खित्तओ प्रोही। संबद्धमसंबद्धो, लोगमलोगे य संबद्धो ।। ६७ ।। गइ नेरइयाईश्रा, हिट्ठा जह वणिया तहेव इहं । 20 इड्डी एसा वणिज्जइत्ति तो सेसियाओऽवि ॥ ६८ ।। आमोसहि विप्पोसहि, खेलोसहि जल्लमोसही चेव । संभिन्नसो उज्जुमइ, सम्वोसहि चेव बोद्धव्वो।। ६९ ॥ 2010_04 Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ नियुक्तिसंग्रह :: १ आवश्यकनियुक्तिः चारणग्रासीविस, केवली य मणनाणिणो य पुवधरा। अरहंत चक्कवट्टी, बलदेवा वासुदेवा य ॥७० ।। सोलस रायसहस्सा, सत्क्बलेणं तु संकलनिबद्धं । अंछंति वासुदेवं, अगडतडंमी ठियं संतं ।।७१ ।। 5 घित्तण संकलं सो, वामगहत्थेण अंछमाणाणं । भुजिज्ज व लिपिज्ज व महुमहरणं ते न चायंति ॥ ७२ ।। दोसोला बत्तीसा, सव्वबलेणं तु संकलनिबद्धं । अंछंति चक्कट्टि, अगडतडंमी ठियं संतं ॥ ७३ ॥ धित्तण संकलं सो, वामगहत्थेण अंछमाणाणं । 10 भुजिज्ज व लिपिज्ज व, चक्कहरं ते न चायति ।। ७४ ।। जं केसवस्स उ बलं, तं दुगुणं होइ चक्कवट्टिस्स । तत्तो बला बलवगा, अपरिमियबला जिणवरिदा ।। ७५ ।। मणपज्जवनाणं पुण, जणमणपरिचिन्तयत्थपायडणं । माणुसखित्तनिबद्धं, गुणपच्चइयं चरित्तवओ ।। ७६ ।। अह सव्वदश्वपरिणाम भावविण्णत्तिकारणमणतं । सासयमप्पडिवाइ, एगविहं केवलण्णाणं ।। ७७ ।। केवलणाणेणऽत्थे, गाउं जे तत्थ पण्णवणजोग्गे। ते भासइ तित्थयरो, वयजोगं सुयं हवइ सेसं ।। ७८ ।। इत्थं पुरण अहिगारो, सुयनाणेणं जओ सुएणं तु । 20 सेसाणमप्पणोऽविअ, अणुओगु पईवदितो ॥ ७९ ।। 15 ।। इति पीठिका ॥१॥ 2010_04 Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ ९ १ सामायिकाध्ययनम् :: २-उपोद्घातनियुक्तिः ] ॥ २॥ अथोपोद्घातनियुक्तिः ॥ 10 तित्थयरे भगवंते, अणुत्तरपरक्कमे अमियनाणी । तिपणे सुगइगइए, सिद्धिपहपदेसगए वंदे ।। ८० ।। वंदामि महाभाग, महामुणि महायसं महावीरं । अमरनररायमाहियं, तित्थयरमिमस्स तित्थस्स ।। ८१ ।। इक्कारसवि गणहरे, पवायए पवयणस्स वदामि । सव्वं गणहरवंसं वायगवंसं पवयरणं च ॥८२ ।। ते वंदिऊण सिरसा प्रत्थपुहुत्तस्स तेहिं कहियस्स । सुयनाणस्स भगवओ, 'निज्जुत्ति कित्तइस्सामि ॥ ३ ॥ आवस्सगस्स दसकालिअस्स तह उत्तरज्झमायारे । सूयगडे निज्जुत्ति वुच्छामि तहा दसाणं च ।। ८४ ।। कप्पस्स य निज्जुत्ति, ववहारस्सेव परमणि पस्स । सूरिअपण्णत्तीए, वुच्छं इसिभासियाणं च ॥८५ ।। एतेसि निज्जुत्ति, वुच्छामि अहं जिणोवएसेणं ।। 15 प्राहरणहेउकारण-पयनिवहमिणं समासेणं ॥८६॥ सामाइयनिज्जुत्ति, वुच्छं उवएसियं गुरुजणेणं । ... आयरियपरंपरएण, आगयं आणुपुवीए ॥८७ ।। निज्जुत्ता ते प्रत्था, जं बद्धा तेण होइ णिज्जुत्ती, (अहवा सुयपरिवाडी सुओवयेसोऽयं विशेषा) । 20 तहवि य इच्छावेइ, विभासिउ सुत्तपरिवाडी ।। ८८ ।। तवनियमनाणरुक्खं, आरूढो केवली अमियनाणी । 2010_04 Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - [ नियुक्तिसंग्रह :: १ आवश्यकनियुक्तिः तो मुयइ नाणवुढ़ि, भवियजणविबोहणट्ठाए ॥ ६ ॥ तं बुद्धिमएण पडेण, गणहरा गिहिउं निरवसेसं । तित्थयरभासियाई, गंथंति तओ पवयणट्ठा ।। ६० ।। घित्तुच सुहं सुहगुण (गह) णधारणा दाउं पुच्छिउं चेव । 5 एएहि कारणेहि, जीयंति कयं गणहरेहिं ।।९१॥ प्रत्थं भासइ अरहा, सुत्तं गंथंति गणहरा निउणं । ( गणधरा निपुणा, निगुणा ) सासणस्स हियट्ठाए, तो सुत्तं तित्थं पवत्तइ ।। ९२ ।। सामाइयमाईयं सुयनाणं जाव बिंदुसाराओ । 10 तस्सवि सारो चरणं, सारो चरणस्स निव्वाणं ।। ९३ ।। सुयनाणंमि वि जीवो, बट्टतो सोन पाउणइ मोक्खं । जो तवसंजममइए जोए न चएइ वोढुं जे ॥ ६४ ।। जह छेयलद्धनिज्जामोऽवि, वाणियगइच्छियं भूमि ।' वाएरण विणा पोओ, न चएइ महण्णवं तरिउं ।। ६५ ।। 15 तह नाणलद्धनिज्जामोऽवि, सिद्धिवसहि न पाउणइ । निउणोऽवि जीवपोओ, तवसंजममारुप्रविहूणो ॥६६ ।। संसारसागरामो, उब्बुड्डो मा पुणो निबुड्डिज्जा। चरणगुणविप्पहीणो, बुड्डइ सुबहुंपि जाणतो ।। ६७ ।। सुबहुँपि सुयमहीयं, कि काही ? चरणविप्पहीण (मुक्क)स्स। अंधस्स जह पलित्ता, दीवसयसहस्सकोडीवि ॥ ६८ ॥ अप्पंपि सुयमहीयं, पयासयं होइ चरणजुत्तस्स । इक्कोऽधि जह पईवो, सचक्खुअस्सा पयासेइ || १६ || 2010_04 Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १ सामायिकाध्ययनम् :: २-उपोद्घातनियुक्तिः ] [ ११ जहा खरो चंदणभारवाही, भारस्स भागी न हु चंदणस्स । एवं खु नाणी चरणेण हीणो, नाणस्स भागी न हु सोग्गईए ।१०० हयं नाणं कियाहीणं, हया अन्नारगो किया । पासंतो पंगुलो दड्डो घावमाणो प्र अंधओ ।।१।। 5 संजोगसिद्धीइ फलं वयंति, न हु एगचक्केण रहो पयाइ । अंधो य पंगू य वणे समिच्चा, ते संपउत्ता नगरं पविट्ठा ।।२।। नाणं पयासगं सोहओ तवो संजमो य गुत्तिकरो। तिण्हंपि समाजोगे, मोक्खो जिणसासणे भणियो । ३ ।। भावे खओवसमिए, दुवालसंगपि होइ सुयनाणं । 10 केवलियनाणलंभो, नन्नत्थ खए कसायाणं ॥४॥ अट्ठण्हं पयडीणं, उक्कोसठिइइ वट्टमाणो उ । जीओ न लहइ सामाइयं चउण्हपि एगयरं ॥ ५॥ सत्तण्हं पयडीणं, अभितरओ उ कोडिकोडोणं । काऊण सागराणं, जइ लहइ चउण्हमण्णयरं ।। ६ ।। 15 पल्लय' गिरिसरि उवला पिवीलिया पुरिस पह५ जरग्गहिमा । कुद्दव जल पत्थाणि य सामाइयलाभट्ठिता ।।७।। पढमिल्लुयाण उदए, नियमा संजोयणा कसायाणं । सम्मइंसणलंभं, भवसिद्धीयावि न लहंति ।।८।। 20 बिइयकसायाणुदए, अपच्चक्खाणनामधेज्जाणं । सम्मइंसणलंभ, विरयाविरई न उ लहंति ।। ९ ।। तइयकसायाणुदए, पच्चक्खाणावरणनामधिज्जाणं । देसिक्कदेसविरई, चरित्तलंभं न उ लहंति ।। ११० ।। 2010_04 Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२ [ नियुक्तिसंग्रह :: १ आवश्यकनियुक्तिः मूलगुणाणं लंभं न लहइ मूलगुणघाइणं उदए । उदए संजलणाणं, न लहइ चरणं अहक्खायं ॥ ११ ॥ सम्वेऽवि प्रअइयारा, संजलणाणं तु उदयनो हुंति ।। मूलच्छिज्जे पुण होइ, बारसण्हं कसायाणं ।। १२ ।। बारसविहे कसाए, खइए उवसामिए व जोगेहिं । लगभइ चरित्तलंभो, तस्स विसेसा इमे पंच ।। १३ ।। सामा इयं च पढम, छेओवट्ठावणं भवे बीयं । परिहारविसुद्धीयं सुहुमं तह संपरायं च ।। १४ ।। तत्तो य अहक्खायं, खायं सव्वंमि जीवलोमि । 10 जं चरिऊण सुविहिआ, वच्चंतयरामरं ठाणं ।। १५ ॥ अणदंसनपुसित्थी, वेयछक्कं च पुरिसवेयं च । दो दो एगन्तरिए, सरिसे सरिसं उसमेइ ॥ १६ ॥ लोभाणु वेअंतो, जो खलु उवसामग्रो व खवगो वा । सो सुहमसंपरामो, अहक्खाया ऊणप्रो किंची ।। १७ ।। 15 उवसामं उवणीआ, गुणमहया जिणचरित्तसरिसंपि । पडिवायंति कसाया, कि पुण सेसे सरागत्थे ? ॥ १८ ।। जइ उवसंतकसानो, लहइ अणंतं पुणोऽवि पडिवायं । ण हु मे वीससियव्वं, थेवे य कसायसेसंमि ।। १९ ।। अणथोवं वणथोवं अग्गीथोवं कसायथोवं च । 20 ण हु मे वीससियव्वं थेवंपि हु तं बहुँ होइ ।। १२० ॥ अण मिच्छ मीस सम्मं, अट्ठ नपुसित्थीवेय छक्कं च । पुवेयं च खवेइ, कोहाइए य संजलणे ॥२१॥ 2010_04 Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १ सामायिकाध्ययनम् २-उपोद्घातनियुक्तिः ] [ १३ गइआणपुवी दो दो जाइनामं च जाव चरिंदी। पायावं उज्जोयं, थावरनामं च सुहुमं च ।। २२ ।। साहारणमपज्जतं, निद्दानिदं च पयलपयलं च । थोणं खवेइ ताहे, अवसेसं जं च अट्टण्हं ।। २३ ।। 5 वीसमिऊण नियंठो दोहि उ समएहि केवले सेसे । पढमे निदं पयलं, नामस्स इमानो पयडीओ ।। २४ ॥ देवगइआणुपुवी-विउविसंघयण पढमवज्जाइ । अन्नयरं संठाणं, तित्थयराहारनामं च ।। २५ ।। चरमे नाणावरणं पंचविहं दंसणं चउवियप्पं । 10 पंचविहमंतरायं, खवइत्ता केवली होइ ॥ २६ ॥' संभिण्णं पासंतो लोगमलोगं च सव्वओ सव्वं । तं नत्थि जं न पासइ, भूयं भव्वं भविस्सं च ।। २७ ।। जिणपवयणउप्पत्ती, पबयणएगट्टिया विभागो य । दारविही य नविही, वरखाणविही य अणुओगो ॥२८।। 15 एगट्टियाणि तिणि उ, पवयण सुतं तहेव अत्थो । इक्किक्कस्स य इत्तो, नामा एगट्ठिा पंच ।। २९ ।। सुयधम्म तित्थ मग्गो, पावयणं पवणं च एगट्ठा । सुत्तं तंतं गंथो, पाढो सत्थं च एगट्टा ॥ १३० ॥ अणुओगो य नियोगो, भास विभासा य वत्तियं चेव । 20 अणुओगस्स उ एए, नामा एगद्विप्रा पंच ॥ ३१ ।। ( १ एतास्तिस्रो गाथा हारिभद्रवृत्तो नियुक्तित्वेन मलय गिरिवृत्तौ अन्यकर्तृका दशिताः) 2010_04 Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४ } [ नियुक्तिसंग्रह :: १ आवश्यकनियुक्तिः .5 नाम ठवणा दविए, खित्ते काले य वयण मावे य। एसो प्रणुप्रोगस्स उ णिवखेवो होइ सत्तविहो ।। ३२ ।। वच्छगगोणी १ खुज्जा २, सज्झाए ३ चेव बहिर उल्लायो ४ । गामल्लिए ५ य वयणे, सत्तेव य हुँति भावंमि ।। ३३ ।। सावगमज्जा १ सत्तवइए २ अ कोंकणगदारए ३ नउले ४ । कमलामेला ५ संबस्स, साहसं ६ सेणिए कोवो ७ ।। ३४ ।। कट्ठ १ पुत्थे २ चित्ते सिरिघरिए ४ पुंड ५ देसिए ६ चेव । भासगविभासए वा, बत्तीकरणे अ आहरणा ॥ ३५ ॥ गोणी चंदणकथा, चेडीग्रो सावए बहिरगोहे । 10 टंकणो ववहारो, पडिवक्खो प्रायरियसीसे ।। ३६ ।। कस्स न होही वेसो अनन्भुवगो अनिरुवगारी प्र। अप्पच्छंदमईओ, पट्टिप्रभो गंतुकामो प्र ॥३७॥ विणप्रोणपहि, कयपंजलीहि छंदमणुप्रत्तमाणेहि । आराहिओ गुरुजणो, सुयं बहुविहं लहुँ देह ।। ३८ ।। सेलघण कुडग चालणि, परिपूणग हंस महिस मेसे अ । मसग जलूग बिराली जाहग गो भेरी आभीरी ॥ ३६ ।। उद्देसे निद्देसे, निग्गमे खित्त काल पुरिसे अ । कारण पच्चय लक्खण, नए समोआरणाऽणुमए ॥ १४० । कि कइविहं कस्स, कहि केसु कहं केच्चिरं हवइ कालं । 20 कइ संतरमविरहिअं, भवागरिस फासण निरुत्ती ।। ४१ ।। नामं ठवरणा दविए, खेत्ते काले समास उद्देसे । उद्देसुद्देसंमि प्र, भावंमि अ होइ प्रहमओ ॥४२॥ .15 2010_04 Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १ सामायिकाध्ययनम् :: २-उपोद्घातनियुक्तिः] । १५ एमेव य निद्देसो, अटविहो सोऽवि होइ णायम्वो। प्रविसेसिअमुद्देसो, विसे सिम्रो होइ निदेसो ।। ४३ ।। दुविहंपि गमरणो, णिद्देसं संगहो य ववहारो। निद्देसगमुज्जुसुमो, उभयसरित्थं च सहस्स ॥४४ ।। 5 नाम ठवणा दविए, खित्ते काले तहेव भावे अ। एसो उ निग्गमस्सा, णिक्खेवो छविहो होइ ॥ ४५ ।। जह मिच्छत्ततमाओ, विणिग्गओ जह य केवलं पत्तो। जह य पयासिअमेयं सामाइअं तह पवक्खामि ॥ १ ॥ (प्रक्षेपक गाथा ) 10 पंथं किर देसित्ता, साहूणं अडविविप्पणढाणं । सम्मत्तपढमलंभो, बोद्धव्वो बद्धमाणस्स ॥४६ ।। लक्ष्ण य सम्मत्तं, अणुकंपाए उ सो सुविहियाणं । भासुरवरबोंदिधरो, देवो वेमाणिनो जाम्रो । ४७ ।। चहऊण देवलोगा, इह चेव य भारहंमि वासंमि । 15 इक्खागकुले जाओ, उसभसुअसुप्रो मरीइत्ति ॥ ४८ ।। इक्खागकुले जानो, इक्खागकुलस्स होइ उप्पत्ती । कुलगरवंसेऽईए, भरहस्स सुप्रो मरीइत्ति ।।४९ ।। प्रोसप्पिणी इमोसे, तइयाए समाए पच्छिमे मागे । पलिनोवमट्ठभाए, सेसंमि उ कुलगरूप्पत्ती ॥ १५० ।। 20 अद्धभरह मज्झिल्लुतिभागे, गंगासिंधुमज्झमि । इत्थ बहुमज्झदेसे, उप्पण्णा कुलगरा सत्त ॥ ५१ ।। 2010_04 Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ नियुक्तिसंग्रह :: १ आवश्यकनियुक्तिः पुत्वभव कुलगराणां उसभजिणिदस्स भरहरण्णो अ। इक्खागकुलुप्पत्ती णेयव्वा आणुपुवीए ॥१॥ ( प्रक्षेप ) पुस्वभवजम्मनामं, पमाण संघयणमेव संठाणं । वणित्थियाउ, भागा भवणोवाओ य णोई य ॥५२॥ अवर विदेहे दो वणिय, वयंसा माइ उज्जुए चेव । कालगया इहभरहे हत्थी मणुप्रो अ पायाया ॥ ५३ ।। दट्ठुसिणेहकरणं गयमारहणं च नामणिप्फत्ती । परिहाणि गेह कलहो, सामथण विनवण हत्ति ।। ५४ ।। पढमित्थ विमलवाहण, चक्खुम जसमं चउत्थामचंदे । 10 तत्तो प्र पसेणइए, मरुदेवे चेव नाभी य ।। ५५ ।। णव धणुसया य पढमो, अट्ठ य सत्तद्धसत्तमाई च । छच्चेव अद्धछट्ठा, पंचसया पण्णवीसं तु ।। ५६ ।। वज्जरिसहसंघयणा, समचउरंसा य हुँति संठाणे । वण्णंपि य वुच्छामि, पत्तेयं जस्स जो प्रासी ।। ५७ ॥ 15 चक्खुम जसमं च पसेणइनं एए पिअंगुवण्णाभा । अमिचंदो ससिगोरो, निम्मलकणगप्पभा सेसा ।। ५८ । चंदजसचंदकता, सुरूव पडिरूव चक्खुकता य । सिरिकता मरुदेवी, कुलगरपत्तीण नामाइं ।। ५९ ।। संघयणं संट्ठाणं, उच्चत्तं चेव कुलगरेहि समं । 20 वष्णेण एगवण्णा, सवायो पियंगुवण्णाओ ।। १६० ।। पलिओवमदसमाए, पढमस्साउं तओ प्रसंखिज्जा । ते प्राणुपुविहीणा पुवा नाभिस्स संखेज्जा ।। ६१ ॥ 2010_04 Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १-सामायिकाध्ययनम् :: २-उपोद्घातनियुक्तिः ] [ १७ जं चेव आउयं कुलगराण, तं चेव होइ तासिपि । जं पढमगस्स प्राउं तावइयं चेव हथिस्स ।। ६२ ।। जं जस्स आउयं खलु, तं दस भागे समं विभइऊणं । मज्झिल्लट्ठतिभागे, कुलगरकालं वियाणाहि ।। ६३ ।। 5 पढमो य कुमारत्ते, भागो चरमो य वुड्डमामि । ते पयणुपिज्जदोसा, सत्वे देवेसु उववष्णा ।। ६४ ।। दो चेव सुवण्णेसु, उदाहिकुमारेसु हुँति दो चेव । दो दीवकुमारेसुएगो नागेसु उववण्णो ।। ६५ ।। हत्थी छच्चित्थीओ नागकुमारेसुहुँति उववण्णा । 10 एगा सिद्धि पत्ता मरुदेवी नाभिणो पत्ती ।। ६६ ।। हक्कारे मक्कारे, धिक्कारे चेव दंडनीईओ। वुच्छं तासि विसेसं जहक्कम आणुपुवीए ।। ६७ ।। पढमबीयाण पढमा, तइयच उत्थाण अभिनवा बीया । पंचमछट्ठस्स य, सत्तमस्स तइया अभिनवा उ ।। ६८ ।। 15 सेसा उ दंडनीई, माणवगनिहोपो होति भरहस्स। उसभस्स गिहावासे, असक्कओ आसि प्राहारो॥ ६६ ।। नाभी विणीअभूमी, मरुदेवी उत्तरा य साढा य । राया य वइरणाहो, विमाणसम्वसिद्धाओ ।। १७० ।। धणमिहुण-सुरमहब्बल ललियंगय-वइरजंघ-मिहुणे य । 20 सोहम्मविज्ज-अच्चुअ चक्की सबट्ठ उसभे य ॥१॥ (प्र.) धणसत्थवाह घोसण, जइगमण अडविवासठाणं च । बहुवोलोणे वासे चिता, घयदाणमासि तया ।। ७१ ॥ 2010_04 Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८ ] [ नियुक्ति संग्रहः :: (१) आवश्यकनियुक्तिः उत्तरकुरु सोहम्मे, महाविदेहे महब्बलो राया। ईसाणे ललियंगो महाविदेहे वइरजंघो ।। १ ।। (प्र०) उत्तरकुरु सोहम्मे, विदेहि तेगिच्छियस्स तत्थ सुओ। रायसुय सेटिऽमच्चासत्थाहसुया वसंया से ।। ७२ ।। 5 विज्जसुयस्स य गेहे, किमिकुट्ठोवदुधे जई दर्छ। बिति य ते विज्जसुयं, करेहि एअस्स तेगिच्छं ।। ७३ ।। तिल्लं तेगिच्छसुप्रो, कंबलगं चंदणं च वाणियो। दाउ अभिणिक्खंतो तेणेव भवेण अंतगडो ।। ७४ ।। साहुं तिगिच्छकणं, सामण्णं देवलोगगमणं च । 10 पुंडरगिणिए उ चुया, तओ सुया वइरसेणस्स ।। ७५ ।। पढमोऽत्थ वइरणामो, बाहु सुबाहू य पीढमहपीढे । तेसि पिआ तित्थयरो, णिक्खंता तेऽवि तत्थेव ।। ७६ ।। पढमो चउदसपुत्वी, सेसा इक्कारसंगविउ चउरो। बीओ वेयावच्चं, किइकम्मं तइप्रमो कासी ।।७७।। 15 भोगफलं, बाहुफलं, पसंसणा जिट इयर अचियत्तं । पढमो तित्थयरत्ते, वीसहि ठाणेहि कासी य ।। ७८ ।। अरिहंत सिद्ध पवयण गुरु थेर बहुस्सुए तवस्सीसु। वच्छल्लया एएसि, अभिक्खनाणोवओगे य ।। ७९ ॥ दसण विणए प्रावस्सए य, सीलव्वए निरइमारो। 20 खणलव तवच्चियाए, वेयावच्चे समाही य ॥ १८० ।। अप्पुवनाणगहणे, सुयभत्ती पक्यणे पभावणया। एएहि कारणेहि, तित्थयरत्तं लहइ जीवो ॥८१ ॥ 2010_04 Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १- सामायिकाध्ययनम् :: २ - उपोद्घातनिर्युक्तिः ] [ १९ पुरिमेण पच्छिमेण य, एए सव्वेऽवि कासिया ठाणा । मज्झिमएहि जिणेहिं एवकं दो तिष्णि सब्वे वा ।। ८२ ।। तं च कहं वेइज्जइ ? अगिलाए धम्मदेसणाईहि । बज्झइ तं तु भगवप्रो, तइयभवोसक्कइत्ताणं ।। ८३ ।। नियमा मणुयाईए, इत्थी पुरिसेयरो य सुहलेसो । आसेवियबहुलेहि, वीसाए अण्णयर एहि ।। ८४ ।। उबवाओ सब्बट्ट, सब्वेसि पढमओ चुम्रो उसभो । रिक्खेण आसाढाहि, प्रसादबहुले चउत्थीए ।। ८५ ।। जम्मणे नाम वुड्डी अ, जाईस्सरणे इन 10 वीवाहे अ प्रवच्चे, अभिसेए रज्जसंग हे ।। ८६ ।। चित्तबहुलमीए, जाश्रो उसभो असाढणक्खते । 1 जम्मणमहो श्र सव्वो णेयव्वो जाव घोसणयं ॥ ८७ ॥ , मेरु अह उड्डलोआ चउदिसिरुअगा उ अट्ठ पत्तेअं । चउविदिसि मज्झरुयगा इति छप्पण्णा दिसिकुमारी ।। (प्र० ) 15 संवट्ट मेह प्रायंसगा य, भिंगार तालियंटा य । चामर जोई रक्खं, करेंति एवं कुमारीओ ॥ ८८ ॥ देसूणगं च वरिसं, सक्कागमणं च वंसठवणा य । श्राहारमंगुलीए, ठवंति देवा मणुष्णं तु ।। ८९ ।। सक्को वसवणे, इक्खु श्रगू तेण हुँति इक्खागा । 20 जं च जहा जंमि वए, जोगं कासी य तं सव्वं ( तालफलाहय भगिणी होही पत्तीति सारवणा ) । । १९० ।। 2010_04 Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २० ] [ नियुक्तिसंग्रह: : : ( १ ) आवश्यक निर्युक्तिः अह वह सो भयवं, दियलोयचओ प्रणोव मिसिरीओ । देवगणसंपरिबुडो, नंदाइ सुमंगलासहिलो ।। ९१ ।। प्रसिअसिरश्रो सुनयणो, बिबुट्ठो धवलदंतपंतीओ । वरपउमगभगोरो, फुल्लुप्पल गंधनीसासो ।। ६२ ।। 5 जाइस्सरो प्रमयवं, अपरिवडिएहि तिहि उ नाणेहि । कंतीहि य बुद्धिहि य, धम्महिश्रो तेहि मणुहि ।। ९३ ।। पढमो अकालमच्चू तह तालफलेण दारओ पहनो । कण्णा य. कुलगरेणं, सिट्ठे गहिआ उसहपत्ती ।। ६४ ।। भोगस मत्थं नाउं वरकम्मं तस्स कासि देविदो । 10 दुण्हं वरमहिलाणं, वहुकम्मं कासि देवीओ ।। ६५ ।। छप्पुव्वसयहस्सा पुव्वि जायस्स जिणवरिदस्स । तो भरहबंभिसु दरिबाहुबली चेव जायाई ॥। ६६ ।। अउणापण्णं जुअले, पुत्ताण सुमंगला पुणो पसवे । नीईणमइक्कमणे, निवेअणं उसभसामिस्स ।। ९७ ।। , राय करेइ दंड, सिट्टे ते बिति अम्हवि स होउ । मग्गह य कुलगरं, सो य बेइ उसभो य भे राया ।। ६८ ।। आभोएडं सक्को, उवागश्रो ( श्रागंतु ) तस्स कुणइ ( कासि ) श्रभिसेअं । मउडाइअलंकार, नरिदजोग्गं च से कुणइ ( कासो) ।। ९९ ।। 20 भिसिणीपरोहिधरे, उदयं धित्तु छुहंति पाएसु । साहु विणआ परिसा विणीअनयरी ग्रह निविट्ठा ॥ २००॥ 15 2010_04 Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १-सामायिकाध्ययनम् :: २-उपोद्घातनियुक्तिः ] [ २१ आसा हत्थी गावो, गहिआई रज्जसंगहनिमित्तं । चित्तण एवमाई, चउविहं संगहं कुणइ ।।१।। उग्गा भोगा रायण्ण खत्तिमा संगह भवे चउहा । प्रारविख गुरु वयंसा सेसा जे खत्तिआ ते उ ॥ २॥ 5 आहारे सिप्प कम्मे अ, मामणा अविभूसणा। लेहे गणिए प्र रूवे अ, लक्खणे माण पोपए १९ ।। ३ ।। ववहारे नीड जुद्धे अ, ईसत्थे प्र उवासणा। तिगिच्छा प्रत्थसत्थे अ, बंधे घाए अ, मारणा ॥ ४ ॥ जण्णसव समवाए मंगले कोउगे इप्र । 10 वत्थे गंधे प्र मल्ले प्र, अलंकारे तहेव य ॥५॥ चोलोवणा विवाहे प्र, दत्तिआ मडयपुप्रणा । झावणा थूभ सद्दे अ, छेलावणय पुच्छणा ।। ६ ।। मिठेण हथिपिंडे मट्टियपिंडं गहाय कुडगं च । निवत्तेसि अ तइआ जिणोवइट्ठण मग्गेण ।। १ ।। 15 निव्वत्तिए समाणे भण्णई राया तओ बहुजणस्स । एवइआ भे कुव्वह पट्टि पढ मसिप्पं तु ॥ २॥ (प्र.) पंचेव य सिप्पाई, घड १ लोहे २ चित्त णंत ४ कामवए ५ । इक्किक्कस्स य इत्तो वीसं वीसं भवे भेया ।। ७॥ उसभचरिआहिगारे, सम्वेसि जिणवराण सामण्णं । 20 संबोहणाइ वुत्तुं, वुच्छं पत्तेप्रमुसभस्स ॥८।। संबोहण परिच्चाए, पत्तेनं उहि मि अ । अन्तलिंगे कुलिंगे अ, गामायार परीसहे ।। ६ ॥ 2010_04 Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२ ] [ नियुक्तिसंग्रहः :: (१) आवश्यकनियुक्तिः जीवोवलंभ सुयलंभे, पच्चक्खाणे प्र संजमे । छउमत्थ तवोकम्मे उप्पाया नाण संगहे ।। २१० ।। तित्थं गणो गणहरो, धम्मोवायस्स देसगा। परिमाअ अंतकिरिया, कस्स केण तवेण वा ? ।।११।। 5 सम्वेऽवि सयंबुद्धा, लोगंतिप्रबोहिआ य जीएणं १ । सव्वेसि परिच्चाओ, संवच्छरिनं महादाणं ।। १२ ।। रज्जाइच्चामोऽवि य २, पत्तेअं को व कत्तिअसमग्गो ३ । को कस्सुवही?, को वाऽणुण्णाम्रो सोसाणं ४ ।। १३ ॥ सारस्सयमाइच्चा, वही वरुणा य गहतोया य । 10 तुसिआ अव्वाबाहा, अग्गिच्चा चेव रिट्ठा य ।। १४ ।। एए देवनिकाया भयवं, बोहिति जिणरिदं तु । सव्वजगज्जीवहिनं, भयवं! तित्थं पवत्तेहि ।। १५ ।। संवच्छरेण होही, अभिरिणक्खमणं तु जिणवरिंदाणं । तो अत्थसंपयाणं, पवत्तए पुव्वसूरंमि ॥ १६ ।। 15 एगा हिरण्णकोडी, अट्ठव अणूणगा सयसहस्सा। सूरोदयमाईअं, दिज्जइ जा पायरासाप्रो ।। १७ ।। सिंघाडग-तिगचउपक चच्चरचउमुह महपहेसु। दारेसु पुरवराणं, रत्थामुह-मज्झयारेसु ।। १८ ॥ वरवरिआ घोसिज्जइ, किमिच्चियं दिज्जए बहुविहीनं । 20 सुरप्रसुरदेवदारणव नरिंदमहिआण निक्खमणे ।। १६ ।। तिण्णेव य कोडिसया, अट्ठासीइं च हूंति कोडीनो। प्रसिहं च सयसहस्सा, एअं संवच्छरे दिण्णं ।। २२० । 2010_04 Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १-सामयिकाध्ययनम् :: २-उपोद्घातनियुक्तिः ] [ २३ वीरं अरिटनेमि, पासं मल्लि च वासुपुज्जं च । एए मुतूण जिणे, अवसेसा आसि रायाणो ॥ २१ ॥ रायकुलेसुऽवि जाया, विसुद्धवंसेसु खत्तिप्रकुलेसु। न य इथिआभिसेना, कुमारवासमि पव्व इआ ।। २२ ॥ 5 संती कुथू प्र अरो, अरिहंता चेव चक्कवट्टी प्र। अवसेसा तित्थयरा, मंडलिआ प्रासि रायाणो ।। २३ ।। एगो भगवं वीरो, पासो मल्ली अतिहि सएहिं । भयवं च वासुपुज्जो, छहिं पुरिससएहि निक्खंतो ।। २४ ।। उग्गाणं भोगाणं रायण्णाशं च खत्तिआणं च । 10 चउहि सहस्सेहुसभो, सेसा उ सहस्सपरिवारा ।। २५ ।। वीरो अरिटुनेमी, पासो मल्ली प्रवासुपुज्जो । पढमवए पवइआ, सेसा पुण पच्छिमवयंमि ।। २६ ।। सब्वेऽवि एगदूसेण, निग्गया जिणवरा चउव्वीसं । न य नाम अण्णलिंगे नो गिहिलिगे कुलिंगे वा ।। २७ ।। सुमईऽथ निच्चभत्तेण, निग्गओ वासुपुज्ज जिणो चउत्थेणं । पासो मल्लोवि अ, अटुमेण सेसा उ छट्ठणं ।। २८ ।। उसभो अविणीमाए, बारवईए अरिटुवरनेमी। अवसेसा तित्थयरा, निक्खंता जम्मभूमीसु ।। २६ ।। उसभो सिद्धत्थवणंमि, वासुपुज्जो विहारगेहंमि । 20 धम्मो अ वप्पगाए, नीलगुहाए अ मुणिनामा ॥ २३० ।। आसमपयंपि पासो, वीरजिणिदो अनायसंडंमि । अवसेसा निक्खंता, सहसंबवर्णमि उज्जाणे ॥३१ ।। 15 2010_04 Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४ ] [ नियुक्तिसंग्रहः :: (१) आवश्यकनियुक्तिः पासो अरिटुनेमी, सिज्जंसो सुमइ मल्लिनामो अ । पुवण्हे निक्खंता, सेसा पुण पच्छिमहंमि ।। ३२ ।। गामायारा विसया, निसे विश्रा ते कुमारवज्जेहिं ६ । गामागराइएसु ध, केसु विहारो भवे कस्स ।। ३३ ।। मगहारायगिहाइसु, मुणओ खित्तारिएसु विहरिसु । उसमो नेमी पासो, वीरो अ अणारिएसुपि ।। ३४ ।। उदिआ परीसहा सि, पराइमा ते अ जिरगरिदेहि ७ । नव जीवाइपयत्थे, उवलभिऊणं च निक्खंता ८ ।। ३५ ।। पढमस्स य बारसंगं, सेसाणिक्कारसंग सुयलंभो। 10 पंच जमा पढमंतिमजिणाण सेसाण चत्तारि ६ ॥ ३६ ॥ पच्चक्खाणमिरणं संजमो अ पढमंतिमाण दुविगप्पो । सेसाणं सामइओ, सत्तरसंगो अ सव्वेसि ११ ।। ३७ ।। वाससहस्सं बारस चउदस अट्ठार वीस वरिसाई । मासा छन्नव तिन्न व चउतिग दुगमिक्कग दुगं च ॥ ३८ । 15 तिग दुगमिक्कग सोलस वासा तिन्नि तहेवऽहोरत्तं । मासिक्कारस नवगं चउपण्णदिणाइ चुलसीई ।। ३९ ।। तह बारस वासाइं, जिणाण छ उमथकालपरिमाणं । उग्गं च तवोकम्म, विसेसमो वद्धमाणस्स १३ ।। २४० ।। फग्गुणबहुलिक्कारसि, उत्तरसाढाहि नाणमुसभस्स १ । पोसिक्कारसि सुद्धे, रोहिणिजोएण अजिअस्स २ ॥४ । कत्तिअबहुले पंचमि, मिगसिरजोगेण संभव जिणस्स ३।। पोसे सुद्धच उद्दसि, अभीइ अभिणंदणजिणस्त ४ ।। ४२ ।। 20 2010_04 Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १ - सामायिकाध्ययनम् :: २- उपोद्घातनिर्युक्तिः ) [ २५ fed सुद्धिकारसि, महाहि सुमइस्स नाणमुष्णं ५ । चित्तस्स पुष्णिमाए, पउमाभजिणस्स चित्तहिं ६ ।। ४३ ।। फग्गुणबहुले छट्टी, विसाहजोगे सुपासनामस्स ७ । फग्गुणबहुले सत्तमि, श्रणुराह ससिप्पहजिणस्स ८ ।। ४४ ।। 5 कत्तिप्रसुद्धे तइया, मूले सुविहिस्स पुप्फदंतस्त ६ । पोसे बहुलच उद्दसि पुथ्वासाढाहिं सीलजिणस्स १० ।। ४५ ।। पण्णरसि माहबहुले, सिज्जंसजिणस्स सवणजोएणं ११ । सर्याभिय वासुपुज्जे, बीयाए महासुद्धस्स १२ ।। ४६ ।। पोसस्स सुद्धछट्टी, उत्तरभद्द्वया विमलनामस्स १३ । 10 वइसाहबहुलचउदसि, रेवइजोएणडणंतस्स १४ ।। ४६ ।। पोसस्स पुण्णिमाए, नाणं धम्मस्स पुस्तजोएणं १५ । पोसस्स सुद्धनवमी, भरणीजोगेण संतिस्स १६ ।। ४८ ।। चित्तस्स सुद्धता, कित्तिअजोगेण नाण कुथुस्स १७ । कत्तिश्रसुद्धे वारसि ग्ररस्स नाणं तु रेवइह १८ ।। ४६ ।। 15 मग्गसिर सुद्धइवकारसीइ, मल्लिस्स स्सिणीजोगे १६ । फग्गुणबहुले बारसि सवणेणं स्वयजिणस्स २० ।। २५० ।। मगसिर सुद्धिवकारसि, अस्सिणिजोगेण नमिनिणिदस्स २१ । श्रासोमावासाए, नेमिनिणिदस्स चित्ताहि २२ ।। ५१ ।। वित्ते बहुलच उत्थी, विसाहजोएण पासनामस्स २३ । 20 वइसाहसुद्धदसमी, हत्थुत्तरजोगि वीरस्स २४ तेवीसाए नाणं, उप्पण्णं जिणवराण पुग्वण्हे । वीरस्स पच्छिमण्हे, पमाणपत्ताए चरिमाए ।। ५३ ।। 1 2010_04 Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६ ] [ नियुक्तिसंग्रहः :: (१) आवश्यकनियुक्तिः उसभस्स पुरिमताले, वीरस्सुजुवालिआ-नईतीरे। सेसाण केवलाइं, जेसुज्जाणेसु पम्वइमा ।। ५४ ।। अट्ठमभत्तंतंमी, पासोसह-मल्लिरिटुनेमीणं । वसपुज्जस्स चउत्थेण, छट्ठभत्तेण सेसारणं १४ ।। ५५ ।। चुलसीइं च सहस्सा, एगं च दुवे प्रतिणि लक्खाई। तिणि अ वीसहिपाई, तीसहिआइंच तिण्णेव ।। ५६ ।। तिणि अ अड्डाइज्जा, दुवे अ एगं च सयसहस्साई । चुलसीइं च सहस्सा, बिसत्तरि प्रसद्धि च ।। ५७ ।। छावट्टि चउद्धि बाट्टि सटिमेव पण्णासं । 10 चत्ता तीसा वीसा, अट्ठारस सोलस सहस्सा ॥ ५८ ।। चउदस य सहस्साइं, जिणाण जइसोस संगहपमाणं । अज्जासंगहमाणं, उसभाईणं अओ वुच्छं ।। ५९ ।। तिण्णेव य लक्खाई तिणि य तीसा य तिणि छत्तीसा । तीसा य छच्च पंच य, तीसा चउरो अ वीसा य ॥२६० ।। 5 चत्तारि य तीसाई, तिणि अ असिमाइं तिन्निमितो अ । वीसुत्तरं छलहिअं, तिसहस्सहिनं, च लक्खं च ।। ६१ ।। लक्खं अट्ठ सयाणि अ, बावट्ठिसहस्स चउसयसमग्गा । एगट्ठी छच्च सया, सट्ठिसहस्सा सया छच्च ॥ ६२ ।। सट्टि पणपण्ण पण्णेगचत्त चत्ता तहटुतीसं च । छत्तीसं च सहस्सा, अज्जाणं संगहो एसो १५ ॥ ६३ ।। पढमाणुप्रोगसिद्धो, पत्तेअं सावयाइआणं पि । नेओ सम्वजिणाणं, सीसाण संगहो (परिग्गहो) कमसो॥६४।। 2010_04 Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १- सामायिकाध्ययनम् :: २-उपोद्घातनियुक्तिः ] [ २७ तित्थं चाउव्वण्णो, संघो सो पढमए समोसरणे। उप्पण्णो प्रजिणाणं, वीरजिणिदस्स बीग्रंमि ॥६५॥ चुलसीइ पंचनउई, बिउत्तरं सोलसुतर सयं च । सत्तहि पणनउई तेणउई अटुसीई ।। ६६ ।। 5 इक्कासीई छावत्तरी अ, छावट्ठी सत्तवण्णा य । पण्णा तेयालीसा, छत्तीसा चेव पणतीसा ।। ६७ ।। तित्तीस अट्ठवीसा, अट्ठारस चेव तहय सत्तरस । इक्कारस दस नवगं, गणाण माणं जिणिदाणं ।। ६८ ।। एक्कारस उ गणहरा, जिणस्स वीरस्स सेसयाणं तु । 10 जावइआ जस्स गणा, तावइआ गरगहरा तस्स १८ ।। ६९ ।। धम्मोवाओ पवयणमहवा पुत्वाइं देसगा तस्स । सव्वजिणाण गणहरा, च उदसपुवी य जे जस्स ।। २७० ।। सामाइयाइया वा वयजीव-णिकायभावणा पढमं । एसो धम्मोवाओ, जिणेहिं सवेहि उवइट्ठो १९ ॥ ७१ ।। 15 उसमस्स पुबलक्खं, पुव्वंगूणजिअस्स तं चेव । चउरंगूणं लक्खं, पुणो पुणो जाव सुविहित्ति ।।७२ ।। पणवीसं तु सहस्सा, पुवाणं सोअलस्स परिप्राओ। लक्खाई इक्कवीसं, सिज्जसजिणस्स वासाणं ।। ७३ ।। चउपण्णं पण्णरस, तत्तो अद्धट्ठमाइ लक्खाई । 20 अड्डाइज्जाइं तओ, वाससहस्साइं पणवीसं ।। ७४ ।। तेवीसं च सहस्सा, सयाणि अट्ठमाणि प्र हवंति । इगवीसं च सहस्सा, वाससउणा य पणपण्णा ॥७॥ 2010_04 Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ } [ नियुक्तिसंग्रह: :: ( १ ) आवश्यकनियुक्तिः श्रद्धट्टमा सहस्सा अड्डाइज्जा य सत्त य सयाई । सयरी विचत्तवासा, दिक्खाकालो जिनिदाण ॥ ७६ ॥ उसभस्स कुमारतं, पुव्वाणं वीसई सय सहस्सा । तेवट्ठी रज्जंमी, अणुपालेऊण णिक्खंतो । ७७ ।। 5 अजिग्रस्त कुमारतं, अट्ठारस पुव्वसय सहस्साइं । तेवण्णं रज्जंमी, पुच्वंगं चेव बोद्धव्वं ।।७८ ।। पण्णरस सहसहस्सा, कुमारवासो अ संभव जिणस्स । चोप्रालीसं रज्जे, चउरंगं चेव बोद्धव्वं ।। ७९ ।। अद्धतेरस लक्खा, पुव्वाणऽभिणंदणे कुमारतं । 10 छत्तीसा अद्धं चिय, अठंगा चेव रज्जंमि ।। २८० ।। सुमइस्स कुमारतं, हवंति दस पुण्वसयसहस्साइं । श्रउणातीसं रज्जे, बारस अंगा य बोद्धव्या ।। ८१ ।। पउमस्त कुमारतं, पुण्वाणऽद्धट्ठमा सय सहस्सा । अद्धं च एगवीसा, सोलस अंगा य रज्जमि ।। ८२ ।। 15 पुण्वसयसहस्साई, पंच सुपासे कुमारवासो उ । चउदस पुण रज्जंमी बीसं श्रंगा य बोद्धव्वा ।। ८३ ।। श्रड्डाइज्जा [ अधुट्ठा उ ] लक्खा, कुमार वासो ससिप्प हे हो इ । अद्धं छच्चिय रज्जे, चउवीसंगा य बोद्धव्या ।। ८४ ।। पण्णं पुव्वसहस्सा, कुमारवासो उ पुष्कदंतस्स । २८ 20 तावइश्रं रज्जमी, श्रट्ठावीसं च पुम्बंगा ॥ ८५ ॥ पणवीस सहस्साई, पुव्वाणं सीअले कुमारतं । तावइयं परिआओ, पण्णासं चेव रज्जंमि ।। ८६ ।। 2010_04 Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १ - सामायिकाध्ययनम् :: २ - उपोद्घातनिर्युक्तिः ] वासाण कुमारतं, इगवीसं लक्ष्ख हुँति सिज्ज से । तावइश्रं परिआश्रो, बायालीसं च रज्जमि ।। ८७ ।। गिहवासे प्रट्ठारस, वासाणं सयसहस्स निअमेणं । चडवण्ण सयसहस्सा, परिश्राम्रो होइ वसुपुज्जे ॥ ८८ ॥ 5 पण्णरस सयसहस्सा, कुमारवासो प्र तीसई रज्जे । पण्णरस सयसहस्सा, परिआओ होइ विमलस्स ।। ८९ ।। अद्धट्ठमलक्खाई, वासाणमणंतई कुमारते । [ २९ तावइ परिआओ, रज्जंमी हुँति पण्णरस ।। २६० ।। धम्मस्स कुमारतं, वासाणड्डाइआई लक्खाइं । 10 तावइश्रं परिआओ, रज्जे पुरण हुँति पंचेव ॥ ६१ ॥ संतिस्स कुमारतं, मंडलियच क्किपरिश्राअ चउसुपि । पत्ते पत्ते, वाससहस्साई पणवीसं ।। ९२ ।। एमेव कुथुस्सवि, चउसुवि ठाणेसु हुँति पत्ते । तेवीस सहरसाई, वरिसाणद्वट्टमसया य ।। ९३ ॥ 15 एमेव अरजिणिदस्स, चउसुवि ठाणेसु हुँति पत्तेश्रं । इगवीस सहस्साई, वासाणं हुँति णायव्वा ।। ६४ ।। मल्लिस्सवि वाससयं, गिहवासे सेसयं तु परिआओ । चउप्पण्णसहस्साइं नव चेव सयाई पुण्णाई ।। ९५ ।। अट्टमा सहस्सा कुमारवासो उ सुव्वय जिणस्स । ' 20 तावइअं परिआनो, पण्णरससहस्स रज्जमि ।। ६६ ।। नमिणो कुमारवासो, वाससहस्साइ दुण्णि अद्धं च । तात्र परिआग्रो, पंचसहस्साइं रज्जंमि ।। ९७ ।। 2010_04 Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३० ] [ नियुक्तिसंग्रहः :: (१) आवश्यकनियुक्तिः . तिण्णेव य वाससया, कुमारवासो परिट्टनेमिस्स । सत्त य वाससयाई, सामण्णे होइ परिणामो ॥ ९८ ।। पासस्स कुमारत्तं, तीसं परिआनो सत्तरी होइ । तीसा य वद्ध माणे, बायालीसा उ परिआनो ।। ९९ ।। 5 उसभस्स पुवलक्खं, पुव्वंगूणमजिअस्स तं चेव । चउरंगूणं लक्खं पुणो पुणो जाव सुविहित्ति ॥ ३०० ॥ सेसाणं परिग्राओ, कुमारवासेण सहिअओ भणिओ। पत्तेयपि अ पुवं. सोसाण मणुग्गहट्टाए ।। १ ।। छ उमथकालमित्तो, सोहेउ सेसओ उ जिणकालो। सव्वाउअंपि इत्तो, उसमाईण निसामेह ।। २ ।। चउरासीइ विसत्तरि सट्ठी पण्णासमेव लक्खाई। चत्ता तोसा वीसा, दस दो एगं च पुव्वाणं २० ।। ३ ।। चउरासोई बावत्तरी अ सट्टी अ होइ वासाणं । तीसा य दस य एगं च एवमेए सयसहस्सा ।। ४ ॥ 15 पंचाण उइ सहस्सा, चउरासीई प्र पंचवण्णा य । तीसा य दस य, एगं सयं च बावत्तरी चेव २० ॥ ५ ।। निव्वाणमंतकिरिआ, सा च उदसमेण पढमनाहस्स । सेसाण मासिएणं, वीरजिणिदस्स छ?णं ।। ६ ।। अट्ठावय चंज्जित-पावसम्मेअसेल सिहरेसु । 20 उसभ वसुपुज्ज नेमी, वीरो सेसा य सिद्धिगया ।। ७ ।। एगो भयवं वीरो, तित्तीसाइ सह निव्वुओ पासो। छत्तीसएहि पंचहिं, सएहि नेमी उ सिद्धिगओ ।। ८ ।। 2010_04 Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १ - सामायिकाध्ययनम् :: २ - उपोद्घातनिर्युक्तिः ] [ ३१ पंचएहि समणसएहि, मल्ली संती उ नवसएहिं तु । अट्टसएणं धम्मो, सएहि छहि वासुपुज्जजिणो ॥ ६ ॥ सत्तसहस्साणंतइजिणस्स विमलस्स छस्सहस्साई । पंचसयाइ सुपासे, पउमाभे तिष्णि अट्ठ सया ।। ३१० ।। 5 दसहि सहस्सेहि उसभी सेसा उ सहस्स परिवुडा सिद्धा । कालाइ जं न भणिनं, पढमणुओगाउ तं शेयं ॥ ११ ॥ इच्चैवमाइ सव्वं, जिणाण पढमाणुओगओ अं । ठाणासुण्णत्थं पुण, भणिनं २१ पगयं अओ वृच्छं ।। १२ ।। उसभजिणसमुट्ठाणं, उद्वाणं जं तओ मरोइस्स । सामाइअस्स एसो, जं पव्वं निग्गमोऽहिगओ ।। १३ ।। चित्तबहुलट्ठमीए, चउहि सहस्सेहिं सो उ अवरहे । सीआ सुदंसणाए, सिद्धत्थवर्णमि छट्ठेणं ।। १४ ।। चउरो साहस्सीओ, लोचं काऊण प्रवणा चेव । जं एस जहा काही, तं तह अम्हेऽवि काहामो ।। १५ ।। 15 उसभो वरवस भगई, वित्तणमभिग्गहं परमघोरं । 10 वोसट्ठचत्तदेहो, विहरइ गामाणुगामं तु ।। १६ ।। नमिनिमोणं जायण, नागिंदो विज्जदाण वेग्रो । उत्तरदाहिणसेढी, सट्टीपण्णासनगराई ।। १७ ।। भगवं अदीणमणसो, संवच्छरमण सिओ विहरमाणो । 20 कण्णाहि निमंतिज्जइ, वत्थाभरणासहिं च ।। १८ । संघच्छरेरण भिक्खा, लद्धा उसभेण लोगना हेण । से सेहि बीयदिवसे, लद्धाओ पढमभिक्खाओ ।। १९ ।। 2010_04 Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३२ ] [ नियुक्तिसंग्रहः :: (१) आवश्यकनियुक्तिः उसभस्स उ पारणए, इक्खुरसो आसि लोगनाहस्स । सेसाणं परमण्णं, अमयरसरसोवमं प्रासी ॥ ३२० ।। घुटुं च अहोदाणं, दिव्याणि अाहयाणि तूराणि । देवा य संनिवइआ, वसुहारा चेव वृट्ठा य ।। २१ ॥ 5 गयउर सिज्जंसिक्खुरसदाण वसुहार पीढ गुरुपूआ। तक्ख सिलायल-गमणं, बाहुबलिनिवेअणं चेव ॥२२ ।। हस्थिणउरं अओज्झा, सावत्थी तहय चेव साकेअं। विजयपुर बंभथलयं पालिसंडं पउमसंडं ॥ २३ ।। सेयपुरं रिट्ठपुरं, सिद्धत्थपुरं महापुरं चेव । 10 धण्णकडं वद्धमाणं, सोमणसं मंदिरं चेव ।। २४ ।। चक्कपुरं रायपुरं मिहिला रायगिहमेव बोद्धव्वं । वीरपुरं बारवई, कोषगडं कोल्लयग्गामो ॥ २५ ॥ एएसु पढमभिक्खा, लद्धामो जिणवरेहि सम्वेहि । दिण्णाउ जेहि पढमं, तेसि नामाणि वोच्छामि ॥२६ ।। सिज्जंस बंभदत्तं, सुरेंददते य इंददत्ते अ । पउमे अ सोमदेवे, महिंद तह सोमदत्ते अ॥ २७ ।। पुस्से पुणव्वसू पुण नंद सुनंदे जए अ विजए य । तत्तो प्र धम्मसीहे, सुमित्त तह बग्घसोहे अ ।। २८ ॥ अपराजिअ विस्ससेणे, वीसइमे होइ बंभदत्ते प्र।। दिण्णे वरदिपणे पुण, धण्णे बहुले अ बोद्धव्वे ।। २९ ।। एए कयंजलिउडा, भत्तीबहुमाण सुक्कलेसागा । तक्कालपट्ठमणा, पडिलाभेसु जिणरिदे ।। २३० ।। 15 20 2010_04 Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १ - सामायिकाध्ययनम् :: २- उपोद्घातनियुक्तिः ] [ ३३ सहिपि जिणेहिं जहिश्रं लद्धाओ पढमभिक्खाओ | तहिअं वसुहाराओ, वृट्ठाओ पुष्कवुट्ठी ।। ३१ ।। अद्धतेरसकोडी, उक्कोसा तत्थ होइ वसुहारा । | अद्धतेरस लक्खा, जहणिआ होइ वसुहारा ।। ३२ ।। 5 सव्वैसिपि जिणाणं, जेहिं दिण्णाउ पढमभिक्खा ते पयणुपिज्जदोसा, दिव्ववरपरक्कमा जाओ ॥ ३३ ॥ केई तेणेव भवेण निव्वुग्रा सम्वकम्मउम्मुक्का । अन्ने तइअभवेणं, सिज्झिस्संति जिणसगासे || ३४ ॥ कल्लं सब्बिड्डीए, पूएमहदट्टु धम्मचक्कं तु । 10 विहरइ सहस्समेगं, छउमत्थो मारहे वासे ।। ३५ ।। बहलोअडंबद्दल्ला-जोणगविसओ सुवण्णभूमी अ । ग्राहिडिग्रा भगवआ, उसमेणं तवं चरंतेणं ॥ ३६ ॥ बहली जोणगा, पह(ल, ल्ल) गाय जे भगवया समणुसिट्ठा । अन्ने य मिच्छजाई, ते तइआ भट्ट्या जाया ।। ३७ ।। तित्थयराणं पढमो, उसभसिरी विहरिओ निरुवसग्गो । अट्ठावओ णगवरो, अग्गयभूमी जिणवरस्स ।। ३८ ।। छउमत्थपरिआओ, वाससहस्सं तओ पुरिमताले । णग्गोहस् य हेट्ठा, उप्पण्णं केवलं नाणं ।। ३६ ।। फग्गुणबहुले एक्कारसोइ अह अटूमेण भत्तेणं । 20 उप्पण्णंमि अणंते, महव्वया पंच पण्णवए ।। ३४० ॥ उप्पण्णंम अनंते, नाणे जरमरणविध्यमुक्कस्स । तो देवदाणविदा, करिति महिमं जिणदस्स ।। ४१ ।। 15 2010_04 Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३४ ] [ नियुक्तिसंग्रहः :: (१) आवश्यकनियुक्तिः उज्जाणपुरिमताले, पुरी[इ] विणीयाइ जत्थ नाणवरं । चक्कुप्पाया य भरहे निवेअणं चेव दोण्हंपि ॥ ४२ ।। आउहवरसालाए, उप्पण्णं चक्करयण भरहस्स । जक्खसहस्सपरिवूडं, सव्वरयणामयं चक्कं ।। १ ।। (प्र०) 5 तायंमि पूइए, चक्क पूइमं पूअणारिहो ताओ। इहलोइअं तु चक्कं परलोअसुहावहो ताओ ॥ ४३ ।। सह मरुदेवीइ निग्गओ, कहणं पव्वज्ज उस भसेणस्स । बंभीमरीइदिक्खा, सुन्दरी ओरोह सुप्रदिक्खा ॥ ४४ ।। पंच य पुत्तसयाई, भरहस्स य सत्त नत्तूअसयाई । 10 सयराहं पव्वइआ, तंमि कुमारा समोसरणे ॥ ४५ ॥ भवणवइवाणमंतर-जोइसवासी विमाणवासी अ । सविडिइ सपरिसा, कासी नाणुप्पायमहिमं ॥ ४६ ।। वठूण कीरमाणि, महिमं देवेहि खत्तियो मरिई । सम्मत्तलद्धबुद्धी धम्म सोऊण पन्वइओ ॥ ४७ ।। मागहवरदामपभास सिंधुखंडप्पवायतमिसगुहा । स४ि वाससहस्से, ओअविउं आगओ भरहो ।। १॥ ( प्र० ) मागहमाई विजयो सुन्दरिपब्वज्ज बारसभिसे ओ। आणवण भाउगाणं समुसरणे पुच्छ दिढतो ।। ४८ ॥ बाहुबलिकोवकरणं निवेअणं चक्कि देवया कहणं । नाहम्मेणं जुज्झे दिक्खा पडिमा पइण्णा य ॥ ४६ ।। ताहे चक्कं मणसी करेइ पत्ते अ चक्करयणंमि । बाहुबलिणा य भणि घिरत्थु रज्जस्स तो तुज्झ ॥ १ ॥ 15 20 2010_04 Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १-सामयिकाध्ययनम् :: २-उपोद्घातनियुक्तिः ] [ ३५ चितेइ य सो मज्झं सहोअरा पुन्वदिक्खिया नाणी । अहयं केवलिहोउं वच्चहामि ठिओ पडिमं ।। २।। (प्र० ) अह अण्णया कयाई गिम्हे उण्हेण परिगयसरीरो। अण्हाणएण चइप्रो इमं कुलिंग विचितेइ ।। ३५० ।। 5 मेरुगिरीसममारे न हुमि समत्थो मुत्तमवि वोढुं । सामण्णए गुणे गुणरहियो संसारमणुकंखी ॥ ५१ ।। एवमणुचितंतस्स तस्स निमगा मई समुप्पण्णा। लद्धो मए उवाओ जाया मे सासया बुद्धी ।। ५२ ॥ समणा तिदंडविरया भगवंतो निहुप्रसंवुइअअंगा। 10 अजिइंदिअदंडस्स उ होउ तिदंडं महं चिधं ।। ५३ ।। लोइंदिअमुडा संजया उ अहयं खुरेण ससिहो । थूलगपाणिवहाओ वेरमणं मे सया होउ ।। ५४ ।। निक्किचणा य समणा अकिंचणा मज्ज्ञ किंचणं होउ । सीलसुगंधा समणा अहयं सोलेण दुग्गंधो ।। ५५ ।। 13 ववगयमोहा समणा मोहच्छण्णस्स छत्तयं होउ । अणुवाहरणा य समणा मज्झं तु उवाहणा होन्तु ॥ ५६ ।। सुक्कंबरा य समणा निरंबरा मज्झ धाउरत्ताई। हुँतु इमे वत्थाई अरिहो मि कसायकलुसमई ॥ ५७ ।। वज्जतऽवज्जभीरु बहुजीवसमाउलं जलारंभं । 20 होउ मम परिमिएणं जलेण पहाणं च पिअणं च ॥ ५८ ।। एवं सो रुइअमई निग्रगमइविगप्पिअं इमं लिगं । तद्धितहेउसुजुत्तं पारिवज्जं पवत्तेइ (परिवज्ज तओ कासी) 2010_04 | Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३६ ] [ मियुक्तिसंग्रहः :: (१) आवश्यकनियुक्तिः अह तं पागडरूवं दह्रपुच्छेइ (पुच्छिसु) बहुजणो धम्म । कहइ जईणं तो (सुजईणं) सो विप्रालणे तस्स परिकहणा ।३६०। धम्मकहाअविखत्ते उठ्ठिए देइ भगवओ सीसे । गामनगराइमाई विहर इ सो सामिणा सद्धि ।। ६१ ।। 5 समुसरण भत्त उग्गह अंगुलि झय सक्क सावया अहिआ। जेआ बड्डइ कागिणिलंछण अणुसज्जणा अट्ट ।। ६२ ।। राया आइच्चजसो महाजसे अइबले अ बलभद्दे । बलविरिए कत्तविरिए जलविरिए दंडविरिए य ।। ६३ ।। एएहि अद्धभरहं सयलं भुत्तं सिरेण धरियो । 10 पवरो जिणिदमउडो सेसेहि न चाइओ वोढुं ॥ ६४ ॥ अस्सावगपडिसेहो छ8 छ8 अ मासि अणुओगो। कालेण य मिच्छत्तं जिणतरे साहुवोच्छेओ ।। ६५ ।। दाणं च माहणाणं वेए कासी अ पुच्छ निव्वाणं । कुडा थूम जिणहरे कविलो भरहस्स दिक्खा य ।। ६६ ।। पुणरवि प्र समोसरणे पुच्छीन जिणं तु (पुच्छी अ जिणे अ) चक्किणो भरहे। अप्पुट्ठो अ दसारे तित्थयरो को इहं भरहे ? ।। ६७ ।। जिणचक्किदसाराणं वण्णपमाणाई नामगोत्ताई । आऊपुरमाइपियरो परियाय गई च साहीअ ।। ६८ ।। अह भणइ जिणरिदो भरहे वासंमि जारिसो प्रहयं । 20 एरिसया तेवीसं अण्णे होहिंति तित्थयरा ॥ ६९ ।। होही अजिओ संभव अभिणंदण सुमइ सुप्पभ सुपासो। ससि पुष्पदंत सीअल सिज्जंसो वासुपुज्जो प्र ।। ३७० ॥ 15 2010_04 Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १-सामायिकाध्ययनम् :: २-उपोद्घातनियुक्तिः ] [ ३७ विमलमणंतइ धम्मो संती कुथू अरो अ मल्ली । मुणिसुब्धय नमि नेमी पासो तह वद्धमाणो अ ।। ७१ ।। अह भणइ नरवरिंदो भरहे वासंमि जारिसो उ अहं । तारिसया कइ अण्णे ताया ! होति रायाणो ? ॥ ७२ ॥ अह भणइ जिणवरिदो जारिसपो तं नरिंदसदूलो। एरिसया एक्कारस अण्णे होंहिंति रायाणो ॥ ७३ ।। होही सगरो मघवं सर्णकुमारो य रायसदलो। संती कुथू अ अरो होइ सुभूमो य कोरवो ।। ७४ ॥ णवमो अ महापउमो हरिसेणो चेव रायसदूलो। 10 जयनामो प्र नरवई बारसमो बंभदत्तो अ ॥ ७५ ।।। पउमाभ-वासुपुज्जा रत्ता ससिपुष्फदंत ससिगोरा । सुव्वयनेमी काला पासो मल्लो पियंगाभा ।। ७६ ॥ वरकणगतविग्रगोरा सोलस तित्थंकरा मुणेयध्वा । एसो वण्णविभागो चउवीसाए जिणवराणं ॥७७ ।। 15 उसभी पंचधणुस्सय पासो नव सत्तरयणिओ बीरो। सेस? पंच अट्ठ य पण्णा दस पंच परिहीणा ॥१॥ (प्र०) पंचेव प्रद्धपंचम चत्तारऽधुढ तह तिगं चेव । अड्डाइज्जा दुण्णि अ दिवड्डमेगं घणुसयं च ॥७८ ।। नउई असीइ सत्तरि सट्ठी पण्णास होइ नायव्वा । 20 पणयाल चत्त पणतीस तीसा पणवीस बीसा य ।। ७९ ।। पण्णरस दस घरिण य, नव पासो सत्तरयणिओ वीरो। नामा पुवुत्ता खलु तित्थयराणं मुणेयवा ।। ३८० ।। 2010_04 Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३८ ] [ नियुक्तिसंग्रहः :: (१) आवश्यक नियुक्तिः मुणिसुन्वओ अ अरिहा अरिटुनेमी अ गोयमसगुत्ता। सेसा तित्थयरा खलु कासवगुत्ता मुणेयव्वा ।। ८१ ।। इक्खागभूमि उज्झा सावस्थि विणि कोसलपुरं च । कोसंबी वाणारसी चंदाणण तह य काकंदी ।। ८२ ॥ 5 भद्दिलपुर सीहपुरं चंपा कंपिल्ल उज्झ रयणपुरं। तिण्णेव गयपुरंमी मिहिला तह चेव रायगिहं ।। ८३ ॥ मिहिला सोरिअनयरं वाणारसि तह य होइ कुडपुरं । उसभाईण जिणाणं जम्मणभूमी जहासंखं ॥८४ ।। मरुदेवि विजय सेणा सिद्धत्था मंगला सुसीमा य । 10 पुहवी लक्खण सामा(रामा)नंदा विण्हू जया रामा(सामा) ८५। सुजसा सुव्वया अइरा सिरी देवी पभावई । पउमावई अ वप्पा अ सिव वम्मा तिसला इअ ।। ८६ ।। नाभी जिअसत्तू प्र, जियारी संवरे इअ । मेहे धरे पइट्ठ अ, महसेणे अ खत्तिए । ८७ ।। 15 सुग्गीवे दढरहे विण्हू वसुपूज्जे अ खत्तिए । कयवम्मा सोहसेणे अ भाणू विससेणे इत्र ।। ८८ ॥ सूरे सुदंसणे कुंभे सुमित्तु विजए समुद्दविजए अ । राया प्र प्रस्ससेणे सिद्धत्थेऽवि य खत्तिए ।। ८६ ।। सत्वेऽवि गया मुक्खं जाइजराबंधणविमुक्का । 20 तित्थयरा भगवंतो सासयसुक्खं निराबाहं ।। ३९० ॥ सत्वेऽवि एगवन्ना निम्मलकणगप्पभा मुणेयव्वा । छक्खंडभरहसामी तेसि पमाणं अओ वुच्छं ।। ९१ ।। 2010_04 Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १- सामायिकाध्ययनम् :: २-उपोद्घात नियुक्तिः ] [ ३९ पंचसय अद्धपंचम बायालीसा य श्रद्धधणुअं च । इगयाल धणुस्सद्धं च चउत्थे पंचमे चत्ता ।। ६२ ।। पणतीसा तीसा पुण अट्ठावीसा य वीसइ धणूणि । पण्णरस बारसेव य अपच्छिमो सत्त य धणूणि ।। ६३ ॥ 5 कासवगुत्ता सम्वे च उदसरयणाहिवा समक्खाया । देविदवंदिएहिं जिणेहि जिअरागदोसेहि ॥१४॥ चउरासीई बावत्तरी प्र पुव्वाण सयसहस्साई । पंच य तिण्णि य एगं च सयसहस्सा उ वासाणं ।। ६५ ॥ पंचाणउइ सहस्सा चउरासीई प्र प्रढमे सट्ठी । 10 तीसा य दस य तिनि अ अपच्छिमे सत्तवाससया ।। ९६ ।। जम्मण विणीन उज्झा सावत्थी पंच हस्थिणपुरम्मि । वाणारसि कंपिल्ले रायगिहे चेव कंपिल्ले ।।७।। सुमंगला जसवई भद्दा सहदेवि प्रइर सिरि देवी। तारा जाला मेरा य वपगा तह य चूलणी प्र ।। ९८ ।। 15 उसमे सुमित्त विजए समुद्दविजए अ प्रस्ससेणे य । तह बोससेण सूरे सुदंसणे कत्तविरिए अ ।। ९९ ॥ पउमुत्तरे महाहरि विजए राया तहेव बंभे य । ओसप्पिणी इमोसे पिउनामा चक्कवट्टीणं ॥ ४०० ।। अट्ठव गया मोक्खं सुभुमो बंभो अ समि पुढवि । 20 मघवं सणंकुमारो सणंकुमारं गया कप्पं ॥१॥ वण्णेण वासुदेवा सम्वे नीला बला य सुक्किलया। एएसि देहमाणं वुच्छामि अहाणुपुवीए ॥२॥ 2010_04 Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४० ] [ नियुक्तिसंग्रहः :: (१) आवश्यकनियुक्तिः पढमो धणूणऽसीई सत्तरि सट्ठी य पन्न पणयाला । अउणत्तीसं च धणू छन्वीस सोलसा दसेव ।। ३ ।। बलदेववासुदेवा अट्ठव हवंति गोयमसगुत्ता । नारायणपउमा पुण कासवगुत्ता मुअव्वा ॥४।। 5 चउरासोई बिसत्तरि सट्ठी तीसा य दस य लक्खाई। पण्णटि सहस्साई छप्पण्णा बारसेगं च ।। ४०५ ।। पंचासीई पन्नत्तरी अ पन्नट्टि पंचवन्ना य । सत्तरस सयसहस्सा पंचमए प्राउअं होइ ।। ६ ॥ पंचासीइ सहस्सा पण्णट्ठी तह य चेव पण्णरस । 10 बारस सयाई आउं बलदेवाणं जहासंखं ॥ ७ ॥ पोप्रण बारवइतिगं अस्सपुरं तह य होइ चक्कपुरं। . वाणारसि रायगिहं अपच्छिमो जामो महुराए ॥ ८ ॥ मिगावई उमा चेव पहवी सीग्रा य अम्मया। लच्छीमई सेसमई केगमई देवई इअ ।।६।। 15 भह सुभद्दा सुप्पभ सुदंसणा विजय वेजयंती प्र। तह य जयंती अपराजिआ य तह रोहिणी चेव ।। ४१० ॥ हवइ पयावइ बंभो रुद्दो सोमो सिवो महसिवो य । अग्गिसोहे अ दसरहे नवमे मणिए अ वसुदेवे ।। ११ ॥ परिआनो पवज्जाऽभावाओ नस्थि वासुदेवाणं । होइ बलाणं सो पुरण पढमऽणुओगाप्रो नायवो ।। १२ ।। वीसभूई पव्वइए धणदत्त समुद्ददत्त सेवाले । पिअमित्त ललिअमित्त पुणव्वसू गंगदत्ते अ॥१॥ 20 2010_04 Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १-सामायिकाध्ययनम् :: २-उपोद्घातनियुक्तिः । [ ४१ एयाई नामाइं पुटवभवे आसि वासुदेवाणं । इत्तो बलदेवाण जहक्कम कित्तइस्सामि ॥२॥ विस्सनंदी सुबुद्धी अ सागरदत्ते असोअ ललिए अ। वाराह धण्णसेणे अवराइअ रायललिए य ॥३॥ 5 संभूअ सुभद्द सुदंसणे अ सिज्जंस कण्ह गंगे अ। सागरसमुद्दनामे दमसेणे अ अपच्छिमे ।। ४ ।। एए धम्मायरिआ कित्तीपुरिसाण वासुदेवाण । पुन्वभवे आसीआ जत्थ निआणाइ कासी अ ।। ५ ।। महुरा य कणगवत्थू सावत्थी पोअणं च रायगिहं । 10 कायंदी मिहिलावि य वाणारसि हस्थिणपुरं च ।। ६ ।। गावी जूए संगामे इत्थो पाराइए अ रगमि । भज्जाणुरागगृट्ठी परइड्ढी माउगा इअ ॥७ ।। महसुक्का पाणय लंतगाउ सहसारओ अ माहिंदा । बंभा सोहम्म सणंकुमार नवमो महासुक्का ॥ ४॥ 15 तिपणेवणुत्तरेहिं तिण्णेव भवे तहा महासुक्का । अवसेसा बलदेवा अणंतरं बंभलोगचुआ ॥९॥ (प्रक्षि०) एगो य सत्तमाए पंच य छट्ठीए पंचमी एगो। एगो य चउत्थीए कण्हो पुण तच्चपुढवीए ।। १३ ।। अटुंतकडा रामा एगो पुण बंभलोगकप्पम्मि । 20 उववन्नु तओ चइउं सिज्झिस्सह मारहे वासे ॥ १४ ॥ अनिमाणकडा रामा सम्वेऽवि अ केसवा निमाणकडा। उगामी रामा केसव सव्वे महोगामी ॥१५॥ 2010_04 Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४२ ] [ नियुक्तिसंग्रहः:: (१) आवश्यकनियुक्तिः उसभो वरवसभगई ततिअसमापच्छिमंमि कालंमि । उप्पण्णो पढमजिणो भरहपिआ भारहे वासे ।। १ ।। पण्णासा लक्खेहिं कोडीणं सागराण उसभाओ ।। उप्पण्णो अजिअजिणो ततिओ तोसाएं लक्खेहिं ।। २ ।। जिणवसहसंभवाओ दसहि उ लक्खेंहि अयरकोडीणं । अभिनंदणो उ भयवं एवइकालेण उप्पण्णो ।। ३ ।। अभिणंदणाउ सुमती नवहि उ लक्खेहि अयरकोडीणं । उप्पण्णो मुहपुण्णो सुप्पभनामस्स वोच्छामि ।। ४ ।। णउई य सहस्सेहिं कोडीणं सागराण पुण्णाणं । 10 सुम इजिणाउ पउमो एवतिकालेण उप्पण्णो ॥५॥ पउमप्पहनामाओ नवहि सहस्सेहि अयरकोडीणं । कालेणेवइएणं सुपासनामो समुप्पण्णो ।।६।। कोडीसएहि नवहि उ सुपासनामा जिणो समुप्पण्णो । चंदप्पभो पभाए पभासयंतो उ तेलोक्कं ।।७।। णउईए कोडीहिं ससीउ सुविहीजिणो समुप्पण्णो । सुविहिजिणाओ नवहि उ कोडीहिं सीअलो जाओ।। ।। सीअलजणाउ भयवं सिज्जंसो सागराण कोडीए । सागरसयऊणाए वरिसेहिं तहा इमेहिं तु ॥५।। छव्वीसाए सहस्सेहिं चेव छावट्ठि सयसहस्सेहिं । 20 एतेहिं ऊणिआ खलु कोडी मग्गिल्लिआ होइ ॥ १० ॥ चउपण्णा अयराणं सिज्जंसाओ जिणो उ वसुपुज्जो। वसपुज्जाओ विमलो तीसहि अयरेहि उप्पण्णो ।। ११ ।। 2010_04 Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १-सामायिकाध्ययनम् :: २-उपोद्घातनियुक्तिः ] [ ४३ विमलजिणा उप्पण्णो नवहिं अयरेहिणंत इजिणोऽवि । चउसागरनामे (माणे)हिं अणंतईतो जिणो धम्मो ।।१२।। धम्म जिणाओ संती तिहि उ तिच उभागपलिअऊणेहिं । अयरेहिं समुप्पण्णो पलिअद्धेण तु कुंथुजिणो ।।१३॥ 5 पलिअचउब्भाएणं कोडिसहस्सूणएण वासाणं । कुंथूओ अरनामो कोडीसहस्सेण मल्लिजिणो ॥१४॥ मल्लिजिणाओ मुणिसुव्वओ य च उपण्णवासलक्खेहि। सुव्वयनामाओ नमी लक्खेहि छहि उ उप्पण्णो ।।१५।। पंचहि लक्खेहिं तओ अरिटनेमी जिणो समुप्पण्णो । 10 तेसीइसहस्सेहिं लएहि अट्ठमेहिं च ॥ १६ ॥ नेमीओ पासजिणो पास जिणाओ य होइ वीरजिणो । अड्डाइज्जसएहिं गएहिं चरमो समुप्पण्णो ।। १७ ।। (प्र.) उसमे भरहो अजिए सागरो मघवं सर्णकुमारो प्र। धम्मस्स य संतिस्स य जिणंतरे चक्कट्टिदुगं ।। १६ ।। 18 संती कुथ अ प्ररो रहंता चेव चक्कवट्टी अ । अरमल्लीअंतरे उ हवइ सुभूमो य कोरवो ।। १७ ।। मुणिसुब्बए नमिमि अ हुँति दुवे पउमनामहरिसेणा । नमिनेमिसु जयनामो अरिट्टपासंतरे बंभो ॥ १८ ।। बत्तीसं घरयाई काउं तिरियायताहिं रेहाहिं । 20 उड्डाययाहिं काउं पंच घराई तओ पढमे ।।१॥ पन्नरस जिण निरन्तर सुन्नदुर्ग तिजिणसुन्नतियगं च । दो जिण सुन्न जिणिदो सुन्न जिणो सुन्न दोणि जिणा ॥२॥ 2010_04 Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४४ ] [ नियुक्तिसंग्रह: :: ( १ ) आवश्यक निर्युक्तिः बितिय पंतिठवणा · दो चक्की सुन्न तेरस पण चक्की सुन्न चक्की दो सुन्ना । चक्की सुन्न दु चक्की सुन्नं चक्की दु सुन्नं च ॥ ३ ॥ ततियपंतिठवणा दस सुन्न पंच केसव पणसुन्नं के सि सुन्न केसी य । 5 दो सुन्न केसवोऽवि य सुन्नदुगं केसव ति सुन्नं ॥ ४ ॥ ( प्र . ) पंचरते बंदंति (पंचऽरिहंते बंदिसु) केसवा पंच आणुपुब्वीए । सिज्जंस तिविट्ठाई धम्म पुरिससीहपेरंता ।। १९ ।। अरमलिनंतरे दुण्णि केसवा पुरिसपु उरिअदत्ता । मुणिसुध्वय नमिअंतरि नारायण कण्डु नेमिमि ।। ४२० ।। 10 चक्किदुगं हरिपणगं परणगं चक्कीण केसवो चक्की | ।। केसव चक्की केसव दु चक्की केसी अ चक्की अ ।। २१ ।। तत्थ मरोईनामा आइपरिव्वायगो उसभनत्ता । सज्झायझाणजुत्तो एगंते झायइ महत्वा ।। २२ ।। तं दाएइ जिणिदो एव नरिदेण पुच्छिओ संतो । 15 धम्मवरचक्कवट्टी अपच्छिमो वीरनामुत्ति ॥ २३ ॥ प्राइगरु दसाराणं तिविट्ठू नामेण पोनणाहिवई । पिअमित्तचक्कवट्टी मुम्राइ विदेहवासंमि ।। २४ ।। तं वयणं सोऊरणं राया श्रंचियतणूरुहसरीरो । अभिवंदिकरण पिअरं मरीइमभिवंदप्रो ( ऊं) जाइ ।। २५ ।। 20 सो विणएण उबगओ काऊण पयाहिणं च तिक्खुत्तो । वंदs अभित्तो इमाहि महराहि वग्गूहि ॥ २६ ॥ लाहा हु ते सुलद्धा जंसि तुमं धम्मचक्कवट्टीणं । 2010_04 Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १-सामायिकाध्ययनम् :: २-उपोद्घातनियुक्तिःJ [ ४५ होहिसि दसचउदसमो अपच्छिमो वीरनामुत्ति ।। २७ ।। णावि पारिवज्जं वदामि प्रहं इमं व ते जम्मं । जं होहिसि तित्थयरो अपच्छिमो तेण वंदामि ॥ २८ ॥ एवण्हं थोऊणं काऊणं पयाहिणं च तिक्खुत्तो । 5 प्रापुच्छिऊण पिपरं विणीअनयरि अह पविट्ठो ।। २९ ॥ तन्वयणं सोऊणं तिवई आप्फोडिऊण तिक्खुत्तो। अब्भहिप्र-जायहरिसो तत्थ मरीई इमं मणइ ।। ४३० ।। जइ वासुदेवु पढमो मूआइ विदेहि चक्कवट्टित्तं । चरमो तित्थयराणं होउ अलं इत्ति मज्झ (अहो मए एतिनं लद्धं ) ।। ३१ ।। प्रहयं च दसाराणं पिआ य मे चक्कट्टिवंसस्स । अज्जो तित्थयराणं अहो कुलं उत्तम मज्झ ॥ ३२ ॥ अह भगवं भवमहणो पुवाणा-मणूणगं सयसहस्सं । अणुपुटिव विहरिऊणं पत्तो अट्ठावयं सेलं ॥ ३३ ।। 15 अट्टावयंमि सेले चउदसभत्तेण सो महरिसोणं । दसहि सहस्सेहि समं निव्वाणमणुत्तरं पत्तो ॥ ३४ ॥ निध्वाण' चिइगागिई जिणस्स इक्खाग सेसयाणं च । सकहा थूम जिणहरे जायग' तेणाहिग्गित्ति' ।। ३५ ।। आयंसघरपवेसो मरहे पडणं च अंगुलीअस्स । 20 सेसाणं उम्मुअणं संवेगो नाण विक्खा य ॥३६॥ पुच्छंताणं कहेइ उवट्ठिए देइ साहुणो सीसे । । गेलनि अपडिअरणं कविला इत्थंपि इहयंपि ।। ३७ ।।. 2010_04 Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४६ ] [ नियुक्तिसंग्रहः :: (१) आवश्यकनियुक्तिः दुब्भासिएण इक्केण मरीई दुक्खसायरं पत्तो । भमिओ कोडाकोडि सागरसरिनामधेज्जाणं ॥ ३८ ।। तम्मूलं संसारो नोआगोत्तं च कासि तिवइंमि । अपडिक्कतो बंभे कविलो अतद्धिओ कहए ॥३९ ।। 5 इक्खागेसु मरीई चउरासीई अ बंभलोमि । कोसिउ कुल्लागंमी (गेसु) असीइमाउं च संसारे ॥४४०।। थूणाइ पूसमित्तो आउं बावरि च सोहम्मे । चेइन अग्गिज्जोप्रो चोवट्ठीसाणकप्पमि ।। ४१ ।। मंदिरे अग्गिभूई छप्पण्णाउ सणंकुमारंमि । 10 सेअवि भारद्दानो चोआलीसं च माहिदे ॥ ४२ ।। संसरिअ थावरो रायगिहे चउतीस बंभलोगंमि । छस्सुवि पारिक्वज्जं भमिओ तत्तो प्रसंसारे ।। ४३ ।। रायगिह विस्सनंदी विसाहभूई अ तस्स जुवराया। जुबरनो विस्सभूई विसाहनंदी अ इअरस्स ॥ ४४ ।। 15 रायगिह विस्सभूई विसाहमूइसुप्रो खत्तिए कोडी। वाससहस्सं दिक्खा संभूप्रजइस्स पासंमि ।।४५ ॥ गोत्तासिउ महराए सनिप्राणो मासिएण भत्तेणं । महसुक्के उबवण्णो तो चुओ पोप्रणपुरंमि ।। ४६ ।। पुत्तो पयावइस्सा मिग्रावईदेवि-कुच्छिसंभूओ । 20 नामेण तिविठ्ठत्ती आई आसी दसाराणं ॥ ४७ ।। चुलसीईमप्पइ8 सीहो नरएसु तिरियमणुएसु।। पिअमित्त चक्कवट्टी मूग्राइ विदेहि चुलसीई॥ ४८ ।। 2010_04 Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १-सामायिकाध्ययनम् :: २-उपोद्घातनियुक्तिः ] [ ४७ पुत्तो धणंजयस्सा पुट्टिल परिआउ कोडि सव्व? । गंदण छत्तग्गाए पणवीसाउं. सयसहस्सा ॥ ४९ ।। पव्वज्ज पुट्टिले सयसहस्स सव्वस्थ मासभत्तेणं । पुप्फुत्तरि उववण्णो तो चुप्रो माहणकुलंमि ।। ४५० ।। 5 अरिहंत सिद्ध पधयण गुरु थेर बहुस्सुए तवस्सीसु। वच्छल्लया एएसि, अभिक्खनाणोवओगे य ॥५१ ।। दसण विणए प्रावस्सए य, सीलब्धए निरइआरो। खणलव तवच्चियाए, वेयावच्चे समाही य ।। ५२ ।। अप्पुवनारणगहणे, सुयभत्ती पवयणे पभावणया । 10 एएहि कारणेहि, तित्थयरत्तं लहइ जीवो ।। ५३ ॥ पुरिमेण पच्छिमेण य, एए सम्वेऽवि फासिया ठाणा । मज्झिमएहि जिणेहि एक्कं दो तिणि सव्वे वा ।। ५४ ।। तं च कहं वेइज्जइ ? प्रगिलाए धम्मदेसणाईहिं । बज्झइ तं तु भगवप्रो, तइयभवोसक्कइत्ताणं ॥५५।। 15 नियमा मणुयगईए, इत्थी पुरिसेयरो य सुहलेसो। प्रासेवियबहुलेहिं वीसाए अण्णयरएहि ॥५६ ॥ माहणकुडग्गामे कोडालसगुत्तमाहणो अस्थि । तस्स घरे उववण्णो देवाणंदाइ कुच्छिसि ।। ५७ ।। सुमिणमवहारऽभिग्गह जम्मणमभिसेअ वुड्डी सरणं च । 20 भेसण विवाह वच्चे दाणे संबोह निक्खमणे ॥ ५८ ।। हत्थुत्तरजोएणं कुडग्गामंमि खतिम्रो जच्चो । वज्जरिसह-संघयणो भविअजणविबोहो वीरो ॥५९।। 2010_04 Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ .४८ ] [ नियुक्तिसंग्रहः :: (१) आवश्यकनियुक्तिः [ नियुक्तिसंगत. .. .\ सो देवपरिग्गहिओ तीसं वासाइ बसाइ गिहवासे । अम्मापिईहिं भयवं देवत्तगएहि पपइप्रो ।। ४६० ॥ गोवनिमित्तं सक्कस्स आगमो वागरेइ देविदो । कोल्लागबहुल छट्ठस्स पारणे पयस वसुहारा ।। ६१ ॥ 5 दूइज्जंतग पिउणो वयंस तिच्या अभिग्गहा पंच । अचियत्तुग्गहि न बसण'रिगच्च वोस?' मोणे ।। ६२ ।। पाणीपत्तं गिहिवंदणं च तओ बद्धमाण वेगवई । धणदेव सूलपाणिदसम्म वासऽटिअग्गामे ।। ६३ ।। रोद्दा य सत्त वेयण थुइ दस सुमिणुप्पलद्धमासे य । 10 मोराए सक्कारं सक्को अच्छंदए कुविओ ।। ६४ ।। मोरागसण्णिवेसे बाहिं सिद्धत्थ तीतमाईणि ! साहइ जणस्स अच्छंद पओसो छेअणे सक्को ॥१॥ (प्र.) तण छेयंगुलि कम्मार वीरघोस महिसिंदु दसपलिअं । बिइइंदसम्म ऊरण बयरीए दाहिणुक्कुरुडे ।। ६५ ।। तइअमवच्चं भज्जा कहिही नाहं तओ पिउवयंसो । दाहिणवायाल-सुवण्ण-वालुगाकंटए वत्थं ॥ ६६ ।। उत्तरवाचालंतर-वणसंडे चंडकोसिनो सप्पो । न. डहे चिता सरणं जोइस कोवाऽहि जाओऽहं ॥६७॥ उत्तरवायाला नागसेण खीरेण भोयणं दिव्वा । 20 सेयवियाए पएसी पंचरहे निज्जरायाणो॥ ६८ ॥ सुरहिपुर सिद्धजत्तो गंगा कोसिन विऊ य खेमिलयो । नाग सुदाढे सोहे कंबलसंबला य जिणमहिमा ॥ ६९ ॥ 15 2010_04 Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १-सामायिकाध्ययनम् :: २-उपोद्घातनियुक्तिः ] [ ४९ महुराए जिणदासो आहोर विवाह गोण उववासे । भंडीर मित्त अवच्चे भत्ते णागोहि प्रागमणं ।। ४७० ।। वीरवरस्स भगवो नावारूढस्स कासि उवसग्गं । मिच्छादिट्टि परद्धं कंबलसंबला समुत्तारे ॥७१ ॥ 5 थूणाए बहिं पूसो लक्खणमभंतरं च देविदो । रायगिहि तंतुसाला मासक्खमणं च गोसालो ।। ७२ ।। मंखलि मंख सुभद्दा सरवण गोबहुलमेव गोसालो। विजयाणंदसुणंदे भोप्रण खज्जे अ कामगुणे ।। ७३ ।। कुल्लाग बहुल पायस दिव्वा गोसाल दठ्ठ पव्वज्जा । 10 बाहिं सुवण्णखलए पायसथाली नियइगहणं ॥ ७४ ।। बंभणगामे नंदोवनंद उवणंद तेय पच्चद्धे । चंपा दुमासखमणे वासावासं मुणी खमइ ।। ७५ ।। कालाए सुण्णगारे सीहो विज्जुमई गोटिदासी य । खंदो दंतिलियाए पत्तालग सुण्णगारंमि ॥ ७६ ॥ 15 मुणिचंद कुमाराए कूवणय चंपरमणिज्ज उज्जाणे। चोराय चारि अगड सोमजयंती उवसमेइ ॥ ७७ ।। पिढीचंपा वासं तत्थ चउम्मासिएण खमणेणं । कयंगल देउलवरिसे दरिद्दथेरा य गोसालो ।। ७८ ।। सावत्थी सिरिभद्दा निंदू पिउदत्त पयस सिवदत्ते । 20 दारगणी नखवालो हलिद्द पडिमाऽगणी पहिआ।। ७६ ।। तत्तो य जंगलाए डिभ मुणी अच्छिकड्ढणं चेव । पावत्त मुहतासे मुणिओत्ति प्रबाहि बलदेवो ॥ ४८० ॥ 2010_04 | Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५० ] [ नियुक्तिसंग्रह: :: (१) आवश्यकनियुक्तिः चोरा मंडव भोज्जं गोसालो वहण तेय झामणया । मेहो य कालहत्थी कलंबुयाए उ उवसग्गा ।। ८१ ।। लाढेसु य उवसग्गा घोरा पुण्णकलसा य दो तेरणा । वज्जहया सवणं भद्दिय वासासु चउमासं ॥। ८२ ।। 5 कयलिसमागम भोयण मंखलि दहिकूर भगवओ पडिमा । जंबूसंडे गोट्ठी य भोयणं भगवओ पडिमा ।। ८३ ।। तंबाए नंदिसेणो पडिमा प्रारविख वहण भय डहणं । कूविय चारिय मोक्खे विजय पगन्भा य पत्ते ।। ८४ ।। तेणेहि पहे गहिओ गोसालो माउलोत्ति वाहणया । 10 भगवं वेसालीए कम्मार घणेण देविंदो ॥ ६५ ॥ गामाग बिहेलग जक्ख तावसी उवसमावसाण थुई । छट्टण सालिसीसे विसुज्झमाणस्स लोगोही ।। ८६ ।। पुणरवि मद्दिश्रनगरे तवं विचित्तं च छट्ठवासंमि । मगहाए निरुवसग्गं मुणि उउबद्धमि विहरित्या ॥ ८७ ॥ 15 आलभिआए वासं कुडागे तह देशले पराहुत्तो । मद्दण देउल सागारिअं मुहमूले दोसुवि मुणित्ति ॥ ८८ ॥ बहूसालग सालवणे कडपूअण पडिम विग्धणोवसमे । लोहग्गलंमि चारिय जिग्रसत्तू उप्पले मोक्खो ॥ ८६ ॥ तत्तो य पुरिमताले वग्गुर ईसाण अच्चए पडिमा । 20 मल्लोजिणायण पडिमा उष्णाए वंसि बहुगोट्टी ।। ४६० ।। गोभूमि वज्जलाढे गोवक्कोवे य वंसि जिणुवसमे । रायगिट्टमवासं वज्जभूमी बहुवसग्गा ।। ९१ ।। 2010_04 Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १-सामायिकाध्ययनम् :: २-उपोद्घातनियुक्तिः ] [ ५१ अनिअयवासं सिद्धत्थपुरं तिलत्थंब पुच्छ निप्फत्ती। उप्पाडेइ अणज्जो गोसालो वास बहुलाए ॥ २ ॥ मगहा गोब्बरगामो गोसंखी वेसियाण पाणामा। कुम्मग्गामायावण गोसाले गोवण पउ8 ।। ९३ ।। 5 वेसालीए पडिमं डिभमुणिउत्ति तत्थ गणराया। पूएइ संखनामो चित्तो नावाए भगिणिसुप्रो ।। ६४ ॥ वाणियगामायावण आनंदो ओहि परीसह सहिति । सावत्थी वासं चित्ततवो साणुलट्ठि बहिं ।। ६५ ।। पडिमा भद्द महाभह सव्वओमद्द पढमिआ चउरो । 10 अट्टयवीसाणंदे बहुलिय तह उजिसए दिध्वा ।। ६६ ।। दढभूमीए बहिआ पेढाल नाम होइ उज्जाणं । पोलास चेइयंमी ठिएगराईमहापडिमं ।। ६७ ।। को अ देवराया समागओ भणइ हरिसिओ वयणं । तिणिवि लोग समत्था जिणवीरमणं न चलेउ जे ।। ६८ ॥ 15 सोहम्मकप्पवासी देवो सक्कस्स सो अमरिसेणं । सामाणिन संगमप्रो बेइ सुरिदं पडिनिविट्ठो ।। ९९ ।। तेलोक्कं असमत्थंति बे (पे)ह एतस्स चालणं काउं। अज्जेव पासह इमं ममबसगं भट्ठजोगतवं ॥५०॥ अह आगो तुरंतो देवो सक्कस्स सो प्रमरिसेणं । 20 कासी य हउवसग्गं मिच्छट्ठिी पडिनिविट्ठो ।। ५०१ ।। धूली पिवोलिसाओ उद्दसा चेव तहय उण्होला । विछुय नउला सप्पा य मूसगा चेव अट्ठमगा ।। ५०२ ।। 2010_04 Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ___५२ ] [ मियुक्तिसंग्रहः :: (१) आवश्यकनियुक्तिः हस्थी हत्थीणिआओ पिसायए घोररूव वग्यो य । थेरो थेरी सूत्रों प्रागच्छइ पक्कणो य तहा ।। ५०३ ।। खरवाय कलंकलिया कालचक्कं तहेव य । पामाइय उवसग्गे वीसइमो होइ अणुलोभो ॥ ५०४ ।। 5 सामाणिअदेट्टि देवो दावेइ सो विमाणगनो । भणइ य वरेह महरिसि ! निष्फत्ती सग्गमोक्खाणं ।।५०५।। उवहयमइविण्णाणो ताहे वीरं बहु पसाहेउं । ओहीए निज्झाइ झायइ छज्जीवहियमेव ।। ५०६ ।। वालुय पंथे य तेणा माउलपारणग तत्थ काणच्छी। 10 तत्तो सुभूम अंजलि सुच्छित्ताए य विडरूवं ।। ५०७ ।। मलए' पिसायरूवं सिवरूवं हथिसीसए चेव । पोहसणं पडिमाए मसाण सक्को जवण पुच्छा ।। ५०८ ।। तोसलि कुसोसरूवं संधिच्छेप्रो इमोति इमोति वज्झो य । मोएइ इंदजालिओ (इंदालिउ) तत्थ महाभूइलो नामं । ५०९। 15 मोलि संधि सुमागह मोएई रटिनो पिउवयंसो। तोसलि य सत्त रज्जवावत्ती तोसलीमोक्खो ।। ५१० ॥ ...सिद्धत्थपुरे तेणुत्ति कोसिम्रो पासवाणिओ मोक्खो। वयगाम हिंडणेसण बिइयदिणे बेइ उवसंतो ॥११ ।। वच्चह हिंडह न करेमि किंचि इच्छा न किंचि वत्तव्यो। 20 तत्थेव वच्छवाली थेरी परमन्नवसुहारा ॥ १२ ।। छम्मासे अणुबद्धं देवो कासीय सो उ उवसग्गं । दण वयग्गामे वंदिय वीरं पडिनियत्तो ।। १३ ॥ 2010_04 Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १-सामयिकाध्ययनम् :: २-उपोद्घातनियुक्तिः ] [ ५३ देवो चुओ महिड्डियो वरमंदरचूलियाइ सिहरंमि । परिवारिओ सुरवहूहि आउंमि सागरे सेसे ॥ १४ ।। पालभियाए हरि विज्जू जिणस्स भत्तीइ बंदओ एइ । भगवं पियपुच्छा जिय उवसग्गत्ति थेवमवसेसं ।। १५ ॥ 5 हरिसह सेयवियाए सावत्थी खंद पडिम सक्को य । ओयरिउ पडिमाए लोगो प्राउट्टिनो वंदे ॥१६॥ कोसंबी चंदसूरोयरणं वाणारसोइ सक्को उ । रायगिहे ईसाणो मिहिला जणग्रो य धरणो य ।। १७ ।। वेसालि भूयणंदो चमरुप्पाम्रो य सुसुमारपुरे ।। 10 भोगपुरि सिदिकंदग माहिंदो खत्तिओ कुणति ।। १८ ।। वारण सणंकुमारे नंदोगामे पिउसहा वंदे । में ढियगामे गोवो वित्तासणयं च देविदो ।। १६ ।। कोसंबीए सयाणीनो अभिग्गहो पोसबहुल पाडिवए । चाउम्मास मिगावई विजय सुगुत्तो य नंदा य ।। ५२० ।। 15 तच्चावाई चंपा दहिवाहण वसुमई बिइयनामा । धणवह मूला लोयण संपुल दाणे य पव्वजा ।। २१ ।। तत्तो सुमंगलाए सणंकुमार सुछेत्त एइ माहिंदो। पालग वाइलवणिए अमंगलं अप्पणो असिणा ।। २२ ॥ चंपा वासावासं जक्खिंद साइदत्त पुच्छा य ।। 20 वागरण दुह पएसण पच्चक्खाणे य दुविहे अ ।। २३ ॥ जंभियगामे नाणस्स उप्पया वागरेइ देविदो । मिढियगामे चमरो वंदणं पियपुच्छणं कुणइ ।। २४ ।। 2010_04 Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५४ ] [ नियुक्तिसंग्रह: :: ( १ ) आवश्यक निर्युक्तिः छम्माणि गोव कडसल पवेसणं मज्झिमाए पावाए । खरओ विज्ज सिद्धत्थ वाणियश्रो नोहरावेइ ।। २५ ।। जंभिय बहि उजुवालियतीर विद्यावत सामसालअहे । छट्टुणुक्कुडुयस्स उ उप्पण्णं केवलं गाणं ।। २६ ।। 5 जो य तवो अणुचिष्णो वीरवरेणं महाणुभावेणं । छउमत्थकालियाए अहक्कमं कित्तइस्सामि ॥। २७ ।। नव फिर चाउम्मासे छक्कीर दोमासिए उवासीय । बारस य मासियाइं बावत्तरि अद्धमासाई ।। २८ ।। एगं किर छम्मासं दो किर तेमासिए उवासीय | अड्डाइज्जा य दुवे दो चेव दिवड्डमासाई ।। २९ ।। भद्दं च महाभद्दं पडिमं तत्तो य सव्वओभद्दं । दो चत्तारि दसेव य दिवसे ठासीय अणुबद्धं ॥ ५३० ।। गोयरमभिग्गहजुयं खमणं छम्मासियं च कासी य । पंचदिवसेहि ऊणं अव्वहिओ वच्छनयरीए ।। ३१ ।। दस दो य किर महप्पा ठाइ मुणो एगराइयं पडिमं । श्रट्टमभतेण जई एक्केक्कं चरमराईयं ॥ ३२ ॥ दो चेव य छट्ठसए अउणातीसे उवासिनो भगवं । न कयाइ निच्चभत्तं चउत्थभत्तं च से आसि ।। ३३ ।। बारस वासे अहिए छट्ठ मत्तं जहण्णयं आसि । 20 सव्वं च तवोकम्मं अपाणयं श्रासि वीरस्स ।। ३४ ।। तिष्णि सए दिवसाणं अउरगावण्णं तु पारणाकालो । उक्कुडयनिसेज्जाणं ठियपडिमाणं सए बहुए ।। ३५ ।। 10 15 2010_04 Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १-सामायिकाध्ययनम् :: २-उपोद्घातनियुक्तिः ] [ ५५ पव्वज्जाए पढम दिवसं एत्थं तु पविखवित्ता गं । संकलियंमि उ संते जं लद्धं तं निसामेह ॥३६ ।। बारस चेव य वासा मासा छच्चेव अद्धमासो य । वीरवरस भगवनो एसो छउमत्थपरियाओ ।। ३७ ।। 5 एवं तवोगुणरओ अणुपुत्वेणं मुणी विहरमाणो। घोरं परीसहचमु अहियासित्ता महावीरो ।। ३ ।। उप्पण्णंमि अणंते नटुंमि य छाउमथिए नाणे। राईए संपत्तो महसेणवणंमि उज्जाणे ॥ ३९ ।। अमरनररायमहिओ पत्तो धम्मवरचक्कट्टितं । 10 बीयं पि समोसरणं पावाए मज्झिमाए उ ।। ५४० ।। तत्थ किल सोमिलज्जोत्ति माहणो तस्स दिक्खकालंमि । पउरा जगजाणवया समागया जन्नवामि ।। ४१ ॥ एगते य विवित्ते उत्तरपासंमि जन्नवाडस्स । तो देवदाणविदा करेंति महिमं जिणिदस्स ।। ४२ ।। 15 समोसरणे' केवइआरूव पुच्छ वागरण सोयपरिणामे । दाणं च देवमल्ले मल्लाणयणे उरि तित्थं ।। ४३ ।। जत्थ अपुरोसरणं जत्थ व देवो महिड्डिओ एइ । वाउदय-पुप्फवद्दल-पागारतियं च अभिप्रोगा ॥ ४४ ।। मणिकणगरयणचित्तं भूमीभागं समंतओ सुरभि । 20 आजोअणंतरेणं करेंति देवा विचित्तं तु ॥ ४५ ॥ वेंटट्ठाई सुरभि जलथलयं दिव्वकुसुमणीहारि । पइरंति समतेण दसद्धवण्णं कुसुमवासं ।। ४६ ।। 2010_04 Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५६ ] [ नियुक्तिसंग्रहः :: (१) आवश्यक नियुक्तिः मणिकणगरयणचित्ते चउदिसि तोरणे विउवंति । सच्छत्त-सालभंजिय-मयरद्धचिध ठाणे ॥४७ ।। तिन्नि य पागारवरे रयणविचित्ते तहिं सुरगणदा। मणिकंचणकविसीसग-विभूसिए ते विउति ॥ ४८ ।। 5 अब्भंतर मज्झ बहिं विमाणजोई भवणाहिवकया उ । पागारा तिणि भवे रयणे कणगे य रयए य ।। ४९ ॥ मणिरयण हेमयाविय कविसीसा सव्वरणिया दारा । सम्वरयणामय च्चिय पडागधय-तोरणविचित्ता ।। ५५० ।। तत्तो य समतेणं कालागरु-कुंदुरुक्कमोसेणं । गंधेण मणहरेणं धूवघडीओ विउति ।। ५१ ।। उक्किट्ठिसीहणायं कलयलसद्देण सव्वओ सव्वं । . तित्थपरपाय मूले करेंति देवा णिवयमाणा ॥ ५२ ॥ चेइदुम-पेढछंदय आसणछत्तं च चामराओ य । जं चऽण्णं करणिज्जं करेंति तं वाणमंतरिया ॥ ५३ ।। 15 साहारणप्रोसरणे एवं जस्थिढिमं तु प्रोसरइ । एक्कु च्चिय तं सव्वं करेइ भयणा उ इयरेसि ।। ५४ ।। सूरोदय पच्छिमाए ओगाहंतीए पुवओऽईइ । दोहिं पउमेहि पाया मग्गेण य होइ सत्तऽन्ने ॥ ५५ ॥ प्रायाहिण पुव्वमुहो तिदिसि पडिरूवगा उ देवकया। 20 जेटुगणी अण्णो वा दाहिणपुग्वे प्रदूरंमि ।। ५६ ।। जे ते देवेहि कया तिदिसि पडिरूवगा जिणवरस्स । तेसिपि तप्पभावा तयाणुरूवं हवइ रूवं ॥५७ ॥ 2010_04 Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १-सामयिकाध्ययनम् :: २-उपोद्घातनियुक्तिः ] [ ५७ तित्थाइसेससंजय देवी वेमाणियाण समणीओ । भवरणवइवाणमंतर जोइसियाणं च देवीमो ॥५८ ॥ केवलिणो तिउण जिणं तित्थपणामं च मग्गओ तस्स । मरणमादीवि णमंता वयंति सट्टाणसट्ठाणं ॥ ५९ ।। 5 भवणवई जोइसिया बोद्धव्वा वाणमंतरसुरा य । वेमाणिया य मणुया पयाहिणं जं च निस्साए ।। ५६० ।। एक्केकीय दिसाए तिगं तिगं होइ सन्निविट्ठतु। आदिचरिमे विमिस्सा थोपुरिसा सेस पत्तेयं ।। ६१ ।। एंतं महिड्डियं पणिवयंति ठियमवि वयंति पणमंता। 10 णावि जंतणा ण विकहा ण परोप्परमच्छरो ण भयं ।। ६२।। बिइयंमि होंति तिरिया तइए पागारमंतरे जाणा। पागारजढे तिरियाऽवि होंति पत्तेय मिस्सा वा ।। ६३ ।। सव्वं च देसविरति सम्म घेच्छति व होति कहणा उ। इहरा अमूढलक्खो न कहेइ भविस्सइ ण तं च ।। ६४ ।। मणुए चउम (हs) प्रणयरं तिरिए तिण्णि व दुवे य पडिवज्जे । जइ नत्थि नियमसो च्चिय सुरेसु सम्मत्तपडिवत्ती ।। ६५ ।। तित्थपणामं काउं कहेइ साहारणेण सद्देणं ।। सवेसि सण्णीणं जोयणणीहारिणा भगवं ।। ६६ ।। तप्पुब्विया अरहया पूइयपूया य विणयकम्मं च । 20 कयकिच्चोऽवि जह कहं कहए णमए तहा तित्थं ।। ६७ ।। जत्थ अपुष्वोसरणं न दिट्टपुव्वं व जेण समणेणं । बारसहिं जोयणेहिं सो एइ प्रणागमे लहुया ।। ६८ ।। 15 2010_04 Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ___५८ ] [ नियुक्तिसंग्रहः :: (१) आवश्यकनियुक्तिः सव्वसुरा जइ रूवं अंगुटुपमाणयं विउव्वेज्जा । जिणपायंगुट्ठ पइ ण सोहए तं हिंगालो ॥६९ ॥ गणहर आहार प्रणुत्तरा (य) जाव वण चक्कि वासु बला। मंडलिया ता हीणा छटाणगया भवे सेसा ।। ५७० ।। 5 संघयण रूव संठाण वण्ण गह सत्त सार उस्सासा । एमाइणुत्तराई हवंति नामोदए तस्स ।। ७१ ।। पगडीणं अण्णासुवि पसत्थ उदया अणुत्तरा होति । खयउवसमेऽवि य तहा खयम्मि अविगप्पमाहंतु ।। ७२ ।। अस्साय-माइयाप्रो जावि य असुहा हवंति पगडीयो। 10 णिबरस-लवोच्व पए ण होंति ता असुहया तस्स ।। ७३ ।। धम्मोदएण रूवं करेंति रूवस्सि-णोऽवि जइ धम्म । गिज्झवओ य सुरूवो पसंसिमो तेण रूवं तु ।। ७४ ।। कालेण असंखेणवि संखातीताण संसईणं तु । मा संसयवोच्छित्ती न होज्ज कमवागरणदोसा ।। ७५ ।। 15 सव्वस्थ अविसमत्तं रिद्धिविसेसो अकालहरणं च । सवण्णुपच्चओऽवि य अचितगुणभूतिम्रो जुगवं ।। ७६ ।। वासोदयस्स व जहा वण्णादी होंति भायणविसेसा। ससिपि सभासा जिणभासा परिणमे एवं ।। ७७ ।। साहारणासवत्ते तदुवओगो उ गाहगगिराए । 20 न य निविज्जइ सोया किढिवाणि- यदासिमाहरणा ।।७।। सव्वाउअंपि सोया खवेज्ज जइ हु सययं जिणो कहए । सोउण्हखुप्पिवासा-परिस्समभए अविगणेतो ।।७६ ।। 2010_04 Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १-सामायिकाध्ययनम् :: २-उपोद्घातनियुक्तिः ] [ ५६ वित्ती उ सुवण्णस्सा बारस अद्धं च सयसहस्साई। तावइयं चिय कोडी पोतोदाणं तु चक्किस्स ।। ५८० ।। एयं चेव पमारणं णवरं रययं तु केसवा दिति । मंडलिआण सहस्सा पोईदाणं सयसहस्सा ।। ८१ ॥ 5 भत्तिविहवाणुरूवं अण्णेऽवि य देंति इन्भमाईया। सोऊण जिणागमणं निउत्तमणि-ओइएसु वा ॥ ८२ ।। देवाणुअत्ति भत्ती पूया थिरकरण सत्तअणुकंपा । साओदय दाणगुणा पभावणा चेव तित्थस्स ॥८३ ।। राया व रायमच्चो तस्सऽसई पउरजणवओ वाऽवि । 10 दुब्बलि-खंडियबलि-छडिय-तंदुलाणाढगं कलमा ।। ८४ ।। भाइयपुणाणियाणं अखंडफुडियाण फलगसरियाणं । कीरइ बली सुरावि य तत्थेव छुहंति गधाई ।। ८५ ।। बलिपविसण-समकालं पुम्वद्दारेण ठाति परिकहणा । तिगुणं पुरओ पाडण तस्सद्धं अवडियं देवा ।। ८६ ॥ 15 अद्ध द्धं अहिवइरगो अवसेसं हवइ पागयजणस्स । सम्बामयप्पसमणी कुप्पा गाण्णो य छम्मासे ॥८७ ॥ खेयविणोप्रो सीसगुणदीवणा पच्चओ उभयओऽवि । सोसायरिय-कमोऽवि य गणहरकहणे गुणा होति ।। ८८ ॥ राम्रोवणीय-सीहासणे निविट्ठो व पायवीढंमि । 20 जिट्ठो अन्नयरो वा गणहारी कहइ बीआए ॥ ८९ ।। संखाईएऽवि भवे साहइ जं वा परो उ पुच्छिज्जा। ण य णं प्रणाइसेसी विआणई एस छउमत्थो ।। ५९० ।। 2010_04 Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६० ] [ नियुक्तिसंग्रहः :: (१) आवश्यकनियुक्ति: तं दिव्वदेवघोसं सोऊणं माणुसा तहि तुट्ठा। अहो जण्णिएणं जट्ठ देवा किर प्रागया इहई ।। ९१ ।। एक्कारसवि गणहरा सवे उण्णयविसाल कुलवंसा। पावाए मज्झिमाए समोसढा जनवाडम्मि । ९२ ।। 5 पढमित्थ इंदभूई बिइओ पुण होइ अग्गिभूइत्ति । तइए य वाउभूई तओ वियत्ते सुहम्मे य ॥ ९३ ॥ मंडियमोरियपुत्ते अकंपिए चेव अयलभाया य । मेयज्जे य पभासे गणहरा होंति वीरस्स ॥ ९४ ।। जं कारण णिक्खमणं वोच्छ एएसि प्राणपुवीए। 10 तित्थं च सुहम्मानो णिरवच्चा गणहरा सेसा ।। ९५ ।। जीवे कम्मे तज्जीव भूय तारिसय बंधमोक्खे य । देवा णेरइए या (य) पुण्णे परलोय णेवाणे ।। ६६ ।। पंचण्हं पंचसया अद्भुट्ठसया य होंति दोण्ह गणा। दोण्हं तु जुयलयाणं तिसओ तिसओ भवे गच्छो ।। ९७ ।। 15 सोऊरण कीरमाणी महिमं देवेहि जिणवरिंदस्स। अह एइ अहम्माणी अमरिसिओ इंदमूहत्ति ॥ १८ ॥ आभट्ठो य जिणेणं जाइजरामरण-विष्पमुक्केणं । णामेण य गोत्तेण य सवण्णू सव्वदरिसीणं ।। ६६ ।। कि मन्नि अस्थि जीवो उआहु नस्थित्ति संसओ तुज्झ । 20 वेयपयाण य अत्थं न याणसी तेसिमो अत्थो ।। ६०० ।। छिण्णमि संसयंमी जिणेण जरमरण-विप्पमुक्केणं । सो समणो पव्वइओ पंचहि सह खंडियसएहिं ।। ६०१ ॥ 2010_04 Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १-सामायिकाध्ययनम् :: २-उपोद्घातनियुक्तिः ] [ ६१ तं पव्वइयं सोउं बितिम्रो आगच्छई अमरिसेणं । बच्चामि ण प्राणेमो पराजिणित्ता ण तं समणं ।। ६०२ ।। आभट्ठो य जिणेणं जाइजरामरणविप्पमुक्केणं । नामेण य गोत्तेण य सवण्ण सव्वदरिसीणं ।। ६०३ ।। 5 कि मण्णे अस्थि कम्म ! उदाहु णस्थित्ति संसओ तुज्झ । वेयपयाणय य अत्थं ण याणसी तेसिमो अस्थो ।। ६०४ ।। छिण्णमि संसयंमी जिणेण जरमरणविप्पमुक्केणं । सो समणो पव्वइपो पंचहि सह खंडियसएहिं ।। ६०५ ।। तं पव्वइए सोउं तइयो प्रागच्छई जिणसगासं। 10 वच्चामि ण वंदामी वंदित्ता पज्जुवासामि ।। ६०६ ॥ प्राभट्ठो य जिणेणं जाइजरामरणविप्पमुक्केणं । नामेण य गोत्तेण य सवण्णू सव्वदरिसीणं ।। ६०७ ।। तज्जीवतस्सरीरंति संसपो णवि य पुच्छसे किंचि । वेयपयाण य अत्थं ण जाणसी तेसिमो अत्थो ।। ६०८ ।। 15 छिण्णमि संसयंमी जिणेण जरमरणविप्पमुक्केणं । सो समणो पन्धइओ पंचहि सह खंडियसएहिं ।। ६०९ ।। ते पव्वइए सोउं विअत्तो आगच्छई जिणसगासं । वच्चामि :ण वंदामी वंदित्ता पज्जुवासामि ।। ६१० ।। प्राभट्टो य जिणेणं जाइजरामरणविप्पमुक्केणं । 20 नामेण य गोत्तेण य सधण्णू सव्वदरिसीणं ॥ ६११ ।। कि मण्णि- पंचभूया अस्थि नस्थित्ति संसपो तुज्झ । वेयपयाण: य अत्थं ण जाणसी तेसिमो प्रत्थो ।। ६१२ ।। 2010_04 Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ नियुक्तिसंग्रहः :: (१) आवश्यकनियुक्तिः छिण्णमि संसयंमी जिणेण जरमरणविप्पमुक्केणं । सो समणो पव्व इम्रो पंचहि सह खंडियसएहि ।। ६१३ ।। ते पव्वइए सोउं सुहमो आगच्छई जिणसगासं । वच्चामि ण वंदामी वंदित्ता पज्जवासामि ।। १४ ।। 5 प्राभट्ठो य जिणेणं जाइजरामरणविप्पमुक्केणं । नामेण य गोत्तेण य सवण्णू सम्वदरिसीणं ।। १५ ॥ कि मण्णि जारिसो इह भवंमि सो तारिसो परभवेऽवि । वेयपयाण य अत्थं ण जाणसी तेसिमो अत्थो ।। १६ ।। छिण्णमि संसयंमी जिणेण जरमरणविप्पमुक्केणं ।। 10 सो समणो पव्वइओ पंचहि सह खंडियसएहिं ।। १७ ।। ते पव्वइए सोउं मंडिओ आगच्छह जिणसगासं । वच्चामि ण वंदामी वंदित्ता पज्जुवासामि ।। १८ ।। आभट्ठो य जिणेणं जाइजरामरणविप्पमुक्केणं । नामेण य गोत्तेण य सवण्णू सवदरिसोणं ।। १९ ॥ 15 कि मन्नि बंधमोक्खा अस्थि ण अस्थित्ति संसपो तुज्झं । वेयपयाण य प्रत्थं ण याणसी तेसिमो प्रत्थो ।। ६२० ।। छिण्णमि संसयंमी जिणेण जरमरणविप्पमुक्केणं । सो समणो पव्वइओ अहिं सह खंडियसएहिं ।। २१ ।। ते पव्वइए सोउ मोरियो पागच्छई जिणसगासं । 20 वच्चामि ण वंदामी वंदित्ता पज्जुवासामि ॥२२ ।। प्राभट्ठो य जिणेणं जाइजरामरणविप्पमुक्केणं । नामेण य गोतंण य सवण्ण सव्वदरिसोणं ॥ २३ ॥ 2010_04 . Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १-सामायिकाध्ययनम् :: २-उपोद्घातनियुक्तिः ] [ ६३ कि मनसि संति देवा उयाहु न संतीति संसपो तुज्झं । वेयपयाण य अत्थं ण याणसी तेसिमो अत्थो ।। २४ ।। छिन्नंमि संसयंमी जिणेण जरमरणविप्पमुक्केणं । सो समणो पव्वइओ प्रधुट्टहिं सह खंडियसएहिं ।। २५ ।। 5 ते पव्वइए सोउं अकंपिनो आगच्छई जिणसगासं । बच्चामि , वंदामी वंदित्ता पज्जुवासामि ॥ २६ ।। आभट्ठो य जिणेणं जाइजरामरणविप्पमुक्केणं । नामेण य गोत्तेण य सवण्णू सव्वदरिसीणं ॥२७ ।। कि मन्ने नेरइया अस्थि न अस्थित्ति संसओ तुज्झं । 10 वेयपयाण य अत्थं ण याणसी तेसिमो प्रत्थो ।॥ २८ ॥ छिन्नंमि संसयंमी जिणेण जरमरणविप्पमुक्केणं । सो समणो पव्वइओ तिहि उ सह खंडियसएहिं ।। २९ ।। ते पव्वइए सोउं अयलभाया आगच्छइ जिरणसगासं । वच्चामि ण वंदामी वंदित्ता पज्जुवासामि ।। ६३० ।। ___आभट्ठो य जिणेणं जाइजरामरणविष्पमुक्केणं । नामेण य गोत्तेण य सव्वण्ण सव्वदरिसीणं ।। ३१ ।। कि मन्नि पुग्णपावं अस्थि न अस्थित्ति संसओ तुझं । वेयपयाण य प्रत्थं ण याणसी तेसिमो अत्थो ।। ३२ ।। छिपण मि संसयंमी जिणेण जरमरणविप्पमुक्केणं । 20 सो समणो पब्वइप्रो तिहि उ सह खंडियसएहिं ।। ३३ ।। ते पच्वइए सोउ मेयज्जो आगच्छइ जिणसगासं । वच्चामि ण वंदामी वंदित्ता पज्जवासामि ॥ ३४ ।। 2010_04 Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ नियुक्तिसंग्रहः :: (१) आवश्यकनियुक्तिः आभट्ठो य जिणेणं जाइजरामरणविष्प-मुक्केणं । नामेण य गोत्तेण य सवण्णू सव्वदरिसोणं ॥३५ ।। कि मण्णे परलोगो अस्थि स्थित्ति संसओ तुझं । वेयपयाण य अत्थं ण याणसी तेसिमो अत्थो ।। ३६ ।। 5 छिण्णमि संसयंमी जिणेण जरमरणविप्पमुक्केणं । सो समणो पन्वइओ तिहि उ सह खंडियसहि ।। ३७ ।।। ते पब्वइए सोउं पभासो आगच्छई जिणसगासं । बच्चामि ण वंदामी वंदित्ता पज्जवासामि ।। ३८ ।। प्राभट्ठो य जिणेणं जाइजरामरणविप्पमुक्केणं । 10 नामेण य गोत्तेण य सवण्णू सव्वदरिसीणं ॥ ३९ ।। कि मण्णे निव्वाणं अस्थि णस्थित्ति संसओ तुझं । वेयपयाण य अत्थं ण याणसि तेसिमो अत्थो ।। ६४० ।। छिण्णंमि संसयंमी जिणेण जरमरणविप्पमुक्केणं । सो समणो पव्वइओ तिहि उ सह खंडियसएहिं । ४१ ॥ 15 खेते काले जम्मे गोत्तमगार छउमत्थपरियाए । केवलिय आउ आगम परिणेवाणे तवे चेव ।। ४२ ।। मगहा गोब्बरगामे जाया तिण्णेव गोयमसगोत्ता। कोल्लागसन्निवेसे जाओ विप्रत्तो सुहम्मो य ।। ४३ ।। मोरीयसन्निवेसे दो भायरो मंडिमोरिया जाया। 20 अयलो य कोसलाए मिहिलाए अकपिओ जाओ ।। ४४ ।। तुगीयसन्निवेसे मेयज्जो वच्छभूमिए जाओ । . भगवंपि य पभासो रायगिहे गणहरो जाओ ।। ४५ ।। 2010_04 Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १-सामायिकाध्ययनम् :: २-उपोद्घातनियुक्तिः ] [ ६५ जेट्ठा कित्तिय साई सवगो हत्थुतरा महामो य ।। रोहिणि उत्तरसाढा मिगसिर तह अस्सिणी पूसो ।। ४६ । वसुभूई धमिते धम्मिल धणदेव मोरिए चेव । देवे वसू य दत्त बले य पियरो गणहराणं ॥४७ ।। 5 पुहवी य वारुणी भद्दिला य विजयदेवा तहा जयंती य । गंदा य वरुणदेवा अइभद्दा य मायरो ॥ ४८ ॥ तिणि य गोयमगोत्ता भारद्दा अग्गिवेसवासिट्टा । कासवगोयम-हारिय कोडिण्णदुगं च गोत्ताई ॥ ४६ ।। पण्णा छायालीसा बायाला होइ पण्ण पण्णा य । 10 तेवण्ण पंचसट्ठी अध्यालीसा य छायाला ।। ६५० ।। छत्तीसा सोलसगं अगारवासो भवे गणहराणं । छउमत्थय परियागं अहक्कम कित्तइस्सामि ।। ५१ ।। तीसा बारस दसगं बारस बापाल चोद्द ( चउद) सदुगं च । नवगं बारस दस अट्ठगं च छउमत्थपरियारो ।। ५२ ।। छउमत्थपरीयागं अगारघासं च वोगसित्ता गं । सव्वागउस्स सेसं जिणपरियागं वियाणाहि ।। ५३ ।। बारस सोलस अट्टारसेव प्रहारसेव अट्ठव । सोलस सोल तहेकवीस चोद्द सोले य सोले य ।। ५४ ।। बाणउई चउहत्तरि सत्तरि तत्तो भवे प्रसोई य । 20 एवं च सयं ततो तेसोई पंचणउई य ।। ५५ ।। अट्टतरि च वासा तत्तो बावरि च वासाइं। बावट्ठी चत्ता खलु सव्वगणहराउयं एवं ॥५६॥ 15 2010_04 Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ नियुक्तिसंग्रहः :: (१) आवश्यक नियुक्तिः सव्वे य माहणा जच्चा, सव्वे अज्झावया विऊ । सव्वे दुवालसंगो य, सम्वे, चोद्दमपुग्विणो ।। ५७ ।। परिणिव्या गणहरा जीवंते णायए णव जणा उ । इंदभूई सुहम्मो य रायगिहे निव्वुए वीरे ।। ५८ ।। 5 मासं पाओवगया सव्वेऽवि य सम्वलद्धिसंपण्णा । वज्जरिसहसंघयणा समचउरंसा य संठाणा ॥ ५६ ।। दब्वे अद्ध अहाउय उवक्कमे देसकालकाले य । तह य पमाणे वण्णे भावे पगयं तु भावेणं ।। ६६० ।। चेयणमचेयणस्स व दव्वस्स ठिइ उ चउवियप्पा । 10 सा होइ दव्वकालो अहवा दवियं तु तं चेव ।। ६१ ।। गइ सिद्धा भवियाया प्रभविय पोग्गल अणागयद्धा य । तीयद्ध तिन्नि काया जीवाजीवदिई चउहा ।। ६२ ।। समयावलिय मुहुत्ता दिवसमहोरत्त पक्ख मासा य । संवच्छर युग पलिया सागर प्रोसप्पि परियट्टा ।। ६३ ॥ 15 नेरइयतिरिय-मणुया-देवाण अहाउयं तु जं जेण । निव्वत्तिय मण्णभवे पार्लेति अहाउकालो सो ।। ६४ ।। दुविहोवक्कमकालो सामायारो प्रहाउयं चेव । सामायारो तिविहा पोहे दसहा पविभागे ॥६५॥ इच्छा मिच्छा तहाकारो, आवसिया य निसीहिया। आपुच्छणा य पडिपुच्छा छंदणा य निमंतणा ।। ६६ ।। उवसंपया य काले, सामायारी भवे दसहा। एएसि तु पयाणं पत्तेय परूवणं वोच्छं ॥६७ ॥ 20 2010_04 Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १-सामयिकाध्ययनम् :: २-उपोद्घातनियुक्ति: ] [ ६७ b जइ अन्मत्थेज्ज परं कारणजाए करेज्ज से कोई । तत्थवि इच्छाकारो न कप्पई बलामिओगो उ ।। ६८ ।। अब्भुवगमंमि नज्जइ प्रब्भत्थेउं ण वट्टइ परो उ। अणिगूहिय-बलविरिएण साहुणा ताव होयत्वं ।। ६६ ।। 5 जइ हुज्ज तस्स अणलो कज्जस्स वियाणती ण वा वाणं । गिलाणाइहि वा हुज्ज वियावडो कारणेहि सो ॥ ६७० ।। राहणियं वज्जेत्ता इच्छाकार करेइ सेसाणं । एयं मज्झं कज्ज तुम्भे उ करेह इच्छाए ।।७१ ।। अहवाऽवि विणासेंतं अन्भत्थेतं च अण्णं दळूणं । 10 अण्णो कोइ भणेज्जा तं साहुँ णिज्जरट्ठीओ ।। ७२ ।। अयं तुम्भं एयं करेमि कज्जं तु इच्छकारेणं । तत्थऽवि सो इच्छं से करेइ मज्जायमूलियं ।। ७३ ।। अहवा सयं करेंतं किंची अण्णस्स वावि दळूणं । तस्सवि करेज्ज इच्छं मज्झंपि इमं करेहित्ति ।। ७४ ।। 15 तत्थवि सो इच्छं से करेइ दीवेइ कारणं वाऽवि । इहरा अणुमहत्थं कायव्वं साहुणो किच्चं ॥ ७५ ।। अहवा जाणाईणं अट्ठाए जइ करेज्ज किच्चाणं । वेयावच्चं किंची तत्थवि तेति भवे इच्छा ।। ७६ ।। प्राणाबलाभियोगो णिग्गंथाणं ण कप्पई काउं । 20 इच्छा पउंजियवा सेहे राईणिए (य) तहा ॥७७ ।। जह जच्चबाहलाणं आसाणं जणवएसु जायाणं । सयमेव खलिणगहणं अहवावि बलाभियोगेणं ॥ ७८ ।। 2010_04 Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६८ ] [ नियुक्तिसंग्रहः :: (१) आवश्यकनियुक्तिः पुरिसज्जाएऽवि तहा विणीयविणयंमि नस्थि अभिप्रोगो। से संमि उ अभिप्रोगो जणवयजाए जहा प्रासे ।। ७६ ।। अब्भत्थणाए मरुप्रो वानरओ चेव होइ दिढतो। गुरुकरणे सयमेव उ वाणियगा दुणि दिढता ।। ६८० ।। 5 संजमजोए प्रभुट्टियस्स सद्धाए काउकामस्स । लामो चेव तवस्सिस्स होइ अद्दीणमणसस्स ॥८१ ।। संजमजोए प्रभुट्टियस्स जं किचि वितहमायरियं । मिच्छा एतंति वियाणिकण मिच्छत्ति कायव्वं ।। ८२ ।। जइ य पडिक्कमियव्वं अवस्स काऊण पाक्यं कम्मं । 10 तं चेव न कायध्वं तो होइ पए पडिक्कतो ।। ८३ ।। जं दुक्कडंति मिच्छा तं भुज्जो कारणं अपूरतो । तिविहेण पडिक्कतो तस्स खलु दुक्कडं मिच्छा !! ८४ ।। जं दुक्कडंति मिच्छा तं चेव निसेवए पुणो पावं । पच्चक्खमुसावाई मायानियडीपसंगो य ।। ८५ ।। 15 मित्ति मिउमद्दवत्ते छत्ति य दोसाण छायणे होइ । मित्ति य मेराए ठिओ दुत्ति दुगंछामि अप्पाणं ॥८६ ।। कत्ति कडं मे पावं डत्ति य डेवेमि तं उसमेणं । एसो मिच्छादुक्कड-पयक्खरत्थो समासेणं ।। ८७ ॥ कप्पाकप्पे परिणिट्टियस्स ठाणेसु पंचसु ठियस्स । 20 संजमतवडगस्स उ अविकप्पेणं तहाकारो ।। ८८ ।। वायणपडिसुरगणाए उवएसे सुत्तअथकहणाए । अवितहमेयंति तहा पडिसुणणाए तहक्कारो ।। ८६ ॥ 2010_04 Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १-सामायिकाध्ययनम् :: २-उपोद्घातनियुक्तिः ] [ ६९ जस्स य इच्छाकारो मिच्छाकारो य परिचिया दोऽवि । तइओ य तहक्कारो न दुल्लभा सोग्गई तस्स ।। ६६० ।। प्रावस्सियं च णितो जं च प्रइंतो निसीहियं कुणइ । एयं इच्छं नाउं गणिवर ! तुब्भंतिए जिउणं ।। ९१ ।। 5 आवस्सियं च णितो जं च अइंतो निसीहियं कुणइ । वंजणमेयं तु दुहा अत्थो पुण होइ सो चेव ।। ९२ ।। एगग्गस्स पसंतस्स न होंति इरियाइया गुणा होति । गंतवमवस्सं कारणमि आवस्सिया होइ ।। ६३ ।। प्रावस्सिया उ आवस्सएहि सवेहि जुत्तजोगिस्स । 10 मणवयणकाय गुत्तिदियस्स प्रावस्सिया होइ ।। ६४ ॥ सेज्जं ठाणं च जहिं चेएइ तहि निसोहिया होइ । जम्हा तत्थ निसिद्धो तेणं तु निसीहिया होइ ।। ६५ ।। सेज्जं ठाणं च जदा चेतेति तया निसोहिया होइ। जम्हा तदा निसेहो निसेहमइया च सा जेणं ।। ९६ ॥ आपुच्छणा उ कज्जे पुवनिसिद्धेण होइ पडिपुच्छा। पुवगहिएण छंदण णिमंतणा होप्रगहिएणं ॥ ९७ ।। उवसंपया य तिविहा णाणे तह दंसणे चरित्ते य । दसणणाणे ति विहा दुविहा य चरित्तट्टाए ।। ९८ ।। वत्तणा संधणा चेव गहणं सुत्तत्थतदुभए । वेयावच्चे खमणे, काले आवकहाइ य ।। ९९ ॥ संदिट्ठो संदिट्ठस्स चेव संपज्जई उ एमाई । च उभंगो एत्थं पुण पढमो भंगो हवइ सुद्धो ॥ ७०० ।। 15 2010_04 Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७० ] [ नियुक्तिसंग्रहः :: (१) आवश्यक नियुक्तिः अथिरस्स पुत्वगहियस्स वत्तणा जं इहं थिरीकरणं । तस्सेव पएसंतर-रणटुस्सऽणुसंधणा घडणा ।। ७०१ ॥ गहणं तप्पढमतया सुत्ते अत्थे य तदुभए चेव । अत्थरगहणंमि पायं एस विही होइ णायवो ।। ७०२ ॥ मज्जणणिसेज्जअखा कितिकमुस्सग्ग बंदणं जेट्ठ। भासंतो होइ जेट्टो नो परियाएण तो वंदे ॥ ७०३ ।। ठाणं पमज्जिऊणं दोणि निसिज्जाउ होंति कायवा । एगा गुरुणो भणिया बितिया पुण होंति अक्खाणं ।। ७०४ ।। दो चेव मत्तगाइं खेले तह काइआए बीयं तु । 10 जावइया य सुणेती सम्वेऽवि य ते तु वदंति ।। ७०५ ।। सत्वे काउस्सग्गं करेंति सम्वे पुणोऽवि वंदति । णासण्णे गाइदूरे गुरुवयण-पडिच्छगा होति ।। ७०६ ।। णिद्दाविगहा-परिवज्जिएहिं गुत्तेहिं पंजलिउडेहि । भत्तिबहुमाणपुव्वं उवउत्तेहिं सुणेयव्वं ॥७०७ ।। 15 अभिकंखतेहिं सुहासियाई वयणाई अत्थसाराई। विम्हियमुहेहिं हरिसागएहिं हरिसं जणंतेहि ।। ७०८ ।। गुरुपरिप्रोसगएणं गुरुभत्तीए तहेव विणएणं । इच्छियसुत्तत्थाणं खिप्पं पारं समुवयंति ॥७०९ ।। वक्खाणसमत्तीए जोगं काऊण काइआईणं । 20 वंदंति तओ जेटु अण्णे पुत्वं चिय भणंति ।। ७१० ॥ चोएति जइ हु जिट्ठो कहिंचि सुत्तत्थ धारणाविगलो। वक्खाण-लद्धिहीणो निरत्थयं वंदणं तंमि ॥ ११ ॥ 2010_04 Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १-सामायिकाध्ययनम् :: २-उपोद्घातनियुक्तिः ] [ ७१ अह वयपरियारहिं लहुगोऽविहु भासओ इहं जेट्ठो। रायणियवंदणे पुण तस्सवि आसायणा भंते ! ॥१२॥ जइवि वयमाइएहि लहुओ सुत्तत्थ-धारणापडुओ। वक्खाणलद्धिमंतो सो चिय इह घेप्पई जेट्टो ।। १३ ॥ 5 आसायणावि णेवं पडुच्च जिणवयणभासयं जम्हा । वंदणयं राइणिए तेण गुणेणंपि सो चेव ॥ १४ ॥ न वओ एत्थ पमाणं न य परियानोऽवि णिच्छयमएणं । ववहारओ उ जुज्जइ उभयनयमयं पुण पमाणं ॥ १५ ॥ निच्छयओ दुन्नेयं को भावे कम्मि वट्टई (ए) समणो? । 1) ववहारओ उ कीरइ जो पुवठिओ चरित्तमि ।। १६ ।। एत्थ उ जिणवयणाओ सुत्तासायण-बहुत्तदोसाओ। भासंतग-जेट्टगस्स उ कायव्वं होइ विइकम्मं ॥१७ ।। दुविहा य चरित्तंमी वेयावच्चे तहेव खमणे य । णियगच्छा अण्णमि य सीयणदोसाइणा होति ॥ १८ ॥ 15 इत्तरियाइविभासा वेयावच्चमि तहेव खमणे य । प्रविगिट्ठ-विगिट्ठमि य गणिणो गच्छस्स पुच्छाए ।। १६ ॥ उवसंपन्नो जं कारणं तु तं कारणं अपूरतो । अहवा समाणियंमी सारणया वा विसग्गो वा ।। ७२० ॥ इतरियं पि न कप्पइ अविदिन्नं खलु परोग्गहाईसु। 20 चिट्टित्तु निसिइत्तु व तइयव्वय-रषखणट्टाए ॥ २१॥ एवं सामायारी कहिया दसहा सामासओ एसा । संजमतवडगाणं निग्गंथाणं महरिसीणं ।। २२ ।। 2010_04 Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७२ ] [ नियुक्तिसंग्रहः :: (१) आवश्यकनियुक्तिः एवं सामायारि जुता चरणकरणमाउत्ता । साहू खवंति कम्मं प्रणेगभव-संचियममगंतं ।। २३ ।। प्रज्भवसाग निमित्त आहारे वेयणा पराघाए । फासे आणापाणु सत्तविहं झि(भि)ज्जए आउं ।। २४ ।। 5 दंडकससत्थरज्ज अम्गी उदगपडणं विसं वाला । सीउण्हं अरइ भयं खुहा पिवासा य वाही य ।। २५ ।। मुत्तपुरोसनिरोहे जिण्णाजिण्णे य भोयणे बहुसो। घंसणघोलणपीलण आउस्स उवक्कमा एए ॥२६ ।। नधूमगं च गामं महिलाथूमं च षणयं दद्रु । 10 णीयं च कागा अोलेंति जाया भिक्खस्स हरहरा ।। २७ ।। निम्मच्छियं महुँ पायडो गिही खज्जगावणो सुण्णो । जायंगणे पसुत्ता पउत्थवइया य मत्ता य ।। २८ ।। कालेण कओ कालो अम्हं सज्झायदेसकालंमि । तो तेण हो कालो अकालकालं करतेणं ।। २६ ।। 15 दुविहो पमाणकालो दिवसपमाणं च होइ राई । चउपोरिसिओ दिवसो राती चउपोरिसी चेव ।। ३० ।। पंचण्हं वण्णाणं जो खलु वण्णेण कालओ वण्णो । सो होइ वण्णकालो वणिज्जइ जो व जं कालं ॥ ३१ ।। सादीस-पज्जवसिओ चउभंग विभागभावणा एत्थं । 20 ओदइयादीयाणं तं जाणसु भावकालं तु ।। ३२ ।। एत्थं पुण अहिगारो पमाणकालेण होइ नायव्वो। खेतमि कमि काले विभासियं जिणरिदेणे ? ॥ ३३ ।। 2010_04 Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १-सामायिकाध्ययनम् :: २-उपोद्घातनियुक्तिः ] [ ७३ वइसाहसुद्ध-एक्कारसीए पुव्वण्हदेसकालंमि । महसेण-वणुज्जाणे अणंतरं परंपरं सेसं ।। ३४ ।। खइयंमि वट्टमाणस्स निग्गयं भगवओ जिणिदस्स । भावे खओवसमियंमि वट्टमाणेहिं तं गहियं ॥ ३५ ॥ 5 दव्वाभिलाचिधे वेए धम्मस्थभोगभावे य । भावपुरिसो उ जीवो भावे पगयं तु भावेणं ।। ३६ ॥ णिक्खेवो कारणंमी च उविहो दुविह होइ दध्वंमि । तहवमण्णदग्वे अहवावि णिमित्तने मित्ती ॥३७ ।। समवाई असमवाई छविह कत्ता य कम्म करणं च । 10 तत्तो य संपयाणापयाण तह संनिहाणे य ।। ३८ ॥ दुविहं च होइ भावे अपसत्थ पसत्थगं च अपसत्थं । संसारस्सेगविहं दुविहं तिविहं च नायव्वं ।। ३९ ।। अस्संजमो य एक्को अण्णाणं अविरई य दुविहं तु । अण्णाणं मिच्छतं च अविरती चेव तिविहं तु ।। ७४० ॥ होइ पसत्थं मोक्खस्स कारणं एगदुविहतिविहं वा । तं चेव य विवरीयं अहिगारो पसत्थएणेत्थं ।। ४१ ।। तित्थयरो कि कारण भासह सामाइयं तु प्रज्झयणं? । तित्थयरणामगोत्तं कम्मं मे वेइयव्वति ॥ ४२ ।। तं च कहं वेइज्जइ ? अगिलाए धम्मदेसणाईहि । 20 बज्झइ तं तु भगनो तइयभवोसक्कहत्ताणं ।। ४३ ।। णियमा मणुयगईए इत्थी पुरिसेयरोव्व सुहलेसो। आसे वियबहुलेहिं वीसाए अण्णयरएहि ॥ ४४ ॥ 15 2010_04 Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७४ ] [ नियुक्तिसंग्रहः :: (१) आवश्यकनियुक्तिः गोयमाई सामाइयं तु कि कारणं निसामिति ? । णाणस्स तं तु सुन्दरमंगुलभावाण उवलद्धी ।। ४५ ॥ होइ पवित्तिनिवित्ती संजमतवपाव-कम्मप्रगहणं। कम्मविवेगो य तहा कारणमसरीरया चेव ॥४६ ।। कम्मविवेगो असरीरया य असरीरया अणावाहा । होअणबाहनिमित्तं अवेयणमणाउलो निरुओ ।। ४७ ।। नीरुयत्ताए प्रयलो अयलत्ताए य सासओ होइ । सासयभाव-मुवगतो अव्वाबाहं सुहं लहइ ॥ ४८ ।। पच्चय-णिक्खेवो खलु दव्वंमी तत्तमासगाइओ । 10 भावंमि ओहिमाई तिविहो पगयं तु भावेणं ।। ४९ ।। केवलणाणित्ति अहं अरिहा सामाइयं परिकहेइ । तेसिपि पच्चो खलु सम्वण्ण तो निसामिति ।। ७५० ।। नाम ठवणा दविए सरिसे सामण्णलक्खणागारे । गइरागइ णाणत्ती निमित्त उपाय विगमे य ॥ ५१ ।। 15 वीरियभावे य तहा लक्खणमेयं समासओ भणियं । अहवावि भावलक्खण चउविहं सद्दइणमाई ।। ५२ ।। सद्दहण जाणणा खलु विरती मीसा य लक्खणं कहए। तेऽवि णिसामिति तहा चउलक्खणसंजुयं चेव ।। ५३ ।। णेगमसंगह-ववहार-उज्जुसुए चेव होइ बोद्धन्वे । 20 सद्दे य समभिरूढे एवंभूए य मूलणया ।। ५४ ।। णेगेहि माणेहि मिण इत्ती गमस्स गेरुत्ती । सेसाणंपि णयाणं लक्खणमिणमो सुमेह वोच्छं ।। ५५ ॥ 2010_04 Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १-सामायिकाध्ययनम् :: २-उपोद्घात नियुक्तिः ] ( ७५ संगहियपिडियत्थं संगहवयणं समासो बिति । वच्चई विणिच्छियत्थं ववहारो सम्वदन्वेसु ।। ५६ ।। पच्चुप्पण्णग्गाही उज्जुसुमो नयविही मुणेयव्यो । इच्छइ विसेसियतरं पच्चुप्पण्णं णओ सहो ॥ ५७ ।। 5 वत्थूलो संकमणं होइ अवस्थू गए समभिरूढे । वंजणमत्थतदुभयं एवंभूतो विसे सेइ ॥५८ ।। एवकेक्को य सयविहो सत्त जयसया हवंति एमेव । अण्णोवि य आएसो पंचेव सया नयाणं तु ।। ५६ ।। एएहिं दिट्टिवाए परूवरणा सुत्तअत्थकहणा य । 10 इह पुण अणब्भुवगमो अहिगारो तिहि उ ओसन्नं ।।७६०।। पत्थि गएहि विहूणं सुत्तं प्रत्थो य जिरणमए किचि । आसज्ज उ सोयारं गए णयविसारओ बूया ।। ६१ ।। मूढन इयं सुयं कालियं तु ण णया समोयरंति इहं । अपुहुत्ते समोयारो नत्थि पुहुत्ते समोयारो ॥ ६२ ।। 15 जावंति प्रज्जवइरा अपुहुत्तं कालियाणुओगस्स । तेणारेण पुहुत्तं कालियसुय दिटिवाए य ।। ६३ ।। तुबवणसंनिवेसाओ निग्गयं पिउसगासमल्लीणं । छम्मासियं छसु जयं माऊयसमन्नियं वंदे ॥ ६४ ।। जो गुज्झएहि बालो णिमंतिओ भोयणेण वासंते । 20 मेच्छइ विणीयविणओ तं वइररिसि णमंसामि ।। ६५ ।। उज्जेणीए जो जंभगेहि आणविखऊण थुयमहिओ । अक्खीणमहाणसियं सीहगिरिपसंसियं वंदे ॥६६ ।। 2010_04 Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७६ ] [ नियुक्तिसंग्रहः :: (१) आवश्यकनियुक्तिः जस्स अणुनाए वायगत्तणे दसपुरंमि नयरंमि । देवेहि कया महिमा पयाणुसारि नमसामि ॥ ६७ ।। जो कन्नाइ धणे य निमंतिओ जुम्वर्णमि गिहवाणा । नयरंमि कुसुमनामे तं वइररिसिं नमसामि ॥ ६८ ।। 5 जेणुद्धरिया विज्जा प्रागासगमा महापरिनाओ। वंदामि अज्जवइरं अपच्छिमो जो सुअहराणं ।। ६९ ॥ भणइ अ पाहिडिज्जा जंबुद्दीवं इमाइ विज्जाए। गंतु च माणुसनगं विज्जाए एस मे विसरो ।। ७७० ।। भणइ अ धारेअव्वा न हु दायव्या इमा मए विज्जा। 10 अपिडिया उ मणुमा होहिंति अमो परं अन्ने ।। ७१ ।। माहेसरीउ सेसा पुरिअं नीआ हुआसणगिहाम्रो । गयणयलमइवइत्ता वइरेण महाणुभागेण ॥७२।। अपुहुत्ते अणुओगो चत्तारि दुवार भासई एगो। पुहुत्ताणुप्रोगकरणे ते अत्थ तओ उ वुच्छिन्ना ।। ७३ ।। 15 देविदवंदिएहि महाणुभागेहि रक्खि प्रज्जेहिं । जुगमासज्ज विभत्तो अणुप्रोगो तो कओ चउहा ।। ७४ ।। माया य रुद्दसोमा पिआ य नामेण सोमदेवृत्ति। भाया य फग्गुरक्खिन तोसलिपुत्ता य आयरिया ।। ७५ ।। निज्जवण भद्दगुत्ते वीसु पढणं च तस्स पुष्वगयं । 20 पव्वाविओ य भाया रविखनखमणेहि जणो अ ।। ७६ ।। जं च महाकप्पसुयं जाणि य सेसाणि छेयसुत्ताणि । चरणकरणाणुप्रोगोत्ति कालियत्थे उवगयाइं ॥ ७७ ।। 2010_04 Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १-सामायिकाध्ययनम् :: २-उपोद्घातनियुक्तिः ] [ ७७ बहुरय पएस प्रव्वत्तसमुच्छादुगतिग-प्रबद्धिया चेव । सत्तेए णिहगा खलु तित्थंमि उ बद्धमाणस्स ।। ७८ ॥ बहुरय जमालिपभवा जीवपएसा य तीसगुत्ताओ। अन्वत्ताऽऽसाढाओ सामुच्छेयाऽऽसमित्तानो ॥ ७९ ॥ गंगाप्रो दोकिरिया छलुगा तेरासियाण उप्पत्ती। थेराय गोटुमाहिल पुट्ठमबद्धं पहविति ॥ ७८० ॥ सावत्थी उसमपुर सेयविया मिहिल उल्लुगातीरं । पुरिमंतरंजि दसपुर रहवीरपुरं च नगराई ॥८१ ॥ चोद्दस सोलस वासा चोद्दसवीसुत्तरा य दोणि सया । 10 अट्ठावीसा य दुवे पंचेव सया उ चोयाला ।। ८२ ।। पंच सया चुलसीया छच्चेव सया णवोत्तरा होति । णाणुपत्तीय दुवे उप्पण्णा णिम्वुए सेसा ।। ८३ ।। एवं एए कहिया प्रोसप्पिणीए उ निण्हवा सत्त । वीरधरस्स पवयणे सेसाणं पव्वयणे रणस्थि ।। ८४ ।। 15 मोत्तूणमेसिमिक्कं सेसाणं जावजीविया विट्ठी । एक्केक्कस्स य एत्तो दो दो दोसा मुणेयव्वा ।। ८५।। सत्तेया दिट्ठीओ जाइजरामरणगब्भवसहीणं । मूलं संसारस्स उ भवंति निग्गंथरूवेणं ।। ८६ ।। पवयणनीहूयाणं जं तेसि कारियं जहिं जत्थ । 20 भज्जं परिहरणाए मूले तह उत्तरगुणे य ।। ८७ ॥ मिच्छादिट्ठीयाणं जं तेसि कारियं हि जत्थ । सम्वपि तयं सुद्धं मूले तह उत्तरगुणे य ॥८८ ॥ 2010_04 Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ निर्युक्तिसंग्रह: :: (१) आवश्यक निर्युक्तिः तवसंजमो प्रणुमओ निग्गंथं पवयणं च ववहारो । सदुज्जुसुयाणं पुण निव्वाणं संजमो चेव ।। ८९ ।। आया खलु सामाइयं पच्चक्खायंतश्री हवइ प्राया । तं खलु पच्चक्खाणं आवाए सम्बबव्वाणं ।। ७० ।। 5 पढमंमि सव्वजीवा बिइए चरिमे य सव्वदव्वाई | सेसा महव्वया खलु तदेवकदेसेण दव्वाणं ।। ६१ ।। जीवो गुणपडिवो णयस्स दव्वद्वियस्स सामइयं । सो चेव पज्जवणयट्ठियस्स जीवस्स एस गुणो ।। ९२ ।। उप्पज्जेति वयंति य परिणमंति य गुणा न दव्वाइं । ७८ } दव्यपभवा यं गुणा ण गुणप्पभबाई दव्वाई ।। ६२ ।। जं जं जे जे भावे परिणमइ पओगवीससा दव्वं । तं तह जाणाइ जिणो अपज्जवे जाणणा नत्थि ।। ९४ ।। जं जं जे जे भावे परिणमइ पओगवीससा दव्वं । तं तह जाणाइ जिणो अपज्जवे जाणणा नत्थि ।। ९५ ।। 15 सामाइयं च तिविहं सम्मत्त सुयं तहा चरितं च । 11:30 11 दुविहं चेव चरितं अगारमणगारियं चेव ।। ९६ ।। जस्स सामाणिश्रो अप्पा, संजमे नियमे तवे । तस्स सामाइयं होइ, इइ केवलिभासियं जो समो सव्वभूएसु तसेसु थागरेसु य 20 तस्स सामाइयं होइ इइ केवलिया सियं 11 25 11 सावज्जजोगपरिवज्जणट्टा सामाइयं केवलियं पसत्थं । गिहत्थवम्मा परमंति णच्चा कुज्जा बुहो आय हियं परत्थं । ९९| 10 2010_04 Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १-सामायिकाध्ययनम् :: २-उपोद्घातनियुक्तिः ] [ ७९ सव्वंति भाणिऊणं विरई खलु जस्स सब्विया णस्थि । सो सवाविरइवाई चुक्कइ देसं च सव्वं च ।। ८०० ।। ( करेमि भंते ! सामाइअ सावज्ज जोगं पच्चक्खामि दुविहं तिविहेणं जाव निअमं पज्जुवासामि) 5 सामाइयंमि उ कए समणो इव सावनो हवइ जम्हा । एएणं कारणेणं बहुसो सामाइयं कुज्जा ।। ८०१ ।। जीवो पमायबहुलो बहुसोऽवि अ बहुविहेसु अत्थेसु। एएण कारणेणं बहुसो सामाइयं कुज्जा ।। ८०२ ।। जो णवि वट्टइ रागे णवि दोसे दोण्ह मज्झयारंमि । 10 सो होइ उ मज्झत्थो सेसा सवे अमज्झत्था ॥ ८०३ ।। खेत्तदिसाकालगइ भवियसणि ऊसासदिट्ठिमाहारे । पज्जत्तसुत्तजम्मट्टितिवेयसण्णाकसायाऊ ॥८०४ ।। णाणे जोगुवओगे सरीरसंठाणसंघयणमाणे । लेसा परिणामे वेयणा समुग्घाय कम्मे य ।। ८०५ ।। 15 णिवेढणमुवट्ट मासवकरणे तहा अलंकारे । सयणासणठाणत्थे चंकम्मते य कि कहियं ।। ८०६ ॥ सम्मसुआणं लंभो उड्ड च अहे अतिरिअलोए अ। विरई मगुस्सलोए विरयाविरई य तिरिएसु ॥८०७ ।। पुवपडिवनगा पुण तीसुवि लोएसु तिअमओ तिण्हं । 20 चरणस्स दोसु निममा भयणिज्जा उड्डलोगंमि ॥ ८०८ ।। नामं ठवणा दविए खेत्तदिसा ताक्खेत्त पन्नवए। सत्तमिया भावदिसा सा होअट्ठारसविहा उ ।। ८०९।। 2010_04 Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८० ] [ नियुक्तिसंग्रह: : : ( १ ) आवश्यक निर्युक्तिः पुव्वाईआसु महादिसासु पडिवज्जमाणओ होइ । पुव्वपडिबलओ पुण अन्नयरीए दिसाए उ ।। ८१० ।। संमत्तस्स सुयहस य पडिवत्ती छव्विहंमि कालंमि । विरइं विरयाविरइं पडिवज्जइ दोसु तिसु वावि ।। ११ ।। 5 चउसुवि गतीसु णियमा सम्मतसुयस्स होइ पडिवत्ती । मणुएसु होइ विरती विश्याविरई य तिरिए ।। १२ ।। भवसिद्धिओ उ जीवी पडिवज्जइ सो चउण्हमण्णयरं । पडिसेहो पुण असण्णमीसए सब्णि पडिवज्जे ।। ५३ ।। ऊसासग णीसासग मीसग पडिसेह दुविह पडिवण्णो । 10 दिट्ठीइ दो गया खलु ववहारो निच्छओ चेव ।। १४ । श्राहारओ उ जीवो पडिवज्जइ सो चउण्हमण्णयरं । एमेव य पज्जत्तो सम्मत्तसुए सिया इयरो ।। १५ ।। रिगद्दाए भावओऽवि य जागरमाणो चउण्हमण्णयरं । अंडयपोयजराज्य तिग तिग चउरो भवे कमसो ।। १६ । 15 उक्को सयद्वितीए पडिवज्जंते य णत्थि पडिवण्णो । अजहष्णमणुक्कोसे पडिवज्जंते य पडिवण्णे ।। १७ ।। चउरोऽवि तिविहवेदे चउसुवि सण्णासु होइ पडिवत्ती । हेट्ठा जहा फसाएसु वण्णियं तह य इहपि ।। १८ ।। संखिज्जाऊ चउरो भयणा सम्मसुयऽसंखवासीणं । 20 प्रोहेण विभागेण य नाणी पडिवज्जइ चउरो ।। १९ ॥ चउरोऽवि तिविजोगे उबओगदुर्गामि चउर पडिवज्जे । श्रोरालिए चउक्कं सम्मस्य विजव्विए भयणा ।। ८२० ।। 2010_04 Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १-सामायिकाध्ययनम् :: २-उपोद्घातनियुक्तिः ] [ ८१ सम्वेसुवि संठाणेसु लहइ एमेव सव्वसंघयणे । उक्कोसजहण्णं वज्जिऊण माणं लहे मणुओ ॥ २१ ॥ सम्मत्तसुयं सव्वासु लहइ सुद्धासु तीसु य चरित्तं । पुवपडिवण्णगो पुण अण्णयरीए उ. लेसाए ॥ २२ ॥ वडते परिणाम पडिवज्जइ सो चउण्हमण्णयरं। एवमेवऽवट्टियंमिवि हायंति न किंचि पडिवज्जे ॥ २३ ॥ दुविहाए वेयणाए पडिवज्जइ सो चउण्हमण्णयरं । असमोहओऽवि एमेव पुवडिवण्णए भयणा ॥२४ ।। दरवेण या भावेण य निविड्डतो चउण्हमण्यरं। 10 नरएस अणुध्व? दुगं चउक्कं सिद्ध या उ उवट्ट ।। २५ ।। तिरिएसु अणुव्वट्ट तिगं चउक्कं सिया उ उध्वट्ट। मणुएस अणुव्वट्ट चउरो ति दुगं तु उब्वट्ट ।। २६ ।। देवेसु अणुव्वट्टे दुगं चउक्कं सिया उ उबट्ट । उब्वट्टमाणओ पुण सव्वोऽवि न किचि पडिवज्जे ।। २७ ।। 15 णीसवमाणो जीवो पडिवज्जइ सो चउण्हमण्णयरं । पुवपडिवण्णओ पुण सिय आसवओ व णीसवप्रो ।। २८ ।। उम्मुक्कमणुम्मुक्के उम्मचंते य केसलंकारे । पडिवज्जेज्जऽन्नयरं सयणाईसुंपि एमेव ॥ २६ ॥ सव्वगयं सम्मत्तं सुए चरित्ते रण पज्जवा सव्वे । 20 देसविरई पडुच्चा दोण्हवि पडिसेहणं कुज्जा ।। ३० ॥ माणुस्स खेत जाई कुलरुवारोग्गमाउयं बुद्धि । सवणोगह सद्धा संजमो लोगंमि दुलहाई ।। ३१ ॥ 2010_04 Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८२ ] [ नियुक्तिसंग्रहः :: (१) आवश्यकनियुक्तिः इंदियलद्धी निव्वत्तणा य पज्जति निरुवहयखेमं । धायारोग्गं सद्धा गाहगउवओग अट्ठो य ।।१।। ( अन्यदीया) चोल्लग पासग घण्णे जूए रयणे य सुमिण चक्के य । चम्मजुगे परमाणू दस दिट्ठता मणुयलंभे ॥ ३२ ।। पुवंते होज्ज जुगं अवरंते तस्स होज्ज समिला उ। जुगछिड्डेमि पवेसो इय संसइओ मणुयलंभो ॥ ३३ ॥ जह समिला पन्भट्ठा सागरसलिले अणोरपारंमि । पविसेज्ज जुग्गछिड्डु कहवि भमंती ममंतंमि ।। ३४ ।। सा चंडवायवीचीपणुल्लिया अवि लभेज्ज युगछिड्ड। 10 ग य माणुसाउ भट्ठो जीवो पडिमाणसं लहइ ॥ ३५ ॥ इय दुल्लहलंभं माणुसत्तणं पाविऊण जो जोवो। ण कुणइ पारत्तहियं सो सोयइ संकमणकाले ।। ३६ ।। जइ वारिमझिछूढोव्व गवरो मच्छ उव्व गलगहिओ । वग्गुरपडिउव्व मओ संवट्टइओ जह व पक्खी ।। ३७ ।। 15 सो सोयइ मच्चुजरा-समोच्छुओ तुरियणिद्दपक्खित्तो । तायारमविदंतो कम्मभरपणोल्लियो जीवो ॥३८ ।। काऊणमणेगाई जम्ममरण-परियट्टणसयाई । दुक्खेण माणुसत्तं जइ लहइ जहिच्छया जीवो ।। ३९ ।। तं तह दुल्लहलंभं विज्जुलयाचंचलं माणुसत्तं । लक्षूण जो पमायइ सो कापुरिसो न सप्पुरिसो ।। ८४० ।। पालस्स मोहऽवण्णा थंभा कोहा पमाय किवणत्ता। भयसोगा अण्णाणा वक्खेव कुतूहला रमणा ।। ४१ ।। 2010_04 Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १-सामायिकाध्ययनम् :: २-उपोद्घातनियुक्तिः] [ ८३ एतेहिं कारणेहिं लक्ष्ण सुदुल्लहपि माणुस् । ण लहइ सुति हियरि संसारुत्तारणि जीवो ॥४२ ।। जाणाऽऽवरणपहरणे जुद्धे कुसलत्तणं च णीती य।। दक्खत्तं ववसाओ सरोरमारोग्गया चेव ।।४३ ।। 5 दिट्ठ सुएऽणुभूए कम्माण खए कए उसमे अ। मणवयणकायजोगे अ पसत्थे लब्भए बोही ॥४४ ।। अणुकंपऽकामणिज्जर बालतवे दाणविणयविभंगे। संयोगविप्पओगे वसणूसवइड्डि सक्कारे ॥४५ ।। वेज्जे . मेंठे तह इंदणाग कय उण्ण पुप्फसालसुए। 10 सिवदुमहुरवणिभाउय आहीर-दसण्णिलापुत्ते ।।४६ ।। सो वाणरजूहवती कंतारे सुविहियाणुकंपाए । भासुरवरबोंदिधरो देवो वेमाणिओ जाओ ॥ ४७ ।। अब्भुट्ठाणं विगए परक्कमे साहुसेवणाए य।। सम्मदंसणलभो विरयाविरईइ विरईए ॥४८॥ सम्मत्तस्स सुयस्स य छावट्ठी सागरोवमाई ठिई। सेसाण पुवकोडी देसूणा होइ उक्कोसा ॥४६ ।। सम्मत्तदेसविरया पलियस्स असंखभागमेत्ता उ ।। सेढीअसंखभागो सए सहस्सग्गसो विरई ॥८५० ।। सम्मत्तदेसविरया पडिवना संपई असंखेज्जा। संखेज्जा य चरित्ते तीसुवि पडिया अणंतगुणा ॥ ५१ ॥ सुयपडिवण्णा संपइ पयरस्स असंखभागमेत्ता उ । सेसा संसारत्था सुयपरिवडिया हु ते सव्वे ॥ ५२ ॥ 20 2010_04 Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८४ ] [ नियुक्तिसंग्रह: :: ( १ ) आवश्यक नियुक्ति: कालमणतं च सुए अद्धापरियट्टओ उ देसूणो । श्रीसायणबहुलारणं उक्कोसं अंतरं होई ॥। ५३ ।। सम्म सुयअगारीणं आवलियनसंखभागमेत्ता उ 1 अट्टममया चरिते सव्वेसु जहन्न दो समय ।। ५४ ।। 5 मुयसम्म सत्तयं खलु विरयाविरईय बारसगं । विरईए पन्नरसगं विरहियकालो अहोरता ॥ ५५ ॥ सम्मत्तदेसविरई पलियस्स असंखभागमेत्ताओ । अट्ठभवा उ चरिते श्रणंतकालं च सुयसमए ।। ५६ ।। तिन्ह सहस्सपुहुत्तं सयप्पुहुत्त च होइ विरईए । 10 एगभवे आगरिसा एवतिया होंति नायव्वा ।। ५७ ।। तिन्ह सहस्समसंखा सहसपुहुत्तं च होइ विरइए । णाणभवे आगरिया एवइया होंति णायव्वा ।। ५८ ।। सम्मत्तचरणसहिया सव्वं लोगं फुसे णिरवसेसं । सत्त य चोट्सभागे पंच य सुयदेसविरइए ।। ५६ ।। 15 सव्वजोवेहि सुयं सम्मचरित्ताइं सव्वसिद्धेहि । 3 भागेहि असंखेज्जेहि फासिया देसविरईप्रो ।। ६६० ॥ सम्मद्दिट्टि ' प्रमोहोर सोही उ सबभाव दंसणं बोही । श्रविवज्जओ सुदिद्वित्ति एवमाई निरुताई ।। ६१ ।। अक्खर सन्नी संमं सादियं खलु सपज्जवसियं च । 20 गमियं अंगपविट्ठ सत्तवि एए सपंडिवक्खा विरयाविरई' संवुडमसंवुडे' बालपंडिए चेव । देसेवकदेस विरई ४ प्रणुधम्मो' अगारधम्मो य ।। ६३ ।। ।। ६२ ।। 3 ७ 2010_04 Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १-सामायिकाध्ययनम् :: २-उपोद्घातनियुक्तिः ] [ ८५ सामाइयं' समइयं सम्मावाओ समास संखेवो । अणवज्जं च परिणा' पच्चखाणे य ते अट्ठ ।। ६४ ।। दमदते' मेयज्जे कालयपुच्छा चिलाय प्रत्तेय' । धम्मरुइ इला तेयलि सामाइए अठ्ठदाहरणा ।। ६५ ।। 5 वंदिज्जमाणा न समुक्कसंति होलिज्जसाणा न समुज्जलंति । दंतेण चित्तेण चरंति धीरा मुणी समुग्धाइयरागदोसा ।।६६।। तो समणो जइ सुमणो भावेण य जइ ण होइ पावमयो । सयणे य जणे य समो समो य माणावमाणेसु।। ६७ ।। स्थि य से कोइ वेसो पियो व सम्वेसु चेव जोवेसु । 10 एएण होइ समणो एसो अण्णो वि पज्जाओ ।। ६० ॥ जो कोंचगावराहे पाणिदया कोंचगं तु णाइक्खे । जीवियमणपेहतं मेयज्जरिसिं णमंसामि ॥ ६९ ।। निप्फेडियाणि दोण्णिवि सोसावेढेण जस्स अच्छीणि । न य संजमाउ चलिओ मेयज्जो मंदरगिरिव ।। ८७० ।। 15 दत्तेण पुच्छिओ जो जण्णफलं कालो तुरुमिरणीए । समयाए पाहिएणं संमं वुइयं भदंतेणं ।। ७१ ।। जो तिहि पएहि सम्मं समभिगओ संजमं समारूढो। उवसमविवेयसंवर चिलायपुत् णमंसामि ॥७२ ।। अहिसरिया पाएहिं सोणियगंधेण जस कीडीयो। 20 खायंति उत्तमंगं तं दुक्करकारयं वंदे ।। ७३ ।। धीरो चिलायपुत्तो मूयइंगलियाहिं चालिणिव्व कओ । सो तहवि खज्जमाणो पडिवण्णो उत्तमं अटुं ॥७४ ।। 2010_04 Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८६ ) । नियुक्तिसंग्रहः :: (१) आवश्यकनियुक्तिः अड्डाइज्जेहिं राइदिएहिं पत्तं चिलाइपुत्तेणं । देविदामरभवणं अच्छरगणसंकुलं रम्मं ॥ ७५ ॥ सयसाइस्सा गंथा सहस्स पंच य दिवड्डमेगं च । ठविया एगसिलोए संखेवो एस गायव्यो ।। ७६ ॥ 5 सोऊण प्रणाउट्टि अणभीओ वज्जिऊण अणगं तु । अणवज्जयं उवगओ धम्मरुई णाम अणगारो ॥७७ ।। परिजाणिऊण जीवे अजीवे जाणणापरिणाए । सावज्जजोगकरणं परिजाणइ सो इलापुत्तो ।। ७८ ।। पच्चक्खे दठूणं जीवाजीवे च पुण्णपावं च । 10 पच्चक्खाया जोगा सावज्जा तेतलिसुएणं ॥ ८७ ।। ॥ इति उपोद्घातनियुक्तिः ॥२॥ 2010_04 Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १-सामयिकाध्ययनम् :: ३-अथ नमस्कारनियुक्तिः ] [ ८७ 10 ॥ ३ ॥ अथ नमस्कार नियुक्तिः ॥ अप्पगंथमहत्थं बत्तीसदोसविरहियं जं च । लक्खणजुत्तं सुत्तं अटुहि य गुणेहि उववेयं ॥८८० ।। अलियमुवघायजणयं निरत्थयमवत्थयं छलं दुहिलं । 5 निस्सारमधियमूणं पुणरुतं वाहयमजुत्तं ॥८१॥ कमभिण्णवयणभिण्णं विभत्तिभिन्नं च लिंगभिन्नं च । अणमिहियमपयमेव य सभावहीणं ववहियं च ।। ८२ ।। कालजतिच्छविदोसा समयविरुद्धं च वयणमित्तं च । अत्थावत्तीदोसो य होइ असमासदोसो य ।। ८३ ।। उवमारूवगदोसाऽनिद्देसपदस्थसंधिदोसो य । एए उ सुत्तदोसा बत्तीसं होंति णायवा ॥८४ ।। निद्दोसं सारवन्तं च हेउजुत्तमलंकियं । उवणीयं सोवयारं च मियं महुरमेव य ॥८५ ।। अप्पक्खरमसंदिद्धं सारवं विस्सओमुहं ।। अत्थोभमणवज्जं च सुत्तं सवण्णुभासियं ॥ ८६ ।। उप्पत्ती' निक्लेवो' पयं पयत्थो परूवणा' वत्थु । अक्खेव पसिद्धि कमो "पओयणफलं' नमोक्कारो ।८७। उप्पन्नाऽणुप्पन्नो इत्थ नयाऽऽइनि (या ने) गमस्सऽणुप्पन्नो। सेसाणं उत्पन्नो जइ कत्तो?, तिविहसामित्ता ।। ८८ ॥ 20 समुट्ठाण-वायणालद्धिओ य पढमे नयत्तिए तिविहं । उज्जुसुय पढमवज्ज सेसनया लद्धिमिच्छति ॥ ८६ । 15 2010_04 Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८८ ] [ नियुक्तिसंग्रहः :: (१) आवश्यक नियुक्ति! निन्हाइ दव्व भावोवउत्तु जं कुज्ज संमदिट्ठी उ । नेवाइयं पयं दव्वभाव-संकोयणपयत्थो ।। ८९० ।। दुविहा परूवणा छप्पया य नवहा य छप्पयाइणमो। कि कस्स केण व कहि किच्चिरं काविहो व भवे ।। ६१ ॥ 5 किं ? जीवो तप्परिणो पुव्वपडिवन्नग्रो उ जीवाणं । जीवस्स व जीवाण व पडुच्च पडिवज्जमाणं तु ॥ २ ॥ नाणावरणिजस्स य दंसणमोहस्स तह खओवप्तमे । जीवमजीवे अट्ठसु भंगेसु उ होइ . सव्वत्थ ।। ९३ ॥ उवओग पडुच्चंतोमुहुत्त लद्धोइ होइ उ जहन्नो । 10 उक्कोसठिइ छावट्टि सागराऽरिहाइ पंचविहो ।। ६४ ।। संतपयपरूवणया' दवपमाणं च खित फुसणा- य । कालो५ अ अंतरं भाग भावे' अप्पाबहूं' चेव ॥ ९५ ।। संतपयं पडिवन्ने पडिवज्जते य मागणं गइसु । इंदियं' काए' वेए जोए अ५कसायलेसासु ।। ९६ ।। सम्मत्त नाण सण संजय उवप्रोगप्रो" अाहारे १२ भासग' परित्त'४ पज्जत्त'५ सुहमे ६ सन्नी१७ अ भव' चरमे 11 ६७ ॥ पलिप्रासंखिज्जइमे पडिवन्नो हुज्ज खित्तलोगस्स । सत्तसु चउदसभागेसु हुज्ज फुसणावि एमेव ।। ६८ ।। 20 एगं पडुच्च हिठ्ठा तहेव नाणाजिआण सम्वद्धा । अंतर पडुच्च एगं जहन्नमतोमुहुत्तं तु ।। ६६ ।। उक्कोसेणं चेयं अद्धापरिअट्टओ उ देसूणो । 2010_04 Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १-सामायिकाध्ययनम् :: ३-अथ नमस्कारनियुक्तिः ] [ ८९ जाणाजीवे णस्थि उ भावे य भवे खोवसमे ।। ६०० ।। जीवाणगंतभागो पडिवण्णो सेसगा अणंतगुणा । वत्थु तऽरिहंताइ पञ्च भवे तेसिमो हेऊ ॥६०१ ।। प्रारोवणा य भयणा पुच्छा तह दायणा' य निज्जवणा' । s 'नमुक्कारऽनमुक्कारे नोप्राइजुए व नवहा वा ॥६०२॥ मग्गे' प्रविप्पणासो' आयारे विणयया सहायत्तं' । पंचविहनमुक्कारं करेमि एएहि हेऊहिं ॥६०३ ॥ अडवीइ देसिअत्तं तहेव निज्जामया२. समुइंमि । छक्काय रक्खणट्ठा महगोवा' तेण वृच्चंति ॥९०४ ।। 10 प्रवि सपच्चवायं वोलित्ता देसिओवएसेणं । पावंति जहिट्ठपुरं मवाडविपी तहा जीवा ।। ६०५ ।। पावंति निस्वइपुरं जिणोव इट्टण चेव मग्गेणं । अडवीह देसिअत्तं एवं नेयं जिरिंगदाणं ॥९०६ ।। जह तमिह सत्थवाहं नमह जणो तं पुरं तु गंतुमणो । 15 परमुवगारित्तणओ निविग्यस्थं च भत्तीए । ९०७॥ अरिहो उ नमुक्कारस्स भावओ खीणरागमयमोहो। मुक्खत्थणंपि जिणो तहेव जम्हा अओ अरिहा ॥९०८ ॥ संसाराअडवीए मिच्छत्तऽन्माणमोहिअपहाए । जेहिं कयं देसि प्रत्तं ते अरिहते पणिवयामि ॥ ९०६ ।। 20 सम्मदंसदिट्टो नाणेण य सुटठु तेहिं उवलद्धो । चरणकरणेण (हिं) पहओ निव्वाणपहो जिणिदेहि ॥९१०।। सिद्धिवसहिमुवगया निम्याणसुहं च ते अणुप्पत्ता । 2010_04 Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ नियुक्तिसंग्रह: : : ( १ ) आवश्यक निर्युक्तिः सासयमव्वाबाहं पत्ता अयरामरं ठाणं ।। ११ ।। पावंति जहा पार संमं निज्जामया समुद्दस्स । भवजल हिस्स जिणिदा तहेव जम्हा अओ प्ररिहा ||१२| मिच्छत्तकालियावाय विरहिए सम्मत्तगज्जभपवाए । 5 एगसमएण पत्ता सिद्धिवसहिपट्टणं पोया ।। १३ ।। निज्जामगरयणाणं अमूढनाणमइकण्णधाराणं । ०] वंदामि विणयपणओ तिविहेण तिदंडविरयाणं ।। १४ ।। पालंति जहा गावो गोवा अहि- सावयाइ- दुग्गेहि । परतणपाणिआणि श्रवणाणि पावंति तह चेव ।। १५ ।। 10 जीवनिकाया गावो जं ते पालंति ते महागोवा । मरणाइभयाउ (भयेहि) जिणा निव्वाणवणं च पार्वति ।। १६ ।। तो उवगारितणओ नमोऽरिहा भविअजीवलोगस्स । सम्वस्सेह जिणिदा लोगुत्तमभावप्रो तह य ।। १७ ।। रागद्दोसकसाए इंदिआणि अ पंचवि । 15 परोस हे उवसग्गे नामयंता नमोऽरिहा ।। १८ ।। इंदियविसयकसाए परीसहे वेयणा उवसग्गे । एए श्ररिणो हंता प्ररिहंता तेण वच्चंति ॥ १६ ॥ अट्ठविहंपि य कम्मं अरिभूम्रो होइ सव्वजीवाणं । तं कम्मर हंता अरिहंता तेण वुच्चंति ।। 20 अरिहंति वंदणनमंसणाई अरिहंति पूसक्कारं । २० ।। सिद्धिगमणं च अरिहा अरहंता तेण वुच्चति ।। २१ ।। देवासुरमणएस अरिहा पूआ सुरुत्तमा जम्हा । 2010_04 Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १-सामायिकाध्ययनम् :: ३-अथ नमस्कारनियुक्तिः ] [ ९१ परिणो हंता रयं हंता अरिहंता तेण वुच्चंति ।। २२ ।। प्ररहंतनमुक्कारो जीवं मोएइ भवसहस्साओ । भावेण कीरमाणो होइ पुण बोहिलाभाए ॥ २३ ॥ अरिहंतनमुक्कारो धन्नाण भवक्खयं कुणंताणं ।। 5 हिअयं प्रणुम्मुनंतो विसुत्तियावारओ होइ ॥ २४ ।। अरहंतनमुक्कारो एवं खलु वणिो महत्थुत्ति । जो मरणंमि उवग्गे अभिक्खणं कोरए बहुसो ॥ २५ ।। अरिहंतनमुक्कारो सव्वपावप्पणासणो । मंगलाणं च सम्वेसि, पढमं हवइ मंगलं ।। २६ ।। 10 कम्मे सिप्पे अ विज्जाय, मंते जोगे५ अ प्रागमे । अस्थ' जत्ता अमिप्पाए तवे कम्मक्खए इय ।। २७ ॥ कर्म जमणायरिओवएसयं सिप्पमनहाऽमिहि । किसिवाणिज्जाईयं घडलोहाराइभेनं च ।। २८ ।। जो सव्वकम्मकुसलो जो वा जत्थ सुपरिनिटिओ होई । 15 सज्झगिरिसिद्धओविव स कम्मसिद्धत्ति विन्नेप्रो ।। २६ ।। जो सव्वसिप्पकुसलो जो वा जत्थ सुपरिनिटिओ होइ । कोकासवड्डई विव साइसओ सिप्पसिद्धो सो ।। ६३० ।। इत्थी विज्जाऽभिहिया पुरिसो मंतुत्ति तन्विसेसोयं । विज्जा ससाहणा वा साहणरहिओ अ मंतुत्ति ।। ३१ ।। 20 विज्जाण चक्कवट्टी विज्जासिद्धो स जस्स वेगावि । सिज्झिज्ज महाविज्जा विज्जासिद्धऽज्जखउडुव्व ।। ३२ ।। साहीणसव्वमंतो बहुमंतो वा पहाणमंतो वा । 2010_04 Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६२ ] [ नियुक्तिसंग्रहः :: (१) आवश्यकनियुक्तिः नेओ स मंतसिद्धो खंभागरिसुव्व साइसरो ॥ ३३ ॥ सब्वेवि दव्वजोगा परमच्छरयफलाऽहवेगोऽवि । . जस्सेह हुज्ज सिद्धो स जोगसिद्धो जहा समिओ ।। ३४ ।। आगमसिद्धो सव्वंगपारओ गोप्रमुग्ध गुणरासी।। पउरत्थो अस्थपरो व मम्मणो अत्यसिद्धत्ति ॥ ३५ ।। जो निच्चसिद्धजत्तो लद्धवरो जो व तुडियाइव्व । सो किर जत्तासिद्धोऽभिप्पाओ बुद्धिपज्जाओ ।। ३६ ।। विउला विमला सुहुमा जस्स मई जो चउबिहाए वा । बुद्धीए संपन्नो स बुद्धिसिद्धो इमा सा य ।। ३७ ॥ 10 उप्पत्तिआ वेणइआ कमिआ पारिणामिआ । बुद्धी चउविवहा वुत्ता पंचमा नोवलब्भए ।। ३८ ॥ पुग्वमदिट्ठमस्सुअ-मवेइअ तक्खणविसुद्धगहिप्रत्था । प्रवाहयफल-जोगिणि बुद्धी उप्पत्तिआ नाम ॥ ३९ ।। भरहसिल पणिअ रुक्खे खुडुख पड५ सरड६ काग" उच्चारे । गय घयण' ० गोल खंभे खुड्डग 3 मग्गिथि ४ पह५ पुत्ते१६ ।। ९४० ।। मरहसिला मिढ कुक्कुड तिल वालुअ५ हथि अगड वणसंडे । 20 पायस अइआ° पत्ते ११ खाडहिला पंचपिअरो13 अ ।४१। महुसिथ मुद्दि६ अंक ६ अ नाणए. भिक्खु२१ चेडगनिहाणे २२ । 15 2010_04 Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १ - सामायिकाध्ययनम् :: ३- अथ नमस्कार नियुक्तिः ] [ ९३ सिक्खाउ य प्रत्थसत्थे २४ इच्छा य महं २५ सयसहस्से २६ । ४२ । भरनित्थरणसमत्था तिवग्ग सुत्तत्थ गहिअपेयाला । उभो लोगफलवई विजयसमुत्था हवइ बुद्धी ।। ४३ ।। निमित्ते अस्थसस्थे अ' लेहे गणिए अ कूब प्रस्से अ६ । ५ ७ 5 गद्दह लक्खण गंठी अगए गणिश्रा य रहिओ य ११ ॥ ४४ ॥ सीओ साडी दीहं च तणं अवसव्वयं च कु चस्स ' १२ 1 निव्वोदए 'गोणे घोडगपडणं च रुवखाओ १४ ।। ४५ ।। उवओगट्टिसारा कम्मपसंग परिघोलविसाला । ६ 8 १ ४९ ॥ साहुकारफलवई कम्मसमुत्था हवइ बुद्धी ।। ४६ ।। 10 हेरन्निए' करिसएर कोलिअ डोवे अ मुत्ति' घय पवए" | तुन्नाग वडई' पूइए अ० घड" चित्तकारे श्र १२ ।। ४७ ।। अणुमाण हे उदिट्ठत साहिया वयविवागपरिणामा । हिश्रनिस्से असफलवई बुद्धी परिणामिआ नाम ॥ ४८ ॥ अभए' सिट्टि र कुमारेउ देवी उदिनोदए हवइ राया । 15 साहू अ नंदिसेणे धणदत्ते सावग अमच्चे' ॥ खबगे'' अमब्चपुत्ते" चाणक्के १२ चैव थूलभद्दे नासिक्कसुन्दरी नंदे १४ वइरे १५ परिणामिआ बुद्धी ॥५०॥ चलणाहय '६ श्रामंडे मणी असध्ये अ१३ खग्गि २० थूभि २१ दे२२ । 20 परिणामिअ-बुद्धीए एवमाई उदाहरणा ।। ५१ ।। . न किलम्मइ जो तवसा सो तवसिद्धो दढपहारिव्व । सो कम्मक्खयसिद्धो जो सव्वक्खीणकम्मंसो ॥ ५२ ॥ छ । ७ ० 2010_04 Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९४ } [ नियुक्तिसंग्रहः :: (१) आवश्यकनियुक्तिः दोहकालरयं जं तु कम्मं से सिअमट्ठहा । सिग्रं धंतंति सिद्धस्स सिद्धत्तमुवजायइ ॥ ५३ ।। नाऊरण वेअणिज्ज अइबहुअं आठनं च थोवागं। गंतूण समुग्घायं खवंति कम्मं निरवसेसं ।। ५४ ।। 5 दंड कवाडे मंथंतरे असं (सा)हरणया सरीरत्थे । भासाजोगनिरोहे सेलेसी सिझणा चेव ॥ ५५ ।। जह उल्ला साडीआ आसुसुक्का विरल्लिआ संती । तह कम्मलहुअ समए वच्चंति जिणा समुग्घायं ।। ५६ ।। लाउअ एरंडफले अग्गी धूमे उसू धणुविमुक्के । 10 गइ पुवपओगेणं एवं सिद्धाणवि गईप्रो ॥ ५७ ।। कहिं पडिहया सिद्धा, कहिं सिद्धा पइट्ठिया? । कहिं बोंदि चइत्ता गं? कत्थ गंतूण सिझई ? ॥ ५८ ।। अलोए पडिहया सिद्धा, लोअग्गे अ पइट्ठिआ । इहं बोंदि चइत्ता णं, तत्थ गंतूण सिज्झई ।। ५६ ।। 15 ईसीपब्भाराए सीआए जोमणमि लोगतो । बारसहिं जोअणेहि सिद्धी सम्वसिद्धाओ ।। ६६० ।। निम्मल-दगरयवण्णा तुसारगोखीर-हारसरिवना । उत्ताणय-छत्तयसंठिा य भाणिया जिणवरेहिं ।। ६१ ॥ एगा जोषणकोडी बायालीसं च सयसहस्साई ।। 20 तीसं जेव सहस्सा दो चेव सया अउरणवन्ना ॥ ६२ ।। बहुमज्झदेसमागे अट्ठव य जोमणारिण बाहल्लं । चरमंतेसु अ तणई अंगुलऽसंखिज्जईभागं ।। ६३ ।। 2010_04 Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १-सामायिकाध्ययनम् :: ३-अथ नमस्कारनियुक्तिः ] [ ९५ गंतूण जोअणं जोमणं तु परिहाइ अंगुलपुहत्तं । तीसेऽवि अ पेरंता मच्छि प्रपत्ताउ तणुभयरा ॥ ६४ ।। ईसीपब्भाराए उरि खलु जोषणमि जो कोसो। कोसस्स य छन्भाए सिद्धाणोगाहणा भणिआ ॥ ६५ ।। 5 तिनि सया तित्तीसा धणुत्तिभागो य कोसछन्भाओ। जं परमोगाहोऽयं तो ते कोसस्स छन्माए ॥६६ ।। उत्ताणउव्व पासिल्ल उव्व अहवा निसन्नरो चेव । जो जह करेइ कालं सो तह उववज्जए सिद्धो ।। ६७ ।। इहभवभिन्नागारो कम्मवसाओ भवंतरे होइ । 10 न य तं सिद्धस्स जपो तम्मिवि तो सो तयागारो ।। ६८ ॥ जं संठाणं तु इहं भवं चयंतस्स चरमसमयंमि । प्रासी अ पएसघणं तं संठाणं तहिं तस्स ।। ६९ ।। दीह वा हस्सं वा जं चरमभवे हविज्ज सठाणं । तत्तो तिभागहीणा सिद्धाणोगाहणा भणिआ ।। ९७० ।। 15 तिन्नि सया तित्तीसा धणुत्तिभागो य होइ बोद्धव्वो। एसा खलु सिद्धाणं उक्कोसोगाहणा भणिया ।। ७१ ।। चत्तारि अ रयणीयो रयणितिभागणिआ य बोद्धव्या । एसा खलु सिद्धाणं मज्झिमनोगाहणा भणिया ।। ७२ ॥ एगा य होइ रयणी अट्ठव य अंगुलाई साहीमा। 20 एसा खलु सिद्धाणं जहन्नओगाहणा भणिआ ॥ ७३ ॥ प्रोगाहणाइ सिद्धा भवत्तिभागेण हुँति परिहीणा। संठाणमणित्थंत्थं जरामरणविप्पमुक्काणं ।। ७४ ।। 2010_04 Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९६ ] [ नियुक्तिसंग्रहः :: (१) आवश्यकनियुक्तिः जत्थ य एगो सिद्धो तत्थ अणंतो भवक्खयविमुक्का । अन्नुन्नसमोगाढा पृट्टा सव्वे अ लोगते ॥ ७५ ।। फुसइ प्रणेते सिद्धे सव्वपएसेहि निममसो सिद्धो। - तेऽवि प्रसंखिज्जगुणा देसपएसेहिं जे पुट्ठा ।। ७६ ।। 5 प्रसरीरा जीवघणा उवउत्ता दंसणे अनाणे अ । सागारमणागारं लक्खणमेनं तु सिद्धाणं ।। ७७ ।। केवलनाणुवउत्ता जाणती सव्वभावगुणभावे । पासंति सव्वानो खलु केवल विट्ठीहिणताहि ।। ७८ ।। नाणंमि दंसमि अ इत्तो एगयरयंमि उवउत्ता। 10 सव्वस्स केलिस्सा जुगवं दो नत्थि उवओगा ।। ७९ ।। नवि अस्थि माणुसाणं तं सुक्खं नेव सव्वदेवाणं । जं सिद्धाणं सुक्खं अव्वाबाहं उधगयाणं ।। ९८० ।। सुरगणसुहं समत्तं सव्वद्धापिडिअं अणंतगुणं । न य पावइ मुत्तिसुहंऽणंताहिवि वग्गवहिं ॥ ८१ ॥ 15 सिद्धस्स सुहो रासी सव्वद्धापिंडिनो जइ हविज्ज । सोऽणतवग्गभइओ सव्वागासे न माइज्जा ।। ८२ ॥ जह नाम कोइ मिच्छो नगरगुणे बहुविहे विआणतो । न चएइ परिकहेउं उवमाइ तहिं प्रसंतीए ॥८३ ।। इन सिद्धाणं सुक्खं अणोवमं नस्थि तस्स ओवम्म । 20 किचि विसेसेणित्तो सारिक्खमिणं सुणह वुच्छं ॥८४ ।। जह सव्वकामगुणिअं पुरिसो भोत्तूण भोअणं कोई । तहाछुहाविमुक्को अच्छिज्ज जहा अमिअतित्तो ॥८५ ।। 2010_04 Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १-सामायिकाध्ययनम् :: ३-अथ नमस्कारनियुक्तिः ] [ ९७ इप्रसम्वकालतित्ता प्रउलं निव्वाणमुवगया सिद्धा। सासयमव्वाबाहं चिट्ठति सुही सुहं पत्ता ।। ८६ ॥ सिद्धत्ति अ बुद्धत्ति अ पारगयत्ति अ परंपरगयत्ति । उम्मुक्ककम्मकवया अजरा अमरा प्रसंगा य ।। ८७ ।। 5 निच्छिन्नसम्वदुक्खा जाइजरामरणबंधणविमुक्का । प्रव्वाबाहं सुक्खं अणुहुँती सासयं सिद्धा ॥८८ ।। सिद्धाण नमोक्कारो जीवं मोएइ भवसहस्साओ। भावेण कीरमाणो होइ पुण बोहिलाभाए ॥८६ ।। . सिद्धाण नमुक्कारो धन्नाण भवक्खयं कुणंताणं । 10 हिअयं अणुम्मुअंतो विसुत्तियावारप्रो होइ ।। ९९० ।। सिद्धाण नमुक्कारो एवं खलु वणिो महत्थुत्ति । जो मरणमि उवग्गे अभिक्खणं कोरए बहुसो ॥ ९१ ।। सिद्धाण नमुक्कारो सम्वपावप्पणासणो । मंगलाणं च सव्वेसि बिइअं हवइ (होइ) मंगलं ।। ९२ ।। 15 नामं ठवणा दविए भावंमि चउविहो उ आयरिओ। दव्वंमि एगभविआई लोइए सिप्पसत्थाई ॥ ९३ ।। पंचविहं आयारं आयारमाणा तहा पभासंता । आयारं दंसंता आयरिआ तेण वुच्चंते ।। ६४ ।। आयारो नाणाई तस्सायरणा पभासणाओ वा । 20 जे ते भावायरिया भावायारोवउत्ता य ।। ९५ ।। आयरियणमोकारो जीवं मोएइ भवसहस्सायो । भावेण कोरमाणो होइ पुण बोहिलाभाए ।। ६६ । 2010_04 Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९८ ] [ नियुक्तिसंग्रहः :: (१) आवश्यक नियुक्ति। पायरियनमुक्कारो धन्नाण भवक्खयं कुर्णताणं । हिअयं अणुम्मुअंतो विसुत्तियावारओ होइ ।।६७ ।। पायरियनमुक्कारो एवं खलु वणिो महत्थुत्ति । जो मरणंमि उवग्गे अभिक्खणं कीरए बहुसो ।। ९८ ॥ 5 आयरियनमुक्कारो सम्वपावप्पणासणो । मंगलाणं च सव्वेसि तइनं हवइ मंगलं ॥ ९९ ॥ नामं ठवणादविए भावंमि चउम्विहो उध्वज्झायो । दवे लोइअ सिप्पाइ निहगा वा इमे भावे ॥१००० ।। बारसंगो जिणक्खाओ सज्झाओ देसि (कहि)ो बुहेहि । 10 तं उवासंति जम्हा उवज्झाया तेण वुच्चंति ॥ १।। उत्ति उवीगकरणे ज्झात्ति प्र झारणस्स होइ निद्देसे । एएण हुँति उज्झा एसो प्रन्नोऽवि पज्जाओ ॥२॥ उत्ति उवओगकरणे वत्ति प्र पावपरिवज्जणे होइ। झत्ति अ झाणस्स कए उत्ति अ ओसक्कणा कम्मे ।। ३ ।। 13 उवज्झायनमोक्कारो जीवं मोएइ भवसहस्साओ। भावेण कीरभाणो होइ पुरण बोहिलाभाए ॥४ ।। उवज्झायनमुक्कारो धन्माण भवक्खयं कुणंताणं । हिमयं अणुम्मुअंतो विसुत्तियावारओ होइ ॥५॥ उवज्झायनमुक्कारो एवं खलु वण्णिअओ महत्थुत्ति । 20 जो मरणमि उवग्गे अभिक्खणं कीरए बहुसो ।। ६ ।। उवज्झायनमुक्कारो सव्वपावप्पणासणो । मंगलाणं च सवेसि च उत्थं हवइ (होइ) मंगलं ॥ ७ ॥ 2010_04 Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १-सामायिकाध्ययनम् :: ३-अथ नमस्कारनियुक्तिः ) [ ९९ नामं १ ठवणासाहू २ दवसाहू ३ अ भावसाहू ४ अ। दव्वंमि लोइआई भावंमि प्र संजओ साहू . ।। ८ ।। घडपडरहमाईणि उ साहता हुँति बन्नसाहुत्ति । अहवावि दव्वभूआते हुँति (नायव्वा) दव्वसाहुत्ति ॥९॥ 5 निव्वाणसाहए जोए, जम्हा साहति साहुणो । समा य सव्वभूएसु तम्हा ते भावसाहुणो।। १०१० ।। कि पिच्छसि साहूणं व नियमं व संजमगुण वा । तो वंदसि साहूण ? एअं मे पुच्छिओ साह ।। ११ ।। विसयसुहनिअत्ताणं विसुद्धचारित्त-निअमजुत्ताणं । 10 तच्चगुणसाहयाणं सदायकिच्चुज्जयाण नमो ॥१२ ।। असहाइ सहायत्तं करंति मे संजमं करितस्स । एएण कारणेणं नमामिऽहं सव्वसाहूणं ।। १३ ।। साहूण नमुक्कारो जीवं मोएइ भवसहस्साम्रो । भावेण कोरमाणो होइ पुण बोहिलाभाए ॥१४॥ 15 साहूण नमुक्कारो धनाण भवक्खयं कुणंताणं। हिअयं अणुम्मुग्रंतो विसुत्तियावारओ होइ ॥१५ ।। साहूण नमुक्कारो एवं खलु वणिो महत्थुत्ति । जो मरणंमि उवग्गे अभिक्खणं कोरए बहुसो ॥ १६ ॥ साहूण नमुक्कारो सव्वपावप्पणासणो । 20 मंगलाणं च सम्वेसि पंढमं हवइ (होइ) मंगलं ॥ १७ ॥ एसो पंच नमुक्कारो सव्वपावप्पणासणो । मंगलाणं च सव्वेसि पढमं हवइ मंगलं ॥ १८ ॥ 2010_04 Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०० ] [ नियुक्तिसंग्रहः :: (१) आवश्यकनियुक्तिः नवि संखेवो व (न) वित्थारु (रो) संखेवो दुविहु सिद्धासाहुणं । वित्थारोऽणेगविहो पंचविहो न जुज्जई तम्हा ।। १६ ।। अरहताई नियमा साहू साहू अ तेसु भइअव्वा । तम्हा पंचविहो खलु हेउनिमित्तं हवइ सिद्धो ।।१०२० ।। पुवाणुपुवि न कमो नेव य पच्छाणुपुन्वि एस भवे । सिद्धाईआ पढमो बीयाए साहुणो प्राई ।। २१ ।। अरहंतुवएसेणं सिद्धा नजति तेण अरिहाई । नवि कोई परिसाए पमित्ता पणमई रण्णो ॥ २२ ।। इत्थ य पत्रोअणमिणं कम्मक्खनो मंगलागमो चेव । 10 इहलोअपारलोइस दुविह फलं तत्थ दिटुता ।। २३ ॥ इहलोह १ अत्थकामा २ -आरुग्गं ३ अभिरई ४ प्र.निप्फत्ती। सिद्धी अ६ सग्ग ७ सुकुलपच्चायाई ८ अ परलोए ॥ २४ ।। इहलोगंमि तिदंडी १ सादिव्वं २ माउलिंगवण ३ मेव । परलोइ चंडपिंगल ४ हुँडिनजक्खो ५ अ दिट्ठता ॥१० २५।। ।। इति नमस्कार नियुक्तिः ३ ।। 2010_04 Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १-सामायिकाध्ययनम् :: ४-५ सू. तत्र सा.नियुक्तिः ] [ १०१ ॥ ४ ॥ अथ सूत्रस्पर्शि-नियुक्तिः ॥ ॥ ५ ॥ तत्र सामायिक-नियुक्तिः ।। नंदिअणुओगदारं विहिवदुवुग्धाइयं च नाऊणं । काऊण पंचमंगल आरंभो होइ सुत्तस्स ।। २६ ।। कयपंचनमुक्कारो करेइ सामाइयंति सोऽभिहिी। सामाइअंगमेव य जं सो सेसं तओ वुच्छं ।। २७ ।। करेमि भंते ! सामाइयं, सव्वं सावज्जं जोगं पञ्चक्खामि जावजीवाए तिविहं तिविहेणं मणेणं वायाए कारणं न करेमि न कारवेमि करतपि अन्नं न समण जाणामि, 10 तस्स भंते ! पडिकमामि निंदामि गरिहामि अप्पाणं वोसिरामि ॥ सूत्रं १॥ अक्खलिप्रसंहिआई धक्खाणच उक्कए दरिसिमि । सुत्तफासिनिज्जुत्तिवित्थरत्थो इमो होइ ॥ २८ ।। करणे' भए' अ अंते सामाइ सव्वए' अवज्जे । 15 जोगे° पच्चक्खाणे जीवज्जीवाइ तिविहेणं'० ॥ २९ ॥ खित्तस्स नत्थि करणं आगासं जं प्रकित्तिमो भावो। वंजणपरिप्रावन्नं तहावि पुण उच्छुकरणाई ॥ १०३० ।। कालेवि नस्थि करणं तहावि पुण वंजणप्पमाणेणं । बवबालवाइकरणेहिशेगहा होइ ववहारो ।। ३१ ।। 20 जीवमजीवे भावे अजीवकरणं तु तत्थ वनाई । जीवकरणं तु दुविहं सुअकरणं नो अ सुप्रकरणं ।। ३२ ॥ 2010_04 Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०२ ] [ नियुक्तिसंग्रहः :: (१) आवश्यकनियुक्तिः बद्धमबद्धं तु सुधे बद्धं तु दुवालसंग निट्टि । तश्विरीअमबद्धं निसीहमनिसीह बद्धं तु ।। ३३ ।। भूआपरिणयविगए सद्दकरणं तहेव न निसीहं । पच्छन्नं तु निसीहं निसीहनाम जहऽज्झयणं ।। ३४ ॥ अग्गेणीअंमि य जहा दीवायण जत्थ एग तत्थ सयं । जत्थ सयं तस्येगो हम्मइ वा भुजए वावि ॥३५ ।। एवं बद्धमबद्धं आएसाणं हवंति पंचसया । जह एगा मरुदुवी अच्छंतथावरा सिद्धा ।। ३६ ।। नोसुप्रकरणं दुविहं गुणकरणं तह य जुजणाकरणं । 10 गुणकरणं पुण दुविहं तवकरणे संजमे अ तहा ।। ३७ ।। जुजणकरणं तिविहं मण १ वय २ काए अ ३ मणसि सच्चाई। सट्टारिण तेसि भेओ चउ १ चउहा २ सत्तहा ३ चेव ॥३८॥ भावसुअसद्दकरणे अहिगारो इत्थ होइ काययो। नोसुप्रकरणे गुण जुजणे अ जहसंभवं होइ ॥ ३९ ॥ 15 कयाकयं' केण कयं केसु अ दम्वेसु कोरई वावि । काहे व कारओ नयओ' करणं कइविहं (च) कहं ? ॥४०॥ कह सामाइअलंभो ? तस्सव्वविघाइ-देसवाघाई । देसविघाईफड्डग अणंतवड्डीविसुद्धस्स ।। ४१ ।। एवं ककारलंभो सेसाणवि एवमेव कमलंभो । 20 एनं तु भावकरणं करणे अ भए प्रजं भरिणग्नं ।। ४२ ।। सामं १ समं २ च सम्मं ३ इगमवि ४ सामाइअस्स एगट्ठा । नामं ठवणा दविए भावंमि म तेसि (तस्स) निक्खेवो ।।४३।। 2010_04 Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १-सामायिकाध्ययनम् :: ४-५ सू. तत्र सा.नियुक्तिः ] [ १०३ महुरपरिणाम सामं १ समं तुला २ संम खोरखंडजुई ३ ।। दोरे हारस्स चिई इगमेआई ४ तु दव्वंमि ॥४४ ।। आओषमाइ परदुक्खमकरणं १ रागदोसमज्मत्थं २ । नाणाइतिगं ३ तस्साइ पोअणं ४ भावसामाई ॥ ४५ ।। समया सम्मत्त पसत्थ संति सुधि (सिव) हिन्न सुहं अनिदं च । अदुगुछिअमगरिहि अणवज्जमिमेऽवि एगट्ठा ।। ४६ ।। को कारो ? करतो कि कम्मं ? जंतु कोरई तेण । कि कारयकरणाण य अन्नमणन्नं च ? प्रक्खेवो ॥ ४७ ।। आया हु कारओ मे सामाइय कम्म करणमाया य । 10 परिणामे सइ प्राया सामाइयमेव उ पसिद्धी ॥४८ ।। एगत्ते जह मुष्टुिं करेइ अत्यंतरे घडाईणि । दव्वत्थंतरभावे गुणस्स कि केण संबद्धं ॥ ४६ ।। नामं १ ठवणा २ दविए ३ आएसे ४ निरवसेसए ५ चेव । तह सव्वधत्तसव्वं ६ च भाव सवं ७ च सत्तमयं ।। १०५० ॥ 15 कम्ममवज्जं जं गरिहिअंति कोहाइणो व चत्तारि । सह तेण जो उ जोगो पच्चक्खाणं हवइ तस्स ॥५१ ।। दव्वे मणवयकाए जोगा दवा दुहा उ मामि । जोगा सम्मत्ताई पसत्थ इयरो उ विवरीओ ॥ ५२ ॥ दध्वंमि निण्हगाई ३ निधिप्सयाई अ होइ खित्तमि ४ । 20 भिवखाईणमदाणे अइच्छ ५ भावे पुणो दुविह६ ॥ ५३ ।। सुअ णोसुअ सुप्र दुविह पुत्व १ मपुव्वं २ तु होइ नायव्वं । नोसुप्रपच्चक्खाणं मूले १ तह उत्तरगुणे अ २ ।। ५४ ।। 2010_04 Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०४ ] [ नियुक्तिसंग्रहः :: (१) आवश्यकनियुक्तिः जावदवधारणमि जीवणमवि पाणधारणे भणि। आपाणधारणाओ पावनिवित्ती.. इह अत्यो ॥ ५५ ॥ नाम १ ठवणा २ दविए ३ पोहे ४ भव ५ तब्भवे अ६ भोगे अ ७। 5 संजम ८ जस ९ कित्तोजीहिनं च १० तं भण्णई दसहा ।।५६।। भोगंमि चक्किमाई ७, संजमजीअं तु संजयजणस्स ८ । जस ९ कित्ती अ भगवओ १० संजमनरजीव अहिगारो ॥ ५७ (भा०) । सीआलं भंगसयं तिविह तिविहेण समिइगुत्तोहि । 10 सुत्तप्कासिमनिज्जुत्ति वित्थरस्थो गओ एवं ।। ५८ ।। सामाइ करेमी पच्चक्खामो पडिक्कमामित्ति । पच्चुप्पन्नमणागय अईप्रकालाण गहणं तु ॥५६ ।। तिविहेणंति न जुत्तं पडिपयविहिणा समाहिलं जेण । प्रथविगप्पणयाए गुणभावणयत्ति को दोसो ? ।। १०६० ।। 15 दवमि निण्हगाई कुलालमिच्छति तत्थुदाहरणं । . भावंमि तदुव उत्तो मिग्रावई तत्थुदाहरणं ।। ६१ ।। सचरित्तपच्छयावो निदा तीए चउक्कनिवखेवो । दव्वे चित्तयरसुआ भावेसु बहू उदाहरणा ।। ६२ ।। गरहावि तहाजाईअमेव नवरं परप्पगासणया । 20 दव्वंमि मरुअनायं भावेसु बहू उदाहरणा ।। ६३ ।। दवविउस्सगे खलु पसन्नचंदो हवे उदाहरणं । पडिया गयसंवेगो भामिवि होइ सो चेव ।। ६४ ।। 2010_04 Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २-चतुर्विशतिस्तवाध्ययनम् :: ४-चतुर्विंशतिस्तवनियुक्तिः [१०५ सावज्जजोगविरमो तिविह तिविहेण वोसिरिअ पावं । सामाइअमाईए एसोऽणुगमो परिसमत्तो ॥ ६५ ॥ विज्जाचरणनएसु सेससमोप्रारणं तु कायव्वं । सामाइअनिज्जुत्ती सुभासिनत्था परिसमत्ता ।। ६६ ।। 5 नायंमि गिहिप्रवे प्रगिहिमवंमि चेव अत्थंमि । जइअव्वमेव इअ जो उवएसो सो नओ नामं ॥ ६७ ।। सम्वेसिपि नयाणं बहुविहवत्तव्वयं निसामित्ता । तं सवनयविसुद्धं जं चरणगुणट्ठिओ साहू ॥६८ ।। ॥ इति सामायिकनिकयुक्तिः ।। ५॥ ॥ इति प्रथम सामायिकाध्ययनम् ।। १ ।। 10 ॥२॥ अथ चतुर्विशतिस्तवाख्यं द्वितीयमध्ययनम् ।। ॥६॥ अथ चतुर्विशतिस्तवनियुक्तिः ॥ चउवीस स्थयस्स उ णिक्खेवो होइ णामणिप्फण्णो । चउवीसइस्स छक्को थयस्स उ चउविहो होइ ॥ ६६ ।। 15 लोगस्सुजोयगरे धम्मतित्थयरे जिणे । अरिहंते कित्तइस्सं चउवीसं पि केवली ॥१॥ सूत्रम् ।। नामं १ ठवणा २ दविए ३ खित्ते ४ काले ५ भवे अ६ भावे प्र७। 20 पज्जवलोगे अ ८ तहा अट्टविहो लोगणिक्लेवो ॥ १०७० ।। 2010_04 Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०६ ] [ नियुक्तिसंग्रहः :: (१) आवश्यकनियुक्तिः आलुक्कइ पलुक्का लुक्कइ संलुक्कई अ एगट्ठा । लोगो अटुविहो खलु तेणेसो वुच्चई लोगो ॥७१।। दुविहो खलु उज्जोनो नायध्वो दवभावसंजुत्तो। अग्गी दम्वुज्जोओ चंदो सूरो मणी विज्ज ।। ७२ ।। 5 नाणं भावुज्जोओ जह भणियं सवभावदंसीहि । तस्स उवओगकरणे भावुज्जो बिआणाहि ॥ ७३ ।। लोगस्सुज्जोगरा । दन्वुज्जोएण न हु जिणा हुँति।। भावुज्जोअगरा पुण हुँति जिणवरा चउन्धीसं ॥७४ ।। दव्वुज्जोउज्जोसो पगासई परिमियंमि खित्तंमि । 10 भावुज्जोउज्जोओ लोगालोग पगासेइ ।। ७५ ।। दुह दव्वभावधम्मो दध्वे दव्वस्स दव्वमेवऽहवा । तित्ताइसभावो वा गम्माइत्थी कुलिंगो वा ।। ७६ ।। दुह होइ भावधम्मो सुप्रचरणे जा सुप्रंमि सज्झाओ। चरणमि समणधम्मो खंतीमाई भवे दसहा ।। ७७ ।। 15 नाम ठवणातित्थं दब्यतित्थं च भावतित्थं च । एक्के.पि अ इत्तोऽणेगविहं होइ गायध्वं ।। ७८ ।। दाहोवसमं तहाइछे प्रणं मलपवाहणं चेव । तिहि अत्थेहि निउत्तं तम्हा तं दवओ तित्थं ।। ७६ ।। कोहमि उ निगहिए दाहस्सोवसमणं हवा तित्थं । 20 लोहंमि उ निग्गहिए तण्हाए छे (वुच्छे) अणं होइ ।।१०८०॥ अट्टविहं कम्मरयं बहुएहि भवेहि संचि जम्हा । तवसंजमेण धुवइ तम्हा तं भावप्रो तित्थं ॥ ८१ ।। 2010_04 Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २-चतुर्विंशतिस्तवाध्ययनम् :: ४-चतुविशतिस्तवनियुक्तिः [१०७ दसणनाणचरित्तेसु निउत्तं जिणवरेहि सवेहि । तिसु अत्थेसु निउत्तं तम्हा तं भावओ तित्थं (एएण होइ तित्थं एसो प्रन्नोऽवि पज्जासो) ।।२।। नामकरो १ ठवणकरो २ 5 दव्वकरो ३ खित्त ४ काल ५ भावकरो ६ । एसो खलु करगस्स उ निक्लेवो छविहो होइ ॥ ८३ ।। गोमहिसुट्टिपसूर्ण छगलीणपि अ करा मुणेयव्वा । तत्तो य तणपलाले मुसक? गारपलले य ॥ ८४ ।। सिउंबरजंघाए बलिव (भ)दकए घए अचम्मे प्र। 10 चुल्लगकरे अ भणिए अट्ठारसमाकरुप्पत्ती ॥५॥ खितंमि जंमि खित्ते काले जो जमि होइ कालंमि । दुविहो अ होइ भावे पसत्थु तह अप्पसत्थो म ॥८६ ।। कलहकरो डमरकरो असमाहिकरो अनिव्वुइकरो अ । एसो उ अप्पसत्थो एवमाई मुणेअव्यो ।। ८७ ।। 15 प्रस्थकरो अहिप्रकरो कित्तिकरो गुणकरो जसकरो अ । अभयंकर निव्वुइकरो कुलगर तित्थंकरंऽतकरो ।। ८८ ।। जियकोहमाणमाया जियलोहा तेण ते जिणा हुँति । अरिणो हंता रयं हंता अरिहंता तेण बुच्चंति ।। ८६ ।। कित्तेमि कित्सणिज्जे सदेवमणुप्रासुरस्त लोगस्स । 20 दंसणनाणचरित्ते तवविणओ दंसिओ जेहिं ॥ १०६० ।। चउवीसंति य संखा उसभाईआ उ भण्णमाणा उ। • अविसद्दग्गहणा पुण एरवयमहाविदेहेसु ॥९१ ।। 2010_04 Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०८ ] [ नियुक्तिसंग्रहः :: (१) आवश्यकनियुक्तिः कसिणं केवलकप्पं लोगं जाणंति तह य पासंति । केवलचरित्तनाणी तम्हा ते केवली हुँति ॥१२॥ उसभमजिअं च वंदे संभवमभिणंदणं च सुमइं च । पउमप्पहं सुपासं जिणं च चंदप्पहं वंदे ॥२॥ 5 सुविहिं च पुप्फदंतं सीअल सिज्जंस वासुपुज्जं च । विमलमणंतं च जिणं धम्म संति च वंदामि ॥ ३॥ कुथु अरं च मल्लिं वंदे मुणिसुव्वयं नमिजिणं च । वंदामि रिट्टनेमि पासं तह वद्धमाणं च ॥४॥ सूत्राणि । ऊरूसु उसभलंछण उसभं सुमिणमि तेण उसमजिणो । 10 अक्खेसु जेण अजिआ जणणी अजिओ जिणो तहा ।। ९३ ॥ अभिसंभूषा सासत्ति संभवो तेण वुच्चई भयवं । अभिणदई अभिक्खं सक्को अभिणंदणो तेण ॥ ९४ ॥ जणणी सम्वत्थ विणिच्छएसु सुमइत्ति तेण सुमइजिणो। पउमस यणमि जणणीइ डोहलो तेण पउमाभो ।। ९५ ॥ 15 गभगए जं जणणी जाय सुपासा तो सुपासजिणो। जणणीए चंदपियणमि डोहलो तेण चंदाभो ।। ९६ ॥ सम्वविहीसुप्र कुसला गभगए तेण होइ सुविहिजिणो । पिउणो दाहोवसमो गन्भगए सोयलो तेणं ॥९७ ।। महरिहसिज्जारुहणंमि दोहलो तेण होइ सिज्जंसो । 20 पूएइ वासवो जं अभिक्खणं तेण वसुपुज्जो ॥९८॥ विमलतणुबुद्धि जणणी गन्भगए तेण होइ विमलजिणो। 2010_04 Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २-चतुर्विशतिस्तवाध्ययनम् :: ४-चतुविशतिस्तवनियुक्तिः [१०९ रयणविचित्तमणंतं दामं सुमिणे तमोऽणतो ॥ ६ ॥ गभगए जं जणणी जाय सुधम्मत्ति तेण धम्मजिणो। जा असिवोवसमो गभगए तेण संतिजिणो ।। ११०० ।। थूहं रयणविचित्तं कुथु सुमिणमि तेण कुथुजिणो । सुमिणे अरं महरिहं पासइ जणणी अरो तम्हा ॥ ११०१।। वरसुरहिमल्लसयणमि डोहलो तेण होइ मल्लिजिणो । जाया जणणी जं सुव्वयत्ति मुनिसुव्वओ तम्हा ॥ ११०२ ।। पणया पच्चंतनिव्या दंसियमित्त जिणंमि तेण नेमी । रिट्ररयणं च नेमि उप्पयमाणं तपो नेमी ॥११०३ ।। सप्पं सयणे जणणी तं पासइ तमसि तेण पासजिणो । 10 वड्डइ नायकुलंति अ तेण जिणो वद्धमाणुत्ति ॥ ११०४।। एवं मए अभिथुआ विहुयरयमला पहीणजरमरणा। चउवीसंपि जिणवरा तित्थयरा मे पसीयंतु ॥ ५ ॥ कित्तियवंदियमहिआ जेए लोगस्स उत्तमा सिद्धा। आरुग्गवोहिलाभं समाहिवरमुत्तमं दितु ॥ ६॥॥ सूत्रे ॥ 15 थुइथुणणवंदरणनमंसणाणि एगट्ठिआणि एआणि । कित्तण पसंसणावि अविणयपणामे प्र एगट्ठा ॥११०५ ।। मिच्छत्तमोहणिज्जा नाणावरणा चरित्तमोहाम्रो । तिविहतमा उम्मुक्का तम्हा ते उत्तमा हुँति ।।११०६ ॥ आरुग्गबोहिलाभं समाहिवरमुत्तमं च मे दितु । 20 किं नु हु निमाणमेनं ति ?, विभासा इत्थ कायव्वा ।११०७। 2010_04 Page #133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११० ] [ नियुक्तिसंग्रह: :: ( १ ) आवश्यकनिर्युक्तिः भासा प्रसच्चमोसा नवरं भत्तीइ भातिश्रा एसा । न हु खीणपिज्जदोसा दिति समाहिं च बोहि च ।। ११०८ ।। जं तेहि दायव्वं तं दिन्नं जिणवरेहि सव्वेंहि । दंसणनाणचरितस्स एस तिविहस्स उवएसो ।। ११०६ ।। 5 भत्तीइ जिणवराणं खिज्जंती पुव्वसंचिआ कम्मा । आयरिश्रममुक्कारेण विज्जा मंता य सिज्झति ।। १११० ।। भत्तोइ जिणवराणं परमाए खीणपिज्जदोसाणं । आरुग्गबोहिलाभं समाहिमरणं च पावंति लद्धिल्लिश्रं च बोहि अकरितोऽणागयं च पत्थंतो । 10 द (इ) च्छिसि जह तं विब्भल ! इमं च अन्नं च चक्किहिसि । लद्धिल्लिश्रं च बोहि अर्कारितोऽरणागयं च पत्थंतो । पार्वति ।। ११ ।। अन्नंदाई बोहि लब्भिसि कयरेण मुल्लेण ? ।। १३ ।। चेइयकुलगणसंघ आयरियाणं च पवयणसुए य । सव्वेसुवि तेण कथं तवसंजममुज्जमंतेणं ।। १११४ ।। 15 चंदेसु निम्मलयरा आइच्चेसु अहिअं पयासयरा । सागरवरगंभीरा सिद्धा ? सिद्धि मम दिसंतु ॥ ७॥ सूत्रम् ॥ चंदाइच्चगहाणं पहा पयासेइ परिमिअं खित्तं । केवलिअनाणलंभो लोगालोगं पगासेइ ।। १११५ ।। ॥ इति श्रीचतुर्विंशतिस्तवाध्ययनं निर्युक्तिश्च ॥ ६ ॥ 卐 2010_04 Page #134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३-वन्दाकाध्ययनम् :: ४-वन्दनकनियुक्तिः ] [ १११ ॥३॥ अथ तृतीयं वन्दनकाध्ययनम् ।। ॥७॥ अथ वन्दनकनियुक्तिः ।। वंदणचिइकिइकम्मं पूयाकम्मं च विणयकम्मं च । कायव्वं कस्स व केण वावि काहे व कइखुत्तो ? ॥ १६ ।। 5 कइप्रोणयं कइसिरं काहिं च आवस्सएहि परिसुद्धं । कइदोस विप्पमुक्कं किइकम्म कोस कीरइ वा! ॥ १७ ॥ सीयले खुड्डए कण्हे सेवए पालए तहा । पंचेते दिढ़ता किइकम्मे होंति णायव्वा ॥ १८ ॥ असंजयं न बंदिज्जा मायरं पियरं गुरु । सेणावई पसत्थारं रायाणं देवयाणि य ॥१६ ।। समणं वंदिज्ज मेहावी संजयं सुसमाहियं । पंचसमिय तिगुत्तं अस्संजमदुगु छगं । ।। ११२० ॥ पंचण्हं किइकम्मं मालामरुएण होइ दिढतो । वेरुलियनाणदंसणणीयावासे य जे दोसा ।।२१।। 15 पासत्था आसन्नो होइ कुसीलो तहेव संसत्तो। अहछंदोऽवि य एए अवंदणिज्जा जिणमयं मि ।। १ ।। (प्र.) पासस्थाई वंदमाणस्स नेव कित्ति न निज्जरा होइ। कायकिलेसं एमेव कुणई तह कम्मबंधं च ॥ २२ ॥ जे बंभचेरभट्ठ पाए उड्डति बंभयारिणं । 20 ते होंति कुटमंटा बोही य सदुल्लहा तेसि ।। २३ ।। सुठुतरं नासंती अप्पाणं जे चरित्तपन्भट्ठा । 2010_04 Page #135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११२ ] [ नियुक्तिसंग्रहः :: (१) आवश्यकनियुक्तिः गुरुजग वंदाविती सुसमण जहुत्तकारि च ॥ २४ ॥ असुइट्ठाणे पडिया चंपगमाला न कोरई सीसे ।। पासस्थाईठाणेसु. बटुमाणा तहा अपुज्जा ॥ २५ ॥ पक्कणकुले वसंतो सउणीपारोऽवि गरहिओ होइ । 5 इय गरहिया सुविहिया मज्झि वसंता कुसीलाणं ।। २६ ।। सुचिरंपि अच्छमाणो वेरुलिनो कायमणीपउम्मोसो। नोवेह कायमावं पाहण्णगुणेण नियएणं ।। २७ ।। भागअभावगाणि य लोए दूविहाणि होति दव्वाणि । वेरुलिओ तत्थ मणी अभावगो अन्नदव्वेहि ॥ २८ ।। 10 जीवो अणाइनिहणो तब्भाषणभाविओ य संसारे । खिप्पं सो भाविज्जइ मेलणदोसाणुभावेणं ।। २९ ।। अंबस्स य निबस्स य दुव्हंपि समागयाई मूलाई। संसग्गीइ विणट्ठो अंबो निबत्तणं पत्तो ।। ११३० ॥ सुचिरंपि अच्छमाणो नलथंभो उच्छवाडमउझमि । 15 कीस न जायइ महुरो जइ संसग्गी पमाणं ते ? ।। ३१।। ऊणगसयभागेणं बिबाइं परिणमंति तन्भावं । लवणागराइसु जहा वज्जेह कुसीलसंसग्गि ।। ३२ ।। जह नाम महुरसलिलं सायरसलिलं कमेण संपत्तं । पावेइ लोणभावं मेलणदोसाणुभावेणं ।। ३३ ।। 20 एवं खु सीलवंतो असीलवंतेहिं मीलिनो संतो। पावइ गुणपरिहाणि मेलणदोसाणुभावेणं ।। ३४ ।। खणमवि न खमं काउं अणाययणसेवणं सुविहियाणं । 2010_04 Page #136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३-वन्दनकाध्ययनम् :: ७-वन्दनकनियुक्तिः ] [ ११३ हंदि समुद्दमइगयं उदयं लवणत्तणमुवेइ ।। ३५ ॥ सुविहिय दुविहियं वा नाहं जाणामि हं खु छउमत्थो । लिगं तु पूययामी तिगरणसुद्धण भावेणं ।। ३६ ।। जइ ते लिंग पमाणं वंदाही निण्हवे तुमे सम्वे । 5 एए अबंदमारणस्स लिंगमवि अप्पमाणं ते ॥ ३७ ।। जइ लिंगमप्पमाणं न नज्जई निच्छएण को भावो ? । दळूण समलिंगं कि कायव्वं तु समणेणं ? ॥३८ ।। अप्पुव्वं दळूणं अब्भुट्टाणं तु होइ कायव्यं । साहुम्मि दिट्टपुत्वे जहारिहं जस्स जं जोग्गं ॥ ३९ ॥ 10 मुक्कधुरासंपागड-सेवीचरण करणपन्भर्से । लिंगावसेसमित्ते जं कोरइ तं पुणो वोच्छं ॥११४० ।। वायाइ नमोक्कारो हत्थुस्सेहो य सोसनमणं च । संपुच्छणऽच्छणं छोभवंदणं वंदणं वावि ।। ४१ ।। परियापरिसपुरिसे खित्तं कालं च आगमं नच्चा । 15 कारणजाए जाए जहारिहं जस्स जं जुग्गं ॥ ४२ ।। एताई अकुव्वंतो जहारिहं अरिहदेसिए मग्गे । न भवइ पवयणभत्ती अभत्तिमंतादो दोसा ।। ४३ ॥ तित्थयरगुणा पडिमासु नत्थि निस्संसयं वियाणतो । तित्थयरेत्ति नमतो सो पावइ निज्जरं विउलं ।। ४४ ।। 20 लिगं जिणपण्णत्तं एव नमंतस्स निज्जरा विउला। जइवि गुणविप्पहीणं वंदइ अझप्पसोहीए ॥४५ ।। संता तित्थयरगुणा तित्थयरे तेसिमं तु अज्झप्पं । 2010_04 Page #137 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११४ ] [ नियुक्तिसंग्रहः :: (१) आवश्यकनियुक्तिः न य सावज्जा किरिया इयरेसु धुवा समणुमन्ना ।। ४६ ।। जह सावज्जा किरिया नस्थि य पडिमासु एवमियराऽवि । तयभावे नस्थि फलं अह होइ अहेउगं होइ ।। ४७ ।। कामं उभयाभावो तहवि फलं अस्थि मणविसुद्धोए। 5 तीए पुण मणविसुद्धीइ कारणं होंति पडिमाउ ।। ४८ ।। जइवि य पडिमाउ जहा मुणिगुणसंकप्पकारणं लिंगं । उभयमवि अस्थि लिंगे न य पडिमासूभयं अस्थि ।। ४६ ।। नियमा जिणेसु उ गुणा पडिमानो दिस्स जे मणे कुणइ । अगुणे उ वियागंतो कं नमउ मणे गुणं काउं? ।। ११५० ।। 10 जइ वेलंबलिंगं जाणंतस्स नमओ हवइ दोसो । निद्धंधसमिय नाऊण वंदमाणे धुवो दोसो ॥ ५१ ।। रुप्पं टंकं विसमाहयक्खरं नवि य रूवमओ छेओ। दुग्हपि समानोगे रूवो छेयत्तणमुवेइ ।। ५२ ।। रुप्पं पत्तेयबुद्धा टंक जे लिंगधारिणो ममणा । दव्वस्स य भावस्स य छेओ समणो समाप्रोगे ।। ५३ ।। कामं चरणं भावो तं पुण नाणसहिओ समाणेई । न य नाणं तु न भावो तेण रयणाणि पणिवयामो ।। ५४ ।। तम्हा रण बज्झकरणं मज्झ पमाणं न यावि चारित्तं । नाणं मज्झ पमाणं नाणे अ ठिअं जओ तित्थं ।। ५५ ।। नाऊण य सब्भावं अहिगमसंमंपि होइ जीवस्स । जाईसरणनिसग्गुग्गयावि न निरागमा दिट्ठी ॥ ५६ ।। नाणं सविसयनिययं न नाणमित्तेण कज्जनिष्फत्ती । 15 20 2010_04 Page #138 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३-वन्दनकाध्ययनम् :: ७-वन्दनक नियुक्तिः ] [ ११५ मगष्ण दिट्टतो होइ सचिट्ठो अचिट्ठो य ॥ ५७ ।। आउज्जनट्टकुसलावि नट्टिया तं जणं न तोसेइ । जोगं अजुजमाणी निदं खिसं च सा लहइ ॥५८ ।। इय लिंगनाणसहिओ काइयजोगं न जुजई जो उ । 5 न लहइ स मुक्खसुक्खं लहइ य निदं सपक्खाप्रो ।। ५६ ।। जाणंतोऽवि य तरिउं काइयजोगं न जुजइ नईए । सो वुज्झइ सोएणं एवं नाणी चरणहीणो ।। ११६० ।। गुणाहिए वंदणयं छउमत्थो गुणागुणे प्रयाणतो । वंदिज्जा गुणाहीणं गुणहियं वावि वंदावे ॥ ६१ ।। 10 आलएणं विहारेणं ठाणाचंकमणेण य । सक्को सुविहिओ नाउं भासावेणइएण य ।। ६२ ।। आलएणं विहारेणं ठाणे चंकमणेण य । न सक्को सुविहिओ नाउं भासावेणइएण य ।। ६३ ।। भरहो पसन्नचंदो सभितरबाहिरं उदाहरणं । 15 दोसुप्पत्तिगुणकरं न तेसि बज्झं भवे करणं ।। ६४ ॥ पत्तेयबुद्धकरणे चरणं नासंति जिणवरिंदाणं ।। पाहच्च भावकहणे पंचहि ठाणेहि पासत्था ।। ६५ ।। उम्मग्गदेसणाए चरणं नासिति जिणवरिंदाणं । बावन्नदसणा खलु न हु लब्भा तारिसा द? ॥६६ ॥ 20 जह नाणेणं न विणा चरणं नादंसणिस्स इय नाणं । न य दंसणं न भावो तेन चरणदिद्धि पणिवयामो ।। ६७ ।। जुगवंपि समुप्पन्नं सम्मत्तं अहिगमं विसोहेइ । 2010_04 Page #139 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ नियुक्तिसंग्रहः :: (१) आवश्यकनियुक्ति: जह कायगमंजणाई जलदिट्टीओ विसोहंति ॥ ६८ ।। जह जह सुज्झइ सलिलं तह तह रूवाई पासई दिट्ठी । इय जह जह तत्तरुई तह तह तत्तागमो होइ ।। ६९ ।। कारणकज्जविभागो दीवपगासाण जुगवजम्मेवि । 5 जुगवृप्पन्नपि तहा हेऊ नाणस्स सम्मत्तं ।। ११७० ॥ नाणस्स जइवि हेऊ सविसयनिययं तहावि सम्मत्तं । तम्हा फलसंपत्ती न जुज्जए नाणपक्खव ॥१॥ जह तिक्खरुईवि नरो गंतु देसंतरं नयविहूणो। पाबेइ न तं देसं नयजुत्तो चेव पाउणइ ॥२॥ 10 इय नाण चरणहीणो सम्मदिट्ठीवि मुक्खदेसं तु । पाउणइ नेय (व)नाणाइसंजुओ चेव पाउणइ ।। ३ ।। (प्र०) धम्मनियत्तमईया परलोगपरम्मुहा विसयगिद्धा । चरणकरणे असत्ता सेणियरायं ववइति ।। ११७१ ।। ण सेणिओ आसि तया बहुस्सुनो, न यावि पन्नत्तिधरो न वायगो । सो प्रागमिस्साइ जिणो भविस्सइ, समिक्ख पन्नाइ वरं खू दंसणं ।। ७२ ।। भट्ठण चरित्ताओ सुट्ट्यरं दंसणं गहेयव्वं । सिझंति चरणरहिया दंसणरहिया न सिझंति ।। ७३ ।। दसारसीहस्स य सेणियस्सा, पेढालपुत्तस्स य सच्चइस्स । अणुत्तरा सणसंपया तया, विणा चरित्तेणहरं गई गया।७४। सवाओवि गईप्रो अविरहिया नाणदंसणधरेहिं । 15 2010_04 Page #140 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३- वन्दनकाध्ययनम् :: ७-वन्दनकनियुक्तिः ] [ ११७ ता मा कासि पमायं नाणेण चरित्तरहिएणं ।। ७५ ।। सम्मत्तं अचरित्तस्स हुज्ज भयणाइ नियमसो नत्थि । जो पुण चरित्तजुत्तो तस्स उ नियमेण सम्मत्तं ।। ७६ ।। जिणवयणबाहिरा भावणाहिं उन्धट्टणं प्रयागंता । 5 नेरइयतिरियएगिदिएहि जह सिज्झई जीवो ॥ ७७ ।। सुट्ठवि सम्मट्ठिो न सिझई चरणकरणपरिहीणो । ज चेव सिद्धिमूलं मूढो तं चेव नासेइ ॥ ७८ ।। दसणपक्खो सावय चरित्तभट्ठ य मंदधम्मे य ।। दसणचरित्तपक्खो समणे परलोगकंखिम्मि ।। ७६ ।। 10 पारंपरप्पसिद्धी दसणनाणेहिं होइ चरणस्स । पारंपरप्पसिद्धी जह होइ तहऽन्नपाणाणं ॥११८० ॥ जम्हा दंसणनाणा संपुण्णफलं न दिति पत्तेयं । चारित्तजुया दिति उ विसिस्सए तेण चारित्तं ॥८१ ।। उज्जममाणस्स गुणा जह हुँति ससत्तिओ तवसुएसु। 15 एमेव जहासत्ती संजममाणे कहं न गुणा ? ।। ६२ ।। अणिगृहंतो विरियं न विराहेइ चरणं तवसुएसु। जइ सजमेऽवि विरियं न निगूहिज्जा न हाविज्जा ॥ ८३ ।। संजमजोएस सया जे पुण संतविरियावि सीयंति । कह ते विसुद्धचरणा बाहिरकरणालसा हुँति ? ।। ८४ ।। 20 आलंबणेण केणइ जे मन्ने संयम पमायति । न हु तं होइ पमाणं भूयत्थगवेसणं कुज्जा ।। ८५ ॥ सालंबणो पडतो अप्पाणं दुग्गमेऽवि धारेइ । 2010_04 Page #141 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११८ ] निर्युक्तिसंग्रह: :: (१) आवश्यकनियुक्तिः ।। ८६ ।। 11 इय सालंबणसेवा धारेह जई असढभावं आलंबणहीणो पुण निवडइ खलिओ अहे दुरुत्तारे । इय निक्कारणसेवी पडइ भवोहे अगाहंमि ॥ ८७ ॥ जे जत्थ जया भग्गा ओगासं ते परं श्रविदंता । 5 गंतु तत्थऽचयंता इमं पहाणंति घोसंति ॥ ८८ ॥ नीयावासविहारं चेइयभत्ति च अज्जियालाभं । विगईसु य पडिबंधं निद्दोसं चोइया बिंति ॥ ८६ ॥ जाहेवि य परितंता गामागरनगरपट्टणमडंता । तो केइ नीयवासी संगमथेरं ववइसंति ।। ११९० ।। 10 संगमथेरायरिओ सुठु तवस्सी तहेव गीयत्थो । पेहित्ता गुणदोसं नीयावासे पवत्तो (नो) उ ।। ६१ ।। ओमे सीसपवासं अप्पडिबंधं प्रजंगमत्तं च I न गणंति एगखिते गणंति वासं निययवासी ।। ६२ ।। चेइयकुलगणसंघे अन्नं वा किचि काउ निस्साणं । 15 श्रहवावि अज्जवयरं तो सेवंती प्रकरणिज्जं ।। ९३ ।। चेयपूया किं वयरसामिरगा मुणियपुव्वसारेणं । न कया पुरियाइ ? तओ मुक्बंग सावि साहूणं ।। ९४ ।। श्रोहावणं परेसि सतित्थउ भावणं च वच्छलं । न गर्णति गणेमाणा पुच्वुच्चियपुष्कमहिमं च ।। ६५ ।। अज्जियलाभे गिद्वा सएण लाभेण जे असंतुट्टा | 20 भिक्खायरियाभग्गा अन्नियपुत्तं बबइसंति ।। ९६ ।। श्रनियपुत्तायरिम्रो भत्तं पाणं च पुष्कचूलाए । 2010_04 Page #142 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३-वन्दनकाध्ययनम् ::७-वन्दनकनियुक्तिः ] [ ११६ उवणीयं भुजतो तेणेव भवेण अंतगडो ॥६७ ।। गयसीसगणं ओमे भिक्खायरियाअपच्चलं थेरं । न गणंति सहावि सढा अज्जियलाहं गवेसंता ॥ ६८ ।। भत्तं वा पाणं वा भुत्तणं लावलवियमविसद्धं । 5 तो अवज्जपडिच्छन्ना उदायणरिसिं ववइसंति ।। ६६ ।। सीयललुक्खाऽणुचियं वएस विगईगएण जावितं । हट्ठावि भणति सढा किमासि उदायणो न मुणी? ||१२००॥ सुत्तत्थबालवुड्ड य असहू दवाइआवईप्रो या । निस्साणपयं काउं संथरमाणावि सोयंति ।। १२०१ ॥ 10 आलंबणाण लोगो भरिओ जीवस्स अजउकामस्स । जं जं पिच्छइ लोए तं तं प्रालंबणं कुणइ ॥ १२०२॥ जे जत्थ जया जइया बहुस्सुया चरणकरणपन्भट्ठा। जं ते समायरंती आलंबण मंदसड्डाणं ।। १२०३ ।। जे जत्थ जया जइया बहुस्सुया चरणकरणसंपन्ना । 15 जं ते समायरंती आलंबण तिव्वसड्डाणं' ॥ १२०४ ।। दंस गनाणचरित्ते तवविणए निच्चकालपासस्था । एए अवंदणिज्जा जे जसघाई पवयणस्स ।। १२०५ ।। किइकम्म च पसंसा सुहसीलजणम्मि कम्मबंधाय । जे जे पमायठाणा ते ते उहिया हुँति ॥ १२०६ ।। 20 दसणनाणचरित्ते तवविणए निच्चकालमुज्जुत्ता । ए ए उ वंदणिज्जा जे जसकारी पवयरणस्स ॥ १२०७ ।। किइकम्मं च पसंसा संविग्गजणंमि निज्जरट्टाए । 2010_04 Page #143 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२० ] .. नियुक्तिसंग्रहः : (१) आवश्यकनियुक्तिः जे जे विरईठाणा ते ते उहिया हुँति ॥ १२०८ ।। आयरिय उवज्झाए पवत्ति थेरे तहेव रायणिए । एएसि किइकम्मं कायव्वं निज्जरवाए ॥ १२०६ ।। मायरं पियरं वावि जिट्टगं वावि भायरं । 5 किइकम्मं न कारिज्जा सव्वे राइणिए तहा ।। १२१० ।। पंचमहन्वयजुत्तो अणलस माणपरिवज्जियमईओ। संविग्गनिज्जरट्ठी किइकम्मकरो हवइ साहू ॥११ ।। वक्खित्तपराहुत्ते अ पमत्ते मा कया हु वंदिज्जा । पाहारं च करितो नोहरं वा जइ करेइ ॥१२ ।। 10 पसंते आसणत्थे य, उवसंते उवदिए। अणुन्नवित्तु मेहावी किइकम्मं पउंजए ।। १३ ।। पडिक्कमणे सज्झाए काउस्सग्गावराहपाहुणए । आलोयणसंवरणे उत्तम? य वंदणयं ॥ १४ ।। चत्तारि पडिक्कमणे किइकम्मा तिन्नि हुँति सज्झाए। पुवण्हे अबरण्हे किइकम्मा चउदस हवंति ॥ १५ ।। दो (दु) ओणयं अहाजायं किइकम्म बारसावयं । चउसिरं तिगुत्तं च दुपवेसं एगनिक्खमणं ॥१६ !। अवणामा दुन्नऽहाजायं, आवत्ता बारसेव उ । सीसा चत्तारि गुत्तीओ, तिन्नि दो य पवेसणा ।। १७ ।। 20 एगनिक्खमणं चेव, पणवीसं वियाहिया। आवस्सगेहि परिसुद्धं, किइकम्मं जेहि कोरई ॥१८ ।। किइकम्मपि करितो न होइ किइकम्मनिज्जराभागी । 15 2010_04 Page #144 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३-वन्दनकाध्ययनम् :: ७-वनन्दकवनियुक्तिः ] [ १२१ पणवीसामन्नयरं साहू ठाणं विराहितो ॥१९ ।। पणवीसा(आवास्सग) परिसुद्धं किइकम्मं णो पउंजइ गुरूणं । सो पावइ निव्वाणं अचिरेण विमाणवासं वा ।। १२२० । अणाढियं च थद्धं च पविद्धं परिपिडियं । 5 टोलगइ अंकुसं चेव तहा कच्छारगियं ॥२१ ।। मच्छुव्वत्तं मणसा पउ8 तह य वेइयाबद्धं । भयसा चेव भयंतं, मित्ती गारवकारणा ॥२२॥ तेणियं पडिणियं चेव रुटु तज्जियमेव य । सदं च हीलियं चेव तहा विपलिउंचियं ॥ २३ ॥ 10 दिट्ठमदिटुं च तहा सिंगं च करमोअणं । आलिट्ठमणासिट्ट, ऊणं उत्तरचूलियं ॥ २४ ।। मूयं च ढड्डरं चेव चुड्डलि अपच्छिमं। बत्तीसदोसपरिसुद्धं किइकम्म पउंजई ।। २५ ।। किइकम्मपि करितो न होइ किइकम्मनिज्जराभागी। 15 बत्तीसामन्नयरं साहू ठाणं विराहितो ॥२६ ।। बत्तीसदोसपरिसुद्धं किइकम्मं जो पउंजइ गुरूणं । सो पावइ निवाणं अचिरेण विमाणवासं वा ॥ २७ ॥ प्रावस्सएसु जह जह कुणइ पयत्तं अहोणमइरित्तं । तिविहकरणोवउत्तो तह तह से निज्जरा होइ ॥ २८ ।। 20 विणओवयार माणस्स भंजणा यूअणा गुरुजणस्स । तित्थयराण य प्राणा सूयधम्माराहणाऽकिरिया ।। २९ ।। विणओ सासणे मूलं विणीप्रो संजओ भवे । 2010_04 Page #145 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२२ ] [ नियुक्तिसंग्रहः :: (१) आवश्यकनियुक्तिः विणयाउ विष्पमुक्कस्स, को धम्मो को तवो? ॥१२३०।। जम्हा विणयइ कम्मं अट्ठविहं चाउरंतमुक्खाए । तम्हा उ वयंति विऊ विणउत्ति विलीनसंसारा ॥ ३१ ॥ _ 'इच्छामि खमासमणो! वंदिउं जावणिज्जाए निसोहियाए 5 अणुजाणह मे मिउग्गहं निसीहि, अहोकायं कायसंफासं, खम णिज्जो मे किलामो, अप्पकिलंताणं बहुसुभेण भे दिवसो बइक्कतो?, जत्ता भे? जवणिज्जं च भे? खोमेमि खमासमणो ! देवसियं वइक्कम, प्रावस्सियाए पडिक्कमामि खमा समणाणं देवसिपाए आसायणाए तितोसण्णयराए जंकिंचि 10 मिच्छाए मणदुक्कडाए वयदुक्कडाए कायदुक्कडाए कोहाए माणाए मायाए लोभाए सव्वकालियाए सव्वमिच्छोवयाराए सव्वधम्माइक्कमणाए आसायणाए जो मे अइयारो कओ तस्स खमासमणो! पडिक्कमामि निन्दामि गरिहामि अप्पाणं वोसिरामि (सूत्रम्) - इच्छा य अणुन्नवणा अव्वाबाहं च जत्त जवणा य । अवराहखामणावि य छट्ठाणा हुँति वंदणए ॥ ३२ ।। णामं ठवणादविए खित्ते काले तहेव भावे य । एसो खलु इच्छाए णिक्खेवो छविहो होइ ।। ३३ ।। नामं ठवणा दविए खित्ते काले तहेव भावे य । 20 एसो उ अणुण्णाए णिक्खेवो छविहो होइ ।। ३४ ।। णामं ठवणा दविए खित्ते काले तहेव भावे य। एसो उ उग्गहस्सा णिक्खेवो छविहो होइ ।। ३५ ।। 2010_04 Page #146 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३-वन्दनकाध्ययनम् :: ७-वन्दनकनियुक्तिः ] [ १२३ बाहिर खित्तमि ठिओ अणुन्नवित्ता मिउग्गहं फासे । उग्गहखेत्तं पविसे जाव सिरेणं फुसइ पाए ।। ३६ ।। अव्वाबाहं दुविहं दवे भावे य जत्त जवणा य । अवराहखामणावि य सवित्थरत्थं विभासिज्जा ।। ३७ ।। छंदेणऽणुजाणामि तहत्ति तुझंपि वट्टई एवं । प्रहमवि खामेमि तुमे वयणाई वंदणरिहस्स ।। ३८ ।। तेणविपडिच्छियच्वं गारवरहिएण सुद्धहियएण । किइकम्मकारगस्सा संवेगं संजणंतेणं ॥३९ ।। प्रावत्ताइसु जुगवं इह भणिओ कायवायवावारो। 10 दुण्हेगया व किरिया जओ निसिद्धा अउ अजुत्तो ।। १२४० ।। भिन्नविसयं निसिद्धं किरियादुगमेगया ण एगमि । जोगतिगस्स वि भंगियसुत्ते किरिया जओ भणिया ।। ४१ ।। सीसो पढमपवेसे वंदिउमावरिसआए पडिक्कमिउं । बितियपवेसंमि पुणो वंदइ कि ? चालणा अहवा ॥ ४२ ।। 15 जह दूओ रायाणं णमिउं कज्जं निवेइउं पच्छा । विसज्जिप्रोवि वंदिय गच्छइ साहूवि एमेव ॥४३ ।। एयं किइकम्मविहिं जुजंता चरणकरणमुवउत्ता। साहू खवंति कम्मं अणेगभवसंचियमणंतं ।। १२४४ ॥ ।। इति वन्दनकनियुक्तिः ।। ७ ।। 2010_04 Page #147 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२४ ] [ नियुक्ति संग्रहः :: (१) आवश्यकनियुक्तिः ॥ ४ ॥ अथ प्रतिक्रमणाध्ययनम् ॥ ॥८॥प्रतिक्रमणानियुक्तिः ॥ पडिकमणं पडिकमग्रो पडिकमियव्वं च आणुपुवीए । तीए पच्चुप्पन्ने प्रणागए चेव कालंमि ।। ४५ ।। जीवो उ पडिक्कमओ असुहाणं पावकम्मजोगाणं । झाणपसत्थाजोगा जे ते ण पडिक्कमे साहू ।। ४६ ।। पडिकमणं पडियरणा परिहरणा वारणा नियत्ती य । निदा गरिहा सोही पडिकमणं अट्टहा होइ ॥ ४७ ।। णामं ठवणा दविए खित्ते काले तहेव भावे य। 10 एसो पडिकमणस्सा णिवखेवो छविहो होइ ।। ४८ ।। णामं ठवणा दविए खित्ते काले तहेव भावे य। एसो पडियरणाए णिक्खेवो छविहो होइ ॥४६ ।। णामं ठवणा दविए परिरय परिहार वज्जणाए य। अणुगह भावे य तहा अविहा होइ परिहरणा ।। १२५० ।। 15 णामं ठवणा दविए खित्ते काले तहेव भावे य । एसो उ वारणाए मिक्खेवो छविहो होइ ॥५१ ।। नाम ठवणा दविए खित्ते काले तहेव भावे य । एसो उ नियत्तीए णिक्खेवो छविहो होइ ॥ ५२ ।। णामं ठवणा दविए खित्ते काले तहेव भावे य। 20 एसो खलु निदाए णिक्खेवो छन्विहो होइ ॥ ५३ ।। 2010_04 Page #148 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४-प्रतिक्रमणाध्ययनम् :: ८-प्रतिक्रमणानियुक्तिः ] [ १२५ नाम ठवरणा दविए खित्ते काले तहेव भावे य। एसो खलु गरिहाए खिक्खेवो छव्विहो होइ ॥५४ ।। नामं ठवणा दविए खित्ते काले तहेव भावे य।। एसो खलु सुद्धीए निक्खेवो छविहो होइ ॥५५ ।। 5 अद्धाणे पसाए दुद्धकाय विस भोयणतलाए। दोकन्नाओ पइमारिया य वत्थे य अगए य ।। ५६ ।। आलोवणमालुचन वियडीकरणं च भावसोही य। पालोइयंमि पाराहरणा अणालोइए भयणा ॥५७ ।। सपडिक्कमणो धम्मो पुरिमस्स य पच्छिमस्स य जिरणस्स । 10 मज्झिमयारण जिणाणं कारणजाए पडिक्कमणं ।। ५८ ।। जो जाहे प्रावन्नो साहू प्रनयरंमि ठाणंमि । सो ताहे पडिक्कमई मज्झिमयाणं जिणवराणं ॥ ५९ ।। बावीसं तित्थयरा सामाइयसंजमं उवइति । छेओवट्ठावणयं पुरण वयंति उसमो य वीरो य ।। १२६० ।। 13 पडिकमणं देसियं राइयं च इत्तरियमावकहियं च । पक्खियचाउम्मासिय संवच्छर उत्तिम? य ॥६१ ।। पंच य महन्वयाई राईछट्ठाई चाउजामो य । भत्तपरिण्णा य तहा दुहंपि य आवकहियाइं ।। ६२ ।। उच्चारे पासवणे खेले सिंघाणए पडिक्कमणं । 20 प्राभोगमणाभोगे सहस्सकारे पडिक्कमणं ॥६३ ॥ मिच्छत्तपडिक्कमणं तहेव अस्संजमे पडिक्कमणं । कसायाण पडिक्कमणं जोगाण य अप्पसत्थाणं ॥ ६४ ।। 2010_04 Page #149 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२६ ] [ नियुक्तिसंग्रहः :: (१) आवश्यक नियुक्तिः संसारपडिक्कमणं च उम्विहं होइ आणुपुटवीए । भावपडिक्कमणं पुण तिविहं तिविहेण नेयत्वं ॥६५ ।। गंधवनागदत्तो इच्छइ सप्पेहि खिल्लि उ इहयं । तं (सो) जइ कहिं वि खज्जइ इत्थ हु दोसोन का (दा) यवो।६६। तरुणदिवायरनयणो विज्जुलया-चंचलग्गजोहालो। घोरमहाविसदाढो उक्का इव पज्जलियरोसो ॥ ६७ ।। डक्को जेण मणूसो कयमकयं न याणई सुबहुयंपि । अहिस्समाणमच्चु कह घिच्छसि तं महानागं? ।। ६८ ।। मेरुगिरितुगसरिसो अटुफणो जमलजुगलजीहालो । 10 दाहिणपासंमि ठिओ माणेण वियट्टई नागो ॥६९ ॥ डक्को जेण मणुसो थद्धो न गणेइ देवरायमवि । तं मेरुपध्वयनिभ कह घिच्छसि तं महानागं ? ।। १२७० ।। सलियविल्लहलगई सस्थिअलंछण-फणंकिअपडागा। मायामइआ नागी नियडिकवडवंचणाकुसला ॥७१ ।। 15 तं च सि वालग्गाही अणोसहिबलो अ अपरिहत्थो य । सा य चिरसंचियविसा गहणंमि वणे वसइ नागी ।। ७२ ॥ होहो ते विणिवायो तीसे वाढंतरं उवगयस्स । अप्पोसहिमंतबलो न हु अप्पाणं चिगिच्छिहिसि ॥ ७३ ।। उत्थरमाणो सव्वं महालओ पुन्नमेहनिग्योसो। उत्तरपासंमि ठिपो लोहेण विवट्टयइ नागो ॥७४ ।। डक्को जेण मणुसो हाइ महासागरुव्व दुप्पूरो। तं सम्वविससमुदयं कह घिच्छसि तं महानागं? ।। ७५ ॥ 20 2010_04 Page #150 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४-प्रतिक्रमणाध्ययनम् :: ८-प्रतिक्रमणानियुक्तिः ] [ १२७ एए ते पावाही चत्तारि वि कोहमाणमयलोमा। जेहि सया संतत्तं जरियमिव जयं कलकलेइ ॥ ७६ ।। एएहिं जो खज्जइ चउहिवि प्रासोविसेहि पावेहिं । अवसस्स नरयपडणं णस्थि सि आलंबणं किंचि ॥ ७७ ।। 5 एएहि अहं खइओ चउहिवि प्रासीवीसे हि पावे (घोरे) हिं । विसनिग्घायणहेउं चरामि विविहं तवोकम्मं ॥७८ ।। सेवामि सेलकाणण-सुसाणसुन्नघररुक्खमूलाई। पावाहीणं तेसि खणमवि न उवेमि वीसंभं ॥ ७९ ।। अच्चाहारो न सहे अइनिद्धेण विसया उइज्जति । 10 जायामायाहारो तंपि पकामं न इच्छामि ॥ १२८० ।। उस्सन्नकयाहारो अहवा विगई विज्जियाहारो । जं किंचि कयाहारो अवउझियथोवमाहारो ॥ ८१ ।। थोवाहारो थोवभणियो य जो होइ थोवनिहो य। थोवोवहिउवगरणो तस्स हु देवावि पणमंति ।। ८२ ।। 15 सिद्धे नमंसिऊणं संसारस्था य जे महाविज्जा। वोच्छामि दंडकिरियं सम्वविसनिवारिणि विजं ॥ ८३ ।। सव्वं पाणाइवायं पच्चक्खाई मि अलियवयणं च । सवमदत्तादाणं अब्बंभ परिग्गहं सव्वाहा ॥१२८४ ।। नमो अरिहंताणं नमो सिद्धाणं नमो प्रायरियाणं नमो उव20 ज्जयाणं नमो लोए सव्वसाहूणं एसो पंच नमुक्कारो सव्व. पावप्पणासणो मंगलाणं च सन्वेसि पढमं हवइ मंगलं ।। सूत्रं ।। करेमि भंते ! सामाइवं । सव्वं सावज्ज जोगं पच्चक्खामि 2010_04 Page #151 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२८ ] [ नियुक्तिसंग्रहः :: (१) आवश्यकनियुक्तिः जावज्जीवाए तिविहं तिविहेणं मणेणं वायाए काएणं न करेमि न कारवेमि करतंपि अन्नं न समणुजाणामि तस्स भंते पडि कमामि निदामि गरिहामि अप्पाणं वोसिरामि ।। सूत्रम् ।। ___ चत्तारि मंगलं, अरिहंता मंगलं, सिद्धा मंगलं, साहू मंगलं, 5 केवलिपण्णत्तो धम्मो मंगलं ॥ सूत्रं ।। चत्तारि लोगुत्तमा, अरिहंता लोगुत्तमा, सिद्धा लोगुत्तमा, साहू लोगुत्तमा, केवलिपण्णत्तो धम्मो लोगुत्तमो ।। सूत्रं ।।। - चत्तारि सरणं पवज्जामि, अरिहंते सरणं पवज्जामि, सिद्धे सरणं पवज्जामि, साहू सरणं पवज्जामि, केवलिपण्णतं धम्म 10 सरणं पवज्जामि ।। सूत्रं ।। इच्छामि पडिक्कमिउं जो मे देवसिओ अइआरो कओ काइओ वाइओ माणसिओ उस्सुत्तो उम्मग्गो अकप्पो अकरणिज्जो दुज्झाओ दुविचितिनो अगायारो अणिच्छियन्वो असमण पाउग्गो नाणे दंसणे चरित्ते सुए सामाइए तिण्हं गुत्तीणं 15 चउण्हं कसायाणं पंचण्हं महत्वयाणं छण्हं जीवणिकायाणं सत्तण्हं पिंडेसणाणं अटण्हं पवयणमाऊणं नवण्हं बंमचेरगुत्तीणं दसविहे समणधम्मे समणाणं जोगाणं जं खंडिअं जं विराहियं तरस मिच्छामि दुक्कडं ।। सूत्रं ।। पडिसिद्धाणं करणे किच्चाणमकरणे य पडिक्कमणं । 20 असदहणे य तहा विवरीयपरूवणाए य ॥ १२८५ ।। इच्छामि पडिक्कमिउं । इरिआवहिआए विराहणाए । गमणाऽऽगमणे पाणक्कमणे बोयक्कमणे हरियक्कमणे ओसा 2010_04 Page #152 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४-प्रतिक्रमणाध्ययनम् :: ८-प्रतिक्रमणानियुक्तिः ] [ १२९ उत्तिग पणग दग मट्टी मक्कडा संताणा संकमणे जेमे जीवा विराहिया एगिदिया बेइंदिया तेइंदिया चरिदिया पंचिदिया अभिहया वत्तिया लेसिया संगाइया संघट्टिया परियाविया किलामिया उद्दविया ठाणाओ ठाणं संकामिया जीवियाओ 5 ववरोविया, तस्स मिच्छामि दुक्कडं ।। सूत्रम् ।। इच्छामि पडिक्कमिउं, पगामसिज्झाए निगामसिज्झाए संथाराउव्वट्टणाए परिअट्टणाए आउंट्टणाए पसारणाए छप्पइयसघट्टणाए कुइए कक्कराइए छोए जमाइए प्रामोसे ससर क्खामोसे आउलमाउलाए सोप्रणवत्तिआए इत्थीविष्परि10 आसिप्राए दिट्ठोविपरिआसिआए मणविपरिआसिआए पाण भोअणविपरिमासिआए जो मे देवसिम्रो प्रहारो को तस्स मिच्छामि दुक्कडं। पडिक्कमामि गोप्ररचरिमाए भिषखायरिआए उग्घाडकवाडउग्घाडणयाए साणावच्छादारा-संघट्टणाए मंडिपाहुडिआए बलिपाहुडिआए ठवणापाहुडिआए संकिए सहसागारिए अणेसणाए पाणेसणाए पाणभोअणाए बीअभोणाए हरिप्रभोप्रणाए पच्छेकम्मिनाए पुरेकम्मिआए अदिट्ठहडाए दगसंसट्ठहडाए रयसंसट्टहडाए पारिसाडणिआए पारिट्ठावणिआए प्रोहासमिक्खाए जं उग्गमेणं उप्पायणेसणाए अपरि. सुद्धं परिग्गहिरं परिभुत्तं वा जं न परिढविणं तस्स मिच्छामि दुक्कडं । पडिक्कमामि चाउकालं सज्झायस्स अकरणयाए उभओकालं भंडोवगरणस्स अप्पडिलेहणाए दुप्पडिलेहणाए 15 2010_04 Page #153 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ निर्युक्तिसंग्रह: :: ( १ ) आवश्यकनियुक्तिः श्रप्पमज्जणाए दुपमज्जणाए श्रइक्कमे वइक्कमे अहश्रारे श्रणायारे, जो मे देवसिओ श्रश्रारो को तस्स मिच्छामि दुक्कडं । पडिक्कमामि एगविहे श्रसंजमे, पडिक्कमामि दोहि बंधहि रागबंधणेणं दोसबंधणेणं । पडिक्कमामि तोहि दंडेहि मणदंडेणं वयदंडेणं कायदंडेणं । पडिक्कमामि तीहि गुत्तीहि मणगुत्तिए वयगुत्तिए कायगुत्तिए । पंडिक्कमामि तोहि सल्लाह मायासल्लेणं नियाणसल्लेणं मिच्छादंसणसल्लेणं । पडिक्कमामि तीहि गारवेहि इड्डीगारवेणं रसगारवेणं सायागारवेणं । पडिक्कमामि तिहि विराहणाहि, नाणांवराहणाए दंसण10 विराहणाए चरितविराहणाए । पडिक्कमामि चउहि कसाएहि कोहकसाएणं माणकसाएणं मायाकसाएणं लोभकसाएणं । पडिक्कमामि चउहिं सन्नाहिंआहारसन्नाए भयसन्नाए मेहुणसन्नाए परिग्गहसन्नाए । पडिक्कमामि चउहि विकहाहि इत्थिकहाए भत्तकहाए देसकहाए रायकहाए । पडिक्कमामि 15 चउहि झाणेहिं श्रदृणं झाणेणं, रुद्देणं झाणेणं, धम्मेणं काणेणं, सुक्केणं झाणेणं ।। सूत्रम् ।। पडिक्कमामि पंचह किरिआहिं काइग्राए अहिगरणियाए पाउसिप्राए पारितावणिआए पाणाइवायकिरिआए। पडि. 20 वकमामि पंचहि कामगुणेहि सद्देणं रूवेण रसेणं गंधेणं फासेणं । पडिक्कमामि पंचहि महत्वएहि पाणाइवायाओ वेरमणं, मुसावायाओ वेरमणं, प्रदिन्नादाणाश्रो वेरमणं, मेहणाओ वेरमणं, परिग्गहाम्रो वेरमणं । पडिक्कमामि पंचहि समिईहि ईरियासमिइए भासासमिइए एसणास मिइए आयाणभंडमत्त. निक्खे १३० ] 2010_04 Page #154 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५- पारिष्ठापनिकाध्ययनम् :: ९ - पारिष्ठा. नियुक्ति: ] [ १३१ वणासमिइए उच्चार पासवण खेल जल्ल सिंघाण पारिहारिणयासमिइए । सूत्रम् ॥ ॥ १ ॥ अथ पारिष्ठापनिका नियुक्तिः ॥ 5 पारिट्ठावणियविहि वोच्छामि धीरपुरिसपण्णत्तं । जं णाऊण सुविहिया पवयणसारं उवलहंति ।। १ ।। एगेंदियंनोएगेंदिय पारिट्ठावणिया समासओ दुविहा । एएसि तु पयाणं पत्तेय परूवणं वोच्छं ॥ २ ॥ पुढवी आउक्काए तेऊबाऊवणस्सई चेव 1 एगेंदिय पंचविहा तज्जाय तहा य अतज्जाय ।। ३ ।। 10 दुविहं च होइ गहणं आयसमुत्थं च परसमुत्थं च । एक्केक्कंपि य दुविहं आभोगे तह अणाभोगे ।। ४ ।। नोए गिदिएहि जा सा सा दुविहा होइ आणुपुन्त्रीए । तसपाणेहिं सुविहिया ! नायव्वा नोत सेहिं च ॥ ५ ॥ तसपाहिं जा सा सा दुविहा होइ आणुपुव्वोए । 15 विगलिदियत से हि जाणे पंचिदिएहि च ।। ६ ।। विगलिदिएहि जा सा सा तिविहा होइ आणुपुव्वीए । बियतियचउरो यावि य तज्जाया तहा अतज्जाया || ७ ॥ पंचिदिएहि जा सा सा दुबिहा होइ आणुपुव्वीए । मणुएहिं च सुविहिया ! नायव्वा नोयमणुहि ॥ ८ ॥ 2010_04 Page #155 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३२ ] [ नियुक्तिसंग्रह: :: (१) आवश्यक नियुक्तिः 113 11 मणुएहिं खलु जा सा सा दुविहा होइ आणुपुव्वीए । संजयमणुएहि तह नायव्वाऽसंजएहि च संजयमणुएहिं जा सा सा दुविहा होइ आणुपुव्वीए । सच्चितेहि सुविहिया अच्चितेहि च नायव्वा ।। १० ।। अणभोग कारणेण व नपुं समाईसु होइ सच्चिता । वोसिरणं तु नपुं से सेसे कालं पडिक्खिज्जा ।। ११ ।। असिवे ओमोयरिए रायदृट्टे भए व आगाढे । गेलन्ने उत्तिमट्ठे नाणे तवदंसणचरिते ॥ १२ ॥ कडपट्टए य छिली कत्तरिया भंडु लोय पाढे य । 10 धम्मक हसन्निराउल ववहार विकिंचणं कुज्जा ॥ १३ ॥ अज्ज्ञाविओ मि एएहि चेव पडिसेहो, किंचऽहीतं ते । छलियकहाई कड्डइ कत्थ जई कत्थ छलियाई ? ।। १४ ।। पुव्वावर संजुतं वेरग्गकरं संततमविरुद्धं । पोराणमद्धमागहभासानिययं हवइ सुत्तं ।। १५ ।। 15 जे सुत्तगुणा वृत्ता (भिहित्ता ) तव्विवरीयाणि गाए पुवि । निच्छिण्णकारणाणं सा चेव विगिंचणे जयणा ॥ १६ ॥ कावालिए सरक्खे तव्वण्णिय वसलिंगरूवेणं । वेडु' बगपव्वइए कायव्वं विहीए वोसिरणं ।। १७ ।। निववल्लभबहुपक्खमि वावि तरुणवसहामिणं बेंति । 20 भिन्नकहाओ भट्ठाण घडइ इह वच्च परतित्थी ॥ १८ ॥ तुमए समगं आमंति निग्गओ भिक्खमाइलक्खेणं । नासइ भिक्खुकमाइसु छोढूण तओबि विपलाइ ।। १९ ।। 2010_04 Page #156 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४- प्रतिक्रमणाध्ययनम् :: ९ - पारिष्ठापनिका नियुक्तिः ] [ १३३ ।। २० ।। तिविहो य होइ जड्डो भासा सरीरे य करणजड्डो य । भासाजड्डो तिविहो जलमम्मण- एलमूओ य दंसणनाणचरिते तवे य समिईसु करणजोए य । उवदिट्ठपि न गेण्हइ जलमूओ एलमूओ य ।। २१ ।। 5 णाणायट्टा दिक्खा भासाजडो अपच्चलो तस्स | सोय बहिरो य नियमा गाहण उड्डाह अहिगरणे ।। २२ ।। तिविहो सरीरजड्डो पंथे भिक्खे य होइ वंदणए । एएहिं कारणेहिं जड्डस्स न कप्पइ दिक्खा ।। २३ ।। अद्धा पलिमंथो भिक्खायरियाए अपरिहत्थो य । 10 दोसा सरीरजड्डे गच्छे पुण सो अणुण्णाओ ।। २४ ।। उड़दुस्सासो अपरक्कमो य गेलन्नलाघवग्गि अहिउदए । जड्डस्स य आगाढे गेलण्ण असमाहिमरणं च ।। २५ ।। सेएण कक्खमाई कुत्था धुवणुप्पिलावणा पाणा । नत्थि गलओ य चोरो निंदिय मुंडाइ पवाए य ।। २६ ।। 15 इरियासमिई भासेसणा य आयाणसमिइगुत्तीसु । नवि टाइ चरणकरणे कम्मुदएणं करणजड्डो ।। २७ ।। एसोविन दिविखज्जइ उस्सग्गेणमह दिक्खिओ होज्जा । कारणगएण केणइ तत्थ विहि उवरि वोच्छामि ॥ २८ ॥ मोत्तुं गिलाणकज्जं दुम्मेहं पडियरइ जाव छम्मासा | 20 एक्केक्के छम्मासा जस्स व दट्टु विगिंचणया ।। २६ ।। पुण करणे जड्डो उक्कोसं तस्स होंति छम्मासा | कुलगण संघनिवेयण एवं तु विहितहि कुज्जा ।। ३० ।। जो 2010_04 Page #157 -------------------------------------------------------------------------- ________________ निर्युक्तिसंग्रह: : : ( १ ) आवश्यक नियुक्ति: आसुक्कारगिलाणे पच्चक्खाए व आणुपुव्वीए । अच्चित्तसंजयाणं वोच्छामि विहीए वोसिरणं ।। ३१ ।। एव य कालगयंमी मुणिणा सुत्तत्थगहियसारेण । नहु कायव्वं विसाओ कायव्वं विहीए वोसिरणं ।। ३२ ।। 5 पडिलेहणा दिसा गंतए य काले दिया य राम्रो य । कुसपडिमा पाणग नियत्तणे य तण-सीस- उबगरणे ॥ ८६ ॥ उट्ठाण णामगहणे पयाहिणे काउस्सग्गकरणे य । खमणे य असज्झाए तत्तो अवलोयणे चेव जहियं तु मासकष्पं वासावासं च संवसे साहू | 10 गीयत्था पढमं चिय तत्थ महाथंडिले पेहे ॥१॥ ( प्र० ) दिसा अवरदक्खिणा य अवरा य दक्खिणापुव्वा । ।। ८७ ।। १३४ ] अवरुत्तरा य पुव्वा उत्तरपुव्वुत्तरा चेव ।। ३३ ।। पउरन्नपाण पढमा बीयाए भत्तपाण ण लहंति । तइयाए उवहीमाई नत्थि चउत्थीए सज्झाओ ।। ३४ ॥ 15 पंचमियाए असंखडि छट्टीए गणविभेयण जाण । सत्तमिए गैलन्नं मरणं पुण अट्ठमी बिति ॥ ३५ ॥ पुव्वं दव्वालोयण पुब्वि गहणं च णंतकट्ठस्स । गच्छमि एस कप्पो अनिमित्ते होउवक्कमणं ।। ३६ ।। सहसा कालगयंमी मुणिणा सुत्तत्थगहियसारेण । न विसाओ कायव्वो कायव्वं विहीइ वोसिरणं ।। ३७ ।। जं वेलं कालगओ निक्कारण कारणे भवे निरीहो । 20 य हत्थ उडें ।। ३८ ।। छेयण बघण जग्गण-काइयमत्ते - - 2010_04 Page #158 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४-प्रतिक्रमणाध्ययनम् :: ९-पारिष्ठापनिकानियुक्तिः] [ १३५ अन्नाविटुसरीरे पंता वा देवया उ उट्ठज्जा । काइयं उब्बहत्थेण मा उ? बुज्झ गुज्झया ! ॥ ३९ ॥ वित्तासेज्ज हसे ज्ज व भोमं वा अट्टहास मुचेज्जा। अभीएणं तत्थ उ कायध्वं विहीए वोसिरणं ।। ४० ।। 5 दोन्नि य दिवड्डखेते दब्भम या पुत्तला उ कायब्वा । समखेत्तंमि उ एक्को अवड्डऽभीए ण कायव्वो ॥४१ ।। तिण्णेव उत्तराई पुणव्वसू रोहिणो विसाहा य । एए छ नक्खत्ता पणयालमुहुत्तसंजोगा ॥ ४२ ।। अस्सिणि कत्तिय मियसिर पुस्सो मह फग्गुहत्थ चिता य । 10 अणुराह मूल साढा सवणधणिट्ठा य भद्दवया ।। ४३ ।। तह रेवइत्ति एए पन्नरस हवंति तीसइमुहुत्ता । नवखत्ता नायव्वा परिट्ठवणविहीय कुसलेणं ॥४४ ।। सभिसया भरणीओ अद्दा अस्सेस साइ जेट्ठा य । एए छ नवखत्ता पनरसमुहुत्तसंजोगा ॥ ४५ ॥ सुत्तत्थतदुभविऊ पुरओ घेत्तूण पाणय कुसे य । गच्छइ य जइ उड्डाहो (सागारियं) परिढुवेऊण आयमणं।४६। थंडिलवाघाएणं अहवावि अणिच्छिए अणाभोगा। भमिऊण उवागच्छे तेणेव पहेण न नियत्ते ॥ ४७ ।। कुसमुट्ठी एगाए अव्वोच्छिण्णाइ एत्थ धाराए। 20 संथारं संथरेज्जा सव्वत्थ समो उ कायश्वो ।। ४८ ॥ विसमा जह होज्ज तणा उरि मज्झे व हेदुओ वावि । मरणं गेलण्णं वा तिण्हंपि ऊ निहिसे तत्थ ।। ४९ ॥ 2010_04 Page #159 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३६ ] [ नियुक्तिसंग्रहः :: (१) आवश्यकनियुक्तिः उरि आयरियाणं मज्झे वसहाण हेट्ठि भिक्खूणं । तिण्हपि रक्खणट्ठा सव्वत्थ समा उ कायव्वा ।। ५० ।। जत्थ य नत्थि तणाई चुण्णेहिं तत्थ केसरहिं वा । कायव्वोत्थ ककारो हेट्ठ तकारं च बंधेज्जा ।। ५१ ॥ जाए दिसाए गामो तत्तो सोसं तु होइ कायव्वं । उठेतरक्खणट्ठा एस विही से समासेणं ॥ ५२ ।। चिण्हट्ठा उवगरणं दोसा उ भवे अचिंधकरणमि । मिच्छत सो व राया व कुणइ गामाण वहकरणं ॥ ५३ ।। वसहि निवेसण साहो गाममज्झे य गामदारे य । 10 अंतरउज्जाणंतर निसीहिया उठ्ठिए वोच्छं ॥५४ ।। वसहिनिवेसणसाही गामद्ध चेव गाम मोत्तव्यो । मंडलकंडुद्देसे निसीहिआ चेव रज्जं तु ।। ५५ ।। असिवाइकारणेहिं तत्थ वसंताणं जस्स जो उ तवो। अभिगहियाणभिगहिओ सा तस्स उ जोगपरिवूड्डी ।। ५६ ।। 15 गिण्हइ णामं एगस्स दोण्हमहवावि होज्ज सन्वेसि । खिप्पं तु लोयकरणं परिण्णगणभेयबारसमं ।। ५७ ।। जो जहियं सो तत्तो नियत्तइ पयाहिणं न कायव्वं । उट्ठाणाई दोसा विराहणा बालवुड्डाणं ।। ५८ ।। उट्टाणाई दोसा उ होंति तत्थेव काउस्सग्गंमि । 20 आगम्मुवस्सयं गुरुसगासे विहीए उस्सग्गो ॥ ५९ ।। खमणे य असज्झाए राइणिय महाणिणाय नियगा वा । सेसेसु नस्थि खमणं नेव असज्झाइयं होइ ॥६० ॥ 2010_04 Page #160 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४-प्रतिक्रमणाध्ययनम् :: ९-पारिष्ठापनि कानियुक्तिः] [ १३७ अवरज्जुयस्स तत्तो सुत्तत्थविसारएहिं थिरएहि । अवलोयण कायन्वा सुहासुहगइनिमित्तट्ठा ॥६१ ।। जं दिसि विकड्डियं खलु सरीरयं अक्खुयं तं संवि (च)खें। तं दिसि सिवं वयंती सुत्तत्थविसारया घोरा ।। ६२ ।। 5 एत्य य थलकरणे विमाणिओ जोइसिओ वाणमंतर समंसि । ग (ख)ड्डाए भवजवासी एस गई से समासेण ॥ ६३ ।। एसो उ विही सव्वो कायवो सिमि जो जहिं वसइ । । असिवे खमण विवड्डी का उस्सगं च वज्जेज्जा ।। ६४ ।। एसो. दिसाविभागो नायवो दुविहदव्वहरणं च । 10 वोसिरणं अवलोयण सुहासुहगईविसेसो ॥६५॥ अस्संजयमणुएहिं जा सा दुविहा य आणुपुवीए । सच्चित्तेहिं सुविहिया ! अच्चित्तेहिं च नायव्वा ।। ६६ ।। कप्पट्टगरूयस्स य वोसिरणं संजयागमणं वसहीए। उदयपइ बहुसमागम विप्पजहऽऽलोयणं कुज्जा ॥६७ ।। 15 पडिणीयसरीरछुहणे वणीमगाईसु होइ अच्चित्तो। तोवेक्खकालकरणं. विप्पजहाविगिचणं कुज्जा ॥ ६८ ।। जोमणुएहि जा सा तिरिएहिं सा य होइ दुविहा उ । सच्चित्तेहिं सुविहआ ? अच्चित्तेहिं च नायव्वा ।। ६९ ।। चाउलोयगमाईहिं जलचरामाईण होइ सच्चित्ता। 20 जलथलखहकालगए अचित्ते विगिचणं कुज्जा ।।७।। णोतसपाणेहिं जा सा दुविहा होइ आणुपुवीए। आहारंमि सुविहिआ ? नायव्वा नोअआहारे ॥७१ ।। 2010_04 Page #161 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३८ ] [ नियुक्तिसंग्रहः :: (१) आवश्यक नियुक्तिः आहारंमि उ जा सा सा दुविहा होइ अणुपुत्रीए । जाया चेव सुविहिया ? नायव्वा तह अजाया य ।। ७२ ।। आहाकम्मे य तहा लोहविसे ओभिओगिए गहिए । एएण होइ जाया वोच्छं से विहीए वोसिरणं ।। ७३ ।। एगतमाणावाए अच्चित्तेः थंडिल्ले गुरूवइट्ठ । छारेण अक्कमित्ता तिट्ठाणं सावणं कुज्जा ॥ ७४ ।। आयरिए य गिलाए पाहुणए दुल्लहे सहसलाहे । एसा खलु अज्जाया वोच्छं से विहीए वोसिरणं ।। ७५ ।। एगतमणावाए . अच्चित्ते थंडिले गुरूवइ? । 10 आलोए तिणि पुंजे तिढाणं सावणं कुज्जा ।। ७६ ।। णोआहारंमी जा सा सा दुविहा होइ आणुपुवीए । उवगरणमि सुविहिया ? नायव्वा नोय उवगरणे ।। ७७ ।। उवगरणमि उ जा सा सा दुविहा होइ आणुपुवीए । जाया चेव सुविहिया ? नायव्वा तह अजाया य ।। ७८ ।। 15 जाया य वत्थयाए वंका य चोवरं कुज्जा । अज्जायवत्थपाए वोच्चत्थे तुच्छपाए य ।। १ ।। (प्र०) दुविहा जायमजाया अभिओगविसे य सुद्धऽसुद्धा य । एगं च दोण्णि तिण्णि य मूलुत्तरसुद्धजाणट्ठा (नाहि)॥७९।। नोउवगरणे जा सा चउन्विहा होइ आणुपुत्वीए । 20 उच्चारे पासवणे खेले सिंघाणऐ चेव ॥४० ।। उच्चारं कुब्वंतो छायं तसपाणरक्खणट्ठाए । कायदुयदिसाभिग्गहेय दो चेवऽभिगिण्हे ॥ ८१ ।। 2010_04 Page #162 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४-प्रतिक्रमणाध्ययनम् :: ९-पारिष्ठाप.नियुक्तिः ] [ १३६ पुढवि तसपाणसमुठ्ठिएहिं एत्थं तु होइ च उभंगो । पढमपयं पसत्थं सेसाणि उ अप्पसत्थाणि ।। ८२ ॥ गुरूमूलेवि वसंता अनुकूला जे न होंति उ गुरूणं । एएसि तु पयाणं दूरंदूरेण ते होंति ॥८३ ।। ॥ इति पारिष्ठापनिकानियुक्तिः ।।९।। पडिक्कमामि छहि लेसाहि-किण्हलेसाए नीललेसाए काउलेसाए तेउलेसाए पम्हलेसाए सुक्कलेसाए, पडिक्कमामि सत्तहिं भयठाणेहि, अहिं मयठाहिं, नहिं बंभचेरगुत्तीहि, दस विहे समणधम्मे, एगारसहि उवासगपडिमाहि ।। सूत्रम् ।। 10 इहपरलोया-दाणम-कम्हा आजीवमरणमसिलोए । जाईकुलबलरूवे तवईसरोए सुए लाहे ॥१॥ वसहिकहनिसिज्जिदिय कुड्डतरपुत्वकीलियपणीए । अइमायाहारविभूषणा य नव बंभचेरगुत्तोओ ॥२॥ खंती य मद्दवज्जव मुत्ती तवसंजमे य बोद्धव्वे । 15 सच्चं सोयं आकिंचणं च बंभं च जइधम्मो ॥ (खंत्ती मुत्ती अज्जव मद्दव तह लाघवे तवे चेव । संयम चिआगऽकिंचण बोद्धव्वे बंभचेरे अ ।) ॥ ३ ॥ दसणवयसामाइय पोसहपडिमा अबंभ सच्चित्ते । ... आरंभपेसउद्दिट्ठ वज्जए समणभूए य ।। ४ ।। ___ 20 बारसहिं भिक्खुपडिमाहि, तेरसहि किरियाठाणेहि, चोद्द _ सहिं भूयगामेहि, पन्नरसहि परमाहमिएहि, सोलसहि गाहा 2010_04 Page #163 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४० ] - [ नियुक्तिसंग्रहः :: (१) आवश्यकनियुक्तिः सोलसएहि, सत्तरसविहे संजमे, अट्ठारस विहे अबंमे, एगू. णवीसाए नायज्झयणेहि, वीसाए असमाहिठाणेहि ।। सूत्रम् ।। मासाई सत्ता पढमाबिति (बियतय) सत्त[सत्त] राइदिणा। अहराई: एगराई भिक्खूपडिमाण बारसगं ॥ १ ॥ अट्ठाणट्ठा हिंसाऽकम्हा दिट्टी य मोसऽदिण्णे य । अब्भत्थमाणमेत्ते मायालोहेरियावहिया ॥१॥ एगिदियसुहुमियरा सण्णियर पणिदिया य सबोतिचऊ। पज्जत्तापज्जत्ताभएणं चौहसग्गामा ॥१॥ मिच्छट्ठिी सासायणे य तह सम्ममिच्छदिट्ठो य । अविरयसम्मद्दिट्ठी विरयाविरए पमत्ते य ॥१॥ तत्तो य अप्पमत्तो नियट्टिअनियट्टिबायरे सुहुमे । उवसंतखीण मोहे होइ सजोगी अजोगी य ॥२॥ अंबे अबरिसी चेव, सामे अ सबले इय । रुद्दोवरुद्दकाले य, महाकालेत्ति आवरे ॥१॥ असिपत्ते घणं कुंभे, वाल वेयरणी इय । 15 खरस्सरे महाघोसे, एए पन्नरसाहिया ॥२॥ समयो वेयालीयं उवसग्गपरिण्ण थीपरिणा य । निरय विभत्ती-वीरत्थओ य कुसीलाण परिहासा ॥१॥ वोरियधम्मसमाही मग्गसमोसरणं अहतहं गंथो । जमईयं तह गाहासोलसमं होइ अज्झयणं ।।२।। 20 पुढविदगअगणिमारुय-वणस्सइबितिचउपणिदिअजीवा । पेहुप्पेहपमज्जण परिठ्ठवण मगोवईकाए ॥१॥ 2010_04 Page #164 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४-प्रतिक्रमणाध्ययनम् :: ९-पारिष्ठा.नियुक्तिः] [१४१ ओरालियं ज दिव्वं मणवइकाएण करणजोएणं । अणुमोयणकारवणे करणेणऽऽट्टारसाबंभं ॥१॥ उक्खित्तणाए सघाडे अंडे कुम्मे य सेलए । तुंबे य रोहिणी मल्ली मागंदी चदिमा इय ।। १ ।। 5 दाव हवे उदगणाए मंडुक्के तेयली इय । नंदिफले अवरकंका ओ (मा) यन्ने सुंसु पुंडरिया ।। २ ।। दवदवचारऽपमज्जिय दुपमज्जियऽइरित्तसिज्जासणिए। राइणियपरिभासिय थेरन्भूओवघाई य ॥१॥ संजलणकोहणो पिट्ठिमंसिएऽभिक्खमोहारी । 10 अहिकरणकरोईरण अकालज्झायकारी या ।।२।। ससरक्खपाणिपाए सद्दकरो कलहझंझकारी य । सूरप्पमाणभोती वोसइमे एसणासमिए ।। ३ ।। (संगहणी) एक्कवीसाए सबलेहि, बावीसाए परीसहेहि, तेवीसाए सुयगडझयणेहिं, चउवीसाए देवेहि, पंच (पण) वीसाए माव15 पाहि, छब्धीसाए दसाकप्पयवहाराणं उद्देसणकालेहि, सत्ता. वीसविहे अणगाररित्ते (गुणे) अट्ठावीस विहे आयारप्पकप्पे, एगणतीसाए पावसुयपसंगेहि, तीसाए मोहणियठाणेहि, एग. तीसाए सिद्धाइगुणेहि, बत्तीसाए जोगसंगहेहि ।। सूत्रम् ।। तं जह उ हत्थकम्मं कुब्वंते मेहुणं च सेवंते । 20 राइं च भुंजमाणे आहाकम्मं च भुंजते ।। १ ।। तत्तो य रायपिडं कोयं पामिच्च अभिहडं छेज्ज । भंते सबले ऊ पच्चक्खियऽभिक्ख भुंजइ य ॥२॥ 2010_04 Page #165 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४२ ] [ नियुक्तिसंग्रहः :: (१) आवश्यकनियुक्तिः छम्मासब्भंतरओ गणा गणं सकमं करेंते य । मासब्भंतर तिणि य दगलेवा ऊ करेमाणो ।। ३ ।। मासभंतरओ वा माइठाणाई तिन्नि करेमाणे । पाणाइवायउट्टि कुव्वंते मुसं वयंते य ॥ ४ ।। गिण्हते य अदिण्णं आउट्टि तह अणंतरहियाए । पुढवीय ठाणसेज्जं निसिहियं वावि चेतेइ ॥५॥ एवं ससिणिद्धाए ससरक्खाचित्तमंतसिललेलु । कोलावासपइट्ठा कोलगुणा तेसि आवासो ॥ ६ ॥ संडसपाणसबीओ जाव उ संताणए भवे तहियं । 10 टाणाइ चेयमाणो सबले आउट्टियाए उ ॥ ७ ॥ आउट्टि मूलकंदे पुप्फे य फले बीयहरिए य । भुंजते सबलेए तहेव संवच्छरस्संतो ॥८॥ दस दगलेवे कुव्वं तह माइट्ठाण दस य वरिस्संतो। आउट्टिय सोउदगं वग्घारियहत्थमत्ते य ।।९।। 15 दव्वीए भायणेण व दीयं (ज्ज)तं भत्तपाणं घेत्तूणं। . भंजइ सबलो एसो इगवीसो होइ नायवो ।१०।(व्याख्यानंतरम्) वरिसंती दस मासस्स तिन्नि दगलेवमाइठाणाई । आउट्टिया करेंतो वहालियादिण्णमेहुण्णे ॥१॥ निसिभत्तकम्मनिव-पिंडकीयमाई अभिक्खसंवरिए । 20 कंदाइ भुजते उदउल्लहत्थाइ गहणं च ॥ २ ॥ सच्चित्तसिलाकोले परविणिवाई ससिणिद्ध ससरक्खो । छम्मासंतो गणसंकमं च करकंममिइ सबले ॥३॥ 2010_04 Page #166 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४-प्रतिक्रमणाध्ययनम् :: ९-पारिष्ठापनिकानियुक्तिः] [ १४३ खुहापिवासासीउण्हं दंसाचेलारइत्थीओ। चरियानिसोहिया सेज्जा अक्कोसवहजायणा ।। १ ।। अलाभरोगतण फासा मलसक्कारपरीसहा । पण्णा अण्णाणसंमत्तं इइ बावोस परीसहा ॥ २ ॥ 5 पुंडरीयकिरियट्ठाण आहारपरिण्णाऽपच्चक्खाण किरिया य । अणगारअद्दनालंद सोलसाई च तेवीसं ।।१।। भवणवणजोइवेमाणिया य दस अठ्ठपंचएगविहा । इइ (ह) चउवीसं देवा केइ पुण बेंति अरिहंता ॥१॥ इरियासमिए सया जए उवेह भुंजेज्ज व पाणभोयणं । 10 आयाणनिक्खेवदुगुछ संजए समाहिए संजमए मणोवई ।।१।। अहस्ससच्चे अणुवीइ भासए जे कोहलोहभयमेव वज्जए। स दोहरायं समुपेहिया सिया मुणी हु मोसं परि वज्जए सया ।२। स यमेव उ उग्गहजायणे घडे मतिमं निसम्म सह भिक्खु उग्गहं । अणुण्णविय भुजिज्ज पाणभोयणं जाइत्ता साहमियाण उग्गहं । आहारगुत्ते अविभूसियप्पा इत्थि निज्झाइ न संथवेज्जा। बुद्धो मुणी खुड्डकहं न कुज्जा धम्माणुपेही संधए बंभचेरं ।।४।। जे सद्दरूवरसगंधमागए फासे य संपप्प मणुण्णपावए । गिहीपदोसं न करेज्ज पंडिए स होइ दते विरए अकिंचणे ।।५।। दस उद्देसणकाला दसाण कप्पस्स होंति छच्चेव । दस चेव ववहारस्स व होति सम्वेवि छव्वीसं ॥१॥ वयछक्कमिदियाणं च निग्गहो भावकरणसच्चं च । खमयाविरागयावि य मणमाईणं निरोहो य ॥१।। 15 2010_04 Page #167 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४४ ] [ नियुक्तिसंग्रहः :: (१) आवश्यकनियुक्तिः . .. कायाण छक्क जोगाण जुत्तया वेयणाऽहियासणया। तह मारणंतियऽहियासणा य एएऽणगार गुणा ॥२॥ सत्थपरिण्णा लोगो विजओ य सीओसणिज्ज संमत्तं । ... आवंति धुवविमोहो उवहाणसुय महापरिण्णा य ।।१।। पिंडेसणसिज्जि-रिया भासज्जाया य वत्थपाएसा। . उग्गहपडिमा सत्तेक्कतयं भावणविमुत्तोओ ॥२॥ उग्घायमणुग्घायं आरूवणा तिविहमो णिसीहं तु । .... इय अट्ठावीसविहो आयारपकप्पणामोऽयं ।। ३ ।। अट्ठनिमित्तंगाइ दिव्वुप्पायंतालक्ख भोमं च । 10 अंगसरलक्ख णवंजण च तिविहं पुणोक्केक्कं ॥१॥ सुत्तं वित्ती तह वत्तियं च पावसुय अउणतीसविहं । गंधवनट्टवत्थु आउं घणुवेय संजुत्त ॥२॥ वारिमज्भेऽवगाहित्ता तसे पाणे विहिंसई । छाएउ मुहं हत्थेणं अंतोनायं गलेरधं ॥ ५ ॥ 15 सीसावेढेण वेढित्ता संकिलेसेण मारए । सीसमि जे य आहंतु दुहमारेण हिंसइ ॥२॥ बहुजणस्स नेयारं दोवं ताणं च पाणिणं । साहारणे गिलाणमि, पहू किच्चं न कुव्वइ ॥ ३ ।। साहू अकम्म धम्माउ जे भंसेइ उठ्ठिए । ' 20 णेयाउयस्स मग्गस्स, अवगारंमि वट्टई ॥४॥... जिणाणं णतणाणीणं, अवण्णं जो उ भासइ । आयरिय उवज्झाए खिसई मंदबुद्धीए ॥५॥ 2010_04 Page #168 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४-प्रतिक्रमणाध्ययनम् :: ९-पारिष्ठापनिकानियुक्तिः ] [ १४५ तेसिमेव य गाणीणं, संमं नो पडितप्पइ । पुणो पुणो अहिगरणं, उप्पाए तित्थभेयए ॥ ६ ।। जाणं आहंमिए जोए, पउंजइ पुणो पुणो । कामे वमित्ता पत्थेइ इहऽनभविए इय ।।७।। 5 भिक्खूणं बहुसुएऽहंति, जो भासइऽबहुस्सुए । तहा य अतवस्सी उ जो, तवस्सित्तिऽहं वए ।।८।। जायतेएण बहुजणं, अंतोधूमेण हिंसइ। अकिच्चमप्पणा काउं कयमेएण भासइ ।। ६ ।। नियडुवहिपणिहीए पलिउचे, साइजोगजुत्ते य । 10 बेइ सव्वं मुसं वयसि, अक्खीणझंझए सया ।। १० ।। अद्धाणमि पवेसित्ता, जो धण हरइ पाणिणं । वीसंभित्ता उवाएणं, दारे तस्सेव लुब्भई ॥११ ।। अभिक्खमकुमारेहिं कुमारेऽहंति भासइ । एवं अबंभयारीवि बंभयारित्तिऽहं वए ।। १२ ।। 15 जेणे विस्सरियं णीए, वित्ते तस्सेव लुब्भई । तप्पभावुट्ठिए वावि, अंतरायं करेइ से ।। १३ ।। सेणावई पसत्थारं, भत्तारं वावि हिंसई । रटुस्स वावि निगमस्स, नायगं सेट्टिमेव वा ।। १४ ।। अपस्समाणो पस्सामि, अहं देवेत्ति वा वए। अवण्णेणं च देवाण महामोहं पकुव्वइ ॥१५ ।। पडिसेहेण संठाणवण्णगंधरसफासवेए य । पणपणदुपणट्ठतिहा इगतीसमकायसंगरुहा ॥१॥ 20 2010_04 Page #169 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [नियुक्तिसंग्रहः :: (१) आवश्यकनियुक्तिः अहवा कंमे णव दरिसणंमि चत्तारि आउए पंच।। आइम अंते सेसे दोदो खीणभिलावेण इगतीसं ॥ १ ॥ प्रालोयणा निरवलावे, प्रावईमु य वढधम्मया । अणि स्सिमोवहाणे य सिक्खा जिप्पडिकम्मया ।।८।। 5 अण्णायया अलोहे य तितिक्खा प्रज्जवे सुई । सम्मदिट्टो समाही य आयारे विणओवए ।। ८९ ।। धिई मई य सवेगे पणिहो सुविहि संवरे । अत्तदोसोवसंहारो सम्वकामविरत्तिया ।। १२६० ।। पच्चक्खाणा विउस्सग्गे अप्पमाए लवालवे। 10 माणसंवरजोगे य उदए मारणंतिए ॥९१ ।। संगाणं च परिणा पायच्छित्तकरणे इय । आराहणा य मरणंते बत्तीसं जोगसंगहा ।। ९२ ।। उज्जेणि अट्टणे खलु सीहगिरिसोपारए य पुहइवई । मच्छियमल्ले दूरल्लकूविए फलिहमल्ले य ॥ ९३ ।। 15 दंतपुरदंतचक्के सच्चवदी दोहले य वणयरए । धणमित्त धणसिरी य पउमसिरी चेव वढमित्तो ॥ ९४ ।। उज्जेणीए धणवसु अणगारे धम्मघोस चंपाए । अडवीए सस्थविखमम वोसिरणं सिज्झणा चेव ।। ६५ ।। महुराए जउण राया जउणावंकेण दंडमणगारे । 20 वहणं च कालकरणं सक्कागमणं च पव्वज्जा ।। ६६ ।। पाडलिपुत्त महागिरि अज्जसुहत्थी य सेट्ठि वसुभूती। वइदिसि उज्जेणीए जियपडिमा एलकच्छं च ॥ ६७ ।। 2010_04 Page #170 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४ - प्रतिक्रमणाध्ययनम् :: ९-पारिष्ठापनिकानियुक्तिः ] [ १४७ खितिचणउसभ कुसगं रायगिहं चंपपाडलीपुत्तं । नंदे सगडाले थूलभद्दसिरिए वररुची य ॥९८ ॥ पइठाणे नागवसू नागसिरी नागदत्त पध्वज्जा। एगविहा सटाणे देवय साहू य बिल्लगिरे ॥६६ || 5 कोसंबिय जियसेणे धम्मवसू धम्मघोस धम्मजसे । विगय भया विणयबई इडिविभूसा य परिकम्मे ।। १३०० ।। उज्जेणिवंतिवद्धरण पालगसुय रट्टवद्धणे चेव । ... धारिणि अवंतिसेणे मणिप्पभो वच्छगातीरे ।। १३०१ ।। साएए पुंडरीए कंडरिए चेव देविजसभद्दा । 10 सावस्थिप्रजियसेणे कित्तिमई खुड्डुगकुमारो ।। १३०२ ।। जसभद्दे सिरिकता जयसंधी चेव कण्णपाले य । नट्टविही परिप्रोसे दाणं पुच्छा य पध्वज्जा ।। १३०३ ।। सुठ्ठ वाइयं सुठ्ठ गाइयं सुठ्ठ नच्चियं साम सुदरि ! ।। अणुपालिय दोहराइयो सुमिणते मा पमायए ॥ १३०४ ।। 15 इंदपुर इंददत्ते बावीस सुया सुरिंददत्ते य। महुराए जियसत्तू सयंवरो निव्वुईए उ ॥ १३०५ ।। अग्गियए पव्वयए बहुली तह सागरे य बोद्धव्वे । एगदिवसेण जाया तत्थेव सुरिंददत्ते य ।।१३०६ ॥ चंपाए कोसियज्जो अंगरिसी रुद्दए य प्राणत्ते । 20 पंथग जोइजसाविय अभक्खाणे य संबोही ॥ १३०७ ।। सोरिअ सुरंबरेवि प्रसिट्टी अधणंजए सुभद्दा य । वोरे अ धम्मघोसे धम्मजसेऽसोगपुच्छा य ।। १३०८ ॥ 2010_04 Page #171 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४८ ] [ नियुक्तिसंग्रहः :: (१) आवश्यकनियुक्तिः सोरियसमुद्दविजए जन्नजसे चेव जन्नदत्ते य। सोमित्ता सोमजसा उंछविही नारदुप्पत्ती ॥१३०९।। प्रणुकंपा वेयड्डो मणिकंचण वासुदेव पुच्छा य।। सीमंधरजुगबाहु जुगंधरे चेव महबाहु ।१२१०॥ , सायम्मि महाबल विमलपहे चेव चित्तकम्मे य (परिकम्मे)। निप्फत्ति छ?मासे भुमीकम्मस्स करणं च ॥ ११ ॥ नयरं सुदंसणपुरं सुसुणाए सुजस सुधए चेव ।। पवज्जं सिक्खमादी एगविहारे य फासणया ॥१२॥ पाडलिपुत्त हुयासण जलणसिहा चेव जलणडहणे य । 10 सोहम्मपलियपणए प्रामलकप्पाइ णट्टविही ॥१३ ।। उज्जेणी अंबरिसी मालुग तह निबए य पव्वज्जा । संकमणं च परगणे अविणय विणए य पडिवत्ती ।। १४ ।। नयरी य पंडुमहुरा पंडववंसे मई य सुमई य । वारीवसभारुहणे उप्पाइय सुट्टियविभासा ॥१५ ।। 15 चंपाए मित्तपमे धमित्त धसिरी सुजाते य । पियंगू धम्मघोसे य अरक्खुरी चेव चंदघोसे य ॥१६॥ चंदजसा रायगिहे वारत्तपुरे अभय सेण वारत्ते। सुसुमार धुंधुमारे अंगारवई य पज्जोए ॥१७ ।। भरुयच्छे जिणदेवो भयंतमित्त कुणाल भिक्खू य । 20 पइठाण सालवाहण गुग्गुल भयवं च णहवाहणे ॥ १८ ॥ बारवई वेयरणी धन्नतरि भविय प्रभविए विज्जे । कहणा य पुच्छियमि य गइनिद्देसे य संबोही ।।१९।। 2010_04 Page #172 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४-प्रतिक्रमणाध्ययनम् :: ६-पारिष्ठापनिकानियुक्तिः ] [ १४९ सो वानरजहवई कंतारे सुविहियाणुकंपाए । भासुरवरबोंदिधरो देवो वेमाणिओ जाओ ॥ १३२० ।। वाणारसी य को? पासे गोवाल भद्दसेणे य । नंदसिरी पउमसिरी रायगिहे सेणिए वीरो ।। २१ ।। 5 बारवइ अरह मित्ते अणुद्धरी चेव तहय जिणदेवो। रोगस्स य उप्पत्ती पडिसेहो अत्तसंहारो ।।२२।। उज्जेणि देवलासुय अणुरत्ता लोयणा य पउमरहो।। संगयओ मणुमइया असियगिरी अद्धसंकासा ॥२३ ।। कोडीवरिसचिलाए जिणदेवे रयणपुच्छकहणा य । 10 साएए सत्तुजे वीर कहणा य संबोही ॥ २४ ।। वाणारसी य णयरी अणगारे धम्मघोस धम्मजसे । मासस्स य पारणए गोउलगंगा व अणुकंपा ।। १३२५ ।। जहा जलताइ कट्ठाई उहाइ न चिरं जले। घट्टिया घट्टिया ज्झत्ति तम्हा सहसु घट्टणं ॥२६ ।। सुचिरंपि वंकुडाइं होहिंति प्रणुपमज्जमाणाई। करमद्दिदारुयाई गयंकुसागारबेंटाइं ॥ २७ ।। रायगिह मगहसुंदरि मगहसिरी पउमसत्थपवखेवो । परिहरियअप्पमत्ता नट्ट गीयं नवि य चुक्का ।। २८ ।। पत्ते वसंतमासे आमोअ पमोअए पवत्तंमि । 20 मुत्तूण कणिआरए भमरा सेवति चूअकुसुमाई ।। २६ ।। भरुयच्छमि य विजए नडपिडए वासवासनागघरे । ठवणा आयरियस्स (उ) सामायारोपउंजणया ।। १३३० ॥ 2010_04 Page #173 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५० ] [ नियुक्तिसंग्रहः :: (१) आवश्यकनियुक्तिः 10 णयरं च सिबवद्धण मुंडिम्बय अज्जपूसभूई य। आयाणपूसमिते सुहुमे झाणे विवादो य ॥ ३१ ।। रोहीडगं च नयरं ललिआगुट्ठी अ रोहिणा गणिना। धम्मरुइ कडुअदुद्धियदाणाइयणे अ कंमुदए ।। ३२ ।। 5 नयरी य चंपनामा जिणदेवो सत्यवाह अहिछत्ता। अडवी य तेण अगणी सावयसंगाण वोसिरणा ।। ३३ ।। पायच्छित्तपरूवण प्राहरणं तत्थ होइ धणगुत्ता। आराहणाए मरुदेवा ओसप्पिणीए पढमसिद्धो ।। १३३४ ।। तेत्तीसाए आसायणाहिं ।। सूत्रम् ।। पुरओ पक्खासन्ने गंता चिट्ठणनिसीयणायमणे । आलोयणपडिसुणणा पुवालवणे य आलोए ॥१॥ तह उवदंस निमंतण खद्धाईयाण तह अपडिसूणण । खद्धंति य तत्थ गए किं तुम तज्जाइ णो सुमणे ।। २ ।। णो सरसि कहं छेत्ता परिसं मित्ता अणुट्ठियाइ कहे । 15 संथारपायघट्टण चिट्ठ उवासणाईसु ।। ३ ।। अहवा-अरहताणं आसायणादि सज्झाए किंचि णाहायं । जा कंठसमुद्दिट्टा तेत्तीसासायणा एया ॥१॥ (प्रतिक्रमण-सङ्ग्रहणी समाप्ता) सदेवमणुयासुरस्स लोगस्स प्रासायणाए ।। सूत्रम् ।। असज्झाए सज्झाइयं ।। सूत्रम् ।। 20 2010_04 Page #174 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४ - प्रतिक्रमणाध्ययनम् :: १० - अस्वाध्याय निर्युक्तिः ] [ १५१ ।। १० ।। अथास्वाध्यायिक नियुक्तिः ॥ असज्झाइयनिज्जुत्ति वृच्छामी धीरपुरिसपण्णत्तं । जं नाऊण सुविहिया पवयणसारं उवलहंति ।। १३३५ ।। असज्झाइयं तु दुविहं आयसमुत्थं च परसमुत्थं च । 5 ज तत्थ परसमुत्थं तं पंचविहं तु नायव्वं ।। ३६ ।। संजमघाउप्या (बघा) ए सादिव्वे वुग्गहे य सारोरे । घोसणयमिच्छरणो कोई छलिओ पमाएणं ।। ३७ ।। मिच्छभयघोसण निवे हियसेसा ते उ दंडिया रण्णा । एवं दुहओ दंडो सुरपच्छित्ते इह परे य ।। ३८ ।। 10 राया इह तित्थयरो जाणवया साहू घोसणं । सुत्तं मेच्छो य प्रसज्झाम्रो रयणधणाई च नाणाई ।। ३९ ।। थोवाव से सपोरिसि मज्झयणं वावि जो कुणइ सो उ । णाणाइसार राहियस्स तस्स छलणा उ संसारो ।। १३४० ॥ महिया य भिन्नवासे सचित्तरए य संजमे तिविहं । 15 दव्वे खित्ते काले जहियं वा जच्चिरं सव्वं ।। ४१ ।। दुग्गाइतोसियनिवो पंचन्हं देव इच्छियपयारं । गहिए य देइ मुल्लं जरगस्स प्राहारवत्थाई ।। ४२ ।। इक्केण तोसियतरो गिमगिहे तस्स सर्व्वाहं वियरे । 20 रत्थाईसु चउन्हं एवं पढमं तु सव्वत्थ ।। ४३ ।। वासत्ताणावरिया निक्कारण ठंति कज्जि जयणाए । हत्थत्थंगुलिसन्ना पुत्तावरिया व भासंति ।। ४४ ।। 2010_04 Page #175 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५२ ] [ नियुक्तिसंग्रहः :: (१) आवश्यकनियुक्तिः पंसू अ मंसरुहिरे केससिलावुट्ठि तह रउग्घाए । मंसरुहिरे अहोरत्त अवसेसे जच्चिरं सुतं ।। ४५ ।। पंसू अचित्तरमो रयस्सिलाओ दिसा रउग्घाओ। तत्थ सवाए निव्वायए य सुत्तं परिहरंति ॥ ४६ ।। 5 साभाविय तिन्नि दिया सुगिम्हए निक्खि वंति जइ जोगं । तो तंमि पडतंमी करति संवच्छरज्झायं ।। ४७ ॥ गंधवदिसाविज्जुक्कगज्जिए जूअजक्ख आलित्ते । इक्किक्क पोरिसी गज्जियं तु दो पोरसी हरणइ ।। ४८ ।। दिसिदाह छिन्नमूलो उक्क सरेहा पगासजुत्ता वा । 10 संझाछेयावरणो उ जूवओ सुक्कि दिणं तिन्नि ।। ४६ ।। केसिचि हुँतिऽमोहा उ जूवओ ता य हुँति आइन्ना । जेसि तु अणाइना तेसि किर पोरिसी तिन्नि ।। १३५० ।। चंदिमसूरुवरागे निग्घाए गुजिए अहोरत्तं । संझा चउ पाडिवया जं जहि सुगिम्हए नियमा ।। ५१ ।। 15 आसाढी इंदमहो कत्तिय सुगिम्हए य बोद्धव्वे । एए महामहा खलु एएसि चेव पाडिवया ।। ५२ ।। कामं सुओवओगो तवोवहाणं अणुत्तरं भणियं । पडिसेहियंमि काले तहावि खलु कम्मबंधाय ।। ५३ ।। छलया व सेसएणं पाडिवएसु छणाऽणुसज्जति । महवाउलत्तणेणं असारियाणं च संमाणो ।। ५४ ॥ अन्नयरपमायजुयं छलिज्ज अप्पिड्डियो न उण जुत्तं । अद्धोदहिटिइ पुण छलिज्ज जयणोव उत्तंपि ॥ ५५ ॥ 20 2010_04 Page #176 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४-प्रतिक्रमणाध्ययनम् :: १०-अस्वाध्यायनियुक्तिः ] [ १५३ 0 उक्कोसेण दुवालस चंदु जहन्नेण पोरिसी अट्ठ । सूरो जहन्न बारस पोरिसि उक्कोस जो अटु ।। ५६ ॥ सग्गहनिम्बुड एवं सूराई जेरण हुँतिऽहोरत्ता। आइन्न दिणमुक्के सुच्चिय दिवसो अ राई य ।। ५७ ।। वोग्गह दंडियमादी संखोभे दंडिए य कालगए । अणरायए य सभए जच्चिर निद्दोच्चऽहोर ।। ५८ ।। सेणाहिवई भोइय मयहरपुसित्थिमल्लजुद्ध य । लोट्टाइभंडणे वा गुज्झग उड्डाहमचियत् ।। ५६ ।। तद्दिवसभोइआई अंतो सत्तण्ह जाव सज्झाओ। अणहस्स य हत्थसयं दिट्ठि विवित्तमि सुद्धं तु ।। १३६० ॥ मयहरपगए बहुपक्खिए य सत्तघर अंतरमए वा । निद्द खत्ति य गरिहा न पढंति सणीयगं वावि ।। ६१ ।। सागारियाइ कहणं अणिच्छ रत्ति वसहा विगि चंति । विक्किन्ने व समता जं दिट्ठ सढेयरे सुद्धा ।। ६२ ।। 15 सारीरपि य दुविहं माणुस तेरिच्छियं समासेणं । तेरिच्छं तत्थ तिहा जलथलखहजं चउद्धा उ ।। ६३ ।। पंचिदियाण दवे खेत्ते सट्ठिहत्थ पुग्गलाइन्न । तिकुरत्थ महंतेगा नगरे बाहिं तु गामस्स ।। ६४ ।। काले तिपोरसिऽढ व भावे सुतं तु नंदिमाईयं । सोणिय मंसं चम्मं अट्ठी विय हुँति चत्तारि ।। ६५ ।। अंतो बहिं च धो सट्ठीहत्थाउ पोरिसी तिन्नि । महकाए अहोरत्तं रद्धे वुड्ड य सुद्धं तु ।। ६६ ।। 2010_04 Page #177 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५४ ] [ नियुक्तिसंग्रहः :: (१) आवश्यकनियुक्तिः बहिधोयरद्धपक्के अंतो धोए उ अवयवा हुँति । महकाय बिरालाई अविभिन्ने केई इच्छति ।। ६७ ।। अंतो बहिं च भिन्न अंडबिंदू तहा विप्राया य । रायपह बूढ सुद्धे परवयणे साणमादोणं ॥ ६८ ।। 5 माणुस्सयं चउद्धा अट्टि मुत्तूण सयमहोरत्तं । परिआवन्नविवन्ने सेसे तियसत्त अट्ठव ।। ६९ ।। रत्तुक्कडा उ इत्थी अट्ठ दिणा तेण सत्त सुक्कहिए । तिन्नि दिणाण परेणं अणोउंग तं महारत्तं ।। १३७० ।। दंते दिट्टि विगिचण से सट्टी बारसेव वासाइं। 10 झामिय वूढे सीआण पाणरुद्दे य मायहरे ॥ ७१ ।। आवासियं च बूढं सेसे दिट्ठमि मग्गण विवेगो । सारीरगाम वाडग साहीइ न नीणियं जाव ।। ७२ ।। असिवोमाघयणेसुबारस अविसोहियंमि न करंति । झामिय वढे कीरइ प्रावासिय सोहिए चेव ॥ ७३ ।। 15 निज्जतं मुत्तूणं परवयणे पुण्फमाइपडिसे हो । जम्हा च उप्पगारं सारीरमओ न वज्जति ।। ७४ ।। एसो उ असज्झाओ तव्वज्जिऊऽझाउ तस्थिमा मेरा। कालपडिलेहणाए गडगमरुएहि दिढतो ।। ७५ ।। पंचविहप्रसज्झायस्त जाणणट्ठाय पेहए कालं । 20 चरिमा चउभागवसेसियाइ भूमि तओ पेहे ॥७६ ।। अहियासिआई अंतो प्रासन्ने चेव मज्झि दूरे य । तिन्नेव प्रणहियासी अंतो छ छच्च बाहिर प्रो ॥ ७७ ।। 2010_04 Page #178 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४ - प्रतिक्रमणाध्ययनम् :: १० - अस्वाध्यायनिर्युक्तिः ] [ १५५ एमेव य पासवणे बारस चउवीसति तु पेहेत्ता । कालस्स य तिनि भवे अह सूरो प्रत्थमुवयाई ॥ ७८ ॥ जइ ( अह ) पुण निव्वाघाओ आवासं तो करति सव्वेऽवि । सडाइकहणवाघाययाइ पच्छा गुरू ठंति ।। ७९ ।। 5 सेसा उ जहासति प्रापुच्छित्ताण ठति सट्ठाणे । सुत्तत्थकरणहेउं आयरिए ठियंमि देवसियं ।। १३८० ।। जो हुज्ज उ असमत्यो बालो वुड्डो गिलाण परिसंतो । सो विहाइ विरहिम्रो अच्छिज्जा निज्जरापेही ।। ८१ ।। आवासंगं तु काउं जिणोवइट्ठ गुरुवएसेणं । 10 तिष्ण थुई पडिलेहा कालस्स इमो विही तत्थ ।। ८२ । दुविहो उ होइ कालो वाघाइम इतरो य नायव्वो । वाघातो धंधसालाए घट्टणं सडकहणं वा ।। ८३ । वाघाए तो सि दिज्जइ तस्सेव ते निवेति । इयरे पुच्छंति दुवे जोगं कालस्स घेच्छामो ॥ ८४ ॥ 15 श्रापुच्छण किइकम्मे आवासिय पडियरिय वाघाते । इंदियं दिसा य तारा वासमसज्झाइयं चेव ।। ८५ ।। जइ पुण गच्छंताणं छीयं जोडूं ततो नियतेंति । निव्वाधाए दोणि उ अच्छंति दिसा निरिक्खता ।। ८६ ।। सज्झायमचितता कणगं दट्ठूण पडिनियत्तति । 20 पत्ते य दंडधारो मा बोलं गंडए उवमा ।। ८७ ।। श्राघोसिए बहूहि सुयंमि सेसेसु निवडए दंडो । अह तं बहूहि न सुयं दंडिज्जइ गंडओ ताहे ॥ ८८ ॥ 2010_04 Page #179 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५६ ] [ निर्युक्तिसंग्रह: :: ( १ ) आवश्यकनियुक्तिः पियधम्मो दढधम्मो संविग्गो चैव वज्जभीरू य | खेयन्नो य अभीरू कालं पडिलेहए साहू ॥ ८६ ॥ कालो संझा य तहा दोवि समप्यंति जह समं चेव । तह तं तुलेंति कालं चरिमं च दिसं असंझाए ।। १३६० ।। 5 आउत्तपुव्वभणियं अणपुच्छा खलियपडियवाघाओ । भासंत मूढ संकिय इंदियविसए तु अमणुग्णे ।। ६१ ।। निसीहिआ नमुक्कारे काउस्सग्गे य पंचमंगलए । किइकम्मं च करिती बीओ कालं तु पडियरइ ।। ६२ ।। थोवाव से सियाए संझाए ठाति उत्तराहुतो । 10 चउवीसगदुमपुष्किय पुव्वगमेक्क विकअ दिसाए ।। ६३ ।। बिंदू छोए परिणय सगणे वा संकिए भवे तिन्हं । भासंत मूढ संकिय इंदियविसए य अमणुणे ।। ९४ ।। मूढो व दिसिऽज्झयणे भासतो यावि गिण्हति न सुज्झे । अन्नं च दिसऽज्झयणे संकंतोऽनिट्ठविसए वा ।। ९५ ।। जो गच्छंतंमि विही आगच्छंतंमि होइ सो चेव । जं एत्थ णाणत्तं तमहं वोच्छं समासेणं ॥ ६६ ॥ निसोहिया आसज्जं अकरणे खलिय पडियवाधाए । अपमज्जिय भीए वा छीए छिन्ने व कालवहो ॥ १ ॥ गोणाई कलभूमी इ हुज्ज संसप्पगा व उद्विज्जा । 20 कविहसिअ विज्जुयंमी गज्जिय उक्काइ कालवहो ।। २ ।। ( प्र० सिद्धसेन : ) 15 2010_04 Page #180 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४-प्रतिक्रमणाध्यायनम् .. १०-अस्वाध्यायनियुक्तिः ] [ १५७ इरियावहिया हत्थंतरेऽवि मंगल निवेयणा दारे । सम्वेहि वि पट्टविए पच्छा करणं अकरणं वा ।। ६७ ।। सन्निहियाण वडारो पट्टविय पमादि णो दए कालं । बाहि ठिए पडियरए पविसई ताएऽवि दंडधरो।। ९८ ।। 5 पट्टविय वंदिए वा तहिं पुच्छंति केण कि सुयं ? भंते । तेवि य कति सव्वं जं जेण सुयं व दिट्टवा ।। ९९ । इक्कस्स दोण्ह व संकियंमि कोरइ न कीरती तिण्हं । सगणंमि संकिए परगणं तु गंतु उ पुच्छत्ति ।। १४०० ।। कालचउक्के णाणत्तगं तु पाओसियंमि सम्वेवि । 10 समयं पट्टवयंती सेसे सु समं व विसमं वा ।। १४०१ ।। इंदियमाउत्ताणं हणंति कणगा उ तिन्नि उक्कोसं । वासासु य तिन्नि दिसा उउबद्वे तारगा तिन्नि ।। १४०२ ।। कणगा हणंति कालं ति पंच सत्तेव गिम्हि सिसिरवासे । उक्का उ सरेहागा रेहारहितो भवे कणओ ।।१४०३।। 15 वासासु य तिन्नि दिसा हवंति पाभाइयंमि कालंमि । सेसेसु तीसु चउरो उडुमि चउरो चउदिसिपि ।। १४०४ ।। तिसु तिन्नि तारगानो उडुमि पाभातिए अदिट्ठऽवि । वासासु[य]तारगाओ चउरो छन्ने निविट्ठोऽवि ।। १४०५ ।। ठाणासइ बिदसु अ गिण्हं चिट्ठोवि पच्छिमं कालं । 20 पडियरइ बहिं एषको एक्को व अंतट्टिओ गिण्हे ।। १४०६ ।। पाओसि अड्डरते उत्तरदिसि पुव पेहए कालं । वेत्तिर्याम भयणा पुदिसा पच्चि मे काले ।। १४०७ ।। 2010_04 Page #181 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५८ ] [ नियुक्तिसंग्रहः :: (१) आवश्यकनियुक्तिः कालच उक्कं उक्कोसएण जहन्न तियं तु बोद्धव्वं । बीयपएणं तु दुगं मायामयविप्पमुक्काणं ॥ १४०८ ।। फिडियंमि अड्डरत्ते कालं घित्तु सुवंति जागरिया। ताहे गुरू गुणंती चउस्थि सध्वे. गुरू सुबइ ।। १४०९ ॥ 5 गहियंमि अट्टरते वेरत्तिय अगहिए भवइ तिन्नि । वेरत्तिय प्रड्डरसे अइ उवओगा भवे दुण्णि ।। १४१० ।। पडिजग्गियंमि पढमे बीय विवज्जा हवंति तिन्नेव । पाओसिय वेरत्तिय अइउवयोगा उ दुण्णि भवे ।। ११ ॥ पाभाइयकालंमि उ संचिक्खे तिनि छीयरुन्नाणि । 10 परवयणे खरमाई पावासिय एवमादोणि ॥१२ ।। पाइन्न पिसिय महिया पेहिता तिन्नि तिन्नि ठाणाई। नववारहए काले हउत्ति पढमाइ न पढंति ।। १३ ।। पट्टवियंमि सिलोगे छीए पडिलेह तिन्नि अन्नत्थ । सोणिय मुत्तपुरीसे घाणालोअं परिहरिज्जा ॥१४ ।। 15 अलोग्रंमि चिलिमिणी गंधे अन्नत्थ गंतु पकरंति । वाघाइयकालंमी दंडग मरुआ नवरि नस्थि ॥१५ ।। एएसामनयरेऽसज्झाए जो करेइ सज्झायं । सो प्राणाअणावत्थं मिच्छत्त विराहणं पावे ॥१६ ।। आयसमुत्थमसज्झाइयं तु एगविध होइ दुविहं वा । एगविहं समणाणं दुविहं पुण होइ समणीणं ।। १७ ।। धोयंमि उ निप्पगले बंधा तिन्नेव हुँति उक्कोसं । परिगलमाणे जयणा दुविहंमि य होइ कायम्वा। ॥ 20 2010_04 Page #182 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४-प्रतिक्रमणाध्यायनम् :: १०-अस्वाध्याय नियुक्तिः ] [ १५६ समणो उ वणिव्व भंगदरिव्व बंधं करित्तु वाएइ । तहवि गलंते छारं दाउं दो तिन्नि बंधा उ ॥१६॥ एमेव य समणीणं वर्णमि इअरंमि सत्त बंधा उ।। तहविय अठायमाणे धोएउं अहव अन्नत्थ ।। १४२० ।। एएसामन्नयरेऽसज्झाए अपणो उ सज्झायं । जो कुणइ अजयरणाए सो पावइ आणमाईणि ।। २१ ।। सुयनाणंमि अभत्ती लोअविरूद्धं पमत्तछलणा य । विज्जासाहणवइगुन्नधम्मया एव मा कुणसु ।। २२ ।। का देहावयवा दंताई अवज्जुमा तहवि वज्जा । 10 अणवज्जुआ न वज्जा लोए तह उत्तरे चेव ।। २३ ।। अभितरमललित्तोवि कुणइ देवाण अच्चणं लोए। बाहिरमललित्तो पुण न कुणइ अवणेइ य तओ णं ।। २४ ।। आउट्टियाऽवराहं संनिहिया न खमए जहा पडिमा । इह परलोए दंडो पमत्तछलणा इह सिआ उ ।। २५ ।। 15 रागेण व दोसेण वऽसज्झाए जो करेइ सज्झाय । प्रासायणा व का से? को वा भणिओ अणायारो॥ २६ ।। गणिसद्दमाइमहिनो रागे दोसंमि न सहहे सइं । सम्वमसज्झायमयं एमाई हुति मोहाभो ॥२७ ।। उम्मायं च लभेज्जा रोगायंकं व पाउणे दोहं । 20 तित्थहरभासियाओ भस्सइ सो संजमाओ वा ।। २८ ।। इहलोए फलमेनं परलोए फलं न दिति विज्जाओ। आसायणा सुयस्स उ कुवइ दोहं च संसारं ॥ २९ ।। 2010_04 Page #183 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६० ] [ नियुक्तिसंग्रहः :: (१) आवश्यकनियुक्तिः असज्झाइयनिज्जुत्ती कहिया भे धोरपुरिसपन्नत्ता । संजमतवडगाणं निग्गंथाणं महरिसीणं ॥१४३० ।। प्रसज्झाइयनिज्जुत्ति जुजता चरणकरणमाउत्ता । साहू खवेंति कम्मं प्रणेगभवसंचियमणतं ।।१४३१ ॥ ।। इति अस्वाध्यायिकनियुक्तिः ।। १० ।। ॥ इति प्रतिक्रमणाध्ययनम् ।। ४ ।। ॥ अथ पञ्चमं कायोत्सर्गाध्ययनम् ॥ ॥ ११ ॥ अथ कायोर्क्सगनियुक्तिः ॥ आलोयण पडिक्कमणे मीस विवेगे तहा विउस्सगे। 10 तव छेय मूल अणवट्ठया य पारंचिए चेव ।। १४३२ ।। दुविहो कायंमि वणो तदुभवागंतुप्रो अ णायव्वों । आगंतुयस्स कारइ सल्लुद्धरणं न इयरस्स ।। ३३ ।। तणुओ अतिक्खतुडो असोणियो केवलं तह (या) लग्गो। उद्धरिउ अवउज्झत्ति सल्लो न मलिज्जइ वणो उ ॥ ३४ ॥ 15 लग्गुद्धियंमि बीए मलिज्जइ परं अदूरगे सल्ले । उद्धरणमलणपूरण दूरयरगए तइयगंमि ॥३५ ।। मा वेअणा उ तो उद्धरित्तु गालंति सोणिय चउत्थे । रुज्झइ लहुँति चिट्ठा वारिज्जइ संचमे वणिणो ।। ३६ ।। रोहेइ वर्ण छठे हियमियभोई प्रभुजमाणो वा। 20 तित्तिमित्त छिज्जइ सत्तमए पूइमंसाई ।। ३७ ॥ 2010_04 Page #184 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५-कायोत्सर्गाध्ययनम् :: ११- कायोत्सर्गनियुक्ति } । १६१ तहविय अठायमाणो. गोणसखइयाइ रुप्फए वावि । कोरइ तयंगछेओ सअट्ठिओ सेस रक्खा ॥३८ ।। मूलुत्तरगुणरूवस्स ताइणो परमचरणपुरिसस्स । अवराहसल्लपभवो भाववणो होइ नायव्वो ।। १ ।। (प्र.) 5 भिक्खायरियाइ सुज्झइ अइयारो कोइ वियडणाए उ । बीओ असमिओमित्ति कोस सहसा अगुत्तो वा ? ॥ ३९ ॥ सद्दाइएसु रागं दोसं च मणा गओ तइयगंमि । नावं असणिज्ज भत्ताइविगिचण चउत्थे ।। १४४० ।। उस्सग्गेणवि सुज्झइ अइआरो कोइ कोइ उ तवेण ।। 10 तेणवि असुज्झमाणं छेय विसेसा विसोहिति ।। ४१ ।। निक्खेवेगठ्ठ विहाणमग्गणा काल भेयपरिमाणे ।। प्रसढसढे विहि दोसा कस्सत्ति फलं च दाराई ॥४२ ।। कायस्स उ निक्खेवो बारसओ छक्कओ अ उस्सगे । एएसि तु पयाणं पत्तेय परूवणं वुच्छं ।। ४३ ।। 15 नाम ठवणसरोरे गई निकायस्थिकाय दविए. य । माउय संगह पज्जव भारे तह भावकाए य ।। ४४ ।। काओ कस्सइ नाम कीरइ देहोवि वृच्चई काओ। कायमणिओवि वुच्चइ बद्धमवि निकायमाहंसु ।। ४५॥ अक्खे वराडए वा कट्ठ पुत्थे य चित्तकम्मे य । सम्भावमसम्भावं ठवणाकायं वियाणाहि ॥ ४६ ।। लिप्पगहत्थी हस्थित्ति एस सब्भाविया भवे ठवणा। होइ असम्भावे पुण हस्थित्ति निरागिई प्रक्खो । ४७ ।। 20 2010_04 Page #185 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६२ ] [ नियुक्तिसंग्रहः :: ( १ ) आवश्यकनियुक्तिः पोरालियवेउब्धिय प्राहारगतेयकम्मए चेव । एसो पंचविहो खलु सरीरकाओ मुणेयव्यो । १४४८ ।। च उसुवि गईसु देहो नेरइयाईण जो स गइकाओ। एसो सरीरकाओ विसेसणा होइ गइकाओ ।। १ ।। (प्र.) 5 जेणुवगहिरो वच्चइ भवंतरं जच्चिरेण कालेण । एसो खलु गइकाओ सतेयगं कम्मगसरीर ।। १४४९ ।। निययमहिओ व काम्रो जीवनिकाओ निकायकाओ य । प्रस्थित्तिबहुपएसा तेणं पंचस्थिकाया उ ॥ १४५० ।। तीयमणागयभावं जमथिकायाण नस्थि अस्थित्तं । 10 तेन र केवलएK नत्थी दवस्थिकायतं ॥ ५१ ।। कामं भवियसुराइसु भावो सो चेव जत्थ वट्टति । एस्सो न ताव जायइ तेन र ते दव्वदेवुत्ति ।। ५२ ।। दुहओऽणंतररहिया जइ एवं तो भवा अणंतगुणा । एगस्स एगकाले भवा न जुज्जति उ अणेगा ।। ५३ ।। 15 दुहोऽणंतरभवियं जह चिट्ठइ पाउनं तु जं बद्धं । हुज्जियरेसुवि जइ तं दवभवा हुज्ज तो तेऽवि ॥ ५४ ।। संझास दोसु सूरो सदिस्समाणोऽवि पप्प समईयं । जइ ओभासइ खित्तं तहेव एयंपि नायध्वं ॥ ५५ ॥ संगहकानोऽणेगावि जत्थ एगवयणेण घिप्पति । 20 जह सालिगाममसेणा जाओ वसहो निविदृत्ति ।। ५६ ।। पज्जवकाओ पुण हुँति पज्जवा जत्थ पिडिया बहवे । परमाणु मि विक्कमिवि जह बनाई प्रपंतगुणा ।। ५७ ।। 2010_04 Page #186 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५-कायोत्सर्गाध्ययनम् :: ११-कायोत्सर्गनियुक्तिः] [१६३ एगो कामो दुहा जाओ एगो चिट्ठइ एगो मारिपो।। जीवंतो मएण मारिनो तं लव मागव ! केण हे उणा ? १५८॥ दुग तिग चउरो पंच व भावा बहुआ व जत्थ वति । सो होइ भावकारो जीवमजीवे विभासा उ ॥ ५९ ।। काए सरीर देहे बुदो य चय उवचए य संघाए । उस्सय समुस्सए वा कलेवरे भत्थ तण पाणू ।। १४६० ।। नामं ठवणा दधिए खित्ते काले तहेव भावे य । एसो उस्सग्गस्स उ निक्खेवो छब्धिहो होइ ।। ६१ ।। दव्वुझणा उ जं जेण जत्थ प्रवकिरइ दव्वभूमो वा । 10 जं जत्थ वावि खित्ते जं जच्चिर जंमि वा काले ।। ६२ ।। भावे पसत्यमियरं जेण व भावेण अवकिरह जं तु । अस्संजमं पसत्थे अपसत्थे सजमं चयइ ।। ६३ ।। खरफरुसाइसचेयण मचेयणं दुरभिगंधविरसाई । दवियमवि चयइ दोसेण जेण भावुज्झणा सा उ ।। ६४ ।। उस्सग्ग विउस्सरणुज्मणा य प्रवगिरण छड्डण विवेगो। वज्जण चयणुम्मुअणा परिसाडण साडणा चेव ।। १४६५ ।। उस्सग्गे निवखेवो चउक्कओ छक्कओ अ कायव्वो। निक्खेवं काऊण परूवणा तस्स कायव्वा ।। १ ।। (प्र.) सो उस्सग्गो दुविहो जिट्टाए अभिभवे व नायवो । 20 भिक्खायरियाइ पढमो उपसग्गभिजुजणे बिइओ ।। ६६ ।। इयरहवि तान जुज्जइ अभिओगो कि पुणाइ उस्सग्गे ? । नणु गन्वेण परपुरं अभिरुज्झइ एवमेपि ॥ ६७ ।। 15 2010_04 Page #187 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६४ ] [ नियुक्तिसंग्रहः :: (१) आवश्यकनियुक्तिः मोहपयडीमयं अभिभवित्तु तो कुणइ काउसग्गं तु । भयकारणे य तिधिहे णाभिमवो नेव पडिसेहो ।। ६८ ।। प्रागारेऊण परं रणिव्व जइ सो करिज्ज उस्सग्गं । जुजिज्ज अभिभवो ता तदभावे अभिभवो कस्स ? ।। ६९ ।। अढविहंपि य कम्मं अरिभूयं तेण तज्जयटाए । अब्भुट्टिया उ तवसंजमंमि कुव्वंति निग्गंथा ॥ १४७० ॥ तस्स कसाया चत्तारि नायगा कम्मसत्त सिन्नस्स । काउस्सग्गमभग्गं करंति तो तज्जयटाए ।। ७१ ।। संवच्छरमुक्कोसं अंतमुहुत्तं च अभिमस्सग्गे । 10 चिट्ठाउस्सग्गस्स उ कालपमाणं उवरि वुच्छं ।। ७२ ।। उसिउस्सिओ अ तह उस्सिओ अ उस्सियनिसन्नो चेव । निसनुस्सियो निसन्नो निसन्नगनिसन्नओ चेव ॥ ७३ ।। निवणुस्सिमो निवन्नो निवन्ननिवनगो य नायव्यो। एएसि तु पयाणं पत्तेय परूवणं वुच्छं ।।७४ ।। 15 उस्सिअनिसन्नग निवनगे य इक्किक्कगंमि उ पयंमि । दवेण य भावेण य चउक्कभयणा उ कायस्वा ।। ७५ ॥ देहमइजड्डसुद्धी सुहदुक्खतितिक्खया अणुप्पेहा । झायइ य सुहं झाणं एयग्गो काउसग्गंमि ॥७६ ॥ अंतोमुत्तकालं चित्तस्सेगग्गया हवइ झाणं । 20 तं पुण अट्ट रुदं धम्मं सुक्कं च नायव्वं ॥७७ ।। तत्थ य दो प्राइल्ला झाणा संसारवडणा मणिआ। दुन्नि य विमुक्खहेऊ तेसिऽहिगारो न इयरेसि ॥ ७८ ।। 2010_04 Page #188 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५-कायोत्सर्गाध्ययनम् :: ११-कायोत्सर्गनियुक्तिः] [ १६५ संवरियासवदारा अध्वावाहे अकंटए देसे । काऊण थिरं ठाणं ठिओ निसन्नो निवन्नो वा ।। ७९ ।। चेयणमचेयणं वा वत्थु प्रवलंबिउ घणं मणसा। झायइ सुअमत्थं वा दवियं तप्पज्जए वावि ।। १४८० ।। 5. तत्थ उ भणिज्ज कोई झाणं जो माणसो परीणामो । तं न हवइ जिणदिट्ट झाणं तिविहेवि जोगमि ।। ८१ ॥ वायाईधाऊणं जो जाहे होइ उक्कडो धाऊ । कुविओत्ति सो पच्च इ न य इयरे तत्थ दो नस्थि ।। ८२ ।। एमेव य जोगाणं तिण्हवि जो जाहि उक्कडो जोगो। 10 तस्स तहिं निद्देसो इयरे तस्थिक्क दो व नवा ।। ८३ ।। काएविय प्रज्झप्पं वायाइ मणस्स चेव जह होइ । कायवयमणोजुत्तं तिविहं प्रज्झप्पमाहंसु ।। ८४ ।। जइ एगग्गं चित्तं धारयओ वा निरंभप्रो वावि । झाणं होइ नणु तहा इअरेसुवि दोसु एमेव ।। ८५ ।। देसियदसियमग्गो वच्चंति नरवई लहइ सह । रायत्ति एस वच्चइ सेसा अणुगामिणो तस्स ।। ८६ ।। पढमिल्लुअस्स उदए कोहस्सिअरे वि तिन्नि तत्थस्थि । न य ते ण संति तहियं न य पाहन्नं तहेयंमि ।। ८७ ।। मा मे एजउ काउत्ति अचल प्रो काइनं हवइ झाणं । 20 एमेध य माणसियं निरुद्धमणसो हवइ झाणं । ८८ ॥ जह कायमणनिरोहे झाणं वायाइ जुज्जइ न एवं । तम्हा वई उ झाणं न होइ को वा विसेसुत्थ ? ॥८६ ।। 2010_04 Page #189 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ नियुक्तिसंग्रहः :: (१) आवश्यक नियुक्तिः मा मे चलउत्ति तणू जहं तं झाणं निरेपणो होइ । अजयाभास विवज्जस्स बाइअं झाणमेवं तु ॥ १४६० ।। एवं विहा गिरा मे वत्तव्वा एरिसा न वत्तव्वा । इय वेयालियवक्कस्स भासओ वाइयं झाणं ।। ६१ ॥ 5 मणसा वावारंतो कायं वायं च तप्परीणामो। भंगिनसुयं गुणतो वट्टइ तिविहेवि सामि ॥ २ ॥ धम्म सुक्कं च दुवे झायइ झाणाइ जो ठिो संतो। एसो काउस्सग्गो उसि उसिओ होइ नायवो ।। ९३ ।। धम्म सक्कं दुवे नवि झायइ नवि य अदृरुदाई। 10 एसो काउस्सग्गो दवसिओ होइ नायव्वो ॥ ९४ ।। पपलायंत सुसत्तो नेव सुहं झाइ झाणमसुहं वा । अश्वावारियचित्तो जागरमाणोवि एमेव ।। ९५ ।। अचिरोववनगाणं मुच्छियप्रवत्तमत्तसुताणं । । ओहाडियमव्वत्तं च होइ पाएण चित्रांति ॥६६ ।। 15 गाढालंबणलग्गं चित्तं वृत्तं निरयणं झाणं । सेसं न होइ झाणं मउअमवत्तं भमंतं वा ॥९७ ।। उम्हासेसोऽवि सिही होउं लद्धिधणो पुणो जलइ। इय प्रवत्तं चित्तं होउं वत्तं पुणो होइ ॥ ९८ ।। पुव्वं च जं तदुत्तं चित्तस्सेगग्गया हवइ झाणं । 20 प्रावन्नमणेगग्गं चित्तं चिय तं न तं झाणं ।। ६६ ।। मणसहिएण उ काएण कुणइ वायाइ भासई जं च ।। एयं च भावकरणं मणरहियं दत्वकरणं च ।। १५०० ॥ 2010_04 Page #190 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५-कायोत्सर्गाध्ययनम् :: ११ कायोत्सर्गनयुक्तिः ] [ १६७ जइ ते चित्तं झाणं एवं झाणमवि चित्तमावन्न। तेन र चित्तं झाणं अह नेवं झाणमन्नं ते ।। १५०१ ।। नियमा चित्तं झाणं झाणं चित्तं न यावि भइयत्वं । जह खइरो होइ दुमो दुमो य खइरो अखयरो वा ।।१५०२।। 5 अट्ट रुदं च दुवे झायइ झारगाई जो ठिमो संतो। एसो काउस्सम्गो दुव्वुसिओ भावउ निसन्नो ।। १५०३ ।। धम्मं सुषकं च दुवे झायइ झाणाई जो निसन्नो प्र। एसो काउस्सग्गो निसनुसिओ होइ नायवो ।। १५०४ ।। धम्म सुक्कं च दुवे नटि झायइ नवि य अट्टरुद्दाई। 10 एसो काउस्सग्गो निसण्णओ होइ नायवो ॥ १५०५ ।। अट्ट रुदं च दुवे झायइ झाणाइं जो निसन्नो य । एसो काउस्सग्गो निसन्नगनिसन्नओ नाम ॥१५०६ ।। धम्म सुक्कं च दुवे झायइ झाणाई जो निवन्नो उ। एसो काउस्सग्गो निवनुसिओ होइ नायवो ॥ १५०७ ।। 15 धम्म सुक्कं च दुवे नवि झायइ नवि य अट्टरुद्दाइं । एसो काउस्सग्गो निवण्णओ होइ नायवो ॥ १५०८ ।। अट्ट रुदं च दुवे झायई झाणाइं जो निवन्नो उ । एसो काउस्सग्गो निवन्नगनिवन्नो नाम ।। १५०९ ।। अतरंतो उ निसन्नो करिज्ज तहविय सह निवन्नो उ। 20 संबाहुवस्सए वा कारणिय सहूवि य निसन्नो ।। १५१०॥ करेमि भंते ! सामाइयं । सव्वं सावज्जं जोग पञ्चक्खामि जावजीवाए तिविहं तिविहेणं मणेणं वायाए कारणं 2010_04 Page #191 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६८ ] [ नियुक्तिसंग्रहः :: (१) आवश्यकनियुक्तिः न करेमि न कारवेमि करतंपि अन्नं न समणुजाणामि तस्स भंते ! पडिकमामि निंदामि गरिहामि अप्पाणं वोसिरामि ॥ सू० ॥ इच्छामि ठाइङ काउस्सग्गं, जो मे देवसिओ अइयारो 5 को काइओ वाइओ माणसिओ उम्सुत्तो उम्मग्गो अकप्पो अकरणिज्जो दुल्झाओ दुविचिंतिओ अणायारो अणिच्छियव्यो असमणपाउग्गो नाणे दंसणे चरित्ते सुए सामाइए तिण्हं गुत्तीणं चउण्हं कसायाणं पंचण्हं महव्ययाणं छहं जीवनिकायाणं सत्तण्हं पिंडेमणाणं 10 अट्ठण्हं पवयणमाऊणं नवण्हं बंभचेरगुत्तीणं दसविहे समणधम्मे समणाणं जोगाणं जं खंडिअंजं विराहियं तस्स मिच्छामि दुक्कडं ॥ सूत्रम् ॥ तस्स उत्तरीकरणेणं पायच्छित्तकरणेणं विसोहीकरणेणं विसल्लीकरणेणं पायाणं कम्माणं निग्घायणढाए ठामि 15 काउस्सग्गं ।। सूत्रम् ॥ अन्नत्थ ऊससिएणं नीससिएणं खासिएणं छीएणं जंभाइएणं उड्डुएणं वायनिसग्गेणं भलिए पित्तमुच्छाए, सुहुमेहिं अंगसंचालेहि, सुहुमेहिं खेलसंचालेहि, सुमेहि दिद्विसंचालेहिं एवमाइएहिं आगारेहिं अभग्गो 20 अविराहिओ हुज्ज मे काउस्सग्गो जाव अरिहंताणं भग 2010_04 Page #192 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५-कायोत्सर्गाध्ययनम् :: ११-कायोत्सर्गनियुक्तिः ] [ १६९ वंताणं नमुक्कारेणं न पारेमि ताव काय ठाणेणं मोणेणं झाणेणं अप्पाणं वोसिरामि ॥ सूत्रम् ॥ काउस्सग्गंमि ठिओ निरेयकाओ निरुद्धवइपसरो। जाणइ सुहमेगमणो मुणि देवसियाइअइयारे ॥१॥ 5 परिजाणिऊण य जओ संमं गुरुजणपगासणेणं तु । सोहेइ अप्पगं जो जम्हा य जिणेहिं सो भणिओ ॥२॥(प्र०) काउस्सग्गं. मुक्खपहदेसियं जाणिऊण तो धीरा । दिवसाइयारजाणणट्टयाइ ठायंति उस्सग्गं ॥ १५११ ।। सयणा-सणण्णपाणे चेइय जइ सेज्ज काय उच्चारे । Itv समिती भावण गुत्ती वितहायरणमि अइयारो ॥ १२ ॥ गोसमुहणंतगाई पालोए देसिए य अइयारे । सत्वे समाण इत्ता हियए दोसे ठविज्जाहि ॥ १३ ॥ काउंहिअए दोसे जहक्कम जा न ताव पारेइ । ताव सुहमाणुपाणू धम्मे सुक्कं च झाइज्जा ।। १४ ॥ 15 देसिय राइय पक्खिय चाउम्मासे तहेव वरिसे य । इक्किक्के तिन्नि गमा नायव्वा पंचसेएसु ।। १५ ।। प्राइमकाउस्सग्गे पडिकमणे :ताव काउ सामइयं । तो कि करेह बीयं तइयं च पुणोऽवि उस्सग्गे ? ॥१६ ।। समभावमि ठियप्पा उस्सग्गं करिय तो पडिक्कमइ । 20 एमेव य समभावे ठियस्स तइयं तु उस्सग्गे ॥ १७ ।। सज्झायझाणतवओसहेसु उवएसथुइपयाणेसु । संतगुणकित्तणेसु अ न हुति पुणरुत्तदोसा उ ॥ १८ ॥ 2010_04 Page #193 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७० ] [ नियुक्तिसंग्रहः :: (१) आवश्यकनियुक्तिः मित्ति भिउमद्दवत्ते छत्ति प्र दोसाण छायणे होइ । मित्ति य मेराइ ठिम्रो दुत्ति दुगुंछामि प्रप्पाणं ॥१६॥ कत्ति कडं मे पावं डत्ति य डेवेमि तं उसमेण । एसो मिच्छादुक्कडपयक्खरस्थो समासेणं ॥ १५२० ॥ 5 खंडियविरहियाणं मूलगुणाणं सउत्तरगुणाणं । उत्तरकरणं कोरइ जह सगडरहंगगेहाणं ।। २१ ।। पावं छिदइ जम्हा पायच्छित्तं तु भन्नई तेणं । पाएग वावि चित्तं विसोहए तेण पच्छित् ।। २२ ।। दव्वे भावे य दुहा सोही सल्लं च इक्कमिक्कं तु । 10 सव्वं पावं कम्मं भामिज्जइ जेण संसारे ॥ २३ ॥ उस्सासं न निरु भइ प्राभिग्गहिमोवि किमु अ चिट्टाए ? । सज्जमरणं निरोहे सुहुमुस्सासं तु जयणाए ॥ २४ ।। कासखुअजंभिए मा हु सत्थमणिलोऽणिलस्स तिव्वुहो। प्रसमाही य निरोहे मा मसगाई तो हत्थो । २५ ।। 15 वायनिसग्गुड्डोए जयणासहस्स नेव व निरोहो । उड्डोए वा हत्थो भमलोमुच्छासु व निवेसो । २६ ।। वीरियसजोगयाए संचारा सुहुमबायरा देहे । बाहिं रोमंचाई अंतो खेलाणिलाईया ।। २७ ।। अव (आ)लोअचलं चक्खू मणुव्व तं दुक्कर थिरं काउं । 20 स्वेहि तयं खिप्पा सभावओ वा सयं चलइ ।। २८ ।। न कुणइ निसेसजत्तं तत्थुवओगे ए झाण झाइज्जा। एननिसि तु पवन्नो झायइ साहू अणिमिसच्छोऽवि ।। २६ ।। 2010_04 Page #194 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५-कायोत्सर्गाध्ययनम् :: ११-कायोत्सर्गनियुक्तिः] [ १७१ अगणीओ छिदिज्ज व बोहियखोभाइ दीहडक्को वा। आगारेहि प्रभग्गो उस्सग्गो एवमाईहिं ॥१५३० ॥ ते पुण ससूरिए चिय पासवणुच्चारकालभूमीग्रो । पेहित्ता अस्थमिए ठंतुसग्गं सए ठाणे ॥३१॥ 5 जइ पुण निवाघाए आवासं तो करिति सम्वेवि । सड्ढाइकहरणवाघाययाइ पच्छा गुरू ठति ।। ३२ ।। सेसा उ जहात्ति प्रापुच्छित्ताण ठंति सट्टाणे। सुत्तत्थसरणहेउं प्रायरिए ठियंमि देवसियं ॥ ३३ ।। जो हुज्ज उ असमत्थो बालो वुड्डो गिलाण परितंतो। 10 सो विकहाइविरहिओ झाइज्जा जा गुरू ठति ॥ ३४ ।। जा देवसिअं दगुणं चितइ गुरू अहिउओऽचिट्ठ । बहुवावारा इअरे एगगुणं ताव चितंति ॥ १५३५ ।। पव्व इयाण व चिट्ठ नाऊण गुरू बहुं बहुविहो । कालेणं तदुचिएणं पारेइ थोवचिट्ठोऽवि ।।१॥(प्र.) 15 नमुक्कार चउवीसग किहकम्मालोअणं पडिक्कमणं । किइकम्म दुरालोइअ दुप्पडिक्कते य उस्सग्गो ।। ३६ ।। एस चरित्तुस्सग्गो दंसणसुद्धोइ तइयओ होइ । सुयनाणस्स चउत्थो सिद्धाण थुई अ किइकम्मं ।। ३७ ।। सव्वलोए अरिहंतचेइआणं, करेमि काउस्सग्गं ॥१॥ 20 बंदणवत्तिआए, पूअण-वत्तिआए, सकार-वत्तिआए, सम्माण-वत्तिआए, बोहिलाभ-वत्तिआए, निरुवसग्ग 2010_04 Page #195 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७२ ] [ नियुक्तिसंग्रहः :: (१) आवश्यक नियुक्तिः वत्तिआए ॥ २॥ सद्धाए, मेहाए, धिईए, धारणाए अणुप्पेहाए वड्रमाणाए ठामि काउस्सग्ग॥ ३ ॥ सूत्रम् ॥ पुक्खर-वर-दीवड, धायईसंडे अ जंबूदीवे अं। भरहेरवय-विदेहे, धम्माऽऽइगरे नमसामि ॥१॥ तम5 तिमिर-पडल-विद्धं-सणस्स सुर-गण-नरिंदमहिअस्स । सीमाधरस्स वंदे, पप्फोडिअ मोह-जालस्स ॥ २ ॥ जाइजरा-मरणसोग-पणासणस्स, कल्लाण-पुक्खल-विसालसुहा-ऽऽवहस्स । को देव-दाणवनरिंद-गण-ऽच्चि-अस्स ?, धम्मस्स सारमुवलब्भ करे पमायं १ ॥३॥ सिद्धे भो ? 10 पयओ णमो जिणमए नंदी सया संजमे, देवं नागसुव नकिन्नर-गण सम्भूअभावऽच्चिए। लोगो जत्थ पइदिओ जगमिणं तेलुकमच्चासुरं, धम्मो वड्रउ सासओ विजयओ धम्मुत्तरं वउ ॥४॥ सुअस्स भगवओ करेमि काउस्सग्गं, वंदणवत्तियाए० ॥ सूत्रम् ।। अन्नत्थ-ऊससिएणं, नीससिएणं, खासिएणं, छीएणं, जंभाइएणं, उड्डुएणं, वायनिसग्गेणं भमलीए, पित्तमुच्छाए ॥१॥ सुहुमेहिं अंगसंचालेहिं सुहुमेहिं खेल-संचालेहि, सुहुमेहिं दिहि-संचालेहि ॥ २॥ एवमाइएहिं आगारेहि, अभग्गो अविराहिओ, हुज्ज मे काउस्सग्गो ॥३॥ जाव 20 अरिहंताणं भगवंताणं, नमुक्कारेणं न पारेमि ॥४॥ 15 2010_04 Page #196 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५-कायोत्सर्गाध्ययनम् :: ११-कायोत्सर्गनियुक्तिः ] [ १७३ ताव कायं ठाणेणं मोणेणं, झागेणं अप्पाणं वोसिरामि ॥ ५ ॥ सूत्रम् ।। सिद्धाणं बुद्धाणं, पारगयाण पर पर-गयाणं । लोअऽग्गमुवगयाणं नमो सया सव्वसिद्धाणं ॥ १॥ जो 5 देवाण विदेवो, जं देवा पंजली नमसंति । तं देव--देव महिअं, सिरसा वंदे महावीरं ॥ २ ॥ इको वि नमुक्कारो, जिणवरवसहस्स वद्धमाणस्स । संसारसागराओ, तारेइ नरं व नारिं वा ॥३॥ उन्जितसेलसिहरे, दिक्खा नाणं निसीहिआ जस्स । तं धम्मचकवादि, अग्टिनेमि नम10 सामि ॥४॥ चत्तारि अढ दस दोय, वंदिया जिणवरा चउव्वीसं । परमट्ठनिट्टि अट्ठा, सिद्धा सिद्धिं मम दिसंतु ॥ ५॥ सूत्रम् ॥ सुकयं आणत्ति पिव लोगे काऊण सुकयकिइकम्म(म्मा)। बड्डतिया थुईओ गुरुथुइगहणे कए तिनि ॥ १५३८ ।। 15 निद्दामत्तो न सरइ अइयारं मा य घट्टणंऽणोऽन्न । किइप्रकरणदोसा वा गोसाई तिनि उस्सग्गा ॥ ३९ ॥ एस्थ पढमो चरित्ते दंसणसुद्धीए बीयओ होइ । सुयनाणस्स य ततिओ नवरं चितंति तत्थ इमं ॥१५४० ।। तइए निसाइयारं चितइ चरमंमि कि तब काहं ? ।। 20 छम्मासा एगदिणाइहाणि जा पोरिसि नमो वा ॥४१॥ 2010_04 Page #197 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७४ ] [ नियुक्तिसंग्रहः :: (१) आवश्यकनियुक्तिः अहमवि खामेमी (मे) तुम्भेहि समं प्रहंच (पि) वंदामि । आयरियसंतियं नित्थारगा उ गुरुणो अ वयणाई ।। ४२ ।। देसिय राइय पक्खिय चउमासे य तहेव वरिसे य। एएसु हुँति नियया उस्सग्गा अनिप्रया सेसा ॥४३ ॥ 5 साय सयं गोसऽद्धं तिन्नेव सया हवंति पवखंमि । पंच य चाउम्मासे असहस्सं च वारिसए ॥ ४४ ।। चत्तारि दो दुवालस वीस चत्ता य हुँति उज्जोआ। देसिय राइय पक्खिय चाउम्मासे अ वरिसे य ।। ४५ ॥ पणवीसमद्धतेरस सिलोग पन्नतरि च बोद्धव्वा।। 10 सयमेगं पणवीसं बे बावन्ना य वारिसिए ॥४६ ।। गमणागमण विहारे सुत्ते वा सुमिणदंसणे राम्रो। नावानइसंतारे इरियावहियापडिषकमणं ।। १५४८ ।। नियमालयाप्रो गमण अन्नत्थ उ सुत्तपोरिसिनिमित्तं । होइ विहारो इत्थवि पणवोसं हंति ऊसासा ॥१॥ (प्र०) 15 उद्देससमुद्देसे सत्तावीसं अणुनवणियाए । अट्ठव य ऊसासा पट्ठवण पडिक्कमणमाई ॥१५४८ ।। जुज्जइ अकालपढियाइएसु दुठ्ठ अ पडिच्छियाईसु । समणुन्नसमुद्दे से काउस्सगस्स करणं तु ।। ४६ ।। जं पुण उद्दिसमाणा अणइकंतावि कुणइ उस्सग्गं । 20 एस प्रकओवि दोसो परिधिप्पइ किं मुहा ? भंते ! ॥१५५०॥ पावुग्घाई कोरइ उस्सग्गो मंगलंति उद्देसो । अणुवहियमंगलाणं मा हुज्ज कहिंचि णे विग्धं ।। ५१॥ 2010_04 Page #198 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५-कायोत्सर्गाध्ययनम् :: ११-कायोत्सर्गनियुक्तिः] [ १७५ पाणवहमुसावाए अदत्तमेहुणपरिग्गहे चेव । सयमेगं तु अणूणं ऊसासाणं हविज्जाहि ॥ १५५२ ।। नावा[ए] उत्तरिउं वहमाई तह नई च एमेव । संतारेण चलेण व गंतु पणवीस ऊसासा ॥ १॥ (प्र.) 5 पायसमा ऊसासा कालपमाणेण हुँति नायव्वा । एवं कालपमाणं उस्सग्गेणं तु नायव्वं ॥१५५३ ।। एमेव बलसमग्गो न कुणइ मायाइ सम्ममुस्सग्गं । मायावडिअ कम्मं पावइ उस्सग्गकेसं च ॥१॥ (प्र०) मायाए उस्सग्गं सेसं च तवं अकुव्वओ सहुणो। 10 को अन्नो अणुहोही सकम्मसेसं अणिज्जरियं ? || १५५४ ॥ निक्कूडं सविसेसं वयाणुरूवं बलाणुरुवं च । खाणुव्व उद्धदेहो काउस्सगं तु ठाइज्जा ॥ ५५ ॥ तरुणो बलवं तरुणो य दुब्बलो थेरओ बलसमिद्धो। थेरो प्रबलो चउसुवि भंगेसु जहाबलं ठाई ॥५६ ।। 15 पयलायइ पडिपुच्छइ कंटयर्यावयारपासवणधम्मे । नियडी गेलन्नं वा करेइ कूडं हवा एयं ।। ५७ ।। पुव्वं ठंति य गुरुणो गुरुणा उस्सारियंमि पारेति । ठायंति सविसेसं तरुणा उ अनविरिया उ ॥ ५८ ॥ चउरंगुल मुहपत्ती उज्जए डम्बहत्थ रयहरणं । 20 वोसटुचत्तदेहो काउस्सग्गं करिज्जाहि ॥ ५९ ।। घोडग लयाइ खंभे कुड्ड माले य सबरि वहु नियले। लंबत्तर थण उद्धी संजय खलि [णे य] वायसकवि? ॥६०।। 2010_04 Page #199 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७६ ] [ नियुक्तिसंग्रहः :: (१) आवश्यकनियुक्तिः सोसुक्कंपि य सूई अंगुलि भमुहा य वारुणी पेहा । नाहीकरयल कुप्पर उस्सारिय पारियमि थुई ॥ ६१ ॥ वासीचंदणकप्पो जो मरणे जीविए य समसण्णो (दरिसी) । देहे य अपडिबद्धो काउस्सगो हवइ तस्स ।। ६२ ।। 5 तिविहाणुवसगाणं दिवाणं माणुसाण तिरियाणं । । सम्ममहियासणाए काउस्सग्गो हव इ. सुद्धो ।। ६३ ।। इहलोगंमि सुभद्दा राया उदनोद सिट्ठिभज्जा य । सोदासखग्गथंभण सिद्धी सग्गोः य परलोए ॥६४ ।। काउस्सग्गे जह सुट्ठियस्स भज्जति अंगमंगाई। 10 , इय भिदंति सुविहिया प्रदविहं कम्मसंघायं ।। ६५ ।। अन्नं इमं सरीर प्रश्नो जीवृत्ति एव कयबुद्धी । दुक्खपरिकिलेसकरं छिद ममत्तं सरीराओ ।। ६६ ।। जावइया किर दुक्खा संसारे जे मए समणुभूया। इत्तो दुविसहतरा नरएसु अणोवमा दुवखा ।। ६७ ।। 15 तम्हा उ निम्ममेणं मुणिणा उवलद्धसुत्तसारेणं । काउस्सग्गो उग्गो कम्मक्खयट्ठाय कायवो ॥ १५६८ ।। ।। काउस्सग्गनिज्जुत्ती सयत्ता।। ॥ इति कायोत्सर्गाध्ययनम् ।। ५ ।। ।। इति कायोत्सगनियुक्तः । ११ ।। 2010_04 Page #200 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६-प्रत्याख्यानध्ययनम् :: १२-प्रत्याख्याननियुक्तिः ] [ १७७ ॥ ६ ॥ अथ षष्ठं प्रत्याख्यानध्ययनम् ॥ ॥ १२ ॥ अथ प्रत्याख्याननियुक्तिः ॥ पच्चक्खाणं पच्चक्खाम्रो पच्चक्खेयं च आणुपुवीए। परिसा कहणविही या फलं च आईइ छन्भेमा ॥ १५६६ ।। 5 मूलगुणावि य दुविहा समणाणं चेव सावयाणं च । ते पुण विभजमाणा पंचविहा हुंति नायव्वा ।। १॥ (प्र०) सावयधम्मस्स विहिं वुच्छामी धीरपुरिसपन्न । जं चरिऊण सुविहिया गिहिणोवि सुहाई पावंति ॥ १५७०॥ साभिग्गहा य निरभिग्गहा य प्रोहेण सावया दुविहा। 10 ते पुण विभज्जमाणा प्रदविहा हुँति नायव्वा ॥ ७१ ।। दुविहतिविहेण पढमो दुविह दुविहेणं बीयनो होइ । दुविहं एगविहेणं एगविहं चेव तिविहेणं ॥७२ ॥ एगविहं दुविहेण इविकषकविहेण छट्टो होइ। उत्तरगुण सत्तमओ अविरतओ चेव अट्टमओ ।।७३ ॥ पणय च उक्कं च तिगं दुगं एगं च गिण्हइ वयाई । अहवावि उत्तरगुणे अहवावि न गिण्हई किचि ॥ ७४ ।। निस्संकिय निवकंखिय निस्वितिगिच्छा अमूढदिट्टी य ।। घोरवयणमि एए बत्तीसं सावया भणिया ॥१५७५ ।। पंचण्हमणुवयाणं इक्कदुगति गवउक्कपणगेहिं । 20 पंचगदसदसपण इक्कगे य संजोग कायव्वा ।।१।। (अन्यक०) वयमिक्कगसजोगाण हंति पंचण्ह तीसई भंगा। 2010_04 Page #201 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७८ ] [ नियुक्तिसंग्रहः :: (१) आवश्यक निर्युक्तिः दुगसंजोगाण दसह तिन्नि सट्ठा सया हुति ॥ १ ॥ तिगसंजोगाण दसह भंगसयं इक्कवोसई सट्ठा । चउसजोगाण पुणो चउससियाणिऽसोयाणि ।। २ ।। सतुतरं सयाई उत्तराई च पचसंजोए । 5 उत्तरगुण अविरय मेलियाण जाणाहि सव्वग्गं ।। ३ ।। सोलसं चेव सहस्सा अट्ठसया चेव होंति अट्ठहिया । एसो उवास गाणं वयगहणविही समासेण || ४ || ( प्र० ) तत्थ समणोवासओ पुत्र्वामेव मिच्छत्ताओ पडिक्कमइ, संमत्तं उवसंपज्जर, नो से कप्पड़ अज्जप्पभिई अन्नउत्थिए 10 वा अन्नउत्थियदेवयाणि वा अन्नउत्थियपरिग्गहियाणि अरिहंतचे आणि वा वंदित्तए वा नमंसित्तए वा पुचि अणालत्तणं आलवित्त वा संलवित्तए वा तेसिं असणं वा पाणं वा खाइमं वा खाइमं वा दाउं वा अप्पयाउं वा, नन्नत्थ रायाभिओगेणं गणाभिओगेणं 15 बलाभिओगेणं देवयाभिओगेणं गुरुनिग्गहेणं वित्तीकंतारेणं, से य संमत्ते पत्थसंमत्तमोहनीय कम्मारणुवेयणोवसमखयसमुत्थे पसमसंवेगाइलिंगे सुहे आयपरिणामे पन्नत्ते, सम्मत्तस्स समणोवासरणं इमे पंच अइयारा जाणिअव्वा न समायरियव्या, तंजहा - संका कंखा विति20 मिच्छा परपासंडपसंसा परपासंडसंथवे ॥ सूत्रम् ॥ धूलगपाणाइवायं समणोवासओ पच्चक्खाइ, से पाणाइ 2010_04 Page #202 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६-प्रत्याख्यानध्ययनम् :: १२-प्रत्याख्याननियुक्तिः ] [ १७९ वाए दुविहे पन्नत्ते, तंजहा-संकप्पओ आरंभओ अ, तत्थ समणोवासओ संकप्पओ जावज्जीवाए पच्चक्खाइ नो आरंभओ, थूलगपाणाइवायवेरमणस्स समणोवासगेणं इमे पंच अइयारा जाणिअव्या, तंजहा-बंधे वहे छविच्छेए 5 अइभारे भत्तपाणवुच्छेए ॥१॥ सूत्रम् ॥ थूलगमुसावायं समणोवासओ पञ्चक्खाइ, से य मुसावाए पंचविहे पन्नत्ते, तंजहा-कंन्नालीए गवालीए भोमालीए नासावहारे कूडसक्खिज्जे । थूलगमुसावायवेरमणस्स समणोवासएणं इमे पंच अइयारा जाणिया , तंजहा10 सहस्सब्भक्खाणे रहस्सब्भक्खाणे सदारमंतभेए मोसुव एसे कूडलेहकरणे ॥ २ ॥ सूत्रम् ।। थूलगअदत्तादाणं समणोवासओ पञ्चक्खाइ, से अदिनादाणे दुविहे पन्नत्ते, तंजहा-सचित्तादत्तादाणे य अचि त्तादत्तादाणे य । थूलादत्तादाणवेरमणस्स समणोवासएणं 15 इमे पंच अइयारा जाणियव्वा, तंजहा-तेनाहडे तकरप ओगे विरुद्वरज्जाइक्कमणे कूडतुलकूडमाणे तप्पडिरूवगववहारे ॥ ३ ॥ सूत्रम् ।। परदारगमणं समणोवासओ पच्चक्खाति सदारसंतोसं या पडिवज्जइ, से य परदारगमणे दुविहे पन्नत्ते, 20 तंजहा-ओरालियपरदारगमणे वेउवियपरदारगमणे, सदा रसंतोसस्स समणोवासएणं इमे पंच अइयार जाणियव्वा, 2010_04 Page #203 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८० ] [नियुक्तिसंग्रहः :: (१) आवश्यकनियुक्तिः तंजहा-अपरिगहियागमणे इत्तरियपरिग्गहियागमणे अणंगकीडा परविवाहकरणे कामभोगतिव्वाभिलासे ॥४॥ सूत्रम् ॥ अपरिमियपरिग्गहं समणोवासओ पच्चक्खाइ इच्छा5 परिमाणं उवसंपजइ, से परिग्गहो दुविहे पन्नते, तंजहा सचित्तपरिग्गहे य अचित्तपरिग्गहे य, इच्छापरिमाणस्स समणोवासएणं इमे पंच अइयारा जाणियचा, तंजहाधणधनपमाणाइक्कमे, खित्तवत्थुपमाणाइक्कमे हिरनसुव नपमाणाइक्कमे दुपयचउप्पयपमाणाइक्कमे कुवियपमा10 णाइक्कमे ॥ ५॥ सूत्रम् ॥ दिसिवए तिविहे पन्नत्ते, तंजहा-उड़दिसिवए अहोदिसिवए तिरियदिसिवए, दिसिंवयस्स समणोवासएणं इमे पंच अइयारा जाणियव्वा, तं जहा-उदिसिपमा णाइक्कमे अहोदिसिपमाणाइक्कमे तिरियदिसिपमाणाइ15 क्कमे खित्तवुड़ी सइअंतरद्धा । ६ ॥ सूत्रम् ॥ उपभोगपरिभोगवए दुविहे पनत्ते, तंजहा-भोअणओ कम्मओ अ । भोअणओ समणोवासएणं इमे पंच अइयारा जाणियव्वा, तंजहा-सचित्ताहारे सचित्तपडिबद्धाहारे अप्पलिओसहिभक्खणया तुच्छोसहिभक्खणया दुप्पलि20 ओसहिभक्खणया। कम्मओ गं समणोवासएणं इमाई पन्नरस कम्मादाणाई जाणियव्या, तंजहा-इंगालकम्मे 2010_04 Page #204 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६- प्रत्याख्यानध्ययनम् :: १२ - प्रत्याख्यान निर्युक्तिः ] [ १८१ वणकम्मे साडीकम्मे भाडीकम्मे, फोडीकम्मे, दंतवाणिज्जे लवखवाणिजे रसवाणिज्जे के सवाणिज्जे विसवाणिज्जे, जंतपीलणकम्मे निल्लंछण कम्मे दवग्गिदावणया सरदहतलायसोसणया असईपोसणया ॥ ७ ॥ सू० ॥ अणत्थदंडे चउवि पन्नत्ते, तंजहा -अवज्झाणायरिए पत्तायरिए हिंसप्पयाणे पावकम्मोवएसे, अणत्थदंड वेरमणस्स समणोवासणं इमे पंच अइयारा जाणियव्वा, तंजहा- कंदप्पे कुक्कुइए मोहरिए संजुत्ता हिगरणे उवभोगपरिभोगाइरेगे ॥ ८ ॥ सूत्रम् ॥ 5 10 सामाइअं नाम सावज्जजोगपरिवजणं निरवज्ञ्जजोगपडिसेवणं च । सिक्खा दुविहा गाहा उववाय ठिई गई कसाया य । बंधंता वेयंता पडिवजाइकमे पंच ॥ १ ॥ सामाइअंमि उ कए समणो इव सावओ हवइ जम्हा | एएणं कारणं बहुसो सामाइयं कुञ्जा || २ || सव्वंति 15 भाणिऊणं विरई खलु जस्स सच्विया नत्थि । सो सव्वविरइवाई चुक्कइ देसं च सव्वं च ॥ ३ ॥ सामाइयस्स समणोवासरणं इमे पंच अइयारा जाणियव्वा, तंजहामणदुष्पणिहाणे वइदुष्पणिहाणे कायदुष्पणिहाणे सामाइयस सइअकरणया सामाइयस्स अणचट्ठियस्स करणया ॥ ६ ॥ सूत्रम् ॥ दिसिव्वयगहियस्स दिसापरिमाणस्स पइदिणं परि 20 2010_04 Page #205 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८२ ] [ नियुक्तिसंग्रहः :: (१) आवश्यकनियुक्तिः माणकरणं देसावगासियं नाम, देसावगासियस्स समणोवासएणं इमे पंच अइयारा जाणियव्या, तंजहा-आणवणप्पओगे पेसवणप्पओगे सद्दाणुवाए रूवाणुवाए बहिया पुग्गलपक्खेवे ।। १० ॥ सूत्रम् ।। 5 पोसहोववासे चउबिहे पन्नत्ते, तंजहा-आहारपोसह सरीरसकारपोसहे बंभचेरपोसहे अव्यावारपोसहे, पोसहोववासस्स समणोवासएणं इमे पंच अइयारा जाणियव्वा, तंजहा-अप्पडिलेहिय-दुप्पडिलेहिय-सिज्जासंथारए अप मज्जिय-दुप्पमज्जिय-सिज्जासंथारए अप्पडिलेहिय-दुप्प10 डिलेहिय-उच्चारपासवणभूमीओअप्पमज्जिय-दुप्पमज्जिय उच्चारपासवणभूमीओ पोसहोववासस्स सम्म अणणुपालणया ॥ ११ ॥ सूत्रम् ॥ अतिहिसंविभागो नाम नायागयाणं कप्पणिज्जाणं अन्नपाणाईणं दवाणं देसकालसद्धासकारकमजुअं पराए 15 भत्तीए आयाणुग्गहबुद्धीए संजयाणं दाणं, अतिहिसं विभागस्स समणोवासएणं इमे पंच अइयारा जाणियव्वा, तंजहा-सच्चित्तनिक्खेवणया सच्चित्तपिहणया कालाइक्कमे परववएसे मच्छरिया य ॥ १२ ॥ सूत्रम् ॥ इत्थं पुण समणोवासगधम्मे पंचाणुव्ययाइं तिन्नि गुण20 व्ययाई आवकहियाई, चत्तारि सिक्खावयाइं इत्तरियाई, एयस्स पुणो समणोवासगधम्मस्स मूलवत्थु सम्मत्तं, 2010_04 Page #206 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६-प्रत्याख्यानध्ययनम् :: १२ प्रत्याख्याननिर्युक्तिः ] [ १८३ तंजा - तं निसग्गेण वा अभिगमेण वा पंचअईयारविसुद्धं अणुव्वयगुणन्वयाई च अभिग्गहा अन्नेऽवि अणेगा पडिमादओ विसेसकरणजोगा, अपच्छिमा मारणंतिया संलेहणा भूसणाराहणया, इमीए समणोवासरणं इमे पंच अइयारा जाणियव्वा, तंजहा - इहलोगासंसप्पओगे परलोगासंसप्पओगे जीवियासंसप्पओगे मरणासंसप्पओगे कामभोगासंसप्पओगे ॥ १३ ॥ सूत्रम् ॥ पच्चक्खाणं उत्तरगुणेसु खमणाइयं अणेगविहं । तेण य इहयं पगयं तंपि य इणमो दसविहं तु ।। १५७७ ।। 10 अणागयम इक्कतं कोडियसहियं निअंटियं चेव । सागारमणागारं परिमाणकडं निरवसेसं ॥ ७८ ॥ संकेयं चेव श्रद्धाए पच्चक्खाणं तु दसविहं । सयमेवणुपालणियं दाणुवएसे जह समाही ।। ७६ ।। होही पज्जोसवरणा मम य तथा अंतराइयं हुज्जा 15 गुरुवेयावच्चेणं तवस्सि गेलन्नयाए वा ।। १५८० ।। सो दाइ तवोकम्मं पडिवज्जे तं अरगागए काले । एयं पच्चक्खाणं अणागयं होइ नायव्वं ।। ८१ ।। पज्जोसवणाइ तवं जो खलु न करेइ कारणज्जाए । गुरुवेयावच्चेणं तवस्सि गेलन्नयाए वा ।। ८२ ।। सो दाइ तवोकम्मं पडिवज्जइ तं प्रइच्छिए काले । एयं पच्चक्खाणं श्रइवकतं होइ नायव्वं ॥ ८३ ॥ 20 2010_04 Page #207 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८४ ] [ नियुक्तिसंग्रह: :: ( १ ) आवश्यक निर्युक्ति: पट्टवणो अ दिवसो पच्चक्खाणस्स निदुवणश्रो श्र । जहियं समिति दुनिवि तं भन्नइ कोडिसहियं तु ॥ ८४ ॥ मासे मासे अ तवो प्रसुगो अमुगे दिणंमि एवइमो । हट्ठण गिलाणेण य कायव्त्रो जाव ऊसासो । ८५ ।। 3 एवं पच्चषखाणं नियटियं धोरपुरिरुपन्नत्त । ।। ८७ ।। जगिण्हतणगारा अणिस्सि ( विभ) अप्पा श्रपबिद्धा || ६ || चउदसपुथ्वी जिनकप्पिएस पढमंमि चैव संघघणे । एयं विच्छिन्नं खलु थेरावि तथा करेसी य मयहरगागारेहिं असत्थवि कारणंमि जायंमि । 10 जो भत्तपरिच्चायं करेइ सागारकडमेय ।। ८५ ।। निज्जाय कारणमी मयहरगा तो करंति आगारं । कतारवित्तिदुभिक्खयाइ एय निरागारं ।। ६९ ।। दत्तोहि उ कवलेहि व घरेहिं भिक्खाहि अह व दव्वेहि । जो भक्तपरिच्चायं करेड परिमाणकडमेयं ।। १५९० ॥ 15 सव्वं असण सव्व पाणगं सव्वखज्जभुज्जविहं । वोसिरइ सव्वभावेण एय भणियं निरवसेसं अंगुट्टमुट्ठिगंठी- घर से उस्सास थिबुगज इक्खे । भणियं संकेयमेयं धीरेहिं अणतनाणीहि ।। ६२ ।। अद्धा पच्चक्खाणं जं त कालप्पमाण छेएन । 20 पुरिमडपोरिसीए मुहुत्तमासद्धमासेहिं ।। ६३ ।। भणियं दस विहमेय पच्चक्खाणं गुरूवए सेणं । कयपच्चक्खाणविहिं इत्तो वुच्छं समातेणं ॥ ६४ ॥ ।। ९१ ।। 2010_04 Page #208 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६-प्रत्याख्यानध्ययनम् :: १२-प्रत्याख्याननियुक्तिः ] [ १८५ प्राह जह जीवघाए पच्चक्खाए न कारए अन्नं । भंगभयाऽसणदाणे धुव कारवणे य नणु दोसे ।। ९५ ॥ नो कयपच्चक्खाणो आयरियाईण दिज्ज असणाई । न य विरइपालणाओ वेयावच्चं पहाणयरं ॥९६ ।। 5 नो तिविहं तिविहेणं पच्चक्खइ अन्नदाणकारवणं । सुद्धस्स तओ मुणिणो न होइ तभंगहेउत्ति ।। ९७॥ सयमेवऽणुपालणियं दाणुवएसो य नेह पडिसिद्धो। ता दिज्ज उवइसिज्ज व जहा समाहीइ अन्नेसि ।। ९८ ।। कयपच्चक्खाणोऽविय आयरियगिलाणबालवुड्डाणं । 10 दिज्जासणाइ संते लाभे कयवीरियायारो ॥ ९९ ।। सा पुण सद्दहणा जाणणा य विणयाणभासणा चेव । अणुपालणाविसोही भावविसोही भवे छट्टा ।। १६०० ।। सूरे उग्गए णमोक्कारसहितं-पच्चक्खामि-चउविपि आहारं असणं पाणं खाइम, साइमं अण्णात्थणभोगेणं सहसाकारेणंवोसिरामि ।। सूत्रम् ॥ असणं पाणगं चेव · खाइमं साइमं तहा । एसो आहारविही चविहो होइ नायवो ॥१६०१ ॥ आसु खुहं समेई प्रसणं पाणाणुवग्गहे पाणं। खे माइ खाइमंति य साएइ गुणे तओ साई ॥ १६०२ ।। 20 सवोऽविय आहारो प्रसणं सव्वोऽवि वुच्चई पाणं। सम्वोऽवि खाइमंति य सम्वोऽवि य साइमं होई ।। १६०३ ।। 2010_04 Page #209 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८६ । [ नियुक्तिसंग्रहः :: (१) आवश्यकनियुक्तिः जइ असणमेव सव्वं पाणगं अविवज्जणंमि सेसाणं । हवइ य सेसविवेगो तेण विहत्ताणि चउरोऽवि ।। १६०४ ॥ असणं पाणगं चेव खाइमं साइमं तहा । एवं परूवियंमी सद्दहिउँ जे सुहं होइ ।। १६०५ ।। 5 अन्नत्थ निडिए वंजणमि जो खलु मणोगओ भावो । तं खलु पच्चक्खाणं न पमाणं वंजणच्छलणा ॥ १६०६ ।। फासियं पालियं चेव सोहियं तीरियं तहा । किट्टिअमाराहि चेव, एरिसयंमी पयइयव्वं ॥ ५६०७ ।। पच्चक्खाणंमि कए आसवदाराई हुँति पिहियाई । 10 प्रासववुच्छेएणं तण्हावुच्छेअणं होइ ।। १६०८ ॥ तण्हावोच्छेदेण य अउलोवसमो भवे मणस्साणं । अउलोवसमेण पुणो पच्चक्खाणं हवइ सुद्धं ॥ १६०६ ।। तत्तो चरित्तधम्मो कम्मविवेगो तो अपुव्वं तु । तत्तो केवलनाणं तओ अ मुक्खो सयासुक्खो ।। १६१० ।। 15 नमुक्कारपोरिसीए पुरिमड्ड गासणेगठाणे य । आयंबिल अभत्त8 चरमे य अभिग्गहे विगई ।। ११ ।। दो छच्च सत्त अट्ठ सत्तट्ठ य पंच च्च पाणमि । चउ पंच अट्ट नव य पत्तेयं पिंडए नवए ॥१२ ।। दोच्चेव नमुक्कारे आगारा छच्च पोरिसीए उ । 20 सत्तेव य पुरिमड्ड एगासणगंमि अट्ठव ॥१३ ।। सत्तेगट्ठाणस्स उ अट्ठवायंबिलंमि आगारा। पंचेव अभत्त? छप्पाणे चरिमि चत्तारि ।। १४ ॥ 2010_04 Page #210 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४-प्रत्याख्यानध्ययनम् :: १२-प्रत्याख्यान नियुक्तिः ] [ १८७ पंच चउरो अभिग्गहि निव्वीए अट्ट नव य आगारा। अप्पाउराण पंच उ हवंति से सेसु चत्तारि ।। १५ ।। नवणीप्रोगाहिमए प्रवदहि (व) पिसियघयगुले चेव । नव प्रागारा तेसि सेसदव्वाणं च अट्ठव ।। १५१६ ।। 5 णिवियतियं पच्चक्खातीत्यादि अन्नत्थऽणाभोगेणं सह साकारेणं लेवालेवेणं गिहत्थसंसह णं उक्खित्तविवेगेणं पडुच्चमक्खिएणं पारिट्ठावणियागारेणं महत्तरागारेणं सव्वसमाहिवत्तियागारेणं वोसिरति ।। सूत्रं॥ गोन्नं नामं तिविहं ओअण कुम्मास सत्तुआ चेव । 10 इक्किक्कंपि य तिविहं जहन्नयं मज्झिमुक्कोसं ॥ १६१७ ।। दव्वे रसे गुणे वा जहन्नयं मज्झिमं च उक्कोसं । तस्सेव य पाउम्गं छलणा पंचेव य कुडंगा ।। १८ ।। लोए वेए समए अन्नाणे खलु तहेव गेलने । एए पंच कुडंगा नायव्वा अंबिलंमि भवे ॥ १९ ॥ 15 पंचेव य खीराइं चत्तारि दहीणि सप्पि नवणीता। चत्तारि य तिल्लाइं दो वियडे फाणिए दुन्नि ।। १६२० ।। महुपुग्गलाई तिनि चलचलओगाहिमं तु जं पक्कं । एएसि संसट्ठ वुच्छामि प्रहाणुपुवीए ॥ २१ ॥ खरदहीवियडाणं चत्तारि उ अंगुलाई संसट्ठ। 20 फाणियतिल्लघयाणं अंगुलमेगं तु संसट्ठ ॥२२॥ महपुग्गलरसयाणं अद्धंगुलयं तु होइ संसठें। गुलपुग्गलनवणीए प्रद्दामलयं तु संसठें ।। २३ ।। 2010_04 Page #211 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८८ ] [ नियुक्तिसंग्रहः :: (१) आवश्यकनियुक्तिः आयंबिलमणायंबिल चउथा(द्धा) बालवुड्डसहुअसहू । अहिंडियहिंडियए पाहुणयनिमंतणाऽऽवलिया ।। २४ ।। विहिगहियं विहिभुत्तं उव्वरियं जं भवे असणमाई । तं गुरुणाऽणुनायं कप्पइ आयंबिलाईणं ॥ 5 विहिगहिनं विहिभुत्तं तह गुरूहि जं भवे अणुनायं । ताहे वंदणपुव्वं भुजा से संदिसायेउं ।। २५ ।। चउरो य हुँति भंगा पढमे भंगंमि होइ प्रावलिया। इत्तो अ तइयभंगो आवलिया होइ नायव्वा ॥२६ ।। पच्चक्खाएण कया पच्चक्खावितएवि सूआए (उ)। 10 उभयवि जाणगोयर चउभंगे गोणिदिळंतो ।। २७ ।। मूलगुणउत्तरगुणे सन्वे देसे य तह य सुद्धीए।। पच्चक्खाणविहिन्नू पच्चक्खाया गुरू होइ ।। २८ ।। किइकम्माइविहिन्न उवओगपरो अ असढभावो अ । संविग्गथिरपइन्नो पच्चक्खावितओ भणिओ ॥ २९ ।। 15 इत्थं पुण चउभंगो (गो) जाणगइअरंमि गोणिनाएणं । सुद्धासुद्धा पढमंतिमा उ सेसेसु अ विभासा ॥ १६३० ।। दवे भावे 4 दुहा पच्चक्खायवयं हवइ दुविहं ! । दव्वंमि प्र असणाई अनाणाई य भावंमि ॥ ३१ ॥ सोउं उठ्ठियाए विणीयऽवक्खिसतदुवउत्ताए । 20 एवंविहपरिसाए पच्चक्खाणं कहेयव्वं ॥ ३२ ॥ आणागिज्झो अत्थो प्राणाए चेव सो कहेयव्यो। दिळंति उ दिळंता कहणविहि विराहणा इयरा । ३३ ।। 2010_04 Page #212 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६-प्रत्याख्यानध्यायनम् .. १२-प्रत्याख्यान नियुक्तिः ] [ १८९ पच्चक्खाणस्स फलं इहपरलोए प्र होइ दुविहं तु । इहलोइ धम्मिलाई दामनगमाई परलोए ।। ३४ ।। पच्चक्खाणमिणं से विऊण भावेण जिणवरुद्दिट्ट। पत्ता अणंतजीवा सासयसुक्खं लहुं मुक्खं ।। ३५ ।। नायंमि गिव्हियत्वे अगिव्हियन्वंमि चेव अथमि । जहअश्वमेव इह जो उवएसो सो नओ नाम ॥ ३६ ।। सन्वेसिपि नयाणं बहुविहवत्तव्वयं निसामित्ता। तं सव्वनय विसुद्धं जं चरणगुणटिठओ साहू ॥ १६३७ ॥ ।। इति प्रत्याख्याननियुक्तिः ॥ १२ ॥ ।। इति प्रत्याख्यानाध्ययनम् ।। ६ ।। ॥ इति सिरिभद्दबाहुसामी विरइया ।। आवस्सय-निज्जुत्ती समत्ता ।।१।। (ग्रन्था २५००) 10 2010_04 Page #213 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ श्रुतकेवलिश्रीमद्भद्रबाहुस्वामिविरचिता ॥२॥ श्रीमती ओघनियुक्तिः -::.. नमो अरिहंताणं, गमो सिद्धाणं, णमो प्रायरियाणं, णमो उवज्झायाणं, णमो लोए सम्वसाहूणं; एसो पंचनमुक्कारो, सव्व5 पावप्पणासणो । मंगलाणं च सम्वेसि, पढमं हवइ मंगलं ॥ १ ।। (दुविहोवक्कमकालो समायारी अहाउयं चेव । सामाचारी तिविहा ओहे दसहा पयविभागे ।। १ ।। नवमयपच्चक्खाणा-भिहाणपुवस्स तइय वत्थूओ। वोस इमपाहुडाओ तो इहानीणिया जइया ॥२॥ सो उवक्कमकालो तयथनिविग्घसिखणत्थं च । आईय कय चिय पुणो मंगलमारंभये तं च ॥ ३ ।। अरहते वंदित्ता च उदसपुव्वी तहेव दसपुत्वी । एक्कारसंगसुत्तत्थधारए सवसाहू य ।। १ ।। ओहेण उ निज्जुत्ति वुच्छं चरणकरणाणुओगाओ। अप्पक्खरं महत्थं अणुग्गहत्थं सुविहियाणं ।। २ ॥ जुयलं ।। पडिलेहणं १ च पिडं २ उवहिपमाणं ३ अणाययणवज्ज ४ । पडिसेवण ५ मालोअण ६ जह य विसोही ७ सुविहियाणं ॥२॥ आमोगमग्गण गवेसणा य ईहा अपोह पडिलेहा । पेक्खणनिरिक्खणावि अ पालोयपलोयणेगट्ठा ॥३॥ 10 15 2010_04 Page #214 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नियुक्तिसंग्रहः :: (२) ओघनियुक्तिः ] [ १९१ पडिलेहओ य पडिलेहणा य पडिलेहियव्वयं चेव । कुभाइसु जह तियं परूवणा एवमिहयपि ।।४।। एगो व अणेगो वा, दुविहा पडिलेहगा समासेणं । ते दुविहा नायव्वा निक्कारणिआ य कारणिआ ।। ५ ।। 5 असिवाई कारणिआ निक्कारणिआ य चक्कथूभाई । तत्थेगं कारणिनं वोच्छं ठप्पा उ तिनियरे ॥६॥ असिवे ओमोयरिए रायभए खुहिअ उत्तम? प्र । फिडिअ गिलाणाइसए (णे अद्धसेस) देवया चेव आयरिए ।७। पोरिसिकरणं अहवावि प्रकरणं दोच्चऽपुच्छणे दोसा । 10 सरण सुय साहु सन्ती अंतो बहि अन्नभावेणं ।। ८॥ बोहण अप्पडिबुद्धे गुरुवंदण घट्टणा अपडिबुद्ध ।। निच्चलणिसण्णभाई दट्ठ चिट्ठ चलं पुच्छे ।।।। अप्पाहि अणुन्नाओ ससहाम्रो नीइ जा पहायति । उवओगं प्रासपणे करेइ गामस्त सो उभए ।। १० ।। 15 हिमतेणसावयभया दारा पिहिया पहं अयाणतो। अच्छइ जाव पभायं वासियभत्तं च से वसभा ॥ ११ ॥ ठवणकुल संखडीए अहिंडते सिणेहपयवज्ज । भत्तट्ठिअस्स गमणं अपरिणए गाउयं वहइ ।। १२ ॥ अत्थंडिलसंकमणे चलवक्खित्तऽणुवउत्तसागरिए । पडिपक्खेसु उ भयणा इयरेण विलंबणा लोगं (विलंबणालोयं) पुच्छाए तिणि तिआ छक्के पढम जयणा तिपंचविहा । आउम्मि दुविह तिविहा तिविहा सेसेसु काएसु ॥ १४ ॥ 20 2010_04 Page #215 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १९२ ] [ नियुक्तिसंग्रहः :: (२) ओधनियुक्तिः पुरिसो इत्थि नपुसग एक्केको थेर मज्झिमो तरुणो। साहम्मि अन्नधम्मिगिहत्थदुग अप्पणा तइओ ।। १५ ।। साहम्मिअपुरिसासइ मज्झिमपुरिसं अणुण्णविअ पुच्छे । सेसेसु होंति दोसा सविसेसा संजईवग्गे ॥१६॥ 5 थरो पहं न याणइ बालो पवंचे न याणई वावि । पंडिस्थिमज्झसंका इयरे न याणंति संका य ।। १७ ॥ पासटिओ य पुच्छेज्ज वंदमाणं अवंदवाणं वा । अणुवइऊण व पुच्छे तुहिक्कं मा य पुच्छिज्जा ।। १८ ।। पंथन्भासे य ठिपो गोवाई मा य दूरि पुच्छिज्जा। 10 संकाईया दोसा विराहणा होइ दुविहा उ ॥१६ ।। असई मज्झिमथेरो दढस्सुई भद्दओ य जो तरुणो। एमेव इत्थि वग्गे नपुसवग्गे य संजोगा ॥ २० ।। एत्थं पुण संजोगा होंति अणेगा विहाणसंगुणिआ। पुरिसित्थिनसेसु मज्झिम तह थेर तरुणेसु ।। २१ ॥ 15 तिविहो पुढविक्काओ सच्चित्तो मीसओ अ अच्चित्तो। एक्केक्को पंचविहो अच्चित्तेणं तु गंतव्वं ॥ २२ ॥ सुक्कोल्ल उल्लगमणे विराहणा दुविह सिगखुप्पते । सुक्कोवि अ धूलीए ते दोसा भट्ठिए गमणं ॥ २३ ।। पच्चवाया वालाइ सावया तेण कंटगा मेच्छा। 20 अक्कंतमणक्कते सपच्चवाएयरे चेव ॥२४ ।। तस्सासाइ धूलीए अक्कंत निपच्चएण गंतव्वं । मीसगसच्चित्तेसुऽवि एस गमो सुक्क उल्लाइं ।। २५ ॥ 2010_04 Page #216 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२) श्रीमती :: ओघनियुक्तिः ] [ १९३ उडुबद्धे रयहरणं वासावासासु पायलेहणिआ। वड उंबरे पिलंखू तस्स प्रलंभंमि चिचिणि मा ।। २६ ।। बारसअंगुलदीहा अंगुलमेगं तु होइ विच्छिन्ना।। घणमसिणनिव्वणावि प्र पुरिसे पुरिसे य पत्तेयं ।। २७ ।। 5 उभओ नहसंठाणा सच्चित्ताचित्तकारणा मसिणा । प्राउषकाओ दुविहो भोमो तह अंतलिक्खो य ।। २८ ।। महिआवासं तह अंतरिक्खियं दठ्ठ तं न निग्गच्छे । आसन्नाओ नियत्तइ दूरगओ घरं च रुक्खं वा ।। २६ ।। सभए वासत्ताणं अच्चुदए सुक्खरुक्खचडणं वा । 10 नइकोप्परधरणेणं भोमे पडिपुच्छिमा गमणं ॥३० ।। नेगंगि-परंपर (चलऽथिर)पारिसाडि-सालंबज्जिए सभए । पडिवक्खेण उ गमणं तज्जाइयरे व संडेवा ।। ३१ ।। चलमाणमणक्कंते सभए परिहरिअ गच्छ ईयरेणं । दगसंघट्टणलेवो पमज्ज पाए अदूरंमि ॥ ३२ ॥ 15 पाहाणे महुसित्थे वालुन तह कद्दमे य संजोगा। अक्कंतमणकते सपच्चवाएयरे व ॥३३॥ निभएऽगारित्थीणं तु मग्गओ चोलपट्टमुस्सारे । सभए प्रत्थग्घे वा प्रोहण्णेसु घणं पट्ट ।। २४ ॥ दगतीरे ता चिट्टे निप्पगलो जाव चोलपट्टो उ। सभए पलंबमाणं गच्छइ काएण अफुसंतो ।। ६५ ।। प्रसइ गिहि नालियाए आणक्खेउं पुणोऽवि पडियरणं । एगाभोग पडिग्गह केई सम्वाणि न य पुरनो ॥ ३६ ।। 20 2010_04 Page #217 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६४ ] [ नियुक्तिसंग्रहः :: (२) श्रीमती अोधनियुक्तिः सागारं संवरणं ठाणतिरं परिहरित्तुनावहे । ठाइ नमोवकारपरो तोरे जयणा इमा होइ ॥ ३७ ।। नवि पुरओ नवि मग्गओ मज्झे उस्सग्ग पण्णवीसाउ । दइउउड्डु (द) यंतु बेसु अ एस विहो होइ संतरणे ॥ ३८ ॥ 5 वोलोणे अणुलोमे पडिलोमऽद्देसु ठाइ तणरहिए। असई य गत्तिणंतगउल्लणं तलिगाइडेवणया ।। २६ ।। जह अंतरिक्खमुदए नवरि नियंबे अ वनिगुजे य । ठाणं समए पाउण घणकप्पमलंबमाणं तु ॥ ४० ॥ तिविहो वणस्सई खलु परित्तऽणंतो थिराथिरेक्केको। 10 संजोगा जह हेढा अवकंलाई तहेव इहि ॥ ४१ ।। तिविहा बेइंदिया खलु थिरसंघयणेयरा पुणो दुविहा । अक्कंताई य गमो जाव उ पंचिदिआ नेआ ।। ४२ ॥ पुढविदए य पुढविए उदए पुढवितस वाल कंटा य । पुढविवणस्सइकाए ते चेव उ पुढविए कमणं ॥ ४३ ।। 15 पुढवितसे तसरहिए निरंतरतसेसु पुढविए चेव ।। आउवणस्सइकाए वणेण नियमा वणं उदए ।। ४४ ।। तेऊवाउविहूणा एवं सेसावि सव्वसंजोगा । नच्चा विराहणदुर्ग वज्जतो जयसु उवउत्तो ।। ४५ ।। सम्वत्थ संजमं संजमाउ अप्पाणमेव रक्खिज्जा (रषखंतो)। 20 मुच्चइ अइवायाओ पुणो विसोही न याविरई ॥४६ ।। संजमहेउं देहो धारिज्जइ सो कओ उ तदभावे ? । संजमफाइनिमित्तं देहपरिपालणा इट्टा ॥ ४७ ।। 2010_04 Page #218 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२) श्रीमती :: ओधनियुक्तिः ] [ १६५ चिक्खल्लवालसावय-सरेणुकंटयतणे बहुजले अ । लोगोऽवि नेच्छइ पहे को ण विसेसो भयंतस्स ? ।। ४८ ।। जयणमजयणं च गिहो सचित्तमीसे परित्तऽणते अ । नवि जाणंति न यासि अवहपइण्णा प्रह विसेसो ॥ ४९ ।। अविअ जणो मरणभया परिस्समभया व ते विवज्जेइ । ते पुण दयापरिणया मोक्खामसी परिहरंति ।। ५० ॥ अविसिटु मिवि जोगंमि बाहिरे होइ विहुरया इहरा । सुद्धस्स उ संपत्ती अफला जं देसिआ समए ।। ५१ ।। एक्कमिवि पाणिवहमि देसिनं सुमहदंतरं समए । 10 एमेव निज्जरफला परिणामवसा बहुविहीमा ॥ ५२ ।। जे जत्तिआ अ हेऊ भवस्स ते चेव तत्तिमा मुक्खे । गणणाई या लोगा दुण्हवि पुण्णा भवे तुल्ला ॥५३ ।। इरिसाव हमाईमा जे चेव हवंति कम्मबंधाय । अजयाणं ते चेव उ जयाण निव्वाणगमणाय ॥ ५४ ।। एगतेण निसेहो जोगेसु न देसिओ विही वावि । दलिअं पप्प निसेहो होज्ज विही वा जहा रोगे ।। ५५ ।। जमि निसेविज्जते अइआरो होज्ज कस्सइ कयाइ । तेणेव य तस्स पुणो कयाइ सोही हवेज्जाहि ।। ५६ ।। अणुमित्तोऽवि न कस्सइ बंधो परवत्थुपच्चओ भणियो। 20 तहवि अ जयंति जइणो परिणामविसोहिमिच्छंता ।। ५७ ।। जो पुण हिसाययणेसु वट्टई तस्स नणु परीणामो। दुट्ठो न तं लिंग होइ विसुद्धस्स जोगस्स ॥५॥ 15 2010_04 Page #219 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६६ ] [ नियुक्तिसंग्रहः :: (२) श्रीमती ओघनियुक्तिः तम्हा सया विसुद्धं परिणामं इच्छया सुधिहिएणं । हिंसाययणा सम्वे परिहरियम्बा पयत्तेणं ॥ ५६ ।। वज्जेमित्ति परिणओ संपत्तीए विमुच्चई वेरा । अविहितोऽवि न मुच्चइ किलिट्ठभावोत्ति वा तस्स ।। ६० ।। 5 पढमबिइया गिलाणे तइए सण्णी च उत्थ साहम्मी। पंचमियंमि अ वसही छ? ठाणट्ठिओ होइ ॥ ६१ ।। एहिअपारत्तगुणा दुन्नि य पुच्छा दुवे य साहम्मी। तत्थेक्केक्का दुविहा चउहा जयणा दुहेककेक्का ॥ ६२ ।। इहलोइआ पवित्ती पासणया तेसि संखडी सड्ढो । 10 परलोइआ गिलाणे चेइय वाई य पडिपीए ॥ ६३ ।। अविहिपुच्छा अस्थित्थ संजया ? नस्थि तत्थ समणीओ। समणीसु अता नत्थी संका य किसोरवडवाए ॥ ६४ ।। सड्ढसु चरिअकामो संका चारी य होइ सड्डीसु। चे इयघरं व नस्थिह तम्हा उ विहीइ पुच्छेज्जा ।। ६५ ।। गामदुवारभासे अगडसमोवे महाणमझे वा । पुच्छेज्ज सयं पक्खा विआलणे तस्स परिकहणा ।। ६६ ॥ निस्संकिअ थूभाइसु काउ गच्छेज्जा चेइअघरं तु । पच्छा साहुसमीवं तेऽवि अ संभोइया तस्स ॥ ६७ ।। निक्खविउं किइकम्मं दीवणऽणाबाह पुच्छण सहाओ। 20 गेलण्ण विसज्जणया अविसज्जुवएस दा(जा)वणया ।।६८।। पुणरवि अयं खुभिज्जा प्रयाणगा मो स वा भणिज्ज संचिक्खे । उभओऽवि अयागंता वेज्जं पुच्छंति जयणाए ॥ ६९ ।। 15 2010_04 Page #220 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२) श्रीमती :: ओघनियुक्तिः ] [ १९७ गमणे पमाण उवगरण सउण वावार ठाण उवएसो । आणण गंधुदगाई उदुमणु? प्र जे दोसा ।। ७० ।। पढमा वियारजोगं नाउं गच्छे बिइज्जए दिण्णे। एमेव अण्णसंभोइयारण अण्णाइ वसहीए ॥ ७१ ।। 5 एगागि गिलाणंमि उ सि? तो कि न कोरई वावि ? । छगमुत्तकहण-पाणगधुवणत्थर तस्स नियगं वा ॥ ७२ ।। सारवणं साहल्लय पागडधुवणे सुई समायारा।। अइबिभले समाही सहुस्स प्रासासपडिप्ररणं ॥ ७३ ।। सयमेव दिट्ठपाढी करेइ पुच्छइ प्रयाणनो वेज्ज । 10 दीवण दव्वाइंमि प्र उवएसो जाव लंभो उ ॥ ७४ ।। कारणिन हट्ट पेसे गमणऽणुलोमेण तेण सह गच्छे । निक्कारणिअ खरंटण बिइज्ज संघाडए गमणं ॥७५ ।। समणिपवेसि निसीहिअ दुवारवज्जण अदिट्ठ परिकहणं । थेरीतरुणिविभासा निमंतऽणाबाहपुच्छा य ॥७६ ।। 15 सिटुसि सहू पडिणीयनिग्गहं अहव अरणहि पेसे । उवएसो दावणया गेलन्ने वेज्जपुच्छा प्र ।। ७७ ॥ तह चेव दीवण चउक्कएण अन्नत्थवसहि जा पढमा । तह चेवेगाणीए आगाढे चिलिमिली नवरं ॥७८ ।। निक्कारणिनं चमढरण काररिगनं नेइ अहव अप्पाहे । 20 गणित्थि मीससंबंधिवज्जए असइ एगागी ॥७६ ।। एगबहूसमणुण्णाण वसहीए जो प्र एगअमणुन्नो। अमणुन्न संजईण य अण्णहि एक्कं चिलिमिलीए ।। ८० ।। 2010_04 Page #221 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १९८ ] [ नियुक्तिसंग्रह: :: ( २ ) श्रीमती ओघनिर्युक्तिः विहिपुच्छाए पवेसो सष्णिकुले चेइ पुच्छ साहम्मी । अन्नत्थ अस्थि इह ते गिलाणकज्जे अहिवडंति ॥ ८१ ॥ सव्वंपिन घेत्तव्वं निमंतणे जं तहिं गिलाणस्स | कारणि तस्स य तुज्झ य विउलं दव्वं तु पाउग्गं ।। ८२ ।। 5 जाए दिसाए गिलाणो ताए दिलाए उ होइ पडियरणा । पुष्वभणिअं गिलाणो पंचण्हवि होइ जयणाए ।। ८३ ।। एवं गेलन्नट्टा वाघाश्रो अह इयाणि भिक्खट्टा | वइयग्गा मे सखडि सन्नी दाणे अ भट्टे श्र ।। ८४ ।। उव्वत्तणमप्पत्तं च पडिच्छे खोरगहण पहगमणे । 10 वोसिरणे छक्काया धरणे मरणं दवविरोहो ।। ८५ ।। खद्धादाणिअगामे संखडि आइन खद्ध गेलन्ने । सण्णी दाणे भद्दे अप्पत्तमहानिनादेसु ।। ६६ ।। पहुच्छिखीर सतरं घयाइ तक्कस्स गिण्हणे दीहं । गेहि विगिचणिअभया निसट्ट सुवणे अ परिहाणी ।। ८७ ।। 15 गामे परितलिअगमाइमग्गणे संखडी छणे विरूवा । सण्णी दाणे भद्दे जेमरणविगईगहण दीहं ॥ ८८ ॥ अह जग्गइ गेलन्नं अस्संजयकरण- जीववाधाओ । इच्छमणिच्छे मरणं गुरुआणा छड्डणे काया ।। ८९ ।। तक्कोयणाण गहणे गिलारण आणाइया जढा होंति । अप्पत्तं च पडिच्छे सोच्चा अहवा सयं नाउं ।। ६० ।। दूरुट्टि खुड्डलए नव मड श्रगणी अ पंत पडिणीए । अप्पत्तपडिच्छण पुच्छ बाहि अंतो पविसिअन्वं ।। ९९ ।। 20 2010_04 Page #222 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२) श्रीमती :: ओघनियुक्तिः । कक्खडखेत्तचुओ वा दुब्बल प्रद्धाण पविसमाणो वा । खीराइगहण दीहुँ बहुं च उवमा अयकडिल्ले ।। ६२ ।। जे चेव पडिच्छणदीह-खद्धसुवणेसु वणिमा दोसा। ते चेव सपडिवखा होंति इहं कारणज्जाए ।। ९३ ।। उग्गमदोसाईणं कहणा उप्पायणेसणाणं च । तत्थ उ नत्थी सुन्ने बाहिं सागार कालदुवे ।। १४ ।। दिट्ठमदिट्ठा दुविहा नायगुणा चेव हुँति अनाया । अहिट्ठावि दुविहा सुअमसुप्र पसत्थमपसत्था ।। ६५ ॥ दिट्ठा व समोसरणो न य नायगुणा हवेज्ज ते समणा । 10 सुप्रगुण पसत्थ इयरे समणुनिअरे य सव्वेवि ॥ ९६ ।। जइ सुद्धा संवासो होई प्रसुद्धाण दुविह पडिलेहा । अमितरबाहिरिमा दुविहा दवे अ भावे प्र ॥९७ ॥ घट्ठाइतलिअदंडग पाउय संलग्गिरी अणुवओगो। दिसि पवणगामसूरिअ वितहं उच्छोलणा दवे ॥९८ ।। 15 विकहा हसिउग्गाइय भिन्नकहाचक्कवालछलिअकहा। माणुसतिरिप्रावाए दायणप्रायररगया भावे ।। ६६ ॥ बाहि जइवि असुद्धा तहावि गंतूण गुरुपरिक्खा उ । अहव विसुद्धा तहवि उ अंतो दुविहा उ पडिलेहा ।।१०।। पविसंतनि मत्तणेसणं व साहइ न एरिसा समणा । 20 अम्हंपि ते कहती कुक्कुडखरियाइठाणं च ।। १०१ ।। दव्वंमि ठाणफलए सेज्जासंथारकायउच्चारे । कंदप्पगीयविकहा वुग्गहकिड्डा य मामि ॥१०२ ।। 2010_04 Page #223 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०० ] [ नियुक्तिसंग्रहः :: (२) श्रीमती ओघनियुक्तिः संविग्गेमु पवेसो संविग्गऽमणुन्न बाहि किइफम्म । ठवणकुलापुच्छणया एत्तोच्चिअ गच्छ गविसणया ।। १०३ ।। संविगसंनिभद्दग्ग सुन्ने निइयाइ मोत्तुहाच्छंदे । वच्चंतस्सेतेसु वसहीए मग्गणा होइ ।। १०४ ।। 5 वसही समणुष्णेसुनिइयादमणुण्ण अण्णहि निवेए । संनिगिहि इत्थिरहिए सहिए वीसु घरकुडीए ।। १०५ ॥ अहणुव्वासिअ सकवाड निबिले निच्चले वसइ सुण्णे । अनिवेइएयरेसि गेलन्ने न एस अम्हंति ।। १०६ ।। नीयाइअपरिभुत्ते सहिएयर पक्खिए व सज्झाए । 10 कालो सेसमकालो वासो पुण कालचारीसु ।। १०७ ।। तेण परं पासस्थाइएसु न य वसइऽकालचारीसु । गहिनावासगकरणं ठाणं गहिएणऽगहिएणं ।। १०८ ।। निसिअ तुयट्टण जग्गण विराहणभएण पासि निक्खिवइ । पासत्थाईणेवं निइए नवरं अपरिभुत्ते ॥ १०६ ।। 15 एमेव प्रहाच्छदे पडिहणणा झाण अज्झयण कन्ना । ठाणटिनो निसामे सुवणाहरणा य गहिएणं ।। ११० ॥ असिवे प्रोमोयरिए राय? भए नदुट्ठाणे । फिडिप्रगिलाणे कोलगवासे ठाणढिओ होइ ॥ १११ ।। तत्थेव अंतरा वा असिवादी सोउ परिरयस्सऽसई । 20 संचिक्खे जाव सिवं अहवाबी ते तम्रो फिडिआ ।। ११२ ।। वासासु उब्मिण्णा बीयाई तेण अंतरा चिटु । तेगिच्छि भोइ सारक्खणह? ठाणमिच्छति ॥११३ ॥ 2010_04 Page #224 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२) श्रीमती :: ओघनियुक्तिः ] [ २०१ संविग्गसंनिभद्दग प्रहप्पहाणेसु भोइयघरे वा । ठवणा आयरियस्सा सामायारी पउंजणया ॥ ११४ ।। एवं ता कारणिओ दूइज्जइ जुत्त अप्पमाएणं । निक्कारणिअ एतो चइओ आहिडियो चेव ।। ११५ ।। 5 जह सागरंमि मीणा संखोहं सागरस्स असहंता । निति तओ सुहकामी निग्गयमित्ता विनर संति ।। ११६ ।। एवं गच्छस मुद्दे सारणवीईहिं चोइया संता । निति तओ सुहकामी मीणा व जहा विणस्संति ॥ ११७ ।। उवएस अणुवएसा दुविहा आहिंडआ समासेणं । 10 उवएस देसदसण अणुवएसा इमे होंति ॥ ११८ ।। चक्के थूभे पडिमा जम्मण निक्खमण नाण निव्वाणे । संखडि विहार आहार उवहि तह दंसणटाए ॥ ११६ ।। एते प्रकारणा संजयस्स असमत्त तदुभयस्स भवे । ते चेव कारणा पुण गोयत्यविहारिणो मणिआ ।। १२० ॥ 15 गीयत्थो य विहारो बिइयो गीयत्थमीसिनो भगिओ। एत्तो तइअ विहारो नाणुनाओ जिणवरेहिं ।। ॥ १२१ ।। संजमआय-विराहण नाणे तह दंसणे चरित्ते अ। आणालोव जिणाणं कुम्वइ दोहं तु संसारं ॥ १२२ ।। गावि होंति दुविहा कारण निक्कारणे दुविहभेयो। 20 जं एत्थं नाणत्तं तमहं वोच्छं समासेण ॥ १२३ ।। जयमाणा विहरंता ओहाणाहिंडगा चउद्धा उ । जयमाणा तत्थ तिहा नाणट्ठा सणचरित्ते ।। १२४ ।। 2010_04 Page #225 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०२ ] [ नियुक्तिसंग्रहः :: (२) श्रीमती अोधनियुक्तिः (जयमाणा खलु एवं तिविहा उ समासओ समक्खाया। विहरताविय दुविहा गच्छगया निग्गया चेव ।। ४ ।) पत्तेयबुद्ध जिणकप्पिया य पडिमासु चेव विहरंता । प्रायरिअथेरवसभा मिक्खू खुड्डा य गच्छमि ।। १२५ ।। 5 प्रोहावंता दुविहा लिंगविहारे य होति नायव्वा । लिगेणऽगारवासं नियया ओहावण विहारे ।। १२६ ।। उवएस प्रणुवएसा दुबिहा आहिंडआ मुणेयन्वा । उवएसदेसदसण थूभाई हुँतिऽणुवएसा ॥१२७ ॥ पुण्णंमि मासकप्पे वासावासासु जयणसंकमणा । 18 प्रामंतणा य भावे सुत्तत्थ न हायई जत्थ ॥ १२८ ।। अप्पडिलेहिअदोसा वसही भिक्खं च दुल्लहं होज्जा। बालाइगिलाणाण व पाउग्गं अहव सज्झाम्रो ॥ १२६ ।। तम्हा पुव्वं पडिले हिऊण पच्छा विहीए संकमणं । पेसेइ जइ अणापुच्छिउं गणं तस्थिमे दोसा ।। १२० ।। 15 अइरेगोवहिपडिलेहणाए कथवि गयत्ति तो पुच्छे । खेत्ते पडिलेहेङ अमुगत्थ गयत्ति तं दुट्ठ ॥ १३१ ॥ तेरणा सावय मसगा ओमऽसिवे सेह इत्थि पडिणीए । थंडिल्ल अगणि उट्ठाण एवमाई भवे दोसा ।। १३२ ।। पच्चंति तावसीओ सावयदुभिक्खतेणपउराई । 20 णियगपदुट्ठट्टाणे फेडणहरियाइपण्णीए ॥ १३३ ।। सीसे जइ आमंतइ पडिच्छगा तेण बाहिरं भावं । जइ इयरा तो सीसा तेवि समत्तंमि गच्छति ।। १३४ ।। 2010_04 Page #226 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२) श्रीमती :: ओघनियुक्तिः ] [ २०३ तरुणा बाहिरभावं न य पडिलेहोवही न किइकम्मं । मूलयपत्तसरिसया परिभूया वच्चिमो थेरा ।। १३५ ।। जुण्णमएहि विहूणं जं जूहं होइ सुठ्ठवि महल्लं । तं तरुणरहसपोइयमयगुम्मइअं सुहं हंतु ॥ १३६ ।। थुइमंगलमामंतण नागच्छइ जो य पुच्छिनो न कहे । तस्सुरि ते दोसा तम्हा मिलिएसु पुच्छेज्जा ।। १३७ ।। केई भणंति पुत्वं पडिले हिन एवमेव गंतव्वं । तं च न जुज्जइ वसही फेडण प्रागंतु पडिणीए ।। १३८ ।। कयरो दिसा पसत्या ? अमुई सम्वेसि अणुमई गमणं । 10 चउदिसि ति दु एगं वा सत्तग पणगं तिग जहणं ।। १३६ ।। अभिग्गहिए वावारणा उ तत्थ उ इमे न वावारे । बालं वुड्डमगीअं जोगि वसहं तहा खमगं ।। १४० ।। एए चेव हवेज्जा पडिलोमेणं तु पेसए विहिणा । अविही पेसिज्जते ते चेव तहिं तु पडिलोमं ।। १४१ ।। 15 सामायारिमगीए जोगमणागाढ खवग पारावे । वेयावच्चे दायणजुयलसमत्थं व सहिअं वा ॥ १४२ ।। पंथुच्चारे उदए ठाणे. भिक्खंतरा य वसहीनो । तेणा सावयवाला पच्चावाया य जाणविही ॥ १४३ ।। सुत्तत्थं अकरिता भिक्खं काउं अइंति प्रवरण्हे । 20 बिइयदिणे सज्झानो पोरिसिअद्धाइ संघाडो ।। १४४ ।। खेत्तं तिहा करेत्ता दोसीणे नीणिग्रंमि अ वयंति । अण्णो लद्धो बहुमो थोवं दे मा य रूसेज्जा ।। १४५ ।। 2010_04 Page #227 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०४ ] [ नियुक्तिसंग्रहः :: (२) श्रीमती ओधनियुक्ति। अहव ण दोसीणं चिअ जायामो देहि दहि घयं खोरं । खीरे घयगुलपेज्जा थोवं थोवं च सव्वत्थ ।। १४६ ।। मज्झण्हि पउरभिक्खं परिताविअपिज्जजसपयकढियं । ओभट्ठमणोभट्ठ लब्भइ जं जत्थ पाउग्गं ॥ १४७ ।। 5 चरिमे परितावियपेज्जजूस प्राएस अतरणट्टाए । एक्के.क्कगसंजुत्तं भत्तट्ठ एक्कमेक्कस्स ।। १४८ ।। प्रोसह भेसज्जाणि अ कालं च कुले य दाणमाईणि । सग्गामे पेहित्ता पेहंति ततो परग्गामे ॥१४६ ।। चोयगवयणं दीहं पणीयगहणे य नणु भवे दोसा । 10 जुज्जइ तं गुरुपाहुण-गिलाणगट्ठा न दप्पट्टा ॥ १५० ॥ जइ पुण खद्धपणीए अकारणे एक्स पि गिण्हेज्जा। तहि दोसा तेण उ अकारणे खद्धनिद्धाई ।। १५१ ।। एवं -रुइए थंडिल वसही देउलिअसण्णगेहमाईणि । पाओगमऽणुण्णवणा वियालणे तस्स परिकहणा ।। १५२ ।। जाव गुरूण य तुज्झ य केवइया ? तत्थ सागरेणुवमा । केवइकालेणेहिह ? सागार ठवंति अण्णेवि ।। १५३ ।। पुवट्ठि इच्छइ अहव भणिज्जा हवंतु एवइया । तत्थ न कप्पइ वासो असई खेत्ताणऽणुन्नाओ ॥ १५४ ।। सक्कारो सम्माणो भिक्खग्गहणं च होह पाहुणए। 20 जइ जाणउ वसइ तहिं साहम्मिप्रवच्छलाऽऽणाई ।। ५५ ।। जइ तिनि सव्वगमणं एसु न एसुत्ति दोसुवि अ दोसा। अण्णपहेणगुणता निययावासोऽह मा गुरुणो ॥ ५६ ।। 15 2010_04 Page #228 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२) श्रीमती ओघनियुक्तिः ] [ २०५ गंतूण गुरुसमीवं आलोएत्ता कति खेत्तगुणा । न य सेसकहण मा होज्ज संखडं रत्ति साहेति ॥ ५७ ।। पढमाए नस्थि पढमा तत्थ उ घयखोरकूरदहिलंभो। बिइयाए बिइ तइयाए दोवि तेसि च धुवलंभो ।। ५८ ।। 5 ओहासिअधुवलंभो पाउग्गाणं चउस्थिए नियमा। इहरावि जहिच्छाए तिकालजोगं च सन्वेसि ।। ५६ ।। मयगहणं प्रायरिओ कत्थ वयामो ति? तत्थ ओयरिआ (जागरिया)। खुभिआ भणंति पढमं तं चिअ अणुओगतत्तिल्ला ।। १६० ।। 10 बिइयं सुत्तग्गाही उभयग्गाही प्र तइययं खेत्तं । आयरिओ अ चउत्थं सो उ पमाणं हवइ तत्थ ।। ६१।। मोहुम्भवो उ बलिए दुबलदेहो न साहए जोए। तो मज्झबला साहू दुस्सेणेत्थ दिढतो ॥६२ । परणपण्णगस्स हाणी प्रारेणं जेण तेण वा धरइ । 15 जइ तरुणा नोरोगा वच्चंति चउत्थगं ताहे ।। ६३ ।। अह पुण जुण्णा थेरा रोगविमुक्का य असलो तरुणा। ते अणुकूलं खेत्तं पेसंति न यावि खग्गूडे ॥ ६४ ।। एगपणप्रद्धमासं सट्ठी सुणमणुयगोणहत्थीणं । राईदिएण उ बलं पणगं तो एक्क दो तिनि ॥ ६५ ।। 20 सागरिअपुच्छगमणं बाहिरा मिच्छ छेय कयनासी । गिहि साहू अभिधारण तेणगसंकाइ जं चऽण्णं ।। ६६ ।। अविहीपुच्छा उग्गाहिएण सिज्जातरी उ रोएज्जा । सागारियस्स संका कलहे य सएज्जिआ खिसे ।। ६७ ।। 2010_04 Page #229 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०६ ] [ निर्युक्तिसंग्रह: : : ( २ ) श्रीमती ओघनिर्युक्तिः (वसहीए वोच्छेओ प्रभिसंधारितयाण साहूणं । पुणरावत्ती होज्ज व पव्वज्जा उज्जुप्रमईणं ।। १३ ।। प्र० ) हरिअच्छेयण छप्पइय घच्चणं किच्चणं च पोत्ताणं । छण्णेयरं च पगयं इच्छमणिच्छे य दोसा उ ।। ६८ ।। जइश्रा चेव उ खेत्तं गया उ पडिलेहगा तओ पाए । सागारियस्स भावं तणुएंति गुरू इमेहिं तु ।। ५९ ।। उच्छू बोलिति वई तुबीओ जायपुत्तभंडा य । वसभा जायत्थामा गामा पव्वायचिक्खल्ला ।। १७० ।। अप्पोदगाय मग्गा वसुहाविश्र पक्कमट्टिआ जाया । अण्णवकता पंथा साहूणं विहरिजं कालो ।। १७१ ।। समणाणं सउणाणं भमरकुलाणं च गोउलाणं च । अनियाओ वसहीओ सारइयाणं च मेहाणं ॥ ७२ ॥ आवस्सगकयनियमा कल्लं गच्छाम तो उ आयरिओ । सपरिजणं सागारिअ वाहिरिजं दिति अणुसि ॥ १७३ ।। 15 पव्वज्ज सावओ वा दंसण भद्दो जहण्णयं वर्साह | 5 10 जोगंमि वट्टमाणे अमुगं वेलं गमिस्सामो ।। १७४ ।। तदुभय सुत्तं पडिलेहणा य उग्गयमणुग्गए वावि । पच्छिा हिगरणतेणे नट्टे खग्गूड संगारो ।। १७५ ।। संगार बीय वसही तइए सण्णी चउत्थ साहम्मी । 20 पंचमगंमिश्र वसही छट्ठ ठाणट्टिओ होति ।। १७६ ।। पुरओ मज्भे तह मग्गओ य ठायंति खित्तपडिलेहा । दातुच्चाराई भावासण्णाइ रक्खट्ठा ॥। १७७ ।। 2010_04 Page #230 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२) श्रीमती :: ओघनियुक्तिः ] [ २०७ डहरे भिक्खग्गामे अंतरगामंमि ठावए तरुणे। उवगरणगहण असहू व ठावए जाणगं चेगं ।। १७८ ।। दूरुट्ठिअ खुड्डुलए नव भड अगणी य पंत पडिणीए । संघाडेगो धुवकम्मिओ व सुण्णे नवरि रिक्खा ।। १७६ ।। जाणंतठिएँ ता एउ वसहीए नत्थि कोइ पडियरइ । अण्णाएऽजाणतेसु वावि संघाड धुवकम्मी ॥ १८० ।। जइ प्रभासे गमणं दूरे गंतुं दुगाउयं पेसे । तेवि प्रसंथरमाणा इंती अहवा विसज्जंति ॥ १८१ ।। पढमबियाए गमणं गहणं पडिलेहणा पवेसो उ । 10 काले संघाडेगो वसंथरंताण तह चेव ॥ १८२ ।। वाघाए अण्णं मग्गिऊण चिलिमिणि पमज्जणा वसहे । पत्ताण भिक्खवेलं संघाडेगगो परिणओ वा ।। १८३ ।। सव्वे वा हिडंता वसहि मग्गंति जह व समुयाणं । लद्धे संकलिअनिवेयणं तु तत्थेव उ निय? ।। १८४ ॥ एक्को धरेइ भाणं एक्को दोण्ह वि पवेसए उहि । सव्वो उवेइ गच्छो सबालवुड्डाउलो ताहे ॥ १८५ ।। चोयगपुच्छा दोसा मंडलिबंधमि होइ आगमणं । संजमआयविराहण वियालगहणे य जे दोसा ।। १८६ ।। अइभारेण उ इरिग्रं न सोहए कंटगाइ पायाए। 20 भत्तट्टिअ वोसिरिआ अइंतु एवं जढा दोसा ॥ ८७ ।। पायरिअवयण दोसा दुविहा नियमा उ संजमायाए । बच्चह न तुझ सामी असंखडं मंडलीए वा ॥८८ ।। 15 2010_04 Page #231 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०८ ] [ नियुक्तिसंग्रहः :: (२) ओधनियुक्तिः कोहल आगमणं संखोभेणं अकंठगमणाई । ते चेव संखडाई वसहिं व न दंति जं वऽन्नं ।। ८६ ।। मारेण वेयणाए न पेहए थाणुकंट आयाए । इरियाइ संजमंमि अ परिगलमाणेण छक्काया ।। १९० ।। सावयतेणा दुविहा विराहणा जा य उवहिणा उ विणा । तणग्गि -गहणसेवण वियालगमणे इमे दोसा ।। ६१ ।। पविसणम गणठाणे वेसित्थि-दुगुछिए य बोद्धव्वे । सज्झाए संथारे उच्चारे चेव पासवणे ।। ९२ ।। सावयतेणा दुविहा विराहणा जा य उवहिणा उ विणा । 10 गुम्मियगहणाऽऽरणणा गोणाईचमढणा चेव ॥१६३ ।। फिडिए अण्णोण्णारण तेण य राम्रो दिया य पंथमि । साणाइ वेसकुत्थिअ तवोवणं मूसिया जं च ॥ ९ ॥ अप्पडिले हिप कंटाविलंमि संथारगंमि प्रायाए । छक्कायसंजमंमि अ चिलिणे सेहऽनहाभावो ।। ९५ ।। कंटगथाणुगवालाविलंमि जइ वोसिरेज्ज आयाए । संजमग्रो छक्काया गमणे पत्ते अइंते य ।। ६६ ।। मुत्तनिरोहे चक्खू वच्चनिरोहेण जीवियं चयइ । उड्डनिरोहे कोढे गेलन्नं वा भवे तिसुवि ।।९७ ।। जइ पुण वियाल पत्ता पए व पत्ता उवस्सयं न लभे । सुन्नघरदेउले वा उज्जाणे वा अपरिभोगे ॥८॥ आवाय चिलिमिणीए रणे वा निभए समुद्दिसणं । सभए पच्छन्नाऽसइ कमढय कुरुया य संतरिआ ।। ९९ ।। 15 20 2010_04 Page #232 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२) श्रीमती ओघनियुक्तिः ] [ २०९ कोढग सभा व पुस्वि काले वियाराइ भूमिपडिलेहा । पच्छा अइंति रत्ति पत्ता वा ते भवे रत्ति ।। २०० ।। गुम्मिअभेसण समणा निब्भय बहिठाण वसहिपडिलेहा । सुन्नघर पुश्वभणिअं कंचुग तह दारुदंडेणं ॥२०१ ।। 5 संथारगभूमितिगं आयरियाणं तु सेसगाणेगा । रुंदाए पुप्फइन्ना मंडलिना आवली इयरे ॥२०२ ।। संथारग्गहणाए बेंटिअउक्खेवणं तु कायव्वं । संथारो घेत्तवो मायामयविप्पमुक्केणं ।। २०३ ।। पोरिसिआपुच्छणया सामाइय उभयकायपडिलेहा । 10 साहणि दुवे पट्ट पमज्ज भूमि जओ पाए ।। २०४ ।। अणुजाणह संथारं बाहुवहाण वामपासेणं । कुक्कुडिपायपसारण प्रतरंत पमज्जए भूमि ।। २०५ ।। संकोए संडासं उव्वत्तंते य कायपडिलेहा । दवाई उवओगं हिस्सासनिरंभणाऽऽलोयं ॥२०६ ।। 15 दारं जा पडिलेहे तेणभए दोणि सावए तिण्णि । जइ य चिरं तो दारे अण्णं ठावेत्तु पडिअरइ ॥ २०७ ।। प्रागम्म पडिक्कतो अणुपेहे जाव चोद्दसवि पुवे । परिहाणि जा तिगाहा निद्दपमाओ जढो एवं ॥ २०८ ॥ अतरंतो व निवज्जे असंथरंतो अ पाउणे एक्कं । 20 गद्दभदिट्टतेणं दो तिणि बहू जह समाही ।२०६। वसहिदारं ।। दुविहो य विहरियाविहरिओ उ भयणा उ विहरिए होइ । संदिट्ठो जो विहरितो अविहरि प्रविही इमो होइ ।। २१० ।। 2010_04 Page #233 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१० ] [ नियुक्तिसंग्रह :: ( २ ) श्रीमती ओघनिर्य क्तिः भत्तट्ठि आवस्सग सोहेउं तो अति प्रवरव्हे ! प्रभुट्ठाणं दंडाइयाण गहणेक्कवयणेणं ॥ ११ ॥ ।। ।। खुड्डुल विगतेणा उन्हं उवरहि तेण उ पएवि । पक्खित्तं मोत्तूर्णं निक्खिवमुक्खित्तमोहेणं ॥ १२ ॥ 5 अप्पा मूलगुणेसु विराहणा अप्प उत्तरगुणेसुं । पासत्थाइसु दाणग्गहसंपओगोहा अप्पा ।।१३।। भुज भुत्ता अम्हे जो वा इच्छे अभुत सह भोज्जं । सव्वं च तेसि दाउं श्रन्नं गेव्हंति वत्थव्वा ।। २१४ ।। तिण्णि दिणे पाहून्नं सव्वेसि असइ बालवुड्डाणं । 10 जे तरुणा सग्गामे वस्थव्वा बाहिं हिंडंति ।। २१५ ।। आगंतुंगभद्द एयरे बाहि । संघाडगसंजोगो आगंतुंगा व बाहि वत्थव्वगभद्दए हिडे ॥ १६ ॥ विस्थिण्णा खुड्डुलिआ पमाणजुत्ता य तिविह वसही श्रो । पढमबिइयासु ठाणे तत्थ य दोसा इमे होंति ।। १७ ।। 15 खरकम्मिश्रवाणियगा कप्पडिअ सरक्खगा य वंठा य । संमीसावासेण दोसा य हवंति णेगविहा ।। १८ ।। आवासगअहिकरणे तदुभय उच्चारकाइयनिरोहे | संजम आयविराहण संका तेणे नपुंसित्थी ।। १९ ।। आवासयं करिते पवंचए झाणजोगवाघाओ । 20 सहण अपरिणया वा भायणभेश्रो य छक्काया ।। २२० ।। सुत्तत्थकरण नासो करणे उड्डु चगाइ अहिगरणं । पासवणिश्ररनिरोहे गेल दिट्टि उड्डाहो ।। २२१ ॥ 2010_04 Page #234 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२) श्रीमती ओधनियुक्तिः ] [ २११ मादिच्छिहति तो अप्प डिलिहिए (थंडिल्ले) दूर गंतु वोसिरति । आरक्खितेणेह ।। २२ ।। कोई । वा ।। २३ ।। संजम आयविराहणगहणं श्रोणयपमज्जमाणं दठ्ठे तेणेत्ति आहणे सागारिअ संघट्टण अपुमेत्थी गेव्ह साहइ 5 ओरालसरीरं वा इत्थि नपुंसा बलावि गेव्हंति । साबाहाए ठाणे निते श्रवडणपडणाई ।। २४ ।। तेणोत्ति मण्णमाणो इमोवि तेणोत्ति प्रावडइ जुद्धं । संजम आयविरोहण भायणभेयाइरणो दोसा ।। २५ ।। तम्हा पमाणजुत्ता एक्केक्कस्स उ तिहत्यसंथारो । 10 भायणसंथारंतर जह वीसं अंगुला हुँति ॥ २६ ॥ मज्जारमसगाइ य (नवि) वारे नवि अ जाणुघट्टणया । दो हत्था य अवाहा नियमा साहुस्स साहूओ ।। २७ ।। भुताभुत्तसमुत्था भंडणदोसा य वज्जिआ एवं । सीसंतेण व कुड्डु तु हत्थं (तिहत्थं) मोत्तूण ठायंति ।। २८ ।। 15 पुथ्वुद्दिट्ठो उ विही इहवि वसंताण होइ सो चेव । आसज्ज तिनि वारे निसन्न आउंटए सेसा ।। २९ ।। आवस्तिमासज्जं नीइ पमज्जंतु जाव उच्छन्नं । सागारिय तेणुब्भामए य संका तउ परेणं ।। २३० ।। नत्थि उ पमाणजुत्ता खुडलिया चेव वसति जयणाए । 20 पुरहत्थ पच्छ पाए पमज्ज जयणाए निगमणं ।। ३१ ।। उस्सीसभायणाई मज्भे विसमे श्रहाकडा उवरि । ओवग्गहिम्रो दोरो तेण य वेहासिलंबणया ।। २३२ ।। 2010_04 Page #235 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१२ ] [ नियुक्तिसंग्रह: : : ( २ ) श्रीमती ओघनिर्युक्तिः खुड्डलियाए असई विच्छिन्नाए उ मालणा भूमी । बिलधम्मो चारभडा साहरणेगंतकडपोत्ती ।। २३३ ।। असई य चिलिमिलीए भए व पच्छत्र मूइए लक्खे । श्राहारो नोहारो निग्गमणपवेस वज्जेह ।। ३४ ।। • पिंडेण सुत्तकरणं श्रासज्ज निसोहियं च न करिति । S कारण न पमज्जणया न य हत्थो जयण वेति ।। ३५ ।। पत्ताण खेत्त जयणा काऊणावस्तयं ततो ठवणा । पडणीयपत्तमामग भद्दगसंद्धे य प्रश्चियत्ते ।। २३६ ।। कि कारणं चमढणा दव्वखओ उग्गमोऽवि अ न सुज्भे । 10 गच्छमि निययकज्जे आयरियगिलाणपाहुणए ।। ३७ ।। जड्डे महिसे चारी आसे गोणे अ तेसि जावसिआ । एएस पडिवक्खे चत्तारि उ संजया हुँति ॥ ३८ ॥ पुच्छा गिहिणो चिता दिट्ठ े तो तत्थ खुज्जबोरीए । प्रापुच्छिकण गमणं दोसा य इमे श्रणापुच्छे ।। ३६ ।। 15 आयरिए आपुच्छा तस्संदिट्टे व तंमि उवसंते । चेsगिलाणकज्जाइएसु गुरुणो अ निग्गमणं ।। २४० ।। भण्णइ पुव्वनिउत्ते आपुच्छित्ता वयंति ते समणा । अणभोगे आसन्ने काइयउच्चारभोमाई ।। ४१ ।। दवमाइनिग्गयं वा सेज्जायर पाहुणं च अप्पाहे । 20 असई दूरगओवि अ नियत्त इहरा उ ते दोसा ।। ४२ ।। अण्णं गामं च वए इमाई कज्जाई तत्थ नाऊणं । तत्यवि अप्पाहणया नियत्तई वा सई काले ।। २४३ ।। 2010_04 Page #236 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२) श्रीमती :: ओघनियुक्तिः । [२१३ दूरट्ठिअखुड्डलए नव भड अगणी य पंत पडिणीए। पाओग्गकालऽइक्कम एक्कगलंभो अपज्जतं ।। २४४ ।। पाउग्गाईणमसई संविग्गं सण्णिमाइ अप्पाहे । जइ य चिरं तो इयरे ठवित्तु साहारणं भुंजे ।। ४५ ।। 5 जाए दिसाए उ गया भत्तं घेत्तुं तओ पडियरंति । अणपुच्छनिग्गयाणं चउद्दिसं होइ पडिलेहा ॥ ४६ ।। पंथेणेगो दो उपहेण सदं करेंति वच्चंता । अक्खरपडिसाडणया पडियरणिपरेसि मग्गेणं ॥ ४७ ॥ गामे गंतुं पुच्छे घरपरिवाडीए जत्थ उ न दिट्ठा। 10 तत्थेव बोलकरणं पिडियजणसाहणं चेव ॥ ४८ ॥ एवं उग्गमदोसा विजढा पइरिक्कया प्रणोमाणं । मोहति गिच्छा अ कया विरियायारो य अणुचिपणो ।। ४६ ।। अणुकंपायरियाई दोसा पइरिक्कजयणसंसट्ठ। पुरिसे काले खमणे पढमालिय तीसु ठाणेसु ।। २५० ।। 15 एगत्य होइ भत्तं बिइग्रंमि पडिग्गहे दवं होइ । पाउग्गायरियाई मत्ते बिइ उ संसां ।। २५१ ।। जइ रित्तो तो दवमत्तगंमि पढमालियाए करणं तु । संसत्तगहण दवदुल्लहे य तत्थेव जं पत्तं ।। ५२ ।। अंतरपल्लीगहिनं पढमागहियं व सव्व भुजेज्जा । 20 धुवलंमसंखडीयं व जं गहिरं दोसिणं वावि ॥५३ ।। दरहिडिए व भाणं भरिनं भोच्चा पुणोवि हिडिज्जा । कालो वाऽइक्कमई भुंजेज्जा अंतरा सत्वं ॥ २५४ ।। 2010_04 Page #237 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१४ ] [ नियुक्तिसंग्रहः :: (२) श्रीमती अोधनियुक्तिः एसो उ विही भणिओ तंमि वसंताण होए खेतमि । पडिलेहणंपि इत्तो वोच्छं अप्पक्खरमहत्थं ॥ ५५ ।। दुविहा खलु पडिलेहा छउमत्थाणं च केवलोणं च । अभितर बाहिरिमा दुविहा दवे य भावे य ।।५६ ।। पाणेहि उ संसत्ता पडिलेहा होइ केवलीणं तु । संसत्तमसंसत्ता छउमस्थाणं तु पडिलेहा ॥ ५७ ।। संसज्जइ धुवमेणं अपेहिनं तेण पुव्व पडिलेहे । पडिलेहिपि संसज्जइत्ति संसत्तमेव जिणा ॥ ५८ ।। नाऊण वेयणिज्जं अइबहुअं आउभं च थोवागं । 10 कम्म पडिलेहेउ वच्चंति जिरणा समुग्घायं ॥ ५९ ।। संसत्तमसंसत्ता छउमत्थाणं तु होइ पडिलेहा । चोयग जह प्रारक्खी हिडिताहिंडिया चेव ॥२६० ।। तित्थय रा रायाणो साहू प्रारविख भंडगं च पुरं । तेणसरिसा य पारणा तिगं च रयणा भवो दंडो ।। ६१ ।। 15 कि कय किं वा सेसं कि करणिज्जं तवं च न करेमि ? । पुवारत्तकाले जागरओ भावपडिलेहा ॥६२॥ ठाणे उवगरणे या थंडिल उवथंभ-मग्गपडिलेहा । किमाई पडिलेहा पुव्वण्हे चेव प्रवरण्हे ॥ २६३ ।। उड्ड थिरं अतुरिनं सव्वं ता वत्थ पुव पडिलेहे । 20 तो बिइ पप्फोडे तइयं च पुणो पमज्जेज्जा ।। ६४ ।। अणच्चाविअं अवलिअं अणाणुबंधि अमोलि चेव । छप्पुरिमा नव खोडा पाणी पाणपमज्जणं ।। २६५ ।। 2010_04 Page #238 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२) श्रीमती ओघनियुक्तिः ] . [२१५ आरभडा सम्मदा वज्जेयव्वा य मोसली तइया । पप्फोडणा चउत्थी विक्खित्ता वेइया छट्ठा ॥६६ ।। पसिढिल पलंब लोला एगामोसा अणेगरवधुणा । कुणइ पमाणपमायं संकियगणणोवगं कुज्जा ।। ६७ ।। 5 अणूणाइरित्तपडिलेहा, अविवच्चासा तहेव य। पढमं पयं पसत्थं, सेसाणि अ अप्पसत्थाणि ॥ ६८ ।। खोडपमज्जणवेलाउ चेव ऊणाहिआ मुणेयव्वा । अरुणावासग १ पुच्वं २ परोप्परं ३ पाणिपडिलेहा ४ ।।७६ ।। एते उ अणाएसा अंधारे उग्गएविहुं न दीसे । 10 मुहरयनिसिज्जचोले कप्पतिगदुपट्टथुई सूरो ॥७० ।। पुरिसुवहिविवच्चासो सागरिए करिज्ज उवहिवच्चासं । आपुच्छित्ताण गुरु पहुव्वमाणेयरे वितहं ।। ७१ ।। पडिलेहणं करेंतो मिहो कहं कुणइ जणवयकहं वा । देइ व पच्चक्खाणं वाएइ सयं पडिच्छइ वा ।। ७२ ।। पुढवी प्राऊक्काए तेऊवाऊवणस्स इतसाणं । पडिलेहणापमत्तो छण्हंपि विराहपो होइ ।। ७३ ।। घडगाइपलोट्टणया मट्टिन अगणी य बीय कुथाई । उदगगया व तसेयर ओमुय संघट्ट झावणया ॥ ७४ ।। इय दव्वो उ छण्हपि बिराहनो भावो इहरहावि । उवउत्तो पुण साहू संपत्तीए अवहनो अ॥ २३ ॥ (प्र०) पुढवीआउक्काए तेऊवाऊवणस्सइतसाणं । पडिलेहणमाउत्तो छण्हंऽपाराहनो .. होइ ॥७५ ।। 15 20 ७ 2010_04 Page #239 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१६ ] [ नियुक्तिसंग्रह: : : ( २ ) श्रीमती ओघनियुक्तिः ।। २८ ।। जोगो जोगो जिणसासणंमि दुक्खक्खया पउंजते । अण्णोष्णमबाहाए प्रसवत्तो होइ कायव्वो ।। ७६ ।। जोगे जोगे जिणसासणंमि दुक्खक्खया पउंजंते । एक्केक्कंमि अनंता वट्टता केवली जाया ।। ७७ ।। 5 एवं पडिलेहंता श्रईयकाले अनंतगा सिद्धा । चोयगवयणं सययं पडिलेहेमो जओ सिद्धी सेसेसु श्रवट्टतो पडिलेहंतोवि देसमाराहे । जइ पुर्ण सव्वाराहणमिच्छसि तो णं निसामेहि ॥ ७९ ॥ पंचिदिएहि गुत्तो मणमाईतिविहकरणमा उत्तो । 10 तवनियम संजमंमि अ जुत्तो श्राराधश्रो होइ ॥ ८० ॥ पोरिसि पमाणकालो निच्छ्यववहारिओ जिणक्खाश्रो । तिच्छत्र करणजुओ ववहारमतो परं वोच्छं ॥ ८१ ॥ श्रयणाईयदिणगणे श्रट्टगुणेगट्टिभाइए लद्धं । उत्तरदाहिणमाई पोरिसि पयसुज्झपवखेवा ।। ८२ ।। 15 अगसट्टिभागा खयवुड्डी होइ जं अहोरत्ते । तेरणट्ठगुणक्कारो एगट्टी सूरतेएणं ।। २४ ।। ( प्र० ) आसाढे मासे दो पया, पोसे मासे चउप्पया । चित्तासोएसु मासेसु, तिपया हवइ पोरिसी ।। २८३ ।। अंगुलं सत्तर तेणं, पक्खेणं तु दुअंगुलं । 20 वढए हायए वावि, मासेणं चउरंगुलं ॥ ८४ ॥ आसाढबहुल पक्खे मद्दवए कत्तिए य पोसे य । फग्गुणवइसाहेसु य बोद्धव्वा ओमरत्ताओ ॥ ८५ ॥ 2010_04 Page #240 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२) श्रीमती ओघनियुक्तिः ] [ २१७ जेट्टामूले प्रासाढसावणे छहिं अंगुलेहि पडिलेहा। अहि बीअतिमि प्र तइए दस अहिं च उत्थे ॥८६ । उववज्जिऊण पुव्वं तल्लेसो जइ करेइ उवओगं । सोएण चक्खुणा घाणो य जीहाए फासेणं ॥ ८७ ॥ मुहणंतएण गोच्छं गोच्छग-गहिरंगुलोहि पडलाइं। उक्कुडुय-माणवत्थे पलिमंथाईसु तं न भवे ।। ८८ ।। चउकोण भाणकण्णं पमज्ज पाएसरीय तिगुणं तु । भाणस्स पुप्फगं तो इमेहि कज्जेहि पडिलेहे ।। ८९ ।। मूसयरयउक्केरे, घणसंताणए इय । 10 उदए मट्टिआ चेव, एमेया पडिवत्तिओ ।। २६० ।। नवगनिवेसे दूराउ उक्के रो मूसएहि उक्किण्णो । निद्धमहि हरतणू वा ठाणं भेत्तूण पविसेज्जा ॥ ९१ ।। कोत्थल-गारिअघरगं घणसंताणाइया व लग्गेज्जा । उक्केरं सट्टाणे हरतणु संचिठ्ठ जा सुक्को ॥२९२ ।। 15 इयरेसु पोरिसितिगं संचिक्खावेत्तु तत्ति छिदे। सव्वं वावि विगिचइ पोराणं मट्टि ताहे ॥६३ ।। पत्तं पमज्जिऊणं अंतो बाहि सई तु पप्फोडे । केइ पुण तिणि वारा चउरंगुल भूमि पडणभया ।। ६४ ॥ विटिअबंधणधरणे अगणी तेणे य दंडियक्खोभे । उउबद्धधरणबंधण वासासु अबंधणा ठवणा ॥६५॥ अणावायमसंलोए प्रणवाए चेव होइ संलोए । आवायमसंलोए आवाए चेव संलोए ॥६६ ।। 20 2010_04 Page #241 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१८ ] [ नियुक्तिसंग्रहः :: (२) श्रीमती ओघनियुक्तिः तत्वावायं दुविहं सपक्खपरक्खनो य णायव्वं । दुविहं होइ सपक्खे संजय तह संजय तह संजईणं च ।। ६७ ।। संविग्गमसंविग्ग संविग्ग मणुण्णएयरा चेव । असंविग्गावि दुविहा तप्पक्खियएअरा चेव ॥९८॥ परपक्खेवि अ दुविहं माणुस तेरिच्छिअंच नायव्वं । एक्केक्कपि अ तिविहं पुरिसित्थिनपुसगे चेव ॥ ९९ ।। पुरिसावायं तिविहं दंडिअ कोडुबिए य पागइए । ते सोयऽसोयवाई एमेवित्थी नपुंसा य ॥ ३०० ।। एए चेव विभागा परतित्थीणंपि होइ मणुयाणं । 10 तिरिआणपि विभागा अओ परं कित्तइस्सामि ।। ३०१ ।। दित्तादित्ता तिरिआ जहण्णमुक्कोसमज्झिमा तिविहा । एमेवित्थिनपुंसा दुगुछिन दुगुछिआ नेया ।। २०२ ।। गमण मणुण्णे इयरे वितहायरणमि होइ अहिगरणं । पउरदवकरण दर्छ कुसील से हऽरणहाभावो ।। ३०३ ॥ 15 जत्थऽम्हे वच्चामो जत्थ य प्रायरइ नाइवग्गोणे। परिभव कामेमाणा संकेयगदिन्नया वावि ।। ३०४ ।। दव अप्प कलुस असई प्रवण पडिसेह विष्परीणामो। संकाईया दोसा पंडिस्थिगहे य जं चऽण्णं ॥ ३०५॥ आहणणाई दित्ते गरहिअतिरिएसु संकमाईया । 20 एमेव य संलोए तिरिए वज्जेत्तु मणुयाणं ॥ ३०६ ॥ कलुसदवे असई य व पुरिसालोए हवंति दोसा उ । पंडित्थीसुवि एए खद्धे वेउवि मुच्छा य ।। ३०७ ।। 2010_04 Page #242 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२) श्रीमती प्रोधनियुक्तिः ] [ २१९ आवायदोस तइए बिइए संलोयओ भवे दोसा। ते दोवि नस्थि पढमे तहिं गमणं तत्थिमा मेरा ।। ३०८ ।। कालमकाले सण्णा कालो तइयाइ सेसयमकालो । पढमा पोरिसि प्रापुच्छ पाणगमपुल्फियऽण्णदिसि ।। ३०६ ।। 5 अइरेगगहण उग्गाहिएण पालोअ पुच्छिउँ गच्छे । एसा उ अकालंमी अहिंडिअ हिंडिआ कालो ।। ३१० ॥ कप्पेऊणं पाए एक्के क्कस्स उ दुवे पडिग्गहए । दाउ दो दो गच्छे तिहट्ट दवं तु घेत्तणं ॥ ११ ॥ अजुगलिया प्रतुरंता विकहारहिया वयंति पढमं तु । 10 निसिइत्तु डगलगहणं आवडणं वच्चमासज्ज ।। १२ ।। अणावायमसंलोए, परस्सणुवघाइए । समे अज्झसिरे यावि, अचिरकालकमि प्र ।। १३ ।। विस्थिपणे दूरमोगाढे, नासण्णे बिलवज्जिए । तसपाणबीयरहिए, उच्चाराईणि बोसिरे ॥ १४ ॥ 15 एगदुगतिगचउक्कग-पंचछसत्तट्टनवगदसहिं । संजोगा कायध्वा भंगसहस्सं चउव्वीसं ।। १५ ।। उभयमुहं रासिदुगं हेट्ठिल्लाणंतरेण भय पढमं । लद्धहरासिविभत्ते तस्सुवरिगुणं तु संजोगा ।। २५ ।। (प्र.) दिसिपवणगामसूरिय-छायाए पमज्जिऊण तिक्खुत्तो। 20 जरसोग्ग होत्ति काऊरण वोसिरे प्रायमेज्जा धा ।। १६ ।। उवगरणं वामे ऊरुगंमि मत्तं च दाहिणे हत्थे ।। सत्थऽनत्थ व पुछे तिहि प्रायमणं अदूरंमि ॥ १७ ॥ 2010_04 Page #243 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२० ] [ नियुक्तिसंग्रहः :: (२) श्रीमती ओधनियुक्तिः पढमासइ अमणुन्नेयराण गिहियाण वावि पालोए। पत्तेयमत्त कुरुकुय दवं च पउरं गिहत्थेसु ।। १८ ।। तेण परं पुरिसाणं असोयवाईण वच्च प्रावायं । इस्थिनपुसालोए परंमुहो कुरुकुया सा उ ॥१६ ।। 5 तेण परं प्रावायं पुरिसेअरइत्थियाण तिरियाणं । तथवि अ परिहरेज्जा दुगुछिए दित्तचित्ते य ।। ३२० ॥ तत्तो इत्थिनपुंसा तिविहा तत्थवि असोयवाईसु । तहिनं तु सद्दकरणं पाउल-गमणं कुरुकुया य ॥ २१ ॥ अश्वोच्छिन्ना तसा पाणा, पडिलेहा न सुज्झई । 10 तम्हा हट्ठपहस्स, अवट्ठभो न कप्पई ।। २२ ।। संचर कुथुद्देहिअलूयावेहे तहेव दाली अ । घर कोइलिआ सप्पे विस्संभर उंदुरे सरडे ।। २३ ।। अतरंतस्स उ पासा गाढं दुक्खंति तेरऽवट्ठ मे । संजयपट्ठी थंभे सेल छुप्राकुडुविट्टीए ॥ २४ ॥ 15 पंथं तु वच्चमाणा जुगंतरं चक्खुणा व पडिलेहा । अइदूरचक्खुपाए सुहमतिरिच्छग्गय (च्छागय) न पेहे ।। २५ ।। अच्चासन्ननिरोहे दुक्खं दट्ठमि पायसंहरणं । छक्काय विप्रोरमणं सरीरं तह भत्तपाणे य ॥ २६ ।। पत्तं च मग्गमाणे हवेज्ज पथे विराहणा दुविहा। दुविहा य भवे तेणा परिकम्मे सुत्तपरिहाणी ।। २७ ।। एसा पडिलेहणविही कहिआ भे धीरपुरसिपन्नत्ता । संजमगुणड्डगाणं निग्गंथाणं महरिसीणं ॥२८ ।। 20 2010_04 Page #244 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२) श्रीमती ओघनिर्युक्तिः ] [ २२१ एयं पडिलेहणविह जुजंता चरणकरणमाउत्ता । साहू खवंति कम्मं अणेगभवसंचिश्रमणतं ॥ २६ ॥ पिंड व एसणं वा एत्तो वोच्छं गुरूवएसेणं । गवसणगहणघासेसणाए तिविहाए विसुद्धं ॥ ३३० ॥ 5 पिंडस्स उ निक्खेवो चउक्कओ छक्कओ य कायव्वो । निक्खेवं काऊणं परूवणा तस्स कायव्वा ।। ३१ ।। नामं ठवणापिडो दव्वपिंडो य भावपिडो य । एसो खलु पिंडस्स उ निषखेवो चउव्विहो होइ ।। ३२ ।। गोण्णं समयकयं वा जं वावि हवेज्ज तदुभएण कयं । तं बिंति नामपिण्डं ठवणाविडं अओ वोच्छं ।। ३३ ।। अक्खे वराडए वा कटु पोत्थे व चित्तकम्मे वा । सम्भावमसम्भावा ठवणापिंड वियाणाहि ॥ ३४ ॥ तिविहो य दव पडो सच्चित्तो मोसओ य प्रच्चित्तो । अचित्तो य दसविहो सच्चित्तो मोसओ नवहा ।। ३५ ।। 15 पुढवी ग्राउबकाए तेउवाऊवणस्सई चेव 1 10 बिअतिअचउरो पंचिदिया य लेवो य दसमो उ ॥ ३६ ॥ पुढविक्कानो तिविहो सच्चित्तो मीसओ य अचित्तो । सच्चितो पुण दुविहो निच्छ्यववहारिश्रो चेव ।। ३७ ।। निच्छयो सच्चितो पुढविमहापव्वयाण बहुमज्भे । 20 अच्चित्तमीसवज्जो सेसो ववहारसच्चित्तो ।। ३८ ।। खीरदुमहे पंथे कट्टोल्लो इंधणे य मीसो य 1 पोरिसि एगदुगतिगं बहुइंधणमज्झथोवे अ ।। ३६ ।। 7 2010_04 Page #245 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२२ ] [ नियुक्तिसंग्रह: :: ( २ ) श्रीमती ओघनिर्युक्तिः प्रग्गीलोणूस श्रंबिले नेहे । सीउन्हखारखते वक्कतजोगिएणं (एवि य) पओयणं तेणिमं होंति ॥ ४० ॥ अवरद्विग विसबंधे लवणेण व सुरभिउवलएणं च । अच्चित्तस्स उ गहणं पश्रयणं होइ जं चऽन्नं ।। ४१ ।। 5 ठाणनिसीयतुयट्टण उच्चाराईणि चैव उस्सग्गो । घट्टगडगलगलेवो एमाइ पओयणं बहुहा ।। ४२ ।। घणउदहीघणवलया करगसमुद्दद्दहाण बहुमज्झे । श्रह निच्छयसच्चित्तो ववहारनयस्स प्रगडाई ।। ४३ ।। उसिणोदगमणुवत्ते दडे वाप्ते य पडिअमेत्ते य । 10 मोत्तूणाएसतिगं चाउलउदगं बहुपसन्नं ।। ४४ ।। श्रासतिगं बुम्बुय बिन्दू तह चाउला न सिज्झति । मोत्तूण तिणिडवेए चाउलउदगं बहु पसण्णं ।। ४५ ।। सीउन्हखारखत्ते अग्गोलोणूस अंबिले नेहे । वक्कतजोणिएणं पओयणं तेणिमं होति ।। ४६ ।। 15 परिसेयपियणहत्था इधोयणा चीरधोयणा चेव । आयमण भागधुवणे एमाइ पओयणं बहुहा ।। ४७ ।। उउबद्धधुवण बाउस बंभविणासो अठाणठवणं च । संपाइमवाउवहो पलवण आतोपघातो य ।। ४८ ।। अइमारचुडणपणए सोयलपावरण अजोर गेलन्ने । 20 प्रोभावण कायवहो वासासु प्रधोबणे दोसा ।। ४९ ।। अपत्ते चिय वासे सव्व उवह ध्रुवंति जयणाए । प्रसइए व दवस्स उ जहन्नश्रो पायनिज्जोगो ।। ३५० ।। 2010_04 Page #246 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२) श्रीमती ओपनियुक्तिः ] [ २२३ 10 आयरियगिलाणाणं मइला मइला पुणोवि धोवंति । मा हु गुरूण अवन्नो लोगंमि अजीररणं इयरे ।। ५१ ।। पायस्स पडोयारं दुनिसज्जे तिपट्ट पोत्ति रयहरणं । एते ण उ विस्सामे जयणा संकामणा धुवणा ।। ५२ ।। 5 अभितरपरिभोगं उरि पाउणइ णातिदूरे य । तिन्नि य तिन्नि य एक्कं निसिउं काउंपडिच्छे (रिक्खे )ज्जा।५३। केई एक्केक्कनिसि संवासेउं तिहा पडिच्छंति । पाउरिणय जइण लग्गति छप्पया ताहे धोवेज्जा ॥ ५४ ।। निव्वोदगस्स गहणं केई भाणेसु असुइ पजिसेहो । गिहीमायणेसु गहणं ठियवासे मीसिनं छारो ।। ५५ ।। गुरुपच्चक्खाण-गिलाण सेहमाईण धोवणं पुवं । तो अप्पणा पुवमहाकडे य इतरे दुवे पच्छा ॥ ५६ ।। अच्छोडपिट्टणासु तं ण धूवे धावे पतावणं न करे। परिभोगमपरिभोगे छायातव पेह कल्लाणं ॥५७ ।। इट्टगपागाईणं बहुमज्झे विज्जुयाइ निच्छइम्रो । इंगालाई इयरो मुम्मुरमाई य मिस्सो उ ।५८ ।। प्रोदणवंजणपाणग-आयामुसिणोदगं च कूम्मासा । डगलगसरक्खसूई पिप्पलमाई य परिभोगो ।। ५९ ।। सवलयघणतणुवाया अतिहिमअतिदुद्दिणे य निच्छइओ। 20 ववहार पाय (इ)माई अक्कंतादी य अच्चित्तो ।। ३६० ।। हत्थसयमेग गंता दइउ अचित्तो बिइय संमीसो। तइयंमि उ सच्चित्तो वत्थी पुण पोरिसिदिहिं ।। ६१ ।। 15 2010_04 Page #247 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२४ ] [नियुक्तिसंग्रहः :: (२) श्रीमती अोधनियुक्तिः दइएण वस्थिणा वा पओयत्तं होज्ज वाउणा मुणिणो। गेलन्नेमि व होज्जा सचित्तमीसे परिहरेज्जा ।। ६२ ।। सयो वरुणंतकाओ सच्चित्तो होइ निच्छयनयस्स । ववहाराउ अ सेसो मोसो पव्वायरोट्टाई ॥६३ ।। 5 संथारपायदंडग-खोमिप्रकप्पाइ पीढफलगाई । ओसहभेसज्जाणि य एमाइ पओयणं तरुसु ।। ६४ ।। बियतियचउरो पंचिदिया य तिप्पभिई जत्थ उ समेति । सट्टाणे सट्टाणे सो पिडो तेण कज्जामिणं ।। ६५ ।। बेइंदियपरिभागो अक्खाण ससंख सिप्पमाईणं । 10 तेइंदियाण उद्देहिगाइ जं वा वए विज्जो ।। ६६ ।। चरिदियाण मक्खियपरिहारो प्रासमक्खिया चेव । पंचिदिपिडंमि उ अव्ववहारी उ नेरइया ।। ६७ ।। चम्मटिदंतनहरोम सिंगअमिलाइच्छगण-गोमुत्ते । खीरदहिमाइयाणं पंचिदिअतिरिअपरिभोगो ॥६८ ॥ सच्चित्तो पव्वावण पंथुवदेसे य भिक्खुदाणाई । ... सोसट्ठिय प्रच्चित्ते मीसटि-सरक्खपहपुच्छा ॥ ६६ ।। खमगाइकाल-कज्जातिएसु पुच्छेज्ज देवयं किंचि । पंथे सुभासुभे वा पुच्छेज्ज व दिव्वमुवओगो ॥ ७० ।। अह होइ लेवपिडो संजोगेणं नवण्ह पिंडाणं । 20 नायवो निष्फनो परूवणा तस्स कायन्वा ।। ७१ ।। प्रवक्कालिमलेवं भणंति लेवेसरणा नवि अ दिट्ठा । ते वत्तव्वा वो दिट्ठो तेलुक्कदंसीहिं ॥७२ ।। 15 2010_04 Page #248 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२) श्रीमती ओघनियुक्तिः ] { २२५ खंडंमि मग्गियंमि अ लोणे दिन्नंमि प्रत्ययविणासो। प्रणुकंपाई पार्णमि होइ उदगस्स उ विणासो ॥ ७३ ।। पूणिअलग्गअगणी पलीवणं गाममाइणो होज्जा। रोट्टपणगा तरुमी भिगुकुथादो व छ?मि ॥४॥ 5 पायग्गहणमि देसिमि लेवेसणावि खलु वुत्ता । तम्हा आणयणा लिपणा य पायस्स जयणाए । ७५ ।। हत्थोवधाय गंतूण लिपगा सोसणा य हमि । सागारिए पभुजिघणा य छकायजयणा य ।। ७६ ।। दुविहा य होंति पाया जुन्ना व नवा य जे उलिप्पंति । 10 जुन्ने दाएऊणं लिपइ पुच्छा य इयरेसि ॥७७।। पाडिच्छगसेहाणं नाऊणं कोइ प्रागमणमाई । दढलेवेवि उ पाए लिंपइ मा एसु वेज्जेज्जा ॥७८ ॥ पुख्वाह लेवदाणं लेवग्गहणं सुसंवरं काउं। लेवस्स आणणालिपणे य जयणाविही वोच्छं ॥ ७९ ॥ 15 ककितिकम्मो छदेण छंदिओ भणह लेवऽहं घेत्तुं । तुम्भंपि अस्थि अट्ठो ? प्रामं तं कित्तिअंकि वा ? ॥३८०।। से सेवि पुच्छिऊणं कय उस्सगो गुरु पणमिऊणं । मल्लगरूवे गिण्हइ जइ तेसि कपिओ होइ ।। ८१ ॥ गोयत्यपरिग्गाहिअ अयाणओ रूवमल्लए घेत्तुं । 20 छारं च तत्थ वच्चइ गहिए तसपाणरक्खट्ठा ।। ८२ ।। वच्चंतेण य दि8 सागारिदुचक्कगं तु अम्मासे । तत्थेव होइ गहणं न होइ सो सागरिअपिंडो ।। ६३ ।। 2010_04 Page #249 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२६ ] [ नियुक्तिसंग्रहः :: (२) श्रीमती ओघनियुक्तिः गंतुं दुचक्कमूलं अणुन्नवेत्ता पहुँति साहीणं । एत्थ य पहुत्ति भणिए कोई गच्छे निवसमीवे ॥ ८४ ।। कि देमित्ति नरवई ! तुझं खरमक्खि प्रा दुच्चक्केत्ति । सो अ पसत्थो लेवो एत्थ य भद्देतरे दोसा ।। ८५ ।। 5 तम्हा दुचक्कवइणा तस्संदि?ण वा अणुनाए । कडुगंधजाणणट्ठा जिघे नासं तु अफुसंता ॥८६ ।। हरिए बीए चले जुत्ते, वच्छे साणे जलदिए । पुढवी संपाइमा सामा, महवाते महियाऽमिए ।। ८७ ।। एयद्दोसविमुक्कं घेत्तुं छारेण अक्कमित्ताणं । 10 चोरेण बंधिऊणं गुरुमूलपडिक्कमालोए ॥८८ ।। दंसिअछंदिअगुरुसेसए (सु) य ओमस्थियस्स भास्स । काउं चीरं उरि रूयं च छुभेज्ज तो लेवं ॥८९ ।। अंगुट्ठपएसिणिमज्झिमाए घेत्तुं घणं तओ चोरं । प्रालिपिऊण भाणे एका दो तिणि वा घट्ट ।। ३९० ।। अन्नोऽन्नं अकमि उ अन्नं घट्ट'इ वारवारेणं । आणेइ तमेव दिणं दवं रएउं अभत्तट्ठी ॥९१ ।। अभत्तट्टियाण दाउं अन्नेसि वा अहिंडमाणाणं । हिंडेज्ज असंथरणे असहू घेतु अरइयं तु ।। ६२ ।। न तरेज्जा जइ तिनी हिंडावेउं तम्रो अ छारेणं । 20 उच्चुण्णेउं हिंडइ अन्ने य दव्वं सि गेण्हंति ।। ६३ ।। लेस्थारियाणि जाणि उ घट्टगमाईणि तत्थ लेवेणं । संजमफाइनिमित्तं ताई भूमोइ गुडेज्जा ।। ३९४ ।। 15 2010_04 Page #250 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२) श्रीमती ओघनियुक्ति. ] [ २२७ एवं लेवग्गहणं प्रागयणं लिपणा य जयणा य । भणियाणि अतो वोच्छं परिकम्मविहिं तु लेवस्स ।। ६५ ।। लित्ते छगणिअछारो घणेण चीरेणऽबंधिर उण्हे । अंछण परियत्तण घट्टणे य धोवे पुणो लेवो ।। ६६ ।। 5 अट्ठगहेउं लेवाहियं तु सेसं सरूवगं पोसे । अहवावि नस्थि कज्जं सरूवमुझे तम्रो विहिणा ॥६७ ॥ पढमचरिमा सिसिरे गिम्हे अद्धं तु तासि वज्जेज्जा । पायं ठवे सिणेहाति-रक्खणट्ठा पवेसो वा ॥१८॥ उवनोगं च अभिक्खं करेइ वासाइरक्खणद्वाए। 10 वावारेइ व अन्ने गिलाणमाईसु कज्जेसु ।। ६६ ।। एक्को व जहन्नेणं दुगतिगचत्तारि पंच उक्कोसा। संजमहेउं लेवो वज्जित्ता गारवविभूसा ॥४०० ।। अणुवट्ट ते तहवि हु सव्वं अवणित्तु तो पुणो लिपे । तज्जाय सचोप्पडगस्स घट्टगरइ ततो धोवे ।। ४०१ ।। 15 तज्जायजुत्तिलेवो खंजणलेवो य होइ बोद्धव्वो। मुद्दिअनावाबंधो तेणयबंधेण पडिकुट्टो ।। ४०२ ।। जुत्ती उ पत्थराई पडिकुट्ठो सो उ सन्निही जे णं । दयसुकुमार असन्निहि खंजणलेवो प्रओ भणिओ ।। ४०३ ।। संजमहेउं लेवो न विभूसाए वदंति तित्थयरा । 20 सइ असइ य दिढतो सइसाहम्मे उवणओ उ ॥ ४०४ ।। भिज्जिज्न लप्पमाणं लित्तं वा प्रसइए पुणो बंधो । मुद्दिअनावाबंधो न तेणएणं तु बंधिज्जा ।। ४०५ ।। 2010_04 Page #251 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२८ ] [ नियुक्तिसंग्रहः :: (२) श्रीमती ओघनियुक्तिः खरमयसिकुसुभसरिसव कमेण उक्कोसमझिमजहन्ना । नवणीए सपिवसा गुडेण लोणेण य अलेवो उ ॥४०६ ॥ पिंड निकाय समूहे संपिंडण पिंडणा य समवाए । समोसरण निचय उवचय चए य जुम्मे य रासी य ।।४.७।। दुविहो य भावपिडो पसत्थओ होइ अप्पसस्थो य । दुगसत्तट्टचउक्कग जेणं वा बज्झए इयरो ॥ ४०८ ।। तिविहो होइ पसत्थो नाणे तह वंसणे चरित्ते य।. मोत्तण अप्पसत्थं पसपिडेण अहिगारो ॥४०९ ।। नाम ठवणा दविए भावमि य एसणा मुणेयव्वा । 10 दव्वंमि हिरण्णाई गवेसगहभुजणा भावे ॥४१० ।। पमाणे काले प्रावस्सए य संघाडए य उवकरणे। मत्तग काउस्सग्गो जस्स य जोगो सपडिवक्खो ।। ११ ॥ एकाणियस्स बोसा इत्थी साणे तहेव पडिणीए । भिक्खऽविसोहि महव्वय तम्हा सबितिज्जए गमणं ।१२। दारं । 15 गारविए काहीए माइल्ले अलस लुद्ध निद्धम्मे । दुल्लम अत्ताहिठिय अमणुने वा असघाडो ।।१३।। दारगाहा। आयरियाईणऽट्ठा ओमगिलाणट्टया य बहुसोऽवि । गेलनखमगपाहुण अतिप्पएऽतिच्छिए यावि ॥१४ ।। अणुकंपापडिसेहो कयाइ न हिडेज्ज वा न वा हिंडे । प्रणभोगि गिलाणट्ठा प्रावस्सगऽसोहइत्ताणं ।। १५ ।। दारं । आसन्नाउ नियत्ते कालि पहुप्पंति दूरपत्तोवि । अपहप्पंते तत्तो च्चिय एग धरे बोसिरे एगो ॥१६॥ 2010_04 Page #252 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२) श्रीमती ओघनियुक्तिः ] [ २२६ भावासनो समणुन्न अन्नप्रोसन्नसड्डवेज्जघरे । सल्लपरूवण वेज्जो तत्थेव परोहडे वावि ॥ १७ ।। एएसिं असईए रायपहे दो घराण वा मज्झे । हत्थं हत्थं मुत्तुं मज्झे सो नरवइस्स भवे ॥ २७ ॥ प्र० 5 उग्गह काईयवज्जं छंडण ववहारु लन्मए तत्थ । गारविए पन्नवणा तव चेव अणुग्गहो एस ॥१८ ।। जइ दोण्ह एग भिक्खा न य वेल पहुपए तम्रो एगो। सम्वेवि अत्तलामी पडिसे हमणुन्नपियधम्मे ॥ १६ ॥ प्रमणुन अन्नसंजोइया उ सब्वेवि णेच्छण विवेगो। 10 बहुगुणतदेकदोसे एसणबलवं नउ विगिचे ॥ ४२० ।। इत्थीगहणे धम्मं कहेइ वयठवण गुरुसमीवंमि । इह चेवोवर रज्जू भएण मोहोचसम तीए ॥ २१ ॥ साणा गोणा इयरे परिहरऽणामोग कुड्डकडनीसा। वारइ य दंडएणं वारावे वा अगारेहि ॥२२ ।। पडिपोयगेहवज्जण अणमोगपविट्ठ बोलनिक्खमणं । मज्झे तिण्ह घराणं उवओग करेउ गेण्हेज्जा ॥ २३ ॥ वेंटल पुट्ठो न याणे आयनातीणि वज्जए ठाणे । सुद्धं गवेस उंछ पंचऽइयारे परिहरंतो ॥ २४ ।। जहन्नेण चोलपट्टो वीसरणालू गहाय गच्छेज्जा। 20 ऊस्सग्ग काउ गमणे मत्तयऽगहणे इमे दोसा ।। २५ ।। आयरिए य गिलाणे पाहुणए दुल्लह सहसलाभे । संसत्तभत्तपाणे मत्तगगहणं अणुनायं ।। ४२६ ।। 15 2010_04 Page #253 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३० ] [ नियुक्तिसंग्रहः :: (१) आवश्यक नियुक्तिः गेलनकज्जतुरिओ अणभोगेणं च लित्त अग्गहणं । अणभोग गिलाणट्टा उस्सग्गादोणि नवि कुज्जा ।। २७ ।। जस्स य जोगमकाऊण निग्गमो न लभई तु सच्चित्तां । न य वत्थपायमाई तेणं गहणे कुणसु तम्हा ।। २८ ।। 5 सो प्रापुच्छि अणुनाओ सग्गामे हिंड अहव परगामे । सग्गामे सइ काले पत्ते परगामे वोच्छामि ।। २६ ॥ पुरतो जुगमायाए गंतूणं अन्नगामबाहिठिओ। तरुणे मज्झिमथेरे. नव पुच्छाओ जहा हेट्ठा ॥ ४३० ।। पायपमज्जणपडिलेहणां उ भाणदुग देसकालंमि । 10 अप्पत्तेऽविय पाए पमज्ज पत्ते य पायदुगं ।। ३१ ।। समणं समणि सावग साविय गिहि अन्नतिथि बहि पुच्छे । अत्थिह समण सुविहिया सिट्ठ तेसालयं गच्छे ।। ३२ ।। समणुण्णेसु पवेसो बाहिं ठविऊण अन्न किइकम्मं । खग्गूडे सन्नेसु ठवणा उच्छोभवंक्षणयं ।। ३३ ।। 15 गेललाइ अबाहा पुच्छिय सयकारणं च दीवेत्ता। जयणाए ठवणकुले पुच्छइ दोसा अजयणाइ ।। ३४ ।। दाणे अभिगमस संमत्ते खलु तहेव मिच्छत्ते। मामाए प्रचियत्ते कुलाइं जयणाइ दायति ।।३५ ।। सागारि वणिम सुणए गोणे पुन्ने दुगुछियकुलाई।। 20 हिसागं मामागं सम्बपयत्तण वज्जेज्जा ॥ ३६ ।। बाहाए अंगुलीय व लट्ठीइ व उज्जुप्रो ठिओ संतो। न पुच्छेज्ज न दाएज्जा पच्चावाया भवे दोसा ॥ ३७ ।। ____ 2010_04 Page #254 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २ ) श्रीमती ओघनिर्युक्तिः ] [ २३१ अगणीण व तेणेहि व जीवियववशेवणं तु पडिणीए । खरओ खरिया सुबहा पठ्ठे वट्टक्खुरे संका ।। ३८ ।। पडिकुटुकुलाणं पुण पंचविहा थूभिआ अभिन्नाणं । भग्गघरगोपुराई रुक्खा नाणाविहा चेव ।। ३९ ।। 5 ठवणा मिलक्खुनेडु श्रचियतघरं तहेव पडिकुट्ट । एवं गणधरमेरं अइक्कमंतो विराहेज्जा ।। ४४० ।। छक्कायदयावतोऽवि संजओ दुल्लहं कुणइ बोहि । आहारे नीहारे दुगुछिए पिंडगहणे य ।। ४१ ।। जे जहि दुगु छिया खलु पव्वावणवसहिभत्तपाणेसु । 10 जिणवयणे पडिकुट्टा वज्जेयव्वा पयत्तेणं ।। ४२ ।। अट्ठारस पुरिसेसु वीसं इत्थीसु दस नपुंसेसु ं । पावणाए एए दुर्गा छिया जिणवरमयंमि ।। ४३ ।। दोसेण जस्स असो आयासो पवयणे य अग्गहणं । विष्परिणामो अप्पच्चओ य कुच्छा य उप्पज्जे ।। ४४ ।। 15 पवयणमणपेहंतस्स तस्स निद्वंधसस्स लुद्धस्स । बहुमोहस्स भगवया संसारोऽनंतओ भणिओ ।। ४५ ।। जो जह व तह व लद्धं गिण्हइ प्रहारउबहिमाईयं । समणगुणमुक्कजोगी संसारपवडूग्रो भणिश्रो ।। ४६ ।। एसणमणेसणं वा कह ते नाहिति जिणवरमयं वा । 20 कुरिणमिव पोयाला जे मुक्का पव्वइयमेता ॥ ४७ ॥ गच्छमि केइ पुरिसा सउणी जह पंजरंतर निरुद्धा । सारणवारणचड़या पासत्थगया पविहरंति ।। ४८ ।। 1 2010_04 Page #255 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३२ । [ नियुक्तिसंग्रह: :: ( २ ) श्रीमती ओघनिर्युक्तिः तिथिहोवधाय मेयं परिहरमाणो गवेसए पिंडं । दुविहा गवसणा पुण दब्वे भावे इमा दव्वे ।। ४९ ।। जियसत्तुदेविचित्त सभपविसणं कणगपिट्ट-पासणया । • डोहल दुब्बल पुच्छा कहणं प्राणा य पुरिसाणं ।। ४५० ।। 5 सीवनिसरिसमोदग करणं सीवनिश्वखहे सु । 15 ।। ५१ ।। प्रागमण कुरंगाणं पसत्थश्रपसत्थउवमा उ विइयमेयं कुरंगाणं, जया सोवनि सोदई । पुरावि वाया वायति, न उणं पुं जगपुं जगा ।। ५२ ।। हस्थिगहणंमि गिम्हे अरहट्ठेहि भरणं तु सरसीणं । 10 अच्चुदएण नलवणा अभिरूढा गयकुलागमणं ।। ५३ ॥ बिइयमेयं गयकुलाणं, जहा रोहंति नलवणा । ।। प्रभयावि भरति सरा, न एवं बहुओदगा ।। ५४ । व्हाणाईसु विरइयं आरंभकडं तु दाणमाईसु । प्रायरियनिवारणया अपसत्थितरे उवणओ उ ।। ५५ ।। धम्मरूइ अज्जवयरे लंभो वेउब्वियस्स नभगमणं । जेट्ठामूले अट्ठम उवरि हेट्ठा व देवाणं ॥ ५६ ॥ एसा गवसणविही कहिया मे धीरपुरिसपन्नत्ता । गहणेसणंपि एतो वोच्छं अप्पक्खर महत्थं ।। ५७ ।। नामं ठवणादविए भावे गहणेसणा मुणेयव्वा । 20 दव्वे वानरजूहं मावंमि य ठाणमाईणि ।। ५८ ।। परिसडियपंडुपतं वणसंडं दट्टु अन्नहि पेसे । जहवई पडियरिए जहेण समं तहिं गच्छे ॥ ५६ ॥ 2010_04 Page #256 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २ ) श्रीमती ओघनियुक्ति: ] [ २३३ सयमेवालोएडं जूहवई तं वणं समं तेहि । वियर तेसि पयारं चरिऊण य ते दहं गच्छे ।। ४६० ।। ओयरंतं पयं दट्टु, उत्तरंतं न दीसह । नालेण वियह पाणीयं एवं निक्कारणो दहो ।। ६१ ।। 5 ठाणे य दायए चेव, गमणे गहणागमे । पत्ते परियते पाडिए य गुरुयं तिहा भावे ।। ६२ ।। दारं ।। गोणे महिसे श्रासे पेल्लण आहणण मारणं भवइ । दरगहिय भाग भेदो छडुणि भिक्खस्स छक्काया ।। ६३ ।। चलकुडुपडण कंटग बिलस्स व पासि होइ आयाए । 10 निक्खमपवेसवज्जण गोणे महिसे य आसे य ।। ६४ ॥ पुढविदग अगणिमारुय तरुत सवज्जं मि ठाणि ठाइज्जा । दिती व हेट्ठ उर्वार जहा न घट्ट ेर्इ फलमाई ।। ६५ ।। पासवणे उच्चारे सिणाण प्राथमणठाण उक्कुरुडे । निद्धमणमसुइमाई पवयणहाणी विवज्जेज्जा ।। ६६ ।। 15 अवत्तमपहु थेरे पंडे मत्ते य खित्तचित्ते य । दित्ते जवखाइट्ठे करचरणछन्नेऽन्ध णियले य । ४६७ ।। तद्दोसगुब्विणीबाल-बच्छकंडंत पीस भज्जती । कत्तंती पिंजती भइया दगमाइणो दोसा ।। ६८ ॥ भिक्खामते श्रवियालणं तु बालेण दिज्जमाणंभि । 20 संदिट्ठे वा गहणं प्रइबहुय विद्यालऽणुन्नाओ ।। ६९ ।। अपहुसंदिट्ठे वा भिक्खामित्ते व गहणऽसंदिट्ठे । थेरपहू थरथरते धरणं अहवा दढसरीरे ॥। ४७० ।। 2010_04 Page #257 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३४ ] [ नियुक्तिसंग्रहः:: (२) श्रीमती ओधनियुक्तिः पंडग अप्पडिसेवी मत्तो सड्डो व अप्पसागरिए । खेत्ताइ भ गाणं करचरण बिट्ठऽप्पसागरिए । ७१ ।। सड्ढो व अन्न भण अंधे सवियारणा य बलुमि । तद्दोसिए अभिन्ने वेला थणजीवियं थेरा ॥७२ ।। 5 उक्खित्तऽपच्चवाए कंडे पोसे वऽछूढ-भज्जन्ती। सुक्कं व पीसमाणी बुद्धीय विमावए सम्मं ।।७३ ।। कत्तंतीए थूलं विविखण लोढण जति य निवियं । पिंजण असोयवाई भयणागहणं तु एएसि ॥ ७४ ।। ग़मणं च दायगस्सा हेट्ठा उरि च होइ नायव्वं । 10 संजमप्रायविराहण तस्स सरीरे य मिच्छत्तं ।। ७५ ।। नीयदुवारुग्घाडण-कवाडठिय देह दारमाइन्ने । इड्डिरपस्थिलिदे गहणं पत्तस्सऽपडिलेहा ।। ७६ ।। आगमणदायगस्सा हेट्ठा उरि च होइ जह पुष्विं । संजमआयविराहण दिळंतो होइ बच्छेण ॥७७ ।। पत्तस्स उ पडिलेहा हत्थे मत्से तहेव दवे य । उदउल्ले ससिणिद्ध संसत्ते चेव परियते ॥ ७० ।। पडिओ खलु दह-वो कित्तिम साहाविमो य जो पिंडो। संजमानायविराहण दिळंतो सिट्रिठकब्बठ्ठो ॥७९ ।। गरविस अट्ठियकंटय-विरुद्ध-दव्वंमि होइ आयाए । 20 संजमओ छकाया तम्हा पडियं विगिचिज्जा ।। ४८० ।। अणभोगेण भएण य पडिणी उम्मीस भत्तपाणमि । . दिज्जा हिरण्णमाई आवज्जण संकणा दिठे ।। ८१ ॥ ___- 19 2010_04 Page #258 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२) श्रीमती ओघनियुक्तिः ] [ २३५ उक्खेवे निक्खेवे महल्लया लुद्धया वहो दाहो । अचियत्ते वोच्छेप्रो छक्कायवहो य गुरुमत्ते ॥८२ ॥ तिविहो य होइ कालो गिम्हो हेमंत तह य वासासु । तिविहो य दायगो खलु थी पुरिस नपुसओ चेव ।। ८३ ॥ 5 एक्किक्कोवि प्रतिविहो तरुणो तह मज्झिमो य थेरो य । सीयतणुप्रो नपुंसो सोम्हित्थी मज्झिमो पुरिसो ।। ८४ ।। पुरकम्मं उदउल्लं ससिणिद्धं तंपि होइ तिविहं तु । इक्किक्कंपि यतिविहं सच्चित्ताचित्तमीसं तु ॥८५ ।। प्राइदुवे पडिसेहो पुरओ कय जं तु तं पुरेकम्मं । उदउल्ल-बिंदुसहिअं ससिणिद्वे मग्गणा होइ ॥८६॥ ससिणिद्धपि य तिविहं सच्चित्ताचित्तमीसगं चेव । अच्चित्तं पुण ठप्पं अहिगारो मीससच्चित्ते ॥ ८७ ।। पव्वाण किंचि अव्वाणमेव किंचिच्च होअणुव्वाणं । पाएण हि यं (त) सव्वं एक्कक्कहाणी य वुड्डी य ।। ८८ ॥ 15 सत्तविभागण करं विभाइत्ताण इथिमाईणं । निच्चन्नयइयरेविय रेहा पव्वे करतले य ।। ८६ ।। जाहे य उन्नयाई उवाणाई हवंति हत्थस्स । ताहे तल पवाणा लेहा पुण होतऽणुव्वाणा ॥ ४६० ॥ तरुणिस्थि एक्कभागे पम्वाणे होइ गहण गिम्हासु । 20 हेमंते दोसु भवे तिसु पव्वाणेसु वासासु ॥ ९१ ।। एमेव मज्झिमाए प्राढत्तं दोसु ठायए चउसु । तिस आढत्तं थेरी नवरि ढाणेसु पंचसु उ ।। ६२ ।। 2010_04 Page #259 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३६ ] [नियुक्तिसंग्रहः :: (२) श्रीमती अोपनियुक्तिः एमेव होइ पुरिसो दुगाइछट्ठाण-पज्जवसिएसुं। अपुमं तु तिमागाई सत्तमभागे प्रवसिते उ ॥ ९३ ।। दुविहो य होइ मावो लोइय लोउत्तरो समासेणं । एविककोवि य दुविहो पसत्थओ प्रप्पसत्थो य ॥ ६४ ।। 5 सभिलगा दो वणिाया गामं गंतूण करिसणारंभो। एगस्स देहमंडणबाउसिआ भारिया अलसा ।। ९५ ।। मुहधोवरण दंतवणं प्रद्दागाईण कल्ल आवासं । पुवण्हकरणमप्पण उक्कोसयरं च मज्झण्हे ॥६६॥ तणकटुहारगाणं न देइ न य दासपेसवग्गस्स । 10 न य पेसणे निउंजइ पलाणि हिय हाणि गेहस्स ।। ९७ ।। विइयस्स पेसवगं वावारे अन्नपेसणे कम्मे । काले देहाहारं सयं च उवजीवई इढ्ढी ॥ ९८ ।। धन्नबलरूवहेलं आहारे जो तु लाभि लभंते । अतिरेगं न उ गिण्हइ पाउग्गगिलाणमाईणं ॥ ९९ ।। 15 जह सा हिरण्णमाईसु परिहीणा होइ दुक्खाभागी। एव तिगपरिहीणो साहू दुक्खस्स आभागी ॥ ५०० ।। प्रायरियगिलाणट्ठा गिण्ह न महंति एव जो साहू । वो वन्नरूवहेलं आहारे एस उ पसत्थे ॥५०१ ।। उग्गम-उप्पायण-एसरगाए बायाल होति अवराहा । सोहेउं समुयाणं पडुप्पन्ने वच्चए वसहि ॥ ५०२ ।। सुन्नघरदेउले वा असई य उवस्सयस्स वा दारे । संसत्तकंटगाई सोहेउमुवस्सगं पविसे ॥५०३ ॥ 20 2010_04 Page #260 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२) श्रीमती ओधनियुक्तिः ] [ २३७ संसत्तं तत्तो चिज परिवेत्ता पुणो दवं गिण्हे । कारण मत्तयगहि पडिग्गहे छोढ पविसणया ॥५०४ ।। गामे य कालभाणे पहुच्चमाणे हवंति भंगट्ठा। काले अपहुप्पंते नियत्तई सेसए भयणा ॥ ५०५ ।। 5 अण्णं च वए गामं अण्णं भाणं व गेह सइ काले । पढमे बितिए छप्पंचमे य भय सेस य नियत्ते ।। ५०६ ।। नोसिठ्ठमागयाणं उव्वासिअ मत्तए य भूमितिअं। पडिलेहियमत्थमणं सेसऽथमिए जहन्नो उ ॥५०७ ॥ भुत्ते वियारभूमी गयागयाणं तु जह य ओगाहे । 10 चरमाए पोरिसीए उक्कोसो सेस मज्झिमओ ॥५०८ ।। पायपमज्जणनिसोहिया य तिनि उ करे पवेसंमि । अंजलि ठाणविसोही दंडग उवहिस्स निक्खेवो ॥ ५०९ ।। चउरंगुलमुहपत्ती उज्जुयए वामहत्थि रयहरणं । वोसटुचत्तदेहो काउस्सग्गं करेज्जाहि ॥५१० ॥ 15 पुवुदिढे ठाणे ठाउं चउरंगुलंतरं काउं। मुहपोत्ति उज्जुहत्थे वामंमि य पायपुछणयं ।। ५११ ।। काउस्सग्गंमि ठिो चिते समुयाणिए अईआरे । जा निग्गमप्पवेसो तत्थ उ दोसे मणे कुज्जा ।। ५१२ ॥ ते उ पडिसेवणाए अणुलोमा होति वियडणाए य। 20 पडिसेववियडणाए एस्थ उ चउरो भवे भंगा ॥ ५१३ ।। वक्खित्तपराहुत्ते पमत्ते मा कयाइ आलोए । आहारं च करेंतो नीहारं वा जइ करेइ ।। ५१४ ।। 2010_04 Page #261 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३८ ] [ नियुक्तिसंग्रहः :: (२) श्रीमती प्रोधनियुक्तिः अव्वविखत्ताउत्तं उवसंतमुवट्टिनं च - नाऊणं । अणुनवेत्तु मेहावी आलोएज्जा सुसंजए ॥५१५ ॥ नवलं चलं भासं मूयं तह ढड्डरं च धज्जेज्जा। पालोएज्ज सुविहिओ हत्थं मत्तं च वावारं ।। ५१६ ॥ दारं ।। 5 एयद्दोसविमुक्कं गुरुणो गुरुसम्मयस्स वाऽऽलोए। जं जह गहियं तु भवे पढमानो जा भधे चरिमा ॥५१७ ।। काले य पहुप्पंते उच्चा(वा)प्रो वावि ओहमालोए । वेला गिलाणगस्स व अइच्छइ गुरू व उच्चाप्रो ।। ५१८ ॥ पुरकम्म पच्छकम्मे अप्पेऽसुद्धे य प्रोहमालोए । 10 तुरियकरणंमि जं से न सुज्झई ततिरं कहए ॥ ५१६ ।। आलोइत्ता सव्वं सीसं सपडिग्गहं पमज्जित्ता । उढ्ढमहो तिरियंमी पडिलेहे सव्वनो सव्वं ॥५२० ।। विणएण पट्टवित्ता सज्झायं कुणइ तो मुहुत्तागं । पुत्वभणिया य दोसा परिस्समाई जढा एवं ॥ ५२१ ।। 15 दुविहो य होइ साहू मंडलिउवजीवओ य इयरो य। मंडलिमुवजीवंतो प्रच्छइ जा पिडिया सव्वे ॥ ५२२ ।। इयरोवि गुरुसगासं गंतूण भणइ संदिसह भंते ! । पाहुणगखवग-प्रतरंतबालवुड्डाण सेहाणं ॥ ५२३ ।। दिग्णे गुरूहि तेसि सेसं भुजेज्ज गुरुअणुन्नायं । 20 गुरुणा संदिट्टो वा दाउं सेसं तओ भुजे ॥ ५२४ ।। इच्छिज्ज न इच्छिज्ज व तहविय पयओ निमंतए साहू । परिणामविसुद्धीए प्र निज्जरा होअगहिएवि ॥ ५२५ ॥ 2010_04 | Page #262 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२) श्रीमती ओघनियुक्तिः ] [ २३९ भरहेरवयविदेहे पन्नरसवि कम्मभूमिगा साहू । एक्कमि हीलियंमी सवे ते होलिया हुँति ।। ५२६ ।। भरहेरवयविदेहे पन्नरसवि कम्भभूमिगा साहू । एक्कंमि पूइयंमी सम्वे ते पेइया हुँति ॥ ५२७ ।। 5 अह को पुणाइ नियमो एक्कमिवि हीलियंमि ते सव्वे । होति अवमाणिया पूइए य संपूइया सव्वे ॥५२८ ।। नाणं व दंसणं वा तवो य तह संजमो य साहुगुणा । एक्के सव्वेसुवि होलिएसु ते हीलिया हुंति ॥ ५२६ ।। एमेव पूइयंमिवि एक्कमिवि पूइया जइगुणा उ । 10 थोवं बहूं निवेसं इइ नच्चा पूयए मइमं ।। ५३० ॥ तम्हा जइ एस गुणो एक्कमिवि पूइयंमि ते सव्वे । भत्तं वा पाणं वा सम्वपयत्तण दायव्वं ॥५३१ ।। वेयावच्चं निययं करेह उत्तरगुणे धरिन्ताणं । सव्वं किल पडिवाई वेयावच्चं अपडिवाई ॥ ५३२ ।। 15 पडिभग्गस्स मयस्स व नासइ चरण सुयं अगुणणाए । न हु वेयावच्चचिरं सुहोदयं नासए कम्मं ॥५३३ ।। लाभेण जोजयंतो जइणो लाभंतराइयं हणइ । कुणमाणो य समाहिं सव्वसमाहिं लहइ साहू ॥ ५३४ ।। भरहो बाहुबलीविय दसारकुलनंदणो य वसुदेवो। वेयावच्चाहरणा तम्हा पडितप्पह जईणं ॥ ५३५ ॥ होज्ज न व होज्ज लंभो फासुगआहार उहिमाईणं । लंभो य निज्जराए नियमेण अओ उ कायव्वं ॥ ५३६ ।। 20 2010_04 Page #263 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४० ] [ नियुक्तिसंग्रहः :: (२) श्रीमती ओघनियुक्तिः वेयावच्चे अभुट्टियस्स सद्धाए काउकामस्स । लाभो चेव तस्सिस्स होइ अद्दीणमणसस्स ।। ५३७ ।। एसा गहणेसणविही कहिया भे धीरपुरिसपन्नत्ता । घासेसणंपि इत्तो वुच्छं अप्पक्खरमहत्थं ॥ ५३४ ।। 5 दवे मावे घासेसणा उ दव्वंमि मच्छआहरणं । गलमंसुडभक्खण गलस्स पुच्छेण घट्टणया ॥५३९ ।। अह मंसंमि पहीणे शायंतं मच्छियं भणइ मच्छो । किं झायसि तं एवं ? सुण ताव जहा अहिरिप्रोऽसि ॥५४०॥ चरियं व कप्पियं वा आहरणं दुविहमेव नायव्वं । 10 अत्थस्स साहणट्ठा इंधणमिव ओयणढाए ॥५४१ ।। तिबलागमुहा मुक्को, तिक्खुत्तो वलयामहे । तिसत्तखुत्तो जालेणं, सयं छिनोदए दहे ।। ५४२ ।। एयारिसं ममं सतं, सढं घट्टिअघट्टणं । इच्छसि गलेणं घेत्तुं, अहो ते अहिरीयया ।। ५४३ ॥ 15 अह होइ भावघासेसणा उ अपाणमप्पणा चेव । साहू भुजिउकामो अणुसासइ निज्जरट्ठाए ॥ ५४४ ।। बायालीसेसण-संकडंमि गहणमि जीव ! नहु छलियो। एहि जह न छलिज्जसि भुजतो रागदोसेहिं ।। ५४५ ।। जह अभंगणलेवा सगडक्खवणाण जुत्तिो होति । 20 इय संजमभर वहणट्टयाए साहूण पाहारो ॥ ५४६ ।। उवजीवि अणुवजीवो मंडलियं पुत्ववनिओ साहू । मंडलिनसमुद्दिसगाण ताण इणमो विहिं वुच्छं ।। ५४७ ।। 2010_04 Page #264 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२) श्रीमती ओघनियुक्तिः ] [ २४१ आगाढजोगवाही निज्जूढऽत्तद्विआ व पाहुणगा। सेहा-सपायछित्ता .बाला वृड्डवमाईया ।। ५४८ ।। दुविहो खलु प्रालोगो दवे भावे य दवि दीवाई। सत्तविहो पुण भावे आलोगं तं परिकहेऽहं ।। ५४९ ।। ठाण दिसि पगासणया भायण पक्खेवणे य गुरु भावे ।' सत्तविहो पालोगो सयावि सुविहियाणं ॥५५० ।। सो आलोइय भोई जो एए जुजए पए सवे । गविसण-गहणग्घासेसणाइ तिविहाइवि विसुद्धं ॥५५१ ॥ एवं एगस्त विही भोत्तव्वे वनिग्रो समासेणं । 10 एमेव अणेयाणवि जं नाणत्तं तयं वोच्छं ।। ५५२ ।। अतरंतबालवुड्डा सेहाएसा गुरू असहुवग्गो। ‘साहारणोग्ग हाऽलद्धि कारणा मंडली होइ ॥५५३ ।। नाउ नियट्टणकालं वसहीपालो य भायणुग्गाहे । परिसंठियऽच्छदवगेण्हणटया गच्छमासज्जा ॥५५४ ।। 15 असई य नियत्तेसु एक्कं चउरंगुलूणभाणेसु । पक्खिविय पडिग्गहगं तत्थऽच्छदवं तु गालेज्जा ।। ५५५ ।। आयरिय प्रभावियपाणगट्ठया पायपोसधुवणट्ठा । होइ य सुहं विवेगो सुह प्रायमणं च सागरिए ।। ५५६ ।। एक्कं व दो व तिन्नि व पाए गच्छप्पमाणमासज्ज । अच्छदवस्स भरेज्जा कसट्ट बीए विगिचेज्जा ।। ५५७ ।। मूइंगाई मक्कोडएहि संसत्तगं च नाऊणं। गालेज्ज व्यएणं सउणीघरएण व दवं तु ॥ ५५८ ।। 20 2010_04 Page #265 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४२ ] [ नियुक्तिसंग्रहा:: (२) श्रीमती ओघनियुक्तिः इय आलोइय-पट्टविन-गालिए मंडलीइ सट्टाणे । सज्झायमंगलं कुणइ जाव सम्वे पडिनियत्ता ॥५५९ ।। कालपुरिसे व प्रासज्ज मत्तए पक्खिवित्तु तो पढमा। अहवावि पडिग्गहगं मुयंति गच्छं समासज्ज ॥ ५६० ।। 5 चित्तं बालाईणं गहाय आपुच्छिऊण आयरिअं । जमलजणणीसरिच्छो निवेसई मंडलोथेरो ॥५६१ ।। जइ लुद्धो राइणिप्रो होइ प्रलुद्धोवि जोऽवि गीयत्थो! ओमोवि हु गीयत्थो मंडलिराइणि प्रलुद्धो उ ।।५६२ ।। ठाणदिसि पगासणया भायण पक्खेवणा य भाव गुरू।। 10 सो चेव य आलोगो नारणत्तं तद्दिसाठाणे ।। ५६३ ।। जो पुण हवेज्ज खमनो अतिउच्चामो व सो बहि ठाइ । पढमसमुट्ठिो वा सागारियरक्खणट्ठाए ॥५६४ ।। एककेकस्स य पासंमि मल्लयं तत्थ खेलमुग्गाले । कट्ठिए व छुडभइ मा लेवकडा भवे वसही ।। ५६५ ।। 15 मंडलिभायणभोयण गहणं सोही य कारणुव्वरिते। भोयणविही उ एसो भणिओ तेल्लुक्कसीहि ।। ५६६ ।। उग्गम-उप्पायणासुद्धं, एसणा दोसवज्जिनं । साहारणं अयाणंतो, साहू हवइ असारओ ॥ ५६७ ।। उग्गम-उपायणासुद्धं एसणा-दोसवज्जिनं । साहारणं वियाणंतो, साहू हवइ ससारओ ॥५६८ ।। उग्गम-उप्पायणासुद्धं, एसणादोसवज्जि। साहारणं प्रयाणंतो, साहू कुणइ तेणियं ॥ ५६९ ॥ 20 2010_04 Page #266 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२) श्रीमती ओधनियुक्तिः ] [ २४३ उग्गमउप्पायरणासुद्धं, एसणादोसवज्जि। साहारणं वियाणंतो, साहू पावइ निज्जरं ।। ५७० ॥ अंततं भोक्खामित्ति बेसए भुजए य तह चेव । एस ससारनिविट्ठो ससारओ उठिमो साहू ।। ५७१ ।। 5 एमेव य भंगतिनं जोएयव्वं तु सार नाणाई । तेण सहिओ ससारो समुद्दवणिएण विठ्ठतो ।। ५७२ ॥ जस्थ पुण पडिग्गहगो होज्ज कडो तत्थ छुडभए अन्नं । मत्तगहिउव्यरिनं पडिग्गहे जं असंसढें ॥५७३ ।। जं पुण गुरुस्स सेसं तं छुड़मइ मंडलोपडिग्गहके। 10 बालादीण व दिज्जइ न छुभई सेसगाणऽहिनं ।। ५७४ ।। सुक्कोल्लयडिग्गहगे विमारिणा पक्खिवे दवं सुक्के । प्रभत्तट्ठिाण अठ्ठा बहुलंभे जं असंसर्से ।। ५७५ ।। सोही चउक्क भावे विगइंगालं च विगयधूमं च। रागेण सयंगालं दोसेण सधूमगं होइ ॥५७६ ॥ 15 जत्तासाहणहेउं प्राहारेंति जवणव्या जाणो । छायालीसं दोसेहिं सुपरिसुद्धं विगयरागा ॥ ५७७ ।। हियाहारा मियाहारा, अप्पाहारा य जे नरा । न ते विज्जा तिगिच्छति, अप्पाणं ते तिगिच्छगा ॥ ५७८ ।। छाहमन्नयरे ठाणे, कारणमि उ आगए । 20 आहारेज्ज (उ) मेहावी, संजए सुसमाहिए ॥५७६ ।। धेयणवेयावच्चे इरियट्ठाए य संजमठाए । तह पाणवत्तियाए छठें पुण धम्मचिताए ॥ ५८० ।। 2010_04 | Page #267 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४४ ] [ नियुक्तिसंग्रहः :: (२) श्रीमतो ओघनियुक्तिः अहवा न कुज्ज आहारं, हिं ठाणेहिं संजए। पच्छा पच्छिमकालंमि, काउं अप्पक्खमं खमं ।। ८१ ।। एएहिं छहिं ठाणेहि, अणाहारो य जो भवे । धम्मं नाइएकमे भिक्खू, झाणजोगरपो भवे ।। ८२ । 5 भुजंतो आहारं गुणोवयारं सरीरसाहारं । विहिणा जहोवइ8 संजमजोगाण वहणट्ठा ।। ८३ ।। भत्त (भुत्तु)ट्ठियावसेसो तिलंबणा होइ संलिहणकप्पो । अपहुप्पत्ते अन्नपि छोढुं ता लंबणे ठवए ॥ ८४ ॥ संदिट्ठा संलिहिउं पढम कप्पं करेइ कलुसेणं । 10 तं पाउं मुहमासे बितियच्छदवस्स गिण्हति ।।८५ ।। दाऊण बितियकप्पं बहिआ मज्झट्टिओ उ दवहारी। तो देति तइयकप्पं दोण्हं दोग्हं तु आयमणं ॥८६ ।। होज्ज सिआ उद्धरियं तत्थ य प्रायंबिलाइणो हुज्जा । पडिदंसिप संदिट्ठो वाहरइ तो चउत्थाई ।। ८७ ।। मोहचिगिच्छ विगिट्ठ गिलाण अत्तट्टियं च मोत्तणं । से से गंत्तुं भणई आयरिया वाहरंति तुमं ॥८८ ।। अपडिहणतो आगतु वंदिउं भणइ सो उ आयरिए । संदिसह भुंज जं सरति तत्तियं सेस तस्सेव ।। ८९ ।। अभणंतस्स उ तस्सेव सेसनो होइ सो विवेगो उ।। भणिओ तस्स उ गुरुणा एसुवएसो पवयणस्स ॥ ५९० ।। भुत्तंमि पढमकप्पं करेमि तस्सेव देति तं पायं । जावतिअंतिअ भणिए तस्सेव विभिचणे सेसं ॥ १ ॥ 15 2010_04 Page #268 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२) श्रीमती ओघनियुक्तिः ] [ २४५ विहिगहिनं विहिभुत्तं अइरेगं भत्तपाण भोत्तव्वं । विहिगहिए विहिभुत्ते एत्थ य चउरो भवे भंगा ।। ९२ ।। कागसियालक्खइयं दविअरसं सम्वनो परामट्ठ। एसो उ भवे अविही जहगहि भोयणमि (भुंजओ य) विही ६३ 5 सा पुण जायमजाया जाया मूलोत्तरेहि उ असुद्धा । लोमातिरेगगहिया अभिओगकया विसकया वा ।। ६४ ॥ एगंतमणावाए प्रचित्ते थंडिले गुरुवइट। आलोए एगपुजं तिट्ठाणं सावणं कुज्जा ॥६५ ।। एगंतमणावाए अच्चित्ते थंडिले गुरुवइ8 ।। 10 पालोए दुन्नि पुजा तिट्ठाणं सावणं कुज्जा ॥६६ ।। दुविहो खलु अभिगो दव्वे भावे य होइ नायवो। दव्यंमि होइ जोगो विज्जा मंता य भावंमि ।। ६७ ।। विज्जाए होअगारी अचियत्ता सा य पुच्छए चरिअं । अभिमंतणोदणस्स उ अणुकंपणमुझणं च खरे ॥ ९८ ।। 15 बारस्स पिट्टणंमि प्र पुच्छण कहणं च होअगारीए। सिट्ठे चरियादंडो एवं दोसा इहंपि सिया ॥ ९९ ।। जोगंमि उ अविरइया अझुववन्ना सरूवभिवखुमि ।। कडजोगमणिच्छंतस्स देइ भिक्खं असुभभावे ।। ६०० ।। संकाए स नियट्टो दाऊण गुरुस्स काइयं निसिरे । 20 तेसिपि असुमभावो पच्छा उ ममापि उज्झयणा ।। ६०१ ।। एमेव विसकयंमिवि दाऊण गुरुस्स काइयं निसिरे । गंधाई विनाए उज्झगमविही सियालवहे ॥ ६०२ ।। 2010_04 Page #269 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४६ ] [ नियुक्तिसंग्रह: : : ( २ ) श्रीमती ओघनिर्युक्तिः एवं विज्जाजोए विससंजुत्तस्स वावि गहियस्स । पाणच्चएवि नियमुज्झणा उ वोच्छं परिट्ठवणं ॥ ६०३ " एगतमणावाए अच्चित्ते थंडिले गुरुबट्टे । छारेण अक्कमित्ता तिट्ठाणं सावणं कुज्जा ।। ६०४ ।। 5 दोसेण जेण दुट्ठ तु भोयणं तस्स साबणं कुज्जा । एवंविह वोसट्टे वेराओ मुच्चई साहू ।। ६०५ ।। जावइयं उवउज्जइ तत्तिअमित्ते विगिचणा नत्थि । तम्हा पमाणगहणं अइरेगं होज्ज उ इमेहिं ।। ६०६ ।। आयरिए य गिलाणे पाहुणए दुल्लभे सहसदाणे । 10 एवं होइ प्रजाया इमा उ गहणे विही होइ ।। ६०७ ।। जइ तरुणो निरूवहओ भुंजइ तो मंडलोई आयरिओ । श्रसहुस्स वीसुगहणं एमेव य होइ पाहुणए ।। ६०८ ।। सुत्तत्यथिरीकरणं विरगओ गुरुपूय सेहबहुमाणो । दाणबतिसद्धवुड्डी बुद्धिबलवद्वणं चेव ।। ६०९ ।। 15 एएहि कारणेहि उ केइ सहुस्सवि वयंति श्रणुकंपा । गुरुअणुकंपाए पुरण गच्छे तिरथे य अणुकंपा ।। ६१० ।। सति लाभे पुण दव्वे खेत्ते काले य मावनो चेव । गहणं तिसु उक्कोसं भावे जं जस्स अणुकंपं ( कूलं ) ।। ११ ।। लाभे सति संघाडो गेण्हइ एगो उ इहरहा सब्वे । 20 तस्सऽप्पणो य पज्जत्त गेण्हणा होइ अतिरेगं ।। १२ । गेलन्ननियमगहणं नाणत्तोभासिपि तत्थ भवे । प्रोभासियमुव्वरिनं विगिचए सेसगं भुजे ।। ६१३ ॥ 2010_04 Page #270 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२) श्रीमती ओघनियुक्तिः ] [२४७ दुल्लभदव्वं व सिआ घयाइ घेत्तूण सेस भुजंति । थोवं देमि व गेण्हामि यत्ति सहसा भवे भरियं ।। १४ ।। एएहि कारणेहि गहियमजाया उ सा विगिचणया। पालोगंमि तिपुंजी (जा) अद्धाणे निग्गयातीणं ॥ १५ ॥ 5 एक्को व दो व तिन्नि व पुंजा कोरंति कि पुरण । निमित्तं ?-विहमाइनिग्गयाणं सुद्धेयरजाणणट्ठाए । १६ ।। एवं विगिचिउं निग्गयस्स सन्ना हवेज्ज तं तु कह। निसिरेज्जा? अहव धुवं आहारा होइ नीहारो ॥ १७ ॥ थंडिल्ल पुषभणियं पढमं निहोस दोसु जयणाए । 10 नवरं पुण जाणत्तं भावासनाए वोसिरणं ।। १८ ।। अणावायमसलोग निहोसं बितिय वरिम जयणाए । पउरदवकुरुकुयादी पत्तेयं मत्तगो चेव ।। १६ ।। तइएवि य जयणाए नाणतं नवरि सद्दकरणंमि । भावासनाए पुण नाणत्तमिणं सुणसु वोच्छं ।। ६२० ।। 15 जदि पढमं न तरेज्जा तो बितियं तस्स असइए तइयं । तस्स असई चउत्थे गामे दारे य रत्थाए ॥२१॥ साही पुरोहडे वा उधस्सए मत्तगंमि वा णिसिरे । अच्चुक्कडंमि वेगे मंडलिपासंमि बोसिरइ ॥ २२ ।। तिणि सल्ला महाराय ! अस्सि देहे पइट्ठिया । 20 वायमुत्तपुरोसाणं, पत्तवेगं न धारए ।। २३ ।। राया विज्जंमि मए विज्जसुयं भणइ कि च ते अहियं ? । अहियंति वायकम्मे विज्जे हसणा य परिकहणा ।। ६२४ ।। 2010_04 Page #271 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४८ ] [ नियुक्तिसंग्रहः :: (१) आवश्यकनियुक्तिः एसा परिवणविही कहिया भे धीरपुरिसपन्नत्ता। सामायारी एत्तो वृच्छं अप्पक्खरमहत्थं ॥२५॥ सन्नातो पागतो चरमपोरिसिं जाणिऊण ओगाढं। पडिलेहणमप्पत्तं नाऊण करेइ सज्झायं ॥ २६ ।। 5 पुवहिट्ठो य विही इहपि पडिलेहणाइ सो चेव । जं एत्थं नाणत्तं तमहं बुच्छं समासेणं ।। २७ ।। पडिलेहगा उ दुविहा भत्तट्टियएयरा य नायव्वा । दोण्हवि य प्राइपडिलेहणा उ मुहणंतग सकायं ।। २८ ।। तत्तो गुरू परिन्ना गिलाणसेहाति जे प्रभत्तट्टी। 10 संदिसह पाय मत्ते य अप्पणो पट्टगं चरिमं ।। २६ ।। पट्टग मत्तय सयमोग्गहो य गुरुमाइ या प्रणुनवणा। तो सेस पायवत्थे पाउंछणगं च भत्तट्ठी ।। ६३० ।। जस्स जहा पडिलेहा होइ कया सो तहा पढइ साहू । परियट्टेइ व पयओ करेइ वा अन्नवावारं ॥ ३१ ।। चउभागवसे साए चरिमाए पडिक्कमित्तु कालस्स । उच्चारे पासवणे ठाणे चउवीसई पेहे ॥ ३२ ॥ अहियासिया उ अंतो आसन्ने मज्झि तह य दूरे य । तिन्नेव अणहियासी अंतो छच्छच्च बाहिरओ ।। ३३ ।। एमेव य पासवणे बारस चउवीस तु पेहित्ता । 20 कालस्सवि तिन्नि भवे अह सूरो अस्थमुवयाई ॥ ३४ ॥ जइ पुण निवाघाओ प्रावासं तो करेंति सम्वेवि । सडादकरणवाघायताएँ पच्छा गरू ठति ॥ ६३५ ।। 15 2010_04 Page #272 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२) श्रीमती ओघनियुक्तिः ) [ २४९ सेसा उ जहासत्ती आपुच्छित्तारण ठंति सटाणे। सुत्तत्थझरणहेउं प्रायरिए ठियंमि देवसियं ।। ३६ ।। जो होज्ज उ असमत्थो बालो वुड्डो गिलाण परितंतो। सो आवस्सगजुत्तो अच्छेज्जा निज्जरापेही ।। ३७ ।। 5 आवासगं तु काउं जिणोव(जिणबर दिट्ठगुरूवएसेणं । तिनि थुई पडिलेहा कालस्स विही इमो तत्थ ।। ३८ ।। दुविहो य होइ कालो वाघातिम एयरो य नायवो । वाघाओ घंघसालाए घट्टणं सडकहणं वा ।। ३६ ।। वाघाते तइप्रो सि दिज्जइ तस्सेव ते निवेयंति । 10 निवाघाते दुन्नि उ पुच्छंती काल घेच्छामो ॥ ६४० ।। आपुच्छण कि इकम्मं प्रावस्सिय-खलिय पडियवाघाओ। इंदिय दिसा य तारा वासमसज्झाइयं चेव ।। ४१ ।। जइ पुण वच्चंताणं छीयं जोइं च तो नियत्तंति । निव्वाघाते दोन्नि उ अच्छंति दिसा निरिक्खंता ।। ४२ ॥ गोणादि कालभूमीए होज्ज संसप्पगा व उट्ठज्जा ।। कविहसियवासविज्जुक्क गज्जिए वावि उवघातो ।। ४३ ।। सज्झायमचितंता कणगं दठ्ठण तो नियत्तति । वेलाए दंडधारी मा बोलं गंडए उवमा ।। ४४ ।। आघोसिए बहूहिं सुयंमि सेसेसु निवडइ दंडो। 20 अह तं बहूहि न सुयं दंडिज्जइ गंडओ ताहे ।। ४५ ।। कालो सजा य तहा दोवि समप्पंति जह समं चेव । तह तं तुलंति कालं चरिमदिसं वा असञ्झागं ।। ४६ ।। 2010_04 Page #273 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५० ] [ नियुक्तिसंग्रहः :: (२) श्रीमती अोधनियुक्तिः पियधम्मो दढधम्मो संविग्गो चेवऽवज्जभीरू य । खेयन्नो य अभीरू कालं पडिलेहए साहू ॥४७ ।। पाउत्तपुव्वणिए अणपुच्छा खलियपडिय वाघाते । घोसंत-मूढसंकिय-इंदियविस एवि अमणुन्ने ॥४८ ।। 5 निसीहिया नमोक्कारे काउस्सग्गे य पंचमंगलए । पुवाउत्ता सम्वे पट्ठवणचउक्कनाणां ।। ४९ ।। थोवावसे सियाए सञ्झाए ठाइ उत्तराहुत्तो। चउवीसगदुमपुल्फिय-पुव्वग एक्केक्कयदिसाए ॥ ६५० ।। भासंतमूढसंकिय-इंदिय विसए य होइ प्रमणुन्ने । 10 बिदू य छीयऽपरिणय सगणे वा संकियं तिहं ।। ५१ ।। जो वच्चतमि विही आगच्छतमि होइ सो चेव । जं एत्थं नाणत्तं तमहं वुच्छं समासेणं ।। ५२ ।। निसोहिया नमुक्कारं आसज्जावडपडणजोइखे । अपमज्जियभीए वा छोए छिन्नेव कालवहो । ५३ ।। 15 आगम इरियावहिया मंगल आवेयणं तु मरु(णं मस्य)नायं । सम्वेहिवि पविएहि पच्छा करणं प्रकरणं वा ।। ५४ ।। सन्निहियाण वडारो पट्टविय पमाय नो दए कालं । बाहिठिए पडियरए पविसह ताहे व दंडधरो ।। ५५ ।। पट्टविय वंदिए या ताहे पुच्छेइ कि सुयं ? भंते ! । 20 तेवि य कहति सध्वं जं जेण सुयं व दिळं वा ।। ५६ ॥ एक्कस्स दोण्ह व संकियंमि कोरइ न कोरए तिण्हं । सगणमि संकिए परगणंमि गंतु न पुच्छंति ॥ ५७ ।। 2010_04 Page #274 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२) श्रीमती ओघनियुक्तिः ] [ २५१ कालचउक्के नाणत्तयं तु पादोसियंमि सम्वेवि । समयं पट्टवयंती सेसेसु समं व विसमं वा ।। ५८ ।। इंदियमाउत्ताणं हणंति कणगा उ सत्त उक्कोसं । वासासु य तिनि दिसा उउबद्धे तारगा तिन्नि ।। ५६ ।। 5 सम्वेवि पढमजामे दोन्नि उ वसभा उ प्राइमा जामा । तइओ होइ गुरूणं च उत्थओ होइ सम्वेसि ।। ६६० ।। ठाणासति बिसु गेण्हइ बिट्ठोवि पच्छिमं कालं । पडियरइ बाहि एक्को एक्को अंतट्टिओ गिण्हे ।। ६१ ।। पाओसियअट्टरत्ते उत्तरदिसि पुव्व पेहए कालं । 10 वेरत्तियंमि भयणा पुधदिसा पच्छिमे काले ।। ६२ ।। सज्झायं काऊणं पढमबितियासु दोसु जागरणं । अन्नं वावि गुणंती सुणंति झायंति वाऽसुद्धे ।। ६३ ।। जो चेव अ सयविही गाणं वनिओ वसहिदारे । सो चेव इहंपि भवे नाणत्तं नवरि सज्झाए ॥ ६४ ।। 15 एसा सामायारी कहिया भे! धोरपुरिसपन्नत्ता । एत्तो उवहिपमाणं वुच्छं सुद्धस्स जह धरणा ।। ६५ ।। उवही उवगहे संगहे य तह पगहुग्गहे चेव । भंडग उवगरणे या करणेऽवि य हुति एगट्ठा ।। ६६ ।। पोहे उवग्गहमि य दुविहो उवही उ होइ नायवो । 20 एक्केक्कोवि य दुविहो गणणाए पमाणतो चेव ।। ६७ ॥ पत्तं पत्ताबंधो पायट्ठवणं च पायकेसरिया । पडलाइं रयत्ताणं च गुच्छओ पायनिज्जोगो ॥ ६८ ।। 2010_04 Page #275 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५२ ] [ नियुक्तिसंग्रहः :: (२) श्रीमती ओघनियुक्तिः तिन्नेव य पच्छागा रयहरणं चेव होइ मुहपत्ती ।। एसो दुवालसविहो उवही जिणकप्पियाणं तु ॥ ६९ ।। एए चेव दुवालस मत्तग अइरेग चोलपट्टो य। एसो चउद्दसविहो उवही पुण थेरकप्पम्मि ।। ६७० ।। 5 जिणा बारसरूवाई, थेरा चउद्दसरूविणो । अज्जाणं पन्नवीसं तु. अग्रो उड्ड उवग्गहो ।।७१ ॥ तिन्नेव य पच्छागा पडिग्गहो चेव होइ उक्कोसो। गुच्छग पत्तगठवणं मुहणंतग केसरि जहन्नो ।। ७२ । पडलाइं रयत्ताणं पत्ताबंधो य चोलपट्टो य। 10 रयहरण मत्तओऽवि य थेराणं छविहो मझो ॥ ७३ ।। पत्तं पत्ताबंधो पायटुवणं च पायकेसरिया । पडलाइं रयत्ताणं च गोच्छओ पायनिज्जोगो ॥ ७४ ।। तिन्नेव य पच्छागा रयहरणं चेव होइ मुहपत्ती। तत्तो य मत्तगो खलु च उदसमो कमढगो चेव ।। ७५ ।। 15 उग्गह गंतगपट्टो अद्धोरुग चलणिया य बोद्धव्वा । अभितर बाहिरियं सणियं तह कंचुगे चेवं ।। ७६ ।। उक्कच्छिय वेकच्छी संघाडी चेव खंधकरणी य । ओहोवहिमि एए अज्जाणं पन्नवीसं तु ।। ७७ ।। उक्कोसो अटविहो मज्झिमओ होइ तेरसविहो उ । 20 जहन्नो चउविहोवि य तेण परमुवग्गहं जाण ॥ ७८ ।। एगं पायं जिणकप्पियाण थेराण मत्तओ बिइयो। एवं गणणपमाणं पमाणमाणं अग्रो वुच्छं ॥ ७९ ॥ 2010_04 Page #276 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२) श्रीमती ओधनियुक्तिः ] [ २५३ 5 तिणि विहत्थी चउरंगुलं च भाणस्स मज्झिमपमाणं । इत्तो हीण जहन्नं अइरेगतरं तु उक्कोसं ॥ ६८० ।। इणमण्णं तु पमाणं नियगाहाराउ होइ निष्फन्न । कालपमाणपसिद्धं उदरपमाणेण य वयंति । ८१ ।। उक्कोस तिसामासे दुगाउअद्धारामागओ साहू । चउरंगुलूणभरियं जं पज्जत्तं तु साहुस्स ।। ८२ ।। एयं चेव पमाणं सविसेसयरं अणुग्गहपवत्तं । कंतारे दुभिक्खे रोहगमाईसु भइयव्वं ।। ८३ ॥ दिज्जाहि भाणपूरंति रिद्धिमं कोवि रोहमाईसु । 10 तत्थवि तस्सुवप्रोगो सेसं कालं तु पडिकुट्टो ।। ८४ ।। पायस्स लक्खणमलक्खणं च भुज्जो इमं वियाणित्ता। लक्खणजुत्तस्स गुणा दोसा य अलक्खरणस्स इमे ।। ८५ ।। वट्ट समचउरंसं होइ थिरं थावरं च वणं च । हुँडं वायाइद्धं भिन्नं च अधारणिज्जाइं ॥ ८६ ।। 15 संठियंमि भवे लाभो, पतिढा सुपतिट्ठिते । निव्वणे कित्तिमारोग्गं, वन्नड्ढे नाणसंपया ॥८७ ।। हुँडै चरित्तभेदो सबलंमि य चित्तविभम जाणे। दुप्पते खोलसंठाणे गणे च चरणे च नो ठाणं ॥८८ ।। पउमुप्पले अकुसलं, सव्वणे वणमादिसे । 20 अंतो बहि च दड्ड मि, मरणं तत्थ निद्दिसे ॥ ८६ ।। प्रकरंडगम्मि भाणे हत्थो उठें जहा न घट्ट। एवं जहन्नयमुहं वत्थु पप्पा विसालं तु ॥ ६९० ॥ 2010_04 Page #277 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५४ ] [ नियुक्तिसंग्रहः :: (२) श्रीमती ओघनियुक्तिः छक्कायरक्खणट्ठा पायग्गहणं जिणेहिं पन्नत्तं । जे य गुणा संभोए हवंति ते पायगहणेवि ॥६१ ।। प्रतरंत बालवुड्डा-सेहाएसा गुरू असहुवगे। साहारणोग्गहाऽलद्धि कारणा पादगहणं तु ।। ९२ ॥ 5 पत्ताबंधपमाणं भाणपमाणेण होइ कायव्वं । जह गंठिमि कमि कोणा चउरंगुला हुँति ।। ९३ ।। पत्तटवणं तह गुच्छो य पायपडिलेहणीमा य । तिण्हपि यप्पमाणं विहत्थि चउरंगुलं चेव ।। ९४ ।। रयमादिरखणट्टा पत्तट्टवणं विऊ उवासंति (जिणेहि पन्नतां)। 10 होइ पमज्जणहेउं तु गोच्छनो भाणवत्थाणं ।। ९५ ।। पायपमज्जणहेउं केसरिया पाए पाए एक्केक्का । गोच्छग पत्तटवणं एक्केक्कं गणणमाणेणं ॥ ६६६ ।। जेहिं सविया न दीसइ अंतरिओ तारिसा भवे पडला । तिम्नि व पंच व सत्त व कयलीगम्भोवमा मसिणा ।। ६६७ ।। 15 गेम्हासु तिन्नि पडला चउरो हेमंत पंच वासासु । उक्कोसगा उ एए एत्तो पुण मज्झिमे वुच्छं ।। ६९८ ।। गिम्हासु हुँति चउरो पंच य हेमंति छच्च वासासु । एए खलु मज्झिमया एत्तो उ जहन्नओ वुच्छं ।। ६९९ ।। गिम्हासु पंच पडला छप्पुण हेमंति सत्त वासास । 20 तिविहंमि कालछए पायावरणा मवे पडला ॥७०० ॥ अड्डाइज्जा हत्था दोहा छत्तीसअंगुले रुद्दा। बितियं पडिग्गहाम्रो ससरीराओ य निष्फन्नं ।। ७०१ ।। 2010_04 Page #278 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२) श्रीमती ओघनियुक्तिः ] [ २५५ पुष्फफलोदयरयरेणु-सउणपरिहार-पायरक्खट्ठा। लिंगस्स य संवरणे वेदोदयरक्खणे पडला ।। ७०२ ।। माणं तु रयत्ताणे भाणपमाणेण होइ निष्फन्नं । पायाहिणं करेंतं मज्झे चउरंगुलं कमइ ।। ७०३ ।। मूसयरजउक्करे वासे सिण्हा रए य रक्खट्टा । होति गुणा रयताणे पादे पादे य एक्कं ।। ७०४ ।। कप्पा आयपमाणा अड्डाइ ज्जा उ वित्थडा हत्था । दो चेव सोत्तिया उन्निओ य तइओ मुणेयवो ।। ७०५ ।। तणगहणानलसेवा निवारणा धम्मसुक्कझाणट्ठा। 10 दिट्ट कप्परगहणं गिलाणमरण?या चेव ॥ ७०६ ।। घणं मूले थिरं मज्झे, अग्गे मद्दवजुत्तया । एगंगियं अज्झसिरं, पोरायामं तिपासियं ।। ७०७ ।। ॥ इति श्रीअोधनियुक्ति-भाष्यम् ।। बत्तीसंगुलदोहं च उवीसं अगुलाई दंडो से । 15 अलैंगुला दसाओ एगयरं होणमहियं वा ।। ७०८ ।। उणियं उट्टियं वावि, कंबलं पायपुच्छणं । तिपरोयल्लमणिस्सट्ठ, रयहरणं धारए एगं ॥७०९ ॥ प्रायाणे निक्खेवे ठाणनिसीयण तुयट्टसंकोए । पुत्वं पमज्जणट्ठा लिंगट्ठा चेव रयहरणं ।। ७१० ।। 20 चउरंगुलं विहत्थी एयं मुहणंतगस्स उ पमाणं । । बितियं मुहप्पमाणं गणणपमाणेण एक्केवकं ॥११ ।। 2010_04 Page #279 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५६ ] [ नियुक्तिसंग्रहः :: (२) श्रीमती ओधनियुक्तिः संपातिमरयरेणू पमज्जणट्ठा वयंति मुहपत्ति । नासं मुहं च बंधइ तीए वसहि पमजतो ॥ १२ ॥ जो मागहओ पत्थो सविसेसतरं तु मत्तयपमाणं । दोसुवि दव्वग्गहणं वासावासासु अहिगारो ।। १३ ।। 5 सूवोदणस्स भरिउ दुगाउप्रद्धाणमागप्रो साहू । भुजइ एगट्टाणे एयं किर मत्तयपमाणं ॥ १४ ॥ संपाइमतसपाणा धूलि सरिक्खे य (सरक्खा) परिगलंतमि । पुढविदगअगणि-मारुयउद्धंसण खिसणा डहरे ॥ १५ ॥ आयरिए य गिलाणे पाहुणए दुल्लभे सहसदाणे। 10 संसत्तभत्तपाणे मत्तगपरिभोग अणुनाओ ।। १६ ।। एक्कंमि उ पाउग्गं गुरुणो बितिओग्गहे य पडिकुठें । गिण्हइ संघाडेगो धुवलंभे सेस उभयंपि ।। १७ ।। असई लाभे पुण मत्तए य सव्वे गुरूण गेण्हंति । एसेव कमो नियमा गिलाणसे हाइएसुपि ।। १८ ।। दुल्लभदव्वं व सिया घयाइ तं मत्तएसु गेण्हति । लद्धेवि उ पज्जत्ते असंथरे सेसगढाए ॥ १९ ।। संसत्तभत्तपाणेसु वावि दे (दो) सेसु मत्तए गहणं । पुव्वं तु भत्तपाणं सोहेउ छुहंति इयरेसु ॥ ७२० ।। दुगुणो चउग्गुणो वा हत्थो चउरंस चोलपट्टो उ । 20 थेरजुवाणाणट्ठा सण्हे थुल्लमि य विभासा ।। २१ ।। वेउविवाउडे वातिए हिए खद्धपजणणे चेव । तेसि अणुग्गहत्या लिंगुदयट्ठा य पट्टो उ ।। २२ ।। 15 2010_04 Page #280 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२) श्रीमती ओपनियुक्तिः ] [ २५७ संथारुत्तरपट्टो अड्डाइज्जा य आयया हत्था । दोण्हंपि य वित्थारो हत्थो चउरंगुलं चेव ।। २३ ।। पाणादिरेणुसारक्खणठया होंति पट्टगा चउरो। छप्पइयरक्खणट्ठा तत्थुवरि खोमियं कुज्जा ।। २४ ।। , रयहरणपट्टमेत्ता अदसागा किचि वा समतिरेगा। एकगुणा उ निसेज्जा हत्थपमाणा सपच्छागा ॥ २५ ।। वासोवग्गहिरो पुण दुगुणा अवही उ वासकप्पाई । आयासंजमहेउं एकगुणो सेसओ होइ ।। २६ ।। जं पुण सपमाणाओ ईसि होणाहियं व लंभेज्जा । 10 उभयपि अहाकडयं न संधणा तस्स छेदो वा ।। २७ ।। दंडए लठ्ठिया चेव, चम्मए चम्मकोसए । चम्मच्छेदण पट्टवि, चिलिमिलो धारए गुरू ।। २८ ।। जं चण्ण एवमादी तवसंजमसाहगं जइजणस्स । ओहाइरेगगहियं ओवग्गहियं वियाणाहि ।। २६ ।। 15 लट्ठी पायपमाणा विठि चउरंगुलेण परिहीणा । दंडो बाहुपमाणो विदंडओ कक्खमेत्तो उ ।। ७३० ॥ एक्कपब्वं पसंसंति, दुपवा कलहकारिया। तिपव्वा लाभसंपन्ना, चउपन्वा मारणंतिया ॥ ३१ ॥ पंचपव्वा उ जा लट्ठी, पंथे कलहनिवारणी। 20 छच्चपव्वा य प्रायंको, सत्तपव्वा अरोगिया ।। ३२ ।। चउरंगुलपहाणा, अळंगुलसमूसिया। सत्तपम्वा उ जा लट्ठी, मत्ता (ता)गयनिवारिणी ।। ३३ ।। 2010_04 Page #281 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५८ ] [ नियुक्तिसंग्रहः :: (२) श्रीमती अोधनियुक्तिः अट्ठपव्वा असंपत्ती, नवपन्या जसकारिया। दसपव्वा उ जा लट्ठी, तहियं सन्वसंपया ॥ ३४ ॥ वंका कोडक्खइया चित्तलया पोल्लडा य दड्डा य । लट्ठी य उन्भसुक्का वज्जेयव्वा पयत्तेणं ॥ ३५ ।। 5 विसमेसु य पव्वेसु, अनिष्फन्नेसु अच्छिम् । फुडिया फरुसवन्ना य, निस्सारा चेव निदिया ।। ३६ ।। ताई पवमज्झेसु, थूला पोरेसु गठिला । अथिरा असारजरढा, साणपाया य निदिया ।। ३७ ॥ घणवद्धमाणपव्वा निद्धा वन्नेण एगवन्ना य । 10 घणमसिणवट्टपोरा लट्ठि पसत्था जइजणस्स ।। ३८ ॥ दुट्ठपसुसाणसावय-चिखलविसमेसु उदगमज्झेसु । लट्ठी सरीररक्खा-तवसंजमसाहिया भणिया ।३६ ।। मोक्खट्ठा नाणाई तणू तयट्ठा तयट्ठिया लट्ठी। दिट्ठो जहोवयारो कारणतक्कारणेस तहा ।। ७४० ।। 15 जं जुज्जइ उवकरणे उवगरणं तं सि होइ उवगरण । अतिरेगं अहिगरणं अजतो अजयं परिहरंतो ।। ४१ ।। उग्गमउप्पायणासुद्धं, एसणादोसवज्जियं । उहिं धारए भिक्खू, पगासपडिलेहणं ॥४२ ।। उग्गमउप्पायणासुद्धं, एसणादोसज्जियं । उहि धारए भिक्खू , जोगाणं साहणट्टया ॥ ४३ ।। उग्गमउप्पायणासुद्धं, एसणादोसबज्जियं । उहि धारए भिक्खू , अप्पदुट्ठो प्रमुच्छिओ ।। ४४ ॥ 2010_04 Page #282 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२) श्रीमती प्रोपनियुक्तिः ] [ २५६ अज्झत्थविसोहीए उवगरणं बाहिरं परिहरंतो । अप्परिग्गहीत्ति भणियो जिणेहि तेलुक्कदंसीहिं ।। ४५ ।। उग्गम उप्पायणासुद्धं एसणादोसज्जियं । उहिं धारए भिक्खू, सदा अज्झत्थसोहिए ।।४६ ।। 5 अज्झप्पविसोहीए जीवनिकाएहि संथडे लोए । देसियहिंसगत्तं जिणेहि तेलोक्कदंसीहि ॥ ४७ ।। उच्चालियंमि पाए ईरियासमियस्स संकमट्टाए । वावज्जेज्ज कुलिंगी मरिज्ज तं जोगमासज्जा ॥ ४८ ।। न य तस्स तन्निमित्तो बंधो सुहुमोवि देसिओ समए । 10 अणवज्जो उ पओगेण सव्वभावेण सो जम्हा ।। ४६ ।। नाणी कम्मस्स खयट्टमुट्टिप्रोऽणुट्टितो य हिंसाए । जयइ असढं अहिंसस्थमुट्ठिओ अवहवो सो उ ।। ७५० । तस्स असंचेअयनो संचेययतो य जाइं सत्ताई। जोगं पप्प विणस्संति नस्थि हिंसाफलं तस्स ।। ५१ ॥ 15 जो य पमत्तो पुरिसो तस्स य जोगं पडुच्च जे सत्ता। वावज्जते नियमा तेसि सो हिंसओ होइ ॥५२ ।। जेवि न वावज्जती नियमा तेसिपि हिंसओ सो उ । सावज्जो उ पओगेण सव्वभावेण सो जम्हा ।। ५३ ।। प्राया चेव अहिंसा आया हिंसत्ति निच्छओ एसो । 20 जो होइ अप्पमत्तो अहिंसमो हिंसओ इयरो ॥ ५४ ।। जो य पओगं जुजइ हिंसत्थं जो य अन्नभावेणं । प्रमणो उ जो पउंजइ इत्थ विसेसो महं वुत्तो ।। ५५ ।। 2010_04 Page #283 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६० ] [ नियुक्तिसंग्रहः :: (२) श्रीमती अोधनियुक्तिः हिसत्थं जुजंतो सुमहं दोसो अणंतरं इयरो। प्रमणो य अप्पदोसो जोगनिमित्तं च विन्ने ओ ॥ ५६ ।। रत्तो वा दुट्ठो वा मूढो वा जं पउंजइ पओगं । हिंसावि तत्थ जायइ तम्हा सो हिंसओ होइ ।। ५७ ॥ 5 न य हिंसामित्तेणं सावज्जेणावि हिंसओ होइ । सुद्धस्स उ संपत्ती अफला भणिया जिणवरेहिं ।। ५८ ।। जा जयमाणस्स भवे विराहणा सुत्तविहिसमग्गस्स । सा होइ निज्जरफला अज्झविसोहिजुत्तस्स ।। ५६ ।। परमरहस्समिसीणं समत्तगणिपिडग-झरितसाराणं । 10 परिणामियं पमाणं निच्छयमवलबमाणाणं ।। ५६० ।। निच्छयमवलंबंता निच्छयओ निच्छयं अयाणंता। नासंति चरण करणं बाहिरकरणालसा केइ ।। ६१ ।। एवमिणं उवगरणं धारेमाणो विहीसुपरिसुद्धं । हवति गुणाणायतणं अविहि असुद्धे अणाययणं ।। ६२ ।। 15 सावज्जमणायतणं असोहिठाणं कुसीलसंसग्गी । एगट्ठा होति पदा एते विवरीय आययणा ।। ६३ ।। वज्जेत्तु अणायतणं प्रायतणगवेसणं सया कुज्जा । तं तु पुण अणाययणं नायव्वं दवभावेणं ॥ ६४ ।। दवे रुद्दाइघरा अणायतणं भावनो दुविहमेव । 20 लोइय लोगुत्तरियं तहियं पुण लोइयं इणमो ।। ६५ । खरिया तिरिक्खजोणी तालयर समण माहण सुसाणे। वगुरिय वाह गुम्मिय हरिएस पुलिंद मच्छंधा ॥ ६६ ।। 2010_04 Page #284 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२) श्रीमती ओघनियुक्तिः ] [ २६१ खणमवि न खमं गंतु अणायतरणसेवणा सुविहियाणं । जंगंधं होइ वणं तंगधं मारुनो वाइ ।। ६७ ।। जे अन्ने एवमादी लोगंमि दुगुछिया गरहिया य । समणाण व समणीण व न कप्पई तारिसे वासो ॥ ६८ ॥ अह लोउत्तरियं पुण प्रणायतणं भावतो मुणोयां । जे संजमजोगाणं करेंति हाणि समत्थावि ॥ ६९ ।। अबस्स य निबस्स य दुण्हं पि समागयाई मूलाई। संसग्गीए विणहो अंबो निबत्तणं पत्तो ॥७७० ।। सुचिरंपि अच्छमाणो नलथंबो उच्छवाडमझंमि । 10 कीस न जायइ महुरो जइ संसग्गी पमाणं ते ? ॥ ७१ ।। सुचिरंपि अच्छमाणो वेरुलिओ कायमणियओमीसे । न उवेइ कायभावं पाहन्न गुणेण नियएण ।।७२ ।। भावुगअभावगाणि य लोए दुविहाई हुँति दवाई। वेरुलियो तत्थ मणी प्रभावगो अन्नदव्वेणं ॥७३ ।। 15 ऊणगसयभागेणं बिबाइं परिणमंति तब्भावं । लवणागराइसु जहा वज्जेह कुसीलसंसग्गीं ॥७४ ॥ जीवो अणाइनिहणो तब्भावणभाविओ य संसारे । खिप्पं सो भाविज्जइ मेलणदोसाणुभावेणं ॥ ७५ ॥ जह नाम महुरसलिलं सागरसलिलं कमेण संपत्तं । 20 पावइ लोणियभावं मेलणदोसाणुभावेगं ॥७६ ।। एवं खु सोलमंतो असीलमंतेहि मेलिनो संतो। पावइ गुणपरिहाणीं मेलणदोसाणुभावेणं ॥ ७७७ ।। 2010_04 | Page #285 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६२ ] [ नियुक्तिसंग्रहः :: (२) श्रीमती ओधनियुक्तिः 10 णाणस्स दंसणस्स य चरणस्स य जत्थ होइ उवघातो। वज्जेज्जऽवज्जमीरू अणाययणवज्जो खिप्पं ।।७८ ।। जत्थ साहम्मिया बहवे, भिन्नचित्ता प्रणारिया। मूलगुणपडिसेवी, अणायतणं तं वियाणाहि ॥ ७९ ॥ 5 जत्थ साहम्मिया बहवे, भिन्नचित्ता अणारिया। उत्तरगुणपडिसेवी, अणायतणं तं वियाणाहि ।। ७८० ।। जत्थ साहम्मिया बहवे, भिन्नचित्ता प्रणारिया। लिंगवेसपडिच्छन्ना, अणायतणं तं वियाणाहि ।।८१ ।। प्राययणंपि य दुविहं दवे भावे य होइ नायव्वं । दव्वंमि जिणघराई भावंमि य होइ तिविहं तु ।। ८२ । जत्थ साहम्मिया बहवे, सोलमंता बहुस्सुया । चरित्तायारसंपन्ना, आययणं तं वियाणाहि ॥ ८३ ।। सुंदरजणसंसग्गी सीलदरिइंपि कुणइ सोलड्ड। जह मेरुगिरीजायं तणंपि कणगत्तणमुवेइ ।। ८४ ।। एवं खलु आययणं निसेवमाणस्स हुज्ज साहुस्स । कंटगपहे व छलणा रागहोसे समासज्ज ।। ८५ ॥ दारं ॥ पडिसेवणा य दुविहा मूलगुणे चेव उत्तरगुणे य । मूलगुणे छट्ठाणा उत्तरगुणि होइ तिगमाई ।। ८६ ।। हिंसाऽलिय चोरिक्के मेहुनपरिग्गहे य निसिभत्ते । 20 इय छट्ठाणा मूले उग्गमदोसा य इयरंमि ॥८७ ।। पडिसेवणा मइलणा भंगो य विराहणा य खलणा य । उवधाओ य असोही सबलीकरणं च एगट्ठा ।। ७८८ ।। 15 2010_04 Page #286 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२) श्रीमती ओघनियुक्तिः ] [ २६३ छट्ठाणा तिगठाणा एगतरे दोसु वावि छलिएणं । कायव्वा उ विसोही सुद्धा दुक्खक्खयट्टाए । ८९ ।। पालोयणा उ दुविहा मूलगुणे चेव उत्तरगुणे य । एक्केक्का चउकन्ना दूधग्ग सिद्धावसाणा य ।। ७६० ॥ 5 पालोयणा विपडणा सोही सम्भावदायणा चेव । निदण गरिह विउट्टण सल्लुद्धरणंति एगट्ठा ।। ६१ ।। एत्तो सल्लुद्धरणं वृच्छामी धीरपुरिसपन्नत्तं । जं नाऊण सुविहिया करति दुक्खक्खयं धीरा ।। ६२ ।। दुविहा य होइ सोही दवसोही य भावसोही य । 10 दम्वमि वत्थमाई भावे मूलुत्तरगुणेसु ॥ ३ ॥ छत्तीसगुणसमन्नागएण तेणवि अवस्स कायन्वा । परसक्खिया विसोही सुठुवि ववहारकुसलेणं ।। ६४ ।। जह सुकुसलोऽवि विज्जो अन्नस्स कहेइ अपणो वाही। सोऊण तस्स विज्जस्स सोवि परिकम्ममारभइ ।। ६५ ।। 15 एवं जाणतेणवि पायच्छित्तविहिमप्पणो सम्म । तहवि य पागडतरयं प्रालोएतव्वयं होइ ॥९६ ।। गंतूण गुरुसकासं काऊण य अंजलि विणयमूलं । सम्वेण अत्तसोही कायव्वा एस उवएसो ।।९७ ।। नहु सुज्झई ससल्लो जह भणियं सासणे धुयरयाण । 20 उद्धरियसव्वसल्लो सुज्झइ जीवो धुयकिलेसो ।। ९८ ॥ सहसा अण्णाणेण व भीएण व पिल्लिएण व परेण । वसणेणायंकेण व मूढेण व रागदोसेहि ॥ ७९९ ।। 2010_04 Page #287 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६४ ] [ निर्युक्तिसंग्रह: :: ( २ ) आवश्यक निर्युक्तिः जं किचि कयमकज्जं न हु तं लब्भा पुणो समायरिउं । तस्स पडिक्कमियव्वं न हु तं हियएण वोढव्वं ॥ ८०० ॥ जह बालो जंपतो कज्जमकज्जं व उज्जुयं भणइ । तं तह श्रालोएज्जा मायामयविष्यमुक्को उ ।। ८०१ ।। तस्स य पायच्छित्तं जं मग्गविऊ गुरू उवइति । तं तह श्रयरियव्वं अणवत्थपसंग भोएवं ।। ८०२ ।। नवितं सत्यं व विसं व दुप्पउत्तो व कुणइ वेद्यालो । जंत व दुप्पउत्तं सप्पो व पमाइणो कुद्धो ।। ८०३ । जं कुणइ भावसल्लं श्रणुद्धियं उत्तमटुकालंमि । 10 दुल्लभबोहीयत्तं प्रणतसंसारियत्तं च ।। ८०४ ।। तो उद्धरंति गारवरहिता मूलं पुणब्भवलयाणं । मिच्छादंमणसल्लं मायासल्लं नियाणं च ।। ८०५ । उद्धरियसव्वसल्लो आलोइयनिदियो गुरुसगासे । होइ अतिरेगलहुप्रो ओहरियभरोव भारवहो ।। ८०६ ।। 15 उद्धरिय सव्वसल्लो भत्तपरिन्नाए धणियमाउत्तो । मरणाराहणजुत्तो चंदगवेज्भं समाणेइ ।। ८०७ । आराहणाइ जुत्तो सम्म काऊण सुविहिओ कालं । उक्कोसं तिन्नि भवे गंतूण लभेज्ज निव्वाणं ।। ८०८ ।। एसा सामायारी कहिया में धीरपुरिसपन्नता । 20 संजमतवडगाणं निग्गंथाणं महरिसीणं ।। ८०६ ।। एवं सामायारि जुजता चरणकरणमाउत्ता । साहू खवंति कम्मं अणेगभवसंचियमणंतं ॥। ८१० ॥ एसा अणुग्गहत्था फुडवियड - विसुद्धवंजणाइन्ना । इक्कारसहि सहि एगुणवन्नेहि सम्मता ।। ८११ ।। ॥ इति श्रीमती ओघनियुक्तिः समाप्ता ||२|| ( ग्रन्थानं १३५५ ) 2010_04 Page #288 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२) श्रीमती ओघनियुक्तिः [२६५ ॥ अथ वीरस्तवः ।। जयई नव नलिन कुवलय वियसिय सयवत्तं पत्तल दलच्छो वीरो गइ दमयगल सललिय गइ विक्कमो भयवं ॥१॥ अञ्जवि वहइ सुतित्थं अखंडियं जस्स भरहवासंमि । सो बद्धमाण-सामी तिलुक दिवायरो जयउ ॥२॥ गाहा जुयलेण जिणं मय-मोह-विवज्जियं जिय-कसायं । थोसामी तिसंज्झागं तं निसंगं महावीरं ॥३॥ सुकुमाल-धीर-सोमारत्त-कसिण-पांडुरा सिरि-निकेया। सियंकुस-गहभीरु अल-थल-नहमंडणा तिनि ॥४॥ न चयन्ति वीरलीलं हाउं जइ सुरहिमत्त पडिपुन्ना । पंकय-गइंद-चंदा-लोयण-चंकमिय-मुहाणं ॥५॥ एवं वीरजिणिंदो अच्छर-गण-संग-संथुओ भयवं । पायलित्त-मई-महीओ दिसउ खयं सम्बदुरिआणं ॥६॥ इति श्रीपाद-लिप्तमूरि-विरचितः श्री वीरस्तवः संपूर्णः ।। 2010_04 Page #289 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ अहम् ॥ पू. मु. श्री हर्षविजयगुरुभ्यो नमः । श्रुतकेवलि-श्रीमद्भद्रबाहुस्वामिप्रणीता ॥३॥ श्रीपिण्डनियुक्तिः ॥ 5 पिडे उग्गम उपायणेसणा संजोयणा पमाणं च । इंगालं धूम कारण अट्ठविहा पिंडनिज्जुत्ती ।। १ ।। पिंड निकाय समूहे संपिंडण पिंडणा य समवाए । समुसरण निचय उवचय चए य जुम्मे य रासी य ॥२ ।। पिंडस्स उ निक्खेवो चउक्कओ छक्कओ व कायवो । 10 निक्खेवं काऊणं परूवणा तस्स कायवा ।। ३ ।। कुलए च उभागस्स संभवो छक्कए चउण्हं च । नियमेण संभवो अस्थि छक्कगं निक्खिवे तम्हा ।। ४ ।। नाम ठवणापिडो दवे खेत्ते य काल भावे य । एसो खलु पिंडस्स उ निक्लेवो छम्विहो होइ ।। ५ ।। 15 गोण्णं समयकयं वा जं वावि हवेज्ज तदुभएण कयं । तं बिति नामपिडं ठवणापिंडं अओ वोच्छं ।। ६ ।। अक्खे वराडए वा कट्ठ पुत्थे व चित्तकम्मे वा। सम्भावमसम्भावं ठवणापिड वियाणाहि ।।७।। तिविहो उ दवपिंडो सच्चित्तो मीसओ अचित्तो य । 20 एक्केक्कस्स य एत्तो नव नव भेआ उ पत्तेयं ।। ८ ।। 2010_04 Page #290 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३) श्रीपिण्डनियुक्तिः . [ २६७ पुढवी आउकाओ तेऊ वाऊ वरणस्सई चेव । बेइंदिय तेइंदिय चउरो पंचेंदिया चेव ।। ६ ।।. पुढवीकाओ तिविहो सच्चित्तो मीसओ य अच्चित्तो। सच्चित्तो पुण दुविहो निच्छयववहारप्रो चेव ।। १० ।। 5 निच्छयओ सच्चित्तो पुढविमहापब्धयाण बहुमज्झे । प्रचित्तमीसवज्जो सेसो ववहार प्तच्चित्तो ।। ११ ।। खोरदुमहे? पंथे कट्ठोले इंधणे य मोसो उ । पोरिसि एग दुग तिगं बहुइंधणमझथोवे य ।। १२ ।। सोउण्हखारखत्ते अग्गीलोणू स-अंबिले नेहे । 10 वुक्कंतजोणिएणं पयोयणं तेणिमं होइ' ।। १३ ॥ प्रवरद्धिगविसबंधे लवणेन व सुरभि-उवलएणं वा । अच्चित्तस्स उ गहणं परोयणं तेणिमं वऽन्नं ॥ १४ ॥ ठाणनिसियण-तुयट्टण उच्चाराईण चेव उस्सग्गो। घुट्टग-डगलग-लेवो एमाइ पओयणं बहुहा ।। १५ ।। आउक्काओ तिविहो सच्चित्तो मीसओ य अच्चित्तो। सच्चित्तो पुण दुविहो निच्छय-ववहारओ चेव ।। १६ ।। घणउदही घणवलया करगसमुद्दद्दहाण बहुमज्झे । अह निच्छयसच्चित्तो ववहारनयस्स अगडाई ॥ १७ ॥ उसिणोदगमणुवत्ते दंडे वासे य पडियमित्तंमि । 20 मोत्तणादेसतिगं चाउलउदगेऽबहु पसन्नं ॥१८॥ भंडगपासवलग्गा उत्तेडा बुब्बुया न संमंति । जा ताव मीसगं तंदुला य रज्झंति जावऽन्ने ।। १९ ।। 2010_04 Page #291 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६८ ] [ नियुक्तिसंग्रहः :: (३) श्री पिण्डनियुक्तिः एए उ प्रणाएसा तिन्निवि कालनियमस्सऽसंभवनो। लुकखेयर-भंडगपवण संभवासंभवाईहिं ।। २० ॥ जाव न बहुप्पसन्नं ता मोसं एस इत्थ आएसो। होइ पमाणमचित्तं बहुप्पसन्नं तु नायव्वं ।। २१ ।। 5 सीउण्हखारखत्ते अग्गोलोणूस-अंबिलेनेहे । वृक्कंतजोगिएणं पोयणं तेणिमं होइ ।। २२ ॥ परिसेयपियणहत्थाइधोवणं चीरधोवणं चेव ।। प्रायमण भाणधुवणं एमाइ पोयणं बहुहा ।। २३ ॥ उउबद्ध धुवण बाउस बंभविणासो प्रठाणठवणं च । 10 संपाइम-वाउवहो पावण भूओवघाओ य ॥ २४ ।। अइभार चुडण पणए सीयल-पाउरणऽजीरगे लण्णे। ओहावणकायवहो वासासु अधोवणे दोसा ।। २५ ॥ अप्पत्तेच्चिय वासे सव्वं उर्वाह धुवंति जयणाए। असइए उ दवस्स य जहन्ननो पायनिज्जोगो ।। २६ ।। 15 आयरिय गिलाणाण य मइला मइला पुणोऽवि धोवंति । मा हु गुरूण अवण्णो लोगंमि अजीरणं इयरे ।। २७ ।। पायस्स पडोयारो दुनिसिज्ज तिपट्ट पोत्ति रयहरणं । एए उ न वीसामे जयणा संकामणा धुवणं ॥२८ ।। जो पुण वीसामिज्जइ तं एवं वीयरायआरगाए । 20 पत्ते धोवणकाले उहि वीसामए साहू ।। २६ ।। अमितरपरिमोगं उरि पाउणइ नाइदूरे य । तिन्नि य तिन्नि य एग निसि तु काऊ परिच्छिज्जा ॥ ३० ॥ 2010_04 Page #292 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३) श्रीपिण्डनियुक्तिः ] [ २६९ केई एक्केक्कनिसि संवासे उं तिहा परिच्छति । पाऊणइ जइ न लग्गति छप्पइया ताहि धोवंति ।। ३१ ।। निव्वोदगस्स गहणं केई भाणेसु असुइ पडिसेहो । गिहिमायणेसु गहणं ठिय वासे मीसगं छारो ।। ३२ ।। गुरुपच्चक्खाणि-गिलाण-सेहमाईण धोवणं पुवं । तो अप्पणो पुव्वमहाकडे य इयरे दुवे पच्छा ।। ३३ ॥ अच्छोडपिट्टिणासु य न धुवे धोए पयावणं न करे। परिभोग अपरिभोगे छायायव पेह कल्लाणं ॥ ३४ ।। तिविहो तेउक्काओ सच्चित्तो मीसओ य अच्चित्तो। 10 सच्चित्तो पुण दुविहो निच्छयववहारओ चेव ।। ३५ ॥ इट्टगपागाईणं बहुमज्झे विज्जुमाइ निच्छयो । इंगालाई इयरोत्ति मुम्मुरमाईउ मिस्सो उ ।। ३६ ।। ओयणवंजणपाणग-आयामुसिणोदगं च कुम्मासा । डगलग-सरक्खसूई पिप्पलमाई उ उवओगो ।। ३७ ।। 15 वाउक्कानो तिविहो सच्चित्तो मीसमो य अच्चित्तो। सच्चित्तो पुण दुविहो निच्छयववहारओ चेव ।।३८ ।। सवलय घणतणुवाया अइहिम अइदुद्दिणे य (सु) निच्छयओ। ववहार पाइणाई अक्कंताई य अच्चित्तो ।। ३६ ।। अक्कंतचंतघाणे देहाणुधए य पोलियाइसु य । 20 अच्चित्त वाउकाओ (त्तो एवविहो) मणिओ कम्मट्टमहणेहिं ।। हत्थसयमेग गंता दइओ अच्चित्तु बीयए मोसो। तइयंमि उ सच्चित्तो पत्थी पुण पोरिसिदिणेसु ॥ ४१ ।। 2010_04 Page #293 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७० ] नियुक्तिसंग्रहः :: (३) श्रीपिण्डनियुक्तिः ] दइएण वस्थिरणा वा पओयणं होज्ज वाउरणा मुणिणो । गेलन्नंमि व होज्जा सचित्तमीसे परिहरेज्जा ॥ ४२ ।। वणस्सइकाओ तिविहो सच्चित्तो मीसम्रो य अच्चित्तो। सच्चित्तो पुण दुविहो निच्छयववहारओ चेव ।। ४३ ।। 5 सम्वोऽवऽणंत कामो सच्चित्तो होइ निच्छयनयस्स । ववहारस्स य सेसो मोसो पन्वायरोट्टाई ॥ ४४ ।। पुप्फाणं पत्ताणं सरडुप.लाणं तहेव हरियाणं । व (३) टमि मिलाणंमी नायध्वं जीवविष्पजढं ।। ४५ ।। संथारपायदंडगखोमिय कप्पा य पीढफलगाई । 10 ओसहभेसज्जाणि य एमाइ पोयणं बहुहा ।। ४६ ।। बियतियचउरो पंचिदिया य तिप्पभिइ जत्थ उ समेति । सट्टाणे सट्टाणे सो पिंडो तेण कज्जमिणं ।। ४७ ।। बेइंदियपरिभोगो अक्खाण ससिप्पसंखमाईणं ।' तेइंदियाण उद्देहिगादि जं वा वए वेज्जो ॥ ४८ ॥ चरिदियाण मच्छियपरिहारो आसमच्छिया चेव । पंचेंदियपिंडंमि उ अव्ववहारी उ नेरइया ॥ ४९ ।। चम्मट्टि-दंतनहरोम-सिंगअविलाइ-छगणगोमुत्ते । खीरदधि-माइयाण य पंचिदिय-तिरियपरिभोगो ।। ५० ।। सच्चित्ते पव्वावण पंथुवएसे य भिक्खदाणाई ।। 20 सीसटिग अच्चित्ते मीसट्ठि-सरक्ख-पहपुच्छा ।। ५१ ॥ खमगाइ कालकज्जाइएसु पुच्छिज्ज देवयं कंचि । पंथे सुभासुभे वा-पुच्छेई (च्छाए) दिव्व उवओगो ॥ ५२ ॥ 15 2010_04 Page #294 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३ ) श्रीपिण्डनिर्युक्तिः ] [ २७१ अह मीसओ य पिंडो एएसि चिय नवण्ह पिंडाणं । दुगसंजोगाईओ नायब्बो जाव चरमोत्ति ।। ५३ ।। सोवीरगोरसासव- वेसण मेसज्ज नेह साग फले । पोग्गल-लोणगुलोयण णेगा पिण्डा उ संजोगे ।। ५४ ।। 5 तिन्नि उ पएससमया ठाणट्टिइउ दविए तयाएसा । चउपंचमपिडाणं जत्थ जया तप्परूवणया ।। ५५ ।। मुत्तदविएसु जुज्जइ जइ अनोऽनाणुवेहओ पिंडो मुत्तिविमुतेसुवि सो जुज्जइ नणु संखबाहुल्ला ।। ५५ ।। जह तिपएसो खंधो तिसुधि पएसेसु समोगाढो । I 10 अविभागिण संबद्धो कहं तु नेवं तदाधारो ? ।। ५७ ।। श्रहवा चउण्ह नियमा जोगविभागेण जुज्जए पिण्डो । दोसु जहियं तु विण्डो वणिज्जइ कीरए वावि ।। ५८ ।। दुविहो उ भावपिण्डो पसत्थओ चेव अप्पसत्यो य । एएस दोण्हपिय पत्तेय परूवणं वोच्छं ।। ५९ ।। 15 एगविहाइ- दसविहो पसत्यश्रो चेव अप्पसत्यो य । ઘરે ६ संजम ' विज्जाचरणे २ नाणादितिगं च तिविहो उ उ ।। ६० ।। नाणं दंसण तव संजमो य४ वय पंच छच्च जाणेज्जा । पिंडेसण पाणेसण उग्गहपडिमा य पिंड मि ।। ६१ ।। पवयणमाया " नव बंभगुत्तिनो तह य समणधम्मो य' एस पसत्थो पिंडो भणिश्रो कम्मट्ठमहणेहिं ।। ६२ ।। अपसत्थो य प्रसंजम श्रन्नाणं अविरई य मिच्छत्तं । कोहायासवकाया कम्मेगुत्ती अऽहम्मो य ।। ६३ ।। ० 1 20 2010_04 Page #295 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७२ ) [ नियुक्तिसंग्रहः :: (३) श्री पिण्डनियंक्तिः बज्झइ य जेण कम्मं सो सम्बो होइ अप्पसत्थो उ । मुच्चइ य जेण सो उण पसत्थओ नवरि विन्नेप्रो ॥६४।। दसणनाणचरित्ताण पज्जवा जे उ जत्तिया वावि । सो सो होइ तयक्खो पज्जवपेयालणा पिंडो॥ ६५ ।। 5 कम्माण जेण भावेण अप्पगे चिणइ चिक्कणं पिडं । सो होइ भावपिंडो पिंडयए पिंडणं जम्हा ।। ६६ ।। दव्वे अच्चित्तेणं भावमि (वे य) पसत्थएणिहं पगयं । उच्चारियस्थ-सरिसा सोसमइ (ससा उ)विकोवणट्टाए ।।६७। आहारउवाहि-सेज्जा पसत्थ-पिंडस्सुवग्गहं कुणइ । 10 आहारे अहिगारो अहि ठाणेहि सो सुद्धो ।। ६८ ।। निव्वाणं खलु कज्जं नाणइतिगं च कारणं तस्स । निव्वाणकारणाणं च कारणं होइ आहारो ॥ ६९ ।। जह कारणं तु तंतू पडस्स तेसि च होंति पम्हाई । नाणइतिगस्सेवं प्राहारो मोक्खनेम (मि) मस्स ।। ७० ।। 15 जह कारणमणुवहयं कज्ज साहेइ अविकलं नियमा। मोक्खक्खमाणि एवं नाणाईणि उ अविगलाई ।। ७१ । संखेवपिडियत्थो एवं पिंडो मए समक्खाम्रो । फुडवियड-पायडत्थं वोच्छामी एसणं एत्तो ।। ७२ ।। एसण गवेसणा मगाणा य उग्गोवणा य बोद्धव्वा । 20 एए उ एसणाए नामा एगढ़िया होंति ॥ ७३ ।। नामं ठवणा दविए भावंमि य एसणा मुणेयन्वा । दवे भावे एक्केक्कया उ तिविहा मुणेयया ॥ ७४ ।। 2010_04 Page #296 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३) श्री पिण्डनियुक्तिः ] [ २७३ जम्मं एसइ एगो सुयस्स अन्नो तमेसए नहूँ । सत्तु एसइ अन्नो पएण अन्नो य से मच्चु ॥ ७५ ॥ एमेव सेसएसुवि चउप्पयापय अचित्तमीसेसु । जा जत्थ जुज्जए एसणा उ तं तत्थ जोएज्जा । ७६ ।। 5 भावेसणा उ तिविहा गवेस-गहणेसणा उ बोद्धव्वा । गासेसणा उ कमसो पन्नत्ता वीयरागेहिं ।। ७७ ।। प्रगविटुस्स उ गहणं न होइ न य अगहियस्स परिभोगो। एसतिगस्स एसा नायव्वा आणुपुत्धी उ ।। ७८ ।। नाम ठवणा दविए भावंमि गवेसणा मुणेयव्वा । 10 दव्वंमि कुरंगगया उग्गम-उप्पायणा भावे ।। ७६ ॥ जियसत्त -देवि-चित्तसभ-पविसणं कणगपिटु-पासणया। दोहल-दुब्बल-पुच्छा कहणं आयणा य पुरिसाणं ।। ८० ॥ सोवन्निसरिसमोयग-ठव (कर) णं सोवनिरुक्खहे?सु । आगमरण कुरंगाणं पसत्थ अपसस्थ उवमा उ ।। ८१ ।। विइप्रमेयं कुरंगाणं, जया सीवन्नि सीयइ । पुरावि वाया वायंता, न उणं पुंजकपुजका ।। ८२॥ हत्थिगहणं गिम्हे परहहि भरणं च सरसोणं । अच्चुदएण नलवणाअहि (आ) रूढा गयकुलागमणं ।। ८३ ॥ विइयमेयं गजकुलाणं, जया रोहंति नलवणा । 20 अन्नयावि झांति हदा (झरा) न य एवं बहुओदगा ॥४॥ उग्गम उग्गोवण मग्गणा य एगट्ठियाणि एयाणि ।। नाम ठवणा दविए मामि य उग्गमो होइ ।। ८५ ॥ 2010_04 Page #297 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७४ ] [ नियुक्तिसंग्रहः :: (३) श्री पिण्डनियुक्तिः IC दव्वं मि लड्डुगाई भावे तिविहोग्गमो मुणेयन्वो । दसणनाणचरित्ते चरित्तुग्गमेणेत्थ अहिगारो ।। ८६ ।। जोइसतणोसहीणं मेहरिणकराणमुग्गमो दवे । सो पुण जत्तो य जया जहा य दवुग्गमो वच्चो । ८७॥ 5 वासहरा अणुजत्ता प्रस्थाणी जोग्ग किड्डकाले य । घडगसरावेसु कया उ मोयगा लड्डुगपियस्स ।। ८८ ।। जोग्गा अजिण्ण मारुय निसग्ग तिसमुत्थ तो सुइसमुत्थो। प्राहारुग्गचिता असुइत्ति दुहा मलप्पभवो ॥ ८९ ।। तस्सेवं वेरग्गुग्गमेण सम्मत्त-नाणचरणाणं । जुगवं कमुग्गमो वा केवलनाणुग्गमो जाओ ।।९० ।। दसणनाणप्पभवं चरणं सुद्धेसु तेसु तस्सुद्धी । चरणेण कम्मसुद्धी उगमसुद्धीइ चरणसुद्धी ।। ९१ ।। आहाफम्मुद्देसिया पूईकम्मे य मोसजाए य । ठवणा पाहुडियाए पाओअर कीया पामिच्चे ।। ६२ ।। 15 परियट्टिए' अभिहडे"उन्भिन्नेमालोहडे १३ इय । प्रच्छिज्जे ' अणिसि?''५ अज्झोयरए'६य सोलसमे ।।९३।। पाहाफम्मियनामा एगट्ठा कस्स वावि कि वावि ? । परपक्खे य सपक्खे चउरो गहणे य आणाई ॥ ९४ ।। आहा अहे य कम्मे पायाहम्मे य अत्तकम्मे य । 20 पडिसेवण पडिसुणणा संवासऽणुमोयणा चेव ।। ९५ ।। धणुजुयकायभराणं कुडुंबरज्जधुर-माइयाणं च । खंधाई हिययं चिय दम्वाहा अंतए धणुणो ।। ९६ ।। 2010_04 | Page #298 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३) श्रीपिण्डनियुक्तिः ] [ २७५ अोरालसरीराणं उद्दवण तिवायणं च जस्सट्टा । . मणमाहित्ता कीरइ आहाकम्मं तयं बैंति ।। ९७ ।। जं दव्वं उदगाइसु छूढमहे वयइ जं च भारेणं । सीईए रज्जुएण व प्रोयरणं दव्वऽहेकम्मं ।। ९८ ।। संजमठाणाणं कंडगाण लेसाठिई-विसेसाणं । भाव अहे करेई तम्हा तं भावऽहेकम्मं ॥ ९९ ।। भावावयार माहेउ-मप्पगे किचिनण-चरणग्गो । प्राहाकम्मग्गाही अहो अहो नेइ अप्पाणं ॥१०० ।। बंधइ अहेमवाऊ पकरेइ प्रहोमुहाई कम्माई । 10 घणकरणं तिब्वेण उ भावेण चनो उवचओ य ।। १०१ ।। तेसि गुरूणमुदएण अप्पगं दुग्गईऍ पवडतं । न चएइ विधारेउं अहरगति निति कम्माइं ॥ १०२ ।। अट्ठाए अणट्ठाए छक्कायपमद्दणं तु जो कुणइ । अनियाए य नियाए आयाहम्मं तयं बैंति ।। १०३ ।। 15 दवाया खलु काया, भावाया तिन्नि नाणमाईणि । परपाण-पाडणरओ चरणायं अप्पणो हणइ ॥१०४ ।। निच्छयनयस्य चरणा-यविधाए नाणदंसणवहोऽवि । ववहारस्स उ चरणे हमि भयणा उ से साणं ।। १०५ ।। दव्वंमि अत्तकम्मं जं जो उ ममायए तयं दव्वं । 20 भावे असुहपरिणो परकम्म अत्तणो कुणइ ।। १०६ ॥ आहाकम्मपरिणो फासुयमवि संकिलिट्ठपरिणामो।। आययमाणो बज्झइ तं जाणसु अत्तकम्मन्ति ।। १०७ ।। 2010_04 Page #299 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७६ ] [ नियुक्तिसंग्रहः :: (३) श्री पिण्डनियुक्तिः परकम्म अत्तकम्मोकरेइ तं जो उ गिहिउं भुजे । तत्थ मवे परकिरिया कहं नु अन्नत्थ संकमइ ? ॥ १०८ ।। कूडउवमाइ केइ परप्पउत्तऽवि बेंति बंधोत्ति । भणइ य गुरू पमत्तो बज्झइ कूडे अदक्खो य ।। १०६ ।। 5 एमेव भावकूडे बज्झइ जो असुभभाव परिणामो । तम्हा उ असुभभावो वज्जेयम्वो पयत्तेणं ।। ११० ।। कामं सयं न कुव्वइ जाणंतो पुण तहावि तग्गाही। वड्ढेइ तप्पसंगं अगिण्हमाणो उ वारेइ ।। ११ ।। अत्तीकरेइ कम्म पडिसेवाईहिं तं पुण इमेहिं । 10 तत्थ गुरू आइपयं लहु लहु लहुगा कमेणियरे ।। १२ ।। पडिसेवणमाईणं दाराणऽणमोयणा-वसाणाणं । जहसंभवं सरूवं सोदाहरणं पवक्खामि ॥१३ ।। अनेणाहाकम्म उवणीयं असइ चोइओ भणइ । परहत्थेणंगारे कड्ढतो जह न डज्झइ हु ।। १४ ।। 15 एवं खु अहं सुद्धो दोसो देतस्स कूडउवमाए । समयस्थमजाणतो मूढो पडिसेवणं कुणइ ।। १५ ।। उवनोगंमि य लाभं कम्मग्गाहिस्स चित्तरक्खट्टा । आलोइए सुलद्धं भणइ भणंतस्स पडिसुणणा ।। १६ ।। संवासो उ पसिद्धो अणुमोयण कम्मभोयग-पसंसा। 20 एएसिमुदाहरणा एए उ कमेण नायव्वा ।। १७ ।। पडिसेवणाएँ तेणा पडिसुणणाए उ रायपुत्तो उ । संवासंमि य पल्ली अणुभोयण रायदुट्ठो य ।।१८।। 2010_04 Page #300 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३) श्रीपिण्डनियुक्तिः ] | [ २७७ गोणीहरण सभूमी नेऊणं गोणिओ पहे भक्खे । निविसया परिवेसण ठियावि ते कूविया घत्थे ।। १६ ।। जेऽविय परिवेसंती, भायणाणि धरंति य । तेऽवि बज्झंति तिब्वेण, कम्मुणा किमु भोइणो ? ।। १२० । 5 सामथण रायसुए पिइवहण सहाय तह य तुण्हिका । तिहिपि हु पडिसुणणा रण्णा सिमि सा नस्थि ।। २१ ।। भुज न भुजे भुजसु तइओ तुसिणीए भुजए पढमो। तिण्हंपि हु पडिसुणणा पडिसेहंतस्स सा नस्थि ।। २२ ।। आणतुभुजगा कम्मुणा उ बीयस्स वाइओ दोसो। 10 तइयस्स य माणसिनो तीहि विसुद्धो चउत्थो उ ॥ २३ ।। पडिसेवण पडिसुणणा संवासऽणुमोयणा उ चउरोवि । पियमारगरायसए विभासियवा जइजणेऽवि ॥ २४ ॥ पल्लीवहमि नट्ठा चोरा वणिया वयं न चोरत्ति । न पलया पावकरत्ति काउं रन्ना उवालद्धा ।। २५ ।। आहाकडभोईहिं सहवासो तह य तस्विवज्जपि । दसणगंधपरिकहा भाविति सुलूहवित्तिपि ॥२६ ।। रायारोहऽवराहे विभूसिओ घाइनो नयरमज्झे । धनाधन्नत्ति कहा वहावहो कप्पडियखोला ॥२७ ।। साउं पज्जतं आयरेण काले रिउक्खमं निद्धं । तगुणविकत्थणाए अभंजमाणेऽवि अणुमन्ना ॥२८ ।। प्राहा अहे य कम्मे आयाहम्मे य अत्तकम्मे य । जह बंजणनाणतं अत्थेणऽवि पुच्छए एवं ॥ २९ ।। 15 2010_04 Page #301 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७८ ] [ निर्युक्तिसंग्रह: :: ( ३ ) श्री पिण्डनिर्युक्तिः ।। १३० ।। पोलु खोरं च ।। २१ ।। । एगट्ठा एगवंजण एगट्ठा नारणवंजणा चेव नाट्ठ एगवंजण नाणट्टा वंजणानाणा दिट्ठ खीरं खोरं एगट्ठ एगवंजणं लोए । एगट्ठ बहुनामं दुद्ध पओ 5 गोमहिसिअयाखीरं नाण एगवंजणं नेयं घडपड - सगडरहाई होइ पिहत्थं पिहंनामं आहाकम्माईणं होई दुरुत्ताइं पढमभंगो उ । आहाहेकम्मति य बिइओ सक्किद इव भंगो ।। ३३ ।। ग्राहाकम्मंतरिया प्रसणाई उ चउरो तइयभंगो । 10 आहाकम्म पहुच्चा नियमा सुनो चरिमभंगो ।। ३४॥ इंदत्थं जह सद्दा पुरंदराई उ नाइवांते । ।। ३२ ।। अहकम्म आयहम्मा तह श्रहं नाइवर्तते ।। ३५ ।। आहाकम्मेण अहेकरेति जं हणइ पाणभूयाई । जं तं श्राययमाणो परकम्मं अत्तणो कुणइ ।। ३६ । 15 कस्सत्ति पुच्छियंमी नियमा साहम्मियस्म तं होइ । साहम्मियस्स तम्हा कायश्व परूवणा विहिणा (परूवणं तस्स वोच्छामि ।। ३७ ।। नामं ठवणा दविए खेत्ते काले अ पवयणे लिंगे । दंसण-नाण चरिते अभिग्गहे भावणाओ य ॥ ३८ ॥ 20 नाममि सरिसनामो ठषणाए काटुकम्ममाईया | 1 दव्वंमि जो उ भविओ साहंमि सरीरगं चेव ।। ३९ ।। खेत्ते समाणदेसी कालंमि समाणकालसंभूओ । पवयणि संघेगयरो लिंगे रयहरणमुहपोती ॥ १४० ॥ 2010_04 Page #302 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३) श्रीपिण्डनियुक्तिः ] [ २७९ दसण नाणे चरणे तिग पण पण तिविह होइ उ चरित्ते। दवाइयो अभिग्गह अह भावणमो अणिच्चाई ॥ ४१ ।। जावंत देवदत्ता गिहीव अगिहीव तेसि दाहामि । नो कप्पई गिहोणं दाहंति विसेसिये कप्पे ॥ ४२ ।। 5 पासंडीसुवि एवं मीसामीसेसु होइ हु विभासा । समणेसु संजयाण उ विसरिसनामाणवि न कप्पे ।। ४३ ॥ नोसमनीसा व कडं ठवणासाहम्मिम्मि उ विभासा । दवे मयतणुभत्तं न तं तु कुच्छा विवज्जेज्जा ॥ ४४ ।। पासंडिय-समणाणं गिहिनिग्गंथाण चेव उ विभासा । 10 जह नामंमि तहेव य खेत्ते काले य नायव्वं ।। ४५ ।। दस ससिहागा सावग पवयण साहम्मिया न लिङ्गण । लिङ्गण उ साहम्मी नो पवयण निगा सव्वे ॥ ४६॥ विसरिस-दसणजुत्ता पवयण-साहम्मिया न दंसणनो। तित्थगरा पत्तेया नो पवयणदंस-साहम्मी ॥ ४७ ॥ 15 नाणचरित्ता एवं नायव्या होति पवयणेणं तु। पवयणओ साहम्मी नाभिग्गह सावगा जइणो ॥ ४८ ।। साहम्मऽभिग्गहेणं नो पवयण निण्ह तित्थ पत्तेया। एवं पवयणभावण एत्तो सेसाण वोच्छामि ॥४९॥ लिंगाईहिवि एवं एक्केकेणं तु उवरिमा नेया। 20 जेऽनन्ने उरिल्ला ते मोत्तु सेसए एवं ॥१५० ॥ लिङ्गण उ साहम्मी न दंसणे वीसुदंसि जइ निण्हा । पत्तेयबुद्ध तित्थंकरा य बीयंमि भंगमि ॥५१॥ 2010_04 Page #303 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८० ] [ नियुक्तिसंग्रहः :: (३) श्री पिण्डनियुक्तिः लिगेण उ नाभिग्गह अणभिग्गह वीसुऽभिग्गहा चेव । जइ सावग बीयभंगे पत्तेयबुहा य तित्थयरा ।। ५२ ।। एवं लिङ्गण भावण, दसणनाणे य पढम भंगो उ । जइ सावग वीसुनाणी एवं चिय बिइयभंगोऽवि ॥ ५३ ।। दसणचरणे पढमो सावग जइणो य बीयभंगो उ। जइणो विसरिसदंसी दंसे य अभिग्गहे वोच्छं ॥ ५४ ।। सावग जइ बीसऽभिग्गह पढमो बीओ य भावणा चेवं । नाणेऽवि नेज्जेवं एत्तो चरणेण वोच्छामि ।। ५५ ॥ जइणो वीसाभिग्गह पढमो बिय निण्हसावगज इणो उ (ईणो)। 10 एवं तु भावणासुऽवि वोच्छं दोहंतिमाणित्तो ।। ५६ ।। जइणो सावग निण्हव पढमे बिइए य हुँति भंगे य ।। केवलनाणे तित्थंकरस्स नो कप्पइ कयं तु ।। ५७ ।। पत्तेयबुद्ध निण्हव उवासए केवलीवि आसज्ज । खइयाइए य भावे पडुच्च भंगे उ जोएज्जा ।। ५८ ।। जत्थ उ तइयो भंगो तत्थ न कप्पं तु सेसए भयणा । तित्थंकर-केवलिणो जह कप्पं नो य सेसाणं ॥ ५६ ।। कि तं आहाकम्मति पुच्छिए तस्सरूव-कहणत्थं । संभव-पदरिसणत्थं च तस्स असणाइयं भणइ ।। १६० ।। सालीमाइ अवडे फलाइ सुठाइ साइमं होइ। तस्स कडनिट्ठियंमी सुद्धमसुद्धे य चत्तारि ।। ६१ ।। कोद्दवरालगगामे वसही रमणिज्ज भिक्खसज्झाए । खेत्तपडिलेहसंजय सावयपुच्छुज्जुए कहणा ॥६२ ।। 20 2010_04 Page #304 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३ ) श्रीपिण्डनिर्युक्तिः ] [ २८१ जुज्जइ गणस्स खेत्तं नवरि गुरूणं तु नत्थि पाउंगं । सालित्ति कए रूपण परिभायण निययगेहेसु ।। ६३ ।। बोलिता ते व अन्ने वा श्रडंता तत्थ गोयरं । सुणंति एसणाजुत्ता, बालादिजणसंकहा ।। ६४ ।। 3 एए ते जेसिमो रद्धो, सालिकूरो घरे घरे । दिलो वा सेसयं देमि, देहि वा बिति वा इमं ॥ ६५ ॥ थक्के थक्कावडियं, अभत्तए सालिभत्तयं जायं । मज्झ य पइल्स मरणं, दियरस्स य से मया भज्जा ।। ६६ । चाउलोदगंवि से देहि, साली आयामकंजियं । । 10 किमेयंति कयं नाउं वज्जंतऽन्नं वयंति वा ।। ६७ ।। लोणागडोदए एवं खाणित महुरोदगं । ढषिक एणऽच्छते ताव, जाव साहुत्ति आगया ।। ६८ ।। कक्कडिय अंगा वा दाडिम दक्खा य बीयपुराई । खाइमऽहिगरण करणंति साइमं तिगडुगाईयं ॥ ६६ ॥ 15 असणाईण चउण्हवि आमं जं साहुगहणपाउग्गं । तं निट्टियं वियाणसु उवक्खडं तू कडं होइ ।। १७० ।। कंडियतिगुणुक्कंडा उ निट्टिया नेगदुगुणउक्कंडा । निट्ठियकडो उ कूरो ग्राहाकम्मं दुगुणमाहु ॥ ७१ ॥ छायंपि विवज्जंती केई फनहेउगाइवुत्तस्स । 20 तं तु न जुज्जइ जम्हा फलंपि कप्पं बिइयभंगे ।। ७२ ।। परपच्चद्दया छाया न विसा रुक्खोव्व वट्टिया कत्ता । नदृच्छाए उ दुमे कप्पइ एवं भणंतस्स ।। ७३ ।। 2010_04 Page #305 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८२ ] [ नियुक्तिसंग्रहः :: (३) श्रीपिण्डनियुक्तिः 10 च वड्डइ हायइ छाया तस्थिक्कं पूइयंपि व न कप्पे । न य आहाय सुविहिए निव्वत्तयई रविच्छायं ॥ ७४ ।। अघणघण चारिगगणे छाया नट्ठा दिया पुणो होइ। कप्पा निरायवे नाम आयवे तं विवज्जेउं(ज्जंति) ।। ७५ ।। तम्हा न एस दोसो संभवई कम्मलक्खणविहूणो। । तंपि य हु अइघिणिल्ला वज्जेमाणा अदोसिल्ला ।। ७६ ।। परपक्खो उ गिहत्था समणो समणीउ होइ उ सपक्खो। फासुकडं रद्धं वा निट्ठियमियरं कडं सव्वं ॥७७ ।। तस्स कडनिट्टियंमी अन्नस्स कडंमि निदिए तस्स । चउभंगो इत्थ भवे चरमदुगे होइ कप्पं तु ॥ ७८ ।। चउरो अइक्कमवइक्कमा य प्रइयार तह अणायारो। निद्दरिसणं चउण्हवि आहाकम्मे निमंतणया ॥ ७९ ।। सालीघय-गुलगोरस नवेसु वल्लीफलेमु जाएसु । दाणे अहिगमसड्ढे आहायकए निमंतेइ ॥१८० ।। 15 श्राहाकम्मग्गहणे . अइक्कमाईसु वट्टए चउसु । नेउर-हारिगहत्थी चउतिगदुग-एगचलगेणं ।।८१ ।। आहाकम्मनिमंतण पडिसुरणमाणे अइक्कमो होइ । पयभेयाइ वइक्कम गहिए तइएयरो गिलिए ॥ ८२ ।। आणाइणो य दोसा गहणे जं भणियमह इमे ते उ । प्राणाभंगऽणवत्था मिच्छत्त विराहणा चेव ।। ८३ ॥ आणं सवजिणाणं गिण्हंतो तं अइक्कमइ लुद्धो। आणं च अइकमतो कस्साएसा कुणइ सेसं ? || ८४ ।। 20 2010_04 Page #306 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३) श्री पिण्ड नियुक्तिः ] [ २८३ एक्केण कयमकज्जं करेइ तप्पच्चया पुणो अन्नो। सायाबहुलपरंपर वोच्छेप्रो संजमतवाणं ।। ८५ ॥ जो जहवायं न कुणइ मिच्छट्टिी तओ हु को प्रनो ? । घड्ढेइ य मिच्छत्तं परस्स संकं जणेमाणो ।।८६ ॥ 5 वड्ढेई तप्पसंगं गेही अ परस्स अप्पणो चेव । सजिपि भिन्नदाढो न मुयइ निद्धंधसो पच्छा ।। ८७ ।। खद्ध निद्धे य सया सुत्ते हाणी तिगिच्छणे काया। पडियरगाणवि हाणी कुणइ किलेसं किलिस्संतो ।। ८८ ।। जह कम्मं तु प्रकप्पं तच्छिषकं वाऽवि भायणठियं वा। 10 परिहरणं तस्सेव य गहियमदोसं च तह भणइ ।। ८९ ।। अब्भोज्जे गमणाइ य पुच्छा दम्वकुलदेस (खित्त) भावे य । एव जयंते छलणा दिट्टता तस्थिमे दोनि ॥ १९० ॥ जह वंतं तु अभोज्जं भत्तं जइवि य सुसक्कयं आसि । एवमसंजमवमणे अणेसणिज्ज अमोज्जं तु ॥ ९१॥ 15 मज्जार-खइयमंसा मंसासिस्थि कुणिमं सुणयवंतं । वन्नाइ अनउप्पाइयंपि कि तं भवे भोज्जं ? ।। ६२ ।। केई भणंति पहिए. उट्ठाणे मंसपेसि वोसिरणं । संभारिय परिवेसण वारेइ सुप्रो करे घेत्तु ।। १९३ ।। अविलाकरहीखीरं लहसुण पलंडू सुरा य गोमंसं । 20 वेयसमएवि प्रमयं किचि प्रभोज्जं अपिज्जं च ।। ६४ ।। वन्नाइजुयावि बली सपललफलसेहरा असुइनत्था । असुइस्स विप्पुसेणवि जह छिक्काओ अभोज्जाओ ।। ६५ ।। 2010_04 Page #307 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८४ ] [ नियुक्तिसंग्रह: :: ( ३ ) श्री पिण्डनियुक्ति: ।। ६६ ।। एमेव उज्झियंमिवि प्राहाकम्मंमि प्रकयए कप्पे । होइ अभोज्ज भाणे जत्थ व सुद्धेऽवि तं पडियं ।। ६६ ।। तुच्चारसरिच्छ्रं कम्मं सोउमवि कोविओ भीओ । परिहरइ सावि य दुहा विहिअविहीए य परिहरणा ।। ९७ ।। 5 सालीओअणहत्थं दट्ठ भई अकोविप्रो देति । कत्तोच्च उत्ति साली ? वणि जाणइ पुच्छ तं तु ॥ ६८ ॥ गंतण श्रावणं सो वाणियगं पुच्छए कओ साली ? | पच्चते मगहाए गोब्बरगामो तहि वयइ कम्मासंकाएँ पहं मोत कंटाहिसावया अदिसि । 10 छायंपि विवज्जयंतो उज्झइ उण्हेण मुच्छाई ॥ २०० ॥ इय अविही-परिहरणा नाणाईणं न होइ आभागी । saकुलदेस भावे विहिपरिहरणा इमा तत्थ ।। २०१ ।। ओयण समिइमसत्त ग कुम्मासाई उ होंति दव्वाई । बहुजणमप्पजणं वा कुलं तु देसो सुरट्ठाई ॥। २०२ ।। आयारsणायर भावे सयं व प्रन्नेण वाऽवि दावणया । एएसि तु पयाणं चउपयतिपया व भयणा उ ।। २०३ ।। प्रणुचियदेसं द ( स ) व्वं कुलमप्पं आयरो य तो पुच्छा । बहुवि नत्थि पुच्छा सदसदविए अभावेऽवि ॥ २०४ ॥ तुज्झट्ठाए कयमिण-मन्नोऽन्नमवेक्खए य सविलक्खं । 20 वज्जति गाढरुट्ठा का भे तत्तित्ति वा गिहे । २०५ ।। गूढायारा न करेंति आयरं पुच्छियावि न कहेंति । थोवंति व नो पुट्ठा तं च अशुद्धं कहं तत्थ ? ।। २०६ ।। 15 2010_04 Page #308 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३) श्री पिण्डनियुक्तिः ] [ २८५ आहाकम्मपरिणग्रो फासुय मोइवि बंधनो होइ । सुद्धं गवेसमाणो प्राहाकम्मेवि सो सुद्धो ॥ २०७ ।। संघुद्दिट्ट सोउं एइ दुयं कोई भोइए पत्तो । दिन्नंति देहि मज्झंतिगाउ साउं तओ लग्गो ।। २०८ ।। 5 मासियपारणगढा गमणं आसन्नगामगे खमगे । सड्डी पायसकरणं कयाइ अज्जेज्जिही खमप्रो ।। २०९ ।। खल्लगमल्लग लेच्छारियाणि डिभग-निभच्छ रुटणया। हंदि समणत्ति पायस धयगुलजुय-जावणट्ठाए ॥ २१० ॥ एगंतमवक्कमणं जइ साहू इज्ज होज्ज तिन्नोमि । 10 तणुकोटुमि अमुच्छा भुत्तंमि य केवलं नाणं ॥११ ।। चंदोदयं च सूरोदयं च रन्नो उ दोन्नि उज्जाणा। तेसि विवरियगमणे आणाकोवो तो दंडो ॥१२॥ सूरोदयं गच्छमहं पभाए, चंदोदयं जंतु तणाइहारा । दुहा रवी पच्चुरसंतिकाउं, रायावि चंदोदयमेव गच्छे ।।१३।। पत्तलदुम-सालगया दच्छामु निवंगण-त्तिदुच्चित्ता । उज्जाणपालएहिं गहिया य हया य बद्धा य ॥ १४ ॥ सहस पइट्ठा दिट्टा इयरेहि निवंगणत्ति तो बद्धा। नितस्स य अवरण्हे दंसणमुभलो वहविसग्गा ॥ १५ ॥ जह ते दंसणकंखी अपूरिइच्छा विणासिया रण्णा। 20 दिट्ठऽवियरे मुक्का एमेव इहं समोयारो ॥ १६ ।। प्राहाकम्मं भुजइ न पडिक्कमए य तस्स ठाणस्स । एमेव अडइ बोडो लुक्कविलुक्को जह कवोडो॥ १७ ।। 15 2010_04 Page #309 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८६ ] [ नियुक्तिसंग्रहः :: (३) श्रीपिण्डनियुक्तिः आहाकम्मदारं भणियमियाणि पुरा समुद्दिट्ट । उद्देसियंति वोच्छं समासनो तं दुहा होइ ॥ १८ ।। मोहेण विभागेण य ओहे ठप्पं तु बारस विभागे। उद्दिट्ट कडे कम्मे एक्के क्कि चउक्कमो मेओ ॥ १६ ।। 5 जीवामु कहवि ओमे निययं मिक्खावि कदवई देमो। हंदि हु नत्थि अविन्नं भुज्जइ अकयं न य फलेई ।। २२० ।। सा उ अविसे सियं चिय मियंमि भत्तमि तंडुले छुहइ । पासंडीण गिहीण व जो एहिइ तस्स भिक्खट्ठा ।। २१ ॥ छउमत्थोघुद्देसं कहं वियाणाइ ? चोइए भणइ । 10 उवउत्तो गुरू एवं मिहत्थसहाइचिट्ठाए ॥ २२ ॥ दिनाउ ताउ पंचवि रेहाउ करेइ देइ व गर्णति । देहि इओ मा य इमो अवणेह य एत्तिया भिक्खा ॥ २३ ॥ सद्दाइएसु साहू मुच्छं न करेज्ज गोयरगओ य । एसणजुत्तो होज्जा गोणीवच्छो गवत्तिव्व ॥ २४ ॥ ऊसव मंडणवग्गा न पाणियं वच्छए नवि य चारि । वणियागम अवरण्हे वच्छगरडणं खरंटणया ॥ २५ ॥ पंचविह-विसयसोक्खक्खणी वहू समहियं गिहं तं तु । न गणेइ गोणिवच्छो मुच्छिय गढिम्रो गवत्तंमि ।। २६ ।। गमणागमणुक्खेवे भासिय सोयाइइंदियाउत्तो । 20 एसणमणेसणं वा तह जाणइ तम्मणो समणो ॥ २७ ॥ महईए संखडीए उवरियं कूरवंजणईयं । पउरं दळूण गिही भणइ इमं देहि पुण्णट्ठा ॥ २८ ॥ 15 2010_04 Page #310 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३) श्रीपिण्डनियुक्तिः ] [ २८७ उद्देसियं समुद्देसियं च प्राएसियं समाएसं। एवं कडे य कम्मे एक्के क्कि चउपकओ मेओ ॥ २६ ॥ जावंतियमुद्देसं पासंडीणं भवे समुद्देसं । समणाणं आएसं निग्गंथाणं समाएसं ॥ २३० ॥ 5 छिन्नमछिन्नं दुविहं दवे खेत्ते य काल भावे य । निष्फाइयनिष्फन्नं नायव्वं जं जहिं कमइ ।। ३१ ।। मत्तुवरियं खलु संखडीएँ तद्दिवसमन्नदिवसे वा। अंतो बहिं च सव्वं सम्वदिणं देहि प्रच्छिन्नं ॥ ३२ ॥ देहि इमं मा सेसं अंतो बाहिरग्गयं व एगयरं । 10 जाव प्रमुगत्तिवेला अमुगं वेलं च प्रारब्भ ।। ३३ ।। दव्वाईछिन्नपि हु जइ भणई प्रारओऽवि मा देह । तो कप्पइ छिन्नपि हु अच्छिन्नकडं परिहरंति ।। ३४ ।। अमुगाणंति व दिज्जउ अमुकाणं मति एत्थ उ विभासा । जत्थ जईण विसिट्टो निद्देसो तं परिहरंति ॥ ३५ ।। 15 संदिस्संतं जो सुणइ कप्पए तस्स सेसए ठवणा। संकलिय साहणं वा करेंति असुए इमा मेरा ।। ३६ ॥ मा एयं देहि इमं पुढे सिट्ठमि तं परिहरति । जं दिन्नं तं दिन्नं मा संपइ देहि गेण्हति ।। ३७ ॥ रसभायणहेउं वा मा कुच्छिहिई सुहं व दाहामि । 20 दहिमाई आयतं करेइ कूरं कडं एयं ।। ३८ ।। मा काहंति अवण्णं परिकलियं व दिज्जइ सुहं तु । वियडेण फाणिएण व निद्रेण समं तु बट्टति ।। ३६ ॥ 2010_04 .. Page #311 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८८ ] [ नियुक्तिसंग्रहः :: (३) श्री पिण्डनियुक्तिः एमेव य कम्ममिऽवि उण्हवणे नवरि तत्थ नाणत्तं । ताविय-विलीणएणं मोयग-चुन्नीपुणवकरणं ॥ २४० ।। अमुगंति पुणो रद्धं दाहमकप्पं तमारओ कप्पं । खेत्ते अंतो बाहिं काले सुइव्वं परेव्वं वा ।। ४१ ।। 5 जं जह व कयं दाहं तं कप्पइ आरमो तहा अकयं । कयपाकमणिट्ठति ठियंपि जावंत्तियं मोत्तुं ।। ४२ ।। छक्कायनिरणुकंपा जिणपवयणबाहिरा बहिष्फोडा। एवं वयंति फोडा-लुक्कविलुक्का जहकवोडा। (प्र.) पूईकम्मं दुविहं दवे भावे य होइ नायव्वं । 10 दव्वंमि छगणधम्मिय भावमि य बायरं सुहुमं ।। ४३ ।। गंधाइ-गुणसमिद्धं जं दव्वं असुइगंध-दव्वजुयं । पूइत्ति परिहरिज्जइ तं जाणसु दध्वपूइत्ति ।। ४४ ।। गोटिनिउत्तो धम्मी सहाएँ आसन्न गोट्ठिभत्ताए । समियसुर-वल्लमीसं अजिन्न सन्ना महिसिपोहो ॥ ४५ ॥ 15 संजाय लित्तभत्ते गोटिंग गंधोत्ति व (च)ल्लवणिआयो। उक्खणिय अन्नछगणेण लिपणं दम्बपूई उऊ ।। ४६ ।। उग्गमकोडि अवयवमित्तेणवि मीसियं सुसुद्धपि । सुद्धपि कुणइ चरणं पूइं तं भावओ पूई ॥ ४७ ।। आहाफम्मुद्देसिय मीसं तह बायरा य पाहुडिया। 20 पूई अझोयरओ उग्गमकोडी भवे एसा ।। ४८ ।। बायर सुहुमं भावे उ पूइयं सुहुममुवरि वोच्छामि । उवगरण भत्तपाणे दुविहं पुण बायरं पुइं ॥ ४९ ।। 2010_04 Page #312 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३) श्रीपिण्ड नियुक्तिः ] [ २८६ चुल्लक्खलिया डोए दध्वीछूढे य मीसगं पूई । डाए लोणे हिंगू संकामण फोडणे धूमे ।। २५० ।। सिज्झतस्सुवयारं दिज्जंतस्स व करेइ जं दव्वं । तं उवकरणं चुल्ली उक्खा दवी य डोयाई ।। ५१ ।। 5 चुल्लुक्खा कम्माई प्राइमभंगेसु तीसुवि अकप्पं । पडिकुटुं तत्थत्थं अन्नत्थगयं अणुनायं । ५२ ॥ कम्मिय-कद्दममिस्सा चुल्ली उक्खा य फड्डगजुया उ। उवगरणपूइमेयं डोए दंडे व एगयरे ॥५३ ।। दबोछुढेत्ति जं वृत्तं, कम्मदब्बीऐं जं दए । 10 कम्म घट्टिय सुद्धं तु, घट्टए (घट्ट) प्राहारपूइयं ॥ ५४ ।। अत्तट्ठिय आयाणे डायं लोणं च कम्म हिंगुवा। तं भत्तपाणपूई फोडण अन्नं व जं छुहइ ।। ५५ ।। संकामेउं कम्म सिद्धं किंचि तत्थ छूटं वा। अंगारधूमि थाली वेसण हेट्ठा मुणीहि । 15 (कम्मियवेसण अंगारथाली हेट्ठा मुही) धूमो ।। ५६ ।। इंधरणधूमे गंधे अवयवमाईहिं सुहम पूई उ। सुदरमेयं पूई चोयग भणिए गुरू भणइ ।। ५७ ।। इंधनधूमेगंधेअवयवमाई न पूइयं होइ । जेसि तु एस पूई सोही नवि विज्जए तेसि ॥ ५८ ।। 20 इंधनअगणीअवयव धूमो बफो य अन्नगंधो य । सव्वं फुसंति लोयं भन्नइ सव्वं तओ पूई ।। ५६ ।। नणु सहूमपूइयस्सा पुवुद्दिट्ठस्सऽसंभवो एवं । इंधणधूमाई हिं तम्हा पूइत्ति सिद्धमिणं ।। २६० ।। 2010_04 Page #313 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २९० ] [ नियुक्तिसंग्रह: : : ( ३ ) श्रीपिण्डनिर्युक्तिः चोयग ! इंधणमाईहि चउहिवी सुहुमपूइयं होइ । पनवणामित्तमियं परिहरणा नत्थि एयस्स ।। ६४ ।। सज्झमसज्भं कज्जं सज्यं साहिज्जए न उ प्रसज्यं । जो उ प्रसज्यं साहइ फिलिस्सइ न तं च साहेई ।। ६२ ।। 5 आहाकम्मिय भायणपरफोडण काय ( उ ) श्रयए कप्पे । गहियं तु सुहुमपूई थोषणमाईहि परिहरणा ।। ६३ ।। धोयपि निरावयवं न होइ श्राहच्च कम्म गहणंमि । न य अद्दव्वा उ गुणा भन्नई सुद्धी कओ एवं ? ।। ६४ ।। लोएवि असुगंधा विपरिणया दूरओ न दूति । नय मारंति परिणया दूरगया श्रवि विसावयवा ।। ६५ ।। सेसेहि उ दहि जावइयं फुसइ तत्तियं पूई । लेवेहिँ तिहि उ पूई कप्पइ कप्पे कए तिगुणे ॥ ६६ ॥ इंधणमाई मोत्तुं चउरो सेसाणि होंति दव्वाई । तेसि पुण परिमाणं तयप्पमाणाउ आरब्भ ।। ६७ ।। 15 पढमदिवसंमि कम्मं तिनि उ दिवसाणि पूइयं होइ । पुईसु तिसु न कप्पइ कप्पइ तइम्रो जया कप्पो ।। ६८ ।। समणकडाहाकम्मं समरगाणं जं कडेण मीसं तु । श्राहार उवहि वसही सव्वं तं पूइयं होइ ॥ ६६ ॥ सस्स थेवदिवसेस संखडी आसि संघभत्तं वा । 20 पुच्छितु निउणपुच्छं संलावाओ वडगारीणं ।। २७० ।। मीसज्जायं जावंतियं च पासंडिसाहुमीसं च । सहसंतरं न कप्पइ कप्पs कप्पे कए तिगुणे ॥ ७१ ॥ 10 2010_04 Page #314 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३) श्रीपिण्डनिर्युक्तिः ] [ २९१ जावंतट्ठा सिद्धं नेयं तं देह कामियं जइणं । बहुसु व अपहुप्पंते भरणाइ अन्नंपि रंधेह ।। ७२ ।। अत्तट्ठा रंधते पासंडीपि बिइयओ भरगइ । निग्गंथट्ठा तइओ अत्तट्ठाएऽवि रंधते ( सो होइ ) ।। ७३ ।। 5 विसघाइय-पिसियासी मरइ तमनोवि खाइउं मरह | इय पारंपरमरणे अणुमरइ सहस्ससो जाव ।। ७४ ।। एवं मीसज्जायं चरणप्पं हणइ साहु सुविसुद्धं । तम्हा तं नो कप्पइ पुरिस- सहस्संतरगयंपि ।। ७५ । निच्छोडिए करीसेण वावि उव्वट्टिए तओ कप्पा | 10 सुक्कावित्ता गिoes अन्न चउत्थे प्रसुक्केऽवि ॥ ७६॥ सट्टाणपरट्ठाणे दुविहं ठवियं तु होइ नायव्वं । खीराइ परंपरए हत्थगय घरंतरं जाव ।। ७७ ।। छब्बग-वारगमाई होइ परट्ठाणमो वडणेगविहं । सठाणे पिढरे छब्बगे य एमेव दूरे य ।। ७८ ।। 15 एक्केक्कं तं दुबिहं अनंतर परंपरे य नायव्यं । अविकारि कयं दव्वं तं चेव प्रणंतरं होइ ।। ७९ ।। उच्छुक्खीराईयं विगारि श्रविगारि घयगुलाईयं । परियावज्जणदोसा ओयणदहिमाइयं वावि ।। २८० ।। उब्भट्ठपरिन्नायं अन्नं लद्धं पनोयणे घेत्थी । 20 रिणभीया व धयारा दहित्ति दाहं सुए ठवणा ।। ८१ ।। नवरणीय मंथुतक्कं व जाव अतट्ठिया व गिव्हंति । देसूणा जाव घयं कुसपि य जत्तियं कालं ।। ८२ ।। 2010_04 Page #315 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २९२ ] [ नियुक्तिसंग्रहः :: (३) श्रीपिण्डनियुक्तिः रस कक्कपिंडगुला मच्छंडिय-खंडसक्कराणं च । होइ परंपरठबरणा अन्नत्थ व जुज्जए जत्थ ॥८३ ।। भिक्खागाही एगत्थ कुणइ बिइओ उ दोसु उवओगं । तेण परं उक्खित्ता पाहुडिया होइ ठवणा उ ।। ८४ ॥ 5 पाहुडियावि हु दुविहा बायर सुहुमा य होइ नायब्धा । प्रोसक्करणमुस्सक्कण कम्बट्ठीए समोस रणे ।। ८५ ।। मा ताव झंख पुत्तय ! परिवाडीए इहेहि सो साहू । एयस्स उठ्ठिया ते दाहं सोउं विवज्जेइ ।। ८६ ।। अहवा-अंगुलियाए घेत्तु कड्डइ कप्पो घरं जत्तो। 10 किति कहिए न गच्छइ पाहुडिया एस सुहमा उ ।। ८७ ।। पुत्तस्स विवाहदिणं प्रोसरणे अइच्छिए मुणिय सड्ढी । ओसक्कतोसरणे संखडि-पाहेणग दवट्ठा ॥८८ ।। अप्पत्मि य ठवियं ओसरणे होहिइत्ति उस्सकणं । तं पागडमियरं वा करेइ उज्जू अणंज्जू वा ।। ८६ ।। 15 मंगल हेउं पुन्नट्ठया व ओसक्कियं दुहा पगयं । उस्सक्कियंपि किति य पुट्ठ सिट्ठ विवज्जति ।। २६० ।। पाहुडिभत्तं भुजइ न पडिक्कमए अ तस्स ठाणस्स। एमेव अडइ बोडो लुक्कविलुक्को जह कवोडो ।। ६१ ।। लोयविरलुत्तमंगं तवोकिसं जल्लखउरियसरीरं। 20 जुगमेत्तांतर दिदि अतुरियचवलं सगिहमितं ।। ६२ ॥ दळूण य अणगारं सड्डी संवेगमागया काई । विपुलऽन्नपाण घेत्तूण निग्गया निग्गनो सोऽवि ॥ ९३ ।। 2010_04 Page #316 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३) श्रीपिण्डनियुक्तिः ] नीयदुवारंमि घरे न सुज्झई एसरणत्तिकाऊणं । नोहंमिए अगारी अच्छइ विलिया वऽगहिएणं ।। ६४ ।। चरणकरणालसंमि य अन्न मि य प्रागए गहिय पुच्छा।। इहलोगं परलोग कहेइ चइउं इमं लोगं ।। ६५ ।। 5 नीयदुवारंमि घरे भिक्खं निच्छंति एसणासमिया । जं पुच्छसि मज्झ कहं कप्पइ ? लिंगोवजीवोऽहं ।। ६६ ।। साहुगुणेसणकहणं प्राउट्टा तंमि तिप्पइ तहेव । कुक्कुडि चरंति एए वयं तु चिन्नव्वया बीओ ॥६७ ।। पाओकरणं दुविहं पागडकरणं पगासकरणं च। 10 पागड संकामण कुड्डदारयाए य छिन्ने व ।। ९८ ।। रयणपईवे जोई न कप्पइ पगासणा सुविहियाणं । अट्टि अपरिभुत्तं कप्पइ कप्पं अकाऊणं ॥ ९९ ।। संचारिमा य चुल्ली बहिं व चुल्ली पुरा कया तेसि । तहि रंधंति कयाई उवही पूई य पाओ य ३०० ।। 15 नेच्छह तमिसंमि तनी बाहिरचुल्लोएँ साहु सिद्धण्णे। इय सोउं परिहरए पुढे सिलैंमिवि तहेव ।। ३०१ ।। मच्छियधम्मा अंतो बाहि पवायं पगासमासन्न । इय अत्तट्ठियगहणं पागडकरणे विभासेयं ।। ३०२ ।। कुडुस्स कुणइ छिड्ड दारं वडढेइ अन्नं वा । अवणेइ छायणं वा ठावइ रयणं व दिप्पंतं ।। ३०३ ।। जोइ पइवं कुणइ व तहेव कहणं तु पुढे दुठे वा । अत्तट्ठिए उ गहणं जोइ पईवे उ वज्जित्ता। ३०४ ।। 20 2010_04 Page #317 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २९४ [ नियुक्तिसंग्रहः :: (३) श्रीपिण्डनियुक्तिः पागड-पयासकरणे कयंमि सहसा व अहवाणाभोगा। गहियं विगिचिऊणं गेण्हइ अन्नं अकयकप्पे ।। ३०५ ।। कीयगडंपि य दुविहं दवे भावे य दुविहमेक्केक्कं । आयकियं च परकियं परदव्वं तिविह चित्ताई ।। ३०६ ।। 5 आयकियं पुण दुविहं दव्वे भावे य दव्य चुन्नाई । भावमि परस्सऽट्ठा अहवावी अप्पणा चेव ।। ३०७ ।। निम्मल्ल-गंधगुलिया-वन्नय-पोत्ताइ प्रायकय दवे । गेलन्ने उड्डाहो पउणे चडुगारि अहिगरणं ॥ ३०८ ।। वइयाइ मखमाई परभावकयं तु संजयट्ठाए । 10 उपायणा निमंतण कीडगडं अभिहडे ठविए । ३०६ ।। सागारि मंख छंदण पडिसेहो पुच्छ बहु गए वासे । करि दिसि गमिस्सह ? प्रमुइं तहि संथवं कुखइ ॥३१०।। दिज्जते पडिसेहो कज्जे घेत्थं निमंतणं जइणं । पुवगय प्रागएसु संछुहई एगगेहंमि ॥११ ।। 15 धम्मकह वाय खमणं निमित्त आयावणे सुयट्ठाणे । जाई कुल गण कम्मे सिप्पम्मि य भावकीयं तु ।। १२ ।। धम्मकहाअक्खित्ते धम्मकहाउट्टियाण वा गिण्हे । कति साहवो चिय तुमं व कहि ? पुच्छिए तुसिणी ।।१३।। कि वा कहिज्ज छारा दगसोयरिआ व अहवऽगारत्था । 20 कि छगलगगल-बलया मुडकुडुबी व कि कहए ? ॥ १४ ।। एमेव वाइ खमए निमित्त मायावगम्मि य वि विमासा । सुयठाणं गणिमाई अहवा वाणायरियमाई ॥३१५ ।। 2010_04 Page #318 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३) श्रीपिण्डनियुक्तिः ] [ २९५ पामिच्चपि य दुविहं लोइय लोगुत्तरं समासेण । लोइय सभिलगाई लोगुत्तर वत्थमाईसु ।। १६ ।। सुयअभिगमनाय विही बहि पुच्छा एग जीवइ ससा ते । पविसण पाग निवारण उच्छिदण तेल्ल जइदाणं ।। १७ ।। 5 अपरिमियनेहवुड्डी दासत्तं सो य आगओ पुच्छा। दासत्तकहण मा रुय अचिरा मोएमि एत्ताहे ।। १८ ॥ भिक्ख दगसमारंभे कहणाउट्टो कहिं ति वसहित्ति । संवेया आहरणं विसज्ज कहणा कइवया उ ।। १६ ।। एए चेव य दोसा सविसेसयरा उ वत्थपाएसु। 10 लोइयपामिच्चेसु लोगुत्तरिया इमे अन्ने ॥३२० ।। मइलिय फालिय खोसिय हियन? बावि अन्न मग्गंते । अवि सुदरेवि दिण्णे दुक्कररोई कलहमाई ॥ २१ ।। उच्चत्ताए दाणं दुल्लभ खग्गूड अलस पामिच्चे । तंपि य गुरुस्स पासे ठवेइ सो देइ मा कलहो ॥ २२ ॥ 15 परियट्टियंपि दुविहं लोइय लोगुत्तरं समासेणं । एक्केक्कंपि अ दुविहं तद्दध्वे अन्नदवे य ।। २३ ।। अवरोप्पर-सज्झिलगा संजुत्ता दोवि अन्नमन्नेणं । पोग्गलिय संजयहा परियट्टण संखडे बोही ।। २४ ॥ अणुकंप भगिणिगेहे दरिद्द परियट्टणा य कूरस्स । पुच्छा कोद्दवकूरे मच्छर णाइक्ख पंतावे ।। २५ ।। इयरोऽविय पंतावे निसि प्रोस वियाण तेसि दिक्खा य । तम्हा उ न घेत्तव्वं कइ वा जे ओसमेहिति ? ।। २६ ।। am 20 2010_04 Page #319 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २९६ ] [ नियुक्तिसंग्रह: : : ( ३ ) श्रीपिण्डनिर्युक्तिः ऊणहिय दुब्बलं वा खर गुरु छिन्नं मद्दलं असीयसहं । दुव्वन्नं वा नाउं विपरिणमे प्रत्रभणिओ वा ।। २७ ।। एगस्स माणजुत्तं न उ बिइए एवमाइ कज्जेसु । गुरुपामूले ठवणं सो दलयइ अन्नहा कलहो ।। २८ ।। 5 आइन्नमणाइन्नं निसीहाऽभिहडं च नोनिसीहं च । निसिहाभिहडं ठप्पं वोच्छामी बोनिसीहं तु ॥ २६ ॥ सग्गाम परग्गा मे सदेस परदेस मेव बोद्धव्वं । दुविहं तु परग्गामे जलथल नावोडु जंघाए ।। ३३० ।। जंघा बाह तरीइ व जले थले खंध श्रारखुर निबद्धा । 10 संजमप्राय विराहण तहियं पुण संजमे काया ।। ३१ ।। प्रत्थाहगाहपंकाम गरोहारा जले अवाया उ । कंटाहि तेणसावय थलंमिए ए भवे दोसा ।। ३२ ।। सग्गामेsवि य दुविहं नोधरंतरं चेव । तिघरंतरा परेणं घरंतरं तं तु नायव्वं ।। ३३ ।। 15 नोघरंतरऽणेगविहं वा (वा) डगसाही निवेसणगिहेसु । काये खंधे मिम्मय कंसेण व तं तु आज्जा ।। ३४ ।। सुन्नं व असइ कालो पगयं व पहेणगं व पासुत्ता । इय एइ काइ घेत्तुं दावेइ य कारणं तं तु ।। ३५ ।। एमेव कमो नियमा निसीहाऽभिहडेऽवि होइ नायव्वो I 20 अविइप्रदायगभावं निसीहिश्रं तं तु नायव्वं ।। ३६ ।। इदुरजलंतरिया कम्मासंकाएँ मा न घेच्छति । आणंति संखडीओ सड्डो सड्डी व पच्छन्नं ।। ३३७ ।। 2010_04 Page #320 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३) श्रीपिण्डनियुक्तिः ] [ २९७ निग्गम देउल दाणं दियाइ सन्नाइ निग्गए दाणं। सिट्ठमि सेसगमणं दितऽन्ने वारयंतऽन्ने ।। ३८ ।। भुजण अजीरपुरिमडगाइ अच्छंति भुत्तसेसं वा। आगमनिसोहिगाई न भुजई सावगासंका ।। ६६ ।। . 5 उक्खित्तं निक्खिप्पइ आसगयं मल्लगंमि पासगए। खामित्तु गया सड्ढा तेऽवि य सुद्धा असढभावा ।। ३४० ।। लद्धं पहेणगं मे प्रमुगत्यगयाएँ संखडीए वा। वंदणगठ्ठपविट्ठा देइ तयं पठ्ठिय नियत्ता ॥ ४१ ।। नीयं पहेणगं मे नियगाणं निच्छियं व तं तेहि। 10 सागारि सयज्झियं वा पडिकुट्ठा संखडे रुट्ठा ।। ४२ ।। एयं तु अणाइन्नं दुविहंपि य आहडं समक्खायं । पाइन्नपि य दुविहं देसे तह देसदेसे अ ।। ४३ ।। हत्थसयं खलु देसो पारेणं होइ देसदेसो य । आइन्नंमि उ. तिगिहा ते चिय उवओगपुवागा ।। ४४ ।। परिवेसण-पंतीए दूर पवेसो य घंघसालगिहे । हत्थसया आइन्नं गहणं परमो उ पडिकुट्ट ॥ ४५ ।। (होइ पुण देसदेसो अंतो गिह सा न दीसए जत्थ । उक्खेवाई तत्थ उ सोसाई देइ उवनोगं ॥ प्र०) उक्कोस मज्झिम जहन्नगं च तिविहं तु होइ आइन्न । करपरियत्त जहन्नं सयमुक्कोसं मज्झिमं सेसं ।। ४६ ॥ पिहिउभिन्न-कवाडे फासुय अप्फासुए य बोद्धध्वे । अप्फासु पुढविमाई फासुय छगणाइदद्दरए । ४७ ।। 15 20 ... 2010_04 Page #321 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २९८ ] [ नियुक्तिसंग्रहः :: (३) श्रीपिण्डनियुक्तिः उभिन्ने छक्काया दाणे कय विक्कए य अहिगरणं । ते चेव कवामिवि सविसेसा जंतमाईसु ॥४८ ।। सच्चित्त-पुढविलितं लेलु सिलं वाऽवि दाउमोलित। सच्चित्तपुढविलेवो चिरंपि उदगं अचिरलित्ते ।। ४९ ।। 5 एवं तु पुज्वलित्ते काया उल्लिपणेऽवि ते चेव । तिम्मेउं उलिपइ जउमुदं वावि तावेउं ॥ ३५० ।। जह चेव पुत्वलिते काया दाउं पुणोऽवि तह चेव । उलिप्पंते काया मुइअंगाइ नवरि छ? ॥ ५१ ।। परस्स तं देइ स एव गेहे, तेल्लं व लोणं व घयं गुलं वा । 10 उग्घाडिए तंमि करे अवस्सं, स विक्कयं तेण किणाइ अन्नं ५२। दाणे कयविक्कए वा होई अहिगरण-मजयभावस्स । निवयंति जे य तहियं जीवा मुइयंगमूसाई ।। ५३ ॥ जहेव कुंभाइसु पुवलिते उभिज्जमाणे य हवंति काया। ओलिपमाणेवि तहा तहेव, काया कवाडंमि विभासियव्वा । ५४। घरकोइल-संचारा आवत्तण पीढगाइ हेळुवरि । निते ठिए य अंतो डिभाईपेल्लणे दोसा ॥ ५५ ।। घेप्पइ अकुचियागंमि कवाडे पइदिणे परिवहंते । प्रजऊमुद्दिय गंठी परिभुज्जइ दद्दरो जो य ॥ ५६ ॥ मालोहडंपि दुविहं जहन्न-मुक्कोसगं च बोद्धन्वं । 20 अग्गतलेहि जहन्न तम्विवरीयं तु उक्कोसं ॥५७ ।। भिक्खू जहन्नगंमी गेरुय उक्कोसगंमि दिढतो। अहिडसण मालपडणे य एवमाई भवे दोसा ॥ ३५४ ।। 15 2010_04 Page #322 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३) श्रीपिण्डनियुक्तिः ] मालाभिमुहं दठूण प्रगारि निग्गओ तओ साहू । तच्चनिय आगमणं पुच्छा य अदिन्नदाणति ।। ५६ ।। मालंमि कुडे मोयग सुगंध अहि पविसणं करे डक्का । अन्नदिण साहु आगम निद्दय कहणा य संबोही ।। ३६० ॥ 5 आसंदि-पीढमंचक-जंतोडुखल पडंत उभयवहे । वोच्छेय-पनोसाई उड्डाह-मनाणिवाओ य ॥६१ ।। एमेव य उक्कोसे वारण निस्सेणि गुग्विणीपडणं । गभित्थि कुच्छिफोडण पुरो मरणं कहण बोही ।। ६२ ।। उड्डमहे तिरियपि य प्रहवा मालोहडं भवे तिविहं । 10 उड्ड य महोयरणं भणियं कुभाइसू उभयं ।। ६३ ।। दद्दर-सिल-सोवाणे पुश्वारूढे अणुच्च मुक्खित्ते । मालोहडं न होई सेसं मालोहडं होइ ।। ६४ ।। तिरियायय उज्जुगएण गिण्हई जं करेण पासंतो। एयमणुच्चुक्खित्तं उच्चुक्खित्तं भवे सेसं ॥६५ ।। 13 प्रच्छिज्जपि य तिविहं पभू य सामी य तेणए चेव । अच्छिज्जं पडिकुटुं समणाण न कप्पए घेत्तु ।। ६६ ।। गोवालए य भयएऽखरए पुत्ते य धूय सुण्हाए । अचियत्त-संखडाई केइ पओसं जहा गोवो ।। ६७ ।। गोवपओ अच्छेत्तु दिन्नं तु जइस्स भइदिणे पहुणा। 20 पयभागणं द? खिसइ भोई स्वे चेडा ॥६८।। पडियरण-पत्रोसेणं भावं नाउं जइरस आलावो । तन्निब्बंधा गहियं हंदि स मुक्कोऽसि मा बीयं ।। ६९ ॥ 2010_04 Page #323 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३०० ] [ नियुक्तिसंग्रहः :: (३) श्रीपिण्डनियुक्तिः नानिविट्ठलभइ दासीवि न भुज्जए रिते भत्ता । दोन्नेगयर पओसं जे काही अंतरायं च ।। ३७० ।। सामी चार भडा वा संजय दट्ठ ण तेसि अट्टाए । कलुणाणं अच्छेज्जं साहूण न कप्पए घेत्तु ।। ७१ ।। 5 पाहारोवहि-माई जइट्ठाए उ कोई अच्छिदे। संखडी असंखडीए तं गिण्हते इमे दोसा ।। ७२ ।। अचियत्तमंत रायं तेनाहड एगऽणेग-वोच्छेओ। निच्छुभणाई दोसा तस्स अलंभे (विद्यालऽलं भे) य ज पावे ७३ तेणो व संजयट्ठा कलुणाणं अप्पणो व अढाए । 10 वोच्छेय पओसं वा न कप्पई कप्पऽणुनायं ।। ७४ ।। संजयभद्दा तेणा आयंती वा असंथरे जइणं । जइ देंति न घेत्तव्वं निच्छु म वोच्छेउ मा होज्जा ।। ७५ ।। घयसत्तुयदट्टितो (तेणगरुण घेत्तु) समणुम्नाया व घेतुणं (गिहीवि) पच्छा । 15 देति तयं तेसि चिय समणुनाया व भुजति ॥७६ ।। (घयसत्तुगदिट्टतो अंबापाए य तप्पिया पियरो। काममकामे धम्मो णिओइए प्रम्हवि कयाई ।। प्र० ४ ॥) अणिसिट्ठ पडिकुट्ट अणुनायं कप्पए सुधिहियाणं । लड्डुग चोल्लग जंते संखडि खीरावणाईसु ॥७७ ।। बत्तीसा सामन्ने ते कहिँ हाउं गयत्ति इअ वुत्ते । परसंतिएण पुन्नं न तरसि काउंति पच्चाह ।। ७८ ।। अविय हु बत्तीसाए दिन्नेहिं तवेगमोयगो न भवे । अप्पवयं बहुआयं जइ जाणसि देहि तो मज्झ ।। ७९ ।। 20 2010_04 Page #324 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३) श्रीपिण्डनिर्युक्तिः ] [ ३०१ ।। लाभिय नेतो पुट्ठो कि लद्धं ? नत्थि पेच्छिमो दाए । tisfa आह नाहं देमित्ति सहोढ़ चोरति ।। ३८० ।। गिरहण कडूण ववहार पच्छकड्डाह पुच्छ निव्विसए । अपहुँमि भवे दोसा पहुंमि दिन्ने तओ गहणं ॥। ८१ ।। 5 एमेव य जंतंमिवि संखडि खोरे य आवणाईसु । सामन्नं पडिकुटु' कप्पड़ घेत्तुं अणुन्नायं ॥ ८२ ॥ चुल्लति दारमहुणा बहुवत्तव्वंति तं कयं पच्छा | बन्नेइ गुरू सो पुण सामियहत्थीण विन्नेओ ॥ ८३ ॥ छिनछिनो दुविहो होइ अछिनो निसिट्ट प्रणिसिट्ठो । 10 छिन्नंमि चुल्लगंमी कप्पइ घेत्तुं निसिद्ध मि ।। ८४ ।। छिन्नो दिट्ठमदिट्ठो जो य निसिठ्ठो भवे अछिन्नो य । सो कप्पइ इयरो उण अदिट्ठदिट्ठो वऽणुनाओ ।। ८५ ।। अणिसिमणुन्नायं कप्पs घेतुं तहेव अद्दिट्ठ । जडुस्स य अनिसिद्ध न कप्पई कप्पइ अदिट्ठ ।। ८६ ।। 15 निर्वापडो गयभत्तं गहणाई अंतराइमय दिन्नं । डुंबस्स संतिएवि हु प्रभिक्ख वसहीऍ (य) फेडणया ।। ८७ । अज्झोयरओ तिविहो जावंतिय सघरमीसपासंडे । मूलंमि य पुग्वकये प्रोयरई तिणह अट्ठाए ।। ८८ । तंडुलजल आयाणे पुप्फफले सागवेसणे लोणे । 20 परिमाणे नारणत्तं अज्झोयरमीसजाए य ।। ८९ ।। जावंतिए विसोही सघरपासंडि मोसए पूई । छिन्ने विसोही दिन्नमि कप्पइ न कप्पई सेसं ।। ३९० । 2010_04 Page #325 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३०२ ] [ नियुक्तिसंग्रहः :: (३) श्रीपिण्डनियुक्तिः छिन्नंमि तमो उक्क ड्डियंमि कप्पइ पिहीकए सेसं । पाहावणाए दिन्नं च तत्तियं कप्पए सेसं ॥९१॥ एसो सोलसभेओ, दुहा कोरई उग्गमो। एगो विसोहिकोडी, अविसोही उ चावरा ।। ६२ ।। 5 आहाकम्मुद्देशिय चरमतिगं पूइ मीसजाए य । बायरपाहुडियावि य अज्झोयरए य चरिमदुगं ।। ९३ ॥ उम्गमकोडी अवयव लेवालेवे य प्रकयए कप्पे । कंजिय-आयामग-चाउलोय-संसट्ठ पूईओ ॥ ९४ ।। सेसा विसोहिकोडी भत्तां पाणं विगिच जहत्ति । 10 अणलक्खिय मीसदवे सव्वविवेगेऽवयव सुद्धो ।। ९५ ।। दवाइनो विवेगो दम्वे जं दव्व जहि खेत्ते । काले अकालहीणं असढो जं पस्सई भावे ।। ६६ ।। सुक्कोल्लसरिसपाए असरिसपाए य एत्थ चउभंगो। तुल्ले तुल्ल निवाए तत्थ दुवे दोनऽतुल्ला उ ॥ ९७ ।। 15 सुक्के सुषकं पडियं विगिचिउं होइ त सुहं पढमो।। बीयंमि दवं छोद गालंति दवं करं दाउं ॥ ९९ ॥ तइयंमि करं छोढुं उल्लिचइ ओयणाइ जंतरइ । दुल्लहदव्वं चरिमे तत्तियमित्तं विगिचंति ॥६॥ संथरे सव्वमुझंति चउभंगो प्रसंथरे । 20 असढो सुज्झई जे (ते) सु, मायावी जेसु बज्झई ।। ४०० ॥ कोडीकरणं दुविहं उग्गमकोडी विसोहिकोडी य । उग्गमकोडी छक्कं विसोहिकोडी अणेगविहा ॥ ४०१ ।। 2010_04 Page #326 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३) श्रीपिण्डनियुक्तिः ] [ ३०३ नव चेव भ्रढारसगं सत्तावीसा तहेव चउपन्ना | नउई दो चेव सया उ सत्तरी होइ कोडीणं ।। ४०२ ।। सोलस उग्गमदोसे गिहिणो उ समुट्ठिए वियाणाहि । उपायणाएँ दोसे साहू समुट्ठिए जाण ।। ४०३ ॥ 5 णामं ठवणा दबिए भावे उपायणा मुणेयव्वा । दव्यंमि होइ तिविहा भावंमि उ सोलसपया उ ।। ४०४ ।। आसूयमाइएहि वालचिय-तुरंग बीयमाईहि । सुयआसदुमाईणं उप्पाघणया उ सच्चित्ता ।। ४०५ ।। कणगरययाइयाणं जट्ट धाउविहिया उ अच्चित्ता । JO मीसा उ सभंडाणं दुपयाइकया उ उत्पत्ती ।। ४०६ ।। भावे पसत्थ इयरो कोहाउप्पायणा उ अपसत्था । कोहाइजुया धायाइणं च नाणाइ उ पसत्था ।। ४०७ ।। धाई दूइ निमित्ते आजीव वणीमगे तिगिच्छा य । कोहे माणे माया लोभे य हवंति दस एए ॥। ४८८ ।। 15 पुव्वि-प - पच्छा-संथव विज्जा मंते य चुन्न जोगे य । उप्पायनाइ दोसा सोलसमे मूलकम्मे य ।। ४०९ ।। खीरे य मज्जणे मंडणे य कोलावणंकधाई य । एक्क्कावि य दुविहा करणे कारावणे चेव ।। ४१० ।। धारेइ धीयए वा धयंति वा तमिति तेण धाई उ । 20 जहविहवं आसि पुरा खीराई पंच धाईप्रो ।। ११ । खीराहारो रोवइ मज्भ कयासाय देहि णं पिज्जे | पच्छा व मज्भ दाही अलं व भुज्जो व एहामि ।। ४१२ ।। 2010_04 Page #327 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३०४ ] [ नियुक्तिसंग्रह: :: ( ३ ) श्रीपिण्डनिर्युक्तिः मइमं प्ररोगि दीहाउओ य होइ अविमाणिओ बालो । दुल्लभयं खु सुयमुहं पिज्जाहि अहं व से देभि ।। १३ ।। अहिगरण भद्दपंता कम्मुदय गिलाणए य उड्डाहो । चड़कारी य अवन्नो नियगो प्रन्नं च णं संके ।। १४ ।। 5 अयमपरो उ विकल्पो भिक्खायरि सडि श्रद्धिई पुच्छा । दुक्खसहाय विभासा हियं मे धाइत्तणं प्रज्ज ।। १५ ।। वयगंडयुल्लसणुयत्तणेहि तं पुच्छिउं प्रयाणंतो । तत्थ गओ तस्समक्खं भणाइ तं पासिउं बालं ।। १६॥ प्रणुट्ठियं व अणविक्खियं व इणमं कुलं तु मन्नामि । 10 पुन्नेहि जहिताए (जदिच्छाए) तरई बालेण सूएमो ।। १७ ।। थेरी दुब्बलखीरा चिमि (विवि) ढो पेल्लियमुहो प्रइथणीए । तई उ मंदखीरा कुप्परथणियाऍ सूइमुहो ।। १८ ।। जा जेण होइ वन्नेण उक्कडा गरहए य तं तेणं । गरहइ समाण तिव्वं पसत्थमियरं च दुव्वन्नं ॥ १ " 15 उव्वट्टिया पओसं छोभग उब्भामग्री य से जंतु । होज्जा मज्झवि विग्घो विसाइ इयरीवि एमेव ।। ४२० ।। एमेव सेसियावि सुयमाइसु करणकारणं सगिहे । इडीसु धाईसु य तहेव उव्वट्टियाण गमो ।। २१ ।। लोल महीऍ धूलीऍ गुडिओ व्हाणि अहवणं मज्जे । 20 जलभीरु अवलनयणो अइउप्पिलणे अ रत्तच्छो ।। २२ । अब्भंगिय संवाहिय उव्वट्टिय मज्जियं च तो बालं । उवणेइ मज्जधाई मंडणधाईऍ सुइदेहं ।। २३ ।। 2010_04 Page #328 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३) श्रीपिण्डनिर्युक्तिः ] [ ३०५ ।। उसुनाइएहि मंडेहि ताव णं अहव णं विभू सेमि । हत्थिच्चगा व पाए कया गलिच्चा व पाए वा ।। २४ ।। ढड्डरसर छुन्नमुहो मउयगिरो मउयमम्मणुल्लावो । उल्लावणगाईहिं व करेइ कारेइ वा किड्डु ।। २५ ।। 5 थुल्लीऍ विडपाओ भगकडी सुक्कडाए दुक्खं च । निम्मंस- कबड करेहि भीरुओ होइ घेप्यते ॥ २६ ॥ कोल्लइरे वत्थवो दत्तो प्राडिओ भवे सोसो । श्रवहरइ धाइपिडं अंगुलिजलणे य सादिव्वं ।। २७ ।। सग्गाम परग्गामे दुविहा दूई उ होइ नायव्वा । 10 सा वा सो वा भणई भणइ व तं छन्नवणेणं ।। २८ ।। एक्क्कावि यदुविहा पागड छन्ना य छन्न दुविहा उ । लोगुत्तरि तस्थेगा बीया पुण उभयपक्खेऽवि (सु) ।। २९ ।। भिक्खाई बच्चंते प्रप्याहणि नेइ खंतियाईणं । - साते अमुगं माया सो व पिया ते इमं भणइ ।। ४३० ।। 15 इत्तं खु गरहियं अप्पा हिउं बिइयपच्चया भणति । अविकोविया सुया ते जा आह इमं (मई) भणसु खति ॥ ३१ ॥ उभयेऽपि य पछन्ना खंत! कहिज्जाहि खंतियाऍ तुमं । तं तह संजायंति य तहेव अह तं करेज्जासि ॥ ३२ ॥ गामाण दोन्ह वेरं सेज्जायरि धूय तत्थ खंतस्स । 20 वहपरिणय खंतऽज्झत्थ (प्याह ) णं व णाए कए जुद्धं ।। ३३ ।। जामाइपुत्त पइमारणं च केण कहियंति जणवाओ ). जामाइपुत्त - पइमारएण खंतेण मे सिद्धं ॥ ३४ ॥ 2010_04 Page #329 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३०६ ] [ नियुक्तिसंग्रहः :: (३) श्रीपिण्डनियुक्तिः नियमा तिकालविसएऽवि निमित्ते छविहे भवे दोसा। सज्जं तु वट्टमाणे आउभए तत्थिमं नायं ।। ३५ ।। लाभा लाभं सुहं दुक्खं, जोवियं मरणं तहा। छविहेऽवि निमित्तेउ, दोसा होति इमे सुण ।। (प्र.) 5 आकंपिया निमित्तेण भोडणी भोइए चिरगयमि । पुव्वभणिए कहं ते आगउ ? रुटो य वडवाए ।। ३६ ।। जाई कुल गण कम्मे सिप्पे प्राजीवणा उ पंचविहा । सूयाएँ असूयाएँ व अप्पाण कहेहि एककेक्के ।। ३७ ।। जाईकुले विभासा गणो उ मल्लाइ कम्म किसिमाई । 10 तुण्णाई सिप्पऽणावज्जगं च कंमयराऽऽवज्जं ॥ ३८ ।। होमायवितहकरणे नज्जइ जह सोत्तियास पुत्तोत्ति । वसिओ वेस गुरुकुले आयरियगुणे सूएइ ।। ३६ ॥ सम्ममसम्मा किरिया अणेण ऊणाऽहिया व विवरीया । समिहामंता-हुइठाण जागकाले य घोसाई ।। ४४० ।। 15 उग्गाइकुलेसुवि एवमेव गणे मंडलप्पवेसाई । देउल-दरिसणभासा-उवणयणे दडमाईया ।। ४१ ।। कत्तरि पनोअणावेक्ख-वत्थु-बहुदित्थरेसु एमेव । कम्मेसु य सिप्पेसु य सम्ममसम्मेसु सूईयरा ॥ ४२ ।। समणे माहणि किवणे अतिही साणे य होइ पंचमए । 20 वणि जायणत्ति वणिओ पायप्पाणं वणेइति ।। ४३ ।। मयमाइवच्छगंपिव वणेइ आहारमाइलोभेणं । समणेसु माहणेसु य किविणाऽतिहिसाणभत्तेमु ॥ ४४ ।। ____ 2010_04 Page #330 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३) श्रीपिण्डनियुक्तिः ] [ ३०७ गच्छ। निग्गंथ सबक तावस गेरुय प्राजीव पंचहा समणा। तेसि परिवेसणाए लोभेण वणिज्ज को अप्पं ? ॥ ४५ ॥ भुजति चित्तकम्म-ठिया व कारुणिय दाणरुइणो वा ।। अवि कामगद्दहेसुवि न नस्सई कि पुण जईसु? ।। ४६ ।। 5 मिच्छत्त-थिरीकरणं उग्गमदोसा य तेसु वा गच्छे । चडुकारऽदिन्नदाणा पच्चत्थिग मा पुणो इंतु ॥ ४७ ।। लोयाणुग्गह-कारिसु भूमीदेवेसु बहुफलं दाणं । अवि नाम बंभबंधुसु कि पुण छक्कम्मनिरएस ? ॥४८ ।। किवणेसु दुम्मणे (ब्बले)सु य अबंधवायंक-जुगियंगेसु । 10 पूयाहिज्जे लोए दाणपडागं हरइ दितो ।। ४६ ।। पाएण देइ लोगो उवगारिसु परिचिएसुझुसिए वा । जो पुण अद्धाखिन्नं अतिहिं पूएइ तं दाणं ।। ४५० ।। अवि नाम होज्ज सुलभो गोणाईणं तणाइ आहारो। छिच्छिक्कारहयाणं न हु सुलहो होइ सुणहा (गा) ।। ५१ ।। 15 केलासभवणा एए, प्रागया गुज्झगा महि । चरंति जक्खरूवेणं, पुयाइपुया हियाऽहिया ॥५२॥ एएण मज्ज्ञ भावो दिट्ठो लोए पणामहेज्जमि । एक्केक्के पुध्वुत्ता भद्दगपंताइणो दोसा ॥५३ ।। एमेव कागमाई साणग्गहणेण सूइया होति । 20 जो वा जंमि पसत्तो वणइ तहिं पुट्टपुट्ठो वा ।। ५४ ।। दाणं न होइ अफलं पत्तमपत्तेसु सन्निजुज्जतं । इय विमणिएऽवि दोसा पसंसओ कि पुण अपत्ते? ॥ ५५ ॥ 2010_04 Page #331 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ नियुक्तिसंग्रहः :: (३) श्रीपिण्ड नियुक्तिः भणई य नाहं वेज्जो प्रहवाऽवि कहेइ अप्पणो किरियं । अहवावि विज्जयाए तिविह तिगिच्छा मुणेयव्या ।। ५६ ।। भिक्खाइ गओ रोगी कि विज्जोऽहंति पुच्छिओ भणइ । प्रत्थावत्तीएँ कया अबुहाणं बोहणा एवं ॥ ५७ ।। 5 एरिसयं चिय दुक्खं भेसज्जेण अमुगेण पउणं मे । सहसुप्पन्नं व रुयं वारेमो अट्ठमाईहिं ॥ ५८ ।। संसोधण संसमणं नियारणपरिवज्जणं च जं तत्थ । आगंतु धाउखोमे य प्रामए कुणइ किरियं तु ।। ५६ ।। अस्संजमजोगाणं पसंधणं कायघाय अयगोलो । 10 दुब्बलवग्घाहरणं अच्चुदये गिण्हणुड्डाहे ॥४६० ।। हत्थकप्प गिरिफुल्लिय रायगिहं खलु तहेव चंपा य । कडघयपुन्ने इट्टग लड्डग तह सोहकेसरए ॥ ६१ ।। विज्जातवप्पभावं रायकुले वाऽवि वल्लभतं से । नाउं ओरस्सबलं जो लगभइ (देइ भया) कोहपिंडो सो ।।६२॥ 15 अन्नेसि दिज्जमाणे जायंतो वा अलद्धिओ कुप्पे । कोहफलंमिऽवि दिट्ठ जो लब्भइ कोहपिंडो सो ।। ६३ ।। करडुय-भत्तमलद्ध अन्नहिं दाहित्थ एव वच्चंतो। थेरो भोयण तइए प्राइक्खण खामणा दाणे ।। ६४ ।। उच्छाहिओ परेण व लद्धिपसंसाहिं वा समुत्तइओ। 20 अवमाणिओ परेण य जो एसइ माणपिंडो सो ।। ६५ ।। इट्टगछगंमि परिपिडियाण उल्लाव को गुहु पगेव ।। आणिज्ज इट्टगाओ ? खुड्डो पच्चाह आणेमि ।। ६६ ।। 2010_04 Page #332 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३ ) श्रीपिण्डनिर्युक्तिः ] [ ३०९ जइवियता पज्जत्ता अगुलघयाहि न ताहि णे कज्जं । जारिसियाश्रो इच्छह ता आणेमित्ति निक्खतो ।। ६७ ।। ओहासिय पडिसिद्धो भरगइ प्रगारि अवस्सिमा मज्भं । जइ लहसि तो तं मे नासाए कुणसु मोयंति [ सा आह ] | ६८ | 5 कस्स घर पुच्छिऊणं परिसाए प्रमुख कइरो पुच्छित्तु । कि तेणsम्हे जायसु सो किविणो दाहिइ न तुज्झ ॥ ६९ ॥ दाहित्ति तेण भणिए जइ न भवसि छण्ह मेसि पुरिसाणं । अन्नयरो तो तेऽहं परिसामज्झमि पणयामि ।। ४७० ।। सेयंगुलि बगुड्डावे, किंकरे व्हायए तहा । 10 गिद्धावरंखि हद्दन्नए य पुरिसाहमा छाउ ।। ७१ ।। जायसु न एरिसोऽहं इट्टगा देहि पुष्वमइगंतुं । माला उत्तारि गुलं भोएमि दिएत्ति आरूढा ।। ७२ ।। सिश्रवणण पडिलाभण दिस्सियरी बोलमंगुली नासं । दुहेगयर पओसो श्रायविवत्ती य उड्डाओ ॥ ७३ ॥ 15 रायगिहे धम्मरुई प्रसादभूई य खुड्डओ तस्स । रायनड-गेहपविसण संभोइय मोयए लंभो ।। ७४ ।। आयरियउवज्झाए संघाडगकाण- खुज्जतद्दोसी | नडपासण पज्जत्तं निकायण दिणे दिणे दाणं ।। ७५ ।। धूयदुए संदेसो दाणसिणेह करणं रहे गहणं । 20 लिंगं मुयत्ति गुरुसिटु विवाहे उत्तमा पगई ।। ७६ ।। रायघरे य कयाई निम्महिलं नाडगं तडागत्था । ता य विहरति मत्ता उवरि गिहे दोवि पासुता ।। ७७ ।। 2010_04 Page #333 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०] [ नियुक्तिसंग्रहः :: (३) श्रीपिण्डनियुक्तिः वाघाएण नियत्तो दिस्स विचेला विराग संबोहो । इंगियनाए पुच्छा पजीवणं रट्टवालंमि ॥ ७८ ।। इक्खागवंस भरहो आयंसघरे य केवलालोओ। हाराइखिवण गमणं उवसग्ग न सो नियत्तोत्ति ।। ७९ ।। 5 तेण समं पम्वइया पंच नरसयत्ति नाडए डहणं । गेलन्न खमग पाहुण थेरा दिट्ठा य बीयं तु ।। ४८० ॥ लभंतंपि न गिण्हइ अन्नं प्रमुगंति अज्ज घेच्छामि । भद्दरसंति व काउं गिण्हइ खलु सिणिद्धाई ॥१॥ चंपा छमि घिच्छामि मोयए तेवि सीहकेसरए । , पडिसेह धम्मलाभं काऊणं सोहकेसरए । ८२ ।। सट्टावरत्तकेसर-भायणभरणं च पुच्छ पुरिमड्ड । उवओग संत-चोयण साहुत्ति विगिचणे नाणं ॥ ३ ॥ दुविहो उ संथवो खलु संबंधी-वयणसंथवो चेव । एक्केक्कोविय दुविहो पुन्धि पच्छा य नायवो ।। ८४ ।। मायपिइ पुश्वसंथव सासूसुसराइयाण पच्छा उ । गिहि संथवसंबंधं करेइ पुव्वं च पच्छा वा ॥५॥ आयवयं च परवयं नाउं संबंधए तयणुरुवं । मम माया एरिसिया ससा व धूया व नत्ताई ॥८६॥ अद्धिइ दिटिपण्हव पुच्छा कहणं ममेरिसी जणणी । थणखेवो संबंधो विहवा-सुण्हाइदाणं च ॥८७ ।। पच्छा-संथवदोसा सासू विहवादि-धूयदाणं च । भज्जा ममेरिसिच्चिय सज्जो धाउ वयभंगो वा ॥८॥ 2010_04 Page #334 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३) श्रीपिण्डनियुक्तिः ] [ ३११ मायावी चडुयारी प्रम्ह ओहावणं कुणइ एसो। निच्छुभणाई पंतो करिज्ज भद्देसु पडिबंधो ।। ८६ ।। गुणसंथवेण पुब्धि संतासंतेण जो थुणिज्जाहि । दायारमदिन्नमी सो पुस्विसंथवो हवइ ॥ ४९० ।। 5 एसो सो जस्स गुणा वियरंति प्रवारिया दसदिसासु । इहरा कहासु सुणिमो पच्चक्खं अज्ज दिट्ठोऽसि ।। ९१ ।। गुणसंथवेण पच्छा संतासंतेण जो थुणिज्जाहि । दायारं दिन्नंमी सो पच्छासंथवो होइ ।। ६२ ।। विमली-कयऽम्ह चक्खू जहत्थया(ओ) वियरिया गुणा तुझं । 10 आसि पुरा मे संका संपय निस्संकियं जायं ॥६३ ।। विज्जामंतपरूवण विज्जाए भिक्खुवासओ होइ। मंतंमि सोसवेयण तत्थ मुहँडेरण दिढतो ।। ६४ ।। परिपिडियमुल्लावो अइपंतो भिक्खुवासओ दावे । जइ इच्छह प्रणुजाणह घयगुलवत्थाणि दावेमि ।। ९५ ।। 15 गंतुं विज्जामंतण कि देमि ? घयं गुलं च वत्थाई। दिन्ने पडिसाहरणं केण हियं केण मुट्ठोमि ? ||६६ ।। पडिविज्ज-थंभणाई सो वा अन्नो व से करिज्जाहि । पावाजीवीमाई कम्मणगारी य गहणाई ॥ ७ ॥ जह जह पएसिणी जाणुगंमि पालित्तनो भमाडेइ । 20 तह तह सीसे वियणा पणस्सइ मुरुडरायस्स ।। ९८ ।। पडिमंत-थंमणाई सो वा अन्नो व से करिज्जाहि । पावाजीवियमाई कम्मणगारी भवे बीयं ।। ९९ ।। 2010_04 Page #335 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३१२ ] [ नियुक्तिसंग्रह: :: ( ३ ) श्रीपिण्डनिर्युक्तिः चुन्ने अंतद्वाणे चाणक्के पायलेवणे जोगे । मूल विवाहे दो दंडिणी उ आयारगपरिसाडे ।। ५०० ।। जे विज्जमंतदोसा ते च्चिय वसिकरणमाइचन्नहिं । एगमणेग पओसं कुज्जा पत्थारओ वावि ।। ५०१ ।। 5 सूभग दुब्भग्गकरा जोगा आहारिमा य इयरे य । प्रघसधूववासा पायपलेवाइणो इयरे ।। ५०२ ।। निइकण्हबिन्न दीवे पंचसया तावसाण निवसंति । पव्वदिवसेसु कुलवई पालेवृत्तार सक्कारे ।। ५०३ ।। जण सावगाण खिसण समियऽवखण माइठाण लेवेण । सावय पयत्तकरणं अविणय लोए चलणधोए ।। ५०४ ।। पडिला भय वच्चतः निब्बुड निइकूल मिलण समियाऽऽओ । विहिय पंचसया तावसाण पव्वज्ज साहा य ।। ५०५ ।। प्रकुमार खयं जोणी विवरीयट्ठा निवेसणं वावि, गम्मपए पायं वा जो कुव्वइ मूल कम्मं तं ॥ ( प्र० ) 15 अधिई पुच्छा श्रासन्न विवाहे भिन्नकलसाणया । I श्रायमाणपियण ओसह अक्खय जज्जीवग्रहिगरणं ।। ५०६ ।। जंघा परिजिय सड्डी प्रद्धिद्द आणिज्जए मम सवत्ती जोगो जोणुग्धाडण पडिसेह पओस उड्डाहो ।। ५०७ ।। मा ते फंसेज्ज कुलं अदिज्जमाणा सुया वयं पत्ता । 20 धम्मो य लोहियस्सा जह बिंदू तत्तिया नरया ।। ५०८ ॥ किन ठविज्जइ पुत्तो पत्तो कुलगोत्त- कित्तिसंताणो । पच्छावि य तं कजं असंगहो मा य नासिज्जा ।। ५०९ ।। 10 2010_04 Page #336 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३) श्रीपिण्डनियुक्तिः ] [ ३१३ कि अद्धिइत्ति पुच्छा सवित्तिणी गम्भिणित्ति से देवी। गब्भाहाणं तुज्झवि करोमि मा प्रद्धिई कुणसु ।। ५१० ।। जइवि सुओ मे होही तहवि कणिटोति इयरो जुवराया। देइ परिसाडणं से नाए य पोस पत्थारो ॥ ११ ।। संखडिकरणे काया कामपवित्ति च कुणइ एगत्थ । एगत्थुड्डाहाई जज्जियभोगंत रायं च ।। १२ ।। एवं तु गविट्ठस्सा उग्गम उप्पायणा-विसुद्धस्स । गहणविसोहि विसुद्धस्स होइ गहणं तु पिंडस्स ।। १३ ।। उपायणाएँ दोसे साहूउ समुट्ठिए वियाणाहि । 10 गहणेसणाइ दोसे प्रायपरसमुट्ठिए वोच्छं ।। १४ ॥ दोन्नि उ साहुसमुत्था संकिय तह भावनोऽपरिणयं च । सेसा अवि नियमा गिहिणो य समुट्ठिए जाण ।। १५ ।। नाम ठवणा दविए भावे गहणेसणा मुणेयव्वा । दवे वानरहं भावंमि य दस पया हुँति ।। १६ ।। 15 परिसडिय-पंडुपत्तं वणसंडं दट्ट अन्नहिं पेसे। जूहबई पडियरए जूहेण समं तहिं गच्छे ॥ १७ ।। सयमेवासोएउं जूहबई तं वर्ण समतेण । वियरइ तेसि पयारं चरिऊण य तो दहं गच्छे ।। १८ ।। ओयरंतं पयं दट्ट, नीहरंतं न दीसई । 20 नालेण पियह पाणीयं, नेम निक्कारणो दहो ॥ १९ ॥ संकिय मक्खिय निक्खित्त पिहिय साहरिय दायगुम्मोसे । अपरिणय लित्त छड्डिय एसणदोसा दस हवंति ॥ ५२० ।। 2010_04 Page #337 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३१४ ] [ नियुक्तिसंग्रह: :: ( ३ ) श्रीपिण्डनिर्युक्तिः संकाए चउभंगो दोसुवि गहणे य भुंजणे लग्गो । जं संकियमावतो पणवीसा चरिमए सुद्धो ॥ २१ ॥ उग्गमदोसा सोलस आहाकम्माद एसणादोसा । नव मक्खियाइ एए पणवीसा चरिमए सुद्धो ।। २२ ।। 5 छउमत्थो सुयनाणी गवेसए ( उवउत्तो) उज्जुओ पयत्तेणं । आवन्नो पणवोसं सुयनाणपमाणओ सुद्धो ।। २३ ।। ओहो ओवउत्तो सुयनाणी जहवि गिण्हइ असुद्धं । तं केवलीवि भुजइ अपमाण सुयं भवे इहरा ।। २४ ।। सुत्तस्स अप्पमाणे चरणाभावो तो य मोक्खस्स । 10 मोक्खस्सऽविय अभावे दिक्खपवित्तो निरत्था उ ।। २५ ।। किंतु (ति) हखद्धा भिक्खा दिज्जइ न य तरह पुच्छउ हिरिमं । इअ संकाए घेत्तु तं भुजइ संकिओ चेव ।। २६ ।। हियएण संकिएणं गहिआ अन्नेण सोहिया सा य । पगयं पहेणगं वा सोउं निस्संकिओ भुजे ।। २७ ।। 15 जारिसया च्चिय लद्धा खद्धाभिवखा मए अमुयगेहे । अन्नेहिवि तारिसिया बियडंत निसामए तइए ।। २८ ।। जइ संका दोसकरी एवं सुद्धपि होइ अविसुद्धं । निस्संकमेसियंति य प्रणेसणिज्जंपि निद्दोसं ॥ २६ ॥ अविसुद्ध परिणामो एगयरे अवडिओ य पक्खमि । 20 एसिपि कुणइ सि अणेसिमेसि विसुद्धो उ ।। ५३० ।। दुविहं च मक्खियं खलु सच्चित्तं चेव होइ श्रच्चितं । सच्चित्तं पुण तिविहं अचित्तं होइ दुविहं तु ॥ ३१ ॥ 2010_04 Page #338 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३)श्रीपिण्डनियुक्तिः ] [ ३१५ पुढवी आउ वणस्सइ तिविहं सच्चित्तमक्खियं होइ । अच्चित्तं पुण दुविहं गरहियमियरे य भयणा उ ।। ३२ ।। सुक्केण सरक्खेणं मक्खिय-मोल्लेण पुढविकाएण । सव्वंपि मक्खियं तं एत्तो आउंमि वोच्छामि ।। ३३ ।। पुरपच्छ कम्म ससिणिद्धदउल्ले चउरो आउभेयाओ। उक्किट्ठरसालित्तं परित्तऽणंतं महिरुहेसु ॥ ३४ ।। सेसेहि काएहि तीहिवि तेऊसमीरणतसेहिं । सच्चित्तं मीसं वा न मक्खितं अस्थि उल्लं वा ॥ ३५ ॥ सच्चित्तमक्खियंमी हत्थे मत्ते य होइ च उभंगो। 10 आइतिए पडिसेहो चरिम भंगे अणुन्नाओ ।। ३६ ।। अच्चित्तमक्खियंमि उ च उसुवि भंगेसु होइ भयरणा उ । अगरहिएण उ गहणं पडिसेहो गरहिए होइ ।। ३७ ।। संसज्जिमेहिं वज्जं अगरहिएहिपि गोर सदवेहि । महुघयतेल्लगुलेहि य मा मच्छिपिपीलियाघाप्रो ।। ३८ ।। मंसवस-सोणियासव लोए वा गरहिएहि वि वज्जेज्जा । उभप्रोऽवि गरहिएहि मुत्तुच्चारेहि छित्रापि ।। ३६ ।। सच्चित्त मीसएस दुविहं काएसु होइ निक्खित्तं । एक्केक्कं तं दुविहं अणंतर परंपरं चेव ॥ ५४० ।। पुढवीआउक्काए तेऊवाउ-वणस्स इ-तसाणं । 20 एक्केक्क दुहाऽणंतर-परंपरगणंमि सत्तविहा ।। ४१ ।। सच्चित्त पुढविकाए सचितो चेव पुढवि-निखित्तो। आऊते उवणस्सइ-समीरण-तसेसु एमेव ।। ४२ ॥ 15 में 2010_04 Page #339 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३१६ ] [ नियुक्तिसंग्रहः :: (३) श्रीपिण्डनियुक्तिः एमेव सेसयाणवि निक्खेवो होइ जीव (काय) का ( निका)एसु। एक्केवको सट्टाणे परठाणे पंच पंचेव ।। ४३ ॥ एमेव मीसएसुवि मोसाण सचेयणेसु निक्खेवो । मीसाणं मीसेसु य दोण्हंपि य होइऽचित्तेसु ।। ४४ । जत्थ उ सचित्तमीसे च उभंगो तत्थ चउसुवि अगिझं । तं तु अणंतर इयरं परित्तऽणंतं च वरणकाए ।। ४५ ।। अहव ण सचित्तमीसो उ एगओ एगो उ अच्चित्तो। एत्थं चउक्कभेओ तत्थाइतिए कहा नस्थि ॥ ४६ ।। जं पुण अचित-दव्वं निक्खिप्पइ चेयणेसु मोसेसु । 10 तहिं मग्गरणा उ इणमो अणंतरपरंपरा होइ ।। ४७ ।। प्रोगाहिमायणंतर परंपरं पिढरगाइ पुढवीए । नवणीयाइ अणंतर परंपरं नावमाईसु ।। ४८ ।। विज्झाय-मुम्मुरिगालमेव अप्पत्तपत्त-समजाले । वोक्कते (लोणे) सत्तदुर्ग जंतोलित्ते य जयणाए ॥ ४९ ॥ विज्झाउत्ति न दीसइ अग्गी दीसेइ इंधणे छूढे । आपिंगल प्रगणिकणा मुम्मुर निज्जाल इंगाले ।। ५५० ।। अप्पत्ता उ चउत्थे जाला पिढरं तु पंचमे पत्ता। छ? पुण कण्णसमा जाला समइच्छिया चरिमे ॥ ५१ ॥ पासोलित्त-कडाहे परिसाडी नत्थि तंपि य विसालं।। 20 सोऽवि य अचिरच्छूढो उच्छुरसो नाइउसिणो य ।। ५२ ।। उसिणोदगंपि घेप्पड गुडरसपरिणामियं अणच्चुसिणं । जं च अगट्ठियकन्नं घट्टियपडणंमि मा अग्गी ॥ ५३ ।। 15 2010_04. Page #340 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३) श्रीपिण्डनियुक्तिः ] [ ३१७ पासोलित्त कडाहेऽनच्चुसिणे अपरिसाडऽघट्टते । सोलस भंगविगप्पा पढमेऽणुना न सेसेसु ।। ५४ ।। पयसमदुग-प्रभासे माणं भंगाण तेसिमा रयणा । एगंतरियं लहुगुरु दुगुणा दुगुणा य वामेसु ।। ५५ ।। दुविहविराहण उसिणे छड्डण हाणी य भाणभेो य । याउक्खित्ताणंतरपरंपरा पप्पडिय वस्थी ।। ५६ ।। हरियाइ अणंतरिया परंपरं पिढरगाइसु वर्णमि । पूपाइ पिट्ठऽणंतर भरए कुउबाइसू इयरा ।। ५७ ।। सच्चित्ते अच्चित्ते मोसग पिहयंमि होइ चउभंगो। 10 प्राइतिगे पडिसेहो चरिमे भंगमि भयणा उ ।। ५८ ।। जह चेव उ निक्खत्ते संजोगा चेव होंति भंगा य । एमेव य पिहियंमिवि नाणत्तमिणं तइयभंगे ॥ ५९॥ अंगार धूवियाई अर्णतरो संतरो सरावाई । तत्थेव प्रइर वाऊ परंपरं बस्थिणा पिहिए ॥ ५६० ।। 15 अइरं फलाइपिहितं वर्णमि इयरं तु छब्ब-पिठराई। कच्छव-संचाराई अणंतराणंतरे छ? ॥६१ ।। गुरु गुरुणा गुरु लहुणा लहुयं गुरुएण दोऽवि लहुयाई। अच्चित्तणवि पिहिए चउभंगो दोसु अग्गेज्झ ।। ६२ ।। सच्चित्ते अच्चित्ते मीसा साहारणे य च उभंगो। 20 आइतिए पडिसेहो चरिमे भंगमि भयणा उ ।। ६३ ।। जह चेव उ निक्खित्ते संजोगा चेव होंति भंगा य । तह चेव उ साहरणे नाणत्तमिणं तइयभंगे ।। ६४ ।। 2010_04 Page #341 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३१८ ] [ नियुक्तिसंग्रहः :: (३) श्रीपिण्डनियुक्तिः मत्तेण जेण दाहिइ तत्थ अदिज्जंतु होज्ज असणाई । छोढ़ तयन्नहि तेणं देई अह होइ साहरणं ।। ६५ ।। भूमाइएस तं पुण साहरणं होइ छसुवि काए । जं तं दुहा अचित्तं साहरणं तत्थ चउभंगो ।। ६६ ।। 5 सुक्के सुक्कं पढमो सुक्के उल्लं तु बिइयनो भंगो। उल्ले सुक्कं तइओ उल्ले उल्लं चउत्थो उ ॥ ६७ ।। एक्केक्के च उभंगो सुक्काईएसु च उसु भगेसु । थोवे थोवं थोवे बहुँ च विवरीय दो अन्ने ।। ६८ ।। जत्थ उ थोवे थोवं सुक्के उल्लं च छुहइ तं गेज्झ (नन्भं)। 10 जइ तं तु समुक्खेउं थोवामारं दलइ अन्नं ।। ६६ ।। उक्खेवे निक्खेवे महल्लभामि लुद्ध वह डाहो । अचियत्तं वोच्छेप्रो छक्कायवहो य गुरुमत्ते ।। ५७० ।। थोवे थोवं छूढं सुक्के उल्लं तु तं तु प्राइन्न । बहुयं तु अणाइन्नं कडदोसो सोत्ति काऊणं ।। ७१ ।। 15 बाले' वुड्ढे २ भत्ते उम्मत्ते वेविरे य जरिए य । अंधिल्लए° पगरिए आरूढे पाउयाहिं च ॥ ७२ ।। १०हत्थिदुनियलबद्धे "विवज्जिए'चेव हत्थपाएहि । तेरासि' 3 गुग्विणी' ४ बालवच्छ १५ भुजंति ६ घुसुलिती॥ भज्जती'८ य दलंती१६ कंडती२० चेव तह य पीसंती । पीजंती२२ रुचंती कत्तंति२४ पमहमाणी२५ य ।। ७४ ।। छक्कायवग्गहत्था२६ समणट्ठा२७ निक्खिवित्तु ते चेव । ते चेवोगाहंती२८ २६ संघट्टताऽऽगभंती• य ॥७५ ।। 20 2010_04 Page #342 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३) श्रीपिण्डनियुक्तिः ] [ ३१६ संसरोण य दम्वेण लित्तहत्था' य लित्तमत्ता३२ य । उन्यांती33 साहारण व दिती३४ य चोरिययं३५ ।। ७६ ।। पाहुडियं च ठवंती३६ सपच्चवायाः परं च उद्दिस्स३८ । 3:आभोगमणाभोगेण४० दलंती वज्जणिज्जा ए ।। ७७ ।। एएसि दायगाणं गहणं केसिंचि होइ भइयव्वं । केसिची अग्गहणं तस्विवरीए भवे गहणं ।। ७८ ।। कब्बढिग अप्पाहण दिन्ने अन्नन्न गहण पज्जतं । खंतिय मग्गणदिन्ने उड्डाह पओस चार भडा ॥ ७६ ।। थेरो गलंतलालो कंपणहत्थो पडिज्ज वा देतो। 10 अपत्ति य अचियत्तं एगयरे वा उभयत्रो वा ॥ ५८० ।। अवयास घाय( भाण ) भेओ वमणं, असुइत्ति लोगगरिहा य उड्डाहो । एए चेव उ (पंतावणं च) मत्ते, वमणविवज्जा य उम्मत्ते ।। ८१ ।। 15 वेविय परिसाडणया पासे व छुभेम्ज भाणभेओ वा। एमेव य जरियंमिवि जरसंकमणं च उड्डाहो ।। ८२ ॥ उड्डाह कायपडणं अधे भेनो य पास छुहणं च ।। तद्दोसी संकमणं गलत-भिसभिन्न-देहे य ।। ८३ ।। पाउय-दुरूढपडणं बद्ध परियाव असुइ खिसा य । 20 करछिन्नासुइ खिसा ते च्चिय पायेऽवि पडणं च ।। ८४ ।। पाय-परोभयदोसा अभिक्ख-गहणंमि खोमण नपुसे । लोगदुगुछा संका एरिसया नूणमेएऽवि ॥८५ ।। 2010_04 Page #343 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३२० । [ नियुक्तिसंग्रहः :: (३) श्रीपिण्डनियुक्तिः गुन्विणि गम्भे संघट्टणा उ उटुंतुवेसमाणीए । बालाई मंसुडग मज्जाराई विराहेज्जा ॥८६ ।। भुजंती प्रायमणे उदगं छोट्टो य लोगगरिहा य । धुसुलंती संसत्ते करंमि लित्ते भवे रसगा ।। ८७ ।। दगबीए संघट्टण पीसणकंडदल भज्जणे डहणं । पिजंत रुचणाई दिन्ने लिते करे उदगं ॥८८ ।। लोणंदगग्रगणि वत्थी फलाइ मच्छाइ सजिय हत्थंमि । पाएणोगाहणया संघट्टण से सकाएणं ।। ८९ ।। खणमाणी प्रारभए मज्जइ धोयइ व सिंचए किचि । छेयविसारणमाई छिदइ छ? फुरुफुरुते ।। ५९० ॥ छक्काय-वग्गहत्था केई कोलाइ कन्नलइयाई । सिद्धत्थग पुप्फाणि य सिरंमि दिनाई बज्जति ।। ६१ ।। अन्ने भणंति दससुवि एसणदोसेस नस्थि तग्गहणं । तेण न वज्जं भन्नइ नणु गहणं दायगग्गहणा ।। ६२ ।। 15 संसज्जिमम्मि देसे संसज्जिम-दवलित कर मत्ता। संचारो ओयत्तण उविखप्पतेऽवि ते चेव ॥ ९३ ।। साधारणं बहूणं तत्थ उ दोसा जहेव अणिसिट्ठ । चोरियए गहणाई भयए सुण्हाइ वा दंते ।। ६४ ।। पाहुडि ठवियगदोसा तिरिउड्ढमहे तिहा अवायाप्रो । 20 धम्मियमाई ठवियं परस्स परसंतियं वावि ।।९५ ।। अणुकंपा पडिणीयट्ठया व ते कुणइ । जाणमाणोऽवि उ असढो अयाणंतो ॥९६ ।। 2010_04 Page #344 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३) श्रीपिण्डनियुक्तिः ] [ ३२१ 10 भिक्खामित्त अवियालणा उ बालेण दिज्जमाणंपि । संदि? वा गहणं अइबहुय वियालणेऽणुन्ना ॥ ७ ॥ थेर पहु थरथरते धरिए अन्नेण दढसरीरे वा। अव्वत्त-मत्तसड्ढे अधिभले वा असागरिए ।। ६८ ।। सुइभद्दग-दित्ताई दढग्गहे वेविए जरंमि सिवे । अन्नधरियं तु सड्ढो देयंधोऽन्नेण वा धरिए ।। ६६ ।। मंडल-पसूति-कुट्ठीऽसागरिए पाउयागए अयले । कमबद्धे सवियारे इयरे विट्ठ असागरिए ।। ६०० ।। पंडग अप्पडिसेवी वेला थणजीवि इयर सम्वंपि । उक्खित्त-मणावाए न किचि लग्गं ठवंतीए ।। ६०१ ।। पीसंती निप्पि४ फासु वा घुसुलणे असंसत्तं । कत्तणि असंखचुम्नं चुन्नं वा जा प्रचोक्खलिणी ॥ ६०२ ।। उव्वदृणिऽसंसत्तेण वावि अट्ठील्लए न घट्ट इ । पिंजण-पमद्दणेसु य पच्छाकम्मं जहा नस्थि ।। ६०३ ।। सेसेसु य पडिवक्खो न संभवइ कायगहणमाईसु। पडिवक्खस्स अभावे नियमा उ भवे तयग्गहणं ।। ६०४ ॥ सच्चित्ते अच्चित्ते मीसग उम्मीसगंसि च उभंगो। आइतिए पडिसेहो चरिमे भंगमि भयणा उ ॥ ६०५ ॥ जह चेव य संजोगा कायाणं हेटप्रो य साहरणे । 20 तह चेव य उम्मीसे होइ विसेसो इमो तत्थ ।। ६०६ ।। दायवमदायन्वं च दोऽवि दवाई देइ. मीसेउं । ओयणकुसुणाईणं साहरण तयन्नहिं छोढुं ॥६०७ ।। उमगा। 2010_04 Page #345 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३२२ ] [ नियुक्तिसंग्रहः :: (३) श्रीपिण्डनियुक्तिः तंपि य सुक्के सुक्कं भंगा चत्तारि जह उ साहरणे। अप्पबहुएऽवि चउरो तहेव आइन्नऽणाइन्ने ।। ६०८ ।। अपरिणयंपि य दुविहं दव्वे भावे य दुविहमेक्केक्कं । दध्वंमि होइ छक्कं भावंमि य होइ सझिलगा ।। ६०६ ।। 5 जीवत्तमि अविगए अपरिणयं परिणयं गए जीवे । दिढतो दुद्धदही इय अपरिणय परिणयं तं च ।। ६१० ।। दुगमाई सामन्ने जइ परिणमई उ तत्थ एगस्स।.. देमित्ति न सेसाणं अपरिणयं भावओ एयं ।। ११ ।। एगेण वावि एसि मणमि परिणामियं न इयरेणं । 10 तंपि हु होइ अगिज्झ सज्झिलगा सामि साहू वा ।। १२ ।। घेत्तव्व-मलेवकडं लेवकडे मा हु पच्छ कम्माई। न य रसगेहिपसंगो इन वृत्ते चोयगो भणइ ॥ १३ ।। जइ पच्छकम्मदोसा हवंति मा चेव भुजऊ सययं । तवनियम-संजमाणं चोयग ! हाणी खमंतस्स ।। १४ ।। 15 लित्तांति भाणिऊणं छम्मासा हायए चउत्थं तु । आयंबिलस्स गहणं असंथरे अप्पलेवं तु ।। १५ । प्रायंबिल-पारणए छम्मास निरंतरं तु खविऊणं । जइ न तरइ छम्मासे एगदिणूणं तओ कुणउ ।। १६ ।। एवं एक्केक्कदिणं आयंबिलपारणं खवेऊणं । 20 दिवसे दिवसे गिण्हउ आयंबिलमेव निल्लेवं ॥ १७ ॥ जइ से न जोगहाणी संपइ एसे व होइ तो खमओ। खमणतरेण आयंबिलं तु निययं तवं कुणइ ।। १८ ।। 2010_04 Page #346 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३) श्रीपिण्डनियुक्तिः ] [ ३२३ हेट्ठावणि कोसलगा सोवीरग कूरभोईणो मणुया । जइ तेऽवि जति तहा कि नाम जई न जाविति ? ।। १६ ।। तिय सीयं समणाणं तिय उण्ह गिहोण तेणऽणुन्नायं । तक्काईणं गहणं कट्टरमाईसु भइयव्वं ।। ६२० ।। पाहार उहि सेज्जा तिण्णिवि उपहा गिहीण सीएऽवि । तेण उ जीरइ तेसि दुहओ उसिणेण आहारो ।। २१ ।। एयाई चिय तिन्निवि जईण सीयाई होंति गिम्हेवि। तेणुवहम्मइ अग्गी तओ य दोसा अजीराई ॥ २२ ॥ ओयण मंडग सत्तुग कुम्भासा रायमास कल वल्ला । 10 तूयरि मसूर मुग्गा मासा य अलेवडा सुक्का ।। २३ ।। उभिज्ज पिज्ज वंगू तक्कोल्लण-सूवजि-कढियाई। एए उ अप्पलेवा पच्छाकम्मं तहिं भइयं ।। २४ ।। खीर दहि जाउ कट्टर तेल्ल घयं फाणियं सपिंडरसं । इच्चाई बहुलेवं. पच्छाकम्मं तहिं नियमा ॥ २५ ।। 15 संस? यर हत्थो मत्तोऽविय दव्व सावसे सियरं। एएसु अट्ठ भंगा नियमा गहणं तु ओएसु ॥ २६ ।। सच्चित्ते अच्चित्ते मीसग तह छड्डणे य चउभंगे। चउभंगो पडिसेहो गहणे आणाइणो दोसा ।। २७ ।। उसिणस्स छड्डणे देतओ व डझेज्ज कायदाहो वा । 20 सीयपडणंमि काया पडिए महुबिंदु-माहरणं ॥ २८ ।। णामं ठवणा दविए भावे घासेसणा मुणेयन्वा । दव्वे मच्छाहरणं भावंमि य होइ पंचविहा ॥ २९ ॥ 2010_04 Page #347 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३२४ ] [ नियुक्तिसंग्रह: : : ( ३ ) श्रीपिण्डनिर्युक्तिः चरियं व कल्पियं वा श्राहरणं दुविहमेव नायव्वं । अत्थस्स साहणट्ठा इंधणमिव ओयणट्टाए ।। ६३० ।। अह मंसंमि पहीणे भायंतं मच्छियं भणइ मच्छो । कि भायसि तं एवं ? सुण ताव जहा अहिरिओऽसि ।। ३१ । 5 तिबलाग- मुहम्मुषको तिक्खुत्तो वलयामुहे । तिसत्तक्खुत्तो जालेणं, सइ छिन्नोदए दहे ।। ३२ ।। एवारिस ममं सत्तं, सढं घट्टिय घट्टणं । इच्छसि गलेग घेत्तु, अहो ते श्रहिरीयया ।। ३३ ।। बायाली से सण-संकडंमि गहणंमि जीव ! न हु छलिओ । 10 इव्हि जह न छलिज्जसि भुंजतो रागदोसेहिं ।। ३४ ।। घासेसणा उ भावे होइ पसत्था तहेव प्रपसत्था । अपसत्था पंचविहा तव्विवरीया पसत्था उ ।। ३५ ।। दव्वे भावे संजोअरगा उ दव्बे दुहा उ बहिअंतो । भिक्खं चिय हिंडतो संजोयंतंमि बाहिरिया ।। ३६ ।। 15 खीरदहि- सूवकट्टरलं मे गुडसप्पि-वडग वालुंके । अंतो उ तिहा पाए लंबणं वयणे विभासा उ ।। ३७ ।। संयोयणाए दोसो जो संजोएइ भत्तपाणं तु । दब्वाई रसहेउं वाघाश्रो तस्सिमो होइ ।। ३८ ।। संजोयणा उ भावे संजोएऊण ताणि दव्वाई | 20 संजोयइ कम्मेणं कम्मण भवं तओ दुक्खं ।। ३९ ।। पत्तेय पउरलंभे भुत्तुव्वरिए य सेसग- मरणट्टा | दिट्ठो संजोगो खलु अह क्कमो तस्सिमो होइ ।। ६४० ।। 2010_04 Page #348 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३) श्रीपिण्डनियुक्तिः ] | [ ३२५ रसहेउं पडिसिद्धो संयोगो कप्पए गिलाणट्ठा । जस्स व प्रभत्तछंदो सुहोचिओऽभाविओ जो य ॥४१ ।। बत्तीसं किर कवला पाहारो कुच्छिपूरओ भणिओ। पुरिसस्स महिलियाए अट्ठावीसं भवे कवला ॥ ४२ ।। 5 एत्तो किणाइ होणं अलु अद्धद्धगं च प्राहारं । साहुस्स बिति धीरा जायामायं च प्रोमं च ।। ४३ ॥ पगामं च निगामं च, जो पनीयं भत्तपारणमाहरे । - अइबहुयं अइबहुसो, पमाणदोसो मुणेयब्यो ।। ४४ ।। बत्तीसाइ परेणं पगाम निच्चं तमेव उ निकामं । 10 जं पुण गलंतनेहं पणीयमिति तं बुहा बेंति ॥ ४५ ॥ अइबहुयं अइबहुसो अइप्पमाणेण भोयणं भोत्तु । हाएज्ज व वामिज्ज व मारिज व तं अजीरंतं ।। ४६ ।। बहुयातीयमइबहुँ अइबहुसो तिन्नि तिन्नि व परेणं । तं चिय अइप्पमाणं भुजइ जं वा प्रतिप्पंतो ॥४७ ।। हियाहारा मियाहारा, अप्पाहारा य जे नरा। न ते विज्जा तिगिच्छंति, अप्पाणं ते तिगिच्छगा ॥ ४८ ।। तेल्लदहि-समाप्रोगा अहिरो खीरदहि-कंचियाणं च ।। पत्थं पुण रोगहरं न य हेऊ होइ रोगस्स ।। ४९ ।। अद्धमसणस्स सव्वंजणस्स कुज्जा दवस्स दो भागे। 20 वाऊ-पवियार-णट्टा छब्भायं ऊणयं कुज्जा ।। ६५० ।। सिमो उसिणो साहारणो य कालो तिहा मुणयन्वो । साहारणमि काले तत्थाहारे इमा मत्ता ।। ५१ ।। 13 2010_04 Page #349 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३२६ ] [ नियुक्तिसंग्रह: :: ( ३ ) श्रीपिण्डनिर्युक्तिः सीए दवस्स एगो भत्ते चत्तारि श्रहव दो पाणे । उसिणे दवस्स दोन्नि उ तिम्नि व सेसा उ भत्तस्स ।। ५२ ।। एगो दवस्स भागो प्रवट्ठितो भोयणस्स दो भागा । वति व हायंति व दो दो भागा उ एक्केवके ।। ५३ ।। एत्थ उ तइय चउत्था दोण्णि य अणवट्टिया भवे भागा । पंचमछट्टो पढमो विइओऽवि अवट्टिया भागा तं होइ सइंगालं जं श्राहारेद्द मुच्छिओ संतो । तं पुण होइ सधूमं जं आहारेइ निदंतो ।। ५५ ।। अंगारत्तमपत्तं जलमाणं इंधणं सधूमं तु । ।। ५४ ।। 10 श्रंगारति पवुच्चइ तं चिय दड्ढं गए धूमे ।। ५६ । रागग्गि-संपत्तिो भुजंतो फासूर्यपि श्राहारं । ।। ५७ ।। निद्दड्ढंगाल- निभं करेइ चरणिधणं खिष्पं दोसग्गीवि जलतो प्रप्पत्तिय- धूम धूमियं चरणं । अंगार- मित्तसरिसं जा न हवइ निद्दही ताव ।। ५८ ।। 13 रागेण सइंगालं दोसेण सधूमगं मुणेयत्वं । छायालीसं दोसा बोद्धव्वा भोयणविहीए ।। ५६ ।। श्राहारंति तवस्सी विगइंगालं च विगयधूमं च । भाणज्भायण- निमित्तं एसवएसो पवयणस्स ।। ६६० ।। छह कारणेहि साधू आयारितोऽवि आयरइ धम्मं । 20 छह चैव कारणेहि णिज्जूर्हितोऽवि आयर ।। ६१ ।। वेयण' वेयावच्चे' इरियट्टाएउ य संजमट्टाए तह पाणवत्तियाएर छट्ठ पुण धर्माचिताए । ।। ६२ ।। 2010_04 ४ Page #350 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३) श्रीपिण्डनियुक्तिः ] [ ३२७ नस्थि छुहाए सरिसा वियणा भुजेज्ज तप्पसमणट्ठा । छानो वेयावच्चं ण तरइ काउं अओ भुजे ॥ ६३ ।। इरिग्रं नऽवि सोहेई पेहाईनं च संजमं काउं । थामो वा परिहायइ गुणऽणुप्पेहासु अ असत्तो ।। ६४ ।। अहव ण कुज्जाहारं, छहिं ठाणेहिं संजए । पच्छा पच्छिम-कालंमि, काउं अप्पक्खमं खमं ।। ६५ ।। प्रायंके' उवसग्गे, तितिक्खया बंभचेर-गुत्तीसु । पाणिदया तवहेउ५, सरीरवोच्छेयण-ट्टाए । ६६ ।। आयंको जरमाई रायासन्नायगाइ उवसग्गो। 10 बंभवयपालणट्टा पाणिदया वासहियाई ॥ ६७ ।। तवहेउ चउत्थाई जाव उ छम्मासिओ तवो होइ। छ? सरीर-वोच्छेयणट्ठया होणाहारो ॥ ६८ ॥ सोलस उग्गमदोसा सोलस उपायणाए दोसा उ। दस एसरणाएँ दोसा संजोयणमाइ पंचेव ।। ६६ ।। एसो आहार-विही जह भणिओ सव्वभाव-दंसीहिं । धम्मावस्सग-जोगा जेण न हायंति तं कुज्जा ।। ६७० ।। जा जयमाणस्स भवे विराहणा. सुत्तविहिसमग्गस्स । सा होइ निज्जरफला प्रज्झत्थ-विसोहि जुत्तस्स ।। ६७१ ।। ॥ इति श्रीपिण्डनियुक्तिः समाप्ता ॥ ३ ॥ (ग्रन्थाग्रं ८३५) 15 20 2010_04 Page #351 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ अहम् ॥ पू. मुनिगणपति श्री हर्षविजयगुरुभ्यो नमः श्रुतकेवलि श्रीभद्रबाहुस्वामिविरचिता ॥४॥ श्रीदशवैकालिक-सूत्र-नियुक्तिः ॥ 5 सिद्धिगइमुवगयाणं कम्मविसुद्धाण सम्वसिद्धाणं । नमिऊणं दसकालियणिज्जुत्ति कित्तइस्सामि ॥ १ ॥ आइमज्झवसाणे काउं मंगलपरिग्गहं विहिणा । नामाइमंगलंपिय चउन्विहं पनवेऊणं ॥२॥ सुयनाणे अणुओगेणाहिगयं सो चउविहो होइ । 10 चरणकरणाणुप्रोगे धम्मे काले (गणिए) य दविए य ।। ३ ।। अपुहत्तपुहुत्ताई निद्दिसिउं एस्थ होइ अहिगारो। चरणकरणाणुओगेण तस्स दारा इमे हुंति ॥४॥ निक्खेवेगट्ठनिरुत्तविही पवित्ती य केण वा कस्स ? । तद्दारमेयलक्खण तरिहपरिसा य सुत्तत्थो ।। ५ ।। एयाई परूवेउं कप्पे वष्णियगुणेण गुरुणा उ । अणुओगो दसवेयालियस्स विहिणा कहेयव्यो ।। ६ ।। दसकालियंति नामं संखाए कालओ य निद्देसो । दसकालियसुअखंधं अज्झयणुद्देस निविखविउं ।७।। णामं ठवणा दविए माउयपयसंगहेक्कए चेव । 20 पज्जवभावे य तहा सत्तेए एकगा होति ।।८।। 15 2010_04 Page #352 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४) श्रीदशवैकालिकनियुक्तिः ] [ ३२९ जामं ठवणा दविए खित्ते काले तहेव भावे प्र। एसो खलु निक्खेवो दसगस्स उ छविहो होइ ।।६।। बाला किड्डा मंदा बला य पन्ना य हायणि पवंचा। पन्मार मम्मुही सायणी य दसमा उ कालदसा ।।१०।। दवे अद्ध प्रहाउअ उवक्कमे देसकालकाले य । तह य पमाणे वण्णे भावे पगयं तु भावेणं ॥११ ।। सामाइयअणुकमनो वण्णेउं विगयपोरिसीए ऊ । निज्जूढं फिर सेज्जंभवेण दसकालियं तेणं ।। १२ ।। जेण व जं व पडुच्चा जत्तो जावंति जह य ते ठविया । 10 सो तं च तओ ताणि य तहा य कमसो कहेयव्वं ।। १३ ।। सेज्जंभवं गणधरं जिणपडिमादसणेण पडिबुद्धं । मणगपिअरं दसकालियस्स निज्जूहगं वंदे ।। १४ ।। दारं ।। मणगं पडुच्च सेज्जमवेण निजहिया दसज्झयणा । वेयालियाइ ठविया तम्हा दसकालियं णामं ।। १५ ।। द्वारं ।। 15 प्रायप्पवायपुवा निज्जूढा होइ धम्मपन्नत्ती । कम्मप्पवायपुवा पिंडस्स उ एसणा तिविहा ।। १६ ।। सच्चप्पवायपुव्वा निज्जूढा होइ वक्कसुद्धी उ । प्रवसेसा निज्जूढा नवमस्स उ तइयवत्थूरो ।। १७ ।। बीनोऽवि प्रप्राएसो गणिपिडगाग्रो दुवालसंगाओ। 20 एनं किर णिज्जूढं मणगस्स अणुग्गहाए ॥ १८ ।। दुमपुफियाइया खलु दस अज्झयणा सभिक्खुयं जाव । अहिगारेवि य एत्तो वोच्छं पत्तेयमेक्केक्के ।। १६ ।। दारं ।। 2010_04 Page #353 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३३० ] [नियुक्तिसंग्रहः :: (४) श्रीदशवैकालिकनियुक्तिः पढमे धम्मपसंसा सो य इहेव जिणसासणम्मित्ति । बिइए धिइए सक्का काउं जे एस धम्मोत्ति ।। २० ।। तइए पायारकहा उ खुड्डिया आयसंजमोवाओ। तह जीवसंजमोऽवि य होइ चउत्थंमि मज्झयणे ।। २१ ।। 5 भिक्खविसोही तवसंजमस्स गुणकारिया उ पंचमए । छ8 आयारकहा महई जोग्गा महयणस्स ॥ २२ ।। वयणविभत्ती पुण सत्तमम्मि पणिहाणमट्ठमे मणियं । गवमे विणओ दसमे समाणियं एस भिक्खुत्ति ।। २३ ॥ दो अजायणा चूलिय विसीययंते थिरीकरणमेगं । 10 बिइए विवित्तचरिया असोयणगुणाइरेगफला ॥ २४ ।। दसकालिअस्स एसो पिंडत्थो वण्णिमो समासेणं । एत्तो एक्केक्कं पुण अज्झयणं कित्तइस्सामि ॥२५ ।। ॥ १॥ प्रथमाध्ययन-नियुक्तिः॥ पढमज्झयणं दुमपुष्फियति चत्तारि तस्स दाराई। 15 घण्णेउवक्कमाई धम्मपसंसाइ अहिगारो ॥ २६ ॥ ओहो जं सामन्नं सुआभिहाणं चउविहं तं च । प्रज्झयणं अज्झीणं आय ज्झवणा य पत्तेनं ।। २७ ।। नामाइ चउम्भेयं वण्णेऊणं सुआणुसारेणं । दुमपुस्फिअ आप्रोज्जा चउसुपि कमेण भावेसु।। २८ ॥ 20 अज्झप्पस्साणयणं कम्माणं अवचओ उवचिआणं । अणुवचओ अनवाणं तम्हा अज्झयरणमिच्छति ।। २९ ।। 2010_04 Page #354 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४) श्रीदशवेकालिकनियुक्तिः ] [ ३३१ अहिगम्मति व अत्था इमेण अहिग च नयणमिच्छति । अहिगं च साहू गच्छइ तम्हा अज्झयणमिच्छति ।। ३० ।। जह दीवा दीवसयं पइप्पई सो अ दिप्पई दीवो। दीवसमा आयरिया दिपंति परं च दीवंति ॥ ३१ ॥ 5 नाणस्स दंसणस्तवि चरणस्स व जेरण आगमो होई। सो होइ भावआओ आओ लाहो ति निद्दिवो ।। ३२ ॥ प्रविहं कम्मरयं पोराणं जं खवेइ जोगेहि । एयं भावज्झयगं नेप्रव्वं आणुपुवीए ।। ३३ ।। णामदुमो ठवणदुमो दव्वदुमो चेव होइ भावदुमो। 10 एमेव य पुप्फस्स वि च उठिवही होइ निक्खेवो ॥ ३४ ॥ दुमा य पायवा रुक्खा, अगमा विडिमा तरू । कुहा महोरहा बच्छा, रोवगा रुजगावि प्र ।। ३५ ।। पुप्फारिण प्र कुसुमाणि अ पुल्लाणि तहेव होंति पसवाणि । सुमणारिग अ सुहमाणि अ पुप्फाणं होंति एगट्ठा ।। ३६ ।। 15 दुमपुफिप्राय माहारएसणा गोअरे तया उंछो। मेस जलूगा सप्पे वणऽवखइसुगोलपुत्तुदए ।। ३७ ।। कत्थइ पुच्छइ सोसो कहिंचऽपुट्ठा कहंति आयरिया । सोसाणं तु हियट्ठा विपुलतरागं तु पुच्छाए ।। ३८ ।। णामंठवणधम्मो दम्वधम्मो म भावधम्मो प्र। 20 एएसि नाणसं वुच्छामि प्रहाणुपुवीए ॥ ३९ ।। दव्वं च अस्थिकायप्पयारधम्मो प्रभावधम्मो अ । दवास पज्जवा जे ते धम्मा तस्स दध्वस्स ।। ४० ।। 2010_04 Page #355 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ निर्युक्तिसंग्रह: : ( ४ ) श्रीदशवैकालिक नियुक्तिः धम्मत्थिकायधम्मो पयारधम्मो य विसयधम्मो य । लोइयकुप्पावयणिअ लोगुत्तर लोगऽणेगविहो ।। ४१ ।। गम्मपसुदेसरज्जे पुरवरगामगणगोट्टिराईण । सावज्जो उ कृतित्थियधम्मो न जिणेहि उपसत्थो ।। ४२ ।। 5 दुविहो लोगुत्तरिओ सुप्रधम्मो खलु चरित्तधम्मो अ । सुप्रधम्मो सज्झाओ चरित्तधम्मो समणधम्मो ॥। ४३ ।। दव्वे भावेऽवि अ मंगलाई दव्वम्मि पुण्णकलसाई । धम्मो उ भावमंगलमेत्तो सिद्धित्ति काऊ ।। ४४ ।। हिंसाए पडिक्खो होइ अहिंसा चउव्विहा सा उ । 10 दव्वे भावे अ तहा अहिंसजीवाइवा ओत्ति ।। ४५ । पुढविदगश्रगणिमारुय-वणस्सईबितिच उपणिदिज्जीवे । पेहोपेहपमज्जण-परिट्टिवणमणोवई काए ॥ ४६ ॥ प्रणसणमूणोअरिआ वित्तीसंखेवणं रसच्चाओ । कायकिलेसो संलीणया य बज्झो तवो होइ ।। ४७ ।। 15 पायच्छित्तं विणओ वेआवच्चं तहेव सज्झाओ । ३३२ ] 20 झाणं उस्सग्गोऽवि अ अभितरम्रो तवो होइ ॥ ४८ ॥ जिरणदयणं सिद्धं चेव भण्णए कत्थई उदाहरणं । आसज्ज उ सोयारं हेऊऽवि कहिंचि भण्णेज्जा ।। ४६ । कत्थई पंचावयवं दसहा वा सव्वहा न पडिसिद्धं । न य पुण सव्वं भण्णइ हंदी सविआरमक्वायं ।। ५० ।। तत्थाहरणं दुविहं चउध्विहं होइ एक्कमेवकं तु । हेऊ चsforहो खलु तेण उ साहिज्जए अत्थो ॥ ५१ ॥ 2010_04 Page #356 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४) श्रीदशवैकालिकनियुक्तिः ) [ ३३३ नायमुदाहरणंतिम दिढतोवम निदरिसणं तय । एगटुं तं दुविहं चन्विहं चेव नायव्वं ॥५२ ।। चरिअं च कप्पियं वा दुविहं तत्तो चउबिहेक्केक्कं । आहरणे तसे तद्दोसे चेद्वन्नासे ।। ५३ ।। चउहा खलु आहरणं होइ अवाप्रो उवाय ठवणा य । तहय पडुप्पन्नविणासमेव पढमं चउविगप्पं ॥५४ ।। दव्वावाए दोनि उ वाणिप्रगा भायरो धणनिमित्तं । वहपरिणएक्कमेक्कं पहंमि मच्छेण निवेओ ।। ५५ ।। खेत्तंमि प्रवक्कमणं दसारवग्गस्स होइ अवरेणं । 10 दीवायणो अ काले भावे मंडुक्किआखवप्रो ।। ५६ ।। सिक्खगप्रसिक्खगाणं संवेगथिरट्टयाइ दोण्हंपि । दवाईया एवं दंसिज्जते अवाया उ ॥५७ ।। दवि कारणगहिनं विगिचिअश्वमसिवाइखेत्तं च । बारसहिं एस्सकालो कोहाइविवेग भावम्मि ॥५८ ।। 15 दव्वादिएहि निच्दो एगतेणेव जेसि अप्पा उ। होइ प्रभावो तेसि सुहदुहसंसारमोक्खाणं ॥ ५६ ।। सुहदुक्खसंपओगो न विज्जई निच्चवायपक्खंमि । एगंतुच्छेअंमि अ सुहदुक्खविगप्पणमजुत्तं ॥ ६० ॥ एमेव चउविगप्पो होइ उवाप्रोऽवि तत्थ दव्वंमि । 20 धालुवाओ पढमो नंगलकुलिएहिँ खेत्तं तु ।। ६१ ।। कालो अ नालियाइहिं होइ भावंमि पंडिओ अभओ । चोरस्स कए नट्टि बड्डकुमारि परिकहेइ ।। ६२ ।। 2010_04 Page #357 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३३४ ] [ नियुक्तिसंग्रहः :: (४) श्रीदशवैकालिकनियुक्तिः एवं तु इहं आया पच्चक्खं अणुवलम्भमाणोऽवि । सुहदुक्खमाइएहिं गिज्झइ हेऊहिं प्रस्थित्ति ।। ६३ ।। जह वऽस्साओ हत्थि गामा नगरं तु पाउसा सरयं । मोदइयाउ उवसमं संकंती देवदत्तस्स ॥६४ ॥ 5 एवं सउ जीवस्सवि दवाईसंकमं पडुच्चा उ । अस्थित्तं साहिज्जइ पच्चक्खेणं परोक्खपि ।। ६५ ।। एवं सउ जीवस्सवि दव्वाईसंकम पडुच्चा उ । परिणामो साहिज्जइ पच्चक्खेणं परोक्खेवि ॥ ६६ ।। ठवणाकम्मं एक्कं. दिलैंतो तत्थ पोंडरीअं तु । 10 अहवाऽवि सनढक्कर्णाहंगुसिवकयं उदाहरणं ।। ६७ ।। सवभिचारं हेतुं सहसा बोत्तं तमेव अन्नेहि । उवहइ सप्पसरं सामत्थं चऽप्पणो नाउं ।। ६८ ।। होति पडुप्पन्नविणासणमि गंधविया उदाहरणं । सोसोऽवि कत्थवि जइ अज्झोवज्जिज्ज तो गुरुणा ।। ६६ ।। 15 वारेयध्वु उवाएण जइवा वाऊलिओ वदेज्जाहि । सम्वेऽवि नस्थि भावा किं पुण जीवो स वोत्तम्वो ।। ७० ॥ जं भणसि नत्थि भावा वयण मिणं अस्थि नस्थि ? जइ अस्थि । एव पइन्नाहाणी असओ णु निसेहए को णु! ।। ७१ ।। णो य विवक्खापुवो सद्दोऽजीवुब्भवोत्ति न य सावि । 20 जमजीवस्स उ सिद्धो पडिसेहधणीओ तो जीवो ॥७२॥ पाहरणं तद्देसे चउहा अणुसट्ठि तह उवालंभो। पुच्छा निस्सावयणं होइ सुभद्दाऽणुसट्ठीए ॥ ७३ ॥ 2010_04 Page #358 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४) श्रीदशवैकालिकनिर्युक्तिः ] [ ३३५ साहवकारपुरोगं जह सा अनुसासिया पुरजणेणं । वेयावच्चाईसु वि एव जयंते णुवोहेज्जा ॥ ७४ ॥ जेसिपि अस्थि आया वत्तव्या तेऽवि अम्हवि स श्रत्थि । किंतु अकत्ता न भवद्द वेययइ जेण सुहदुक्खं ।। ७५ ।। 5 उवलम्भम्मि मिगावइ नाहियवाईवि एव वत्तव्यो । नत्थिति कुविप्राणं प्रायाऽभावे सह अजुतं ।। ७६ ।। प्रत्थित्ति जा विक्का अहवा नत्थित्ति जं कुविप्राणं । अच्चताभावे पोग्गलस्स एवं चिअ न जुरां ।। ७७ ।। पुच्छाएकोणिओ खलु निस्सावयणंमि गोयमस्तामी । 10 नाहियवाइं पुच्छे जीवत्थितं प्रणिच्छतं ॥ ७८ ॥ hiति नत्थि आया जेण परोक्लोत्ति तव कुविनाणं । होइ परोषखं तम्हा नत्थित्ति निसेहए को णु ? ।। ७६ ।। अनावरसप्रो नाहियवाई जेसिँ नत्थि जीवो उ । दाणाइफलं तेसि न विज्जइ चउह तद्दोसं ॥ ८० ॥ 15 पढमं अहम्मजुरां पडिलोमं अत्तणो उवन्नासं । दुरुवणियं तु चउत्थं अहम्मजुत्तंमि नलदामो ।। ८१ ।। पडिलोमे जह प्रभग्रो पज्जोयं हरद्द अवहिओ संतो गोविदवायगोsविय जह परपक्खं नियत्तेइ ॥ ८२ ॥ अत्तउवन्नामि य तलागभेयंमि पिंगलो थवई । 20 अणिमिसगिण्हण भिक्खुग दुरुबणीए उदाहरणं ।। ८३ ।। चत्तारि उबन्ना से तव्वत्थुग अन्नवत्थुगे चेव । पडिणिभए हेउम्मिय होंति इणमो उदाहरणाः ।। ८४ ।। 2010_04 Page #359 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३३६ ] [ नियुक्ति संग्रहः :: (४) श्रीदशवैकालिक नियुक्तिः तव्वत्थुयंमि पुरिसो सव्वं भमिऊण साहइ अपुव्वं । तयअन्नवत्थुगंमिवि अन्नत्ते होइ एगत्तं ।। ८५ ॥ तुज्झ पिया मह पिउणो धारेइ अए। णयं पडिनिभंमि । किं नु जवा किज्जते ? जेण मुहाए न लभंति ॥ ८६ ।। 5 अहवावि इमो हेऊ विन्नेओ तस्थिमो चउविअप्पो । (हेउत्ति दारमहुणा, चउम्विहो सो उ होइ नायव्वो)। जावग थावग वंसग लूसग हेऊ चउत्थो उ ।। ८७ ।। उब्भामिगा य महिला जावगहेउमि उटलिडाई । लोगस्स मज्झजाणण थावगहेऊ उदाहरणं ।। ८८ ।। 10 सा सगडतित्तिरी वंसगंमि हेउम्मि होइ नायव्वा । त उसगवंसग लूसगहेउम्मि य मोयो य पुणो ।। ८६ ।। धम्मो गुणा अहिंसाइया उ ते परममंगल पइन्ना । देवावि लोगपुज्जा पणमंति सुधम्ममिइ हेऊ ।। ९० ।। दिलैंतो अरहंता अणगारा य बहवो उ जिणसीसा । वत्तणुवत्ते नज्जइ जं नरवइणोऽवि पणमंति ।। ९१ ।। उवसंहारो देवा जह तह रायावि पणमइ सुधम्म । तम्हा धम्मो मंगलमुक्किमिइ अ निगमणं । ९२ ।। बियपइन्ना जिणसासणंमि साहेति साहवो धम्म । हेऊ जम्हा सम्भाविएसुहिंसाइसु जयंति ।। ९३ ।। 20 जह जिणसासणनिरया धम्म पालेंति साहवो सुद्धं । न कुतिस्थिएसु एवं दोसइ परिवालणोवाओ ।। ९४ ।। तेसुवि य धम्मसद्दो धम्म निययं च ते पसंसंति । नणु भणिमो सावज्जो कुतित्थिधम्मो जिणवरेहिं ।। ९५ ।। 15 2010_04 Page #360 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४) श्रीदशवकालिकनियुक्तिः ] [ ३३७ जो तेसु धम्मसद्दो सो उवयारेण निच्छएण इहं। जह सोहसह. सोहे पाहण्णुवयारओऽण्णस्थ ॥९५॥ जह भमरोत्ति य एत्थं दिढतो होइ आहरणदेसे। चंदमुहि दारिगेयं सोमत्तवहारण ण सेसं ॥९६ ॥ 5 एवं भमराहरणे अणिययवित्तित्तणं न सेसाणं । गहणं दिटुंतविसुद्धि सुत्त भणिया इमा चऽन्ना ।। ६७ ।। एस्थ य मणिज्ज कोई समणाणे कोरए सुविहियाणं । पागोवजीविणो ति य लिप्पंतारंभवोसेणं ।। ९८॥ वासइ न तणस्स कए न तणं बड्डइ कए मयकुलार्ण । 10 न य रुक्खा सयसाला फुल्लन्ति कए महुयराणं ।। ९९॥ अग्गिम्मि हवी हयइ आइच्चो तेण पोरिणमओ संतो। वरिसइ पयाहियाए तेजोसहिओ परोहंति ॥ १० ॥ कि दुरिभक्खं जायइ ? जइ एवं अह भवे दुरिट्ठतु। कि जायइ सवस्था दुग्भिक्खं अह भवे इंदो? ॥१०१ ।। 15 वासइ तो कि विग्धं निग्घायाहिं जायए तस्स । अह वासइ उउसमए न वासई तो सणट्टाए ।। १०२ ।। कि च दुमा पुप्फति भमराणं कारणा अहासमयं । मा भमरमहुयरिगणा किलामएज्जा प्रणाहारा ।। १०३ ।। कस्सइ बुद्धी एसा वित्ती उवकप्पिया पयावरणा। सत्तार्ण तेण दुमा पुष्फति महुयरिगट्ठा ॥१०४ ।। तं न भवह जेण दुमा नामागोयस्स पुग्धविहियस्स । उदएणं पुप्फफलं निवत्तयंती इमं चनं ॥ १०५ ॥ 2010_04 Page #361 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३३४ ] [ नियुक्तिसंग्रहः :: (४) श्रीदशवैकालिकनियुक्तिः अस्थि बहू वणसंडा भमरा जत्थ न उति न वसंति । तत्थऽवि पुप्फंति दुमा पगई एसा दुमगणाणं ॥ १०६ ।। जइ पगई कोस पुणो सन्वं कालं न देंति पुष्फफलं । जं काले पुप्फफलं दयंति गुरुराह अत एव ॥ १०७ ।। पगई एस दुमाणं जं उउसमयम्मि आगए संते । पुप्फंति पायवगणा फलं च कलेण बंधति ।। १०८ ।। किं नु गिही रंधती समणाणं कारणा अहासमयं । मा समणा भगवंतो किलामएज्जा अणाहारा ॥ १०९ ।। समणऽणुकंपनिमित्तं पुण्णनिमित्तं च गिहनिवासी उ । 10 कोइ भणिज्जा पागं करेंति सो भण्णइ न जम्हा ॥ ११० ।। कतारे दुभिक्खे आयंके वा महइ समुप्पन्ने । रति समणसुविहिया सम्वाहारं न भुंजंति ॥११॥ अह कोस पुण गिहत्था रत्ति प्रायरतरेण रंधति । समणेहिं सुविहिएहिं चउध्विहाहारविरएहिं ? ||१२ ।। अस्थि बहुगामनगरा समणा जत्थ न उति न वसंति । तत्थवि रंधति गिही पगई एसा गिहत्थाणं ॥ १३ ॥ पगई एस गिहीणं जं गिहिणो गामनगरनिगमेसु। रंधति अप्पणो परियणस्स कालेण अट्ठाए । १४ ।। तत्थ समणा तवस्सी परक डपरनिट्टियं विगयधूमं । 28 प्राहारं एसंति जोगाणं साहणट्ठाए ॥ १५ ।। नवकोडीपरिसुद्धं उग्गमउप्पायणेसणासुद्धं । छट्ठाणरक्खणट्ठा अहिंसअणुपालणट्टाए ॥१॥ 15 2010_04 Page #362 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४) श्रीशदवैकालिकनियुक्तिः ] [ ३३६ दिटुंतसुद्धि एसा उपसंहारो य सुत्तनिट्ठिो । संति विज्जंतित्ति य संति सिद्धि च साहेति ॥१६॥ धारेइ तं तु दव्वं तं दधविहङ्गमं वियाणाहि। भावे विहंगमो पुण गुणसन्नासिद्धिओ दुविहो ।। १७ ।। 5 विहमागास भण्णइ गुणसिद्धी तप्पइट्ठिओ लोगो। तेण उ विहङ्गमो सो भावत्थो वा गई दुविहा ।। १८ ।। भावगई कम्मगई भावगई पप्प अत्थिकाया उ। सव्वे विहंगमा खलु कम्मगईए इमे भेया ।। १६ ।। विहगगई चलणगई कम्मगई उ समासओ दुविहा । 10 तदुदयवेययजीवा विहंगमा पप्प विहगगई ॥ १२० ।। चलनकम्मगई खलु पडुच्च संसारिणो भवे जीवा। पोग्गलदव्वाई वा विहंगमा एस गुणसिद्धी ॥ २१ ॥ सन्नासिद्धि पप्पा विहंगमा होति पक्खिणो सव्वे । इहई पुण अहिगारो विहासगमणेहि भमरेहि ॥ २२ ।। 15 दाणेति दत्तगिण्हण भत्ते भज सेव फासुगेण्हणया। एसणतिगंमि निरया उवसंहारस्स सुद्धि इमा ।। २३ ।। अवि भमरमहयरिगणा अविदितं आवियंति कुसुमरसं। समणा पुण भगवन्तो नादिन्नं भोत्तुमिच्छति ।। २४ ।। अस्संजएहि भमरेहि जइ समा संजया खलु भवति । 20 एवं (यं) उवमं किच्चा नणं अस्संजया समणा ।। २५ ।। उवमा खलु एस कया पुव्वुत्ता देसलक्खणोवणया । अणिययवित्तिनिमित्तं अहिंसप्रणुपालणट्ठाए ।। २६ ॥ 2010_04 | Page #363 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३४० ] [ निर्युक्तिसंग्रह: :: ( ४ ) श्रीदशवेकालिक नियुक्तिः जह दुमगणा उ तह नगरजणवया पयणपायणसहावा । जह भमरा तह मुणिणो नवरि अदत्तं न भुजंति ।। २७ ।। कुसुमे सहावफुल्ले आहारंति भमरा जह तहा उ । मत्तं सहावसिद्धं समणसुविहिया गवेसंति ॥ २८ ॥ 5 उवसंहारो भमरा जह तह समणावि श्रवहजीवित्ति । दंतत्ति पुण पयंमी नायव्वं वक्कसेसमिनं ।। २९ ।। जह इत्थ चेव इरियाइएस सयंमि दिक्खियपयारे । तसथावर भूयहियं जयंति सम्भावियं साहू ।। १३० ॥ उवसहारविसुद्धी एस समत्ता उ निगमणं तेणं । 10 वुच्चति साहुणोत्ति (य) जेणं ते महुयरसमाणा ।। ३१ ।। तम्हा दयाइगुणसुट्ठिएहि भमरोध अवहवित्तीहि । 15 साहूहि साहित्ति उक्किट्ठे मंगलं घम्मो ॥। ३२ ।। निगमणसुद्धी तित्यंतरावि घम्मत्थमुज्जया विहरे । भण्णइ कायाणं ते जयणं न मुणंति न करेंति ।। ३३ ।। न य उग्गमाइसुद्धं भुजंती महुयरा वऽणुवरोही । नेव य तिगुत्तिगुत्ता जह साहू निच्चकालंपि ॥ ३४ ॥ कायं वायं च मणं च इंदियाइं च पंच दमयंति । धारेंति बंभचेरं संजमयंति कसाए य ।। ३५ ।। जं च तवे उज्जुत्ता तेणेस साहुलक्खणं पुष्णं । 20 तो साहुणो त्ति भण्णति साहवो निगमणं चेयं ॥ ३६ ॥ ते उपइन्न विभत्ती हेउ विभत्ती विवक्खपडिसेहो । दितो आसंका तप्पडिसेहो निगमणं च ।। ३७ ।। 2010_04 Page #364 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४) श्रीदशवैकालिकनियुक्तिः ] [ ३४१ धम्मो मंगलमुक्किळंति पइन्ना अत्तवयणनिद्देसो । सो य इहेव जिणमए नन्नत्थ पइन्नपविभत्ती ॥३८ ।। सुरपूइओत्ति हेऊ धम्मट्ठाणे ठिया उजं परमे । हेउविमत्ति निरुवहि जियाण अवहेण य जियंति ॥ ३९ ।। 5 जिणवयणपठेवि हु ससुराईए अधम्मरुइणोऽवि । मंगलबुद्धीइ जणो पणमइ आईदयविधक्खो ॥ १४० ।। बिइयदयस्स विवक्खो सुरेहिं पूज्जंति जण्णजाईवि । बुद्धाईवि सुरणया वुच्चन्ते णायपडिवक्खो ॥४१ ।। एवं तु अवयवाणं चउण्ह पडिवक्खु पंचमोऽवयवो । 10 एत्तो छट्ठोऽवयवो विवक्खपडिसेह तं वोच्छं ।। ४२ ।। सायं संमत्त पुमं हासं रइ आउनामगोयसुहं । धम्मफलं प्राइदुगे विवक्खपडिसेह मो एसो ।। ४३ ।। अजिइंदिय सोवहिया वहगा जइ तेऽवि नाम पुज्जति । अग्गीवि होज्ज सीमो हेउविमत्तीण पडिसेहो ॥ ४४ ।। 13 बुद्धाई उवयारे पूयाठाणं जिणा उ सम्भावं । दिढ़ते पडिसेहो छट्ठो एसो अवयवो उ ॥४५ ।। मरिहंत मग्गगामी दिळेंतो साहुणोऽवि समचित्ता। पागरएसु गिहीसु एसंते अवहमाणा उ ॥४६ ।। तत्थ भवे आसंका उद्दिस्स जइवि कोरए पागो । 20 तेण र विसमं नायं वासतणा तस्स पडिसेहे ।। ४७ ।। तम्हा उ सुरनराणं पुज्जत्ता मंगलं सया धम्मो । दसमो एस अघयवो पइनहेऊ पुणोधयणं ।। ४८ ।। 2010_04 Page #365 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३४२ ] [ नियुक्तिसंग्रहः:: (४) श्रीदशवकालिकनियुक्तिः णायंमि गिण्हयव्वे अगिहियध्वंमि चेव अथमि । जइयव्वमेव इइ जो उवएसो सो नमो नाम ॥ ४६ ।। सम्वेसिपि नयाणं बहुविहवत्तव्वयं निसामेत्ता । तं सव्वनयविसद्धं ज चरणगुणट्ठिओ साहू ॥ १५० ।। 5 दुमपुफियनिज्जुत्ती समासओ वणिया विभासाए । जिणचउद्दसपुथ्वी वित्थरेण कहयंति से अटें ।। १५१ ।। ॥ दुमपुफियनिज्जुत्ती समत्ता ॥१॥ ॥२॥ अथ द्वितीयाध्ययननियुक्तिः ।। सामण्णपुव्वगस्स उ निकखेवो होइ नामनिप्फन्नो। 10 सामण्णस्स चउक्को तेरसगो पुव्वयस्स भवे ॥ १५२ ।। समणस्स उ निक्खेवो चउक्कसो होइ आणुपुवीए । दब्वे सरीरभविओ भावेण उ संजओ समणो ।। ५३ ।। जह मम न पियं दुक्खं जाणिय एमेव सम्वजीवाणं । न हणइ न हणावेइ य सममणई तेण सो समणो ।। ५४ ।। 15 नत्थि य सि कोइ वेसो पिओ व सम्वेसु चेव जीवेसु । एएण होइ समणो एसो अन्नोऽवि पज्जाओ ।। ५५ ।। तो समणो जइ सुमणो भावेण य जइ न होइ पावमणो । सयणे य जणे य समो समो य माणावमाणेसु ।। ५६ ।। उरगगिरिजलणसागर नहयलतरुगणसमो य जो होई । 20 भमरमिगधरणिजलरुह-रविपवणसमो जनो समणो ।। ५७ ।। 2010_04 Page #366 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४) श्री दशर्वकालिकनियुक्तिः ] [ ३४३ ( प्र . ) । विसतिणिसवायवंजुल - कणियारुप्पलसमेण समणेणं । भमरुंदुरुन डकुक्कुड-प्रद्दागसमेण होयव्वं ॥ १ ॥ पव्वइए अणगारे पासंडे चरग तावसे भिक्खू परिवाइए य समणे निग्गंथे संजए मुत्ते ॥ ५८ ॥ 5 तिन ताई दविए मुणी य खंते य दन्त विरए य । लुहे तोरट्ठेऽविय हवंति समणस्स नामाई ।। ५९ ।। णामं ठवणा दविए खेत्तं काले दिसि तावखेत्ते य । पन्नगपुव्ववत्थू पाहुडग्रइपाहुडे भावे ।। १६० ।। नामंठवणाकामा दव्वकामा य भावकामा य । 10 एसो खलु कामाणं निक्खेवो चउविहो होइ ॥ ६१ ॥ सद्दर सरूवगंधाफासा उदयंकरा य जे दव्वा । दुविहाय भावकामा इच्छाकामा मयणकामा ।। ६२ ।। इच्छा पसत्थमपसत्थिगा य मयणंमि वेयउवप्रोगो । तेहिगारो तस्स उ वयंति धीरा निरुत्तमिणं ।। ६३ ।। 15 विसयसुहेसु पसत्तं अबुहजणं कामरागपडिवद्धं । उक्कामयंति जीवं धम्माओ तेण ते कामा ।। ६४ ॥ अन्न पिय से नामं कामा रोगत्ति पंडिया बिति । कामे पत्थमाणो रोगे पत्थेइ खलु जंतू ।। ६५ ।। णामपयं ठवणपयं दव्वपयं चेव होइ भावपयं । 20 एक्केrकंपिय एसी णेगविहं होइ नायव्वं ॥ ६६ ॥ आउट्टिमउक्किन उण्णेज्जं पोलिमं च रंगं च । गंथिमवेढिमपूरिम वाइमसंघाइमच्छ्रेज्जं ।। ६७ ।। 2010_04 Page #367 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३४४ ] [नियुक्तिसंग्रहः :: (४) श्रीदशवैकालिकनियुक्तिः भावपयंपि य दुविहं अवराहपयं च नो य अवराहं । नोअवराहं दुविहं माउगनोमाउगं चेव ॥ ६८ ।। नोमाउगंपि दुविहं गहियं च पइन्नयं च बोद्धव्वं । गहियं चउप्पयारं पइन्नगं होइ अणेगविहं ।। ६६ ।। 5 गज्ज पज्जं गेयं चुण्णं च चउम्विहं तु गहियपयं । तिसमुट्ठाणं सव्वं इइ बेंति सलकखणा कइणो ॥ १७० ।। महुरं हे उनिजुत्तं गहियमपायं विरामसंजुत्तं ।। अपरिमियं चऽवसाणे कव्वं गज्जं ति नायव्वं ।। ७१ ।। पज्जंतु होइ तिविहं सममद्धसमं च नाम विसमं च । 10 पाएहि मक्खरेहि य एव विहिष्णू कई वेति ।। ७२ । तंतिसम-तालसमं वण्णसमं गहसमं लयसमं च । कव्वं तु होड गेयं पंचविहं गीयसनाए ॥ ७३ ।। अस्थबहुलं महत्थं हेउनिवाओवसग्गगंभीरं । बहुपायमवोच्छिन्न गमणयसुद्धं च चुण्णपयं ॥ ७४ ।। नोप्रवराहपयं गयं इंदियविसयकसाया परीसहा वेयणा य उवसग्गा । एए अवराहपया जत्थ विसीयंति दुम्मेहा ॥७५ ।। अट्ठारस उ सहस्सा सोलंगाणं जिणेहिं पन्नत्ता । तेसिं परि (डि) रक्खणट्टा अवराहपए उ बज्जेज्जा ।। ७६ । 20 जोए करणे सन्ना इंदिय भोमाइ समणधम्मे य । सोलंगसहस्साणं अट्ठारसगस्स निप्फत्ती ॥ १७७ ॥ ॥ सामण्णपुव्वयनिज्जुत्ती समत्ता ॥२॥ 15 2010_04 | Page #368 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४) श्रोदशवैकालिकनियुक्ति: ] [ ३४५ 10 ॥ ३ ॥ अथ तृतीयाध्ययन नियुक्तिः ॥ नामंठवणादविए खेत्ते काले पहाण पइभावे । एएसि महंताणं पडिवक्खे खुड्डया होंति ॥७८ ॥ पइखुड्डएण पगयं आयारस्स उ चउक्कनिक्खेवो। 5 नामंठवणादविए भावायारे य बोद्धव्वे ॥७९ ।। नामणधावणवासण-सिक्खावणसुकरणाविरोहीणि । दव्वाणि जाणि लोए दवायारं विधाणाहि ॥ १८० ॥ दसणनाणचरित्ते तवआयारे य वोरियायारे। एसो भावायारो पंचविहो होइ नायवो ।। ८१॥ निस्संकिय निक्कंखिय निवितिगिच्छा अमूढदिट्ठी अ। उवव्हथिरीकरणे वच्छल्लपभावणे अट्ठ ॥ ४२ ॥ अइसेसइड्डियायरिय-वाइधम्मकहीखमगनेमित्ती।। विज्जारायागणसंमया य तित्थं पभाविति ।। ८३ ।। काले विणए बहुमाणे उपहाणे तह य अनिण्हवणे । 15 वंजणअस्थतदुभए अट्टविहो नाणमायारो ।। ८४ ।। पणिहाणजोगजुत्तो पंचहि समिई हि तिहि य गुत्तीहि । एस चरित्तायारो अविहो होइ नायव्वो ।। ८५ ।। बारस विहम्मिवि तवे सब्भितरबाहिरे कुसलदिखें। प्रगिलाइ अणाजीवी नायव्वो सो तवायारो ।। ८६ ।। 20 अणिमूहियबलविरियो परक्कमइ जो जहुत्तमाउत्तो। जंजइ प्र जहाथामं नायवो वीरियायारो ।। ८७ ।। 2010_04 Page #369 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३४६ ] [ नियुक्तिसंग्रहः :: (४) श्रीदशवैकालिकनियुक्तिः अत्थकहा कामकहा घम्मकहा चेव मीसिया य कहा । एत्तो एक्केक्कावि य णेगविहा होइ नायव्वा ।। ८८ ।। विज्जासिप्पमुवानो अणिवेओ संचओ य दक्खत्तं । सामं दंडो मेरो उथप्पयाणं च अत्थकहा ।। ८६ ।। 5 सस्थाहसुओ दक्खत्तणेण सेट्ठीसुप्रो य रूवेणं । बुद्धीएँ अमच्चसुओ जीवइ पुग्नहि रायसुप्रो ॥ १९० ।। दक्खत्तणयं पुरिसस्स पंचगं सएगमाहु सुंदेरं । बुद्धी पुरण साहस्सा सयसाहस्साई पुन्नाइं ॥ ९१ ।। रूवं वओ य वेसो दक्खत्तं सिक्खियं च विसएसुं। 10 दिटु सुयमणुभूयं च संथवो चेव कामकहा ।। ६२ ।। धम्मकहा बोद्धव्वा चउम्विहा धीरपुरिसपन्नत्ता । अक्खेवणि विक्खेवरिण संवेगे चेव निम्वेए ।। ६३ ।। प्रायारे ववहारे पन्नत्ती चेव दिट्ठीवाए य। एसा चउस्विहा खलु कहा उ अक्खेवणी होइ ॥ ९४ ।। विज्जा चरणं च तवो पुरिसक्कारो य समिइगुत्तीप्रो । उवइस्सइ खलु जहियं कहाइ प्रक्खेवणीइ रसो ।। ६५ ।। कहिऊण ससमयं तो कहेइ परसमयमह विवच्चासा । मिच्छासम्मावाए एमेव हवंति दो भेया ॥ ९६ ।। जा ससमयवज्जा खलु होइ कहा लोगवेयसंजुत्ता । 20 परसमयाणं च कहा एसा विक्खेवणी नाम ।। ९७ ॥ जा ससमएण पुचि प्रक्खाया तं छुभेज्ज परसमए । परसासणवक्खेवा परस्स समयं परिकहेइ ॥६८।। 15 2010_04 Page #370 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४) श्रीदशवैकालिकनियुक्तिः ] [ ३४७ आयपरसरीरगया इहलोए चेव तहय परलोए । एसा चउम्विहा खलु कहा उ संवेयरणी होइ ॥ ९९ ॥ वीरियविउध्वणिड्डी नाणचरणदंसणाण तह इड्डी । उदइस्पाइ खलु जहियं कहाइ संवेयणीइ रसो ॥ २०० ॥ 5 पावाणं कम्माणं असुभविवागो कहिज्जए जत्थ । इह य परत्थ य लोए कहा उणिवेयणी नाम ॥२०१।। थोपि पमायकयं कम्मं साहिज्जई जहि नियमा। पउरासुहपरिणामं कहाइ निवेयणीइ रसो ॥२०२ ।। सिद्धी य देवलोगो सुकुलुप्पत्ती य होइ संवेगो। 10 नरगो तिरिक्खजोणो कुमाणुसत्तं च निम्वेनो । २०३ ।। वेणइयस्स [य] पढमया कहा उ अक्खेवणी कहेयव्वा । तो ससमयगहियत्थो कहिज्ज विक्खेवणी पच्छा ।। २०४ ।। अक्खेवणीप्रक्खित्ता जे जीवा ते लमन्ति संमत्तं । विक्खेवणीऍ भज्जं गाढतरागं च मिच्छत्तं ।। २०५ ।। 15 धम्मो अत्थो कामो उवइस्सइ जत्थ सुत्तकव्वेसुं । लोगे वेए समये सा उ कहा मीसिया णाम ।। २०६ ॥ इथिकहा भत्तकहा रायकहा चोरजणवयकहा य । नडनट्टजल्लमुट्ठियकहा उ एसा भवे विकहा ॥ २०७।। एया चेव कहाओ पन्नवगपरूवगं समासज्ज । 20 अकहा कहा य विकहा हविज्ज पुरिसंतरं पप्प ॥ २०८ ।। मिच्छत्तं वेयन्तो जं अन्नाणी कहं परिकहेइ । लिंगत्थो व गिही वा सा अकहा देसिया समए ॥ २०६ ।। 2010_04 Page #371 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३४८ ] [ नियुक्तिसंग्रहः :: (४) श्रीदशवैकालिकनियुक्तिः तवसंजमगुणधारी जं चरणस्था कहिंति सम्भावं । सम्वजगज्जीवहियं सा उ कहा देसिया समए ।। २१० ॥ जो संजओ पमत्तो रागद्दोसबसगनो परिकहेइ । सा उ विकहा पवयणे पण्णत्ता धीरपुरिसेहिं ।। ११ ।। सिंगाररसुत्तइया मोहकुवियफुफुगा सहासिति । जं सुणमाणस्स कह समणेण ण सा कहेयवा ।। १२ ।। समण कहेयत्वा तवनियमकहा विरागसजुत्ता । जं सोऊण मणुस्सो वच्चइ संवेगनिव्वेयं ।। १३ ।। प्रथमहंतीवि कहा अपरिकिलेसबहुला कहेयव्वा । हंदि महया चडारत्तणेण अत्थं कहा हणइ ।। १४ ।। खेां कालं पुरिसं सामत्थं चऽप्पणो वियाणेत्ता । समणेण उ प्रणवज्जा पगमि कहा कहेयव्वा ।। २१५ ।। ॥ तइयज्झयणनिज्जुत्ती समत्ता ॥ ३ ॥ - ॥ ४॥ अथ चतुर्थाध्ययननियुक्तिः ॥ 15 जीवाजीवाहिगमो चरित्तधम्मो तहेव जयणा य । उवएसो धम्मफलं छज्जीवणियाइ अहिगारा ।। २१६ ।। छज्जीवणियाए खलु निक्खेवो होइ नामनिप्फन्नो। एएसि तिण्हंपि उ पत्तेयपरूवणं वोच्छं ।। १७ ।। 2010_04 Page #372 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४) श्रीदशवैकालिकनियुक्तिः ] [ ३४९ णामं ठवणा दविए माउगपयसंगहेक्कए चेव । पज्जवभावे य तहा सत्तेए एक्कगा होति ॥ १८ ॥ नामं ठवणा दविए खेते काले तहेव भावे अ। एसो उ छक्कगस्सा निक्खेवो छविहो होइ ॥ १६ ।। 5 जीवस्स उ निक्खेवो परूवणा लक्खणं च अस्थित्तं । अन्नामुत्तत्ततं निच्चकारगो देहवावित्तं ।। १२० ।। गुणिउड्डगइत्ते या निम्मयसाफल्लता य परिमाणे। जोवस्स तिविहकालम्मि परिक्खा होइ कायव्वा ॥ २१ ।। दो दारगाहाम्रो ।। 10 नामंठवणाजीवो दव्वजीवो य भावजीवो य। ओह भवग्गहणंमि य तब्भवजीवे य भावम्मि ।। २२ ।। आयाणे परिभोगे जोगुवओगे कसायलेसा य । आणापाणू इंदिय बंधोदयनिज्जरा चेव ॥ २३ ।। चित्तं चेयण सन्ना विनाणं धारणा य बुद्धी अ। 15 ईहामईवियक्का जीवस्स उ लक्खणा एए ।। २४ ।। दारं ।। कारणविभागकारण-विणासबंधस्स पच्चयाभावा । विरुद्धस्स य प्रत्थस्सा-पाउन्भावाविणासा य ।। २५ ।। निरामयामयभावा बालकयाणुसरणादुवस्थाणा । सुत्ताईहिं अगहणा जाईसरणा थणभिलासा ॥ २६ ।। 20 सम्वन्नुवदिटुत्ता सकम्मफलभोयणा अमुत्तत्ता । जीवस्स सिद्धमेवं निच्चत्तममुत्तमन्नत्तं ॥ २७ ।। 2010_04 Page #373 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३५० ] [ नियुक्तिसंग्रहः :: (४) श्रीदशवकालिकनियुक्तिः णामं ठवणसरीरे गई णिकायस्थिकाय दविए य । माउगपज्जवसंगहमारे तह भावकाए य ॥२८ ।। इत्थं पुण अहिगारो निकायकाएण होइ सुतमि । उच्चारिप्रत्थसदिसाण कित्तणं सेसगाणंपि ।। २६ ।। दव्वं सत्थग्गिविसंनेहंबिल खारलोणमाईयं ।। भावो उ दुप्पउत्तो वाया काओ अविरई अ ॥ २३० ।। किची सकायसत्थं किंची परकाय तदुभयं किंचि । एयं तु दव्वसत्थं भावे अस्संजमो सत्थं ।। ३१ ।। बीए जोणिभूए जीवो वुक्कमइ सो य अन्नो वा । 10 जोऽवि य मूले जीवो सोऽवि य पत्ते पढमयाए ।। ३२ ।। जीवाजीवाभिगमो आयारो चेव धम्मपन्नती। तत्तो चरित्तधम्मो चरणे धम्मे अ एगट्ठा ।। २३३ ।। ॥ इइ षड्जीवकायनिज्जुति ॥ ४ ।। ॥५॥ अथ पञ्चमाध्ययननियुक्तिः ।। 13 पिडो प्र एसणा य दुपयं नामं तु तस्स नायव्वं । चउचउनिक्खेवेहिं परूवणा तस्स कायव्वा ॥ २३४ ।। नामंठवणापिडो दवे भावे अ होइ नायन्यो। गुडओयणाइ दवे मावे कोहाइया चउरो ॥ ३५ ॥ पिडि संघाए जम्ह जम्हा ते उइया संघया य संसारे । 20 संघाययंति जीवं कम्मेणटुप्पगारेण ॥३६ ।। 2010_04 Page #374 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४) श्रीदशवैकालिकनियुक्तिः ] [ ३५१ दव्वेसणा उ तिविहा सचित्ताचित्तमीसदव्वाणं । दुययचउप्पयअपया नरगयकरिसावणदुमाणं ।। ३७ ।। भावेसणा उ दुविहा पसत्थ अपसत्थगा य नायव्वा । नाणाईण पसत्था अपसत्था कोहमाईणं ॥३८ ।। 5 भावस्सुवगारित्ता एत्थं दम्वेसणाइ अहिगारो। तीइ पुण अत्थजुत्ती वत्तव्या पिंडनिज्जुत्ती ॥ ३९ ।। पिण्डेसणा य सव्वा संखेवेणोयरइ नवसु कोडीसु । न हणइ न पयइ न किणइ कारावणअणुमईहि नव ॥२४०।। सा नवहा दुह कोरइ उग्गमकोडी विसोहिकोडी अ । 10 छसु पढमा ओयरइ कीयतियम्मी विसोही उ ॥ ४१ ।। कम्मुद्देसिअचरिमतिग पूइयं मौसचरिमपाहुडिआ। अज्झोयर अविसोही विसोहिकोडी मवे सेसा ।। ४२ ।। नव चेवट्ठारसगा सत्तावीसा तहेव चउपन्ना । नउई दो चेव सया सत्तरिआ हंति कोडीणं ।। ४३ ।। 15 रागाई मिच्छाई रागाई समणधम्म नाणाई । नव नव सत्तावीसा नव नउईए य गुणगारा ॥२४४ ।। ॥ इह पिण्डेसणानिज्जुत्ति ॥५॥ 2010_04 Page #375 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३५२ ] [ नियुक्तिसंग्रहः :: (४) श्रीदशवैकालिकनियुक्तिः ॥६॥ अथ षष्ठाध्य जो पुस्वि उहिट्टो आयारो सो प्रहोणमइरित्तो । सच्चेव य होइ कहा आयारकहाए महईए ॥ २४५ ।। धम्मो बावीसविहो अगारधम्मोऽणगारधम्मो अ। 5 पढमो प्र बारमविहो दसहा पुण बीयओ होइ ।। ४६ ।। पंच य अणुव्वयाई गुणवयाई च होंति तिन्न व । सिक्खावयाई चउरो गिहिधम्मो बारसविहो अ ।। ४७ ।। खंती अ मद्दवज्जव मुत्तो तवसंजमे प्र बोद्धव्वे ।। सच्चं सोचं आकिंचणं च बंभं च जइधम्मो ॥ ४८ ।। 10 धम्मो एसुवइट्ठो अत्थस्स चउविहो उ निक्खेवो । ओहेण छव्धिहऽत्थो चउसटिविहो विभागेणं ।। ४९ ।। धन्नाणि रयण थावर दुपयचउप्पय तहेव कुविधे च । ओहेण छव्विहत्थो एसो धीरेहि पन्नत्तो ।। २५० ।। चउवीसा चउवीसा तिगद्गदसहा अणेगविह एव । सम्वेसिपि इमेसि विभागमहयं पवक्खामि ।। ५१ ।। धन्नाई चउव्वीसं जवगोहुमरसालि ३वीहि४सट्ठीआ५ । कोद्दव६ अणुया७ कंगू८ रालगतिल १० मुग्ग११ मासा१२ य । अयसि१३ हरिमन्थ १४ति उडग १५ निफाव१६ सिलिद१७ रायमासा१८ अ । 20 इक्खू १६ मसूर २० तुवरी२१ कुलत्थ२२ तह २३ धन्नग कलाया२४ ।। ५३ ।। 15 2010_04 Page #376 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४) श्रीदशवैकालिकनियुक्तिः ] [ ३५३ रयणाणि चउव्वीसं सुवण्णतउतंबरययलोहाइं। सोसगहिरण्णपासाणवइरमणिमोत्तिअपवालं ॥ ५४ ।। संखो तिणिसागुरुचंदणाणि वत्थामिलाणि कट्ठाणि । तह चम्मदंतवाला गंधा दम्वोसहाई च ॥ ५५ ॥ 5 भूमी घरा य तरुगण तिविहं पुण थावरं मुणेअव्वं । चक्कारबद्धमाणु स दुविहं पुण होइ दुपय तु ॥ ५६ ।। गावी महिसी उट्ठा प्रयएलगआसआसतरगा अ । घोडग गद्दह हत्थी च उप्पयं होइ दसहा उ ।। ५७ ।। नाणाविहोवगरणं णेगविहं कुप्पलक्खणे होइ । 10 एसो अस्थो भणिनो छविह च उस ट्ठिभेओ उ ।। ५८ ।। कामो चउवीसविहो संपत्तो खलु तहा असंपत्तो। संपत्तो चउदसहा दसहा पुण होअसंपत्तो ।। ५९ ।। तत्थ प्रसंपत्तो प्रत्थो १ चिता २ तह सद्ध ३ संसरणमेव ४ । विक्कवय ५ लज्जनासो ६ पमाय ७ उम्माय ८ तम्मावो ६।२६० मरणं १० च होइ दसमो संपत्तंपिन समासओ वोच्छं । दिट्ठीए संपाओ १ विट्ठीसेवा य संभासो २ ॥ ६१ ।। हसिअ ३ललिअ ४उवगृहिन ५दंत ६नहनिवाय ७चुंबणं ८होइ। आलिंगणमायाणं१०कर ११ सेवण १२संग१३किड्डा १४ ।६२। धम्मो अत्थो कामो भिन्न ते पिडिया पडिसवत्ता। 20 जिणवयणं उत्तिन्ना असवत्ता होंति नायव्वा ।। ६३ ।। जिणवयणमि परिणए अवविहिप्राणुठाणमो धम्मो । सच्छासयप्पयोगा अत्थो वीसंभम्रो कामो ॥ ६४ ।। 15 2010_04 Page #377 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३५४ 1 [नियुक्तिसंग्रहः :: (४) श्रीदशवैकालिकनियुक्तिः धम्मस्स फलं मोक्खो सासयम उलं सिवं अणाबाहं । तमभिप्पेया साहू तम्हा धम्मत्थकाम त्ति ।। ६५ ।। परलोगु मुत्तिमग्गो नत्थि हु मोक्खो त्ति बिति अविहिन्न । सो अस्थि अवितहो जिणमयंमि पवरो न अन्नत्थ ।। ६६ ।। 5 अट्ठारस ठाणाई प्रायारकहाएँ जाई भणियाई । तेसि अन्नतरागं सेवंतु न होइ सो समणो ।। ६७ ।। वयछक्कं कायछक्क, “अकप्पो गिहिभायणं । पलियंकनिसेज्जा य, सिणार्ण सोहवज्जणं ॥२६८ ।। ॥ इति महाचारकथानिज्जुत्तिः ।। ६ ॥ 10 ॥७॥ अथ सप्तमाध्ययननियक्तिः ॥ निक्खेवो उ चउक्को वक्के दव्वं तु भासदव्वाइं । भावे भासासद्दो तस्स य एगट्ठिा इगमो ।। २६९ । वक्कं वयणं च गिरा सरस्सई भारही अ गो वाणी । भासा पन्नवणी देसणी अ वयजोग जोगे अ ॥ २७० ।। 15 दवे तिविहा गहणे अनिसिरणे तह भवे पराघाए । भावे दवे अ सुए चरित्तमाराहणी चेव ।। ७१ ।। आराहणी उ दव्वे सच्चा मोसा विराहणी होइ । सच्चामोसा मीसा असच्चमोसा य पडिसेहा ।। ७२ ।। जणवयसम्मयठवरणा नामे रूवे पडुच्च सच्चे प्र। 20 ववहारभावजोगे दसमे प्रोवम्मसच्चे अ ॥७३ ।। 2010_04 Page #378 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४) श्रीदशवैकालिकनियुक्तिः ] । ३५५ कोहे माणे माया लोभे पेज्जे तहेव दोसे अ। हासभए अक्खाइय उवधाए निस्सिआ दसमा ।। ७४ ।। उत्पन्न विगयमीसग जीवमजीवे अ जीवअज्जीवे । तहणतमीसगा खलु परित्त प्रद्धा अ अद्धद्धा ।। ७५ ।। आमंतणि आणवणी जायणि तह पुच्छणी अ पन्नवणी । पच्चक्खाणी भासा भासा इच्छाणुलोमा अ ।। ७६ ।। अणभिग्गहिआ भासा भासा अ अभिग्गमि बोद्धव्वा । संसयकरणी भासा वायड अब्वायडा चेव ।। ७७ ।। सव्वावि अ सा दुविहा पज्जत्ता खलु तहा अपज्जत्ता । 10 पढमा दो पज्जत्ता उरिल्ला दो अपज्जत्ता ।। ७८ ।। सुप्रधम्मे पुण तिविहा सच्चा मोसा असच्चमोसा अ । सम्मट्ठिी उ सुओवउत्तु सो भासई सच्चं ।। ७९ ।। सम्मट्टिी उ सुअंमि अणुवउत्तो अहेउगं चेव । जं भासइ सा मोसा मिच्छादिट्ठीबि अ तहेव ।। १८० ।। हवइ उ असच्चमोसा सुअंमि उवरिल्लए तिनामि । जं उव उत्तो मासइ एत्तो वोच्छं चरितमि ।।१।। पढमबिइआ चरित्ते भासा दो चेव होंति नायव्वा । सचरित्तस्स उ भासा सच्चा मोसा उ इअरस्स ।। ८२॥ णामंठवणासुद्धी दश्वसुद्धी प्र भावसुद्धी अ। 20 एएसि पत्तेअं परूवणा होइ कायव्वा ।। ८३ ॥ तिविहा उ दव्वसुद्धी तद्दव्वादेसओ पहाणे अ । तहव्वगमाएसो अणष्णमोसा हवइ सुद्धी ।। ८४ ।। 15 2010_04 Page #379 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३५६ ] [ नियुक्तिसंग्रहः :: (४) श्रीदशवैकालिकनियुक्तिः वण्णरसगंधफासे समणुण्णा सा पहाणओ सुद्धी। तत्थ उ सुक्किल महुरा उ संमया चेव उक्कोसा ।। ८५ ।। एमेव भावसुद्धी तभावाएसमो पहाणे प्र। तभावगमाएसो अणण्णमीसा हवइ सुद्धी ।। ६६ ।। दसणनाणचरित्ते तवोविसुद्धी पहाणमाएसो। जम्हा उ विसुद्धमलो तेरण विसुद्धो हवइ सुद्धो ।। ८७ ।। जं वक्कं वयमाणस्स संजमो सुज्झई न पुण हिंसा । न य प्रत्तकलुसमावो तेण इहं वक्कसुद्धित्ति ॥ ८ ॥ वयणविभत्तीकुसलस्स संजमंमी समुज्जुयमइस्स । दुब्भासिएण हुज्जा हु विराहणा तत्थ जइअव्वं ।। ८६ ।। वयणवित्तिअकुसलो वओगयं बहुविहं प्रयाणंतो। जइवि न भासइ किंची न चेव वयगुत्तयं पत्तो ।। २६० ।। वयरणविभत्तीकुंसलो वप्रोगयं बहुविहं बियाणंतो। दिवसंपि भासमाणो तहावि वयगुत्तयं पत्तो ।। ९१ ।। पुत्वं बुद्धीइ पेहित्ता, पच्छा वयमुयाहरे। अचक्खुओ व नेतारं, बुद्धिमन्ने उ ते गिरा ।। २९२ ।। 10 ॥इइ सवकसुडीनिज्जुति ॥ ७॥ 2010_04 Page #380 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४) श्रीदशवैकालिकनियुक्तिः ] । ३५७ ॥ ८ ॥ अथाष्टमाध्ययननियुक्तिः ॥ जो पुवि उद्दिट्ठो मायारो सो ग्रहोणमहरित्तो । दुविहो प्र होइ पणिही दम्वे भावे अ नायव्यो ।। २६३ ।। दवे निहाणमाई मायपउत्ताणि चेव दव्वाणि । 5 भाविदिअनोइंदिन दुविहो उ पसत्थ अपसत्थो ।। ६४ ।। सद्देसु अ रूवेसु अ गंधेसु रसेमु तह य फासेसु । नवि रज्जइ न वि दुस्सइ एसा खलु इंदिअप्पणिही ।। ९५ ।। सोइंदिअरस्सीहि उ मुक्काहिं सद्दमुच्छिओ जीवो। प्राइअइ अणाउत्तो सद्दगुणसमुट्ठिए दोसे ।। ९६ ।। 10 जह एसो सद्देसु एसेव कमो उ सेसएहि पि । चहिपि इंदिरहि रूवे गंधे रसे फासे ॥ ९७ ।। जस्स खलु दुप्पणिहिमाणि इंदिआइं तवं चरंतस्स । सो होरइ असहीणेहि सारही वा तुरंगेहिं ।। ८ ।। कोहं माणं मायं लोहं च महब्भयाणि चत्तारि । 15 जो रुमइ सुद्धप्पा एसो नोइंदिअप्पणिही ।। ९९ ।। जस्सवि अ दुप्पणिहिआ होंति कसाया तवं चरंतस्स । सो बालतवस्सीविव गयण्हाणपरिस्समं. कुणइ ।। ३०० ।। सामन्नमणुचरंतस्स कसाया जस्स उक्कडा होति । मन्नामि उच्छुफुल्लं व निष्फलं तस्स सामन्नं ।। ३०१ ।। 20 एसो दुविहो पणिही सुद्धो जइ दोसु तस्स तेसि च । एत्तो पसत्थमपसत्थ लक्खणमझत्थनिष्फन्नं ।। ३०२ ।। 2010_04 Page #381 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ नियुक्तिसंग्रह: :: (४) श्रीदशवेकालिक नियुक्तिः मायागारवसहियो इंदिअनोईदिएहि अपसत्थो । धम्मत्था न पसत्थों इंदिश्रनोइंदिअप्पणिही ।। ३०३ ।। विहं कम्मरयं बंधइ अपसत्यपणिहिमाउत्तो । तं चैव खवेइ पुणो पसत्थपणिहीसमाउत्तो ।। ३०४ ।। 5 दंसणनाणचरिताणि संजमो तस्स साहणट्टाए । पणिही पउंजिअवो अणायणाई च वज्जाई || ३०५ ।। दुप्पणिहिअजोगी पुण लंछिज्जड संजम अयातो । वीसत्थनिस गोव्व कंटइल्ले जह पडतो ।। ३०६ ।। सुप्पणिहिअजोगो पुण न लिप्पई पुत्रभणिश्रदोसे ते हि । 10 निद्दहइ अ कम्माई सुक्कतणाई जहा अग्गी ।। ३०७ ।। तम्हा उ अप्पसत्यं पणिहाणं उज्झिउण समषेणं । पणिहामि पसत्थे भणिओ आयारपणिहित्ति ।। ३०८ || || इह आयारपणिहिनिज्जुत्तिः ॥ ८ ॥ ३५८ ] 15 || ९ || अथ नवमाध्ययननियुक्तिः ॥ विनयस्स समाहीए निक्खेदो होइ दोहवि चउक्को । दव्वविषयंमि तिणिसो सुवण्णमिच्चेवमाईणि ॥ ३०६ ॥ लोगोवयारविणम्रो अत्थनिमित्तं च कामहेउं च । भयविनय मुवखविणओ विणओ खलु पंचहा होइ ।। ३१० ।। प्रभुद्वाणं अंजलि आसणदाणं अतिहिपुआ य । 20 लोगोवधारविणश्रो देवयपूआ य विवेणं ।। ११ ।। 2010_04 Page #382 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४) श्रीदशवैकालिकनियुक्तिः ] [ ३५९ प्रभासवित्तिछंदाणुवत्तगं देसकालदाणं च । अब्भुट्ठाणं अंजलि पासणदाणं च अत्थकए ।। १२ ।। एमेव कामविणो भए अ नेप्रब्वमाणुपुत्वीए । मोक्खंमिऽवि पंचविहो परूवणा तस्सिमा होइ ॥ १३ ।। 5 दसणनाणचरित्ते तवे अ तह ओवयारिए चेव ।। एसो अ मोक्खविणओ पंचविहो होइ नायवो ।। १४ ।। दव्याण सव्वभावा उवइट्ठा जे जहा जिणवरेहि । ते तह सद्दहइ नरो दंसणविणओ हवइ तम्हा ॥ १५ ।। नाणं सिक्खइ नाणं गुणेइ नाणेण कुणइ किच्चाई। 10 नाणी नवं न बंधइ नाणविणोश्रो हवइ तम्हा ।। १६ ।। प्रदविहं कम्मचयं जम्हा रित्तं करेइ जयमाणो। नवमन्नं च नं बंधइ चरित्तविणओ हवइ तम्हा ।। १७ ।। अवणेइ तवेण तम उवणेइ अ सगमोक्खमप्पाणं ।। तवविणयनिच्छयमई तवोविणोओ हवइ तम्हा ।। १८ ।। अह ओवयारिलो पुण दुविहो विणओ समासओ होइ । पडिरूवजोगजुजण तह य अणासायणाविणओ ।। १६ ।। पडिरूवो खलु-विणओ काइअजोए य वाइ माणसिनो । अट्ठ चउम्विह दुविहो परूवणा तस्सिमा होइ ।। ३२० ।। अब्भृट्ठाणं अंजलि पासणदाणं अभिग्गह किई अ । सुस्सूसणमणुगच्छण संसाहण काय अट्टविही ।। २१ ।। हिअमिअअफरुसवाई अणुवीईभासि वाइओ विणो । अकुसलचित्तनिरोहो कुसलमणउदीरणा चेव ।। २२ ।। - 15 20 2010_04 Page #383 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३६० ] [ नियुक्तिसंग्रहः :: (४) श्रीदशवैकालिकनियुक्तिः पडिरूवो खलु विणओ पराणुअत्तिमइओ मुणेअन्यो । अप्पडिरूवो विणओ नायव्वो केवलीणं तु ।।२३ ॥ एसो भे परिकहिओ विणओ पडिरूवलक्षणो तिविहो । बावन्नविहिविहाणं बेंति अणासायणाविणयं ॥२४ ।। 5 तित्थगरसिद्धकुलगणसंघकियाधम्मनाणनाणी । प्रायरिअथेरओझागणीणं तेरस पयाणि ।। २५ ।। अणसायणा य भत्ती बहुमाणो तहय वनसंजलणा । तित्थगराई तेरस चउग्गुणा होंति बावन्ना ।। २६ ।। दव्वं जेण व दम्वेण समाही आहियं च जं दव्वं । 10 भावसमाहि चउविह दंसणनाणे तवचरित्ते ।। ३२७ ।। ॥ इह विनयसमाहिनिज्जुत्ति ॥ ॥ १० ॥ अथ दशमाध्य नामंठवणसयारो दब्वे भावे अ होइ नायव्यो । दवे पसंसमाई भावे जीवो तदुवउत्तो ॥ ३२८ ।। 15 निद्देसपसंसाए अत्थोभावे अ होइ उ सगारो । निद्देसपसंसाए अहिगारो इत्थ अज्झयणे ॥ २६ ॥ जे भावा दसवेमालिनम्मि करणिज्ज वण्णिन जिणेहिं । तेसि समावणंमिति (मी) जो भिक्खू भन्नइ स भिक्खू ।। ३३०।। चरगमरुगाइआणं भिक्खुजोवीण काउणमपोहं । 20 अज्झयणगुणनिउत्तो होइ पसंसाइ उ सभिक्खू ।। ३१ ।। 2010_04 Page #384 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४) श्रीदशवेकालिकनिर्युक्तिः ] [ ३६१ भिक्खुस्स य निक्खेवो निरुत्तएगट्टिश्राणि लिगाणि । अगुणट्टिओ न भिक्खू श्रवयवा पंच दाराई ।। ३२ ।। णामंठवणाभिक्खु दव्वभिक्खू अ भावभिक्खू अ । दव्वम्मि आगमाई अन्नोऽवि प्र पज्जवो इणमो ॥। ३३ ।। 5 भेओ भेअणं चेव, भिदिअव्वं तहेव य । एएसि तिहंपि श्र, पत्ते अपरूवर्ण वोच्छं ॥ ३४ ॥ जह दारुकम्मगारो भेअणभित्तध्वसंजुओ भिक्खू । अनेवि दव्वभिक्खू जे जायणगा अविरया अ ।। ३५ ।। गिहिणोऽवि सयारंभग उज्जुप्पन्न जणं विमग्गंता । 10 जीवणि दीणकिविणा ते विज्जा दव्वभिक्खुत्ति ।। ३६ ।। मिच्छद्दिट्टी तसथावराण पुढवाइबिदिआईनं । निच्चं वहकरणरया अबंभयारी अ संचइआ ।। ३७ ।। दुपयच उप्पयघणधन्न कुविअतिप्रतिश्रपरिग्गहे निरया । सच्चित्तभोह पयमाणगा अ उद्दिट्टभोई प्र ।। ३८ ।। 15 कररपतिए जोअतिए सावज्जे आय हे उपरउभए । अट्टाणटूपवत्ते ते विज्जा दुम्बभिक्खुति ॥ ३६ ॥ इत्थीपरिग्गहाओ आणादाणाइभावसंगाम्रो । सुद्धतवाभावाओ कुतिस्थिआडबंभचारिति ।। ३४० ।। श्रागमतो उवउत्तो तग्गुणसंवेग्रओ उ भावंमि । तस्स निरुत्तं भेप्रगभेप्रणभेत्तव्वएण तिहा ।। ४१ ।। भेत्ताऽऽगमोवउत्तो दुविह तवो भेअणं च भेत्तव्वं । अट्ठविहं कम्मखुहं तेण निरुत्तं स भिक्खुत्ति ।। ४२ ।। 20 2010_04 Page #385 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३६२ ] [नियुक्तिसंग्रहः :: (४) श्रीदशवैकालिकनियुक्तिः भिदंतो अ जह खुहं भिक्खू जयमाणो जई होइ । संजमचरओ चरमो भवं खिवंतो भवंतो उ ।। ४३ ।। जं भिक्खमत्तवित्ती तेण व भिक्खू खवेइ जं व अणं । तवसंजमे तवस्सित्ति वावि अन्नोऽवि पज्जाओ ।। ४४ ।। तिन्ने ताई दविए वई अ दंत विरए अ । मुणितावसपन्नवगुजुभिक्खू बुद्धे जइ विऊ अ ॥ ४५ ॥ पव्वइए प्रणगारे पासंडी चरग बंभणे चेव । परिवायगे अ समणे निग्गंथे संजए मुत्ते ॥४६ ।। साहू लूहे अ तहा तोरट्ठी होइ चेव नायवो। 10 नामारिण एवमाई रिण होंति तवसंजमरयाणं ।। ४७ ।। संवेगो निम्वेप्रो विसयविवेगो सुसीलसंसम्गो । पाराहणा तवो नाणदंसणचरित्तविणओ अ ।। ४८ ।। खंती अ मद्दवऽज्जव विमुत्तया तह अदीणय तितिक्खा। आवस्सगपरिसुद्धी अ होति भिक्खुस्स लिगाइं ॥ ४९ ।। अज्झयणगुणी भिक्खू न सेस इइ णो पइन्न-को हेऊ ? । अगुणत्ता इइ हेऊ-को दिटूठंतो?. सुवण्णमिव ।। ३५० ।। विसघाइ रसायरण मंगलत्थ विरिणए पयाहिणावत्ते । गुरुए अडझऽकुत्थे अट्ठ सुवण्णे गुणा भणिआ ।। ५१ ॥ च उकारणपरिसुद्धं कसछेप्रणतावतालणाए अ । 20 जं तं विसघाइरसायणाइगुणसंजुधे होइ ॥ ५२ ॥ तं कसिणगुणोवेधे होइ सुवणं न सेसयं जुत्ती । नहि नामरूवमेत्तेण एवमगुणो हबइ भिक्खू ।। ५३ ।। 2010_04 Page #386 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४) श्रीदशवैकालिकनियुक्ति: ] [ ३६३ जुत्तीसुवण्णगं पुरण सुवण्णवण्णं तु जइवि कीरिज्जा। न हु होइ तं सुवण्णं सेसेहि गुणेहिं संतेहि ॥ ५४ ।। जे अज्झयणे भणिआ भिक्खुगुणा तेहि होइ सो भिक्खू । वण्णण जच्चसुवण्णगं व संते गुणनिहिमि ॥ ५५ ॥ 5 जो भिक्खू गुणरहिओ भिक्खं गिण्हइ न होइ सो भिक्खू । वण्णण जुत्तिसुवण्णगं व असई गुणनिहिम्मि ।। ५६ ।। उद्दिट्टकयं भुंजइ छक्कायपमद्दओ घरं कुणइ । पच्चक्खं च जलगए जो पियइ कह नु सो भिक्खू ? ॥ ५७ ॥ तम्हा जे अज्झयणे भिक्खुगुणा तेहिँ होइ सो भिक्खू । 10 तेहि असउत्तरगुणेहि होइ सो भाविनतरो उ ॥ ३५८ ।। ॥ इति सभिक्खुनिज्जुत्ति ॥१०॥ ॥ १ चूला ॥ नियुक्तिः ॥ ववे खेत्ते काले भावम्मि प्र चूलिआय निक्खेवो । तं पुण उत्तरतंतं सुअगहिग्रस्थं तु संगहणी ।। ३५९ ।। 15 दव्वे सच्चित्ताई कुक्कुडचूडामणीमऊराई । खेत्तंमि लोगनिक्कुड मंदरचूडा प्र कूडाई ॥३६० ।। अइरित्त अहिगमासा अहिगा संबच्छरा अ कालंमि। भावे खोवसमीए इमा उ चूडा मुणेअव्वा ।। ६१ ॥ दवे दुहा उ कम्मे नोकम्मरई अ सद्ददव्वाई। 20 भावरई तस्सेव उ उदए एमेव अरईवि ॥ ६२ ।। वक्कं तु पुव्वणि धम्मे रइकारगाणि वषकाणि । जेरणमिमीए तेणं रइवक्केसा हवइ चडा ।। ६३ ।। 2010_04 Page #387 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३६४ ] [ नियुक्तिसंग्रह: :: ( ४ ) श्रीदशवैकालिकनिर्युक्तिः जह नाम आउरस्सिह सीवणछेज्जेसु कीरमाणेसु । जंतणमपत्थ कुच्छाऽऽमदोसविरई हिअकरी उ ।। ६४ ।। अट्ठविहकम्मरोगाउरस्स जीअस्स तह तिगिच्छाए । धम्मे रई अधम्मे अरई गुणकारिणी होइ ।। ६५ ।। 5 सज्झायसंजमतवे वेप्रावच्चे अ झाणजोगे अ । जो रमइ नो रमइ श्रस्संजमम्मि सो वच्चई सिद्धि ।। ६६ ॥ तम्हा धम्मे रइकारगाणि अरइकारगाणि उ ( य ) अहम्मे । ठाणाणि ताणि जाणे जाई भणिश्राइं अयणे ।। ३६७ ।। 10 15 20 ॥ इति रइचूला - निज्जुन्ति ॥ १॥ ॥ २ चूला ॥ निर्युक्तिः ॥ दव्वे सरीरभविओ भावेण य संजओ इहं तस्स । उग्गहिश्रा पग्गहिआ विहारचरिआ मुणेअव्वा ।। ३६८ ।। अणिएनं पइरिक्कं अण्णायं सामुप्राणिनं उंछं । अप्पोवही प्रकलहो विहारचरिआ इसिपसत्था ।। ३६९ ।। ॥ इह निवित्तचूलानिज्जुत्तिः ॥ २ ॥ छहि मासेहि अहीअं अज्झयणमिणं तु अम्नमणगेणं । छम्मासा परिआओ अह कालगओ समाहीए ॥ ३७० ॥ आनंदअंसुपायं कासी सिज्जभवा तहि थेरा । जसभद्दस्स य पुच्छा कहणा अ विआला संघे ।। ३७१ ।। || इइ दशवेयालियनिज्जुति || ४ || 2010_04 Page #388 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५) श्रीउत्तराध्ययननियुक्तिः ] [३६५ ॥५॥ श्रीउत्तराध्ययनसूत्र-नियुक्तिः॥ ॥१॥ प्रथमविनयश्रुताध्ययननियुक्तिः ॥ मामं ठवणा दविए, खित्त दिसा तावखित्त पन्नथए । पइकालसंचयपहाण-नाण कम गणणओ भावे ॥ १।। जहणं सुत्तरं खलु, उक्कोसं वा अणुत्तरं होइ । सेसाई उत्तराई, अणुत्तराई च नेयाणि ॥ २ ॥ कमउत्तरेण पगयं, आयारस्सेव उवरिमाइं तु । तम्हा उ उत्तरा खलु, प्रज्झयणा हुँति णायव्वा ।। ३ ।। अंगप्पभवा जिण-मासिया य पत्तेयबुद्धसंवाया । 10 बंधे मुक्खे य कया, छत्तीसं उत्तरज्झयणा ।। ४ ।। नामं ठवणज्झयणे, दवज्झयणे य भावप्रज्शयणे । एमेव य अज्झोणे आयज्झवणेविय तहेव ॥ ५ । अज्झप्पस्साणयणं, कम्माणं प्रवचओ उचियाणं । अणुवचओ व णवाणं, तम्हा अज्झयणमिच्छति ।। ६ ।। 15 अहिगम्भति व अत्था, अणेण अहियं व णयणमिच्छति । अहियं व साहु गच्छइ, तम्हा अज्झयणमिच्छति ।।७।। जह दीवा दीवसयं, पईप्पए सो य दीप्पए दीवो। दीवसमा प्रायरिया, अप्पं च परं च दीवंति ।। ८ ।। भावे पसथमियरो, नाणाई कोहमाइओ कमसो । 20 आउत्ति आगमुत्ति य, लाभुत्ति य हुंति एगट्ठा ॥ ९ ॥ 2010_04 Page #389 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३६६ ] [ नियुक्तिसंग्रहः :: (५). श्रीउत्तराध्ययननियुक्तिः पल्लत्थिया अपत्था, तत्तो उप्पिट्टणा प्रपत्थयरी। निप्पीलणा प्रपत्था, तिन्नि अपत्थाइ पुत्तीए ॥१०॥ अट्टविहं कम्मरयं पोराणं जं खवेइ जोगेहिं । एयं भावज्झयणं णेयव्वं प्राणुपुवीए ॥११॥ 5 सुयखंधे निक्खेवं, णामाइ चउन्विहं परूवेउं । णामाणि य अहिगारे, अज्झयणाणं पवक्खामि ।। १२ ।। "विणयसुयं च २परीसह, उचउरंगिज्जं ४प्रसंखयं चेव । ५ अकाममरणं नियंठि, ओरभं काविलिज्जं च ।। १३ ॥ गमिपव्वज्ज १°दुमपत्तयं च, 10 ११बहुसुयपुज्जं तहेव १२हरिएस । १३चित्तसंभूइ १४उसुआरिज्ज, १५सभिक्खु १६समाहिठाणं च ।। १४ ।। १७पावसमणिज्जं तह, १८संजईज्ज १ मियचारिया २०नियंठिज्जं । 15 २१समुहपालिज्ज २२रह-नेमियं २३केसिगोयमिज्जं च ।। १५ ।। २४समिइओ २४ जन्नइज्ज २६सामायारी तहा २७खलु किज्ज । २८मुक्खगइ २ अप्पमानो, ३ तव 31चरण उपमायठाणं च ।। 33 कम्मप्पयडी ३४लेसा, बोद्धव्वे खलु ३५णगारमग्गे य । 20 3जीवाजीवविभत्ति, छत्तीसं उत्तरज्झयणा ॥ १७ ।। पढमे विणओ बीए, परिसहा दुल्लहंगया तइए । अहिगारो य चउत्थे, होइ पमायप्पमाएत्ति ॥ १८ ॥ 2010_04 Page #390 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५) श्रीउत्तराध्ययन नियुक्तिः ] [ ३६७ मरणविभत्ती पुण पंचमम्मि विज्जा चरणं च छट्टप्रज्झयणे । रसगेहिपरिच्चाओ, सत्तमे अट्ठमि अलाभे ॥१६ ।। निक्कंपया य नवमे, दसमे अणुसासणोवमा भणिया । इक्कारसमे पूया, तवरिद्धी चेव बारसमे ।। २० ॥ तेरसमे अ नियाणं, अनियाणं चेव होइ चउदसमे । भिक्खुगुणा पन्नरसे, सोलसमे बंभगुत्तीओ ॥२१ ।। पावाण वज्जणा खलु, सत्तरसे भोगड्डिमिजहणट्ठारे । एगुणि अप्परिकम्मे, अणाहया चेव वीसइमे ।। २२ ।। चरिया य विचित्ता, इक्कवीसि बावीसिमे थिरं चरणं । 10 तेवीसइमे धम्मो, चउवीसइमे य समिइओ ॥ २३ ।। बंभगुण पन्नवीसे, सामायारी य होइ छव्वीसे । सत्तावीसे असढया, अठ्ठावीसे य मुक्खगई ।। २४ ।। एगुणतोस आवस्स-गप्पमाओ तवो अ होइ तीसइमे । चरणं च इक्कतीसे, बत्तीसि पमायठाणाई ।। २५ ।। 15 तेत्तीस इमे कम्म, चउतीस इमे य हुति लेसाओ। भिक्खगुण पणतीसे, जीवाजीवा य छत्तीसे ॥२६ ।। उत्तरज्झयणाणेसो, पिडत्थो वण्णिओ समासेणं । इत्तो इक्किक्कं पुण, प्रज्झयणं कित्तइस्सामि ।। २७ ।। तत्थऽज्झयणं पढम, विणयसुयं तस्सुवक्कमाईणि । 20 दाराणि पनवेउ, अहिगारो इत्थ विणएणं ।। २८ ।। विणओ पुस्वुद्दिट्ठी, सुयस्स चउक्कनो उ निक्खेवो । दव्यसुय निण्हगाइ, भावसुय सुए उ उवउत्तो ॥२६ ।। 2010_04 Page #391 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३६८ ] [ नियुक्तिसंग्रहः : (५) श्रीउत्तराध्ययननियुक्तिः संजोगे निक्खेवो, छक्को दुविहो उ दव्वसंजोगे। संजुत्तगसंजोगो, नायवियरेयरो चेव ॥३०॥ संजुत्तगसंजोगो, सच्चित्तादीण होइ दवाणं । दुममणु सुवण्णमाई, संतइकम्मेण जीवस्स ॥३१ ।। 5 मूले कंदे खंधे, तया य सालेपवालपत्तेहि । पुप्फफले बीएहि प्र, संजुत्तो होइ दुममाई ।। ३२ ।। एगरस एगवणे, एगे गंधे तहा दुफासे अ । परमाणू खंधेहि अ, दुपएसाईहि णायव्यो । ३३ ।। जह धाऊ कणगाई, समावसंजोगसंजुया हुंति । 10 इअ संतइकम्मेणं, अणाइसंजुत्तओ जीवो ॥ ३४ ॥ इयरेयरसंजोगो, परमाणूणं तहा पएसाणं । अभिपेयमणभिपेओ, अभिलावो चेव संबंधो ॥ ३५ ॥ दुविहो परमाणूणं, हवइ य संठाणखंधनो चेव । संठाणे पंचविहो, दुविहो, पुण होइ खंधेसु ॥ ३६ ।। 15 परमाणुपुग्गला खलु, दुन्नि व बहुगा य संहता संता । निव्वत्तयंति खंधं, तं संठाणं अणित्यंत्थं ।। ३७ ।। परिमंडले य वट्ट, तंसे चउरंसमायए चेव । घणपयर पढमवज्जं, ओयपएसे य जुम्मे य ॥ ३८॥ पंचग बारसगं खलु, सत्तग बत्तीसगं तु वट्ट मि । 20 तिय छक्कग पणतीसा, चत्तारि य हुँति तंसंमि ।। ३७ ।। नव चेव तहा चउरो, सत्तावीसा य अट्ठ चउरंसे । तिगदुगपन्नरसेऽवि य, छच्चेव य. आयए हंति ।। ४० ।। 2010_04 Page #392 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५) श्रीउत्तराध्ययननियुक्तिः ] [ ३६६ ।। पणयालीसा बारस, छब्भेया आययंमि संठाणे | वीसा चत्तालीसा, परिमंडलि हुंति संठाणे ॥ ४१ ॥ धम्माइपएसाणं, पंचण्ह उ जो पएस संजोगो । तिण्ह पुण अणाईप्रो, साईओ होति दुण्हं तु ।। ४२ ।। 5 अभिपेयमणभिपेओ. पंचसु विसएसु होइ नायव्वो । अणुलोमोऽभिप्पेओ, अणभिप्पेओ अ पडिलोमो ॥ ४३ ॥ सव्वा ओसहजत्ती, गंधजुत्ती य भोयणविही य । रागविहि- गीयवायविही, अभिप्पेयमणुलोमो ॥ ४४ ॥ अभिलावे संजोगो, दव्वे खित्ते अ कालभावे श्र । 10 दुगसंजोगाईओ, अक्खरसंजोगमाईओ ॥ ४५ ॥ संबंधण संजोगो, सच्चित्ताचित्तमोसश्रो चेव । दुपयाइ हिरण्णाई, रहतुरगाई अ बहुहा उ ।। ४६ ।। खेत्ते काले व तहा, दुहवि दुविहो उ होइ संजोगो । भावंमि होइ दुविहो, आएसे चेवऽणाए से ।। ४७ ।। 15 ओदइन ( उदयिए) ओवसमिए, खइए य तहा खप्रोवसमिए य । परिणाम सन्निवाए, छविहो होअणाएसो ।। ४८ ।। आएसो पुण दुविहो, अप्पिद्यववहारणविप्रो चेव । इrिeast पुण तिविहो, अत्ताण परे तदुभए य ।। ४९ ।। ओवसमिए य खइए, खओवसमिए य ( तहय) पारिणामे अ । 20 एसो चडविहो खलु, नायव्वो अत्तसंजोगो ।। ५० ।। जो सनिवाइओ खलु भावो उदएण वज्जिओ होइ । इक्कारससंजोगो, एसो चिय प्रत्तसंजोगो ।। ५१ ।। 2010_04 Page #393 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३७० ] [ नियुक्तिसंग्रहः :: (५) श्रीउत्तराध्ययननियुक्तिः लेसा कासायवेयण, वेओ अन्नाणमिच्छ मीसं च । जावइया ओदइया, सवो सो बाहिरो जोगो ।। ५२ ।। जो सन्निवाइओ खलु, भावो उदएण मीसिओ होइ । पन्नारससंजोगो सम्वो, सो मीसिओ जोगो ।। ५३ ।। बीओऽवि य आएसो, अत्ताणे बाहिरे तदुभए य । संजोगो खलु भणियो, तं कित्तेऽहं समासेणं ।। ५४ ।। ओदइय ओवसमिए, खइए य तहा खओवसमिए व । परिणामसन्निवाए अ, छविहो अत्तसंजोगो ।। ५५ ।। नामंमि अ खित्तंमि अ, नायवो बाहिरो य उ संजोगो । 10 कालेण बाहिरो खलु, मीसोऽवि य तदुभए होइ ॥ ५६ ॥ आयरिय सीस पुत्तो, पिया य जणणी य होइ धूया य। भज्जा पइ सोउण्हं, तमुज्जछायाऽऽयवे चेव ।। ५७ ।। आयरिओ तारिसओ, जारिसओ नवरि हुज्ज सो चेव । आयरियस्सवि सीसो, सरिसो सव्वेहिवि गणेहिं ।। ५८ ।। ___एवं नाणे चरणे, सामित्ते अप्पणो य पिउणोत्ति। मज्झं कुलेऽयमस्स य, अहयं अभिंतरो मित्ति ॥ ५९ ॥ पच्चयओ य बहुविहो, निवित्ती पच्चओ जिणस्सेव । देहा य बद्धमुका, माइपिइसुप्राइ अ हवंति ।। ६० ।। संबंधणसंजोगो, कसायबहुलस्स होइ जीवस्स। . 20 पहुणो वा अपहुस्स व, मज्झंति ममज्जमाणस्स ॥६१ ।। संबधणसंजोगो, संसाराओ अणुत्तरणवासो। . तं छित्तु विप्पमुक्का, माइपिइसुआइ य हवंति ॥६२ ।। 15 2010_04 Page #394 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५) श्रीउत्तराध्ययननियुक्तिः ] [ ३७१ संबंधणसंजोगे, खित्ताईणं विभास जा भणिया । खित्ताइसु संजोगो, सो चेव विभासियो उ ।। ६३ ।। गंडी गली मराली, श्रस्से गोणे य हुंति एगट्ठा । आइन्न य विणीए य, भद्दए वादि एगट्ठा ।। ६४ ।। ॥ इति प्रथमाध्ययननियुक्तिः ॥ १ ॥ || २ || अथ द्वितीयपरिसहाध्ययननिर्युक्तिः ॥ णासो परीसहाणं, चउन्विहो दुब्विहो य ( उ ) दव्वंमि । आगमनोआगमतो, नो आगमओ य सो तिविहो ।। ६५ ।॥ जाणगसरीर भविए, तव्वइरिते य से भवे दुबिहे । 10 कम्मे नोकम्मे या, कम्मंमि य अणुदओ भणिश्रो ।। ६६ ॥ गोक मंमि यतिविहो, सच्चित्ताचित्तमीसओ चेव । भावे कम्मस्सुदप्रो, तस्स उ दाराणिमे हुंति ।। ६७ ।। कत्तो कस्स व दव्वे, समोवार अहिश्रास नए य वत्तणा कालो । खित्तद्देसे पुच्छा, निद्देसे सुत्तफासे य ।। ६८ ।। 15 कम्मप्पवायपुब्बे, सत्तरसे पाहुडंमि जं सुत्तं । सणयं सोदाहरणं, तं चैव इहंपि नायव्वं ।। ६९ ।। तिरहंपि णेगमणओ, परीसहो जाव उज्जुसुत्ताओ । तिन्हं सद्दणयाणं, परीसहो संजए होइ ।। ७० ।। पढमंमि अट्ठ भंगा, संगहि जीवो व श्रहव नोजीवो । 20 ववहारे नोजोवो, जीवदव्वं तु सेसाणं ।। ७१ ।। 2010_04 Page #395 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३७२ ] [ नियुक्तिसंग्रहः :: (५) श्रीउत्तराध्ययननियुक्तिः समोयारो खलु, दुविहो पयडिपुरिसेसु चेव नायव्वो । एएसि नाणत्तं, वुच्छामि अहाणुपुवीए ॥ ७२ ।। णाणावरणे वेए, मोहंमिय अंतराइए चेव । एएसु बावीसं, परीसहा हुति गायव्वा ॥ ७३ ।। 5 पन्नान्नाणपरिसहा णाणावरणमि हुति दुन्नए। इक्को य अंतराए अलाहपरीसहो होइ ।। ७४ ।। अरई अचेल इत्थी निसीहिया जायरणा य अक्कोसे । सक्कारपुरक्कारे चरित्तमोहंमि सत्तेए ।। ७५ ।। अरईइ दुगुंछाए पुवेथ भयस्स चेव माणस्स । 10 कोहस्स य लोहस्स य उदएण परीसहा सत्त ।। ७६ ।। दसणमोहे दसणपरीसहो नियमसो भवे इको। सेसा परीसहा खलु इक्कारस वेयणीजंमि ॥ ७७ ॥ पंचेव आणुपुव्वी चरिया सिज्जा वहे य रोगे य । तणफासजल्लमेव य इक्कारस वेयणीज्जमि ।। ७८ ।। बावीसं बायरसंपराए चउदस य सुहुमरागंमि । छउमत्थवीयराए चउदस इकारस जिणंमि ॥ ७६ ।। एसणमणेसणीज्जं तिण्हं अग्गहणऽभोयण नयाणं । अहिपासण बोद्धव्वा फासुय सदुज्जुसुत्ताणं ।। ८० ॥ जं पप्प नेगमनओ परीसहो वेयणा य दुण्हं तु। 20 अयण पडुच्च जीवे उज्जुसुओ सहस्स पुन आया ।। ८१ ।। वीसं उक्कोसपए क्ति जहन्नओ हवइ एगो। सीउसिण चरियं निसीहिया य जुगन वति ।। ८२ ।। 15 2010_04 Page #396 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५) श्रीउत्तराध्ययननियुक्तिः ] [ ३७३ वासग्गसो अतिण्हं मुहुत्तमंतं च होइ उज्जुसुए। सहस्स एगसमयं परीसहो होइ नायव्वो ॥ ८३ ।। कंड अभत्तच्छंदो अच्छोणं वेयणा तहा कुच्छी। कासं सासं च जरं अहिप्रासे सत्त वाससए ॥ ८४ ।। 5 लोए संथारंमि य परीसहा जाव उज्जुसुत्ताओ। तिण्हं सद्दनयाणं परीसहा होइ अत्ताणे ॥८५ ।। उद्देसो गुरुवयणं पुच्छा सीसस्स उ मुणेयव्वा । निद्देसो पुणिमे खलु बावीसं सुत्तफासे य ॥८६ ।। कुमारए नई लेणे, सिला पंथे महल्लए । 10 तावस पडिमा सीसे, अगणि निव्वेअ मुग्गरे ॥८७ ॥ वणे रामे पुरे भिक्खे, संथारे मल्लधारणं । अंगविज्जा सुए भोमे, सीसस्सागमणे इयः ॥८८ ।। उज्जेणी हस्थिमित्तो भोगपुरे हस्थिभूइखुड्डो अ। अडवीइ वेयणट्टो पाओवगनो य सादिव्वं ।।८९ ।। 15 उज्जेणी धणमित्तो पुत्तो से खुड्डओ अधणसम्मो। तहाइत्तोऽपीयो कालगप्रो एलगच्छपहे ।। ६० ।। रायगिहंमि वयंसा सीसा चउरो उ भद्दबाहुस्स । वेभारगिरिगुहाए सीयपरिगया समाहिगया ।। ९१ ।। तगराइ अरिहमित्तो दत्तो अरहन्ननो य भद्दा य । 20 वणियमहिलं चइत्ता तत्तंमि सिलायले विहरे ॥ १२ ॥ चंपाए सुमणुभद्दो जुवराया धम्मघोससोसो य । पंथंमि मसगपरिपीयसोणिओ सोऽवि कालगओ ।। ६३ ।। 2010_04 Page #397 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३७४ ] [ नियुक्तिसंग्रह: : : ( ५ ) श्रीउत्तराध्ययननियुक्ति: वीयभय देवदत्ता गंधारं सावयं पडियरित्ता । लहइ सयं गुलियाणं पज्जोएणाणि (णी ) ओज्जेणि ।। ९४ ।। दट्ठूण चेडिमरणं पभावई पव्वइत्तु कालगया । पुक्खर करणं गहणं दसउरपज्जोयमुयणं च ।। ६५ ।। 5 माया य रुट्सोमा पिया य नामेण सोमदेवत्ति । भाया य फग्गुरक्खिय तोसलिपुत्ता य आयरिया ।। ६६ ।। सिंहगिरि भद्दगुत्ते वयरक्खमणा पढित्तु पुण्वगयं । पव्वाविश्रो य भाया रक्खियखमणेहि जनओ य ।। ९७ ।। अयलपुरे जुवराया सीसो राहस्स नगरीमुज्जेण । 10 अज्जा राहक्खमणा पुरोहिए रायपुत्तो य ॥ ६५ ॥ कोसंबीए सिट्ठी आसो नामेण तावसो तहियं । मरिऊण सूयरोरग जाओ पुत्तस्स पुत्तोत्ति ।। ९९ ।। उसभपुरं रायगिहं पाडलिपुत्तस्स होइ उप्पत्ती । नंदे सगडाले थूलभद्द सिरिए वररुई य ।। १०० ।। 15 तिन्हं अणगाराणं श्रभिग्गहो आसि चउन्ह मासाणं । वसही मित्तनिमित्तं को कहि वुत्थो ? निसामेह ।। १०१ ।। गणियाघरमिम इक्को वुत्थो बीश्रो उ वग्घवसहीए । सप्पवसही तद्दओ को दुक्करकारओ इत्थं ? ।। १०२ ।। वग्धो वा सप्पो वा सरीरपीडाकरा उ भइयव्वा । 20 नाणं व दंसणं वा चरितं व न पचचला भित्तुं ।। १०३ ।। भयवंपि थूलभद्दो तिक्खे चकम्मिओ न उण छिन्नो । अग्गिसिहाए त्यो चाउम्मासे न उण दड्ढो ।। १०४ ।। 2010_04 Page #398 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५) श्रीउत्तराध्ययननियुक्तिः ] [ ३७५ अन्नोऽवि य अणगारो भणमाणोऽहंपि थूलभद्दसमो। कंबलओ चंदणयाइ मइलिनो एगराईए ॥ १०५ ।। कोल्लयरे वत्थव्वो दत्तो सीसो अ हिंडो तस्स । उवहरइ धाइपिडं अंगुलिजलणा य सादिव्वं ॥ १०६ ।। 5 निक्खंतो गयउराओ कुरुदत्तसुओ गयो य साकेयं । पडिमाठ्ठियस्स कुडिया आगया अग्गि जालिति ॥ १०७ ॥ कोसंबो जण्णदत्तो सोमदत्तो य सोमदेवो य। आयरिय सोमभूई दुहंपि य होइ णायव्वं ॥ १०८ ।। सन्नाइगमण वियडवेरग्गा दोवि ते तईतीरे । 10 पाओवगया नईपूरएण उदहिं तु उवणीया ।।१०९ ।। रायगिहि मालगारो अज्जुणनो तस्स भज्ज खंदसिरी। मुग्गरपाणी गोट्ठी सुदंसणो वंदनो णीइ ।। ११० ।। सावत्थी जियसत्तू धारणि देवी य खंदओ पुत्तो। धूवा पुरंदरजसा दत्ता सा दंडईरणो ॥११ ।। 15 मुनिसुव्वयंतेवासी खंदगपमुहा य कुंभकारकडे । देवी पुरंदरजसा दंडइ पालग मरूए य ।। १२ ।। पंचसया जतेणं वहिआ उ पुरोहिएण रुठेणं । रागद्दोसतुलग्गं समकरणं चितयंतेहि ॥ १३ ।। जायणपरीसहमि बलदेवो इत्थ होइ आहरणं । 20 किसिपारासरढंढो अलाभए होइ प्राहरणं ।। १४ ।। महुराइ कालवेसिय जंबुय अहिउत्थ मुग्गसेलपुरं । राया पडिसेहेइ . जंबयरूवेण उवसग्गं ॥ १५ ॥ 2010_04 Page #399 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३७६ ] [ नियुक्तिसंग्रहः :: (५) श्रीउत्तराध्ययननियुक्तिः सावत्थीइ कुमारो भद्दो सो चारिओत्ति वेरज्जे । खारेण तच्छियंगो तणफासपरीसहं विसहे ॥ १६ ॥ चंपाए सुनंदो नाम सावओ जल्लधारणदुगुछी । कोसंबीइ दुगंधी उप्पण्णो तस्स सादिव्वं ।। १७ ।। 5 महुराइ इंददत्तो पुरोहिओ साहुसेवओ सिट्ठी। पासायविज्जपाडण पायच्छिज्जेंदकीले य ।। १८ ।। उज्जेणी कालखमणा सागरखमणा सुवण्णभूमीए । इंदो आउयसेसं पुच्छइ सादिव्वकरणं च ।। ५९ ।। परितंतो वायणाए गंगाकूले पिया असगडाए । 10 संवच्छरेहऽहिज्जइ बारसहि असंखयज्झयणं ।। १२० ॥ इमं च एरिसं तं च तारिस पिच्छ केरिसं जायं ? । इय भणइ थूलभद्दो सन्नाइघरं गओ संतो ॥ २१ ॥ ओहाविउकामोऽवि य अज्जासाढो उ पणीयभूमीए । काऊण रायरूवं पच्छा सोसेण अणुसिट्टो ।। २२ ।। 15 जेण भिक्खं बलि देमि, जेण पोसेमि नायए । सा मे मही प्रक्कमइ, जायं सरणओ भयं ।। २३ ।। बहुस्सुयं चित्तकह, गंगा वहइ पाडलं । बुज्झमाणग ! भद्रं ते, लव ता किचि सुहासियं ।। २४ ।। जेण रोहंति बीयारिण, जेण जीयंति कासया । 20 तस्स मज्झे विवज्जामि, जायं सरणओ भयं ॥ २५ ॥ जमहं दिया य राम्रो य, तप्पेमि महुसप्पिसा । तेण मे उडमो दड्ढो, जायं सरणप्रो भयं ।। २६ ।। 2010_04 Page #400 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५) श्रीउत्तराध्ययननियुक्तिः ] [ ३७७ वग्घस्स मए भीएणं, पावगो सरणं कओ। तेण दड्ढे ममं अंगं, जायं सरणप्रो भयं ॥ २७ ।। लंघणपवणसमत्थो पुव्वं होऊण संपई कीस ? । दंडयगहियग्गहत्थो वयंस ! को नाममो वाही? ।। २८ ।। 5 जिट्ठासाढेसु मासेसु, जो सुहो वाइ मारुओ । तेण मे भज्जए अंगं, जायं सरणम्रो भयं ॥२९॥ जेण जोवंति सत्ताणि, निरोहंमि प्रणंतए । तेण मे भज्जए अंगं, जायं सरणओ भयं ।। १३० ।। जाव वुच्छं सुहं वुच्छं, पादवे निरुवद्दवे । 10 मूलाउ उठ्ठिया वल्ली, जायं सरणओ भयं ॥ ३१ ॥ अधिभतरया खुभिया, पिल्लंति य बाहिरा जणा। दिसं भयह मायंगा ?, जायं सरणग्रो भयं ॥ ३२ ॥ जत्थ राया सयं चोरो, भंडिओ य पुरोहियो । दिसं भयह नायरिया ?, जायं सरणओ भयं ।। ३३ ।। 15 अइरुग्गयए य सूरिए, चेइयथभगए य वायसे । भित्तीगयए य प्रायवे सहि ! सुहिओ हु जणो न बुज्झइ ।३४। तुम एव य अम्म हे ! लवे, मां हु विमाणय जक्खमागयं । जक्ख हडए हु तायए, अन्नि दाणि विमग ताययं ।। ३५ ।। नवमास कुच्छीइ धालिया, पासवणे पुलिसे य महिए। धूया मे गेहिए हडे, सलणए असलणए य मे जायए ।। ३६ ।। सयमेव य लुक्ख लोविया, अप्परिणमा य वियड्डि खाणिया । ओवाइयलद्धओ य सि, किं छला ? बेबेति वाससी ? ।।३७।। 2010_04 Page #401 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३७८ ] [ नियुक्तिसंग्रहः :: (५) श्रीउत्तराध्ययन नियुक्तिः कडए ते कुंडले य ते, अंजियक्खि ! तिलयते य ते । पवयणस्स उड्डाहकारिए ! दुट्ठा सेहि ? कतोऽसि आगया ? ३८ राईसरिसमित्ताणि, परछिद्दाणि पाससि । अप्पणो बिल्लमित्ताणि, पासंतोऽवि न पाससि ।। ३६ ।। 5 समणोऽसि संजो प्रसि, बंभयारी समलेठ्ठकंचणे। वेहारियवाअओ य ते जिट्टज्ज ? किं ते पडिग्गहे ? ||१४०।। ॥ इति द्वितीयाध्ययननियुक्तिः॥२॥ - ॥३॥ अथ तृतीयचतुरङ्गीयाध्ययननियुक्तिः ॥ णामंठावणादविए माउयपय संगहिक्कए चेव । पज्जव भावे य तहा सत्तेए इक्कगा हुंति ।। १४१॥ णामं ठवणा दविए खित्ते काले य गणण भावे य । निक्लेवो य चउण्हं गणणसंखाइ अहिगारो ॥ ४२ ।। णामंगं ठवणंगं दव्वंगं चेव होइ भावंगं । एसो खलु अंगस्सा णिक्खेवो चउव्विहो होइ ।। ४३ ॥ 15 गंधंगमोसहंगं मज्जाउज्ज-सरीरजुद्धंगे। एत्तो इक्किक्कंपि य रोगविहं होइ णायव्वं ॥ ४४ ॥ जमदग्गिजडा हरेणु अ सबरनियंसणियं सपिरिणयं । रुक्खस्स य बाहितया मल्लियवासि य कोडी अग्घइ ।।४५।। ओसीरहरिबेराणं पलं पलं भद्ददारुणो करिसो । 20 सयपुप्फाणं भागो भागो य तमालपत्तस्स ॥ ४६ ।। 10 2010_04 Page #402 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५) श्रीउत्तराध्ययननियुक्तिः ] [ ३७६ एयं ण्हाणं एवं विलेवणं एस चेव पडवासो। वासवदत्ताए कओ उदयणमभिधारयंतीए ॥ ४७ ।। दुन्नि य रयणी माहिंदफलं च तिणि य समूसणंगाई। सरसं च कणयमूलं एसा उदगट्ठमा गुलिमा ।। ४८ ।। 5 एसा उ हरइ कंडु तिमिरं अवहेडयं सिरोरोगं । तेइज्जगचाउत्थिग मूसगसप्पावरद्धं च ॥४९ ।। सोलस दक्खा भागा चउरो भागा य धाउगोपुप्फे । पाढगमो उच्छुरसे मागहमाणेण मज्जंगं ।। १५० ।। एग मुगुंदा तूरं एगं अहिमारुदारुयं अग्गी । 10 एगं सामलीपुंडं बद्धं आमेलम्रो होइ ॥ ५१ ॥ सीसं उरो य उदरं पिट्ठी बाहा य दुन्नि ऊरू य । एए खलु अरूँगा अंगोवंगाइ सेसाई ।। ५२ ।। जाणावरणपहरणे जुद्धे कुसलत्तणं च नीई अ। दखत्तं ववसाओ सरीरमारोग्गया चेव ॥५३ ॥ 15 भावंगपि य दुविहं सुअमंगं चेव नोसुयंगं च । सुयमंगं बारसहा चउन्विहं नोसप्रंगं च ।। ५४ ।। माणुस्सं धम्मसुई सद्धा तवसंजममि विरिअं च । एए भावंगा खलु दुल्लभगा हुंति संसारे ॥ ५५ ॥ अंग दसभाग भेए अवयवाऽसगल चुण्ण खंडे प्र। 20 देस पएसे पव्वे साह पडल पज्जवखिले अ ।। ५६ ।। दया य संजमे लज्जा, दुगुञ्छाऽछलणा इअ । तितिक्खा य अहिंसा य, हिरि एगठ्ठिया पया ।। ५७ ।। 2010_04 Page #403 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३८० ] [ नियुक्तिसंग्रहः :: (५) श्रोउत्तराध्ययननियुक्तिः माणुस्स खित्त जाई कुल रूवारोग्ग प्राउयं बुद्धी । सवणुग्गह सद्धा संजमो अ लोगंमि दुलहाई ॥ ५८ ।। चुल्लग पासग धन्ने जूए रयणे अ सुमिण चक्के य । चम्म जुगे परमाणू दस दिळंता मणुअलंभे ।। ५९ ।। 5 मालस्स मोहऽवना थंभा कोहा पमाय किविणत्ता। भय सोगा अन्नाणा वक्खेव कुऊहला रमणा ।। १६० ।। एएहि कारणेहि लद्ध ण सुदुल्लहंपि माणुस्सं । न लहइ सुई हिअरि संसारत्तारिणि जीवो ॥ ६१ ।। मिच्छादिट्ठी जीवो उबइठं पवयणं न सद्दहाइ । 10 सद्दहइ असम्भावं उवइट्ठ वा अणुवइट्ठ ॥ ६२ ।। सम्मट्ठिी जीवो उवइलैं पवयरणं तु सद्दहइ । सद्दहइ प्रसन्मावं अणभोगा गुरुनिप्रोगा वा ।। ६३ ।। बहुरयपएसअव्वत्तसमुच्छ दुगतिगअबद्धिगा चेव । एएसि निग्गमणं वुच्छामि अहाणुपुवीए ।। ६४ ।। 15 बहुरय जमालिपभधा जीवपएसा य तीसगुत्तायो । अव्वत्ताऽऽसाढाओ सामुच्छेयाऽऽसमित्तानो ।। ६५ ।। गंगाए वोकिरिया छलुगा तेरासिआण उत्पत्ती। थेरा य गुट्ठमाहिल पुट्ठमबद्धं पहविति ॥ ६६ ।। जिला सुदंसण जमालि प्रणुज्ज सावस्थि तिदुगुज्जाणे । 20 पंच सया य सहस्सं ढकेण जमालि मुत्तूणं ।। ६७ ।। रायगिहे गुणसिलए वसु चउदसपुब्वि तोसगुत्ताओ । प्रामलकप्पा नयरि मित्तसिरी कूरपिंडादि ।। ६८ ।। 2010_04 Page #404 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५) श्रीउत्तराध्ययन नियुक्तिः । [ ३८१ सियवियपोलासाढे जोगे तद्दिवसहिययसूले य । सोहम्मि नलिणगुम्मे रायगिहे पुरि य बलभद्दे ।। ६६ ।। मिहिलाए लच्छिघरे महगिरि कोडिन्न प्रासमित्तो प्र। उणमणुप्पवाए रायगिहे खंडरक्खा य ॥ १७० ।। 5 नइखेडजणव उल्लग महगिरि धणगुत्त अज्जगंगे य । किरिया दो रायगिहे महातवो तीरमणिनाए ॥७१ ।। पुरिमंतरंजि भुयगुह बलसिरि सिरिगुत्त रोहगुत्ते य । परिवाय पुट्टसाले घोसण पडिसेहणा वाए ॥ ७२ ।। विच्छय सप्पे मूसग मिगी वराही य कागि पोयाई । 10 एयाहि विज्जाहि सो उ परिवायगो कुसलो ।। ७३ ।। मोरिय नउलि बिराली वग्धी सोही य उलुगि ओवाइ । एयाओ विज्जाओ गिण्ह परिव्वायमहणीओ ॥७४ ।। दसपुरनगरुच्छुघरे अज्जर क्खिय पुसमित्ततियगं च । गुट्ठामाहिल नव अट्ठ सेसपुच्छा य विझस्स ।। ७५ ।। 15 पुट्ठो जहा प्रबद्धो कंचुइणं कंचुप्रो समन्नेइ । एवं पुट्ठमबद्धं जीवं कम्मं समन्नेइ ।। ७६ ॥ पच्चक्खाणं सेयं अपरिमाणेण होइ कायध्वं । जेसि तु परोमाणं तं दुटु होइ प्रासंसा । ७७ ।। रहवीरपुरं नयरं दोवगमुजाण प्रज्जकण्हे प्र। 20 सिवभूइस्सुहिमि पुच्छा थेराण कहणा य ॥ १७८ ।। ॥ इति तृतीयाध्ययननियुक्तिः ॥ ३ ॥ 2010_04 Page #405 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३८२ ] [ नियुक्तिसंग्रहः :: (५) श्रीउत्तराध्ययननियुक्तिः ॥ ४ ॥ अथ चतुर्थासंस्कृताध्ययननियुक्तिः ॥ नामंठवणपमानो दम्वे भावे य होइ नायव्वो। एमेव अप्पमाओ चउब्धिहो होइ नायवो ।। १७६ ।। मज्जं विसय कसाया निद्दा विगहा य पंचमी भणिया। 5 इअ पंचविहो एसो होइ पमाओ य अपमाओ ।। १८० ।। पंचविहो अपमाओ इहमज्झयणमि अप्पमानो य । वणिज्जए उ जम्हा तेण पमायप्पमायंति ।। ८१ ।। उत्तरकरणेण कयं जं किंची संखयं तु नायव्वं । सेसं असंखयं खलु असंखयस्सेस निज्जुत्ती ।। ८२ ॥ 10 नामंठवणाकरणं खित्ते काले तहेव भावे य । एसो खल करणंमी णिक्खेवो छविहो होइ ।। ८३ ।। दव्यकरण तु दुविहं सन्नाकरणं च नो य सन्नाए। कडकरणमट्टकरणं वेलूकरणं च सन्नाए ।। ८४ ।। नोसन्नाकरणं पुरण पओगसा वीससा य बोद्धव्वं । 15 साईअमणाईनं दुविहं पुण विस्ससाकरणं ।। ८५ ।। धम्माधम्मागासा एवं तिविहं भवे अणाईयं । चक्खुपचक्खुप्फासे एयं दुविहं तु साईयं ॥८६ ।। खंधेसु अ दुपएसाइएसु अब्भेसु अन्भरुक्खेसु। णिप्फण्णगाणि दवाणि जाणि तं वीससाकरणं ॥८७ ।। 20 दुविहं पओगकरणं जीवेतर मूल उत्तरं जीवे । मूले पंचसरीरा तिसु अंगोवंगणामं च ॥८८ ।। 2010_04 Page #406 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५) श्रीउत्तराध्ययननियुक्तिः ] [ ३८३ सोसमुरोयरपिट्ठी दो बाहू प हुति उरू प्र। एए अटुंगा खलु अंगोवंगाई सेसाई ॥८६ ।। हुति उवंगा कण्णा नासऽच्छी जंघ हत्थ पाया य । अंगोवंगा अंगुलिनहकेसामंसु एमाइ ॥१९० ।। तेसि उत्तरकरणं बोद्धव्वं कण्णखंधमाईयं । इंदियकरणा ताणि य उवघाविसोहिओ हुंति ॥ ९१ ॥ संघायणपरिसाडणउभयं तिसु दोसु नस्थि संघाओ । कालंतराइ तिण्हं जहेव सुत्तमि निद्दिढें ।। ९२ ।। इत्तो उत्तरकरणं सरीरकरणं पसोगनिप्फन्नं । 10 तं भेयाऽणेगविहं चउविहमिणं समासेणं ।। ६३ ।। संघायणा य परिसाडणा य मीसे तहेव पडिसेहो । पडसंखसगडथूणा उड्डतिरिच्छाण करणं च ।। ९४ ।। अजियप्पओगकरणं दम्वे वण्णाइयाण पंचण्हं । चित्तकरणं कुसुंभाइसु विभासा उ सेसाणं ।। ६५ ।। 15 ॥ विणा प्रागासेणं कीरइ जं किंचि खित्तमागासं । वंजणपरिआवन्नं उच्छुकरणमाइग्रं बहुहा ।।६६ ॥ कालो जो जावइओ जं कोरइ जमि जंमि कालंमि । ओहेण नाममो पुण हवंति इक्कारसक्करणा ॥ ९७ ।। बवं च बालवं चेव, कोलवं थीविलोअणं । 20 गराइ वणियं चेव, विट्ठी हवइ सत्तमी ।। ६ ।। सउणि चउप्पयं नागं, किसुग्धं करणं तहा । एए चत्तारि धुवा, सेसा करणा चला सत्त ॥ ९९ ।। 2010_04 Page #407 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३८४ ] [ नियुक्तिसंग्रहः :: (५) श्रीउत्तराध्ययन नियुक्तिः किण्हचउद्दसिरति सणि पडिवज्जए सया करणं । इत्तो प्रहक्कम खलु चउप्पयं नाग किछुग्धं ॥ २०० ।। भावकरणं तु दुविहं जीवाजीवेसु होइ नायव्वं । तत्थ उ अजीवकरणं तं पंचविहं तु नायव्वं ।। २०१।। वण्णरसगंधफासे संठाणे चेव होइ नायव्वं । पंचविहं पंचविहं दुविहठ्ठविहं च पंचविहं ॥ २०२ ।। जीवकरणं तु दुविहं सुयकरणं चेव नो य सुयकरणं । वद्धमबद्धं च सनं निसीहनि सोहबद्धं तु ॥ २०३ ।। कम्मगसरीरकरणं प्राउअकरणं असंखयं तं तु । 10 तेणऽहिगारो तम्हा उ अप्पमाप्रो चरित्तमि ॥२०४ ॥ दुविहो य होइ दीवो दवदीवो अ भावदीवो य । इक्किक्कोऽवि अ दुविहो आसासपगासदोवो अ ।। २०५ ।। संदीणमसंदीणो संधिनमस्संधिए अ बोद्धव्वे । आसासपगासे प्र भावे दुविहो पुणिविकको । २०६ ।। 15 कामाण उ णिक्खेबो चउस्विहो छविहो य मरणस्स । कामा पुवुट्टिा पगयमभिप्पेयकामेहिं ।। २०७ ।। दध्वमरणं कुसुंभाइएसु भावि प्राउक्खओ मुणेयव्यो। ओहे भवतब्भविए (तम्भवमरणे) मणुस्सभविएण अहिगारो॥ मरणविभत्तिपरूवण अणुभावो चेव तह पएसग्गं । 20 कइ मरइ एगसमयं ? कइखुत्तो वावि इक्किक्के ? ॥२०६।। मरणंमि इक्कमिक्के कहभागो मरइ सधजीवाणं? । अणुसमय संतरं वा इविक किच्चिरं कालं ? ॥ २१० ।। 2010_04 Page #408 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५) श्रीउत्तराध्ययननियुक्तिः ] [ ३८५ आवीचि ओहि अंतिय वलायमरणं वसट्टमरणं च । अंतोसल्लं तब्भव बालं तह पंडियं मीसं ॥ ११ ॥ छउमत्थमरण केवलि वेहाणस गिद्धपिट्टमरणं च । मरणं भत्तपरिण्णा इंगिणी पाओवगमणं च ॥१२ ।। 5 सत्तरसविहाणाई मरणे गुरुणो भणति गुणकलिआ। तेसि नामवित्ति वुच्छामि अहाणुपुवीए ॥१३॥ अणुसमयनिरंतरमवीइसन्नियं तं भणंति पंचविहं । दवे खित्ते काले भवे य भावे य संसारे ।। १४ ।। एमेव मोहिमरणं जाणि मओ ताणि चेव मरइ पुणो। 10 एमेव आइयंतियमरणं नवि मरइ ताइ पुणो ।। १५ ॥ संजमजोगविसना मरंति जे तं वलायमरणं तु । इंदियविसयवसगया मरंति जे तं वसटें तु ॥१६॥ लज्जाइ गारवेण य बहुस्सुयमएण वाऽवि दुच्चरिअं । जे न कहंति गुरूणं न हु ते प्राराहगा हुति ॥ १७ ।। 15 गारवपंकनिबुड्डा अइयारं जे परस्स न कहति । दसणनाणचरित्ते ससल्लमरणं हवइ तेसि ।।१८ ॥ एवं ससल्लमरणं मरिऊण महाभए दुरंतंमि । सुइरं भमंति जीवा दोहे संसारकंतारे ।।१९।। मोत्तु प्रकम्मभूमगनरतिरिए सुरगणे अ नेरइए। 20 सेसाणं जीवाणं तन्मवमरणं तु केसिंचि ॥ २२० ॥ अविरयमरणं बालं मरणं विरयाण पंडियं बिति । जाणाहि बालपंडियमरणं पुण देसविरयाणं ॥२१ ।। 2010_04 Page #409 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३८६ ] [ नियुक्तिसंग्रहः :: (५) श्री उत्तराध्ययननियुक्तिः मणपज्जवोहिनाणी सुअमइनाणी मरंति जे समणा । छउमस्थमरणमेयं केवलिमरणं तु केवलिणो ।। २२ ।। गिद्धाइभक्खणं गिद्ध पिट्ठ उब्बंधणाइ वेहासं ।। एए दुन्निवि मरणा कारणजाए अणुषणाया ।। २३ ।। 5 भत्तपरिण्णा इंगिणी पाओवगमं च तिणि मरणाई । कन्नसमझिमजेट्ठा धिइसंघयणेण उ विसिट्ठा ॥ २४ ।। सोवक्कमो अनिरुवक्कमो अ दुविहोऽणुभावमरणमि । पाउगकम्मपएसग्गणंतता पएसे हि ॥ २५ ॥ दुन्नि व तिन्नि व चत्तारि पंच मरणाइ अवीइमरणंमि । 10 कइ मरइ एगसमयसि विभासावित्थरं जाणे ।। २६ ।। सव्वे भवत्यजीवा मरंति आवीइओं सया मरणं । ओहि च आइअंतिय दुन्निवि एयाइ भयणाए ।। २७ ।। ओहिं च आइअंतिअ बालं तह पंडिग्रं च मीसं च । छउमं केवलिमरणं अन्नुन्ने विरुज्झति ।। २८ ।। संखमसंखमणता कमो उ इक्किक्कगंमि अपसत्थे। सत्तट्ठग अणुबंधो पसत्थए केलिमि सइं ।। २६ ।। मरणे अणंतभागो इक्किक्के मरइ प्राइमं मोत्तु । अणुसमयाई नेयं पढमचरिमंतरं नस्थि ।। २३० ।। सेसाणं मरणाणं नेप्रो संतरनिरंतरो उ गमो । 20 साई सपज्जवसिया सेसा पढामल्लुगमणाइ ।। ३१ ।। सव्वे एए दारा मरणविभत्तोइ वण्णिआ कमसो । सगलणि उणे पयत्थे जिणचउदसपुन्वि भासंति ।। ३२ ॥ 2010_04 Page #410 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ५ ) श्रीउत्तराध्ययननियुक्तिः ] [ ३८७ एगंतपसत्था तिणि इत्थ मरणा जिणेहि पण्णत्ता । भत्तपरिण्णा इंगिणी पाउवगमणं च कमजिट्ठ ।। ३३ ।। इत्थं पुण अहिगारो णायव्वो होइ मणुश्रमरणेणं । मुत्तुं अकाममरणं सकाममरणेण मरियव्वं ।। २३४ ।। 5 ॥ इति पञ्चमाध्ययननियुक्तिः ॥ ५ ॥ ।। ६ ।। अथ षष्टक्षुल्लक निग्रन्थीयाध्ययननिर्युक्तिः ॥ नामं ठवणा दविए खित्ते काले पहाण पइ भावो । एएसि महंताणं पडिवक्खो खुल्लया हुंति ॥ २३५ ॥ निक्खेवो नियंठमि चउव्विहो दुव्विहो य दव्वंमि । आगमनोआगमओ नोआगमतो य सो तिविहो ।। ३६ ।। जाणगसरीरभविए तव्वतिरित्ते य निष्हगाईसु । भावंमि नियंठो खलु पंचविहो होइ नायव्वो ।। ३७ ।। उक्कोसो उ नियंठो जहन्नम्रो चेव होइ नायव्वो । अजहन्नमणुक्कोसा हूंति नियंठा असंखिज्जा ।। ३८ ।। 15 दुविहो य होइ गंथो बज्को अभितरो य नायव्वो । तोय चउदसविहो दसहा पुण बाहिरो गंथो ।। ३९ ।। कोहो माणो माया लोभे पिज्जे तहेव दोसे य । मिच्छत्त वे अरइ रइ हास सोगे य दुग्गंछा ।। २४० ।। खेत्तं वत्थू धणधन्नसंचओ मित्तनाइसंजोगो । जाणसयरणासणाणि अ दासीदासं च कुवियं च ॥ ४१ ॥ सावज्जगंथमुक्का अग्भितरबाहिरेण गंथेण । एसा खलु निज्जुत्ती खुड्डागनियंठसुत्तस्स ।। ४२ ।। ॥ इति षष्ठाध्ययननियुक्तिः ॥ ६ ॥ 10 20 2010_04 Page #411 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३८८ ] [ नियुक्तिसंग्रहः :: (५) श्रोउत्तराध्ययननियुक्तिः ॥ अथ सप्तमौरभ्रीयाध्ययननियुक्तिः ॥ निक्खेवो उ उरब्भे चउम्विहो दुम्विहो य होइ दन्वं मि । आगमनोग्रागमओ नोआगमओ असो तिविहो ।। २४३ ।। जाणगसरीरमविए तब्वइरिते अ सो पुणो तिविहो । एगभविअ बद्धाऊ अभिमुहओ नामगोए अ॥ ४४ ।। 5 उरभाउणामगोयं वेयंतो भावओ उ ओरब्भो । तत्तो समुट्ठियमिणं उरभिज्जन्ति अज्झयणं ।। ४५ ।। प्रोरन्भे प्रकागिणी अंबए अ ववहार सागरे चेव । पंचेए दिढता उरभिज्जमि अज्झयणे ।। ४६ ।। प्रारंभे रसगिद्धी दुग्गतिगमणं च पच्चवाओ य । उवमा कया उरभे उरभिज्जस्स निज्जुत्ती ।। ४७ ।। आउरचिन्नाइं एयाई, जाइं चरइ नंदिनो । सुक्कत्तणेहिं लाढाहि, एवं दोहाउलक्खणं ।। २४८ ।। ॥ इति सप्तमाध्ययननियुक्तिः ।। ॥८॥ अथ अष्टमकापीयाध्ययननियुक्तिः।। 15 निक्खेवो कविलंमी चउविहो दुविहो य दव्वंमि । आगमनोआगमओ नोआगमओ य सो तिविहो ।। २४६ ॥ जाणगसरीरभविए तन्वतिरित्ते य सो पुणो तिविहो । एगभविअबद्धाउन अभिमुहओ नामगोए अ ।। २५० ।। कविलाउणामगोयं वेयंतो भावओ भवे कविलो । 20 तत्तो समुट्टियमिणं अज्झयणं कालिज्जति ।। ५१ ।। 2010_04 Page #412 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५) श्री उत्तराध्ययननिर्युक्तिः ] [ ३८९ कोसंबी कासवजसा कविलो सावत्थि इंददत्तो य । इन्भे य सालिभद्दे धणसिट्ठि पसेणइ राया ॥ ५२ ॥ कविलो निश्चिचयपरिवेसिआइ आहारमित्तसंतु । वावारिओ य दुहि, मासेहि सो निग्गओ रति ।। ५३ ।। 5 दक्खिण्णे पत्थंतो बद्धो अ तम्रो अ अपिओ रण्णो । राया से देइ वरं किं देमी केण ते अत्थो ? ।। ५४ । जहा लाहो तहा लोहो, लाहा लोहो पवडूति । दोमासकयं कज्जं, कोडिएवि न निद्वयं ।। ५५ ।। कोडिपि देमि अज्जेत्ति भणइ राया पहिट्टमुहवण्णो । 16 सोऽवि चइऊण कोडि समणो जाओ समिअपावो ।। ५६ ।। छम्मासे छउमत्थो अट्ठारस जोयणाइ रायगिहे । बलभद्दप्पमुहाणं इक्कडदासाण पंचयमे ।। ५७ ।। अइसेसे उप्पण्णे होही अट्ठो इमोत्ति नाऊणं । अद्धाणगमणचित्तं करेइ धम्मट्टया गोयं ।। २५८ ।। 15 ॥ इति अष्टमाध्ययननिर्युक्तिः ॥ ८ ॥ 20 ॥ ९ ॥ अथ नवमनमिप्रव्रज्याध्ययननिर्युक्तिः ॥ निक्खेवो उनममि चउब्विहो दुविहो० ।। २५६ ।। जाणगसरीरभविए० ।। २६० ।। नमिश्राउनामगोयं वेयंतो भावतो नमी होइ । तस्स य खलु पव्वज्जा नमिपव्वज्जंति अज्झयणं ।। ६१ ।। 2010_04 Page #413 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३६० ] [नियुक्तिसंग्रहः :: (५) श्रीउत्तराध्ययन नियुक्तिः पव्वज्जानिक्खेवो चउम्विहो अन्नतिथिगा दवे । भावंमि उ पव्वज्जा आरंभपरिग्गहच्चायो ।। ६२ ।। करकंडू कलिगेसु, पचालेसु य दुम्मुहो । नमीराया विदेहेसु, गंधारेसु य नगई ॥६३ ।। 5 वसभे अ इंदकेऊ वलए अंबे अ पुष्फिए बोही । करकंड दुम्मुहस्सा नमिस्स गंधाररण्णो अ ।। ६४ ।। मिहिलावइस्स णमिणो छम्मासायंक विज्जपडिसेहो । कत्तिअ सुमिणगदंसणअहिमंदरनंदिघोसे श्र ।। ६५ ।। दुन्निवि नमो विदेहा रज्जाई पयहिऊण पव्वइया । 10 एगो नमितित्थयरो एगो पत्तेयबुद्धो अ ॥ ६६ ।। जो सो नमितित्थयरो सो साहस्सिय परिव्वुडो भयवं । गंथमवहाय पव्वइ पुत्तं रज्जे ठवेऊणं ॥ ६७ ।। बीओवि नमीराया रज्जं चइऊण गुणसयसमग्गं । गंथमबहाय पव्वइ अहिगारो एत्थ बिइएणं ।। ६८ ।। पुप्फुत्तराउ चवणं पवज्जा होइ एगसमएणं ।। पत्तेयबुद्धकेलि सिद्धि गया एगसमएणं ।। ६९ ।। सेनं सुजायं सुविभतसिंगं, जो पासिआ वसहं गुटुमज्झे । रिद्धि अरिद्धि समुपेहिमा णं, कलिंगरायावि समिक्ख धम्म । जो इंदकेउं समलंकियं तु, दट्ठ पडतं पविलुप्पमाणं । 20 रिद्धि अरिद्धि समुपेहिआ णं, पंचालरायावि समिक्ख धम्म ७१ वुट्टिच हाणिं च ससीव दट्ठ, पूरावरेगं च महानईणं । अहो अरिगच्च अधुवं च नच्चा, पंचालरायावि समिक्ख धम्म । 15 2010_04 Page #414 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५) श्रीउत्तराध्ययननियुक्तिः ] [ ३९१ बहुप्राणं सद्दयं सुच्चा, एगस्स य असद्दयं ।। वलयाण नमीराया, निक्खंतो मिहिलाहिवो ।। ७३ ।। जो चूअरुक्खं तु मणाभिरामं, समंजरीपल्लवपुप्फक्षितं । रिद्धि अरिद्धि समुपेहिआ णं, गंधाररायावि समिक्ख धम्मं ।७४। 5 जया रज्जं च 8 च, पुरं अंतेउरं तहा । सवमेनं परिच्चज्ज , संचयं किं करेसिमं ? ॥ ७५ ।। जया ते पेइए रज्जे, कया किच्चकरा बहू । तेसि किच्चं परिच्चज्ज, अज्ज किच्चकरा भवं ॥ ७६ ।। जया सळो परिच्चज्ज, मुक्खाय घडसी भवं । परं गरहसी कीस ?, अत्तनोसेसकारए ॥७७ ।। 10 मुक्खमम्गं पवन्नेसु, सासु बंभयारिसु । अहिअत्थं निवारितो, न दोसं वत्तुमरिहसि ।। २७८ ।। ॥ इति नवमाध्ययन नियुक्तिः ॥ ९॥ ॥१०॥ अथ दशमद्रुमपत्रकाध्ययननियुक्तिः ॥ निक्खेवो उ दुमंमि चउविहो० ।। २७९ ।। . 15 जाणगसरीरभविए ।। २८०॥ दुमयाउनामगोयं वेयंतो भावओ दुमो होइ । एमेव य पत्तस्सवि निक्लेवो चविहो होइ ।। ८१ ।। दुमपत्तेपोवम्म अहाठिईए उवक्कमेणं च । इत्थ कयं प्राइंमी तो तं दुमपत्तमज्झयणं ।। ८२ ।। 20 मगहापुरनयरामो वीरेण विप्लज्जणं तु सीसाणं । सालमहासालाणं पिट्ठीचंपं च आगमणं ।। ८३ ।। 2010_04 Page #415 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३६२ ] [ नियुक्तिसंग्रहः :: (५) श्रीउत्तराध्ययननियुक्तिः पवज्जा गागिलिस्स य नाणस्स य उप्पया उतिण्हपि । प्रागमणं चंपपुरि वीरस्स अवंदणं तेसि ।।८४ ॥ चंपाइ पुण्णभइंमि चेइए नायनो पहिअकित्ती । प्रामंतेउं समणे कहेइ भयवं महावीरो ।। ८५ ।। अट्ठविहकम्ममहणस्स तस्स पगई विसुद्धलेसस्स । अट्ठावए नगवरे, निसीहिए निट्टिअट्ठस्स ।। ८६ ।। उसभस्स भरहपिउणो तेलुक्कपयासनिग्गयजसस्स । जो आरोढुं वंदइ चरिमसरीरो अ सो साहू ।। ८७ ।। साहु संवासेइ अ असाहु न किर संवसावेई । 10 अह सिद्धपवनो सो पासे वेअड्डसिहरस्स ॥८८ ।। चरिमसरीरो साहू आरुहइ नगवरं न अन्नोत्ति । एयं तु उदाहरणं कासीअ तहिं जिणवरिंदो ।। ८६ ।। सोऊण तं भगवनो गच्छइ तहि गोअमो पहिअकित्ती । आरुहइ तं नगवरं पडिमाओ वंदइ जिणाणं ।। २६० ।। 15 अह आगओ सपरिसो सविड्डीए हि तु वेसमणो । वंदित्तु चेइयाई अह वंदइ गोअमं भयवं ॥ ९१ ।। अह पुंडरीअनायं कहेइ तहि गोयमो पहियकित्ती । दसमस्स पारणए पवावेसीअ कोडिन्नं ।। ५२ ।। तस्स य वेसमणस्सा परिसाए सुरवरो पयरणुकम्मो । 20 तं पुंडरीयनायं गोयमकहिअं निसामेइ ।। ६३ ।। घित्तूण पुंडरी वग्गुविमाणाओ सो चुप्रो संतो। तुबवणे धणगिरिस्सा अज्जसुनंदासुओ जाप्रो ।। ९४ ।। 2010_04 Page #416 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 10 (५) श्रीउत्तराध्ययननियुक्तिः ] । ३६३ चित्तूण पुंडरीनं वगुविमाणाओ सो चुओ संतो । तुंबवणे धणगिरिस्सा अज्जसुनंदासुओ जाओ ।। २९४ ।। दिन्ने कोडिन्ने या सेवाले चेव होइ तइए य । इक्किक्कस्स य तेसि परिवारो पंच पंच सया ॥ ६५ ।। 5 हेट्ठिल्लाण चउत्थं मज्झिल्लाणं तु होइ छट्ठतु । अट्टममुवरिल्लाणं आहारो तेसिमो होइ ॥९६ ॥ कंदाई सच्चित्तो हिछिल्लाणं तु होइ आहारो। बीआणं अच्चित्तो तइआणं सुक्कसे घालो ।।६७ ॥ तं पासिऊण इड्ढिं गोयमरिसिणो तम्रो तिवग्गावि । अणगारा पव्वइमा सप्परिवारा विगयमोहा ॥९८ ।। एगस्स खीरभोप्रणहेऊ नाणुप्पया मुणेयव्वा । एगस्स परिसादसणेण एगस्सय य जिणंमि ।। ६६ ।। केवलिपरिसं तत्तो वच्चंता गोयमेण भणिआ य । इउ एह वंदह जिणं कयकिच्च जिणेण सो भणियो ।। ३०० ।। 15 सोऊण तं परहओ हियएणं गोयमोऽधि वितेइ । नाणं मे न उपज्जइ भणिओ य जिणेण सो ताहे ।। ३०१ ।। चिरसंसठं चिरपरिचिनं चिरमणुगयं च मे जाण । देहस्स य भेयंमि य दुणिवि तुल्ला भविस्सामो ॥ ३०२ ।। जह मन्ने एअमठें अम्हे जाणामु खीणसंसारा। 20 तह मन्ने एअमठें विमाणवासीवि जाणंति ।। ३०३ ।। जाणगपुच्छं पुच्छइ अरहा किर गोयमं पहिअकित्ती । कि देवाणं वयणं गिज्झं आतो जिणवराणं ? ।। ३०४ ।। 2010_04 . Page #417 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३६४ ] [ नियुक्तिसंग्रहः :: (५) श्रीउत्तराध्ययननियुक्तिः सोऊण तं भगवओ मिच्छायारस्स सो उवट्ठाइ । तन्नीसाए भयवं सीसाणं देइ अणुसिढेिं ।। ३०५ ।। परियट्टियलावणं चलंतसंधि मुयंतबिटागं । पत्तं च वसणपतं कालप्पत्तं मणइ गाहं ॥ ३०६ ।। 5 जह तुम्भे तह अम्हे तुम्भेवि प्र होहिहा जहा अम्हे । अप्पाहेइ पडतं पंडुरवत्तं किसलयाणं ।। ३०७ ।। नवि अस्थि नवि अ होही उल्लायो किसलपंडुपत्ताणं । उवमा खलु एस कया भवियजणविबोहणट्ठाए ।। ३०८ ।। ॥ इति दशमाध्ययन नियुक्तिः॥ १० ॥ 10 ॥११॥ अथ एकादशबहुश्रुतपूजाध्ययननियुक्तिः ॥ बहु सुए पूजाए य, तिण्हंपि चउक्कओ य निक्खेवो । दवबहुगेण बहुगा जीवा तह पुग्गला चेव ।। ३०९ ॥ भावबहुएण बहुगा चउदस पुरवा अणंतगमजुत्ता। भावे खनोवसमिए खइयंमि य केवलं नाणं ॥ ३१० ॥ दव्वसुय पोंडयाइ अहवा लिहियं तु पुत्थयाईसुं । भावसुयं पुण दुविहं सम्मसुयं चेव मिच्छसुयं ॥ ११ ॥ भवसिद्धिया उ जीवा सम्मद्दिट्ठी उ जं अहिज्जति । तं सम्मसुएरण सुयं कम्मट्ठविहस्स सोहिकरं ।। १२ ।। मिच्छद्दिट्ठी जीवा अभवसिद्धी य जं अहिज्जति । 20 तं मिच्छसुएण सुय कम्मावाणं च तं भणियं ॥ १३ ॥ 15 2010_04 Page #418 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५) श्रीउत्तराध्ययननियुक्तिः ] [ ३९५ ईसरतलवरमाडंबिआण सिवइंदखंदविहणं । जा किर कीरइ पूना सा पूमा दव्वओ होइ ।। १४ ॥ तित्थयरकेवलीणं सिद्धायरिमाण सव्वसाहूणं । जा किर कीरइ पूमा सा पूआ भावओ होइ ।। १५ ।। 5 जे किर च उदसपुयी सव्वक्खरसन्निवाइणो निउणा । जा तेसि पूया खलु सा भावे ताइ अहिगारो ॥ १६ ॥ ॥ इति एकादशाध्ययन नियुक्तिः ॥ ११ ॥ ॥ १२ ॥ अथ द्वादशहरिकेशीयाध्ययननियुक्तिः ॥ नामं ठवणादविए० ॥ १७ ॥ 10 जाणयसरीरभविए० ॥१८॥ हरिएसनामगोअं वेअंतो भावग्रो अ हरिएसो। तत्तो समुट्टियमिणं हरिए सिज्जति अज्झयणं ।। १९ ।। पुत्वभवे संखस्स उ जुवरन्नो अंतिनं तु पश्वज्जा । जाईमयं तु काउं हरिएसकुलंमि आयाम्रो ।। ३२० ।। 15 महराए संखो खलु पुरोहिअसुप्रो अ गय उरे आसी। दठूण पाडिहेरं हुयवहरत्थाइ निक्खंतो ।। २१ ।। हरिएसा चंडाला सोवाग मयंग बाहिरा पाणा। साणपणा य मयासा सुसाणवित्ती य नीया य ॥ २२ ।। जम्मं मयंगतीरे वाणा रसिगंडितिदुगवणं च । 20 कोसलिएसु सुभद्दा इसिवंता जन्नवाउंमि ।। २३ ।। 2010_04 Page #419 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३९६ ] [ नियुक्तिसंग्रहः :: (५) श्रीउत्तराध्ययननियुक्तिः 5 बलकुट्टे बल कोट्टे गोरी गंधारी सुविणगवसंतो। नामनिरुत्ती छणसप्प संभवो दुदुहे बीम्रो ।। २४ ।। भद्दएणेव होअव्वं पावइ भद्दाणि भद्दओ। सविसो हम्मए सप्पो, भेकंडो तत्थ मुच्चइ ।। २५ ।। इत्थीण कहित्थ वट्टई, जणवयरायकहित्थ वट्टई। पडिगच्छह रम्म तिदुअं, अइसहसा बहुमुडिए जणे ।।३२६।। ॥ इति द्वादशाध्ययननियुक्तिः ।। १२ ।। ॥१३॥ अथ त्रयोदशचित्रसंभूतीयाध्यय चित्ते संभूमि अ निक्खेवो चउक्कमो दुहा दवे । 10 आगमनोआगमनो नोआगमओ अ सो तिविहो ॥ ३२७ ।। जाणगसरीरमविए तम्वतिरित्ते य सो पुणो तिविहो । एगभविन बद्धाऊ अभिमुहम्रो नामगोए य ।। २८ ।। चित्तेसंभूआउं वेअंतो भावओ अ नायव्यो । तत्तो (तेसु) समुट्टिप्रमिणं अज्झयणं चित्तसंभूयं ।। २६ ॥ 15 सागेए चंडडिसयस पुत्तो अ आसि मुणिचंदो। सोऽवि अ सागरचंदस्स अंतिए पव्वए समणो ॥ ३३० ॥ तण्हाछुहाकिलं समणं दळूण अडविनीहुत्तं । पडिलाहणा य बोही पत्ता गोवालपुत्तेहिं ।। ३१ ।। तत्तो दुन्नि दुग काउं दासा दसन्नि आयाया । 20 दुन्नि अ उसुपारपुरे अहिगारो बभदत्तेणं ।। ३२ ॥ 2010_04 Page #420 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५) श्रोउत्तराध्ययननियुक्तिः ] [ ३९७ राया य तत्थ बंभो कडओ तइनो कणेरदत्तोत्ति । राया य पुष्फचूलो दीहो पुण होइ कोसलिओ ॥ ३३ ॥ एए पंच वयंसो सव्वे सह दारदरिसिणो भोच्चा। संवच्छरं अणूणं वसंति इविकक्करज्जंमि ॥ ३४ ।। राया य बंभदत्तो धणुप्रो सेणावई अवरधणुप्रो। इंदिसिरी इंदजसा इन्दुवसु चुलणिदेवीओ ।। ३५ ।। चित्ते अ विज्जुमाला विज्जुमई चित्तसेणओ भद्दा । पंथग नागजसा पुण कित्तिमई कित्तिसेणो य ।। ३६ ।। देवी अनागदत्ता जसवइ रयणवइ जक्खहरिलो य । 10 वच्छी अ चारुदत्तो उसभो कच्चाइणी य सिला ।। ३७ ।। घणदेवे वसुमित्ते सुदंसणे दारए य निडिल्ले । पुत्थी पिंगल पोए सागरदत्ते अ दीवसिहा ।। ३ ।। कंपिल्ले मलयवई वणराई सिंधुदत्त सोमा य । तह सिंधुसेण पज्जुन्नसेण वाणीर पइगा य ॥ ३६ ।। 15 हरिएसा गोदत्ता कणेरुदत्ता कणेरुपइगा य । कुजरकणेरुसेणा इसिवुड्डी कुरुमई देवी ॥ ३४० ॥ कंपिल्लं गिरितडगं चंपा हस्थिणपुरं च सायं । समकडगं ओ (नंदो) साणं वसीपासाय समकडगं ॥ ४१ ।। समकडगाओ अडवी तण्हा वडपायमि संकेओ। 20 गहणं वरधणुप्रस्स य बंधणमक्कोसणं चेव ॥ ४२ ।। सो हम्मई अमच्चो देहि कुमारं कहिं तुमे नीओ ? । गुलियविरेयणपीयो कवडमओ छड्डिनो हि ॥ ४३ ।। 2010_04 Page #421 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३९८ ] [ नियुक्तिसंग्रहः :: (५) श्रीउत्तराध्ययननियुक्तिः तं सोऊण कुमारो भीओ अह उप्पहं पलाइत्था । काऊण थरेरूवं देवो वाहेसिन कुमारं ॥४४ ।। वडपुरगबंभथलयं वडथलगं चेव होइ कोसंबी । वाणारसि रायगिहि गिरिपुर महुरा य अहिछत्ता ।। ४५ ॥ 5 वणहत्थी अ कुमारं जणयइ प्राहरण वसणगुणलुद्धो। वच्चंतो प्र पुरानो (वडपुर प्रो) अहिछत्तं अंतरा गामो ।४६॥ गहणं नईकुडंगं गहणतरागाणि पुरिसहिअयाणि । देहाणि पुग्णपत्तं पिअं खु गो दारो जाओ ।। ४७ ।। सुपइट्ठे कुसकुडि भिकुडिवित्तासिमि जिअसत्तू । 10 महुराओ अहिछत्तं वच्चतो अंतरा लहइ ॥ ४८ ।। इंदपुरे रुद्दपुरे सिवदत्त विसाहदत्त धूआओ । बडुअत्तणेण लहइ कन्नानो दुन्नि रज्जं च ।। ४६ ।। रायगिह मिहिलहत्थिणपुरं च चंपा तहेव सावत्थी। एसा उ नगरहिंडी बोद्धव्वा बंभदत्तस्स ।। ३५० । 15 रयणुप्पया य विजओ बोद्ध वो दोहरोसमुवखे य । संभरणनलिणिगुम्मं जाईइ पगासणं चेव ।। ५१ ।। जाईइ पगास निवेयणं च जाईपयासणं चित्ते । चित्तस्त य आगमणं इडिपरिच्चागसुत्तत्थो ॥ ५२ ।। इत्थीरयणपुरोहिय भिज्जाणं वुग्गहो विरणासंमि। 20 सेणावइस्स भेओ ववकमणं चेव पुत्ताणं ।। ५३ ।। संगाम अत्थि भेओ मरणं पुण चूयपायवुज्जाणे । कडगस्स य निम्भेओ दंडो अ पुरोहिय कुलस्स ।। ५४ ।। 2010_04 Page #422 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५) श्रीउत्तराध्ययननियुक्तिः ] सयंवरे श्र थाले अ । जउधरपासयंमि श्र दारे य तत्तो अ आसए हत्थिए अ तह कुंडए चेव ।। ५५ ।। कुक्कुडरहतिलपत्ते सुदंसणो दारुए य नयणिल्ले । पत्तच्छिज्जसयंवर कलाउ तह आसणे चेव ।। ५६ ।। 5 कंचयपज्जुण्णंमि अ हत्थो वणकु जरे कुरुमई अ । एए कन्नालंभा बोद्धव्वा बंभदत्तस्स ।। ३५७ ।। ॥ इति त्रयोदशाध्ययननियुक्तिः ॥ १३ ॥ || १४ || अथ चतुर्दशेषुकारोयाध्ययननियुक्तिः ॥ उसुनारे निवखेवो चउव्विहो० ।। ३५८ ।। ।। ५६ ।। उसुआरनामगोए वेयंतो भावम्रो अ उसुआरो । तत्तो समुट्टियमिणं उसुधारिज्जति अज्झयणं ।। ३६० ।। पुव्वभवे संघडिआ संपीना अन्नमन्नमणुरता । भुत्तूण भोगभोए निग्गंथा पव्वए समणा ।। ६१ ॥ काऊण य सामन्नं पउमगुम्मे विमाणि उबवन्ना | पलिप्रोवमाइं चउरो ठिई उक्कोसिआ तेसि ।। ६२ ।। तत्तो य चुआ संता कुरुजणवयपुरवरंमि उसुआरे । छावि जणा उववन्ना चरिमसरोरा विगयमोहा ।। ६३ ।। राया उसुयारो या कमलावइ देवि अग्गमहिसी से । 20 भिगुनामे य पुरोहिय वासिट्ठा भारिआ तस्स ।। ६४ । 10 जागग सरीर भविए० 15 [ ३६६ 2010_04 Page #423 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४०० ] [ नियुक्तिसंग्रहः :: (५) श्रीउत्तराध्ययननियुक्तिः उसुआरपुरे नयरे उसुआरपुरोहिनो अ अरणवच्चो । पुत्तस्स कए बहुसो परितप्पती दुअग्गावि ॥ ६५ ।। काऊण समणरूवं तहि देवो पुरोहिश्र भणइ । होहिंति तुज्झ पुत्ता दुन्नि जणा देवलोगचुआ ।। ६६ ।। 5 तेहि अ पव्वइअव्वं जहा य न करेह अंतरायं ण्हे । ते पवइआ संता बोहेहिती जणं बहुअं ।। ६७ ।। तं वयणं सोऊणं नगराओ निति ते वयग्गामे । वड्ढंति प्र ते तहिनं गाहिति अ णं असम्भावं ।। ६८ ।। एए समणा धुत्ता पेयपिसाया य पोरसादा य । 10 मा तेसि अल्लिअहा मा मे पुत्ता ? विणासिज्जा ॥ ६९ ।। दळूण तहिं समणे जाई पोराणिग्रं च सरिऊर्ण । बोहितऽम्मापिअरं उसुप्रारं रायपुत्तं च ॥ ३७० ।। सोमंधरो य राया भिगू अ वासिट्ठ रायपत्ती य । बभणी दारगा चेव छप्पेए परिनिव्वुआ ॥ ३७१ ।। ॥ इति चतुर्दशाध्ययन नियुक्तिः ॥ १४ ॥ ॥१५॥ अथ पञ्चदशसभिक्षुकाध्ययननियुक्तिः ॥ 15 निक्खेवो भिक्खुमो चउविहो. ॥३७२ ।। जाणयसरीरभविए तव्वइरित्ते प्र निण्हगाईसु । जो भिदेइ खुहं खलु सो 'भिक्खू भावओ होइ ॥७३ ।। 20 भेत्ता य भेषणं वा नायव्वं भिदियध्वयं चेव ।। इक्किवपि अ दुविहं दवे भावे अ नायव्वं ।। ७४ ।। 2010_04 Page #424 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५) श्रीउत्तराध्ययननियुक्तिः ] [ ४०१ रहकारपरसुमाई दारुगमाई अ दव्वओ हुंति । साहू कम्मऽट्टविहं तवो अ भावंमि नायवो ॥ ७५ ।। रागद्दोसा दण्डा जोगा तह गारवा य सल्ला य । विगहाओ सण्णाप्रो खुहं कसाया पमाया य ॥ ७६ ।। 5 एयाइं तु खुहाइं जे खलु भिदंति सुव्वया रिसओ। ते भिन्नकम्मगंठी उविति अयरामरं ठाणं ।। ३७७ ॥ ॥ इति पञ्चदशाध्ययननियुक्तिः ॥ १५ ॥ ॥१६॥ अथ षोडशब्रह्मचर्यसमाधिनामाध्ययननियुक्तिः ॥ णामंठवणादविए-माउयपयसंगहेक्कए चेव । 10 पज्जव भावे अ तहा सत्तेए इक्कगा हुँति ।। ३७८ ।। दससु अ छक्को दवे नायवो दसपएसिओ खंधो। प्रोगाहणाठिईए नायवो पज्जवदुगे अ ॥७९ ।। बंभंमी उ चउक्कं ठवणाबंभंमि बंभणुप्पत्ती । दव्वंमि बत्थिनिग्गहु अन्नागीणं मुणेयवो ।। ३८० ।। भावे उ बस्थिनिग्गहु नायव्यो तस्स रक्खणट्टाए । ठाणाणि ताणि वज्जिज्ज जाणि भणियाणि अज्झयणे ॥१॥ चरणे छक्को दवे गइचरणं चेव भक्खणे चरणं । खित्ते काले जंमि उ भावे उ गुणाण प्रायरणं ।। ८२॥ समाहीइ चउक्कं दव्वं दवेण जेण उ समाही। 20 भावंमि नाणदंसगतवे चरित्ते प्र नायब्वं ।। ८३ ।। 15 2010_04 Page #425 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४०२ ] [ नियुक्तिसंग्रहः :: (५) श्रीउत्तराध्ययननियुक्तिः नामंठवणादधिए खित्तद्धा उड्ड उवरई वसही । संजमपग्गह जोहे अचलगणणसंधणा भावे ।। ३८४ ॥ ॥ इति षोडशाध्ययननियुक्तिः ॥ १६ ॥ ॥१७॥ अथ सप्तदशपापश्रमणीयाध्ययन नियुक्तिः ॥ 5 निक्खेवो० ॥३८५ ।। पावे छक्क दव्वे सचित्ताचित्तमीसगं चेव ।। खित्तंमि निरयमाई कालो अइदुस्समाईओ ।।८६ ॥ भावे पावं इणमो हिंस मुसा चोरिनं च अब्बभं । तत्तो परिग्गहो चिन अगुणा मणिआ य जे सुत्ते ॥ ८७ ॥ 10 समणे चउक्कनिक्खेवओ उ दव्वंमि निहणगाईआ । नारगी संजमसहिओ नायव्वो भावओ समणो ।। ८८ ।। जे भावा अकरणिज्जा इहमज्झयणमि वनि जिणेहिं । ते भावे सेवंतो नायव्वो पावसमणोत्ति ॥६६ || 15 एयाइं पावाई जे खलु बज्जति सुव्वया रिसओ। ते पावकम्ममुक्का सिद्धिमविग्घेण वच्चंति ॥ ३९० ॥ ॥ इति सप्तदशाध्ययननियुक्तिः ॥१७॥ 2010_04 Page #426 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५) श्रीउत्तराध्ययननियुक्तिः ] [ ४०३ यतीयाध्ययननियुक्तिः ॥ ॥१८॥ अथ अष्टादशसंयतीयाध्य निक्खेवो संजइज्जमि चउविहो० ।। ३९१ ।। जाणगसरीरभविए० ॥१२॥ संजयनामं गोयं वेयंतो भावसंजनो होइ । 5 तत्तो समुट्ठियमिणं अज्झयणं संजइज्जति ॥ ६३ ।। कंपिल्ल पुरवरंमि अ नामेणं संजओ नरवरिदो । सो सेणाए सहिमओ नासीरं निग्गनो कयाइ ।। ९४ ।। हयमारूढो राया मिए छुहिताण केसरुज्जाणे । ते तत्थ उ उत्तत्थे वहेइ रसमुच्छिओ संतो ॥ ९५ ।। 10 ग्रह केसरमुज्जाणे नामेणं गद्दमालि अणगारो । अप्फोवमंडवंमि अ झायइ झाणं झविअदोसो ।। ९६ ।। अह आसगो राया तं पासिम संभमागमो तत्थ । भणइ अ हा जह इहि इसिवज्झाएँ मणा लित्तो ।। ६७ ।। वीसज्जिऊण आसं अह अणगारस्स एइ सो पासं । 15 विणएण वंदिऊणं अवराहं ते खमावेइ ।। ६८ ।। अह मोणमस्सिओ सो अणगारो नर वई न वाहरइ । तस्स तवतेयभीओ इणमट्ठ सो उदाहरइ ॥ ६६ ॥ कंपिल्लपुराहिवई नामेणं संजो अहं राया । तुज्झ सरणागमोऽम्हि निद्दहिहा मा मि तेएणं ।। ४०० ।। अभयं तुज्झ नरवई ? जलबुब्बुप्रसंनिभे अ माणुस्से । 20 कि हिंसाइ पसज्जसि जाणतो अप्पणो दुक्खं ? ।। ४०१ ।। 2010_04 Page #427 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४०४ ] [ नियुक्तिसंग्रह: :: ( ५ ) श्रीउत्तराध्ययननिय क्तिः सव्वमिणं चइऊणं अवस्स जया य होइ गंतव्वं । कि भोगेसु पसज्जसि ? किंपागफलोवमनिभेसु ॥ ४०२ ॥ सोऊण य सो धम्मं तस्सऽणगारहस अंतिए राया । अणगारो पव्यइप्रो रज्जं चद्दजं गुणसमग्गं ।। ४०३ ।। काऊण तवच्चरणं बहूणि वासाणि सो धुयकिलेसो । तं ठाणं संपत्तो जं संपत्ता न सोयंति ।। ४०४ ।। ॥ इति अष्टादशाध्ययननियुक्तिः ॥ १८ ॥ || १९ | अथ एकोनविंशमृगापुत्रीयाध्ययननियुक्तिः ॥ निवखेवो अ मिश्राए चउक्कम्रो दुविहो० ।। ४०५ ।। 10 जाणगसरीरभविए० ।। ४०६ ।। मिअआउनामगोयं वेयंतो भावओ मिश्रो होइ । एमेव य पुत्तस्सवि चउक्कप्रो होइ निक्खेवो ॥ ४०७ ।। मिगदेवीपुत्ताश्रो बलसिरिनामा समुट्ठियं जम्हा | तम्हा मिगपुत्तिज्जं प्रज्झयणं होइ नायव्वं ॥ ४०८ ॥ सुग्गीवे नयरंमिश्र राया नामेण आसि बलभद्दो । 15 तस्सासि अग्ग महिसी देवी उ मिगावई नामं ।। ४०९ ।। तेसि दुण्हवि पुत्तो आसी नामेण बलसिरी धीमं । वयरोसभसंघयणो जुवराया चरमभवधारी ।। ४१० ।। उन्नंदमाणहिश्रश्रो पासाए नंदणंमि सो रम्मे । किलई पमदासहिओ देवो दुगुदगो चेव ।। ११ ।। 5 2010_04 Page #428 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ५ ) श्रीउत्तराध्ययननिर्युक्तिः ] [ ४०५ अह अन्नया कयाई पासायतलंमि सो ठिओ संतो । आलोएइ पुरवरे रुदे मग्गे गुणसमग्गे ।। १२ ।। अह पिच्छइ रायपहे वोलंतं समणसंजयं तत्थ । तवनियम संजमधरं सुअसागरपारगं धीरं ।। १३ ।। अह देहइ रायसुओ तं समणं श्ररणमिसाइ दिट्ठीए । कहि एरिसयं रूवं दिट्ठ मन्ने मए पुव्वं ? ।। १४ ।। एवमणुचितयंतस्स सन्नीनाणं तहिं समुप्पन्नं । पुव्वभवे सामन्नं मएवि एवं कथं असि ।। १५ ।। सो लद्धबोहिलाभो चलणे जणगाण वंदिउं मणइ । वीसज्जिउमिच्छामो काहं समणत्तणं ताया ? ।। १६ ।। नाऊण निच्छ्यमई एव करेहित्ति तेहि सो भणिओ । धन्नोऽसि तुमं पुत्ता ? जंसि विरत्तो सुहसएसु ।। १७ ।। सीहत्ता निक्खमिउं सीहत्ता चेव विहरसू पुत्ता ? । जह नवरि धम्मकामा विरत्तकामा उ विहरन्ति ।। १८ ।। 15 नाणेण दंसणेण य चरित्ततवनियमसंजमगुणेहिं । खंतीए मुत्तीए होहि तुमं वडमाणो उ ।। १९ ।। संवेगजणिअहासो मुक्खगमणबद्धचिधसन्नाहो । श्रम्मापिऊण वयणं सो पंजलिओ पडिच्छीय ।। ४२० ।। इड्डीए निक्खतो काऊ समणत्तणं परमघोरं । तत्थ गओ सो धीरो जत्थ गया खीणसंसारा ||४२१॥ ॥ इति एकोनविंशाध्यायननियुक्तिः ॥ १६ ॥ 10 20 2010_04 Page #429 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४०६ ] [नियुक्तिसंग्रहः :: (५) श्रीउत्तराध्ययननियुक्तिः ॥२०॥ अथ विंशतितममहानिर्ग्रन्थीयाध्ययननिर्यक्तिः॥ नाम ठवणादविए खित्ते काले अठाण पइ भावे । एएसि खुड्डुगाणं पडिवक्ख महंतगा हुति ।। ४२२ ।। निक्खेवो नियंठमि चउक्कओ दुविह० ॥२३ ।। 5 जाणगसरीरभविए तब्वइरिते अ निण्हगाईसु । भावे पंचविहे खलु इमेहि दारेहि सो नेओ ।। २४ ।। पण्णवण १ वेय २ रागे ३ कप्प ४ चरित्त ५ पडिसेवणा ६ नाणे ७ । तित्थ ८ लिंग ९ सरिर १० खित्ते ११ 10 काल १२ गइ १३ ठिइ १४ संजम १५ निगासे १६ ।।२।। जोगु १७ वयोग १८ कसाए १९, लेसा २० परिणाम २१ बंधणे २२ उदए २३ । कम्मोदीरण २४ उपसंपजहण २५, सण्णा २६ य आहारे २७ ।। २६ ।। 15 भावा २८ ऽऽगरिसे २९ कालं ३०, तरे ३१ समुग्घाय ३२ खित्त ३३ फुसणा य ३४ । भावे ३५ परिणामे ३६ खलु, महानियंठाण अप्पबहू ३७ ।। २७ ॥ सावज्जगंथमुक्का अभंतरबाहिरेण गंथेण । 20 एसा खलु निज्जुत्ती महानियंठस्स सुत्तस्स ।। ४२४ ।। ॥ इति विंशतितमाध्ययननिर्य क्तिः ॥ २० ॥ 2010_04 Page #430 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५) श्रीउत्तराध्ययननियुक्ति: ] [ ४०७ ॥२१॥ अथ एकविंशतितमसमुद्रपालीयाध्ययन निर्युक्तिः ॥ समुद्देण पालिश्रंमि अ निषखेवु चउक्कओ दुविह दव्य ।४२९ । समुद्दपालिचाऊ वेयंतो भावप्रो य नायव्वो । तत्तो समुट्टिभ्रमिणं समुद्दपालिज्जमज्झयणं ।। ४३० ।। 5 चंपाए सत्थवाहो नामेणं आसि पालिओ नामं । वीरवरस्स भगवओ सो सीसो खीणमोहस्स ।। ३१ ।। ग्रह अन्नया कयाई पोएणं गणिमधरिमभरिएणं । तो नगरं संपत्तो पिहुंडं नाम नामेणं ।। ३२ ।। ववहरमाणस्स तहि पिहुंडे देह वाणिश्रो धूनं । 10 तंपि पति घित्तूण निग्गओ सो ससस्स ।। ३३ ।। ग्रह सा सत्थाहसुश्रा समुद्दमज्झमि पसवई पुत्तं । पिअदंसणसव्वंगं नामेण समुद्दपालित्ति ।। ३४ ।। खेमेणं संपत्तो सो पालिअ सावगो घरं निययं । धाईदसद्धपरिवुडो ग्रह वड्डइ सो उदहिनामो ।। ३५ ।। 15 बावर्त्तरि कलाओ अ सिक्खिओ नीइकोविओ जाहे । तो जुव्वणमप्फुन्नो जाओ पिअदंसणो अहिश्रं ।। ३६ ।। अह तस्स पित्रा पति प्राणेई रूविणित्ति नामेणं । चउसट्टिगुणोवेयं अमरबहूणं सरिसरूवं ।। ३७ ।। अह रूविणीइ सहिग्रो कीलइ सो भवणपुंडरीअंमि । 20 दोगुदगुव्व देवो किकरपरिवारिओ निच्चं ।। ३८ ।। अह अन्नया कयाई ओलोश्रणसंठिनो सदेवीओ । वज्भं नोणिज्जंतं प्रनिज्जतं (पेच्छ तो सो) जणस (व) एहि । 2010_04 Page #431 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४०८ ] [ नियुक्तिसंग्रह: : : ( ५ ) श्रीउत्तराध्ययननिर्युक्तिः अह भणइ सलिनाणी भीश्रो संसारिआण दुक्खाणं । नोआण पावकम्माण हा जहा पावगं इणमो ॥। ४४० ।। संबुद्धो सो भयवं संवेगमणुत्तरं च संपत्तो । आपुच्छिऊण जणए निक्खंतो खायजस कित्ती ॥। ४१ ।। 5 काऊण तवच्चरणं बहूणि वासाणि सो धुयकिलेसो । तं ठाणं संपत्तो जं संपत्ता न सोयंति ।। ४४२ ॥ ॥ इति एकविंशाध्ययननियुक्तिः ॥ २१ ॥ || २२|| अथ द्वाविंशतितमरथने मी वाध्ययननियुक्तिः ॥ रहनेमी निषखेवो चउक्कओ दुविह होइ दव्वंमि० ||४४३ || 10 रहने मिनामगोअं वेयंतो भावओ अ रहनेमी । तत्तो समुट्ठियमिणं रहनेमिज्जंति अज्भयणं । ४४ ।। सोरियपुरंमि नयरे आसी राया समुद्दविजश्रोति । तस्सासि अग्गमहिसी सिवत्ति देवी अणुज्जंगी ।। ४५ ।। तेसि पुसा चउरो अरिट्ठनेमी तहेव रहनेमी । 15 तइओ अ सच्चनेमी चउत्थओ होइ दढनेमी ।। ४६ ।। जो सो अरिनेमी बावीसइमो ग्रहेसि सो अरिहा । रहनेमि सच्चनेमी एए पत्तेयबुद्धा उ ।। ४७ ।। रहने मिस्स भगवओ गिहत्थए चउर हुंति वाससया । संवच्छर छउमत्थो पंचसए केवली हुंति ॥ ४८ ॥ 20 नववाससए वासाहिए उ सव्वाउगस्स नायव्वं । एसो उ चेव कालो रायमईए उ नायव्वो ।। ४४९ ।। ॥ इति द्वाविंशवित माध्ययननियुक्तिः ||२२|| 2010_04 Page #432 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५) श्रीउत्तराध्ययननियुक्तिः ] । ४०६ ॥२३॥ अथ त्रयोविंशतितमकेशीगौतमीया ध्ययननियंक्तिः ॥ निक्खेवो गोअमंमी चउक्कओ दुविः ।। ४५० ।। गोयमनामागोयं वेयंतो भावगोयमो होइ । 5 एमेव य के सिस्सवि निक्खेवो चउक्को होइ । ५१ ।। गोअम केसीओ आ संवायसमुट्ठियं तु जम्हेयं । तो केसिगोयमिज्ज प्रज्झयणं होइ नायवं ॥५२॥ सिक्खावए प्र लिंगे अ, सत्तूणं च पराजए । पासावगत्तणे चेव, तंतूद्धरणबंधणे ।। ५३ ॥ 10 अगणिणिव्वावणे चेव, तहा दुट्ठस्स निग्गहे । तहा पहपरिन्नाय, महासोअनिवारणे ॥ ५४ ।। संसारपारगमणे, तमस्स अ विधायणे। । ठाणोवसंपया चेव, एवं बारससू कमो ।। ४५५ ।। ।२४। अथ चतुर्विंशतितमप्रवचनमात्राध्ययन नियुक्तिः । 15 निवखे पवयणमि (य) चउम्विहो दुविहो य होय दव्वंमि । प्रागमनोमागमओ नोग्रागमओ अ सो तिविहो ।। ४५६ ।। जाणगसरीरभविए तब्वइरित्ते कुतिथिमाईसु ।। भावे दुवालसंगं गणिपिडगं होइ नायव्वं ।। ५७ ।। मायंमि उ निक्खेवो चउविहो. दुविहो० ॥५८ ।। 20 जाणगसरीरभविए तम्वइरित्ते अ भायणे दव्वं । भावमि प्र समिईओ मायं खलु पवयणं जत्थ ॥ ५६ ।। 2010_04 Page #433 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४१० ] [ नियुक्तिसंग्रहः :: (५) श्रीउत्तराध्ययननियुक्तिः अट्ठसुवि समिईसु अ दुवालसंगं समोअरइ जम्हा । तम्हा पवयणमायाप्रज्झयणं होइ नायव्वं ।। ४६० ।। 10 व ॥२५॥ अथ पञ्चविंशतितमयज्ञीयाध्ययन नियुक्तिः । निक्लेवो जन्नमि अ चउक्कओ दुविहो य होइ दव्वंमि । 5 प्रागमनोआगमओ नोआगमनो अ सो तिविहो ।।४६१।। जाणगसरीरभविए तब्वइरित्ते प्र माहाणईसु । तवसंजमेसु जयगा भावे जन्नो मुणेयत्वो ॥ ६२ ॥ जयघोसा अणगारा विजयधोसस्स जन्नकिच्चमि । तत्तो समुट्ठियमिणं अज्झयणं जन्नइज्जंति ।। ६३ ।। वारणार सिनयरीए दो विप्पा आसि कासवसगुत्ता । धणकणगविउलफोसा छक्कम्मरया चउध्वेया ।। ६४ ।। दोवि अजमला भाउअ संपीआ अन्नमन्नणुरत्ता । जयघोसविजययघोसा आगमकुसला सदाररया ।। ६५ ।। अह अन्नया कयाई जयघोसो हाइउं गो गंगं । 15 अह पिच्छइ मंडूक्कं सप्पेण तहि गसिज्जंतं ।। ६६ ।। सप्पोऽवि अ कुललेणं उक्खित्तो पाडिओ य भूमीए । सोऽवि अ कुललो सप्पं अक्कमिउं अच्छए तत्थ ॥ ६७ ।। सप्पोऽवि कुललवसगरो मंडूक्कं खाइ चिचिआइयं । सोऽवि अ कुललो खायइ सप्पं चडेहि गासेहिं ।। ६८ ॥ 20 तं अन्नमन्नघायं जयघोसो पासिऊण पडिबुद्धो । गंगाओ उत्तरिउ समणाणं आगप्रो वसहि ॥ ६६ ।। 2010_04 Page #434 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५) श्रीउत्तराध्ययननियुक्तिः ] [ ४११ सो समणो पन्वइओ निग्गंथो सव्वगंथउम्मुक्को। वोसिरिऊण असारे केसेहि समं परिक्के से ।। ४७० ॥ पंचमहन्वयजुत्तो पंचिदिअसंवुडो गुणसमिद्धो। । घडणजयणप्पहाणो जाओ समणो समिप्रपावो ।। ७१ ॥ 5 ग्रह एगराइआए पडिमाए सो मुणी विहरमाणो। वसुहं दूइज्जतो पत्तो वाणारसि नरि ।। ७२ ।। सो उज्जाण निसनो मासक्खमणेण खेइयसरीरो। भिक्खट्ट बंभणिज्जे उवढिओ जन्नवाडंमि ॥ ७३ ।। ग्रह भणई जयघोसं कीस तुमं आगओ? इहं भंते ! । 10 नहु ते दाहामि इप्रो जायाहि हु अन्नओ भिक्खं ॥७४ ।। सो एवं पडिसिद्धो जन्नवाडंमि जायगेण तहिं । परमत्थदिट्ठसारो नेव य तुट्ठो नवि अ रुहो ।। ७५ ।। अह भणई अणगारो जं जायग ! आउसो निसामेह । वयचरिय भिक्खचरिआ दिट्ठा साहूण चरणमि ।। ७६ ।। 15 रज्जाणि उ प्रवहाया रायसिरि अ(त) णुचरंति भिक्खाए। समणस्स उ मुक्कस्सा भिक्खा चरणं च करणं च ।। ७७ ।। संजाणंतो भणई जयघोसं जायगो विजयघोसो। अस्थि उपभूप्रमन्नं भुजउ भयवं! पगामाए ।।७४ ।। भिक्खेण न मे कज्ज मज्झ करणं तु धम्मचरणेणं । 20 पडिवज्ज धम्मचरणं मा संसारंमि हिडिहिसि ।। ७९ ।। सो समणो पन्वइओ धम्म सोऊण तस्स समणस्स । जयघोस विजयघोसा सिद्धि गया खीणसंसारा ॥ ४८० ।। ॥ इति पञ्चविंशतितमाध्ययननियुक्तिः ॥ २५ ॥ 2010_04 Page #435 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४१२ ] [ नियुक्ति संग्रहः:: (५) श्रीउत्तराध्ययननियुक्तिः २६। अथ षट्विंशतितमसामाचार्यध्ययननियुक्तिः। निक्खेवो सामंमि(य) चउम्विहो दुब्धिहो होइ दवंमि । प्रागमनोआगमओ नोग्रागमओ य सो तिविहो ।। ४८१ ।। जाणगसरीर भविए तस्वइरित्ते अ सक्कराईसु। 5 भावंमि दसविहं खलु इच्छामिच्छाइ होइ ।। ८२ ।। इच्छा मिच्छा तहक्कारो, आवस्सिमा अ निसोहिमा । प्रापुच्छणा य पडिपुच्छा, छंदणा य निमंतरणा ।। ८३ ।। उवसंपया य काले सामायारी भवे दसविहा उ । एएसि तु पयाणं पत्तेय परूवणं वुच्छं ।। ८४ ।। आयारे निक्खेवो चउक्कओ दुवि० ।। ८५ ।। जाणगसरीर भविए तव्वइरित्ते य नामणाईसु। भावंमि दसविहाए सामायारीइ प्रायरणा ॥८६॥ इच्छाइसाममेसु आयरणं वणि तु जम्हेत्थ । 15 तम्हा सामायारी अज्झयणं होइ नायव्वं ॥ ४८७ ॥ 10 ।। ४८८ ।। ॥२॥ अथ साप्तविंशखलुकीयाध्ययननियुक्तिः ॥ निक्खेवो खलुकमि चउविहो० जाणगसरीरभविए तव्वइरित्ते बइल्लमाईसु। पडिलोमो सम्वत्थेसु भावओ होइ उ खलु को ।। ८९ ।। 20 अवदाली उत्तसओ जोत्तजुगभंज तुत्तभंजो प्र। उप्पहविप्पहगामी एय खलुका भवे गोणा ।। ४६० ।। 2010_04 Page #436 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५) श्रीउत्तराध्ययन नियुक्तिः ] [ ४१३ जं किर दव्वं खुज्जं कक्कडगुरुयं तहा दुरवणामं । तं दब्वेसु खलु कं वंककुडिलवेढमाइद्धं ।। ६१ ।। सुचिरंपि वंकडाइं होहिंति अणुज्जइज्जमाणाई। करमंदिदारुआई गयंकुसा इव बिटाई ॥ ९२ ।। 5 दंसमसगस्समाणा जलुयकविच्छ्यसमा य जे हुति । ते किर होंति खलुका तिक्खम्मि उ चंडमद्दविआ ।। ६३ ।। जे किर गुरुपडिणीमा सबला असमाहिकारगा पावा । अहिगरणकारगऽप्पा जिणवयणे ते किर खल का ।। ६४ ।। पिसुणा परोवतावी भिन्नरहस्सा परं परिभवंति । 10 निम्विणिज्जा य सढा जिणवयणे ते किर खलुका ।। ९५ ॥ तम्हा खलुकभावं चइउणं पंडिएण पुरिसेणं । कायव्वा होइ मई उज्जुसमामि भावेणं ।। ४६६ ॥ ।२८। अथ अष्टाविंशमोक्षमार्गगत्यध्ययननियंक्तिः । निक्खेवो मुक्खंमि(य) चउम्विहो० ॥४९७ ॥ 15 जाणगसरीरभविए तव्वहरिते अ नियलमाईसु । अट्ठविहकम्ममुक्को नायवो भावओ मुक्खो ॥ ६८ ।। निक्खेवो मग्गंमि (वि)चउम्विहो० जाणगसरीरभविए तव्वइरित्ते अ जलथलाईसु । भावमि नाणदसणतवचरणगुणा मुणेयन्वा ।। ५०० ।। 20 निक्खेवो उ गईए चउक्कमो दुवि० ।। ५०१ ॥ जाणगसरीरभविए तव्वइरित्ते प्र पुग्गलाईसु। भावे पंचविहा खलु मुक्खगईए प्रहीगारो ॥ ५०२ ।। 2010_04 Page #437 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४१४ ] [ नियुक्तिसंग्रह: : : ( ५ ) श्रीउत्तराध्ययननियुक्ति : मुक्खो मग्गो अ गई वण्णिज्जइ जम्ह इत्थ अज्झयणे । तं एवं अज्झयणं नायव्वं मुक्खमग्गगई ।। ५०३ ।। ।। २९ ।। अथ एकोनत्रिंशत्सम्यक्त्व पराक्रमाध्ययननियुक्तिः ॥ 15 5 आयाणपरणेयं सम्मत्तपरक्कमंति अज्झयणं । ।। ५०५ ।। गुण्णं तु अध्पमायं एगे पुण वीयरागसुयं ॥ ५०४ ॥ निक्खेवो अपमाए चउव्विहो० जाणगभवियरीरे तब्वइरिते श्रमित्तमाईसु । भावे अन्नाणअसंवराईसु होइ नायव्वो ।। ५०६ ।। 10 fredoat अ सुमि चउक्कश्रो दुविहो० ।। ५०७ ।। जाणगभविय सरीरे तव्वरिते श्र सो उ पंचविहो । अंडयबोंडयवालय वागय तह कीडए चेव ।। ५०८ ।। भावसुभ्रं पुण दुविहं चेव होइ मिच्छसुयं । अहियारो सम्मसुए इहमज्यणमि नायव्वो । ५०९ ।। सम्मत्तमप्यमाओ इहमज्यणंमि वणिश्रो जेणं । तम्हेयं श्रज्झयणं णायव्वं श्रप्पमायसूत्रं ॥ ५१० ।। ॥ ३० ॥ अथ त्रिंशत्तपोभार्गगत्यध्ययन निर्युक्तिः ॥ निक्खेवो ( उ ) तवंमि चउव्विहो० जाणगभवियसरीरे तव्वइरिते अ पंचतवमाई । 20 भावंमि होइ दुविहो बज्झो अभितरो चेव ।। १२ ।। 2010_04 ।। ५११ ।। Page #438 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ५ ) श्रीउत्तराध्ययननिर्युक्तिः ] [ ४१५ मग्गगईणं दुण्हवि पुव्वुद्दिट्ठो चउक्कनिवखेवो । पगयं तु भावमग्गे सिद्धिगईए उ नायव्वं ।। १३ ।। दुवितवमग्गगई वन्निज्जइ जम्ह इत्थ प्रज्भयणे । तम्हा एअज्झयणं तवमग्गगइत्ति नायव्वं ।। ५१४ ।। 5 ।। ३१ ।। अथ एकत्रिंशत्तमचारित्रविध्यध्ययननियुक्तिः ॥ निक्खेवो चरणमि (मी) चउव्विहो दुविहो य होइ दव्वंमि । आगमनोआगमओ नोआगमओ य सो तिविहो ।। ५१५ ।। जाणगसरीरभविए तव्वतिरिते य गइ भिक्खमाईसु । 10 प्राचरणे श्राचरणं भावाचरणं तु गायव्वं ।। १६ ।। णिक्खेबो उ विहीए चउव्विहो दुविहो य होइ दव्वंमि । आगमनोआगमओ नोआगमओ य सो तिविहो ।। १७ ।। जाणगसरोरभविए तव्वतिरित्ते य इंदियत्थे । भावविहो पुण दुविहा संजमजोगो तवो चेव ।। १८ ।। 15 पगयं तु भावचरणे भावविहीए अ होइ नायव्वं । चइऊण अचरणविह चरणविहीए उ जइयध्वं ।। ५१९ ॥ || ३२ || अथ द्वात्रिंशत्तमाप्रमादस्थानाध्ययननियुक्तिः ॥ निक्खवो श्रपमाए चउव्विहो० ।। ५२० । 20 जाणगसरीरभविए तव्वइरिते अ मज्जमाईसु । निद्दाविकहकसाया विसएसु भावओ पमाओ ।। ५२१ ।। 2010_04 Page #439 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४१६ ] [ नियुक्तिसंग्रह: : : ( ५ ) श्रीउत्तराध्ययननियुक्तिः नामं ठवणादविए खित्तद्धा उड्ढ उवरई वसही । संजमपग्गहजोहे प्रयलगणणसंघणा भावे ।। २२ ।। भावप्पमाय पगयं संखाजुत्ते अ भावठाणंमि । चइऊणं च (ण इइ) पमायं जइयव्वं अप्पमामि ।। २३ ।। 5 वाससहस्सं उग्गं तवमाइगरस्स आयरंतस्स । जो किर पमायकालो अहोरतं तु संकलिअं ।। २४ ।। वाससवासे अहिए तवं चरंतस्स वह भाणस्स । जो किर पमायकालो अंतमुहुतं तु संकलिन ।। २५ ।। जेसि तु पमाएणं गच्छइ कालो निरत्थओ धम्मे । 10 ते संसारमणंतं हिंडंति पमायदोसेणं ।। २६ ।। तम्हा खलुप्पमायं चइऊणं पंडिएण पुरिसेणं । दंसणनाणचरितं कायठवो अप्पमाम्रो उ ।। ५२७ ।। | ३६ | अथ त्रयत्रिंशत्तमकर्मप्रकृत्यध्ययन नियक्तिः । कम्मंमि अ निक्खेवो चउव्विहो० 9 ।। ५२८ ।। 15 जाणगर्भाविय सरोरे तव्वइरित्तं च तं भवे दुविहं । कम्मे नोकम्मे या कम्मंमिश्र प्रणुदओ मणिओ ।। २६ ।। नोकम्मदव्वकम्मं नायव्वं लेप्यकम्ममाईनं । भावे उदओ भणिओ कम्मट्ठविहस्स नायव्वो ।। ५३० ।। निक्खेवो पयडीए चउब्धिहो० 20 जाणगर्भाविय सरोरा तव्वइरित्ता य सा पुणो दुविहा । कम्मे नोकम्मे या कम्मंमि अ अणुदओ भणिओ ।। ३२ ।। 2010_04 ।। ३१ ।। Page #440 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५) श्रीउत्तराध्ययननियुक्तिः ] [ ४१७ नोकम्मे दवाइं गहणपाउगमुक्कगाई च ।। भावे उदओ भणिओ मूलपडि उत्तराणं च ।। ३२ ।। पगइठिई अणुभागं पएसकम्मं च सुट्ठ नाऊणं । एएसि संवरे खलु खवणे उ सयावि जइअव्वं ॥ ५३३ ।। 5॥३४॥ अथ चतुस्त्रिंशत्तमलेश्याध्ययननियुक्तिः ॥ लेसाणं निवखेवो च उक्कओ दुविह होइ नायवो० ॥५३४॥ जाणगभवियसरीरा तव्वइरित्ता य सा पुणो दुविहा । कम्मा नोकम्मे या नोकम्मे हुति दुविहा उ ॥ ३५ ॥ जीवाणमजीवाण य दुविहा जीवाण होइ नायव्वा । 10 भवमभवसिद्धिआणं दुविहाणवि होइ सत्तविहा ॥ ३६ ।। अजीवकम्मनो दव्वलेसा सा दमविहा उ नायव्वा । चंदाण य सूराण य गहगणनखत्तताराणं ।। ५३७ ॥ आभरणच्छायणादंसगारण मणिकागिणीण जा लेसा । अजीवदव्वलेसा नायव्वा दसविहा एसा ॥३८ ।। 15 जा दश्वकम्प्रलेसा सा नियमा छविहा उ नायव्वा । किण्हा नीला काऊ तेउ पम्हा य सुक्का य ॥ ३६ ।। दुविहा उ भावलेसा विसुद्धलेसा तहेव अविसुद्धा । दुविहा विसुद्धलेसा उवसमखइमा कसायाणं ॥ ५४० ।। अविसुद्धभावलेसा सा दुविहा नियमसो उ नायव्वा । 20 पिज्जमि प्रदोसंमि अ अहिगारो कम्मलेसाए ॥४१ ।। नोकम्मदवलेसा पओगसा वीससा उ नायव्वा । भावे उदओ भणिओ छण्हं लेसाण जीवेसु ।। ४२ ।। 2010_04 Page #441 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४१८ ] [ नियुक्तिसंग्रहः :: (५) श्रीउत्तराध्ययननियुक्तिः प्रज्झयणे निक्लेवो चउक्कओ दुविह होय नायन्यो ।। ४३ ।। जाणगभवियसरीरं तवरित च पोत्थगाईसुं । अज्झप्पस्साणयणं नायव्वं भावमज्झयणं ।। ४४ ॥ एयासि लेसाणं नाऊण सुहासुहं तु परिणामं । 5 चइऊण अप्पसत्थं पसत्थलेसासु जइप्रध्वं ।। ५४५ ।। ॥ ३५ ॥ अथ पञ्चत्रिंशत्तमाणगारमार्गगत्यध्ययन नियुक्तिः॥ अणगारे निक्खेवो चउम्विहो दुविह होइ नायवो० ।।५४६।। जाणगभवियसरीरे तवारिसे अ निहगाईसु । 10 भावे सम्मद्दिट्ठी अगारवासा विणिम्मुक्को ।। ४७ ।। मग्गगईणं दुण्हवि पुश्वुद्दिट्ठो चउपकनिक्खेवो । अहिगारो भावमग्गे सिद्धिगईए उ नायव्यो ।। ५४८ ।। ॥३६ ।। अथ षत्रिंशत्तमजीवाजीवविभक्त्यध्ययन नियुक्तिः॥ 15 निक्खेवो जीवंमि अ चउविहो दुविह होइ नायव्यो० ॥५४६ । जाणगभवियसरीरे तव्वइरित्ते अ जीवदव्वं तु । भावमि दसविहो खलु परिणामो जीवदव्वस्स ॥ ५५० ॥ निक्खेवो अजीवंमि चउब्धिहो दुविह होइ नायवो० ।।५१।। जाणगभवियसरीरे तन्वइरित्ते अजीवदव्वं तु । 20 भामि दसविहो खलु, परिणामो अजीवदध्वस्स ।। ५२ ।। 2010_04 Page #442 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५) श्रीउत्तराध्ययननियुक्तिः ] [ ४१६ निक्खेवो विभत्तीए चउविहो दुविह होइ दव्वंमि० ॥५३।। जाणगभवियसरीरा तम्वइरित्ता य से भवे दुविहा । जीवाणमजीवाण य जीवविभत्ती तहिं दुविहा ।। ५४ ।। सिद्धाणमसिद्धाण य अज्जीवाणं तु होइ दुविहा उ । 5 रूवीणमरूवीण य विभासियवा जहा सुत्ते ॥५५ ।। भावंमि विभत्ती खलु नायव्वा छविहंमि भावंमि । अहिगारो इत्थं पुण दव्व विभत्तीइ अज्झयणे ।। ५५६ ।। जे किर भवसिद्धोया परित्तसंसारिमा य भविप्रा य । ते किर पढंति धीरा, छत्तीसं उत्तरज्झयणे ॥५७ ।। 10 जे हुँति अभवसिद्धीया गंथअसत्ता अणंतसंसारा। ते संकिलिटुकम्मा प्रभविय उत्तरज्झाए ॥ ५८ ।। तम्हा जिणपन्नत्ते अणंतगमपज्जवेहि संजुत्ते । अज्झाए जहाजोगं गुरुपसाया अहिज्झिज्जा ॥ ५५९ ।। 15 ।। इति षट्त्रिंशत्तमाध्ययननियुक्तिः ॥३६॥ ॥ इति श्री उत्तराध्ययनियुक्तिः श्री भद्रबाहुस्वामिभिः कृता समाता ॥५॥ 2010_04 Page #443 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तपोमूर्ति पू० प्रा० श्री विजयकर्पू रसूरिभ्यो नमः ॥६॥ श्री प्राचाराङ्गनियुक्तिः ॥१॥ अथ प्रथमं शस्त्रपरिज्ञाध्ययनम् ।। ॥१-१॥ अथ प्रथमाध्ययने प्रथमोद्देशकः ॥ 5 वंदित्तु सम्वसिद्धे जिणे अ अणुओगदायए सव्वे । प्रायारस्स भगवनो निज्जुत्ति कित्तइस्सामि ।।१।। प्रायार अंग सुयखंध बंभ चरणे तहेव सत्थे य।। परिणाए संणाए निवखेवो तह दिसाणं च ।।२।। चरणदिसावज्जाणं निक्खेवो च उक्कओ य नायव्यो । 10 चरणमि छविहो खलु सत्तविहो होइ उ दिसाणं ।। ३ ।। जत्थ य जं जाणिज्जा निक्खेवं निक्खिवे निरवसेसं । जत्थविय न जाणिज्जा चउक्कयं निविखवे तत्थ ।। ४ ।। आयारे अंगंमि य पुवुट्ठिो चउक्कनिक्खेवो । नवरं पुण नाणत्तं भावायारंमि तं वोच्छं ॥ ५ ॥ तस्सेगट्ठ पवत्तण पढमंग गणी तहेव परिमाणे । समोयारे सारो य सतहि दारेहि नाणत्तं ॥ ६ ॥ प्रायारो आचालो आगालो आगरो य प्रासासो । आयरिसो अंगति य प्राइण्णाऽऽजाइ प्रामोक्खा ।। ७ ।। 15 2010_04 Page #444 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६) श्री आचाराङ्गनिर्युक्तिः ] [ ४२१ ।। ८ ।। सवसि आयारो तित्थस्स पवत्तणे पढमयाए । सेसाई श्रंगाई एक्कारस आणुपुव्वीए श्रायारो अंगाणं पढमं अंगं दुबालसहंपि । इत्थ य मोक्खोवाओ एस य सारो पवयणस्स ।। ९ ।। 5 आयारम्मि श्रहीए जं नाम्रो होइ समणधम्मो उ । तम्हा आयारधरो भण्णइ पढमं गणिट्टणं ।। १० ।। णवबंभचेरमइओ अट्ठारसपयस हस्सिओ वेओ । हवइ य संपंचचूलो बहुबहुतरओ पयग्गेणं ॥। ११ ॥ आयारग्गाणत्थो बंभच्चेरेसु सो समोयरइ । 10 सोऽवि य सत्यपरिण्णाए पिडित्यो समोयर ।। १२ ।। सत्यपरिण्णाअत्थो छस्सुवि काल्सु सो समोयरइ । छज्जीवनियाअत्थो पंचसुवि वएसु ओयरइ ।। १३ ।। पंच य महव्वयाई समोयरंते य सव्वदव्वेसु । सव्वेसि पज्जवाणं अनंतभागम्मि ओयरइ ।। १४ ।। 15 छज्जीवणिया पढमे बीए चरिमे य सव्वदव्वाइं । 20 1 सेसा महत्वया खलु तदेक्कदेसेण दव्वाणं ।। १५ ।। अंगाणं कि सारो ? आयारो, तस्स हवइ कि सारो ? अणुओगत्थो सारो तस्सवि य परूवणा सारो ।। १६ ।। सारो परूवणाएं चरणं तस्सवि य होइ निव्वाणं । निव्वाणस्स उ सारो अव्वाबाहं जिणा बिति ।। १७ ।। बंभम्मी य चउक्कं ठवणाए होइ बंभणुप्पत्ती । सत्तण्हं वण्णाणं नवण्ह वण्णंतराणं च ।। १८ ।। 2010_04 Page #445 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४२२ ] [ नियुक्तिसंग्रहः :: (६) श्री प्राचाराङ्गनियुक्तिः एक्का मणुस्सजाई रज्जुप्पत्तीइ दो कया उसमे । तिण्णेव सिप्पणिए सावगधम्मम्मि चत्तारि ॥ १९ ।। संजोगे सोलसगं सत्त य वण्णा उ नव य अंतरिणो। एए दोवि विगप्पा ठवणा बंभस्स णायव्वा ॥ २० ॥ 5 पगई चउक्कगाणंतरे य ते हंति सत्त वण्णा उ ।। आणंतरेसु चरमो वण्णो खलु होइ णायव्वो ।। २१ ।। अंबठ्ठग्गनिसाया य अजोगवं मागहा य सूया य । खत्ता(य) विदेहाविय चंडाला नवमगा हुंति ।। २२ ।। एगंतरिए इणमो अंबट्ठो चेव होइ उग्गो य। 10 बिइयंतरिअ निसाओ परासरं तं च पुण वेगे ।। २३ ।। पडिलोमे सुद्दाई प्रजोगवं मागहो य सूमो प्र। एगंतरिए खत्ता वेदेहा चेव नायव्वा ॥ २४ ।। बितियंतरे नियमा चण्डालो सोऽवि होइ णायव्यो। अगुलोमे पडिलोमे एवं एए भवे भेया ।। २५ ।। 15 उग्गेणं खत्ताए सोवागो वेणवो विदेहेणं । अंबढीए सुद्दीय बुक्कसो जो निसाएणं ।। २६ ।। सूएण निसाईए कुक्करओ सोवि होइ णायव्वो। एसो बीओ भेनो चउम्विहो होइ गायवो ॥ २७ ।। दव्वं सरीरभविओ अन्नाणी बत्थिसंजमो चेव । 20 भावे उ बस्थिसंजम गायव्यो संजमो चेव ॥ २८ ।। चरणंमि होइ छक्कं गइमाहारो गुणो व चरणं च । खित्तमि जमि खित्ते काले कालो जहिं जाओ (जो उ) ।।२९।। 2010_04 Page #446 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६) श्री आचाराङ्गनियुक्तिः ] [ ४२३ भावे गइमाहारो गुणो गुणवओ पसत्थमपसस्था । गुणचरणे पसस्थेण बंमचेरा नव हवंति ।। ३० ।। सत्थपरिण्णा १ लोगविजओ २ य सीओसणिज्ज ३ सम्मत्तं ४ । तह लोगसारनामं ५ धुयं ६ तह महापरिण्णा ७ य ।। ३१ ।। अट्ठमए य विमोक्खो ८ उपहाणसुयं ९ च नवमगं भरिणयं । इच्चेसो आयारो प्रायारग्गाणि सेसाणि ।। ३२ ।। जिअसंजमो १ अ लोगो जह बज्झइ जह य तं पजहिमध्वं २ । सुहदुवसतितिक्खाविय ३ सम्मत्तं ४ लोगसारो ५ य ।।३३।। निस्संगया ६ य छ8 मोहसमुत्था परोसहुवसग्गा ७ । 10 निज्जाणं ८ अट्ठमए नवमे य जिणेण एवं ति ९ ।। ३४ ।। जीवो छक्कायपरुवणा य तेसि बहे य बंधोत्ति । विरईए अहिगारो सत्थपरिणाए गायवो ॥ ३५ ।। दध्वं सस्थग्गिविसन्नेहंबिलखारलोणमाईयं । भावो य दुष्पउत्तो वाया काप्रो अविरई या ॥३६ ।। 15 दव्वं जाणण पच्चक्खाणे दविए सरीर उवगरणे। भावपरिण्णा जाणण पच्चक्खाणं च भावेणं ।। ३७ ॥ दवे सच्चित्ताई भावेऽणुभवणजाणणा सण्णा । मति होइ जाणणा पुण अणुभवणा कम्मसंजुत्ता ॥ ३८ ।। आहार भय परिग्गह मेहुण सुख दुक्ख मोह वितिगिच्छा। 20 कोह माण माय लोहे सोगे लोगे य धम्मोहे ।। ३६ ।। नामं ठवणा दविए खित्ते तावे य पण्णवग भावे । एस दिसानिक्खेवो सत्तविहो होइ णायवो ॥४० ।। 2010_04 Page #447 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४२४ ] [ नियुक्तिसंग्रहः :: (६) श्री प्राचारागनियुक्तिः 5 तेरसपएसियं खलु तावइएसु भवे पएसेसु। जं दव्वं ओगाढं जहण्णयं तं दसदिसागं ॥४१ ।। अट्ठ पएसो रुयगो तिरियं लोयस्स मज्झयारंमि । एस पभवो दिसाणं एसेव भवे अणुदिसाणं ॥ ४२ ॥ इंदग्गेई जम्मा य नेरुती वारुणी य वायव्वा । सोमा ईसाणावि य विमला य तमा य बोद्धव्वा ।। ४३ ।। दुपएसाइ दुरुत्तर एगपएसा अणुत्तरा चेव । चउरो चउरो य दिसा चउराइ अणुत्तरा दुण्णि ।। ४४ ।। अंतो साईआप्रो बाहिरपासे अपज्जवसिमाओ। 10 सव्वाणंतपएसा सव्वा य भवंति कडजुम्मा ॥ ४५ ।। सगडुद्धीसंठिआओ महादिसाओ हवंति चत्तारि। मुत्तावली य चउरो दो चेव हवंति रुयगनिभा ।। ४: ।। जस्स जनो आइच्चो उदेइ सा तस्स होइ पुवदिसा। जत्तो प्र अत्थमेइ उ प्रवरदिसा सा उ णायव्वा ।। ४७ ॥ 15 दाहिणपासंमि य दाहिणा दिसा उत्तरा उ वामेणं । एया चत्तारि दिसा तावखित्ते उ अक्खाया ।। ४८ ।। जे मंदरस्स पुग्वेण मणुस्सा दाहिणेण अवरेण । जे प्रावि उत्तरेणं सम्वेसि उत्तरो मेरू ॥ ४६ ।। सवेसि उत्तरेणं मेरू लवणो य होइ दाहिणओ। 20 पुवेणं उ?ई अवरेणं अत्थमइ सूरो ॥५०॥ जत्थ य जो पण्णवप्रो कस्सवि साहइ दिसासु य णिमित्तं । जत्तोमहो य ठाई सा पुवा पच्छओ अवरा ॥ ५१ ।। 2010_04 Page #448 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६) श्री श्राचाराङ्गनिर्युक्तिः ] [ ४२५ दाहिणपासंमि उ दाहिणा दिसा उत्तरा उ वामेणं । एयासिमन्तरेणं श्रण्णा चत्तारि विदिसाओ ।। ५२ ।। एयासि चेव प्रटुण्हमंतरा अट्ठ हुंति अण्णाओ । सोलस सरीर उस्स्यबाहल्ला सव्वतिरिथदिसा ।। ५३ ।। 5 हेट्ठा पायतलाणं अहोदिसा सीसउवरिमा उड्डा । एया प्रद्वारसवी पण्णवगदिसा मुणेयब्वा ।। ५४ ।। एवं पकपिआणं दसण्ह प्रदृण्ह चेव य दिसाणं । नामाई वुच्छामी जहक्कमं आणुपुब्बीए ।। ५५ ।। पुव्वा य पुग्वदक्षिण दक्खिण तहा दक्खिणावरा चेव । 10 अवरा य अवरउत्तर उत्तर पुव्वत्तरा चेव । ५६ ।। समुत्थाणी कविला खेलिज्जा खलु तहेव अहिधम्मा | परियाधम्मा य तहा सावित्ती पण्णवित्तीय ।। ५७ ।। हेट्ठा नेरइयाणं अहोदिसा उवरिमा उ देवाणं । 15 एयाई नामाई पण्णवगस्सा दिसाणं तु ।। ५८ ।। सोलसवो तिरियदिसा सगडुद्धीसंठिया मुणेपव्वा । दो मल्लगमूलाओ उड्ड अ अहेवि य दिसाओ ।। ५६ ।। मणुया तिरिया काया तहग्गबीया चउक्कगा चउरो । देवा नेरइया वा अट्ठारस होंति भावदिसा ।। ६० ।। पण्णवर्गादिसारस भावदिसाओऽवि तत्तिया चेव । 20 sarai विधेज्जा हवंति अट्ठारसठारा ।। ६१ ।। पण्णवगदिसाए पुण अहिगारो एत्थ होइ णायव्वो । जीवारण पुग्गलाण य एयासु गयागई अस्थि ।। ६२ ।। 2010_04 Page #449 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४२६ ] [ नियुक्तिसंग्रहः :: (६) श्री प्राचाराङ्गनियुक्तिः केसिंचि नाणसण्णा अस्थि केसिंचि नत्थि जीवाणं । कोऽहं परंमि लोए आसी कयरा दिसाम्रो वा? । ६३ ।। जाणइ सयं मईए अन्नेसि वावि अन्तिए सोच्चा । जाणगजणपण विओ जीवं तह जीवकाए वा ।। ६४ ।। इत्थ य सह संमइअत्ति जं एअं तत्थ जाणणा होई । ओहीमणपज्जवनाणकेवले जाइसरणे य ।। ६५ ।। परवइ वागरणं पुण जिणवागरणं जिणा परं नस्थि । अण्णेसि सोच्चंतिय जिणेहि सव्वो परो अण्णो ॥ ६६ ।। तत्थ प्रकारि करिस्संति बंचिता कया पुणो होइ । 10 सहसम्मइया जाणइ कोइ पुण हेतुजुत्तीए ।। ६७ ।। ॥१-२॥ अथ प्रथमाध्ययने द्वितीयोपृथ्वीकायो देशकः ।। पुढवीए निक्खेवो परूवणालकावणं परीमाणं । उवभोगो सत्थ वेयणा य वहणा निवित्ती य ।। ६८ ।। नामंठवणापुढवी दवपुढवी य भावपुढवी य । 15 एसो खलु पुढवीए निक्खेवो चउविहो होइ ।। ६९ ॥ दव्वं सरीरभविओ भावेण य होइ पुढविजीवो उ । जो पुढविनामगोयं कम्मं वेएइ सो जीवो ॥७० ।। दुविहा य पुढविजीवा सुहुमा तह बायरा य लोगंमि । सुहुमा य सव्वलोए दो चेव य बायरविहाणा ॥७१॥ दुविहा बायरपुढवी समासओ सहपुढवि खरपुढवी । सण्हा य पंचवण्णा अवरा छत्तीसइविहाणा ॥ ७२ ।। 20 2010_04 Page #450 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६) श्री प्राचाराङ्गनियुक्तिः ] [ ४२७ पुढवी य सक्करा वालगा य उवले सिला य लोणूसे । अय तंब तउअ सोसग रुप्प सुवण्णे य वइरे य ॥ ७३ ।। हरियाले हिंगुलए मणोसिला सासगंजण पवाले । अब्भपडलब्भवालग्न बायरकाए मणिविहाणा ॥ ७४ ।। 5 गोमेज्जए य रुयगे अंको फलिहे य लोहियक्खे य । मरगय मसारगल्ले भुयमोयग इंदनीले य ।। ७५ ।। चंदप्पह वेरुलिए जलकते चेव सूरकन्ते य । एए खरपुढवीए नाम छत्तीसयं होइ ।। ७६ ॥ वण्णरसगंधफासे जोणिप्पमुहा भवंति संखेज्जा । 10 णेगाइ सहस्साई हुंति विहाणमि इक्किक्के ।। ७७ ।। वणमि य इविकक्के गंधमि रसंमि तह य फासंमि । नाणत्ती कायवा विहाणए होइ इक्किक्कं ।। ७८ ।। जे बायरे विहाणा पज्जत्ता तत्ति अपज्जत्ता । सुहुमावि हुंति दुविहा पज्जत्ता चेव अपज्जत्ता ॥ ७९ ।। 15 रुक्खाणं गुच्छाण गुम्माण लयाण वल्लिवलयाणं । जह दीसइ नाणत्तं पुढवीकाए तहा जाण ॥८० ।। ओसहि तण सेवाले पणगविहाणे य कंद मूले य । जह दीसइ नाणत्तं पुढवीकाए तहा जाण ।। ८१ ।। इक्कस्स दुण्ह तिण्ह व संखिज्जाण व न पासिउं सका। 20 दीसंति सरीराइं पुढविजियाणं असंखाणं ।। ८२ ।। एएहि सरीरेहिं पच्चक्खं ते परूविया हुंति । सेसा आणागिझा चक्खुफासं न जं इंति ।। ८३ ।। 2010_04 Page #451 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४२८ ] . [ नियुक्तिसंग्रहः :: (६) श्री प्राचारागनियुक्तिः उवओगजोग अज्झदसाणे मइसुय अचक्खुदंसे य ।। अट्टविहोदयलेसा सन्नुस्सासे कसाया य ।। ८४ ।। अट्ठी जहा सरीरंमि अणुगयं चेयणं खरं दिट्ठ। एवं जीवाणुगयं पुढविसरीरं खरं होइ ।।५।। 5 जे बायरपज्जत्ता पयरस्स असंखभागमित्ता ते । सेसा तिन्निवि रासी वीसु लोया असंखिज्जा ।। ८६ ।। पत्थेण व कुडवेण व जह कोइ मिणिज्ज सव्वधन्नाई। एवं मविज्जमाणा हवंति लोया प्रसंखिज्जा ।। ८७ ।। लोगागासपएसे इक्किक्कं निक्खिवे पुढविजीवं । 10 एवं मविजजमाणा हवंति लोआ असंखिज्जा ।। ८८ ।। निउणो उ होइ कालो तत्तो निउणयरयं हवइ खितं । अंगुलसे ढीमित्ते ओसप्पिणीओ असंखिज्जा ।।८९ । अणुसमयं च पवेसो निक्खमणं चेव पुढविजीवाणं । काए कायट्टिइया चउरो लोया असंखिज्जा ।। ६० ।। 15 बायरपुढ विक्काइयपज्जत्तो अन्नमन्नमोगाढो । सेसा ओगाहंते सुहमा पुण सव्वलोगंमि । ६१ ।। चंकमणे य ठाणे निसीयणा तुयट्टणे य कयकरणे। उच्चारे पासवणे उवगरणाणं च निविखवणे ॥ १२ ॥ आलेवण पहरण भूसणे य कयविक्कए किसीए य । भंडाणंपि य करणे उवभोगविही मणुस्साणं ।। ९३ ।। एएहि कारणेहि हिसंति पुढविकाइए जीवे । सायं गवेसमाणा परस्स दुक्खं उदीरंति ॥ ९४ ।। 20 2010_04 Page #452 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६) श्री प्राचाराङ्गनियुक्तिः ] [ ४२९ हलकुलिय--विसकुद्दालालित्तय-मिगसिंग-कट्ठमग्गी य । उच्चारे पासवणे एवं तु समासओ सत्थं ॥९५ ।। किंची सकायसत्थं किंची परकाया तदुभयं किचि । एयं तु दध्वसत्थं भावे अ असंजमो सत्थं ।। ६६ ॥ पायच्छेयण भेयण जंघोरु तहेव अंगुवंगेसु । 5 जह हुति नरा दुहिया पुढविक्काए तहा जाण ।। ९७ ।। नस्थि य सिद्मगुवंगा तयाणुरूवा य वेयणा तेसि । केसिंचि उदीरंती केसिंचऽतिवायए पाणे ॥६॥ पवयंति य अणगारा ण य तेहि गुणेहि जेहि अणगारा । पुढवि विहिंसमाणा नहु ते वायाहि अणगारा ॥ ९९ ।। 10 प्रणगारवाइणो पुढविहिंसगा निग्गुणा अगारिसमा ।। निहोसत्ति य मइला विरइदुगंछाइ मइलतरा ।। १०० ।। केई सयं वहंती केई अन्नेहिं उ वहाविती । केई अणुमन्नंती पुढविकायं वहेमाणा ॥ १०१ ।। जो पुढवि समारंभइ अन्नेऽवि य सो समारभइ काए । 15 अनियाए प्र नियाए दिस्से य तहा आदिस्से य ।। १०२ ।। पुढवि समारभंता हणंति तन्निसिए य बहुजीवे । सुहुमे य बायरे य पज्जत्ते या अपज्जत्ते ॥१०३ ।। एयं वियाणिऊणं पुढवीए निक्खिवंति जे दंडं । तिविहेण सव्वकालं मणेण वायाए काएणं ।। १०४ ।। 20 गुत्ता गुत्तीहिं सव्वाहिं समिया समिईहिं संजया । जयमाणगा सुविहिया एरिसया हुँति प्रणगारा ॥१०५ ।। 2010_04 Page #453 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४३० ] [ नियुक्तिसंग्रहः :: (६) श्री आचाराङ्गनियुक्तिः । ॥ १-३॥ अथ प्रथमाध्ययने तृतीयाप्कायोद्देशकः ॥ 10 आउस्सवि दाराई ताई जाई हवंति पुढवीए । नाणत्ती उ विहाणे परिमाणवभोगसत्थे य ।। १०६ ।। दुविहा उ आउजीवा सुहुमा तह बायरा य लोगंमि । सुहुमा य सव्वलोए पंचेव य बायर विहाणा ।। १०७ ।। सुद्धोदए य उस्सा हिमे य महिया य हरतणू चेव । बायर पाउविहाणा पंचविहा वणिया एए ॥ १०८ ।। जे बायरपज्जत्ता पयरस्स असंखभागमित्ता ते । सेसा तिन्निवि रासी वीसु लोगा प्रसंखिज्जा ।। १०६ ॥ जह हथिस्स सरीरं कललावत्थस्स अहुणोववन्नस्स । होइ उदगंडगस्स य एसुवमा सव्वजीवाणं ।। ११० ।। व्हाणे पिअणे तह धोरणे य भत्तकरणे असेए । पाउस्स उ परिभोगो गमणागमणे य जी (ना)वाणं ॥ ११ ॥ एएहि करणेहि हिसंती प्राउकाइए जीवे । सायं गवेसमाणा परस्स . दुक्खं उदीरेंति ॥१२ ।। 15 उस्सिचणगालणधोवणे य उवगरणमत्तभंडे य । बायरप्राउक्काए एयं तु समासनो सत्थं ॥१३ ।। किची सकाय सत्थं किंची परकाय तदुभयं किंची। एयं तु दव्वसत्थं भावे य असंजमो सत्थं ।। १४ ।। सेसाई दाराई ताई जाई हवंति पुढवीए । 20 एवं प्राउद्देसे निज्जुत्ती कित्तिया एसा ॥११५ ॥ 2010_04 Page #454 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६) श्री आचाराङ्गनियुक्ति: ] [ ४३१ ॥ १-३ ॥ अथ प्रथमाध्ययने चतुर्थतेजस्कायोद्देशकः ॥ तेउस्सवि दाराई ताई जाइं हवंति पुढवीए । नाणत्ती उ विहाणे परिमाणुवभोगसत्थे च ।। ११६ ॥ दुविहा य तेउजीवा सुहमा तह बायरा य लोगंमि । सुहमा य सव्वलोए पंचेव य बायरविहाणा ॥ १७ ।। इंगाल अगणि अच्ची जाला तह मुम्मुरे य बोद्धव्वे । बायरतेउविहाणा पंचविहा वणिया एए ॥ १८ ॥ जह देहपरिणामो रत्ति खज्जोयगस्स सा उवमा । जरियस्स य जह उम्हा तग्रोवमा तेउजीवाणं ।। १९ ।। जे बायरपज्जत्ता पलिअस्स असंखभागमित्ताउ । 10 सेसा तिणिवि रासी वीसु लोगा प्रसंखिज्जा ।। १२० ।। दहणे पयावण पगासणे य भत्तकरणे य सेए य । बायरतेउक्काए उवभोगगुणा मणुस्साणं ।। २१ ।। एएहि कारणेहि हिंसती तेउकाइए जीवे । सायं गवेसमाणा परस्स दुक्खं उदीरंति ।। २२ ।। . 15 पुढवी आउक्काए उल्ला य वणस्सई तसा पाणा । बायरतेउकाए एवं तु समासओ सत्थं ॥ २३ ॥ किची सकायसत्थं किंची परकाय तदुभयं किंची। एयं तु दध्वसत्थं भावे य असंजमो सत्थं ।। २४ ।। सेसाई दाराई ताई जाइं हवंति पुढवीए । 20 एवं तेउद्देसे निज्जुत्ती कित्तिया एसा ॥ १२५ ।। 2010_04 Page #455 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४३२ ] [ नियुक्तिसंग्रहः :: (६) श्रीपाचाराङ्गनियुक्तिः ॥ १-५॥ अथ प्रथमाध्ययनेप श्चमवनस्पतिकायोद्देशकः ॥ पुढवीए जे दारा वणसइकाएऽवि हुँति ते चेव । नाणत्ती उ विहाणे परिमाणुवभोगसत्थे य ।। १२६ ।। दुविह वणस्सइजीवा सुहुमा तह बायरा य लोगंमि । सुहुमा य सव्वलोए दो य भवे बायरविहाणा ॥ २७ ।। पत्तेया साहरण बायरजीवा समासपो दुविहा । बारसविहऽणेगविहा समासओ छविहा हुंति ॥ २८ ।। रुक्खा गुच्छा गुम्मा लया य वल्ली य पध्वगा चेव । तणवलयहरियानोसहिजलरुहकुहणा य बोद्धव्वा ।। २९ ॥ 10 अग्गबीया मूलबीया खंधबीया चेव पोरबीया य । बीयरुहा समुच्छिम समासओ वणसई जीवा ।। १३० ।। जह सगलसरिसवाणं सिलेसमिस्साण वत्तिया वट्टी। पत्तेयसरीराणं तह हुँति सरीरसंघाया ॥३१ ।। जह वा तिलसक्कुलिया बहुएहिं तिलहि मे लिया संतो। 15 पत्तेयसरीराणं तह हुति सरीरसंघाया ।। ३२ ।। नाणाविहसंठाणा दीसंती एगजीविया पत्ता । खंधावि एगजीवा तालसरलनालिएरीणं ।। ३३ ।। पत्तेया पज्जत्ता सेढीए असंखभागमित्ता ते । लोगासंखप्पज्जत्तगाण साहारणाणता ॥ ३४ ॥ 20 एएहि सरीरेहि पच्चवखं ते परूविया जीवा । . सेसा आरणागिझा चक्खुणा जे न दोसंति ।। ३५ ।। 2010_04 Page #456 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६) श्री प्राचाराङ्गनियुक्तिः ] [ ४३३ साहारणमाहारो साहारण आणपाणगहणं च । साहारणजीवाणं साहारणलक्खणं एयंः ।। १३६ ।। एगस्स उ जं गहणं बहूण साहारणाण ते चेव । जं बहुयाणं गहणं समासओ तंपि एगस्स ॥ १३७ ।। 5 जोणिभूए बीए जीवो वक्कमह सो व अन्नो वा । जोऽवि य मूले जीवो सो चिय पत्ते पढमयाए ।। १३८ ।। चक्कागं भज्जमाणस्स गंठो चुण्णघणो भवे । पुढविसरिसभेएणं अणंतजीवं वियाणेहि ॥ १३९ ।। गूढ सिरागं पत्तं सच्छोरं जं च होइ निच्छोरं । 10 जं पुण पणटुसंधिय अणंतजीवं वियाणाहि ।। १४० ।। सेवालकत्थभाणि (छहाणी) यअवए पणए य किंनए य हढे (ट्ठि)। एए प्रणंतजीवा भणिया अण्णे अणेगविहा ।। ४१ । एगस्स दुण्ह तिण्ह व संखिज्जाण व तहा असंखाणं । पत्तेयसरीराणं दीसंति सरीरसंघाया ।।४२ ।। 15 इक्कस्प्त दुह तिण्ह व संखिज्जारण व न पासिउं सक्का । दीसंति सरीराई निग्रोयजीवाणऽणताण ।। ४३ ।। पत्थेण व कुडवेण वजह कोइ मिणिज्ज सव्वधन्नाइं । एवं मविज्जमारणा हवंति लोया अणंता उ ।। ४४ ॥ जे बायरपज्जत्ता पयरस्स असंखभागमित्ता ते । सेसा असंखलोया तिन्निवि साहारणाणता ।। ४ ५ ।। आहारे उवगरणे सयणासण जाण जुग्गकरणे य । आवरण पहरणेसु प्र सत्यविहाणेसु अ बहुसु। ४६ ।। 20 2010_04 Page #457 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४३४ ] [ नियुक्तिसंग्रहः :: (६) श्री प्राचाराङ्गनियुक्तिः आउज्ज कटकम्मे गंधंगे वत्थ मल्लजोए य । झावणवियावणेसु प्र तिल्लविहाणे अ उज्जोए ।। ४७ ।। एएहिं कारणेहिं हिंसंति वणस्सई बहू जीवे । सायं गवेसमाणा परस्स दुक्खं उदीरंति ॥ ४८॥ 5 कप्पणिकुहाणि (डि) असियग-दत्तियकुद्दाल-वासिपरसू अ। सत्थ वणस्सईए हत्था पाया मुहं अग्गी ॥ ४६ ।। किंची सकायसत्थं किंची परकाय तदुभयं किंचि । एयं तु दव्वसत्थं भावे य असंजमो सत्थं ।। १५० ।। सेसाई दाराई ताई जाई हवंति पुढवीए । 10 एवं वणस्सईए निज्जुत्ती कित्तिया एसा ।। ५१ ।। ॥१-६॥ अथ प्रथमाध्ययने षष्ठस्त्रसकायोद्देशकः ।। तसकाए दाराई ताई जाइ हवंति पुढवीए । नाणती उ विहाणे परिमाणवभोगसत्थे य ।। ५२ ।। दुविहा खलु तसजीवा लद्धितता चेव गइतसा चेव । 15 लद्धीय तेउवाऊ तेणऽहिगारो इहं नस्थि ।। ५३ ।। नेरइयतिरियमणुया सुरा य गइओ चउविवहा चेव । पज्जत्ताऽपज्जत्ता नेरइयाई अ नायव्वा ।। ५४ ।। तिविहा तिविहा जोणी अंडापोअअजराउआ चेव । बेइंदिय तेइन्दिय चउरो पंचिदिया चेव ॥ ५५ ॥ दारं ।। 20 दंसणनाणचरिते चरियाचरिए अ दाणलाभे अ । उवभोगभोगवीरिय इंदियविसए य लद्धी य ।। ५६ ।। 2010_04 Page #458 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६) श्री प्राचराङ्गनियुक्तिः ] [ ४३५ उवओगजोगप्रझवसाणे वीसुच लद्धि (प्रोदइया)णं उदया। अट्ठविहोदय लेसा सन्नुसासे कसाए प्र॥५७ ।। लक्षणमेवं चेव उ पयरस्स असंखभागमित्ता उ । निक्खमणे य पवेसे एगाईयावि एमेव ॥ ५८ ।। 5 निक्खमपवेसकालो समयाई इत्थ आवलीभागो। अंतोमुहत्तऽविरहो उदहिसहस्साहिए दोन्नि ।। ५६ ॥ दारं ॥ मंसाईपरिभोगो सत्थं सत्थाइयं अणेगविहं । सारीरमाणसा वेयणा य दुविहा बहुविहा य ।।१६०॥ दारं ॥ मंसस्स केइ अट्ठा केइ चम्मस्स केइ रोमाणं । 10 पिच्छाणं पुच्छाणं दंताणऽट्ठा वहिज्जति ।। ६१ ॥ केई वहति अट्ठा केइ अणट्टा पसंगदोसेणं । कम्मपसगपसत्ता बंधति वहति मारंति ।। ६२ ।। सेसाई दाराई ताई जाई हवंति पुढवीए । एवं तसकायंमी निज्जुत्ती कित्तिया एसा ॥ १६३ ।। 15 ॥१-७॥ अथ प्रथमाध्ययने सप्तमवायुकायोद्देशकः॥ वाउस्सऽवि दाराई ताई जाई हवंति पुढवीए । नाणत्ती उ विहाणे परिमाणुवभोगसत्थेय ।। १६४ ।। दुविहा य वाउजीवा सुहुमा तह बायरा उ लोगंमि । सुहुमा य सबलोए पंचेव य बायरविहाणा ।। ६५ ।। 20 उक्कलिया मंडलिया गुंजा घणवाय सुद्धवाया य । बायरवाउविहाणा पंचविहा वणिया एए ।। ६६ ।। 2010_04 Page #459 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४३६ ] [ नियुक्तिसंग्रह: :: ( ६ ) श्री आचाराङ्गनिर्युक्तिः जह देवस्स सरीरं अंतद्वाणं व अंजणाईसु । एओवम प्राएसो वाएऽसंतेऽवि रूवंमि । ६७ ।। जे बायरापज्जत्ता पयरस्स असंखभागमित्ता ते । सेसा तिन्निवि रासी वीसु ́ लोगा असंखिज्जा ।। ६८ ।। दारं ।। 5 वियणधमणाभिधारण उस्सिचणफुसण आणुपाणू श्र । बायरवा उक्काए उवभोगगुणो मणुस्साणं ।। ६९ ।। विअणे अ तालवंदे सुप्पसियपत्त चेलकण्णे य । अभिधारणा य बाहि गंधग्गी वाउसत्थाई || १७० ।। सेसाई दाराई ताइं जाई हवंति पुढवीए । 10 एवं वाउदेते निज्जुती कित्तियां एसा ।। १७१ ।। ॥ इति प्रथमशस्त्रारिज्ञाध्ययनम् ॥ १ ॥ || २ || अथ लोकविजयाख्यं द्वितीयमध्ययनम् ॥ || २ - १॥ अथ द्वितीयाध्ययने द्वितीयोदेशकः ॥ सयणे य प्रददत्तं बीयंगमि माणो अ अत्थसारो न । 15 भोगेसु लोगनिस्साइ लोगे अमभिज्जया चेव ।। १७२ ।। लोगस्स य विजयस्स य गुणस्स मूलस्स तह य ठाणस्स । निवखेवो कायव्वो जंमूलागं च संसारो ।। ७३ ।। लोगोत्ति य विजअत्ति य अज्भयणे लक्खणं तू निष्कण्णं । गुणमूलं ठाणंति य सुत्तालावे य निष्कण्णं ।। ७४ ।। 20 लोगस्स य निक्खेवो प्रट्ठविहो छव्विहो उ विजयस्स । भावे कसायलोगो अहिगारो तस्स बिजएणं ।। ७५ ।। 2010_04 Page #460 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६) श्री श्राचाराङ्गनिर्युक्तिः ] [ ४३७ लोगो भणिम्रो दव्यं खित्तं कालो अ भावविजओ अ । भव लोग भावविजओ पगयं जह बज्झई लोगो ।। ७६ ।। विजिओ कसायलोगो सेयं खु तओ नियत्तिउं होइ । कामनियत्तमई खलु संसारा मुच्चई खिप्पं ।। ७७ ।। दध्ये खित्ते काले फल पज्जब गणण करण अबभासे । गुणअगुणे श्रगुणगुणो भव सीलगुणे य भावगुणे ।। ७८ ।। दव्वगुणो दव्यं चिय गुणाण जं तंमि संभवो होइ । सच्चित्ते अच्चित्ते मीसंमि य होइ दव्वंमि ।। ७९ ।। संकुचियवियसियत्तं एसो जीवस्स होड जीवगुणो । 10 पूरेइ हंदि लोगं बहुप्पएसत्तणगुणेनं ।। १८० ।। देवकुरु सुतमसुसमा सिद्धी निब्भय दुगादिया चेव । कल भोअणुज्जु बंके जीवमजीवे य भाषमि ।। ८१ ।। मूले छषकं दब्वे ओदइउबएस आइमूलं च । खिते काले मूलं भावे मूलं भवे तिषिहं ।। ८२ ।। 15 ओदइयं उर्वादिट्ठा श्राइ लिगं मूलभाव प्रोदइअं । 5 प्रायरिओ उवदिट्ठा विजयकसायादिओ आई ।। ८३ ।। णामंठवणादविए खित्तद्धां उड्डू उबरई वसही । संजम पग्गह जोहे अयल गणण संघणा भावे ।। ८४ ।। पंचसु कामगुणेसु य सद्दफरिसर सरूवगंधेसु । 20 जस्स कसाया वट्टति मूलट्ठाणं तु संसारे ।। ८५ ।। जह सच्चपायवाणं भूमीए पइट्टियाणि मूलाई । इयं कम्मपामवाणं संसारपइट्टिया मूला ।। ८६ ।। 2010_04 Page #461 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४३८ ] [नियुक्तिसंग्रहः :: (६) श्री आचारागनियुक्तिः अविहकम्मरुक्खा सम्वे ते मोहणिज्जमूलागा। कामगुणमूलगं वा तम्मूलागं च संसारो ॥ ७ ॥ दुविहो प्र होइ मोहो दसणमोहो चरितमोहो । कामा चरित्तमोहो तेणऽहिगारो इहं सुत्ते ।। ८८ ।। संसारस्स उ मूलं कम्मं तस्सवि हुंति य कसाया। ते सयणपेसअस्थाइएसु अज्झत्थानो अ ठिआ ।। ८६ ॥ णामंठवणादविए उप्पत्ती पच्चए य आएसो । रसभावकसाए या तेण य कोहाइया चउरो ॥ १९ ॥ दव्वे खित्ते काले भवसंसारे प्र भावसंसारे । पंचविहो संसारो जत्थेते संसरंति जिन्ना ।। ६१ ।। णामंठवणाकम्मं दव्वकम्मं पओगकम्मं च ।। समुदाणिरियावहियं प्राहाकम्मं तवोकम्मं ।। ९२ ॥ किइकम्म भावकम्म दसविह कम्मं समासओ होइ । अविहेण उ कम्मेण एत्थ होई अहीगारो ।। ६३ ।। 15 संसारं छेतुमणो कम्मं उम्मूलए तदट्ठाए । उम्मूलिज्ज कसाया तम्हा उ चइज्ज सयणाई ।। ९४ ।। माया मेत्ति पिया मे भगिणी भाया य पुत्तदारा मे। अत्यमि चेव गिद्धा जम्मणमरणाणि पावंति ॥ १९ ।। ॥२-२॥ अथ द्वितीयाध्ययने द्वितीयो द्देशकः ॥ 20 बिइ उद्देसे अदढो उ संजमे कोइ हुज्ज परईए । अनाण कम्मलोभाइएहिं अज्झत्थदोसेहिं ।। १९६ ।। ॥ इति द्वितीय-लोकविजयाध्ययनम् ॥२॥ 2010_04 Page #462 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६) श्री प्राचाराङ्गनिर्युक्तिः ] [ ४३९ ॥ ३ ॥ अथ शीतोष्णीयाख्यं तृतीयमध्ययनम् ॥ ।। ३ - १ ।। अथ तृतीयाध्ययनने प्रथमोद्देशकः ॥ पढमे सुत्ता प्रस्संजयत्ति १ बिइए दुहं अणुहवंति २ । तइए न हू दुषखेणं अकरणयाए व समणुत्ति ३ ।। १९७ ।। 5 उद्देसंमि चउथे अहिगारो उ बमणं कसायाण । पावविरईओ विप्रोसो संजमो इस्थ मुक्खुत्ति ४ ॥ ६८ ॥ नामं ठवणा सीयं दव्वे भावे य होइ नायव्वं । एमेव य उहस्सवि चतुव्विहो होइ निक्लेवो ।। ६६ ।। दव्बे सीयलदव्वं दण्डं चेव उण्हदब्वं तु । 10 भावे उ पुग्गलगुणो जीवस्स गुणो प्रणेगविहो । २०० ।। सीयं परीसह पमायुवसमविरई सुहं चउन्हं तु । परीसह तवज्जमकसाय सोगाहिषेयारई दुक्खं । २०१| दारं || इत्थी सक्कारपरीसहो य दो भावसीयला एए । सेसा वीसं उण्हा परीसहा हुंति नायव्वा ।। २०२ ।। 15 जे तिब्वप्परिणामा परीसहा ते भवंति उण्हा उ । जे मंदष्परिणामा परीसहा ते भवे सीया ।। २०३ ।। दारं ।। धमंमि जो पमायइ अत्थे वा सीअलुत्ति तं बिति । उज्जुत्तं पुण अन्नं तत्तो उण्हंति णं बिति ।। २०४ ।। दारं ।। सीईओ परिनिव्वुओ य संतो तहेव पण्हाणो ( ल्हाओ ) । 20 होउवसंतकसाओ तेणुवसंतो भवे जीवो ॥। २०५ ।। दारं ॥ 2010_04 Page #463 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( नियुक्तिसंग्रह: :: ( ६ ) श्री श्राचाराङ्गनिर्यु क्तिः अभयकरो जीवाणं सीयधरो संजमो भवइ सीओ । अस्संजमो य उन्हो एसो अन्नोऽवि पज्जाओ ।। २०६ ।। दारं । निव्वाणसुहं सायं सीईभूयं पयं प्रणाबाहं । इहमवि जं किचि सुहं तं सीयं दुक्खमवि उन्हं ।। २०७ ।। 5 डज्झइ तिव्वकसाओ सोगभिभूओ उद्दन्नवेश्रो य । उन्हयरो होइ तवो कसायमाईवि जं डहइ ।। २०८ ।। सीउन्हकासह दुपरी सहकसाय वेयसोयसहो । हुज्ज समणो सया उज्जुप्रो य तवसंजमोवसमे ॥। २०६ ।। सीयाणि य उण्हाणि य भिक्खूणं हुंति विसहियव्वाई । 10 कामा न सेवियव्वा सीग्रोसणिज्जस्स निज्जुत्ती ।। २१० ।। सुत्ता अमुणिओ सया मुणिओ सुत्तावि जागरा हुंति । धम्मं पडुच्च एवं निहासुत्तेण भइयव्वं ।। ११ । जह सुत्त मत्त मुच्छिय असहीणो पावए बहुं दुक्खं । तिव्वं प्रपडियारंपि वट्टमाणो तहा लोगो ।। १२ ।। 15 एसेव य उवएसो पदित्त पयलाय पंथमाईसु । अणुहवाइ जह सचेओ सुहाई समणोऽवि तह चेव ।। २१३ ।। ॥ इति शीतोष्णीयतृतीयमध्ययनम् || ३ || ४४० ] 2010_04 Page #464 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६) श्री प्राचाराङ्गनियुक्तिः ] [ ४४१ ॥४॥अथ सम्यक्त्वाख्यचतुर्थाध्ययन नियुक्ति । ॥४-१ ॥ अथ चतुर्थाध्ययने प्रथमोद्देशकः ।। पढमे सम्मावाओ बीए धम्मप्पवाइयपरिक्खा । तइए अणवज्जतवो न हु बालतवेण मुक्खुत्ति ।। २१४ ।। 5 उद्देसंमि चउत्थे समासवयणेण णियमणं भणियं । तम्हा य नाणदंसणतवचरणे होइ जइयव्वं ॥१५॥ नामंठवणासम्म दध्वसम्मं च भावसम्मं च ।। एसो खलु सम्मस्सा निक्खेवो चउम्बिहो होइ ।। १६ ।। अह दव्यसम्म इच्छाणुलोमियं तेसु तेसु दवेसु। 10 कयसंखयसंजुत्तो प (उव) उत्त जढ भिण्ण छिण्णं वा ।।१७॥ तिविहं तु भावसम्मं दसण नाणे तहा चरित्ते य । दंसणचरणे तिविहं नाणे दुविहं. तु नायव्वं ।। १८ ।। कुणमाणोऽवि य किरियं परिच्चयंतीवि सयणधणभोए । दितोऽवि दुहस्स उरं च जिणइ अंधो पराणीयं ।। १९ ।। 15 कुणमाणोऽवि निवित्तं परिच्चयंतोऽवि सयणधणभोए । दितोऽवि दुहस्स उरं मिच्छद्दिट्ठी न सिज्झइ उ ।। २२० ।। तम्हा कम्माणीयं जेउमणो दसणंमि पयइज्जा । दंसणवओ हि सफलाणि हुंति तवनाणचरणाई ।। २१ ।। सम्मत्तुपत्ती सावए य विरए अणंत कम्मसे । 20 दंसणमोहवखवए उवसामन्ते य उवसते ।। २२ ।। खवए य खीणमोहे जिणे अ सेढी भवे असंखिज्जा। तविवरीओ कालो संखिज्जगुणाई सेढीए ।। २३ ।। 2010_04 Page #465 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४४२ ] [ नियुक्तिसंग्रहः :: (६) श्रीपाचाराङ्गनियुक्ति: आहार उवहिपूआ इड्डीसु य गारवेसु कइतवियं । एमेव बारसविहे तमि न हु कइतवे समणो ॥ २२४ ।। जे जिणवरा आईया जे संपइ जे अणागए काले । सम्वेवि ते अहिंसं वदिसु वदिहिति विवादिति ॥ २५ ।। 5 छप्पिय जीवनिकाए णोवि हणे णोऽवि अहणाविज्जा। नोऽवि अ अणुमनिज्जा सम्मत्तस्सेस निजुत्ती ।। २२६ ।। ॥४-२ ॥ अथ चतुर्थाध्ययने द्वितीयोद्देशकः ॥ खुडुग पायसमासं धम्मकहंपि य अजंपमाणेणं । छन्नेण अनलिंगी परिच्छिया रोहगुत्तेणं ।। २२७ ।। 10 भिक्खं पविट्ठण मएऽज्ज दिट्ठ, पमयामुह कमलविसालनेत्तं । वक्खित्तचित्तेण न सुट्ठ नाय, सकुडलं वा वयणं न वत्ति ।२८। फलोदएणं मि गिहं पविट्ठो, तत्थासणस्था पमया मि दिट्ठा । वविखत्तचित्तेण न सुट्ठ नायं, सकुडलं वा वयणं न वत्ति ।२६। मालाविहारंमि मएऽज्ज दिट्ठा, उवासिया कंचणभूसियंगी। 15 वक्खित्तचित्तेण न सुट्ठ नायं, सकुंडलं वा वयणं न वत्ति २३० खंतस्स दंतस्स जिइंदियस्स, अझप्पजोगे गयमाणसस्स । कि मज्झ एएण विचितिएणं?, सकुडलं वा वयणं न वत्ति ।३१। उल्लो सुक्को य दो छूढा, गोलया मट्टियामया । दोवि आवडिया कुड्डे, जो उल्लो तत्थ(सोऽथ) लग्गइ ।।३२। 20 एवं लग्गति दुम्मेहा, जे नरा कामलालसा । विरत्ता उ न लग्गति, जहा से सुक्कगोलए ॥ २३३ ॥ 2010_04 Page #466 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६) श्री आचाराङ्गनियुक्तिः ] [ ४४३ ॥४-३॥ अथ चतुर्थाध्ययने तृतीयोद्देशकः॥ जह खलु झुसिरं कट्ट सुचिरं सुक्कं लहुं डहइ अग्गी। तह खलु खवंति कम्मं सम्मच्चरणे ठिया साहू ॥ २३४ ।। ॥ इति चतुर्थं सम्यक्त्वाध्ययनम् ॥ ४ ॥ 5 ॥५॥ अथ लोकसाराख्यपञ्चमाध्ययननिर्यक्तिः ।। ॥५-१॥ अथ पञ्चमाध्ययने प्रथमोदेशकः ।। हिंसागविसयारंभग एगचरुत्ति न मुणी पढमगंमि । विरओ मुणित्ति बिइए अविरयवाई परिग्गहिओ ॥२३॥ तइए एसो अपरिगहो य निविनकामभोगो य । 10 अव्वत्तस्सेगचरस्स पच्चवाया चउत्थंमि ।। ३६ ।। हरओवमो य तवसंयमगुत्ती निरसंगया य पंचमए । उम्मग्गवज्जणा छट्टगंमि तह रागदोसे य ।। ३७ ।। आयाणपएणावंति गोण्णनामेण लोगसारुत्ति । लोगस्स य सारस्स य च उक्कओ होइ निक्खेवो ॥ ३४ ॥ 15 सव्वस्स थूल गुरूए मज्झे देसप्पहाण सरिराई । धण एरंडे वहरे खइरंवं च जिणादुरालाई ॥ ३९ ॥ भावे फलसाहणया फलमो सिद्धी सुहुत्तमवरिट्ठा । साहणय नाणदंसणसंजमतवसा तहिं पगयं ।। २४० ।। लोगंमि कुसमएस य कामपरिग्गहकुमग्गलग्गेसु । 20 सारो हु नाणदंसगतवचरणगुणा हियट्ठाए ॥ ४१ ॥ 2010_04 Page #467 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४४४ ] [ नियुक्तिसंग्रहः :: (६) श्री प्राचाराङ्गनियुक्तिः चइऊणं संकपयं सारपयमिणं दढेण चित्तव्वं । अस्थि जिओ परमपयं जयणा जा रागदोसेहि ॥ ४२ ॥ लोगस्स उ को सारो? तस्स य सारस्स को हवइ सारो ? । तस्स य सारो ? सारं जइ जाणसि पुच्छियो साह ।। ४३ ।। 5 लोगस्स सार धम्मो धम्मपि य नाणसारियं बिति । नाणं संजमसारं संजमसारं च निव्वाणं ।। ४४ ।। चारो चरिया चरणं एगटुं वंजणं तहि छक्कं । दव्वं तु दारुसंकम जलथलचाराइयं बहुहा ।। ४५ ।। खित्तं तु जंमि खित्ते कालो काले हि भवे चारो। भावमि नाणदंसणचरणं तु पसत्थमपसत्थं ॥४६ ।। लोगे चउब्धिहमी समणस्स चउत्रि हो कहं चारो?। होई धिई अहिगारो विसेसमो खित्तकालेस ।। ४७ ।। पावोवरए अपरिग्गहे अ गुरुकुलनिसेवए जुत्ते । उम्मग्गवज्जए रागदोसविरए य से विहरे ॥ २४८ ॥ 10 15 ॥६॥ अथ धूताख्यषष्टाध्ययननियुक्तिः ॥ ॥६-१॥ षष्ठाध्ययनप्रथमोद्देशकः॥ पढमे नियगविहुणणा कम्माणं बितियए तइयगंमि । उवगरणसरीराणं च उत्थए गारवतिगस्स ॥ २४९ ।। उवसग्गा सम्माणयविहूपाणि पञ्चमंमि उद्देसे । 20 दव्वधुयं वत्थाई भावधुयं कम्म अविहं ॥ २५० ।। 2010_04 Page #468 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६) श्री आचाराङ्गनियुक्तिः ] [ ४४५ अहियासित्तवसग्गे दिवे माणस्सए तिरिच्छे य । जो विहुणइ कम्माइं भावधुयं तं वियाणाहि ।। २५२ ।। ॥प्रथम उद्देशकः ॥६-१॥ ॥ ८ ॥ अथ विमोक्षाख्याष्टमाध्ययननियुक्तिः ॥ ॥८-१॥ अथाष्टमाध्ययनप्रथमोद्देशकः ॥ असमणुन्नस्स विमुक्खो पढमे बिइए अकप्पियविमुक्खो। पडिसेहणा य रुटस्त चेव सब्भावकहणा य ॥ २५३ ।। तइयंमि अंगचिट्ठाभासियं आसंकिए य कहणा य । सेसेसु अहीगारो उवगरणसरीरमुक्खेसु ॥ ५४ ।। 10 उद्देसंमि चउत्थे बेहाणसगिद्धपिट्ठमरणं च । पंचमए गेलन्नं भत्तपरिना य बोद्धव्वा ।। ५५ ।। छट्ठमि उ एगत्तं इंगिणिमरणं च होइ बोद्धव्वं । सत्तमए पडिमानो पायवगमणं च नायव्वं ।। ५६ ।। अणुपुग्विविहारीणं भत्तपरिन्ना य इंगिणीमरणं । पायवगमणं च तहा अहिगारो होइ अट्ठमए ।। ५७ ॥ नामंठवणविमुक्खो दवे खित्ते य काल भावे य ।। एसो उ विमुक्खस्सा निक्खेवो छविहो होइ ।। ५८ ।। दम्वविमुक्खो नियलाइएसु खित्तंमि चारयाईसु। काले चेइयमहिमाइएसु प्रणघायमाईप्रो ॥५६ ।। 20 दुविहो भावविमुक्नो देसविमुक्खो य सवमुक्खो य । देसविमुक्खा साहू सम्वविमुक्खा भवे सिद्धा ।। २६० ।। 2010_04 Page #469 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४४६ ] [ नियुक्तिसंग्रहः :: (६) श्री प्राचाराङ्गनियुक्तिः कम्मयदव्वेहि समं संजोगो होइ जो जीवस्स । सो बंधो नायवो तस्स विओगो भवे मुक्खो ॥ ६१ ॥ जीवस्स अत्तजणिएहि चेव कम्मेहि पुत्वबद्धस्स । सव्वविवेगो जो तेण तस्स अह इत्तिओ मुक्खो ॥ ६२॥ भत्तपरिना इंगिणि पायवगमणं च होइ नायव्वं । जो मरइ चरिममरणं भावविमुक्खं वियाणाहि ।। ६३ ।। सपरिक्कमे य अपरिक्कमए य वाघाय प्राणुपुवीए । सुत्तत्थजाणएणं समाहिमरणं तु कायव्वं ।। ६४ ।। सपरक्कममाएसो जह मरणं होइ अज्जवइराणं । 10 पायवगमणं च तहा एयं सपरक्कम मरणं ।। ६५ ।। अपरक्कममाएसो जह मरणं होइ उदहिनामाणं । पाम्रोवगमेऽवि तहा एयं अपरक्कम मरणं ॥ ६६ ।। वाघाइयमाएसो प्रवरद्धो हुज्ज अन्नतरएणं । तोसलि महिसीइ हो एवं वाघाइयं मरणं ।। ६७ ।। 15 अणुपुस्विगमाएसो पव्वज्जासुत्तमत्थकरणं च । बोसज्जिओ य निन्तो मुक्को तिविहस्स नीयस्स ॥६८ ।। पडिचोइओ य कुविओ रण्णो जह तिक्ख सीयला आणा । तंबोले य विवेगो घट्टणया जा पसाओ य ।। ६६ ।। निफाईया य सीसा सउणी जह अंडगं पयत्तेणं । 20 बारससंवच्छरियं सो संलेहं अह करेइ ॥ २७० ।। चत्तारि विचित्ताई विगई निज्जहियाई चत्तारि । संवच्छरे य दुन्नि उ एगंतरियं तु आयाम ।। ७१ ।। 2010_04 Page #470 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६) श्री आचाराङ्गनियुक्तिः ] । ४४७ नाइविगिट्ठो उ तवो छम्मासे परिमियं तु आयामं । अन्नेऽवि य छम्मासे होइ विगिळं तवोकम्मं ।। ७२ ।। घासं कोडीसहियं प्रायाम काउ आणुपुध्वीए । गिरिकंदरंमि गंतु पायवगमणं अइ करेइ ।। ७३ ।। 5 कह नाम सो तवोकम्मपंडिओ जो न निच्चुजुत्तप्पा । लहुवित्तीपरिक्खेवं वच्चइ जेमंतनो चेव ? ॥७४ ।। आहारेण विरहिओ अप्पाहारो य संवरनिमित्तं । हासंतो हासंतो एवाहारं निरु भिज्जा ।। २७५ ।। ॥९॥ अथोपधान श्रुताख्य-नवमाध्ययननियुक्तिः ॥ 10 जो जइया तित्थयरो सो तइया अप्पणो य तित्थम्मि । वष्णेइ तवोकम्म ओहाणसुयंमि अज्झयणे ।। २७६ ।। सन्वेसि तवोकम्मं निरुवसग्गं तु वणिय जिणाणं । नवरं तु वद्धमाणस्स सोवसग्गं मुणेयध्वं ।। ७७ ।। तित्थयरो घउनाणी सरमहिओ सिज्झियव्वयं धुवम्मि । 15 प्रणिगृहियबलविरिओ तवोधिहाणंमि उज्जमइ ॥ ७८ ।। कि पुण अवसेसेहिं दुक्खक्खयकारणा सुविहिएहि । होइ न उज्जमियव्वं सपच्चवायंमि माणुस्से ? || ७६ ।। चरिया १ सिज्जा य २ परीसहा य ३ आयंकिया(ए) चिगिच्छा ४ य । 20 तवचरणेणऽहिगारो चउसद्देसेसु नायव्यो ।। २८० ।। नामंठवणुवहाणं दब्वे मावे य होइ नायव्वं । एमेव य सुत्तस्सवि निक्लेवो चउविहो होइ ।। २८१ ।। 2010_04 Page #471 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४४८ ] [ नियुक्तिसंग्रहः :: (६) श्री आचारागनियुक्तिः दन्वुवहाणं सयणे भावुवहाणं तवो दरित्तस्स । तम्हा उ नाणदंसणतवचरणेहिं इहाहिगयं ।। ८२ ।। जह खलु मइलं वत्थं सुज्झइ उदगाइएहिं दवेहि । एवं भावुवहाणेण सुज्झए कम्ममविहं ।। ८३ ।। 5 ओधूणण धुणण नासण विणासणं झवण खवण सोहिकरं । छयण भेयण फेडण डहणं धुवणं च कम्माणं ।। ८४ ॥ एवं तु समणुचिन्नं वीरवरेणं महाणुभावेणं ।। जं अणुचरित्तु धीरा सिवमचलं जन्ति निव्वाणं ।। २८५ ॥ 10 ॥ २ ॥ अथ द्वितीयश्रुतस्कन्धः ॥ चूलिका-२ ॥ द्वितीय-शरयैषणाध्ययननियुक्तिः ॥ दव्वे खित्ते काले भावे सिज्जा य जा तहि पगयं । केरिसिया सिज्जा खलु संजयजोगत्ति नायव्वा ? ।। २८६ ।। तिविहा य दवसिज्जा सचित्ताऽचित्त मीसगा चेव । 15 खित्तंमि जंमि खित्ते काले जा जंमि कालंमि ।। ८७ ।। उक्कलकलिंग गोग्रम वग्गुमई चेव होइ नायव्वा । एयं तु उदाहरणं नायव्वं दवसिज्जाए ।। ८८ ।। दुविहा य भावसिज्जा कायगए छविवहे य भावमि । भावे जो जत्थ जया सुहदुहगडभाइसिज्जासु ।। ८९ ।। 20 सव्वेवि य सिज्जविसोहिकारगा तहवि अस्थि उ विसेसो । उद्देसे उद्देसे वुच्छामि समासपो किचि ।। २९० ।। 2010_04 Page #472 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६) श्री आचाराङ्गनिर्युक्तिः ] [ ४४९ उग्गमदोसा पढमिल्लुयंमि संसत्तपच्चवाया य १ । बीयंमि सोअबाई बहुविहसिज्जाविवेगो २ य ।। ६१ ।। तइए जयंतछलणा सज्झायस्सऽणुवरोहि जद्दयव्वं । समविसमाईएस य समणेणं निज्जरट्ठाए ३ ।। २९२ ।। ॥ ३ अथ तृतीयेर्याध्ययन- नियुक्तिः ॥ नाम १ ठवणाइरियार दव्वे३ खित्ते४ य काल५ भावे ६ य । एसो खलु इरियाए निक्खेवो छविहो होइ ।। २९३ ।। दव्वइरियाओ तिविहा सचित्ताचित्तमी सगा चेव । वित्तंमि जंमि खित्ते काले कालो जंहि जो उ ।। २६४ ॥ भावइरियाओ दुविहा चरणरिया चैव संजमरिया य । समणस्स कहं गमणं निद्दोस होइ परिसुद्ध ? ।। २९५ ।। 10 आलंबणे य काले मग्गे जयणाइ चेव परिसुद्धं । 5 भंगेहिं सोलसविहं जं परिसुद्धं पसत्थं तु ।। २९६ ।। चउकारणपरिसुद्धं ग्रहवावि होज्ज कारणज्जाए । आलंबणजयणाए काले मग्गे य जइयव्वं ।। २९७ ।। सव्वेवि ईरियविसोहिकारगा तहवि अस्थि उ विसेसो । 15 उद्देसे उसे बुच्छामि जहक्कमं किचि ।। २६८ ।। पढमे उवागमण निग्गमो य अद्धारण नावजयणा य । बिइए आरूढ छलणं जंघासंत्तार पुच्छा य ।। २९९ ।। तइयंमि श्रदायणया प्रपडिबंधो य होइ उर्वाहमि । वज्जेयव्वं च सया संसारियरायगिगमणं ॥ ३०० ॥ || इरियानिज्जुत्ती समत्ता ॥ 20 2010_04 Page #473 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४५० ] [ नियुक्तिसंग्रहः :: (६) श्री प्राचाराङ्गनियुक्तिः ॥ ४ ॥ अथ चतुर्थभाषाजाताध्ययननियुक्तिः ॥ जह वक्कं तह भासा जाए छक्कं च होइ नायब्वं । उप्पत्तीए १ तह पज्जवं २ तरे ३ जायगहणे ४ य ।। ३०१॥ सम्वेऽवि य वयणविसोहिकारगा तहवि अस्थि उ विसेसो। 5 वयणविभत्ती पढमे उप्पत्ती वज्जणा बीए ।। ३०२ ।। ॥५॥ अथ पञ्चमवस्त्रौषणाऽध्ययननियुक्तिः ॥ पढमे गहणं बीए धरणं पगयं तु दव्ववत्थेणं । एमेव होइ पायं भावे पायं तु गुणधारी ।। ३०३ ।। ॥ ७ ॥ अथ सप्तमावग्रहप्रतिमाध्ययननियुक्तिः ॥ 10 दवे खित्ते काले भावेऽवि य उग्गहो चउद्धा उ । देविद १रायउग्गह २ गिहवइ ३ सागरिय ४ साहम्मी ॥ ३०४ ।। दग्गहो उ तिविहो सचित्ताचित्तमीसओ चेव । खित्तुग्गहोऽवि तिविहो दुविहो कालुग्गहो होइ ।। ३०५ ।। मइउग्गहो य गहणुग्गहो य भावुग्गहो दुहा होइ । इंदिय नोइंदिय प्रत्थवंजणे उग्गहो दसहा ।। ३०६ ।। गहणुग्गहम्मि अपरिग्गहस्स समणस्स गहणपरिणामो। कह पाडिहारियाऽपाडिहारिए होइ जइयवं! ।। ३०७ ।। 15 2010_04 Page #474 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६) श्री प्राचाराङ्गनियुक्तिः ] [ ४५१ ॥२॥ अथ द्वितीयसप्तसप्तिकाख्य- द्वितीयचूलानियुक्तिः ॥ ॥१॥ अथ प्रथमस्थानाध्ययनम् ॥ सत्तिक्कगाणि इक्कस्सरगाणि पुव्व भणियं तहिं ठाणं । 5 उद्धट्ठाणे पगयं निसीहियाए तहिं छक्कं ।। ३०८ ॥ ॥ ३ ॥ अथ ततीयं उच्चारप्रश्रवणाध्ययनम् ॥ उच्चवह सरीरामो उच्चारो पसवइत्ति पासवणं । तं कह आयरमारणस्स होइ सोही न अइयारो? ॥ ३०६ ।। मुणिणा छक्कायदयावरेण सुत्तमणियंमि ओगासे । 10 उच्चारविउस्सग्गो कायन्वो अप्पमत्तेणं ।। ३१० ।। ॥ ४॥ अथ चतुर्थशब्दाध्ययनम् ॥ दव्वं संढाणाई भावो वन्नकसिणं सभावो य । दव्वं सद्दपरिणयं भावो उ गुणा य कित्ती य ।। ३११ ।। ॥५॥ अथ पञ्चमरूपाध्ययनम् ।। 15 दवं संठाणाई भावो वन्न कसिणं सभावो य । दव्वं सहपरिणयं भावो उ गुणा य कित्ती य ।। ३१२ ॥ ॥६॥ अथ षष्ठपरक्रियाध्ययनम् ।। छक्कं परइक्किक्कंत१ दन्न २माएस ३ कम ४ बहु ५ पहागे ६ । 2010_04 Page #475 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४५२ ] [ नियुक्तिसंग्रहः :: (६) श्री आचाराङ्गनियुक्तिः ॥७॥ अथ सप्तमं अन्योन्यक्रियाध्ययनम् ।। अन्ने छक्कं तं पुण तदन्नमाएसओ चेव ।। ३१३ ॥ जयमाणस्स परो जं करेइ जयणाए तत्थ अहिगारो। निप्पडिकम्मस्स उ अन्नमन्न करणं अजुत्तं तु ।। ३१४ ॥ ॥ सत्तिक्काणं निज्जुत्ति-समत्ता ।। ॥३॥ अथ भावनाख्य-तृतीय-चूलिका-नियुक्तिः ।। दव्वं गंधंगतिलाइएस सोउण्हविसहणाईसु । भावमि होइ दुविहा पसस्थ तह अप्पसस्था य ।। ३१५ ।। पाणिवहमुसावाए अदत्तमेहुणपरिग्गहे चेव । कोहे माणे माया लोभे य हवंति अपसत्था ॥ ३१६ ॥ दसणनाणचरित्ते तववेरग्गे य होइ उ पसत्था। जा य जहा ता य तहा लक्खण वुच्छं सलक्खणप्रो ।। ३१७ ।। तित्थगराण भगवो पवयणपावणिअइसइड्ढोणं । अभिगमणनमण-दरिसणकित्तणसंपूअणाथुणणा ।। ३१८ ॥ 15 जम्माभिसेयनिक्खमण-चरणनाणुप्पया य निव्वाणे । दियलोअभवणमंदर-नंदीसरभोमनगरेसुं ॥ ३१९ ।। अट्ठावयमुज्जिते गयग्गपयए य धम्मचक्के य । पासरहावत्तनगं चमरुप्पायं च वंदामि ।। ३२० ॥ गणियं निमित्त जुत्ती संदिट्ठी अवितहं इमं नाणं । 20 इय एगंतमुवगया गुणपच्चइया इमे अस्था ।। ३२१ ।। 10 कर 2010_04 Page #476 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६) श्री आचाराङ्गनियुक्तिः ] [ ४५३ गुणमाहप्पं इसिनामकित्तणं सुरनरिंदपूया य । पोराणचेइयाणि य इय एसा दंसणे होइ ।। ३२२ ।। तत्तं जीवाजीवा नायध्वा जाणणा इहं दिट्ठा । इह कज्जकरण कारगसिद्धी इह बंधमुक्खो य ।। ३२३ ।। बद्धो य बंधहेऊ बंधणबंधप्फलं सुंकहियं तु । संसारपवंचोऽवि य इहयं कहियो जिणवरेहिं ।। ३२४ ।। नाणं भविस्सई एवमाइया वायणाइयाओ य । सज्झाए आउत्तो गुरुकुलवासो य इय नाणे ।। ३२५ ।। साहुमहिंसाधम्मो सच्चमबत्तविरई य बंभं च । 10 साहु परिग्गहविरई साहु तवो बारसंगो य ।। ३२६ ।। धेरग्गमप्पमाओ एगत्ता(ग्गे) भावणा य एरिसगं । इय चरणमणुगयानो भणिया इत्तो तवो वुच्छं ।। ३२७ ।। किह मे हविज्जऽवंझो दिवसो? किंवा पहू तवं काउं? । को इह दवे जोगो खित्ते काले समयभावे ? ॥ ३२८ ।। 15 उच्छाहपालणाए इति (एव) तवे संजमे य संघयणे। वेरग्गेऽणिच्चाई होइ चरिते इहं पगयं ।। ३२६ ।। ॥४॥अथ चतुर्थविमुक्ति-चूलिकाध्ययन नियुक्तिः ॥ प्रणिच्चे पवए रुप्पे भुयगस्स तहा महासमुद्दे य । एए खलु अहिगारा अज्झयणंमी विमुत्तीए ॥ ३३० ।। 20 जो चेव होइ मुक्खो सा उ विमुत्ति पगयं तु भावेणं । देसविमुक्का साहू सम्वविमुक्का भवे सिद्धा ।। ३३१ ।। 2010_04 Page #477 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४५४ ] [ नियुक्तिसंग्रहः :: (६) श्री आचाराङ्गनियुक्तिः आयारस्स भगवनो चउत्थचूलाइ एस निज्जुत्ती। पंचमचूलनिसीहं तस्स य उरि भणीहामि ।। ३३२ ।। सहि छहिं चउचउहि य पंचहि अठ्ठठ्ठचउहि नायव्वा । उद्देसएहि पढमे सुयखंधे नव य प्रज्झयणा ।। ३३३ ।। 5 इक्कारस तिति दोदो दोदो उद्देसएहि नायव्वा । सत्तयअठ्ठयनवमा इक्कसरा हुंति अज्झयणा ।। ३३४ ।। ॥ इति श्रीआचाराङ्गनियुक्तिः॥ पाहणे महसदो परिमाणे चेव होइ नायवो । पाहण्णे परिमाणे य छविहो होइ निक्खेवो ।। १ ।। 10 दवे खेत्ते काले भावमि य होंति या पहाणा उ ! तेसि महासदो खलु पाहण्णेणं तु निष्फन्नो ।। २ ।। दवे खेत्ते काले भावंमि य जे भवे महंता उ । तेसु महासद्दो खलु पमाणओ होंति निष्फन्नो ।। ३ ।। दव्वे खेत्ते काले भावपरिण्णा य होह बोद्धव्वा । 15 जाणणग्रोवनखणओ य दुविहा पुणेक्ोक्का ।। ४ ।। भावरिष्णा दुविहा मूलगुण चेव उत्तरगुणे य । मूलगुणे पंचविहा दुविहा पुण उत्तरगुणेसु ।। ५ ।। पाहण्णण उ पगयं परिणाए य तहय दुविहाए । परिणाणेसु पहाणे महापरिण्णा तओ होइ ।। ६ ।। 20 देवीणं मणुईणं तिरिक्खजोणीगयाण इत्थीणं । तिविहेण परिच्चाप्रो महापरिणाए निज्जुत्ती ॥ ७ ॥ ॥ इति महापरिणानिज्जुत्ति ।। 2010_04 Page #478 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥७॥ श्री सूत्रकृताङ्गनियुक्तिः ॥ ॥ सूत्रकृताङ्गोपोद्घातनियुक्तिः ।। तित्थयरे य जिणवरे सुत्तकरे गणहरे य गमिऊणं । सूयगडस्स भगवओ णिज्जुत्ति कित्तइस्सामि ॥ १।। सूयगडं अंगाणं बितियं तस्स य इमाणि नामाणि । सूतगडं सुत्तकडं सूयगडं चेव गोण्णाइं ॥२॥ दव्वं तु पोण्डयादी भावे सुत्तमिह सूयगं नाणं । सण्णासंगहवित्त जातिणिबद्ध य कत्थादी ।। ३ ।। करणं च कारओ य कडं च तिण्हंपि छक्कनिक्खेवो। 10 दवे खित्ते काले भावेण उ कारओ जीवो ॥४॥ दव्वं पओगवीसस पओगसा मूल उत्तरे चेव।। उत्तरकरणं वंजण अत्थो उ उवक्खरो सवो ॥५॥ मूलकरणं सरीराणि पंच तिसु कण्णखंधमादीयं । दव्विंदियाणि परिणामियाणि विसम्रोसहादीहिं ।। ६ ।। 15 संघायणे य परिसाडणा य मीसे तहेव पडिसेहो। पडसंखसगडथूणाउड्ढतिरिच्छादिकरणं च ॥ ७ ॥ खंधेसु दुप्पएसादिएसु अन्भेसु - विज्जुमाईसु । णिप्फण्णगाणि दव्वाणि जाण तं वीससाकरणं ॥८॥ ण विणा प्रागासेणं कोरइ जं किंचि खेतमागासं । 20 वंजणपरियावणं उच्छुकरणमादियं बहुहा ॥६।। ___ 2010_04 Page #479 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४५६ ] [ नियुक्तिसंग्रहः :: (७) श्री सूत्रकृताङ्गनियुक्तिः 5 कालो जो जावइओ जं कीरइ जंमि जंमि कालंमि । मोहेण णाममो पुण करणा एक्कारस हवंति ।।१०।। बवं च बालवं चेव, कोलवं तेत्तिलं तहा। गरादि वणियं चेव, विट्ठी हवइ सत्तमा ॥ ११ ।। सउणि चउप्पयं नागं किसुग्धं च करणं भवे एयं । एते चत्तारि धुवा अन्ने करणा चला सत्त ॥ १२ ॥ चाउद्दसिरत्तीए सउरणी पडिवज्जए सदा करणं । तत्तो अहक्कम खलु चउप्पयं रणाग किसुग्धं ॥ १३ ।। भावे पप्रोगवीसस पोगसा मूल उत्तरे चेव । 10 उत्तर कमसुयजोवण वण्णादी भोप्रणादीसु ।। १४ ।। वण्णादिया य वण्णादिएस जे केइ वीससामेला । ते हुंति थिरा अथिरा छायातवदुद्धमादीसु ।। १५ ।। मूलकरणं पुण सुते तिविहे जोगे सुभासुभे झाणे । ससमयसुएण पगयं अज्झवसाणेण य सुहेणं ।। १६ ।। 15 ठिइअणुभावे बंधणनिकायणहित्तदोहहस्सेसु । संकमउदीरणाए उदए वेदे उवसमे य । १७ ।। सोऊण जिगवरमतं गणहारो काउ तक्खप्रोवसमं । अज्झवसाणेण कयं सुत्तमिणं तेण सूयगडं ।। १८ ।। मइजोगेण पभासियमणेगजोगंधराण साहूणं । 20 तो वयजोगेण कयं जीवस्स साभावियगुणेण ॥ १९ ।। अवखरगुणमतिसंघायणाएँ कम्मपरिसारणाए य । तदुभयजोगेण कयं सुत्तमिणं तेण सूत्तगडं ।। २० ।। 2010_04 Page #480 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७) श्री सूत्रकृताङ्गनियुक्तिः । [ ४५७ सुत्तेण सुत्तिया चिय अत्था तह सूइया य जुत्ता य। तो बहुविहप्पउत्ता एय पसिद्धा अणादीया ।। २१ ॥ दो चेव सुयक्खंधा अज्झयणाई च हुंति तेवीसं । तेत्तिसुदेसणकाला आयाराओ दुगुणमंगं ॥ २२ ॥ निक्खेवो गाहाए चउन्विहो छविहो य सोलससु । निक्लेवो य सुयंमि य खंधे य चउधिहो होइ ॥ २३ ॥ ससमयपरसमयपरूवरणा य गाऊण बुज्झणा चेव । संबुद्धस्सुवसग्गा थीदोसविवज्जणा चेव ॥ २४ ।। उवसग्गभीरुणो थोवसरस गरएसु होज्ज उववाओ। 10 एव महप्पा वीरो जयमाह तहा जएज्जाह ॥ २५ ॥ परिचत्तनिसीलकुसीलसुसीलस विग्गसीलवं चेव । पाऊण वीरियदुगं पंडियवीरिए पयठेइ (पट्टिज्जा) ।२६। धम्मो समाहि मग्गो समोसढा चउसु सम्ववादीसु । सीसगुणदोसकहणा गंथंमि सदा गुरुनिवासो ॥ २७ ।। आवाणिय संकलिया प्रादाणीयंमि आदयचरित्तं । अप्पगंथे पिडियवयणेणं होइ अहिगारो ।। २८ ।। नामं ठवणा दविए खेत्ते काले कुतित्थसंगारे । कुलगणसंकरगंडी बोद्धव्यो भावसमए य ।। २६ ।। महपंचभूय एकप्पाए य तज्जीवतस्सरीरे य । 20 तहय अगारगवाती प्रत्तच्छट्ठो अफलवादी ॥३० ।। बीए नियईवाओ अण्णाणिय तहय नाणवाईओ। कम्मं चयं न गच्छद चउन्विहं भिवखुसमयंमि ॥ ३१ ॥ 15 अ 2010_04 Page #481 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४५८ ] [ नियुक्तिसंग्रहः :: (७) श्रीसूत्रकृताङ्गनियुक्तिः तइए आहाकम्मं कडवाई जह य ते य वाईओ। किच्चुवमा य चउत्थे परप्पवाई अविरएसु ॥ ३२ ॥ ॥१॥अथ समयाख्य-प्रथमाध्ययन नियुक्तिः ॥ पंचण्हं संजोए अण्णगुणाणं च चेयणाइगुणो । .5 पंचिदियठाणाणं ण अण्णमुणियं मुणइ अण्णो ।। ३३ ।। को वेएई प्रकयं ? कयनासो पंचहा गई नस्थि । देवमणुस्सगयागइ जाईसरणाइयाणं च ॥ ३४ ॥ ण हु प्रफलथोवणिच्छितकालफलत्तणमिहं प्रदुमहेऊ । णादुद्धथोवदुद्धत्तणे गगावित्तणे हेऊ ॥ ३५ ॥ 10 ॥२॥ अथ वैतालीयाख्य-द्वितीयाध्यय वेयालियंमि वेयालगो य वेयालणं वियालरिणयं । तिनिवि चउक्कगाइं वियालओ एस्थ पुण जीवो।। ३६ ।। दव्वं च परसुमादी सणणाणतवसंजमा भावे । दव्वं च दारुगादी भावे कम्मं वियालगियं ॥ ३७ ।। 15 वेयालियं इह देसियंति वेयालियं तओ होइ । वेयालियं तहा वित्तमस्थि तेणेव य णिबद्धं ॥ ३८ ॥ कामं तु सासयमिणं कहियं अट्ठावयंमि उसमेणं । अट्ठाणउतिसुयाणं सोऊणं तेवि पव्वइया ॥ ३९ ॥ पढमे संबोहो अनिच्चया य बीयंमि माणवज्जणया। 20 अहिगारो पुण भणिओ तहा तहा बहुविहो तत्थ ।। ४० ।। 2010_04 | Page #482 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७) श्री सूत्रकृताङ्गनियुक्तिः ] ४५६ उद्देसंमि य तइए अन्नाणचियस्स प्रवचनो भणियो। वज्जेयम्यो य सया सुहप्पमाओ जइजणेणं ।। ४१॥ दव्वं निद्दावेओ दंसणनाणतवसंजमा भावे। अहिगारो पुण भणियो नाणे तवदसणचरित्ते ।। ४२ ।। 5 ॥ अथ द्वितीयाध्ययने द्वितीय उद्देशकः ॥ तवसंजमणाणेसुवि जइ माणो वज्जिओ महसीहि । अत्तसमुक्कारिसत्थं कि पुण होला उ अन्नेसि ? ।। ४३ ।। जइ ताव निज्जरमन्नो, पडिसिद्धो अट्ठमाणमहणेहिं । अविसेसमयट्ठाणा परिहरियव्वा पयत्तेणं ॥ ४४ ।। ॥३॥अथोपसर्गपरिज्ञाख्य-तृतीयाध्ययन नियुक्तिः॥ उवसग्गंमि य छक्कं दवे चेयणमचेयणं दुविहं । आगंतुगो य पोलाकरो य जो सो उवस्सग्गो ॥ ४५ ।। । खेत्तं बहुमोघपयं (बह्वोधभयं) कालो एगंतदूसमावीओ। भावे कम्मब्भुदओ, सो दुविहो ओघुवक्कमिओ।। ४६ ॥ 15 उवक्कमिओ संयमविग्घकरे तत्थुक्कमे पगयं ।। दवे चउन्विहो देवमणुयतिरियायसंवेत्तो ॥ ४७ ।। एक्केक्को य चउविहो अट्टविहो वावि सोलसविहो वा। घडण जयणा व तेसि एत्तो वोच्छं अहि(ही)यारं (रा)।४८। पढमंमि य पडिलोमा हुंती अणुलोमगा य वितियंमि । (विइएमआईकया य अणुलोमा)। तइए अज्झत्तविसोहणं च परवादिवयणं च ॥ ४९ ॥ 2010_04 Page #483 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४६० ] [ नियुक्तिसंग्रहः :: (७) श्रीसूत्रकृताङ्गनियुक्तिः हेउसरिसे हि अहेउएहि समयपडिएहि निउणेहिं । सोलखलितपण्णवणा कया चउत्थंमि उद्देसे ।। ५० ।। जह णाम मंडलग्गेण सिरं छत्तू ण कस्सइ मणुस्सो। अच्छेज्ज पराहुत्तो कि नाम ततो ण घिप्पेज्जा ।। ५१ ॥ जह वा विसगंडसं कोई घेत्तण नाम तुहिक्को । अण्णेण अदीसंतो कि नाम ततो न व मरेज्जा ? ॥ ५२ ॥ जह नाम सिरिघरानो कोइ रयणाणि णाम घेत्तूणं । अच्छेज्ज पराहुत्तो कि णाम ततो न घेप्पेज्जा ? ॥ ५३ ।। ॥ ४ ॥ अथ चतुर्थ-स्त्रीपरिज्ञाध्ययन-नियक्तिः ।। 10 दव्वामिलावचिधे वेदे भावे य इथिणिक्खेवो। अहिलावे जह सिद्धी भावे वेयंमि उवउत्तो ॥ ५४ ॥ णामं ठवणादविए खेत्ते काले य पज्जणणकमे । भोगे गुणे य भावे दस एए पुरिसणिक्खेवा ।। ५५ ।। पढमे संथवसंलवमाइहि खलणा उ होति सीलस्स । 15 बितिए इहेव खलियस अवस्था कम्मबंधो य ।। ५६ ।। सूरा मो मन्नंता कइतवियाहि उवहिप्पहाणाहि । गहिया हु अभयपज्जोयकूलवालादिणो बहवे ।। ५७ ॥ तम्हा , उ वीसंभो गंतव्यो णिच्चमेव इत्थीसुं। पढमुद्देसे भणिया जे दोसा ते गणंतेणं ॥५८ ।। 20 सुसमत्थाऽवऽसमत्था कोरंती अप्पसत्तिया पुरिसा । दीसंती सूरवादी णारीवसगा ण ते सूरा ।। ५६ ।। 2010_04 Page #484 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७) श्रीसूत्रकृताङ्गनियुक्तिः ] [ ४६१ धम्ममि जो दहा मई सो सूरो सत्तिओ य वीरो य। . गहु धम्मणिरुत्साहो पुरिसो सूरो सुबलिओऽवि ।। ६० ।। एते चेव य दोसा पुरिससमाएवि इत्थीयाणंपि । तम्हा उ अपमाओ विरागमगंमि तासि तु ।। ६१ ।। 5 ||॥ अथ पञ्चम-नरकविभक्त्यध्ययन-नि णिरए छक्कं दध्वं णिरया उ इहेव जे भवे असुभा। खेत्तं णिरोगासो कालो णिरएसु चेव ठिती ।। ६२ ।। भावे उ णिरयजीवा कम्मुदओ चेव गिरयपानोगो। सोऊरण जिरयदुक्खं तवचरणे होइ जइयत्वं ।। ६३ ।। 10 णामंठवणादविए खेत्ते काले तहेव भावे य । एसो उ विभत्तीए णिवखेवो छविहो होइ ।। ६४ ।। पुढवीफासं अण्णाणुवक्कम णिरयवालवहणं च । तिसु वेदेति अताणा अणुभागं चेव सेसासु ॥ ६५ ।। अंबे अंबरिसी चेव, सामे य सबलेवि य । 15 रोद्दोवरुद्द काले य, महाकालेत्ति आवरे ।। ६६ ।। प्रसिपत्ते धणुं कुंभे, वालु वेयरणीवि य । खरस्सरे महाघोसे, एवं पण्णरसाहिया ॥६७ ।। धाडेति य हाडेंति य हणंति विधति तह णिसुंभंति । मुंचंति अंबरतले अंबा खलु तस्थ रइया ।। ६८ ।। 20 प्रोहयहये य तहियं हिस्सने कप्पणी हो कप्पंति । विदुलगचडुलगछिन्ने अंबरिसी तत्थ रइए ।। ६६ ।। 2010_04 Page #485 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४६२ ] [ निर्युक्तिसंग्रह: :: (७) श्रीसूत्रकृताङ्गनियुक्तिः साडणपाडणतोडण बंधणरज्जुल्लयप्पहारेहि सामा णेरइयाणं पवत्तयंती अपुष्णाणं ।। ७० ।। अंतगय फिल्फिसाणि य हिययं कालेज्ज फुप्फुसे वक्के । सबला णेरतियाणं कडढेंति तहि प्रपुन्नाणं ।। ७१ ।। 5 असिसत्तिकोंततोमरसूलतिसूलेसु सूइचियगासु । पोयंति रुद्दकम्मा उ णरगपाला तह रोहा ।। ७२ ।। भजंति अंग मंगाणि उरुबाहूसिराणि करचरणे । कप्पेंति कप्पणीहि उवरुद्दा पावकम्मरया ।। ७३ ।। मोरासु सुंठएसु य कंड्सु य पयंडएस य पयंति । 10 कुंभीसु य लोहिएस य पयंति काला उ णेरतिए ।। ७४ ।। कपंति कागिणीमंसगाणि छिदंति सोहपुच्छाणि । खावंति य णेरइए महकाला पावकम्मरए ।। ७५ ।। हत्थे पाए ऊरू बाहुसिरापायचंग मंगाणि । छिवंति पगामं तू असि णेरइए निरयपाला ।। ७६ ।। 15 कण्णोट्ठणासकरच र रगवसणट्टण फुग्गऊरुबाहूणं । छेयणमेयणसाडण असिपत्तधहि पाडति ।। ७७ ।। कुम्भीय पयणेसु य लोहियसु य कंदुलोहिकुंभीसु । कुंभी य णरयपाला हणंति पाडं (यं ) ति णरएसु ।। ७८ ।। तडतडतडस्स भजंति भज्जणे कलंबुवालुगापट्ठे । 20 वालूगा नेरइया लोलंती अंबरतलंमि ।। ७६ ।। पूयरुहिरकेसट्टिवाहिणी कलकलॅतजलसोया । वेयरणिणिरयपाला नेरइए ऊ पवाहंति ॥ ८० ॥ कप्पेंति करकहिं तच्छिंति परोप्परं परसुएहि । सिबलितरुमारुती खरस्सरा तत्थ नेरइए ।। ८१ ।। 2010_04 Page #486 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७) श्रीसूत्रकृताङ्गनियुक्तिः ] । ४६३ भीए । पलायंते समंततो तत्थ ते णिरुभंति । पसुणो जहा पसुवहे महघोसा तत्थ नेरइए । ८२ ।। ॥६॥ अथ श्रीवीरस्तुत्याख्य-षष्ठाध्ययन-नियुक्तिः॥ 5 पाहन्ने महसदो दध्वे खेत्ते य कालभावे य । वीरस्स उ णिवखेवो चउक्कओ होइ णायचो ॥ ८३ ।। थुइणिक्खेवो चउहा आगंतुअभूसणेहि दव्वथुती । भावे संताण गुणाण कित्तणा जे जहिं भणिया ।। ८४ ॥ पुच्छिसु जंबुणामो अज्ज सुहम्मा तमओ कहेसी य । 10 एव महप्पा वीरो जयमाह तहा जएज्जाहि ।। ८५ ।। १७ अथ कुशीलपरिभाषाख्य सप्तमाध्ययन-नियुक्तिः सोले चउक्क दवे पाउरणाभरणभोयणादीसु । भावे उ ओहसीलं अभिक्खमासेवणा चेव ॥८६ ।। ओहे सीलं विरती विरयाविरई य अविरती असीलं । 15 धम्मे गाणतवादी प्रपसस्थ अहम्मकोवादी ।। ८७ ।। परिभासिया कुसीला य एत्थ जावंति अविरता केई । सुत्ति पसंसा सुद्धो कुत्ति दुगुछा अपरिसुद्धो ॥ ८८॥ अफासुयपडिसेविय णाम भुज्जो य सीलवादी य। फासु वयंति सोलं अफासुया मो अभुजंता ।। ८९ ।। 20 जह गाम गोयमा चंडीदेवगा वारिभद्दगा चेव । जे अग्निहोत्तवादी जलसोयं जे य इच्छति ।। ६० । 2010_04 Page #487 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४६४ ] [ नियुक्तिसंग्रहः :: (७) श्रीसूत्रकृताङ्गनियुक्तिः ॥ ८॥ अथ अष्टम-श्रीवीर्याध्ययन-नियुक्तिः ॥ विरिए छक्कं दब्वे सच्चित्ताचित्तमीप्सगं चेव । दुपयचउप्पयअपयं एवं तिविहं तु सच्चित्तं ॥९१ ।। अच्चित्तं पुण विरियं प्राहारावरणपहरणादीसु । 5 जह प्रोसहीण भणियं विरियं रसवीरियविवागो ।। ६२ ।। आवरणे कवयादी चक्कादीयं च पहरणे होति । खित्तंमि जंमि खेत्ते काले जं जंमि कालंमि ।। ६३ ।। भावो जीवस्स सीरियस्स विरियंमि लद्धिऽणेगविहा। प्रोरस्सिंदियप्रज्झप्पिएसु बहुसो बहुविहीयं ।। ९४ ।। 10 मणवइकाया प्राणापाणू संभव तहा य संभवे । सोत्तादीणं सद्दादिएसु विसएसु गहणं च ॥९५॥ उज्जमधितिधीरत्तं सोंडीरत्तं खमा य गंभीरं । उवप्रोगजोगतवसंजमादियं होइ अझप्पो ।। ९६ ।। सम्बंपिय तं तिविहं पंडिय बालविरियं च मीसं च । अहवावि होति दुविहं अगारप्रणगारियं चेव ।। ९७ ।। सत्थं प्रसिमादीयं विज्जामंते य देवकम्मकयं । पस्थिववारूणअग्गेय वाऊ तह मोसगं चेव ॥९८ ।। ॥९॥ अथ धर्माख्य-नवमाध्ययन-नियुक्तिः॥ धम्मो पुवुद्दिट्टो भावधम्मेण एस्थ अहिगारो। 20 एसेव होह धम्मे एसेव समाहिमग्गोत्ति ॥ ९९ ॥ णामंठवणाधम्मो दव्वधम्मो य भावधम्मो य । सच्चित्ताचित्तमीसगनिहत्थदाणे दवियधम्मे ॥१०० ।। 15 2010_04 Page #488 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७) श्री सूत्रकृताङ्गनियुक्तिः ] [ ४६५ लोइयलोउत्तरिओ दुविहो पुण होति भावधम्मो उ । दुधिहोवि दुविहतिविहो पंचविहो होति णायव्वो ॥ १०१॥ पासत्थोसण्णकुसील संथवो रण किर वट्टती काउं । सूयगडे अज्झयणे धम्ममि निकाइतं एवं ॥१०२ ॥ 5 ॥१०॥ अथ दशम-श्रीसमाध्याख्याध्ययन-नियुक्तिः॥ प्रायाणपदेणाऽऽघं गोणं णामं पुणो समाहित्ति । णिक्खिविऊण समाहि भावसमाहीइ पगयं तु ॥ १०३ ।। णामंठवणादविए खेत्ते काले तहेव भावे य । एसो उ समाहीए णिक्खेवो छविहो होइ ।। १०४ ।। 10 पञ्चसु विसएसु सुभेसु दव्वंमि ता भवे समाहित्ति । खेत्तं तु जम्मि खेत्ते काले कालो जहिं जो ऊ ।। १०५ ।। भावसमाहि चउम्विह दंसणणाणे तवे चरित्ते य । चउसुवि समाहियप्पा संमं चरणट्ठिओ साहू ।। १०६ ॥ ॥ ११॥ अथ एकादश-श्रीमार्गाध्ययननियुक्तिः॥ 15 णामं ठवणा दविए खेत्ते काले तहेव भावे य । एसो खलु मग्गस्स य णिक्खेवो छविहो होइ ।। १०७ ।। फलगलयंदोलणवित्तरज्जुदवबिलपासमग्गे य । खोलगप्रयपक्खिपहे छत्तजलाकासदध्वंमि ।। १०८।। खेत्तंमि मि खेत्ते काले कालो जहिं हवइ जो उ। 20 भामि होति दुविहो पसत्थ तह अप्पसत्थो य ।। १०६ ।। 2010_04 Page #489 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४६६ ] [ नियुक्तिसंग्रह: :: ( ७ ) श्री सूत्रकृताङ्गनिर्युक्तिः दुविहंमिवि तिगभेदो णेप्रो तस्स ( उ ) विणिच्छओ दुविहो । सुगतिफलदुग्गतिफलो पगयं सुगतीफलेणित्थं ।। ११० ।। दुग्गइफलवादीणं तिन्नि तिसट्टा सताइ वादीणं । खेमे य खेमरुवे चउक्कगं मग्गमादीसु ॥ १११ ॥ 5 सम्मप्पणिओ मग्गो णाणे तह दंसणे चरिते य । चरगपरिव्वायादोचिष्णो मिच्छत्तमग्गो उ ।। ११२ ।। इडिरससायगुरुया छज्जीवनिकायद्यायनिरया (य) । जे उवदिसंति मग्गं कुमग्गमग्गस्सिता ते उ ।। ११३ ।। तवसंजमध्पहाणा गुणधारी जे वयंति सम्भावं । 10 सव्वजगज्जीवहियं तमाहू सम्मप्पणीयमिणं ।। ११४ ।। पंथो मग्गो णाओ विही धिती सुगती हियं (तह ) सुहं च । पत्थं सेयं णिच्वुइ णिव्त्राणं सिवकरं चेव ॥। ११५ ।। ।। १२ ।। अथ द्वादश-श्रीसमवसरणाध्ययन-निर्युक्तिः ॥ समवसरणेऽवि छक्कं सच्चित्ताचित्तमीसगं दव्वे | 15 खेत्तंमि जंभि खेत्ते काले जं जंमि कालंमि ।। ११६ ॥ भावसमोसरणं पुण णायव्वं छव्विहंमि भावंमि । अहवा किरिय अकिरिया अन्नाणी चेव वेणइया ।। ११७ ।। प्रात्यत्ति किरियवादी वयंति णत्थि अकिरियवादी य । प्रण्णाणी अण्णाणं विणइत्ता वेणइयवादी ।। ११८ ।। 20 असियस किरियाणं श्रविकरियाणं च होइ चुलसीती । अन्नाणि य सत्तट्ठी वेणइयाणं च बत्तीसा ।। ११६ ।। 2010_04 Page #490 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७) श्री सूत्रकृताङ्गनिर्युक्तिः ] [ ४६७ तेसि मताणुमएणं पत्रवणा वण्णिया इहऽज्झयणे । सम्भाव रिणच्छयत्थं समोसरणमाहू लेणं तु ।। १२० ।। सम्मद्दिट्ठी किरियावादी मिच्छा य सेसगा वाई । जहिऊण मिच्छवायं सेवह वायं इमं सच्चं ।। १२१ ।। ' ॥ १३ ॥ अथ त्रयोदशश्रीयाथातथ्याध्ययननियुक्तिः ॥ 5 णामतहं ठवगतहं दव्वतहं चेव होइ भावतहं । दव्वतहं पुण जो जस्स सभावो होति दव्वस्स ।। १२२ ।। भावतहं ठवणतहं दव्वतहं चेव होइ भावतहं । दव्वतहं पुण जो जस्स सभावो होति दव्वस्स ।। १२३ ।। 10 जह सुत्तं तह अत्थो चरणं चारो तहत्ति णायव्वं । संतंमि (य) पसंसाए असतो पगयं दुर्गुछाए ।। १२४ ।। प्रायरियपरंपरएण आगयं जो उ छेयबुद्धीए । कोवेइ छेयवाई जमालिनासं स णासिहिति ।। १२५ ।। ण करेति दुक्खमोक्खं उज्जममाणोऽवि संजमतवेसुं । 15 तम्हा प्रत्तुक्करिसो वज्जेअव्वो जतिजणेणं ।। १२६ ।। ॥ १४ ॥ अथ ग्रन्थनामकं चतुर्दशाध्ययन-नियुक्तिः ॥ गंथो goवुद्दिट्ठो दुविहो सिस्सो य होति णायव्वो । पव्वावण सिक्खावरण पगयं सिक्खावणाए उ ।। १२७ ।। सो सिक्खो यदुविहो गहणे श्रासेवणाय णायव्वो । 20 गहणंमि होति तिविहो सूत्त अत्थे तदभए य ।। १२८ ।। 2010_04 Page #491 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४६८ ] [ नियुक्तिसंग्रहः :: (७) श्री सूत्रकृताङ्गनियुक्तिः पासेवणाय दुविहो मूलगुणे चेव उत्तरगुणे य । मूलगुणे पंचविहो उत्तरगुरण बारसविहो उ ।। १२६ ।। आयरिओऽविय दुविहो पव्वावंतो व सिक्खवंतो य । सिक्खावंतो दुविहो गहणे आसेवणे चेव ।। १३० ।। 5 गाहावितो तिविहो सुत्ते अत्थे य तदुभए चेव । मूलगुण उत्तरगुणे दुविहो प्रासेवणाए उ ॥ १३१ ।। ॥१५॥ अथ आदानीयनामक-पञ्चदशाध्यर प्रादाणे गहम य णिक्खेवो होति दोहवि चउक्को। एगळं नाणठं च होज्ज पगयं तु आदाणे ।। १३२ ॥ 10 जं पढमस्संतिमए बितियस्स उ त हवेज्ज आदिमि । एतेणादाणिज्जं एसो अन्नोऽवि पज्जाओ ।। १३३ ।। णामादी ठवणादी दव्वादी चेव होति भावादी। दव्वादी पुण दववस्स जो समावो सए ठाणे ।। १३४ ।। आगमणोआगमओ भावादी तं बुहा उदिसंती। 15 गोप्रागमओ भावो पंचविहो होइ जायन्वो ॥ १३५ ।। आगमम्रो पुण आदी गणिपिडगं होइ बारसंगं तु । गंथसिलोगो पदपादनक्खराइं च तस्थादो ॥ १३६ ।। ॥ १६ ॥ अथ षोडश-श्रीगाथाध्ययन-नियुक्तिः ।। णामंठवणागाहा दव्वगाहा य भावगाहा य । 20 पोत्थगपत्तगलिहिया सा होई दव्वगाहा उ ।। १३७ ।। 2010_04 | Page #492 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७) श्री सूत्रकृताङ्गनियुक्तिः ] [ ४६६ होति पुण भावगाहा सागारुवओगभावणिप्फन्ना । महुराभिहाणजुत्ता तेणं गाहत्ति णं बिति । १३८ ।। गाहीकया व अत्था अहव ण सामुद्दएण छंदेणं । एएण होति गाहा एसो प्रन्नोऽवि पज्जाओ ।। १३९ ।। पण्णरससु अझयणेस पिडितत्थेसु जो अवितहत्ति । पिडियवयणेणऽथ गहेति तम्हा ततो गाहा ॥ १४० ।। सोलसमे प्रज्झयणे अणगारगुणाण वण्णणा मणिया। गाहासोलसणामं अज्झयणमिणं ववदिसंति ।। १४१ ।। ॥ प्रथमः श्रुतस्कन्धः समाप्तः ॥ १ ॥ ॥२॥अथ श्री सूत्रकृतांग-द्वितीय-श्रुतस्कन्ध-नियुक्तिः॥ ॥ २॥अथ प्रथम-पौण्डरीकाख्याध्ययन-नियुक्तिः ॥ णामंठवणादविए खेत्ते काले तहेव भावे य । एसो खलु महतंमि निक्खेवो छन्विहो होति ।। १४२ ।। णामंठवणादविए खेत्ते काले तहेव भावे य । 15 एसो खलु अज्झयणे निक्लेवो छविहो होति ।। १४३ ।। णामंठवणादविए खेत्ते काले य गणण संठाणे । भावे य अट्ठमे खलु णिक्खेवो पुंडरीयस्स ।।१४४ ।। 2010_04 Page #493 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ निर्युक्तिसंग्रह: :: ( ७ ) श्री सूत्रकृताङ्गनिर्युक्तिः जो जीवो भविओ खलुववज्जिकामो य पुंडरीयंमि । सो दव्वपुंडरीम्रो भावंमि विजाणओ भणिओ ।। १४५ ।। एगभविए य बद्धाउए य अभिमुहियनामगोए य । एते तिन्निवि देसा दव्वंमि य पोंडरीयस्स ।। १४६ ।। तेरिच्छिया मणुस्सा देवगणा चेव होंति जे पवरा । ते होंति पुंडरीया सेसा पुण कंडरीया उ ।। १४७ ।। जलयर थलयर खयरा जे पवरा चेत्र होंति कंता य । जे अ सभावेऽणुमया ते होंति पुंडरीया उं ।। १४८ ।। अरिहंत चक्कवट्टी चारण विज्जाहरा दसारा य । 10 जे अन्ने इडिमंता ते होंति पोंडरीया उ ।। १४६ ।। भवणव इवाणमंत रजोतिसवेमाणियाण देवाणं । ४७० ] जे तेसि पवरा खलु ते होंति पुंडरीया उ ।। १५० ।। कंसाणं दूसाणं मणिमोत्तिय सिलपवालमादीणं । जे अ अचित्ता पवरा ते होंति पोंडरीया उ ।। १५१ ।। 15 जाई खेत्ताइं खलु सुहाणुभावाइं होंति लोगंमि । देवकुरुमादियाई ताई खेत्ताई पवराई ।। १५२ ।। जीवा भवट्ठितीए कार्याठितीए य होंति जे पवरा । ते होंति पोंडरीया अवसेसा कंडरीया उ गणणाइ रज्जू खलु संठाणं चेव होंति चउरंसं ! 20 एयाई पोंडरीगाई होंति सेसाई इयराई ।। १५४ ।। प्रोदइए उवसमिए खइए य तहा खओवसमिए अ । परिणामसन्निवाए जे पवरा तेवि ते चेव ।। १५५ ।। ।। १५३ ।। 2010_04 Page #494 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७) श्री सूत्रकृताङ्गनियुक्तिः ] [४७१ अहवावि नाणदंसरणचरित्तविणए तहेव अज्झप्पे । जे पवरा होति मुणी ते पबरा पुडरीया उ ॥ १५६ ।। एत्थं पुण अहिगारो वणस्सतिकायपुडरीएणं । भावमि अ समणेणं अज्झयणे पुडरीअंमि ॥ १५७ ।। 5 उवमा य पुरीए तस्सेव य उवचएण निज्जुत्ती । अधिगारो पुग भणियो जिणोवदेसेण सिद्धित्ति ॥ १५८ ।। सुरमणुयतिरियनिरओवंगे मणुया पहू चरित्तम्मि । अविय महाजणनेयत्ति चक्कटिमि अधिगारो ।। १५९ ।। अविय हु भारियकम्मा नियमा उक्कस्सनिरयठितिगामी । 10 तेऽवि हु जिणोवदेसेण तेणेव भवेण सिझंति ।। १६० ।। जलमालकद्दमालं बहुविहवल्लिगहणं च पुक्खरिणि । जंघाहि व बाहाहि व नावाहि व तं दुरवगाहं ॥ १६१ ॥ पउमं उल्लंघेत्तु प्रोयरमाणस्स होइ वावत्ती । कि नत्थि से उवाओ जेणुल्लंघेज्ज अविवन्नो ।। १६२ ।। 15 विज्जा व देवकम्म प्रहवा आगासिया विउव्वरणया । पउमं उल्लंघेत्तु न एस इणमो जिणक्खाओ ॥ १६३ ।। सुद्धप्पओगविज्जा सिद्धा उ जिणस्स जाणणा विज्जा । भवियजणपोंडरीया उ जाए सिद्धिगतिमुर्वेति ॥ १६४ ।। ॥ २-२ अथ द्वितीय-क्रियास्थानाख्याध्ययननियुक्तः ।। . 20 किरियानो भणियाओ किरियाठाणंति तेण अज्झयणं । अहिगारो पुण भणिओ बंधे तह मोक्खमग्गे य ।। १६५ ।। ___ 2010_04 Page #495 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४७२ ] [नियुक्तिसंग्रहः :: (७) श्री सूत्राकृताङ्गनियुक्तिः दव्वे किरिएजणया य पयोगुवायकरणिज्जसमुदाणे । इरियावहसंमत्ते सम्मामिच्छा य मिच्छत्ते ॥ १६६ ।। नाम ठवणा दविए खेत्तेऽद्धा उड्ढ उवरती वसही। संजमपग्गहजोहे अचलगणण संधणा भावे ॥ १६७ ।। 5 समुदाणियाणिह तओ संमपउत्ते य भावठाणमि । किरियाहिं पुरिस पावाइए उ सम्वे परिक्खेज्जा ।। १६८ ।। ॥२-३ अथ तृतीयाहारपरिज्ञाध्ययन-नियुक्तिः॥ नामंठवणादविए खेत्ते भावे य होति बोद्धव्वो। एसो खलु प्राहारे निक्खेवो होइ पंचविहो ॥ १६६ ।। 10 दवे सच्चित्तादी खेते नगरस्स जणवनो होइ । मावाहारो तिविहो ओए लोमे य पक्खेवे ।। १७०।। सरीरेणोयाहारो तयाय फासेण लोमआहारो। पक्खेवाहारो पुण कावलिओ होइ नायवो ॥ १७१ ॥ ओयाहारा जीवा सम्वे अप्पजत्तगा मुणेयव्वा । 15 पजत्तगा य लोमे पक्खेवे होइ (होंति) नायव्वा ।। १७२ ।। एगिदियदेवाणं नेरइयाणं च नस्थि पक्खेवो । सेसाणं पक्खेवो संसारस्थाण जीवाणं ।। १७३ ।। एक्कं च दो व समए तिन्नि व समए मुहुत्तमद्धं वा । सादीयमनिहणं पुण कालमणाहारगा जीवा ।। १७४ ।। 20 एक्कं च दो व समए केवलिपरिवज्जिया अणाहारा । मंथमि दोणि लोए य पूरिए तिन्नि समया उ ।। १७५ ।। 2010_04 Page #496 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७) श्रीसूत्रकृताङ्गनियुक्तिः ] [ ४७३ अंतोमुत्तमद्धं सेलेसीए भवे अणाहारा।। सादीयमनिहणं पुण सिद्धा यऽणहारगा होति ।। १७६ ।। जोएण कम्मएणं आहारेई अणंतरं जीवो । तेण परं मीसेणं जाव सरीरस्स निष्फत्ती ॥ १७७ ।। 5 णामं ठवणपरिन्ना दम्वे भावे य होइ नायव्वा । दवपरिन्ना तिविहा मावपरिन्ना भवे दुविहा ।। १७८ ।। ॥२-४ ॥ अथ चतुर्थ-प्रत्याख्यानाध्ययन-नियुक्तिः॥ णामंठवणादविए अइच्छ पडिसेहए य भावे य । एसो पच्चक्खाणस्स छविधहो होइ निक्खेवो ।। १७९ ।। 10 मूलगुणेसु य पगयं पच्चक्खाणे इहं अधीगारो। होज्ज हु तप्पच्चइया अप्पच्चक्खाणकिरिया उ ।। १८० ।। ॥२-५ ॥ अथ पञ्चमाचारश्रुताध्ययन । __णामंठवणायारे दवे भावे य होति नायव्वो। एमेव य सुत्तस्सा निक्खेवो चउविहो होति ।।१८१ ।। 15 प्रायारसुयं भणियं वज्जेयवा सया अणायारा। प्रबहुसुयस्स हु होज्ज विराहणा इत्थ जइयव्वं ।। १८२ ।। एयस्स उ पडिसे हो इहमज्झयणमि होति नायव्वो। तो अणगारसुयंति य होई नामं तु एयस्स ॥१८३ ॥ ॥२-६ ॥ अथ षष्ठादकीयाध्ययन नियुक्तिः ॥ 20 नामंठवणाअई दव्वदं चेव होइ भावई । एसो खलु अद्दस्स उ निवखेवो चउविहो होइ ।। १८४ ॥ 2010_04 Page #497 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४७४ ] [ नियुक्तिसंग्रहः :: (७) श्रीसूत्रकृताङ्गनियुक्तिः उदगई सारदं छवियद्द वसद्द तहा सिलेसदं । एवं दव्वई खलु भावेणं होइ रागदं ॥ १८५ ।। एगभवियबद्धाउए य अभिमुहए य नामगोए य । एते तिन्नि पगारा दवद्दे होंति नायव्वा ।। १८६ ।। 5 अद्दपुरे अद्दसुतो नामेणं प्रदओत्ति प्रणगारो। तत्तो ससुट्टिामणं अज्झयणं अद्दइज्जति ।। १८७ ।। कामं दुवालसंगं जिणवयणं सासयं महामागं । सम्वज्झयणाई त हा सव्वक्खरसणिवाया य ।। १८८ ।। तहवि य कोई अत्यो उप्पज्जति तम्मि मि समयंमि । 10 पुष्वभणिओ अणुमतो अ होइ इसिभासिएसु जहा ।। १८९ ।। अज्जद्दएण गोसाल भिक्खुबंभवतीतिदंडीणं । जह हत्थितावसाण कहियं इणमो तहा वुच्छं ।। १६० ।। गामे वसंतपुरए साम तो घरणिसहितो निक्खंतो। भिक्खायरियादिट्ठा ओहासियभत्तवेहासं ।। १६१ ।। 15 संवेगसमावन्नो माई भत्तं चइत्तु दियलोए । चइऊणं प्रद्दपुरे अद्दसुओ प्रद्दओ जाओ ॥ १६२ ।। पीती य दोण्ह प्रो पुच्छणमभयस्स पढवे सोऽवि । तेणावि सम्मद्दिट्ठित्ति होज्ज पडिमा रहंमि गया।। १९३ ।। दठ्ठ संबुद्धो रक्खिओ य आसाण वाहण पलातो। 20. पवावंतो धरितो रज्जं न करेति को अन्नो ? ॥ १९४ ।। अगणितो निक्खता विहर इ पडिमाइ दारिगा वरिओ। सुकण्णव सुहाराओ रन्नो कहणं च देवोए ।। १९५ ।। 2010_04 Page #498 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७) श्री सूत्रकृताङ्गनियुक्तिः । । ४७५ तं नेइ पिता तोसे पुच्छण कहणं च वरण दोवारे । जाणाहि पाबिंब आगमणं कहण निग्गमणं ॥ १६६ ।। पडिमागतस्समीवे सप्परीवारा अभिक्ख पडिवयणं । भोगा सुताण पुच्छण सुतबंध पुण्णे य निग्गमणं ।। १९७ ।। रायगिहागम चोरा रायभया कहण तेसि दिक्खा य । गोसालभिक्खुबंभी तिदंडिया तावसे हि सह वादो॥ १९८ ॥ वादे पराइइत्ता सम्वेविय सरणमन्भुवगता ते । अगसहिया सव्वे जिणवीरसगासे निक्खंता ॥ १६६ ।। ण दुक्करं वा णरपासमोयणं, गयस्स मत्तस्स वर्णमि रायं? । 10 जहा उवत्तावलिएण तंतुणा सुदुक्करं मे पडिहाइ मोयणं।२००। ॥२-७ ॥ अथ सप्तम-नालन्दीयाध्ययन-नियुक्तिः ॥ णामअलं ठवणअलं दत्व प्रलं चेव होइ भावप्रलं।। एसो अलसइंमि उ निक्लेवो चविहो होइ ॥ २०१ ॥ पज्जत्तीभावे खलु पढमो बीग्रो भवे अलंकारे । 15 ततितो उ पडिसेहे अलसद्दो होइ नायव्यो ।। २०२ ।। पडिसेहणगारस्सा इस्थिसद्दे चेव अलसद्दी । रायगिहे नयरंमी नालंदा होइ बाहिरिया ।। २०३ ।। नालंदाए समिवे मणोरहे भासि इंदभूइणा उ । प्रज्झयणं उदगस्स उ एयं नालंद इज्जं तु ।। २०४ । 20 पासावच्चिज्जो पुच्छियाइओ प्रज्जगोयमं उदगो। सावगपुच्छा धम्म सोउं कहियंमि उवसंता ।। २०५ ।। ॥ इति द्वितीय श्रुतस्कन्ध नियुक्तिः ॥ २ ॥ ॥ इति द्वितीय सूत्रकृताङ्गसूत्र-नियुक्तिः ॥२॥ 2010_04 Page #499 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ ८ ॥ श्रीदशाश्रुतस्कंधनियुक्तिः ॥ ॥ १ ॥ प्रथमा समाधिस्थानाध्ययननियुक्तिः ॥ वंदामि भबाहुं पाईणं चरिमसयलसुयनाणि । सुत्तस्स कारणमिसि दसासु कप्पे य ववहारे ॥ १ ॥ 5 आउ विवागज्झयणाणि भावओ दव्वओ उ वस्थदसा । दस आओ विवागदसा वाससयाओ दसहच्छेत्ता ।। २ ।। बाला मंदा किड्डा बला य पण्णा य हायणिपवंचा । पब्भारमुम्मुही सयणी नामेहि य लक्खणेह दसा ।। ३ ।। दसश्राश्रो विवागदसा नामेहि य लक्खणेह एहिति । 10 एतो अज्झयणदसा अहक्कमं कित्तइस्सामि ।। ४ ।। डहरीओ उ इमाओ प्रज्जयणेसु महईओ अंगेसु । छसुं नायादीएसु वत्थविभूसावसाणमिव ॥ ५ ॥ डहरीओ उ इमाओ निज्जूढाओ अणुग्गहट्टाए । थेरेहि तु दसाओ जो दसा जाणओ जीवो ॥ ६ ॥ 15 असमाहिय सबलतं प्रणसादणगणिगुणा मणसमाही । सावगभिक्खूपडिमा कप्पो मोहो नियाणं च ।। ७ ।। दसाणं पिंडस्थो एसो मे वण्णिओ समासेणं । एतो एक्केक्कंपि य अज्झयणं कित्त इस्सामि ॥ ८ ॥ दव्त्रं जेण व दव्वेण समाही आहियं च जं दव्वं । 20 भावो सुसमाहितया जीवस्स पसत्यजोगेहि ।। ९ ।। 2010_04 Page #500 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (८) श्रीदशाश्रुतस्कंधनियुक्तिः ] [ ४७७ माम ठवरणा दविए खेतद्धा उड्ड ओवरई वसही। संजमपग्गहजोहे प्रचलगणसंधणाभावे ॥ १० ॥ वीसं तु गवरि गेम्म अाइरेगाइं तु तेहिं सरिसाइं। मायब्वा एएसु य अन्नेसु य एवमाईसु ।। ११ ॥ ॥असमाहिट्ठाणनिज्जुत्ती समत्ता ॥ १ ॥ ॥२॥ द्वितीयसपलाध्ययननिर्यक्तः ।। दवे चित्तलगोणाइएस भावसबलो खुतायारो । वतिक्कम अइक्कमे अतियारे भावसबलोउ ।। १२ ।। अवराहम्मि य पयणुए जेणउ मूलं न वच्चए साहू । 10 सबलेई तं चरितं तम्हा सबलत्तणं बित्ति ।। १३ ।। वालेराई दाली खंडो बोडे खुत्ते य भिन्ने य । कम्मासपट्ट सबले सव्वावि विराहणा भणिआ ।। १४ ।। ॥ सबलनिज्जुत्ती समत्ता ॥ २ ॥ ॥ ३ ॥ तृतीयाशातनाध्ययननियुक्तिः ।। 15 आसायणाओ दुविहा मिच्छा पडिवज्जणा य लाभे अ । लामे छक्कं तं पुणं इट्टमणि? दुहेक्केवकं ।। १५ ।। साहू तेणे प्रोग्गह कंतारविमाल विसममुहवाही। जे लद्धा ते ताणं भणंति आसायणाउ जगे ॥ १६ ॥ दव्वं माणुम्माणं होणाहिलं अंमि खेते जं कालं । 20 एमेष छविहंमि भाचे पगयं तु भावेण ।। १७ ।। छट्टट्ठमपुटवेसु पाउसग्गोत्ति सव्व जुत्तिकम्रो । पयअत्थविसोहिकरो दिन्तो आसायणा तम्हा ।। १८ ।। ____ 2010_04 Page #501 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४७८ ] [ नियुक्तिसंग्रहः :: (८) श्रीदशाश्रुतस्कधनियुक्तिः मिच्छा पडिवत्तीए जे मावा जत्थ होंति सम्भूआ। तेसि तु वितह पडिवज्जणाए आसायणा तम्हा ।। १९ ।। न करेइ दुक्खमोक्खं उज्जममाणोवि संजमतवेखें। तम्हा अत्तक्करिसो वज्जेअग्यो पयत्तेणं ।। २० ।। 5 जाणि मणिआणि सुत्ते ताणि जो कुणइ अकारणज्जाए। सो खलु भारियकम्मो न गणेइ गुरु गुरुटाणे ॥२१ ।। दसणनाणचरित्तं तवो य विणओ अ हुंति गुरुमूले । विणओ गुरुमूलेत्ति प्र गुरूणं आसायणा तम्हा ।। २२ ।। जाई भणिपाई सुत्ते ताई जो कुणइ कारणज्जाए। 10 सो न हु भारियकम्मो नु गणेइ गुरू गुरुटाणे ।। २३ ।। सो गुरुमासायंतो दंसणणाणचरणेसु सयमेव । सोयति कत्तो पाराहणा से तो ताणि वज्जेज्जा ।। २४ ।। ॥ आसायणनिज्जुत्ती सम्मत्ता ॥३॥ ॥ ४॥ चतुर्थगणिसम्पदाध्ययननियुक्तिः ॥ 15 दवंतरीरविओ भावगरणी गुणसमनिओ दुविहो । गणसंगहुवग्गहकारप्रो अ धम्मं च जाणतो ॥ २५ ॥ नायंगणिों गुणिनं गयं च एगट्ठएवमाईअं । नाणी गणित्ति तम्हा धम्मस्स विप्राणओ भणिओ ।। २६ ।। प्रायारंमि अहीए जं नाओ होइ समणधम्मो उ । 20 तम्हा आयारधरो भण्णइ पढमं गणिट्ठाणं ।। २७॥ 2010_04 Page #502 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (८) श्रोदशाश्रुतस्कंधनियुक्तिः ] [ ४७९ गणसंगहुबग्गहकारओ गणी जो पहू गणं धरिउ । तेण णओ छक्कं संपयाए पगयं चउसु तत्थ ।। २८ ।। दम्वे भावे य सरीरसंपया छविहा य भावंमि । दवे खेत्ते काले भावम्मि य संगहरण्णा । २६ ॥ 5 जह गयकुलभूओ गिरिकंदर कडगविसमदुग्गेसु । परिवहइ अपरितंतो निप्रयसरीरुग्गए दंते ।। ३० ।। तह पवयण भत्तिगओ साहम्मियवच्छलो असढभावो। परिवहइ असहवग्गं खेतविसमकालदुग्गेसु ॥ ३१ ।। ॥गणिणिज्जुत्ती समत्ता ॥ ४ ॥ 10 ॥५॥ पञ्चम श्रेण्यध्ययननियुक्तिः ॥ दव्य तट्ठो वा सकमोहे भावे उवासका चउरो। दब्धसरीरभविओ तदडिओ उयणाइंसु ।। ३२ ।। ।। ६ ॥ षष्ठोयासकप्रतिमाध्ययननियुक्तिः ॥ दव्वतदट्ठो वा स कमोहे भावे उवासका चउरो। 15 दवे सरीरभविउ तदट्टिओ ओयणाईसु ॥ ३३ ।। कुपवयणं कुधम्म उवासए मोहुवासको सोउ । हंदि तहि सो सेयंति मण्णती सेयं नस्थि तहि ॥ ३४ ।। भावे उ सम्मट्टिी असमणो जं उवासए समणे । तेण सो गोष्णं नाम उवासगो सायगो वेत्ति ।। ३५ ।। 20 कामं दुवालसंग पवयणमणगारगारधम्मो अ । ते केवलोहिं पसूआ पउवसग्गो पसूति ।। ३६ ।। 2010_04 Page #503 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४८० ] [ निर्युक्तिसंग्रह: : : ( ८ ) श्रीदशाश्रुतस्कघनियुक्तिः तो ते सावग तम्हा उवासगा तेसु होंति भत्तिगया । अविसंमि विसेसो समणेसु पहाणया भणिया ।। ३७ ।। कामं तु निरवसेसं सव्वं जो कुणइ तेण होइ कयं । तंमिठिताओ समणा नोवासगा सावगा गिहिणो ।। ३८ ।। 5 दव्बंमि सचित्तादी संजमपडिमा तहेव जिणपडिमा । भावो संताण गुणाण धारणा जा जहि भणिआ ।। ३६ ।। सा दुविहा छबिगुणा भिक्खूण उवासमान एगूणा । उवरि भणिया भिक्खूणुवासगाणं तु वोच्छामि ।। ४० ।। तत्थहिगारो तु सुहं नाउं आइक्खिआव गिहि धम्मं । 10 साहूणं च तव संजमंमि संवेगकरणाणि ॥। ४१ ।। जद्द ता गिहिणो वि य उज्जमंति नणु साहुणावि कायव्वं । सव्वत्थामो तवसंजमंमि इअ सुद्धनाऊणं ।। ४२ ।। दंसणवयसामाइयपोसहपडिमा अबंभसच्चिते । प्रारंभपेस उद्दिट्टवज्जए समणभूए प्र ।। ४३ ।। ॥ उवासगपडिमा निज्जुत्ती समत्ता || ६ || ॥ ७ ॥ सप्तमभिक्षुप्रतिमाध्ययननियुक्तिः ॥ भिक्खणं उवहाणे पगयं तत्थ व हवन्ति निक्खेवा । तिनि य पुव्वुट्टिट्ठा पगयं पुण भिक्खुपडिमाए ॥ ४४ ॥ समाहिप्रोवहाणे य विवेकपडिमा य । 20 पदिसंलोणा व तहा एगविहारे य पंचमीया ।। ४५ । 15 2010_04 Page #504 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (८) श्रीदशाश्रुतस्कंधनियुक्तिः ] [४८१ प्रायारे बायाला पडिमा सोलस य वनिया ठाणे। चत्तारि प्र ववहारे मोए दो दो चंदपडिमानो ॥ ४६ ।। एवं च सुयसमाधिपडिमा छावटिया य पन्नत्ता । समाईयमाईया चारित्तसमाहिपडिमाओ ॥ ४७ ॥ 5 भिक्खूणं उवहाणे उवासगाणं च वनिया सुत्ते । गरणकोवाइ विवेगो सभितरबाहिरो दुविहो ॥४८ ।। सोइंदियमादीआ पदिसंलोणया चउत्थिया दुविहा । अट्टगुणसमग्गस्स य एगविहारिस्स पंचमिया ।। ४६ ॥ दढसम्मत्तचरिते मेधावि बहुस्सुए य अयले य । 10 अरइरइसहे दविए खंता भयभेरवाणं च ।। ५० ।। परिचिअकालामंतणखामणतवसंजमे अ संघयणे । भत्तो बहिनिक्खेवे आवन्ने लाभगमणे य ।। ५१ ।। ॥ ६ ॥ पर्युषणाकल्पनियुक्तिः ॥ ॥ ८॥ पर्युषणाकल्पाध्ययननियुक्तिः ॥ 15 पज्जोसमणाए अक्खराई होंति उ इमाइं गोण्णाई। परियायववत्थवणा पज्जोसमणाय पागइया ।। ५२ ।। परिवसणा पज्जुसणा पज्जोसमणा य वासवासो वा । पढमसमोसरणं ति य ठवणा जट्ठोग्गहेगट्टा ॥ ५३ ।। ठवरणाए निक्खेवो छक्को दव्वं च दध्वनिक्खेवो । खेत्तं तु जम्मि खेत्ते कालो जहिं जो उ ।। ५४ ।। ओदइयाईयाणं भावाणं जा हि भवे ठवणा । भावेण जेण य पुणो ठविज्जए भावठवणा उ ।। ५५ ।। 20 2010_04 Page #505 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४८२ | [ नियुक्तिसंग्रहः :: (८) श्रीदशाश्रुतस्कंधनियुक्तिः सामित्ते करणम्मि य अहिगरणे चेव होंति छन्भेया। एगत्तपुहत्तेहि दवे खेत्तऽद्ध भावे य ।। ५६ ।। कालो समयादोनो पगयं समयम्मि तं पहवेस्सं । निक्खमणे य पवेसे, पाउससरए य वोच्छामि ।। ५७ ।। 5 उणाइरित अट्ट विहरिऊण गिम्हहेमंते । एगाहं पंचाहं मासं च जहा समाहीए ॥ ५८ ।। काऊण मासकप्पं तत्थेव उवागयाण ऊणा ते । चिखल वास रोहेण वा वि तेण ट्ठिया ऊणा ॥ ५९ ।। वासाखेत्तालंभे अद्धाणादीसु पत्तमहिगातो। 10 साहगवाघाएण व अपडिक्कमिउं जइ वयंति ।। ६० ।। पडिमापडिवाणं एगाहं पंच होतऽहालंदे । जिणसुद्धाणं मासो निक्कारणओ य थेराणं ।। ६१ ।। ऊणाइरित्त मासा एवं थेराण अठ्ठ गायव्वा । इयरे अट्ट विहरि णियमा चत्तारि अच्छन्ति ।। ६२ ।। 15 आसाढपुणिमाए वासावासंतु होति गतव्वं । मग्गसिरबहुलदसमीउ जाव एक्कम्मि खेत्तम्मि ।। ६३ ।। बाहि ठित्तति वसहिं खेत्तं गाहेत्तु वासपाओग्गं । कप्पं कहेतु ठवणा सावण सुद्धस्स पंचाहे ।। ६४ ।। एत्थ तु प्रणभिग्गहियं वीसतिरायं सवीसतीमासं । 20 तेण परमभिग्गहिअं गिहिणातं कत्तिओ जाव ।। ६५ ।। असिवाइकारणेहि अहवा वासं सुट्ठ आरद्धं । अहिवडियम्मि वीसा इयरेसु सवीसई मासो ॥ ६६ ।। 2010_04 Page #506 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (८) श्रोदशाश्रुतस्कंधनियुक्तिः ] [ ४८३ एस्थ तु पणगं पणगं कारणियं जा सवीसतीमासो। सुद्धदसमीट्ठियाण व आसाढीपुण्णिमोसरणं ।। ६७ ।। इय सत्तरी जहण्णा असीति णउती दसुत्तरसयं च । जइ वासति मिग्गसिरे दसराया तिणि उक्कोसा ।। ६८ ॥ काऊरण मासकप्पं तत्थेव ठियाणऽतीए मग्गसीरे । सालम्बणाण छम्मासितो तु जट्ठोग्गही होति ॥ ६६ ।। जइ अस्थि पयविहारो चउपडिवयम्मि होइ गंतव्वं । अहवावि अणितस्सा आरोवणपुन्वनिहिट्ठा ॥ ७० ॥ काईयभूमी संथारए य संसत्त दुल्लहे भिक्खे । 10 एएहि कारणेहि अपत्ते होइ निग्गमणं ॥ ७१ ।। राया सप्पे कुथू अणि गिलाणे य थंडिलस्सऽसति । एएहि कारणेहि अपत्ते होइ निग्गमणं ।। ७२ ।। वासं व न ओरभई पंथा वा दुग्गमा सचिखल्ला। एएहि कारणेहि अइक्कते होइ निग्गमणं ।। ७३ ।। 15 असिवे ओमोयरिए राया दुठे भए व गेलण्णे। एएहि कारणेहि प्रइकते होति निग्गमणं ।। ७४ ।। उभओवि अद्धजोयण सअद्धकोसं च तं हति खेत्तं । होइ सकोसं जोयण, मोत्तूण कारणज्जाए ।। ७५ ।। उड्डमहे तिरियम्मि य, सकोसयं सम्वतो हवति खेत्तं । इंदपयमाइएसु छद्दिसि इयरेसु चउ पच ।। ७६ ।। तिण्णि दुवे एक्का वा वाघाएणं दिसा हवा खेत्तं । उज्जाणाप्रो परेणं छिण्णमंडई तु अखेत्तं ।। ७७ ।। . 2010_04 Page #507 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४८४ ] [नियुक्तिसंग्रहः :: (८) श्रीदशाश्रुतस्कंधनियुक्तिः 10 दगघट्ट तिन्नि सत्त व उडुवासासु ण हणंति तं खेत्तं । चउरट्टाति हणती जंघद्धे कोवि उ परेणं ।। ७८ ।। दव्वट्ठवणाऽऽहारे १ विगई २ संथार ३ मत्तए ४ लोए ५ । सच्चित्ते ६ अचित्ते ७ वोसिरणं गहण-धरणाई ।। ७६ ।। 5 पुश्वाहारोसवण जोग विवड्डीय सत्तिउग्गहणं । संचइय असच इए दवविवड्डी पसत्था उ ॥८० ॥ विर्गात विगतीभीओ विगइगयं जो उ भुजए भिक्खू । विगई विगयस भावं विगती विगति बला नेइ ।। ८१ ।। पसत्थ विगईगहणं गरहियविगतिगहो य कज्जम्मि । गरहा लाभपमाणे पच्चय पायप्पडीघाओ ।। ८२ ।। कारणओ उडुगहिते उज्झिऊण गेण्हंति अण्णपरिसाडी। दाउं गुरुस्स तिणि उ सेसा गेहंति एक्केक्कं ॥८३ ।। उच्चार-पासवण-खेलमत्तए तिणि तिहि गेण्हंति । संजय-पाएसट्ठा भुजेज्जऽवसेस उज्झति ॥ ८४ ।। 15 धुवलोप्रो उ जिणाणं णिच्च थेराण वासवासासु । असहू गिलाणस्स व, जातिक्कामेज्ज तं रणि ॥ ८५॥ मोत्तु पुराण-भाविय सड्ढे संविग्ग सेस पडिसेहो । मा निद्दओ भविस्सइ भोयणमोए य उड्डाहो ॥८६ ।। इरिएसण भासाणं मण वयसा काइए य दुच्चिरिए । अहिगरणकसायाणं संवच्छरिए विनोसवणं ।। ८७ ।। कामं तु सम्वकालं पंचसु समितीसु होइ जइयव्वं । वासासु अहीगारो वहुपारणा मेइणी जेणं ॥८८ ।। 20 2010_04 Page #508 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (८) श्रीदशाश्रुतस्कंध निर्युक्तिः ) [ ४८५ भासणे संपाद्दमवहो दुण्णेश्रो नेहछेओ तइयाए । हरियचरिमासु दोसृवि प्रपेहअपमज्जणे पाणा ।। ८६ ।। मणवयणकायगुत्तो दुच्चरियाई तु खिष्पमालोए । अहिगरणम्मि दुख्यग पज्जोए चेव दमए य ।। ६० ।। 5 एगबइल्ला भंडी पासह तुब्भे य उज्झ खलहाणे । हरणे झामणजत्ता, भाणगमल्लेण घोसणया ।। ९१ ।। श्रपिरणह तं बद्दल्लं दुरुतग्ग ! तस्स कु भयारस्स । मा भे डहीहि गामं अन्नाणि वि सत्त वासाणि ।। ९२ ।। चंपाकुमारनंदी पंचऽच्छर थेरनयण दुमडवलए । 10 विह पासणया सावग इंगिणि उबवाय दिसरे ।। ९३ ।। बोहण पडिमा उदयण पभावउप्पाय देवदत्ताते । मरणुयवाए तायस, णयणं तह भीसणा समणा ।। ९४ ।। गंधार गिरी देवय, पडिमा गुलिया गिलाण पडियरेण । पज्जोयहरण दोषखर रण गहना मेऽज्ज ओसवणा ।। ९५ ।। 15 दासो दासीवतितो छत्तट्ठिय जो घरे य वत्थव्वो । प्राण कोवेमाणो हंतव्वो बंधियवो य ।। ६६ ।। खद्धाssवाणियगेहे पायस दट्ठण चेडरूवाई । पियरो भासण खोरे जाइय लद्धे य तेणा उ ।। ९७ ।। पायसहरणं छेत्ता पच्चागय दमग असियए सीसं । भाउय सेणावति खिसणा य सरणागतो जत्थ ॥ ६८ ॥ वाओदएरण राई णासह कालेण सिगय पुढवीणं । णास उदगस्स सती, पव्वयराती उजा सेलो ।। ९९ ।। 20 2010_04 Page #509 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४८६ ] [ नियुक्तिसंग्रहः :: (८) श्रीदशाश्रुतस्कंधनियुक्तिः उदय सरिच्छा पक्खेणऽवेति चउमासिएण सिगयसमा । वरिसेण पुढविराई आमरणगतीउ पडिलोमा ।। १०० ।। सेलट्ठि थंभ दारुय लया य वंसी य मिढगोमुत्तं । प्रवलेहणीया किमिराग कद्दम कुसु भय हलिद्दा ।। १०१ ॥ एमेव थंभकेयण, वत्थेसु परूवणा गईमो य । मरुयऽच्चकारिय पंडरज्ज मंगू य प्राहरणा ।। १०२ ।। अवहंत गोण मरुए चउण्ह वप्पाण उक्करो उवरि । छोढ़ मए सुवट्ठाऽतिकोवे णो देमो पच्छित्तं ।। १०३ ।। वणियाऽच्चकारिय भट्टा अट्ठसुयमग्गो जाया। 10 वरग पडिसेह सचिवे, अणुयत्तीह पयाणं च ॥ १०४ ।। णिवचित विगालपडिच्छणा य दारं न देमि निवकहणा। खिसा णिसि निग्गमणं चोरा सेरणावई गहणं ॥ १०५ ॥ नेच्छइ जलूगवेज्जगगहण तम्मि य अणिच्छमाणम्मि । गाहावइ जलूगा धणभाउग कहरण मोयणया ।। १०६ ।। . सयगुणसहस्स पागं, वणभेसज्ज वतीसु जायणता । तिक्खुत्त दासीभिदण ण य कोव सयं पदाणं च ॥ १०७ ।। पासस्थि पंडरज्जा परिण गुरुमूल णाय अभिओगा। पुच्छति य पडिक्कमणे, पुन्वन्भासा चउत्थम्म ।। १०८ ।। अपडिक्कम सोहम्मे अभिओगा देवि सक्कतोसरणं । 20 हस्थिणि वायणि सग्गो गोतमपुच्छा य वागरणं ॥१०६ ।। महुरा मंगू पागम बहुसुय वेरग्ग सडपूयाय । सातादिलोभ णितिए, मरणे जीहा य णिद्धमणे ।। ११० ॥ 15 2010_04 Page #510 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (८) श्रीदशाश्रुतस्कंधनियुक्ति: ] [ ४८७ अब्भुवगत गतवेरे, गाउ गिहिणो वि मा हु अहिगरणं । कुज्जा हु कसाए वा अविगडितफलं च सि सोउं ।। ११२ ।। पच्छित्ते बहुपाणो कालो बलितो चिरं तु ठायव्वं । सज्झाय संजमतवे धणियं अप्पा णिप्रोतव्यो ।। ११३ ।। 5 पुरिमचरिमाण कप्पो मंगल्लं बद्धमाणतित्थंमि । इह परिकहिया जिण-गणहराइथेरावलि चरित्तं ॥ ११४ ।। सुसे जहा निबद्धं वग्घारिय भत्त-पाण अग्गहणे। णाणट्ठी तपस्सी प्रणहियासि वग्घारिए गहणं ।। ११५ ॥ संजमखेत्तचुयाणं गाणट्ठि-तवस्सि-अणहियासाणं । 10 आसज्ज भिक्खकालं, उत्तरकरणेण जतियव्वं ॥ ११६ ॥ उणियवासाकप्पो लाउयपायं च लभए जत्थ । सज्झाएसणसोही वरिसति काले य तं खित्तं ।। ११७ ।। पुवाहीयं नासइ, नवं च छातो अपच्चलो धेत्तु। खमगस्स य पारणए वरिसति असहू व बालाई ॥ ११८ ।। 15 बाले सुत्ते सुई कुडसीसग छत्तए अपच्छिमए । णाणट्ठी तवस्सी अपहियासि अह उत्तरविसेसो ।। ११६ ॥ ॥ पजोसमणा कप्पनिजुत्ति सम्मत्ता ।।१॥ ॥९॥ नवममोहनीयाध्ययननियुक्तिः॥ नाम ठवणा मोहो दवे भावे य होति बोधवो । 20 ठाणं पुवुद्दिळं पगयं पुण भावठाणेणं ॥ १२० ॥ 2010_04 Page #511 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४८८ ] [नियुक्तिसंग्रहः :: (८) श्रीदशाश्रुतस्कंधनियुक्तिः दवे सच्चित्ताती सयणधणादी दुहा हवइ मोहो । ओघेणेगापयडी अगेगपयडी भवे मोहो ॥ १२१ ॥ अविहंपि य कम्म भणि मोहोत्ति जं समासेणं । सो पुष्वगए मणिओ तस्स य एगट्टिआ इणमो ।। १२२ ।। 5 पावे वज्जे वेरे पणगे पंके खुहे असाए य । संगे सल्ले अरए निरए धुत्ते अ एगट्ठा ॥ १२३ ।। कम्मे य किलेसे य समुदाणे खलु तहा मइल्ले य । माइणो अप्पाए अ दुप्पक्खे तह संपराये य ॥ १२४ ।। प्रसुत्ते दुहाणुबंध दुम्मोए खलु चिरद्वितीए य । 10 घणचिक्कणनिब्वे प्रामोहे य तहा महामोहे ।। १२५ ।। कहिया जिणेहिं लोगो पगासिया भारिया इमे बंधा । साहुगुरुमित्तबंधवसेट्ठीसेणावइवधेसु य ।। १२६ ।। एत्तो गुरुआसायणजिणवयण विलोषणेसु पडिबंध । असुहे दुहाण बंधत्ति तेण तो ताई वज्जेज्जा ॥ १२७ ।। 15 ॥ मोहणिजस्स निज्जुत्ती समत्ता ॥ ६ ॥ ॥१०॥ दशम नवपायनिदानस्थानाध्ययन णामं ठवणा जाई दवे भावे य होइ बोधव्वा । ठाणं पुवुद्दिट्ठ पगयं पुण भावट्ठाणेणं ।। १२८ ।। दव्वं दध्वसभावो भावो अणुभवणपोहतो दुविहो । 20 अणभवण छविहो उहयो उ संसारिओ जीवो ।। १२६ ।। 2010_04 Page #512 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (८) श्रीदशाश्रुतस्कंधनियुक्ति ] - [ ४८९ जाती आजातीया पच्चाजातीय होइ बोधव्वा । जाती संसारत्था मासो जाती जम्ममन्नयरं ।। १३० ।। जत्तो चुओ भवाम्रो तत्थे य पुणोवि जह हवति जम्मं । सा खलु पच्चायायो मणुस्स तेरिच्छए होइ ॥ १३१ ।। 5 कामं असंजयस्सा गस्थि हु मोक्खे धुवमेव आयाई । केण विसेसेण पुणो पावइ समणो अणायाई ।। १३२ ।। मूलगुणउत्तरगुणे अप्पडिसेवी इहं अपडिबद्धो । भत्तोवहिसयणासणविवित्तसेवी सया पयओ ।। १३३ ॥ तोत्थंकरगुरुसाहूसु भत्तिमं हत्थपायसंलीणो। 10 पंचसमिओ कलहझंझपिसुणओहाण विरओ अपारण । १३४ । पाएण एरिसो सिज्झइति कोइ पुणा पागमेस्साए । केण हु दोसेण पुणो पावइ समणो वि आयाई ॥ १३५ ।। जाणि भणिआणि सुत्ते तहागएसुं तहा निदाणाणि। . संदाण निदाणं नियपच्चोति य होंति एगट्टा ।। १३६ ।। 15 दवप्पओगवीससप्पओगसमूलउत्तरे चेव । मूलसरीरसरीरी साती अमणादिओ चेव ॥१३७ ।। णिगलादि उत्तरो वीससाउ साई अणादिओ चेव । खेत्तम्मि जम्मि खेत्ते काले कालो जहि जो उ ।। १३८ ।। दुविहो अ भावबंधो जीवमजीवे अ होइ बोधव्यो । 20 एक्केक्कोवि तिविहो विवागअविवागतदुभयगो।। १३९ ।। भावे कसायबन्धो अहिगारो बहुविहेसु प्रत्थेसु । इहलोगपारलोगिय पगयं परलोगिए बन्धे ॥ १४० ।। 2010_04 Page #513 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४९० ] [ निर्युक्तिसंग्रह :: ( ५ ) श्रीदशाश्रुतस्कंधनिर्युक्तिः पावई धुवमायाति निआणदोसेणु उज्जमन्तोवि । विणिवापि य पावइ तम्हा अनियाणता सेआ ।। १४१ ।। अपासत्थाए अकुसीलयाए अकसायअप्पमाए य । अणिदाणयाइ साहू संसारमहन्नवं तरई ।। १४२ ।। || निज्जुत्ती सम्मत्ता ॥ नियुक्ति संग्रहः समाप्तः 2010_04 Page #514 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नियुक्ति-गाथानां अकारादिक्रमः ग्रन्थनामसंक्षेपः-(१) प्रावश्यकनियुक्तिः-पाव. (२) अोघनियुक्ति:-प्रो. (३) पिण्डनियुक्ति:-पि. (४) दशवैकालिकनियुक्ति:- दश. (५) उत्तराध्ययन नियुक्ति:-उत्त. (६) प्राचाराङ्गनियुक्ति:-प्राचा. (७) सूत्रकृताङ्ग नियुक्ति:-सू. (८) दशाश्रुतस्कंधनियुक्ति:-दशा. प्राद्यांश ग्रन्थ-गाथांक पृष्ठं प्राद्यांश ग्रन्थ-गाथांक पृष्ठं अइदुर पि. ३३७-२६६ अकुमाखयं पि. प्र०-३१.२ अइबहुयं पि. ६४६-३२५ अक्खरगुण सू० २०-४५६ प्रइभारेण प्रो. १८७-२०७ अक्खरसण्णी प्राव. १९-३ प्रइभार पि. २५-२६८ अक्खरसण्णी पाव.८६२-८४ अइरित्त दश. ३६१-३६३ अक्खलिय अइरुग्गयए उत्त. १३४-३७७ प्राव. १०२८-१०१ अइरेगगहण ओ. ३१०-२१९ अक्खेवणी दश. २०५-३४७ अइरेगोवहि प्रो. १३१-२०२ अक्खे वराडए अइरं फलाइ पि. ५६१-३१७ प्राव. १४४६-१६१ अइसेसइड्ढि अक्खे वराडए दश. १८३-३४५ प्रो. ३३४-२२१ अइसेसे उप्पण्णे अक्खे वराडए उत्त. २५८-३८६ - पि. ७-२६६ अउणापरणं प्राव. १९७-२० अगरिगतो सू० १०५-४१४ अक्कंतधंत पि. ४०-२६६ प्रकरंडगम्मि. प्राव. १५३०-१७१ प्रो. ६६०-२५३ अगरणीण व प्रो. ४३८-२३१ अगणीयो 2010_04 Page #515 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४६२ ] आद्यांश ग्रन्थ-गाथांक पृष्ठ अगणिनिव्वा उत्त. ४५४-४०६ गविटुस्स पि. ७८-२७३ अगिम्मि हवी दश. १००-३३७ अग्गबीया आचा. १३०-४३२ अग्गिए आव. १३०६-१४७ अग्णीश्रमि आव. सा. १०३५-१०२ अघणघण पि. १७५ - २८२ च्चित्तम पि. ५३७-३१५ च्चितंपुरण सू. ६२-४६४ अच्चासन्न प्रो. ३२६-२२० अच्चाहारो आव. १२८० -१२७ प्रचियत्तमंत पि. ७३-३०० अचिरोव श्राव. १४६६-१६६ अच्छिज्जंपि पि ३६६ - २६६ अच्छोsपिट्टणा प्रो. ५७-२२३ श्रच्छोडपिट्टि पि. ३४-२६६ प्रजिअस्स आव. २७८- २८ प्रजिइंदिय दश. १४४ - ३४१ अजियपश्रोग उत्त. १६५-३८३ अज्जदए सू. १६०-४७४ [ नियुक्तिसंग्रहः श्राद्यांश ग्रन्थ-गाथांक पृष्ठ अज्जियलाभे आव. ११६६-११८ प्रज्जवि वहइ प्रो. २ - २६५ श्रजीवकम्म उत्त. ५३७-४१७ जिइंदिय दश. १४४-३४१ प्रत्थविसो प्रो. ४५-२५६ झपरणगुणी दश. ३५०-३६२ श्रज्झष्पस्सा दश. २६-३३० अज्झष्पस्सा उत्त. ६-३६५ अज्झयणे उत्त. ५४३-४२८ अज्भवसारण आव. ७२४ -७२ अभाविप्रो आव. पा. १४-१३२ प्रभोयरो पि. ८८३०१ ग्र रुद्द च आव. १५०३-१६७ रुद्द च श्राव. १५०६-१६७ अरुद्द च आव. १५०६-१६७ प्र. ३६७-२२७ नो. ३४-२५८ श्रट्ठगहेडं अट्ठपव्वा अट्टामट्ठा हिंसा 2010_04 श्राव. सं. १ - १९४० Page #516 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गाथानां अकारादिक्रमः ] [ ४६३ प्राद्यांश ग्रन्थ-गाथांक पृष्ठं आद्यांश ग्रन्थ-गाथांक पृष्ठं अळंतकडा प्राव. ४१४-१४१ अट्ठारसठाणाई अट्टण्हं पयडीणं दश. २६७-३५४ आव. १०५-११ अट्ठारस पुरिसेसु अट्ठत्तरि च प्राव. ६५६-६५ प्रो. ४४३-२३१ अट्टनिमित्त अट्रारस उ दश. १७६-३४४ प्राव. पा.१-१४४ अट्ठावयभुज्जिते अट्टम एसो प्राचा. ४२-४२४ प्राचा.३२०-४५२ अट्ठमभत्तं प्राव. २५५--२६ अट्ठावय चंपु प्राव. ३०७-३० अट्ठमए य प्राचा. ३२-४२३ अट्ठावमि प्राव. ४३४-४५ अविहंपि अट्ठसुवि उत्त. ४६०-४१० प्राव. १४७०-१६४ अट्टाए पि. १०३-२७५ अट्टविसपच्च प्राव. ६०५-८६ . अट्ठा जहा प्राचा. ८५-४२८ अट्टविहं कम्म अट्ठ गसठिभागा प्राव. १०८१-१०६ प्रो. २४-२१६ अढविहं कम्मरयं अट्ठ व गया प्राव. ४०१-३७ दश. ३३-३३१ अड्डाइज्जा प्राव. २८४-२८ दश. ३०४-३५८ अड्डाइज्जेहिं प्राव ८७५-८६ दश. ३१७-३५६ अड्ढाइज्जाहत्था दश. ३६५-३६४ प्रो. ७०१-२५४ उत्त. ११-३६६ अडवीइ देसि प्राव. ६०४-८६ उत्त. २८६-२६२ अण्णं गामं प्रो. २४३-२१२ अविहकम्म अण्णं च वए प्रो. ५०६-२३७ प्राचा. ८७-४३८ अणगारवाइयो अट्टविहंपि य आचा. १००-४२६ प्राव.९२०-६० अणगारो उत्त. ५४६-४१८ 2010_04 Page #517 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४६४ ] [ नियुक्तिसंग्रहः आद्यांश ग्रन्थ-गाथांक पृष्ठं अणच्चाविनं प्रो. २६५-२१४ अणत्थदंडे आव. सू. ८-१८१ अणथोवं प्राव. १२० - १२ अणदंसन' प्राव. ११६-१२ अणभिग्ग प्रो. १४०-२०३ अणभिग्ग दश. २७७ ३५५ प्रणभोगकार श्राव. पा. ११-१३२ अणभोगेण ओ. ४८१-२३४ अणमिच्छमीस . प्राव. १२१-१२ अणसणमूरणो दश. ४७-३३२ अणसायणा दश. ३२६-३६० अरणागयमइ पाव. १५७८-१८३ प्रणाढियं प्रा. १२२१-१२१ अणावायम प्रो. २६६-२१७ प्रो. ३१३-२१६ " प्रो. ६१६-२४७ अणिएनं दश. ३६६-३६४ अणिगृहिय दश. १८७-३४५ अणिगृहंतो प्राव. ११८३-११७ अणिच्चे पव्वए प्राचा. ३३०-४५३ प्राद्यांश ग्रन्थ-गाथांक पृष्ठं अणिसिटुंपि .७७-३०० प्रणिसिट्ठमणु पि. ८६.-३०१ अणुप्रोगो य प्राव. १३१-१३ अणुकंपऽका प्राव. ८४५-८३ अणुकंय भणि पि. ३२५-२६५ अणुकंपावेय _ प्राव. १३१०-१४८ अणुकंपा पडि पि. ५९६-३२० अणुकंपाय प्रो. २५०-२१३ अणुजाणह प्रोघ. २०५-२०६ अणगामिनो प्राव. ५६-६ अणचिय पि. २०४-२८४ अणुपुस्वि प्राचा. २५७-४४५ अणुमाण प्राव. ६४८-६३ अणुमित्ते ओ. ५७-१६५ अणुवट्ट ते ओ. ४०१-२२७ अणसमय उत्त. २१४-३८५ अणुसमयं च प्राचा. ९०-४२८ अणुणाइरित्त प्रो. २६८-२१५ अत्तट्ठा रंघते पि. २७३-२९१ अत्तयि पि. २५२-२८९ अत्तीकरेइ पि. ११२-२७६ अतरंतबाल प्रो. ५५३-२४१ प्रो. ६६२-२५४ 2010_04 Page #518 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गाथानां अकारादि क्रमः ] श्राद्यांश ग्रन्थ- गाथांक पृष्ठ प्रतरतस्स प्रो. ३२४-२२० श्रतरंतो उ श्राव. १५१०-१६७ प्रतरंतो व श्री. २०६ - २०९ प्रतिहिसंवि आव. सू. १२ - १८२ प्रत्थकरो अ श्राव. १०८८-१०७ प्रत्थकहा दश. १८८-३४६ प्रत्थमहं दश. २१४-३४८ प्रत्थबहुलं दश. १७४-३४४ प्रत्थंडिल प्रो. १३-१६१ प्रत्थं भासइ प्राव. ६२-१० अत्थाणं आव. ३-१ प्रत्थाह पि. ३३-२६६ श्राव, ७०१-७० अथिरस्स प्रत्थित्ति सू. ११८ - ४६६ दश. ७७-३३५ 77 प्रत्थिबहु दश. ११३-३३८ दश. १०६-३३८ " श्राव. ३-१ प्रत्थार्ण प्रत्थित्ति दश. ७७-३३५ अपुरे सू. १८७-४७६ श्रद्धट्टमा आव. २९६-२६ अद्धटुमल ग्राव. २६०-२६ [ ४६५ श्राद्यांश ग्रन्थ- गाथांक पृष्ठ अद्धठ्ठमा प्रद्धतेरस आव. २७६-२८ श्राव. २८० - २८ आव. ३३२-३३ " श्रद्धद्धं श्रहि प्राव. ५८७-५६ श्रद्धमस पि, ६५० - ३२५ श्रद्धभरह श्रद्धभार श्रद्धाइ श्राव. ५८-६ श्रद्धामि श्राव. ११ - १४५ श्रद्धाणे पसाए आव. १२५६-१२५ "7 पलि आव. २४- १३३ श्रद्धा पच्च श्राव १५६३-१८४ अद्धिइ दिट्ठि पि. ४६६-३१० अधिई पुच्छा पि. ५०६-३१२ अन्नत्थऊस प्राव. सू० १६८ अन्नत्थऊस श्राव. सू० १७२ अन्नत्थनिव. आव. १५१-१५ नो. ३४६-२२२ श्राव. १६०६-१८६ अन्नयर श्राव. १३५५-१५२ प्रन्नावए दश. ८०-३३५ श्रन्नाविठ्ठ प्राव. ३६-१३५ अन्नं इमं आव. १५६६ - १७६ अन्नंपिय दश. १६५-३४३ 2010_04 Page #519 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४६६ ] [ नियुक्तिसंग्रहः आद्यांश ग्रन्थ-गाथांक पृष्ठं अनियपुत्ता आव. ११९७-११८ अनिमाण प्राव. ४१५-४१ अनिप्रय आव. ४६२-५१ अनुकंपा प्रो. ४१५-२२८ अनुगलिया . प्रो. ३१२-२१६ अन्नेणाहा पि. ११४-२७६ अन्ने भणति पि. ५९२-३२० अन्नेसि दिज्ज पि. ४६३--३०८ अन्नोऽन्नं प्रो. ३६१-२२६ अन्नोऽवि य उत्त. १०५-३१५ अप्पक्ख प्राव. ८८६-८७ अप्पगंथ प्राव. ८८०-८७ अप्पडिलेहि ओ.१९५-२०८ अप्पडिलेहि प्रो. १२६-२०२ अपडिकम्म दशा. १०६-४८६ अपडिलेहणतो प्रो. ५८६-२४४ अप्पत्तंमि पि. २८६-२८२ अप्पत्ता उ पि ५५१-३१६ अप्पत्ते चिय प्रो. ३५०-२२२ अप्पत्ते चिय पि. २६-२६८ अप्पायया प्राव. १२८६-१४६ अपरक्कम प्राचाः २६६-४४६ आद्यांश ग्रन्थ-गाथांक पृष्ठं अपराजिम प्राव. ३२९-३२ अपरिणयंमि पि. ६०९-३२२ अपरिमियप प्राव सू०५-१८० अपरिमियनेह पि. ३१८-२६५ अपस्समाणो प्राव. १५-१४५ अपसत्थो य पि. ६३-२७१ अप्पहसंदिढे प्रो.४७०-२३३ अपासस्थाए दश. १४२-४८६ अप्पामूल प्रो. २१३-२१० अप्पाहि प्रो. १९-१६१ अप्पिणह दशा. ९२-४८५ अपहत्त दश. ४-३२८ अपुहुत्ते आव. ७७३-७६ अपुव्वनारण प्राव. १८१-१८ अपुवनारा आव. ५३-४ अपुव्वं प्राव. ११३६-११३ अप्पोदगा प्रो. १७१-२०६ अप्पंपि आव. ९९-१० अफासुयसू० ८६-४६३ अब्भत्थरगाए प्राव. ६८०-६८ अब्भंतर पाव. ५४९-५६ अब्भंगिय पि. ४२३-३०४ अन्भास दश. ३१२-३५९ अभिंतरलद्धी प्राव. ६३-६ अभिंतरपरि प्रो. ३५३-२२३ 2010_04 Page #520 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गाथानां अकारादिक्रमः ] [ ४६७ आद्यांश ग्रन्थ-गाथांक पृष्ठं अभिंतरपरि पि. ३०-२६८ अभिंतर मल आव. १४२४-१५६ अभिंतरया उत्त. १३२-३७७ अब्भदाणं वि.प्राव. ८४८-८३ अब्भुट्ठाणं अं. दश. ३११-३५८ अभट्राणं अंदश. ३२१-३५८ अब्भुवगत दशा. ११२-४८७ अब्भुवगमंमि प्राव.६६६-६७ अब्भोग्गे पि. १६०-२८३ अभणंतरस प्रा. ५६०-२४४ अभत्तट्टियाण प्रो. ३६२-२२६ अभयकरो आचा.२०६-४४० अभयं तुज्झ उत्त. ४०१-४०३ अभए सिट्टि प्राव. ६४६-६३ अभिकंखं प्रा. ७०८-७० अभिक्खम प्राव. १२-१४५ अभिणंदरगाउ पाव. ४-४२ अभिपेयमरण उत्त. ४३-३६६ अभिलाभ उत्त. ४५-३६६ अभिसंभूत्रा प्राव. १०९४-१०८ श्राद्यांश ग्रन्थ-गाथांक पृष्ठं अमणुन्न प्रो. ४२०-२२६ अभरनर पाव. ५४०-५५ प्रमुगंति पि. २४१-२८८ प्रमुगारराति पि. २३५-२८७ अम्मापिऊण उत्त. ४२१-४०५ अयमपरो पि. ४१५-३०४ अयलापुर उत्त.६८-३७४ अयणाईय प्रो. २८२-२१६ प्रयसि हरि दश. २५३-३५२ अरईइ उत्त.७५-३७२ अरई अचेल उत्त. ७५-३७२ अरमल्लि प्रा. ४२०-४४ अरहंते व प्रो. १-१९ अरहताई प्राव. १०२०-१०० अरिहंतनमु प्राव. ६२३-६१ अरहंतनम् प्राव. ९२५-६१ अरहंतु व प्राव. १०२२-१०० अरिहंतनमु प्राव. ९२४-९१ अरिहंतनमु प्राव. ६२६-९१ अरिहंतमग्ग दश. १४६-३४१ अरिहन्तचक्क सू. १४९-४७० अरिहंतसिद्ध आव. ४५१-४७ अरिहंतसिद्ध प्राव. १७९-१८ अरिहंति प्राव. ९२१-९० अरिहो उ प्राव. ९०८-८९ 2010_04 Page #521 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४६८ ] [ नियुक्तिसंग्रहः h प्राद्यांश ग्रन्थ गाथांक पृष्ठं अलाभरोग प्राव. २-१४३ अलियमुव प्राव. ८८१-१७ अलोअंमि प्राव. १४१५-१५८ अलोए पडि प्राव. ६५९-६४ अव्वकालि प्रो. ३७२-२२४ अव्वक्खित्ता प्रो. ५१५-२३८ प्रवरगामा प्रा. १२१७-१२० प्रवणेइ दश. ३१८-३५९ प्रवत्तमपह प्रो. ४६७-२३३ अवयाली उत्त. ४६०-४१२ प्रवरज्ज़ प्राव.६१-१३७ प्रवरद्धिग ओ. ३४१-२२२ अवरद्धिग पि. १४-२६७ अवरविदेहे प्राव. १५३-१६ प्रवराहमि दशा. १३-४७७ अवरोप्पर प्रो. ३२४-२९५ अव (आ) लोन प्राव. १५२८-१७० प्रवयास पि. ५८१-३१९ अवहंत दशा. १०३-४८६ अव्वाबाहं प्राव. १२३७-१२३ अविश्न जणो प्रो. ५०-१९५ अवि नाम पि. ४५१-३०७ अविभमर दश. १२४-३३९ अवियह सू. १६०-४७१ प्राद्यांश ग्रन्थ-गाथांक पृष्ठ अविरय उत्त. २२१-३८५ अविलाक पि. १६४-२८३ अविसिट प्रो. ५१-१६५ अविसुद्ध उत्त. ५४१-४१७ अविसुद्धो पि. ५३०-३१४ अविहिपुच्छा प्रो. ६४-१६६ अविहीपुच्छा प्रो. १६७-२०५ प्रवीय हु पि. ७६-३०० अव्वोच्छिन्ना प्रो. ३२२-२२० असई गिहि प्रो. ३६-१९३ असई मज्झिम प्रो. २०-१९२ असई य निय प्रो. ५५५-२४१ असई य चिलि प्रो. ३४-२१२ असई लाभे प्रो. १८-२५६ अस कीस दश. ११२-३३८ असणाईण पि. १७०-२८१ असणं पाणगं प्रा. १६०१-१८५ असणं पाणगं प्रा. १६०५-१८६ असमणुन्न प्राचा. २५३-४४५ असमाहि दशा. ७-४७६ असहाइ प्राव. १०१३-६६ असज्झाइय प्राव. १३३५-१५१ 2010_04 Page #522 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गाथानां अकारादिक्रमः ] [ ४९९ प्राद्यांश ग्रन्थ-गाथांक पृष्ठं प्राद्यांश ग्रन्थ-गाथांक पृष्ठं प्रसज्झाइय ___, , प्रो. १११-२०० प्राव. १४३०-१६० , , दशा ७४-४८३ प्रसज्झाइय असिवो माघ प्राव. १४३१-१६० प्राव. १३७३-१५४ असज्झाइयं असिसत्ति । सू. ७२-४६२ प्राव. १३३६--१५१ अस्साय प्राव. ५७३-५८ अस्संजयमणु प्राव.६६-१३७ अस्सावग प्राव. ३६५-३६ अस्संजमोय प्राव. ७४०-७३ । असुनाइएहिं पि. ४२४-३०५ अस्संजमजो पि. ४६०-३०८ असुइटाणे आव. ११२५-११२ प्रसंजयं न प्राव. १११९-१११ असुते दशा. १२५-४८८ अस्सिरिण प्राव. ४३-१३५ अह अन्नया असि असिरग्रो उत्त. ४१२-४०५ प्राव. १६२-२० अह अन्नया उत्त. ४३६-४०७ असिपत्ते आव. २-१४० अह अन्नया उत्त. ४६६-४१० अह अन्नया प्राव. ३५०-३५ असिपत्ते सू. ६७-४६१ अह अन्नया उत्त. ४३२-४०७ असियसयं सू. ११९-४६६ अह आगो उत्त. २९१-३६२ असरीरा जीव ग्रह प्रागमो प्राव. ५०१-५१ प्राव. ९७७-६६ अह पासगयो असिवाइ प्राव. ५६-१३६ उत्त. ३६७ ४८३ ___" दशा. ६६-४८२ ___ अह एगराइ उत्त. ४७२-४११ , प्रो. ६-१६१ अह अोवया दश. ३१६-३५६ असिवे प्रोमो प्राव. १२-१३२ अह केसर उत्त. ३६६-४०३ " " प्रो. ७ १६१ अह को पुरणा प्रो. ५२८-२३६ 2010_04 Page #523 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५०० ] [ नियुक्तिसंग्रहः प्राद्यांश ग्रन्थ-गाथांक पृष्ठ अह अज्जगाइ-प्रो. ८६-१९८ अहणुट्टियं व पि. ४१७-३०४ अहणवासिय प्रो.१०६-२००। अहपुण्णजुण्णा ओ.१६४-२०५ अह पिच्छइ उत्त. ४१३-४०५ अह पूडरी उत्त. २९२-३६३ अह तं पाग प्राव. ३६०-३६ अह तस्स उत्त. ४३७-४०७ अहियासिनाई आव. १३७७-१५४ अहियासियाई प्रो. ३३-२४८ अहयं तुन्भं प्राव. ६७३-६७ प्रहयं च दसा आव. ४३२-४५ अहिगम्मति दश. ३०-३३१ अहिगम्मति उत्त. ७-३६५ अहिगरण पि. ४१४-३०४ अह दव्वस्स प्राचा. २१७ ४४१ अह देहइ उत्त. ४१४-४०५ अह भरणइस उत्त.४४०-४०८ " , जि. आव. ३७३-३७ ,, जि. पाव. ३६६-३६ ,,न् प्राव. ३७२-३७ , ,ज उत्त. ४७४-४११ ", अउत्त. ४७६-४११ प्राद्यांश ग्रन्थ-गाथांक पृष्ठ अहमसंमि पि. ६३१-३२४ , प्रो. ५४०-२४० अहमवि खामेमो _प्राव. १५४२-१७४ अह मीसो पि. ५३-२७१ अहमोसम उत्त. ३६६-४८३ अहियासि प्राचा २५२-४४५ अह रूविरणी उत्त. ४३८-४०७ अहलोउत्त प्रो. ७६६-२६१ मह भगवं प्राव. ४३३-४५ अहवड्ढइ प्राव. १९१-२० अहव ण प्रो. १४६-२०४ अहव ग पि. ६६५-३३७ अहव न पि. ५४६-३१६ अवश्यपरि पाव. ७१२-७१ अहवा अंगु पि. २८७-२६२ अहवा पर प्राव. १-१५० अहवा कंमे प्राव. १-१४६ अहवा चउ पि. ५८-२७१ अहवा रगाणा प्राव. ६७६-६७ अहवान प्रो. ५८१-२४४ अहवा सय प्राव. ६७४-६७ अहवाऽवि प्राव. ६७२-६७ अहवा इमो दश. ८७-३३६ अहवा नाण सू. १५६-४७१ PRA Y 2010_04 Page #524 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गाथानां अकारादिक्रमः ] [ ५०१ प्राद्यांश ग्रन्थ-गाथांक पृष्ठं आद्यांश ग्रन्थ-गाथांक पृष्ठं अहस्ससच्चे आव. २-१४३ अंतो मुहुत्त सू. १७६-४७३ अहसव्वदव्व प्राव. ७७-८ . मुहत्त प्रह सा सत्था प्राव. १४७७-१६४ उत्त. ४३४-४०७ ,, साइप्रायो अह होइ भाव प्रो.५४४-२४० प्राचा. ४५-४२४ अय होइ लेव ओ ३७१-२२४ अंबग्ग प्राचा. २२-४२२ अहि सरिया प्राव. ८७३-८५ अंबरस य आव. ११३०-११२ अंग दसभाग उत्त. १५६-३७६ अंबरस य प्रो. ७७०-२६१ अंगप्पभवा उत्त. ४-३६५ अंबे अंबरिसी प्राव. ११-१४० अंगारघुवियाई अंबे अंबरिसी स. ६६-४६१ पि, ५६०-३१७ प्राउ विवाग दशा. २-४७६ अंगारत्तमपत्तं प्राइगरु प्राव. ४२४-४४ . पि. ६५६-३२६ । पाइदुवे प्रो. ४८६-२३५ अंगाणं कि प्राचा. १६-४२१ पाइन्नपिसिय अंगुट्ठपए प्रो. ३६०-२२६ प्राव. १४१३-१५८ अंगुटगुट्टि पाइन्नमणा पि. ३२९-२९६ प्राव. १५६२-१८४ प्राइमकाउ अंगुलभाव प्राव. ३२-४ आव. १५१६-१६९ अंगुलं सत्त प्रो. २८४-२१६ आइमझ दश. २-३२८ अंतगय सू. ७१-४६२ आउक्कामो पि. १६-२६७ अंतरपल्ली प्रो. ५३-२१३ पाउज्जकट्ठ प्राचा. १४७-४३४ अंतंतं प्रो. ५७१-२४३ आउज्जनट्ट अंतो बहिं व . आव. ११५८-११५ प्राव. १३६८-१५४ पाउट्टिम दश. १६७-३४३ अंतो बहि व पाउट्टिमूल प्राव. ८-१४२ आव. १३६६-१५३ पाउट्टिया पाव. १४२५-१५६ 2010_04 | Page #525 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५०२ ] [ नियुक्तिसंग्रहः m प्राद्यांश ग्रन्थ-गाथांक पृष्ठं पाउत्तपुव्व प्राव. १३९१-१५६ आत्तपुव्व प्रो. ४८-२५० पाउरचिन्नाई उत्त. २४८-३८८ पाउस्सवि प्राचा. १०६-४३० पाएसतिगं प्रो. ३४५-२२२ पाएसो पुण उत्त. ४६-३६६ प्राअोवमाइ प्राव. १०४५-१०३ आकंपिया पि. ४३६-३०६ । प्रागंतु धाउ पि. ४५६-३०८ प्रागमो णो सू. १३५-४६८ प्रागमो पुण सू. १३६-४६८ आगमइरिया प्रो. ५४-२५० प्रागमण प्रो. ४७७-२३४ प्रागमतो उव दश. ३४१-३६१ पागमसिद्धो पाव. ९३५-६२ पागम्मडि प्रो. २०८-२०६ आगाढ जोग ओ. ५४८-२४१ प्रागारेषण प्राव. १४६६-१६४ आघोसिए प्राव. १३८८-१५५ आद्यांश ग्रन्थ-गाथांक पृष्ठं प्राधोसिए ओ. ४५-२४९ प्राणतु भुजगा पि. १२३-२७७ पाणंद अंसु दश. ३७१-३६४ प्राणं सव्व पि. १८४-२८२ प्राणयणाणय प्राव. ४९-६ प्रारणाइणो य पि. १८३-२८२ आणा गिज्झो प्राव. १६३३-१८८ प्राणा बाला पाव. ६७७-६७ प्रादाणिय सू०२८ ४५७ प्रादाणे सू. १३२-४६८ प्रापुच्छण पाव. १६८५-१५५ प्रो. ४१-२४६ प्रापुच्छणा प्राव. ६९७-६६ आभट्रो य प्राव. ५६६-६० , ६०३-६१ " ६०७-६१ " ६११-६१ ६१५-६२ " . ६१६-६२ " ६२३-६२ " ६२७-६३ , ६३१-६३ mr 2010_04 Page #526 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गाथानां अकारादिक्रमः | [ ५०३ प्राद्यांश ग्रन्थ-गाथांक पृष्ठं प्राभट्टो य प्राव. ६३५-६४ प्राभरणच्छाय उत्त. ५३८-४११ आभिणिबोहिय प्राव. १-१ " प्राव. १६-३ प्राभोएउं प्राव. १६६-२० आभोग प्रोघ ३-१६० प्रामंतणि दश. २७६-३५५ प्रामोसहि प्राव. ६९-७ प्रायके उव पि. ६६६-३२७ प्रायंको जर पि. ६६७-३२७ प्रायप्पवाय दश. १६-३२९ प्रायपर दश. १९६-३४७ प्रायप्पवाय दश. १६-३२६ प्रायपरोभय पि. ५८५-३१६ प्रायपरसरीर दश. १९६-३४७ आयंबिलपार पि. ६१६-३२२ आयंबिलमणा प्राव. १६२४-१८८ प्रायवय च पि. ४८६-३१० आयंसघर प्राव. ४३६-४५ आयकियं पि. ३०७-२६४ प्राययणं य प्रो.७८२-२६२ आद्यांश ग्रन्थ-गाथांक पृष्ठं पायरिय प्रो. १८८-२०७ प्रायरिए य प्राव.७५-१३८ ओ. ४२६-२२६ प्रो. ६०७-२४६ , प्रो. ७१६-२५६ पायरिय प्रभा प्रो. ५५६-२४१ पायरिय उव पि. ४५७-३०९ पायरिय उव प्राव. १२०९-१२० पायरियोऽवि सू. १३०-४६८ प्रायरिय गिला प्रो. ३५१-२२३ पायरिय गिला. प्रो ५०१-२३६ पायरिय गिला पि. २७-२६८ " परंसू. १२५-४६७ , नमो प्राव. ६६६-९७ " , प्राव. ९९७-९८ " , प्राव. ९६८-६८ " प्राव. ९९६-९८ पायरिय सीस उत्त. ५७-३७० पायरियाइ प्रो.४१४-२२८ पायरियो ता उत्त. ५८-३७० 2010_04 Page #527 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५०४ ] [ नियुक्तिसंग्रहः प्राद्यांश ग्रन्थ-गाथांक पृष्ठ आयसमुत्थं प्राव.१४१७-१५८ प्राया खलु प्राव. ७९०-७८ प्राया चेव प्रो. ७५४-२५६ पायारणपए आचा.२३८-४४३ प्रायाणपदे सू. १०३-४६५ प्रायाणपए उत्त. ५०९-४१४ आयाणे निक्खे प्रो.७१०-२५५ प्रायाणे परि दश. २२३-३४९ पायार अंग प्राचा. २-४२० आयारग्गा प्राचा. १२-४२१ प्रायारऽणा पि. २०३-२८४ आयारंमि दशा. २७-४७८ आयारम्मि प्राचा. १०-४२१ आयारसुयं स. १८२-४७३ आयारस्स प्राचा. ३३२-४५४ पायारे अंग प्राचा. ५-४२० आयारे नि उत्त. ४८५-४१२ प्रायारे बा दशा. ४६-४८१ आयारे वव दश. १९४-३४६ पायारो अंगा प्राचा. ६-४२१ पायारो-प्राचा प्राचा. ७-४२० आयारो नाणा पाव. ६६५-६७ प्रायाहिण प्राव. ५५६-५६ आया हु प्राव. १०४८-१०३ आद्यांश ग्रन्थ-गाथांक पृष्ठ प्रारभडा प्रो. २६६-२१५ प्राराहणाइ प्रो. ८०८-२६४ पाराहणी उ दश. २७२--३५४ पारियए प्रा प्रो. २४०-२१२ आरुग्गबोहि प्राव. ११०७-१०६ प्रारोवणा य आव.६०२-८६ प्रारंभे रस उत्त. २४७-३८८ आलएणं प्राव. ११६२ -११५ पालभियाए प्राव. ५५५-५३ पालभियाए प्राव. ४८८-५० प्रालस्स प्राव. ८४१-८२ आलंबणे य प्राचा.२६६-४४९ पालुक्कई प्राव. १०७१-१०६ पालेवण प्राचा. ६३-४२८ पालोइत्ता प्रो. ५२०-२३८ आलोयण पडि आव. १४३२-१६० पालोयणा निर प्राव. १२८८-१४६ पालोयणा उप्रो. ७९०-२६३ आलोयणा वि ओ.७६१-२६३ ओलोवणमा प्राव. १२५७-१२५ प्रालंबण प्राव. ११८७-११८ प्रालंबणाण प्राव.१२०२-११९ 2010_04 Page #528 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गाथानां अकारादिक्रम: ] श्राद्यांश ग्रन्थ- गाथांक पृष्ठ लंबणेण श्राव. ११८५-११७ स. ९३ - ४६४ आवरणे आवत्ताइसु प्राव. १२४०-१२३ श्रावस्सएसु श्राव. १२२८-१२१ आवस्सगकय प्रो. १७३-२०६ ८४-९ आवासग श्रावस्सगस्स श्राव. श्रवस्ति प्रो. २३०-२११ प्रवस्यिं च श्राव. ६६१-६६ आवस्सियं च प्राव. ६६२-६६ श्रावस्सिया उ श्राव. ६६४-६६ प्रो. २१६-२१० प्रवासगं हु प्रो. ३८-२४६ प्रवासगं तु प्रव. १३८२ - १५५ आवाय चिलि प्रो. १६६ - २०८ प्रावायदोस प्रो. ३०८-२१९ श्रावासयं प्रो. २२०-२१० श्रावासियं च श्राव. १३७२-१५४ श्रावीचि श्रोहि उत्त २११-३८५ आसन्नाउ श्री. ४१६-२२८ श्रीसमपयंमि श्राव. २३१-२३ आसाढपुष्णि दशा. ६३-४०२ [ ५०५ श्राद्यांश ग्रन्थ- गाथांक पृष्ठ प्रो. २८५-२१६ . आसाढबहुल आसाढी इंद आव. १३५२ - १५२ साढे मासे प्रो. २८३-२१६ श्रसायणावि श्रासावरणाविश्रो दशा. १५-४७७ आसा हत्थी व २०१-२१ प्राक्कार श्राव. ३१-१३४ प्रसु खुहं प्राव. १६०२ - १८५ आसूय पि ४०५-३०३ आसंदिपीढ पि. ३६१-२६६ श्राव. ७१४-७१ सेवणाय सू. १२६-४६८ ग्रह जह प्राव. १५६५ - १८५ ग्रहणणाई श्रो. ३०६-२१८ श्राहा अहे य पि. ६५-२७४ श्राहा अहे य पि. १२६-२७७ पि. १२६-२७७ ग्राहाकड श्रहाकम्मनिमं पि. १८२- २८२ हाकम्मद्दारं पि. २१८-२८६ पि. १८१ - २८२ आहाकम्मग्गहणे 2010_04 Page #529 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५०६ ] [ नियुक्तिसंग्रहः आद्यांश ग्रन्थ-गाथांक पृष्ठ प्राहाकम्मपरिणतो पि. २०७-२८५ - " , पि.१०७-२७५ आहाकम्मं भु पि. २१७-२८५ , तरिया पि. १३४-२७८ प्राहाकम्मिय भा . पि. २६३-२६० प्राहाकम्मियनामा पि. ६४-२७४ आहाकम्माईणं पि. १३३-२७८ प्राहाकम्मुद्देसिय पि.६२-२७४ आहाकम्मुद्देसिय पि. २४८-२८८ प्राहाकम्मुद्देसिय ३६३-३०२ आहाकम्मेण पि. १३६-२७८ आहाकम्मे य प्राव. ७३-१३८ आहारउवहिपूना प्राचा. २२४-४४२ आहारउवहिसेज्जा पि. ६८-२७२ आहार उवहि पि. ६२१-३२३ आहारमओ उ प्राव. ८१५-८० प्राद्यांश ग्रन्थ-गाथांक पृष्ठं पाहारगुत्ते प्राव. ४०१-१४३ आहरणं दश. ७३-३३४ आहारतेय प्राव. ४६-५ पाहारंति पि. ६६०.-३२६ आहार भय प्राचा. ३६-४२३ पाहारंमि उ प्राव. ७२-१३८ पाहारे उवाचा.५४६-४३३ आहारेण प्राचा. २७५-४४७ पाहारे सिप्प पाव. २०३-२१ आहारोवहि पि.७२-३०० पाहो सुप्रोव पि. ५२४-३१४ इस सव्व प्राव. ९८६-६७ इअ सिद्धाणं आव. ९८४-९६ इक्कस्स दुण्ह प्राचा. ८२-४२७ इक्कस्स दुण्ह प्राचा. १४३-४३३ इक्कस्स दोण्ह प्राव. १४००-१५७ इक्कारसवि प्राव. ८२-६ इक्कासीई आव २६७-२७ इक्किक्को उत्त. २०५-३८४ इक्केरण प्राव. १३४३-१५१ इक्खाग कुले प्राव. १४६-१५ इक्खागभूमि प्राव. ३८२-३८ 2010_04 | Page #530 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गाथानां अकारादिक्रमः ] [ ५०७ आद्यांश ग्रन्थ-गाथांक पृष्ठं इक्कागवंश पि. ४७६ ३१० इक्खागेसु प्राव. ४४०-४६ इंगाल अगणि प्राचा. ११८-४३१ इच्चेवमाइ आव. ३१२-३१ इच्छाइसाम उत्त. ४८७-४१२ इच्छा पसत्थ दश. १६३ -३४३ इच्छा मिच्छा उत्त. ४८३-४१२ इच्छा मिच्छा प्राव. ६६६-६६ इच्छा य अणु आव. १२३२-१२२ इण्छामि खमा प्राव. सू. १२२ इच्छामि ठाइऊ प्राव. सू. १६० इच्छिज्ज न प्रो. ५२५-२३८ इट्टगछराँमि पि. ४६६-३०८ इट्टगपागा श्रो. ५८-२२३ पि. ३६-२६९ इडिरससाय सू. ११३-४६६ इणमण्णं प्रो. ६८१-२५३ इत्तो उत्तर उत्त. १९३-३८३ इतरियं प्राव. ७२१-७१ इत्तरियाइ आव. ७१९-७१ इत्थ य सह पाचा. ६५-४२६ प्राद्यांश ग्रन्थ-गाथांक पृष्ठं इत्थ य पत्रोपाव.१०२३-१०० इत्थं पुण अहि प्राव. ७६-८ दश. २२६-३५० ___, उत्त. २३४-३८७ , समणो प्राव. सू. १३-१८२ "पुण चउ पाव.१६३०-१८८ इथिकहा दश. २०७-३४७ इस्थिण उत्त. ३२६-३६६ इत्थीगहणे प्रो. ४२१-२२६ ,, परिग्ग दश. ३४०-३६१ , रयण उत्त. ३५३.३९८ ,, विज्जामि प्राव. ९३१-६१ ,, सक्कार प्राचा. २०२-४३६ इंदग्गेई प्राचा. ४३-४२४ इंदत्थं जह पि. १३५-२७८ इंदपुर इंद प्राव. १३०५-१४७ , रुद्द उत्त. ३४९-३९८ इंदियमाउ पाव. १४०२-१५७ , प्रो. ५६-२५१ इंदियलद्धी प्राव. १-८२ इंदियविसय दश. १७५-३४४ " प्राव. ९१६-९० इंधनअगणी पि. २५९-२८६ " धूमे पि. २५७-२८९ " , पि. २५८-२८६ UT UTm 2010_04 Page #531 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५०८ ] [ नियुक्तिसंग्रहः प्राद्यांश ग्रन्थ-गाथांक पृष्ठं । प्राद्यांश ग्रन्थ-गाथांक पृष्ठं इंधणमाइं पि. २६७-२९० इयपरलोया आव. १-१३९ इमं च एरिसं उत्त.१२१-३७६ इहभव प्राव. ६६८-६५ इय अविही पि. २०१-२८४ इहलोए प्राव. १४२६-१५६ इय पालोइय प्रो. ५५६-२४२ इहलोगंमि प्राव. १०२५-१०० , दव्व प्रो. २३-२१५ इहलोगे प्राव. १५६४-१७६ , दुल्लह प्राव. ८३६-८२ इहलोह प्राव. १०२४-१०० , नाण प्राव. ३-११६ ईहा अपोह प्राव. १२-२ इयरहवि प्राव. १४६७-१६३ उउबद्ध प्रो. ३४८-२२२ इयरेयर उत्त. ३५-३६८ उउबद्ध पि. २४-२६८ इयरेसु प्रो. २६३-२१७ उक्कच्छिय प्रो. ७७-२५२ इय रोवि गुरु ओ. ५२३-२३८ उक्कलक प्राचा. २८८-४४८ , य पि. ३२६-२६५ उक्कलिया प्राचा.१६६-४३५ इय लिंगनाण उक्किट्टिसी प्राव. ५५२-५६ प्राव. ११५६-११५ उक्कोस तिसा प्रो.६८२-२५३ इय सत्तरी दशा. ६८-४८३ उकोस मज्झिम इरिश्र पि. ६६४-३२७ पि. ३४६-२९७ इरियावह प्रो. ५४-१९५ उक्कोसय प्राव. ८१७-८० इरिएसण दशा. ८७-४८४ उक्कोसो अट्ट प्रो. ७८-२५२ इरियावहिया उक्कोसो उ उत्त. ३२८-३८७ प्राव. १३६७-१५७ उक्कोसेणं चेय इरियासमिइं प्राव. २७-१३३ आव. ६००-८८ इरियासमिए प्राव. १-१४३ उकोसेणं दुवा ईसरतल उत्त. ३१४-३९५ . पाव. १३५६-१५३ ईसीपब्भा प्राव. ९६०-६४ उक्कोसो मणु प्राव. ५३-६ प्राव. ६६५-९५ उक्खित्तणाए प्राव. १-१४१ 2010_04 Page #532 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गाथानां अकारादिक्रमः ] [ ५०६ प्राद्यांश ग्रन्थ-गाथांक पृष्ठं उक्खित्तं पि. ३४०-२९७ उक्खित्तऽप प्रो. ४७३-२३४ उक्खेवे पि. ५७-३१८ उक्खेवे प्रो. ४८२-२३५ उग्गम उप्पा पो ५०२-२३६ उग्गम उप्पा प्रो. ५६६-२४२ " , ५६८-२४२ " ,७४२-से४४२५८ " " ५६७-२४२ " , ५७०-२४३ " , ४६-२५६ उग्गमकोडि पि. २४७-२८८ उग्गमकोडि पि. ३६४-३०२ उग्गमदोसा पाचा.२९१-४४६ उग्गमदोसा पि. ५२२-३१४ उग्गमदोसाईणं प्रो.६४-१९६ उग्गम उग्गो पि. ६५-२७३ उग्गह इक्कं प्राव.४-१ उग्गहकाई प्रो. ४१८-२२६ उग्गहणंत प्रो. ७६-२५२ उग्गहो ईहा प्राव. २-१ उग्गाइकुले पि. ४४१-३०६ उग्गाणं आव. २२५-२३ उग्गा भोगा प्राव. २०२-२१ उग्गेणं प्राचा. २६-४२२ प्राद्यांश ग्रन्थ-गाथांक पृष्ठं उग्घायम प्राव. ३-१४४ उच्चत्ताए पि. ३२२-२६५ उच्चवइ प्राचा. ३०९-४५१ उच्चार पास दशा. ८४-४८४ उच्चारे पास प्राव. १२६३-१२५ उच्चारं कु प्राव. ८१-१३८ उच्चालियंमि प्रो. ४८-२५६ उच्छाहपाल प्राचा. ३२९-४५३ उच्छाहिरो पि. ४६५-३०८ उच्छुक्खीराईयं पि.२८०-२६१ उच्च वोलिति प्रो.१७०-२०६ उज्जमधिति सू. ९६-४६४ उज्जममाणस्स प्राव. ११८२-११७ उज्जाणपुरि प्राव. ३४२-३४ उज्जेणि अट्टणे प्राव. १२६३-१४६ उज्जेरिणति प्राव. १३०१-१४७ उज्जेणि देव प्राव. १३२३-१४९ उज्जेणी अंब प्राव. १३१४-१४८ 2010_04 Page #533 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५१० ] [नियुक्तिसंग्रहः प्राद्यांश ग्रन्थ- गाथांक पृष्ठं उज्जेणी काल उत्त. ११६-३७६ उज्जेणी धन उत्त. ६०-३७३ उज्जेणी हस्थि उत्त. ८६-३७३ उज्जेरणीए धरण प्राव. १२९५-१४६ उज्जेणीए जो प्राव.७६६-७५ उट्ठाणणाम प्राव. १२८७-१३४ उढाणाइ प्राव. ५९-१३६ उड्डाह पि. ५८३-३१६ उड्ड थिरं प्रो. २६४-२१४ उड्डमहे दशा. ७६-४४३ उडमहे पि. ३६३-२६६ उड्ढुस्सासो प्राव. २५-१३३ उड्बद्ध प्रो. २६-१९३ उणगस्स प्राव. ११३२-११२ उणहिय पि. ३२७-२६६ उणाइरित्त दशा. ५८-४८२ उणाइरित्त दशा. ६२-४८३ उष्णिय दशा. ११७-४८७ उणियं प्रो. ७०९-२५५ उत्तउवना दश. ८३-३३५ उत्तरकरणे उत्त. १८२-३८२ प्राद्यांश ग्रन्थ-गाथांक पृष्ठं उत्तरकुरु आव. १-१८ उत्तरकुरु प्राव. १७२-१८ उत्तरज्झ उत्त. २७-३६७ उत्तरवाचा प्राव.४६७-४८ उत्तर वायाला प्राव. ४६८-४८ उत्तारणउव्व प्राव. ९६७-९५ उत्ति उव आव. १००२-१८ ___ प्राव. १००३-६८ उत्थरमारगो आव. १२७४-१२६ उदगई सू. १८५-४७४ उदय सरिच्छ दशा. १००-४८६ उदिया प्राव. २३५-२४ उद्दिट्टकयं दश. ३५७-३६३ उद्देसो गुरु उत्त. ८६-३७३ उद्देसे निद्दे प्राव. १४०-१४ उद्देसंमि उ सू. ४१-४५६ उद्देससमु प्राव. १५४८-१७४ उद्देसंमि चउ प्राचा. २१५-४४१ ___ " " १९८-४३६ " , " २५५-४४५ उद्देसियं पि. २२६-२८७ wwी 2010_04 | Page #534 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गाथानां अकारादिक्रमः ] [ ५११ m x ४9 प्राद्यांश ग्रन्थ-गाथांक पृष्ठं उद्धरिय प्रो. ८०७-३६४ उद्धरिय सव्व प्रो. ८०६-२६४ उनगस प्रो. ७४-३६१ उन्नंदमाण उत्त. ४११-४०४ उप्पत्तिमा प्राव. ९३८-१२ उप्पत्ती प्राव. ८८७-८७ उप्पज्जति प्राव. ७६३-७८ उप्पण्णमि प्राव. ३४१ ३३ , ५३६-५५ उपनविग्य दश. २७५-३५५ उप्पन्नाऽभू प्राव. ८८८-२७ उप्यायणाए पि. ५१४-३१३ उन्भट्टपरि पि. २८१-२९१ उन्भमिगा दश.८८-३३६ उन्भिज्ज पि. ६२४-३२३ उडिभन्ने पि. ३४८-२६८ उभो नह प्रो. २८-१९३ उभो वि दशा. ७५-४८३ उभयंमुहं प्रो. २५-३१६ उभयेऽपि पि. ४३२-३०५ उम्मग्ग प्राव. ११६६-११५ उम्हासेसो श्राव. १४९८-१६६ उम्मायं च प्राव.१४२८-१५७ उम्मुक्क प्राव.८२६-८१ उरगगिरि दश. १५७-३४२ प्राद्यांश ग्रन्थ-गाथांक पृष्ठं उरि प्राव. ५०-१३६ उल्लो सुक्को आचा. २३२-४४२ उवएस प्रो. १२७-२०२ उवएस प्रो. ११८-२०१ उवयोग जोग आचा. १५१-४३५ ____" " ८४-४२८ पडु प्राव. ८९४-८८ , दिट्ठ प्राव. ६४६-६३ उवनोगं च प्रो. ३९६-२२७ उवप्रोगंमि पि. ११६-२७६ उवक्कमित्रो सू. ४७-४५९ उवगरणमि प्राव. ७८-१३८ उवगरण वा प्रो. ३१७-२१६ उवजीवि प्रो. ५४७-२४१ उवज्झायनमो प्राव. १००४-९८ १००५, १००६, १००७-६८ उवट्टणि पि. ६०३-३२१ उवट्टिया पि. ४२०-३०४ उवत्तण प्रो. ८५-१९८ उरभाउणाम उत्त.२४५-३८८ उवभोगपरि आव. सू. ७-१८० 2010_04 Page #535 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५१२ ] [ नियुक्तिसंग्रहः प्राद्यांश ग्रन्थ-गाथांक पृष्ठ उवमा खलु दश. १२६-३३६ उवमा य सू. १५८-४७१ उवमारुवग प्राव. ८८४-८७ उवलम्भंमि दश. ७६-३३५ उववज्जिऊण प्रो. २८७-२१७ उववाग्रो प्रो. २८५-२१७ उवसग्गा प्राचा. २५०-४४४ उवसग्गंमि य सू. ४५-४५६ उवसग्गभीरु सू. २५-४५७ उवसंपन्नो प्राव.७२०-७१ उवसंपया य प्राव. ६६७-६६ उवसंपया य उत्त. ४८४-४१२ उवसंहारो देवा . दश. ९२-३३६ उवसंहारो भम दश. १२६-३४० उवसंहारविसु दश. १३१-३४० उवसामं प्राव. ११८-१२ उस्सीस प्रो. ३२-२११ उवहयमइ प्राव. ५०६-५२ उवही उव प्रो. ६६६-२५१ उस्सग्गेणवि प्राव. १४४१-१६१ उस्सग्गे नि प्राव. १-१६३ प्राद्यांश ग्रन्थ-गाथांक पृष्ठं उस्सग्ग प्राव. १४६५-१६३ उस्सन्न प्राव. १२८१-१२७ उसभचरित्रा प्राव. २०८-२१ उसभजिण प्राव. ३१३-३१ उसभपुरं उत्त. १००-३७४ उसभमजिअं प्राव. सू.३-१०८ उसभस्स उ प्राव. ३२०-३२ ,कुमार पाव. २७७-२८ "पुव्व प्राव. २७२-२७ ,, , प्राव. ३००-३० "पुरिम प्राव. २५४-२६ ,, भरह उत्त. २८७-३९२ उसमे भरहो पाव. ४१६-४३ , सुमित्त प्राव. ३६९-३९ उसभो अ प्राव. २२९-२३ उसभोवर आव. १-४२ ,, , प्राव. ३१६-३१ ,, सिद्धि प्राव. २३०-२३ ऊसव मंडण पि. २२५-२८६ ऊससि पाव. २०-३ ऊससु प्राव. १०६३-१०८ उस्सासं नाव. १५२४-१७० ऊसासग प्राव. ८१४-०० उसिउस्सियो प्राव. १०७३-१६४ 2010_04 Page #536 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गाथानां अकारादिक्रमः ] [ ५१३ प्राद्यांश ग्रन्थ-गाथांक पृष्ठं उस्सिनिस प्राव. १०७५-१६४ उस्सिचण आचा. ११३-४३० उसिणस्स पि. ६२८-३२३ उसिणोदगमणु पि. १८-२६७ उसिणोदगमणु प्रो. ३४४-२२२ उसिणोदगंपि पि. ५५३-३१६ उसुपारनाम उत्त. ३६०-३९९ उसुपारपुरे नय रे उत्त. ३६५-४०० उसुमारे उत्त. ३५८-३६६ एए उ प्रणा पि. २०-२६८ एए कयं प्राव. ३३०-३२ एए चेव दुवा ओ. ६७०-२५२ " , य पि. ३२०-२९५ " , वि प्रो. ३०१-२१८ ,,हवे प्रो. १४१-२०३ एएण मज्झ पि. ४५३-३०७ एए देव प्राव. २१५-२२ एए ते जे पि. १६५-२८१ एए ते पावा प्राव. १२७६-१२७ एए पंच उत्त. ३३४-३६७ एए समणा उत्त. ३६९-४०० प्राद्यांश ग्रन्थ-गाथांक पृष्ठं एएसामन्न ___ आव. १४२१-१५६ , , १४१६-१५८ एएसि दाय पि. ५७८-३१६ एएसिमसं प्राव. ५१-६ एएसि अस प्रो. २७-२२६ एएसु पढम प्राव. ३२६-३२ एएहिं जो प्राव. १२७७-१२७ एएहिं दिट्टि आव. ७६०-७५ एएहि अद्ध आव. २६४-३६ एएहिं अहं प्राव.१२७८-१२७ एएहि कारणेहि प्रो. ६१०-२४६ __ प्रो. ६१५-२४७ उत्त. १६१-३८० प्राचा. ९४-४२८ , ११२-४३० , १२२-४३२ " , १४८-४३४ गाव. ८४२-८३ " हि प्रो. ५८२-२४४ सरीरेहि प्राचा. १३५-४३२ प्राचा.८३-४२७ 2010_04 Page #537 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५१४ ] [ नियुक्तिसंग्रहः प्राद्यांश ग्रन्थ-गाथांक पृष्ठं । प्राद्यांश ग्रन्थ-गाथांक पृष्ठं एक्कपव्वं प्रो. ३१-२५७ । एगग्गस्स प्राव. ६६३-६६ एक्कवीसाए प्राव. सू. १४१ । एगट्ठा पि. १३०-२७८ एक्कं च दोव प्रो. ५५७-२४१ एगट्ठिया प्राव. १२६-१३ " चं सू. १७४-४७२ एवण्हं प्राव. ४२६-४५ "" सू. १७५-४७२ एगत्तमणा प्राव. ७४-१३८ एक्कमि उ प्रो. ७१७-२५६ एगत्तमणा प्राव. ७६-१३० एक्कमिवि प्रो. ५२.१६५ एगत्ते जह प्राव. १०४९-१०३ एक्कस्स प्रो. ५७-२५० एगत्थ होइ प्रो.५१-२१३ एकाणियस्स प्रो. ४१२-२२८ एगदुर्गातग प्रो. ३१५-२१९ एक्का मणु प्राचा. १९-४२२ एगते य आव. ५४२-५५ एक्कारस उ प्राव. २६६-२७ एगपण प्रो. १६५-२०५ एक्कारस तिति एगपएसो प्राव. ४४-५ - प्राचा. ३३३-४५४ एगबइल्ला दशा ६१-४८५ एक्कारसवि प्राव. ५६२-६० एगबहू प्रो. ८०-१९७ एक्किक्कोवि प्रो. ४८४-२३५ एगभविए सू. १४६-४७० एक्केक्कस्स प्रो. ५६५-२४२ एवमणु उत्त. ४१५-४०५ एक्केक्कं तं पि. २७९-२६१ एग मुगुदा उत्त. १५१-३७६ एक्केक्कावि पि. ४२६-३०५ एगनिवख प्राव. १२१८-१२० एक्केकीय प्राव. ५६१-५७ एगरस उत्त. ३३-३६८ एक्केक्के पि. ५६८-३१८ एगविहं प्राव. १५७३-१७७ एक्केक्को सू. ४८-४५९ एगविहाइ पि. ६०-२७१ एक्केण कय पि. १८५-२८३ एगस्स उ जं एक्को व जह प्रो. ४००-२२७ प्राचा. १३७-४३३ एक्को थरेइ प्रो. १८५-२०७ एगस्स खीर एक्को व दो ओ ६१६-२४७ उत्त. २६६-३९३ 2010_04 Page #538 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गाथानां अकारादिक्रमः ] [ ५१५ आद्यांश ग्रन्थ-गाथांक पृष्ठ एगस्स दुण्ह प्राचा. १४२-४३३ एगस्स माण पि. ३२८-२९६ एहिमपारत्त प्रो. ६२--१९६ एगं किर प्राव. ५२९-५४ एंगं पडुच्च प्राव. ८९९-८८ एगतेण प्रो० ५५-१६५ एगंतरिए प्राचा २३-४२२ एगंतमणा प्रो ५६५-६६-२४५ , प्रो. ६०४-२४६ एगंतपसत्था उत्त. २३३-३८७ एगंतमव पि. २११-२८५ एगं पायं प्रो. ७६-२५२ एगागि प्रो. ७२-१६७ एगा जोपण पाव. ९६२-६४ एगा य होइ प्राव.६७३-९५ एगाहिरण प्राव. २१७-२२ एगिदियदेवाणं सू. १७३-४७२ एगिदियसुह प्राव. १-१४० एगणतीस उत्त. २५-३६७ एगेंदियनो प्राव. २-१३१ एगेण वावि पि. ६१२-३२२ एगो काो प्राव.१४५८-१६३ एगो य सत्त प्राव. ४१३-४१ एगो भगवं प्राव. २२४-२३ प्राद्यांश ग्रन्थ-गाथांक पृष्ठं एगो भगवं प्राव. ३०८-३० एगो दवस्स पि. ६५३-३२६ एगो व अणेगो प्रो. ५-१६१ एतं महि प्राव. ५६२-५७ एत्थ तु प्रण दशा. ६५-४८२ " , पणगं दशा. ६७-४८३ , य थल श्राव. ६३-१३७ , य भणिज्ज दश.६८-३३७ एत्थ उ जिण प्राव. ७१७-७१ ,, ,, तइय पि. ६५४-३२६ ,, पढमो प्राव. १५४०-१७३ पुण अहि प्राव.७३३-७२ " " सू. १५७-४७१ , ,सं प्रो. २१-११२ एत्ताई प्राव. ११४३-११३ एत्ते उ प्रो. २७०-२१५ अकारण प्रो. १२०-२०१ एते चेव सू. ६१-४६१ एतेसि नि प्राव. २८६-६ एत्तो किणाइ पि. ६४३ -३२५ " गुरु दशा. १२७-४८८ " सल्लुद्ध प्रो. ७६२-२६३ एगभविय सू. १८६-४७४ एमेव पर प्राव. २६४-२६ "अहा प्रो. ११०-२०० 2010_04 | Page #539 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ नियुक्तिसंग्रहः आद्यांश ग्रन्थ-गाथांक पृष्ठ एमेव उझियं पि.१६६-२८४ ,, प्रोहि उत्त. २१५-३८५ " कमो पि. ३३६-२९६ , काम दश. ३१३-३५९ ,काग पि. ४५४-३०७ ,, कुंथुस्स प्राव. २६३-२६ ,, चउ दश. ६१-३३३ "थंभ दशा. १०२-४८६ , पूइ प्रो. ५३०-२३६ ,, बल प्राव. १-१७५ ,, भावक पि. ११०-२७६ ,, भाववसु दश. २८६-३५६ ,, मज्झि प्रो. ४९२-२३५ ,, मीस पि. ५४४-३१६ , य उक्कोसे पि.३६२-२६६ , य कम्मं पि. २४०-२८८ , य जोगा प्राव. १४८३-१६५ य जं पि.८२-३०१ , य नि प्राव. १४३-१५ , य भंग प्रो. ५७२-२४३ , य पास प्राव. १३७८-१५५ , य, प्रो. ३४-२४८ य सम प्राव. १४२०-१५९ प्राद्यांश ग्रन्थ-गाथांक पृष्ठं एमेव वाइ पि. १३५-२६४ , विस प्रो. ६०२-२४५ ., सेसया पि. ५४३-३१६ , सेसए पि.७६-२७३ ,, सेसिया पि. ४२१-३०४ एमेव होइ अो. ४९३-२३६ एयहोस प्रो. ३८८-२२६ एयद्दोस प्रो. ५१७-२३८ एयस्स उ सू. १८३-४७३ एयाइं चिय पि. ६२२-३२३ , तु उत्त. ३७७-४०१ नामाई आव. २-४१ ,, परू दश. ६-३२८ पावा उत्त. ३९०-४०२ एया चेव दश. २०८-३४७ एयासिं चेव प्राचा. ५३-४२५ ,, लेसा उत्त. ५४५-४१८ एयारिसं प्रो. ५४३-२४० पि. ६३३-३२४ एयं किइ प्राव. १२४४-१२३ ,, चेव प्रो. ६८३-२५३ " , प्राव. ५८१-५६ " हाणं उत्त. १४७-३७६ " तु पि. ३४३-२६७ 2010_04 | Page #540 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गाथानां अकारादिक्रमः ]] [ ५१७ . . प्राद्यांश ग्रन्थ-गाथांक पृष्ठं एवं पडिलेहण ओ.३२६-२२१ ,, वियाणि प्राचा. १०४-४२९ ,, ससल्ल उत्त. २१९-३८५ ,, सामायारि उत्त. ८१०-२६४ एरिसयं चिय पि. ४५८-३०८ एवक्कोय य प्राव. ७५९-७५ एवं उग्गम प्रो. २४९-२१३ ., एए प्राव. ७८४-७७ , एक्के पि. ६१७-३२२ । एगस्स प्रो. ५५२-२४१. ,, ककार प्राव.१०४२-१०२ ,, खलु प्रो. ८५-२६२ , खु अहं पि. ११५-२७६ •, खु सील प्राव. ११३४-११२ " " " ओ. ७७-२६१ , गच्छ ओ. ११७-२०१ , गेल ओ. ८४-१९८ एवं च सुय दशा. ४७-४८१ एवं जाणंतेण प्रो. ७९६-२६३ ,, तवो प्राव. ५३८-५५ , ता कार ओ. ११५-२०१ " तु अव दश. १४२-३४१ प्राद्यांश ग्रन्थ-गाथांक पृष्ठं एवं तु इहं दश. ६३-३३४ , गवि पि. ५१३-३१३ ,, ,, पुव्व पि. ३५०-२६८ " , समणु आचा. २८५-४४८ एवं नाणे उत्त.५६-३७० ,,पडि प्रो. २७८-२१६ ,, पकपि प्राचा. ५५-४२५ बद्ध० प्राव. १०३६-१०२ ,, भमरा दश. ६७-३३७ ,मए प्राव. ५-१०६ , मीस पि. २७५-२६१ एव य काल प्राव.३२-१३४ एवं रुइए प्रो. १५२-२०४ " लग्गं प्राचा.२३३-४४२ , लिङ्गेण पि. १५३-२८० ,, लेव प्रो. ३९५-२२७ ,, विगिचिउं प्रो.६१७-२४७ ,, विज्जा प्रो. ६०३-२४६ ,, विहा प्राव. १४९१-९६६ प्रो. ६-२६५ एवमिणं प्रो. ७६२-२६० एवमणु प्राव.३५२-३५ एवं सउ दश. ६५-३३४ , वीर ur x ox" 2010_04 Page #541 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५१८ ] [ नियुक्तिसंग्रहः प्राद्यांश ग्रन्थ- गाांक पृष्ठ एवं दश. ६६-३३४ एवं ससिणि प्राव. ६-१४२ एवं सामायारी प्राव.७२२-७१ " " प्राव. ७२३-७२ एवं सो प्राव. ३५६-३५ एसण गवे पि. ७३-२७१ एस चरित्तु प्राव. १५३७-१७१ एसणमणे प्रो. ४४७-२३१ . एसणमणे उत्त. ८०-३७२ एसा अणुग्ग प्रो. ८११-२६४ "उहरइ उत्त. १४९-३७६ "गवेसण ओ. ४५७-२३२ " गहणे प्रो. ५३४-२४० ,, परिट प्रो. २५-२४८ "पडि प्रो. ३२८-२२० "सामायारीप्रो.६६५-२५१ " " प्रो ८०६-२६४ एसेव य प्राचा. २१३-४४० एसोपाहार पि. ६७०-३२७ " उ असाव. १३७५-१५४ " " विही प्राव. ६४-१३७ " " विही प्रो. ५५-२१४ एसोदिसा प्राव. ६५-१३७ प्राद्यांश ग्रन्थ-गाथांक पृष्ठं एसो दुविहो दश. ३०२-३५७ "पंच प्राव. १८-६९ "भे परि दश. ३२४-३६० "विन प्राव. २८-१३३ " सो जस्स पि. ४६१-३११ "सोलस पि. ३६२-३०२ प्रोगाहणाइ प्राव. ९७४-९५ प्रोगाहिमाय० पि. ५४८-३१६ प्रोदइअ उत्त. ४८-३६६ " उत्त.५५-३७० प्रोदइयं प्राचा. २८३-४३७ प्रोदइए सू १५५-४७० प्रोदरगवंजरण प्रो. ५९-२२३ प्रोदयाई दशा. ५५-४८१ प्रोरणयपम प्रो. २२३-२११ प्रोधण्ण प्राचा. २८४-४४८ श्रोमे सीस पाव. १११२-११८ प्रोयण मंडग पि. ६२३-३२३ प्रोयरगवंजरण पि. ३७-२६६ प्रोयरण समि पि. २०२-२८४ प्रोयरंतं प्रो.४६१-२३३ , पि. ५१९-३१३ प्रोयाहारा. स. १७२-४७२ पोरब्भे अ उत्त. २४६-३८८ ओरालियं प्राव. १-१४१ 2010_04 | Page #542 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गाथानां अकारादिक्रमः ] [ ५१६ प्राद्यांश ग्रन्थ-गाथांक पृष्ठं आद्यांश ग्रन्थ-गाथांक पृष्ठं ओरालसरीरा पि. ६७-२७५ ।। प्रोसहि तण प्राचा. ८१-४२७ " सरीरं प्रो. २२४-२११ प्रोसीर उत्त. १४६-३७८ , विउ प्राव. ३६-५ कइओणयं प्राव.१११७-१११ पोरालिय प्राव. ६-२ कहिं प्राव. १०-२ प्राव. ४१-५ कक्कडिय पि. १६९-२८१ " प्राव. १४४८-१६२ कक्खडखेत प्रो. ६२-१९६ प्रोवसमिए उत्त. ५०-३६६ कठे पुत्थे प्राव. १३५-१४ प्रोहयहये सू. ६६-४६१ कडए ते उत्त. १३८-३७८ प्रोहावणं प्राव. ११९५-११८ कडिपट्टए प्राव. १३-१३२ ओहावता प्रो. १२६-२०२ कण्णोटू . स. ७७-४६२ पोहाविउ उत्त. १२२-३७६ कणगरय पि. ४०६-३०३ श्रीहासिअधुव कणगा प्राव. १४०३-१५७ ओ. १५६-२०५ . कत्तीए थलं प्रो. ४७४-२३४ मोहासिय पडि कंत्तारे दश. १११-३३८ पि.४६८-३०९ कत्ति कडं प्राव. ६८७-६८ प्रोहि खित्त प्राव. २७-४ , प्राव. १५२०-१७० प्रोहिं च प्राय कत्तियबहु आव. २४२-२४ उत्त. २८८-३८६ कत्तिप्रसूद्ध प्राव. २४५-२५ अोहे उवग्ग प्रो. ६७-२५१ कत्तो कस्स उत्त. ६८-३७१ पोहेण उ प्रो.२-१९० __, मे प्राव. १६-३ मोहेण विभा पि. २१६-२८६ " " प्राव. २६-४ मोहे सीलं स. ८७-४६३ कत्थइ पो पि. ४४२-३०६ पोहो जं दश. २७-३३० कत्थइ पंचा दश ५०-३३२ प्रोसप्पिणी प्राव. १५०-१५ " पुच्छह दश. ४८-३३१ प्रोसह भेस प्रो. १४६-२०४ कप्पट्ट प्राव. ६७-१३७ 2010_04 Page #543 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५२० ] [ नियुक्तिसंग्रहः प्राद्यांश ग्रन्थ-गाथांक पृष्ठं प्राद्यांश ग्रन्थ-गाथांक पृष्ठं कप्पणि प्राचा. १४६-४३४ कम्मोवरि प्राव. ४०-५ कप्पस्स य प्राव. ८५-९ कयकिति प्रो. ३८०-२२५ कप्पंति स. ७५-४६२ कयपंचनमु प्राव.१०२७-१०१ कप्पा प्रायप ओ. ७०५-२५५ कयपच्च प्राव. १५९६-१८५ कप्पाकप्पे प्राव. ६८८-६८ कयरी दिशा प्रो. १३६-२०३ कप्पेऊणं ओ. ३११-२१६ कयलि पाव. ४८३-५० कति कर सू० ८१-४६२ कयाकयं प्राव. १०४०-१०२ कब्बढिग पि. ५७६-३१६ करडुय पि. ४६४-३०८ कम्मउत्तरेण उत्त. ३-३६५ करकंड उत्त. २६३-३६० कम्मग उत्त. २०४-३८४ करणतिए दश. ३३६-३६१ कम्मपयडी उत्त. १७-३६६ करणं च सू० ४-४५५ कम्मप्यवाय उत्त. ६६-३७१ करणेभए प्राव. १०२६-१०१ कम्मभिण्ण प्राव. ८८२-८७ करेमि भंते प्राव. सू. १६७ कम्ममवज्ज कलहकरो प्राव. १०८७-१०७ प्राव. १०५१-१०३ कल्लं सव्वि प्राव. ३३५-३३ कम्मविवेगो प्राव. ७४७-७४ कलुसदवे प्रो. ३०७-२१८ कम्मय प्राचा. २६१-४४६ कविलाउ उत्त. २५१-३८८ कम्ममि अ उत्त. ५२८-४१६ कविलो उत्त. २५३-३८६ कम्मं जम आव.६२८-६१ कस्सइ दश.१०४-३३७ कम्माण जेण पि. ६६-२७२ कस्स घर पि. ४६९-३०९ कम्मासंका पि. २००-२८४ कस्सत्ति पि. १३७-२७८ कम्मिय पि. २५३-२८६ कस्स न प्राव. १३७-१४ कम्मुद्देसि दश. २४२-३५१ कसिणं प्राव. १०६२-१०८ कम्मे य दशा. १२४-४८८ कह नाम आचा. २७४-४४७ कम्मे सिप्ये प्राव.६२७-९१ । कह सामाइआव.१०४१-१०२ 2010_04 Page #544 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गाथानां अकारादिक्रमः ] [ ५२१ आद्यांश ग्रन्थ-गाथांक पृष्ठं कहिऊण दश. १९६-३४६ कहिं पडि प्राव. ९५८-६४ कहिया दशा. १२६-४८८ कंचुयपज्जु उत्त. ३५७-३६६ कंदाई सच्चित्तो उत्त. २९७-३६३ कंटगथाणु प्रो. १९६-२०८ कंडिय पि. १७१-२८१ कंडू अभत्त उत्त. ८४-३७३ कंपिल्लपुर उत्त. ३६४-४०३ कंपिल्लपुरा उत्त. ४००-४०३ कंपिल्लं उत्त. ३४१-३६७ कंपिल्ले उत्त. ३३६-३६७ काइयभूमी दशा.७१-४८३ काउस्सग्गं प्राव.१५११.१६६ , मि प्राव. १-१६६ __, , प्रो. ५१२-२३७ काउस्सग्गे प्राव. १५६५-१७६ काउंहिए प्राव. १५१४-१६६ काऊ णतव उत्त. ४०४-४०४ " " , ४४२-४०८ ,, मणे प्राव. ८३६-८२ " मास दशा. ५६-४८२ ,, , ६९-४८३ प्राद्यांश ग्रन्थ-गाथांक पृष्ठ " य उत्त. ३६२-३९९ , समण उत्त.३६६-४०० काएविय प्राव. १४८४-१६५ सरीर प्राव. १४६०-१६३ कामो कस्सइ प्राव. १४४५-१६१ कागसियाल प्रो. ५६३-२४५ कामं असं दशा. १३२-४८९ काम उभया आव. ४८-११४ ,, चरणं प्राव.११५४-११४ "तु निरव दशा.३८-४८० कामं तु सव्व दशा. ८८-८४ सासय सू. ३९-४५८ , देहा प्राव. १४२३-१५९ "दुवा सू. १८८-४७४ काम दुवाल दशा. ३६-४७६ " भवित्र प्राव. १४५२-१६२ , सयं पि. १११-२७६ "सुप्रो पाव. १३५३-१५२ कामाण उ उत्त. २०७-३८४ कामो चउ दश. २५६-३५३ कायस्स उप्राव.१६४३-१६१ कायं वायं दश. १३५-३४० 2010_04 Page #545 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५२२ ] [ नियुक्तिसंग्रहः W " चउक्कं प्राद्यांश ग्रन्थ- गाथांक पृष्ठं प्राद्यांश ग्रन्थ- गाथांक पृष्ठं कायाण प्राव. २-१४४। कालो संझा कारणो दशा. ८३-४८४ . प्राव. १३९०-१५६ कारणकज्ज __ " " प्रो. ४६-२४६ प्राव. ११७०-११६ , समया दशा.५७-४८२ कारणविभा दश. २२५-३४६ कावालिए प्राव. १७-१३२ कारणि प्रो. ७५-१६७ कासखुन आव. १५२५-१७० कालचउक्को कासवगुत्ता प्राव. ३६४-३६ प्राव. १४०१-१५७ कि अद्धिइ पि. ५१०-३१३ , प्रो. ५८-२५१ किइकम्मच प्राव. १२०६-११६ पाव. १४०८-१५८ " , १२०८-११९ कालजत्ति प्राव. ८८३-८७ किइम्मपि पाव. १२१९-१२० कालपुरिसे प्रो. ५६०-२४२ ___" , १२२६-१२१ कालमकाले प्रो. ३०६-२१९ किइकम्म प्राचा. २९३-४३८ कालमणतं प्राव. ८५३-८४ किइकम्माइ कालाए प्राव. ४७६-४६ प्राव. १६२६-१८८ काले चउण्ह प्राव. ३६-४ कि कइविहं प्राव. १४१-१४ कालेण प्राव. ७२९-७२ कि कयं कि वा काले तिपो प्रो. २६२-२१४ प्राव. १३६५-१५३ कि कारणं प्रो ३७-२१२ काले य पहु प्रो. ५१८-२३४ किं च दुमा दश. १०३-३३७ काले विणए दश. १८४-३४५ किचि सकाय दश.२३१-३५० कालो अ दश. ६२-३३३. किंची सकाय प्राचा.६६-४२६ कालो जो उत्त. १९७-३८३ " "११४-४३० कालो जो सू. १०-४५६ " १२४-४३१ mm w 2010_04 Page #546 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गाथानां ग्रकारादिक्रमः ] आद्यांश ग्रन्थ- गाथांक पृष्ठ आव. ८६२ - ८८ कि जीवो किण्हचउ उत्त. २००-३८४ कित्तिय आव. सू. ६-१०९ कित्तेमि आव. १०६०-१०७ किंतु ह खद्धा पि. ५२६-३१४ किं तं हा पि. १६०-२८० कि दुम्भिक्खं दश. १०१-३३७ कि देमित्ति प्रो. ३८५-२२६ किं नु गिही दश. १०६-३३८ किन ठवि पि. ५०६-३१२ किं पुण आचा. २७६-४४७ कि पिच्छसि श्राव. १०११-९९ कि मन्नसि श्राव. ६२४-६३ कि मन्त्रिप्रत्थि 13 "7 प्राव. ६००-६० पुण्ण व. ६३२-६३ बंध प्रव ६२०-६२ श्राव. ६८-६३ 11 " कि मन्ने कि मणि जारिसो 27 11 श्राव. ६१६-६२ किं मणि पंच प्राव. ६१२-६१ कि मन्ने अत्थि i आव. ६०४-६१ निव्वाणं व. ६४०-६४ श्राव. ६३६-६४ " " पर [ ५२३ आद्यांश ग्रन्थ-गाथांक पृष्ठ किरिया किवणेसु कि वा कहिज्ज किह मे कीय गड कुक्कुड कुडु ३०३-२९३ कुरणमाणो आचा. २१९-४४१ २२०-४४१ 19 " कुथु अरं श्राव. सू. ४- १०८ कुप्पवयणं कुम्भीसु य दशा. ३४-४७६ कुमारए कुलए कुल्लाग कुसमुट्ठी कुसुमे 11 सू. १६५-४७१ पि. ४४६-३०७ पि. ३१४-२९४ प्राचा. ३२८-४५३ पि. ३०६-२६४ उत्त. ३५६-३९९ fa. आव. ४७४-४६ श्राव. ४८-१३५ दश. १२८-३४० कडउव पि. १०९-२७६ केइ एक्क के प्रो. ५४-२२३ पि. ३१-२६६ आव. ३३४-३३ 11 19 केई तेणेव भांति पुव्वं 37 सू. ७८-४६२ उत्त. ८७-३७३ पि. ४-२६६ 2010_04 नो. १३८-२०३ पहिए पि १६३ - २८३ Page #547 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५२४ ] श्राद्यांश ग्रन्थ गाथांक पृष्ठ 19 केई वहति प्राचा. १६२-४३५ केई सयं श्राचा. १०१-४२६ केणंति नत्थि दश. ७६-३३५ केलासभवणा पि. ४५२ -३०७ केवलणाणि श्राव. ७५०-७४ "" नाणु व. ६७८- ९६ णाणे आाव. ७८-६ कवलिणो श्राव. ५५६-५७ केवलिपरिसं उत्त. ३००-३६३ केसिचि नाण श्राचा.६३-४२६ हुति श्राप. १३५० - १५२ कोहल प्रो. १८६ २०८ को कारश्री आव. १०४७- १०३ कोट्ठग २००-२०९ कोडिपि उत्त. २५६-३८९ कोडीकरणं पि. ४०१-३०२ कोडीवरिस " श्री. श्राव. १३२४- १४६ कोडीसहि श्राव. ७-४२ कोत्थलगारि प्रो. २६२-२१७ कोहवराल पि. १६२-२८० कोल्लयरे उत्त. १०६-३७५ पि. ४२७-३०५ स. ३४-४५८ को वेएई कोसंबीए सिट्ठी उत्त. ६६-३७४ [ नियुक्तिसंग्रहः श्राद्यांश ग्रन्थ-गाथांक पृष्ठ कोसंबीए सया श्राव. ५२० - ५३ कोसंबी चंद श्राव. ५१७ - ५३ " जण्ण उत्त. १०८-३७५ कोसंब व १३०० - १४७ कोहे माणं दश. २९९-३५७ कोहंमि आव. १०८०-१०६ कोहेमाणे दश. २७४-३५५ उत्त. २४०-३८७ 11 खइयंमि श्राव. ७३५-७३ खणमवि श्राव. ११३५-११२ प्रो. ७६३-२६१ 11 पि. ५६०-३२० खणमाणी खद्धाssदाणि दशा. ६७-४८५ खद्धे निद्धे पि. १८८-२८३ खमगाइ प्रो. ३७० - २२४ पि. ५२-२७० श्राव. ६०-१३६ श्राव. ९५० - ६३ आचा. २२३-४४१ प्रो. ८६ - १६८ खवए खद्धावाणि खरयसि श्रो. ४०६-२२८ खरकम्मि प्रो. २१८-२१० खरदही श्राव. १६२२-१८७ खरफरु श्राव. १४६४ - १६३ खरवाय आव. ५०४ - ५२ 39 खमणे य खवगे 2010_04 Page #548 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गाथानां अकारादिक्रम: ] श्राद्यांश ग्रन्थ-गाथांक पृष्ठं खरिया प्रो. ७६६-२६० खल्लग पि. २१०-२८५ खित्तस्स आव. ५७-६ श्राव. १०३०-१०१ 23 आव. ८०६-१०७ खितिचण श्राव. १२६८ - १४७ वित्तंमि वित्तं तु प्राचा. २४६-४४४ पि. ६२५ - ३२३ खीर दहि पि. ४१०-३०३ खोरे य खीरदुमहेट्ठ पि. १२-२६७ 19 प्रो. ३३६ - २२१ खीरदहि पि. ६३७-३२४ खीराहारो पि. ४१२ ३०३ खुड्डलियाए श्रो. ३३-२१२ प्राचा. २२७-४४२ प्रो. २१२-२१० खुड्डुग खुड्डुलवि खुहापिवासा श्राव. १ - १४३ खेतदिशा खेत्तं तिहा श्रो. १४५-२०३ श्राव. ८०४-७६ खेत्तं कालं दश. २१५-३४८ खेतंमि श्रव दश. ५६-३३३ खेत्तंमि जंमि सु. १०६-४६५ खेत्तं वत्थु उत्त. २४१-३८७ खेत्तं बहु स. ४६-४५६ [ ५२५ श्राद्यांश ग्रन्थ-गाथांक पृष्ठ खेत्ते काले जम्मे खेत्ते काले य खेत्ते समारणदेसी पि. १४०-२७८ खेमेण संपत्तो उत्त. ४३५-४०७ खेयविणोश्रो श्राव. ५ ८-५६ खोडपमज्जण प्रो. २६६-२१५ खंडंमि मग्गि श्रो. ३७३-२२५ खंडिय विश प्राव. १५२१-१७० खंतस्स दंतस्स 21 #1 प्राचा. २३१-४४२ खंती य मद्दव प्राव. ३- १३६ दश. २४८-३५२ 91 33 श्राव. ६४२-६४ खंधे उत्त. ४७-३६९ 2010_04 "" ३४६-३६२ उत्त. १८७-३८२ खंधेदुप्प सू. ८-४५५ गाणुपुच्ची श्राव. १२२-१३ गई इंदिए प्राव. १४-२ गइ नेरइ श्राव. ६८-७ श्राव. ६६२-६६ गइ सिद्धा गच्छंमि केइ श्रो. ४४८ - २३१ गज्जं पज्जं दश. १७०-३४४ Page #549 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५२६ ] [ नियुक्तिसंग्रहः प्राद्यांश ग्रन्थ-गाथांक पृष्टं प्राद्यांश ग्रन्थ-गाथांक पृष्ठं गणहर पाहार गहणं तप्पढम प्राव. ५७०-५८ प्राव. ७०२-७० गणणाइ रज्जू सू. १५४-४७० गहणं नई उत्त. ३४७-३९८ गरण संगह दशा. २८-४७९ गहणुगहम्मि गरिगयाघरम्मि प्राचा. ३०७-४५० उत्त. १०२-३७४ गणियंमि प्राव. १४१०-१५८ गणियं निमित्त गाढालंबरण प्राव.१४६७-१६६ प्राचा. ३२१-४५२ गामाग बिहे प्राव. ४८६-५० गणिसद्दमाइ गामाण दोण्ह पि.४३३-३०५ प्राव. १४२७-१५६ गामदुवार प्रो. ६६-१६६ गब्भगए जंपाव.१०६६-१०८ 'गामे गंतु पुच्छे " . , ११००-१०९ प्रो. २४०-२१३ गम्मपसु दश. ४२-३३२ गामे परितलि प्रो. ८८-१९८ गमरणमणु प्रो. ३०३-२१८ । गामे वसंत सू. १६१-४७४ गमरणागमरण गामायारा विसया प्राव. १५४७-१७४ प्राव.२३३-२४ गमणागमणु पि. २२७-२८६ गामे य काल प्रो. ५०५-२३७ गमणे पमाण प्रो. ७०-१९७ गारवपंक उत्त. २१८-३८५ गमणं च दाय प्रो.४७५-२३४ गावी महिसी दश.२५७-३५३ गयउर सिज्जं प्राव.३२२-३२ गाहा जुयलेण प्रो. ३-२६५ गयसीसगणं गाहावितो स. १३१-४६८ . प्राव. ११६८-११६ गाहीकया स. १३९-४६९ गरविस अट्ठिय गिण्हरण कट्टण पि. ८१-३०१ प्रो. ४८०-२३४ गिण्हइ य प्राव.७-२ गरहावि प्राव. १०६३-१०४। गिण्हइ रणाम प्राव. ५७-१३६ mm N6F 2010_04 | Page #550 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गाथानां अकारादिक्रमः ] [ ५२७ प्राद्यांश ग्रन्थ-गाथांक पृष्ठं गिण्हते य प्राव. ५-१४२ गिद्धाइ उत्त. २२३-३८६ गिम्हासु पंच प्रो. ७००-२५४ गिम्हासु हुँति प्रो. ६६६-२५४ गिहवासे आव. २८८-२९ गिहिणोऽवि दश. ३३६-३६१ गोयत्थपरि प्रो. ३८२-२२५ गीयत्थो य प्रो. १२१-२०१ गुणमाहप्पं प्राचा. ३२२-४५३ गुणिसंथवेण पि. ४६०-३११ , पि. ४६२-३११ गुरणाहिए प्राव. ११६१-११५ गुणिउदगइ दश. २२१-३४६ गुत्ता गुत्तीहि प्राचा. १०५-४२६ गुम्मिन प्रो. २०१-२०६ गुरु गुरुणा पि. ५६२-३१७ गुरुपच्चक्खाण प्रो. ५६-२२३ गुरुपच्चक्खाणि पि. ३३-२६६ गुरुमूलेवि प्राव. ८३-१३६ गुम्विणि पि.५८६-३२० गूढायारा पि. २०६-२८४ गूद सिरागं प्राचा. १४०-४३३ गेम्हासु प्रो. ६६८-२५४ गेलनकज्ज प्रो. ४२७-२३० प्राद्यांश · ग्रन्थ- गाथांक पृष्ठं गेलन्ननियम प्रो. ६१३-२४६ गेलनाइ प्रो. ४३४-२३० गोग्रम केसीयो उत्त. ४५२-४०९ गोदिनि उत्तो पि. २४५-२८८ गोणं समय प्रो. ३३३-२२१ " , पि. ६-२६६ गोणादि काल प्रो. ४३-२४९ गोणाइ काल श्राव. २-१५६ गोणी चंदण प्राव. १३६-१४ गोणीहरण पि. ११५-२७७ गोणे महिसे ओ. ४६३-२३३ गोत्तासिउ प्राव. ४४६-४६ गोन्नं नामं आव.१६१७-१८७ गोभूमि वज्ज प्राव. ४६१-५० गोमहिसि पि. १३२-२७८ गोमहिसुट्टि प्राव. १०८४-१०७ गोमेज्जए य प्राचा. ७५-४२७ गोयमाई प्राव. ७४५-७४ गोयमनामा उत्त. ४५१-४०६ गोयरमभि प्राव. ५३१-५४ गोवनिमित्तं प्राव. ४६१-४८ गोवपो पि. ३६८-२९६ गोवालए पि. ३६७-२६६ 2010_04 Page #551 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५२८ ] [ नियुक्तिसंग्रहः प्राद्यांश ग्रन्थ-गाथांक पृष्ठं गोसमुह प्राव. १५१३-१६६ गंगाए दो उत्त. १६६-३८० गंगाप्रो दो प्राव. ७८०-७७ मंडी गली उत्त. ६४-३७१ गंथो पुन्बु स. १२७-४६७ गंतु दुचक्क प्रो. ३८४-२२६ गंतु विज्जा पि. ४९६-३११ गंतूण पावणं पि. १९९-२८४ "गुरुसकासंप्रो. ७६७-२६३ ,, समीव प्रो. १५७-२०५ ,, जोअणं आव. ६६४-९५ गंधंगमोस उत्त. १४४-३७८ गंधव्वदिसा प्राव. १३४८-१५२ गंधव्वनाग प्राव. १२६६-१२६ गंधाइ गुण पि. २४४-२८४ गंधार गिरी दशा. ६५-४८५ घुटुं च प्राव. ३२१-३२ घट्ठाइत प्रो. ९८-१६९ घडपडरह प्राव. १००९-६६ घरगउदही प्रो, ३४३-२२२ " पि. १७-२६७ घणं मूले ओ. ७०७-२५५ घणवद्धमाण प्रो. ३८-२५८ प्राद्यांश ग्रन्थ-गाथांक पृष्ठं घयसत्तु पि. ७६-३०० पि. ४-३०० घरकोइल पि. ३५५-२६८ घासेसणा उ पि. ६३५-३२४ चित्तुच आव.६१-१० चित्तण प्राव. ७४-८ प्राव. ७२-८ पुंडरीअं उत्त.२९४-३६२ घेप्पइ अकु पि. ३५६-२६८ घेत्तव्यमले पि. ६१३-३२२ चइऊरण पाव. १४८-१५ चइऊणं प्राचा. २४२-४४४ चउकारण प्राचा. २६७-४४६ -, दश. ३५२-३६२ चउकोण प्रो. २८९-२१७ चउदश य आव. २५९-२६ " पुत्वी प्राव. ८७-१८४ चउपण्णं आव. २७४-२७ चउपण्णा प्राव. ११-४२ चउभाग प्रो. ३२-२४८ चउरंगुलपइ ओ. ३३-२५७ , मुह प्राव. १५५६-१७५ " मुह प्रो. ५१०-२३७ चउरंगुलं प्रो. ७११-२५५ चउरासीइ बा आव.३०४-३० 2010_04 | Page #552 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गाथानां अकारादिक्रमः ] [ ५२६ आद्यांश ग्रन्थ-गाथांक पृष्ठं चउरासीइ बा पाव. १९५-३९ , बिस प्राव. ३०३-३० ,, बिस , ४०५-४० चरिदियाण प्रो. ६७-२२४ " पि. ४९-२७० चउरो अइ पि. १७९-२८२ चउरोवि प्राव. ८२०-८० " प्राव. ८१८-८० ,, य हुति प्राव. १६२६-१८८ ,, सहि प्राव. ३१५-३१ चउवीसंति प्राव.१०९१-१०७ चउवीसा दश. २५१-३५२ चउवीसइ प्राव. १०६६-१०५ चउसुवि प्राव. १-१६२ चउहा खलु . दश. ५४-३३३ चहि .प्राव. ११-२ चक्कपुरं प्राव. ३२५-३२ चक्कागं प्राचा. १३६-४३३ चक्किदुगं प्राव. ४२१-४४ चक्के थूभे ओ. ११६-२०१ चक्खुम प्राव. १५८-१६ चत्तारि पडि - प्राव. १२१५-१२० . चत्तारि प्र प्राव. ९७२-६५ प्राद्यांश ग्रन्थ-गाथांक पृष्ठ ,, दो प्राव. १५४५-१७४ , य आव. २६१-२६ ,, गाउ प्राव. ४७-५ , उव दश.८४-३३५ , विचि प्राचा.२७१-४४६ चंदोदयं पि. २१२-२८५ चम्मटि . प्रो. ६८-२२४ पि. ५०-२७० चरगमगाइ दश. ३३१-३६० चरणकरण पि. २६५-२९३ चरणदिसा. प्राचा. ३-४२० चरणंमि प्राचा. २९-४२२ चरणे छक्को उत्त.३८२-४०१ चरिअं च दश. ५३-३३३ चरिमसरीरो उत्त.२८६-३९२ चरिमे परि प्रो. १४८-२०४ चरमे नाणा प्राव. १२६-१३ चरियं च पि. ६३०-३२४ , प्रो. ५४१-२४० चरिया य विचि उत्त.२३-३६७ चरिया सिज्जा प्राचा. २८०-४४७ चलकुड्ड प्रो. ४६४-२३३ चलणाहय प्राव. ६५१-६३ चलमाणमण प्रो. ३२-१९३ WW. 2010_04 Page #553 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५३० ] [ नियुक्तिसंग्रहः प्राद्यांश ग्रन्थ-गाथांक पृष्ठं चलनकम्म दश. १२१-३३६ चाउद्दसि सू. १३-४५६ चाउलोदगं . पि. १६७-२८१ चाउलोयग प्राव.७०-१३७ चारणमासी प्राव. ७०-८ चारो चरिया प्राचा. २४५-४४४ चिक्खल्ल प्रो. ४८-१९५ चिण्हवा प्राव. ५३-१३६ चित्तबहुल प्राव. ३१४-३१ - प्राव. १८७-१६ चित्तस्स प्राव. २४६-२५ चित्ते प्र उत्त. ३३६-३६७ चित्ते बहुल प्राव. २५२-२५ चित्ते सुद्धि प्राव. २४३-२५ "संभूमि उत्त.३२७-३६६ ,, संभूना उत्त. ३२६-३६६ चित्तं वेयण दश. २२४-३४६ चित्तं बालाइ प्रो. ५६१-२४२. - चिरसंसटुं उत्त. ३०२-३६३ चुन्ने अंत पि. ५००-३१२ चुलसीइंच प्राव. २५६-२६ चुलसीइ पंच प्राव. २६६-२७ चुलसीईमप्प पाव. ४४८-४६ चुल्लग उत्त. १५६-३८० प्राद्यांश ग्रन्थ-गाथांक पृष्ठं चुल्लक्ख पि. २५०-२८९ चल्लत्ति पि. ८३-३०१ चुल्लुक्खा पि. २५२-२८६ चेइयकुल प्राव. ११६३-११८ ___ " " १११४-११० चेइयपूया , ११६४-११८ चेयणमचेयरणं प्राव. १४८०-१६५ चेयणमचेयणस्स प्राव. ६६१-६६ चोएति प्राव. ७११-७० चोद्दस प्राव. ७८२-७७ चोयग इंधरण पि. २६१-२६० , पुच्छा प्रो. १८६-२०७ चोयगवयणं प्रो. १५०-२०४ चोरा मंडव प्राव. ४८१-५.० चोल्लग प्राव. ८३२-८२ चोलोवणा आव. ६-२१ चंकमणे प्राचा. ६२.-४२८ चंदजसचंद प्राव. १५९-१६ चंदजसा राय प्राव. १३१७-१४८ चंदप्पह प्राचा ७६-४२७ चंदाइच्च प्राव. १११५-११० चंदिम प्राव. १३५१-१५२ 2010_04 Page #554 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गाथानां अकारादिक्रम: ] श्राद्यांश ग्रन्थ गाथांक पृष्ठ चंदेसु निम्म प्राव. ७ सू- ११० चंपाइ पुण्ण उत्त २८५-३६२ चंपाए कोसि श्राव. १३०७-१४७ ,, मित्तप श्राव. १३१६-१४८ उत्त. ४३१-४० ७ " सत्थ सुनंदो उत्त ११७ - ३७६ सुमणु उत्त. ६३-३७३ चंपाकुमार दशा. ६३-४८५ चंपा छमि पि. ४८२ - ३१० चंपा वासा आव. ५२३-५३ छउमत्थकाल श्राव. ३०२-३० परि श्राव. ३३६-३३ परी श्राव. ६५३-६५ 31 मरण उत्त. २१२-३८५ छउमत्थो पि. ५२३-३१४ छक्कायदया प्रो. ४४१ - २३१ निर पि. ( प्र . ) - २८८ वग्ग पि. ५९१- ३२० वग्ग पि. "3 33 " 11 13 73 ५७५-३१८ "} छक्कं परइ श्राचा. ३१३-४५१ छज्जीवणिया "" छट्ठट्ठम आचा. १५-४२१ दश. २१७ - ३४८ दशा. १८-४७७ [ ५३१ श्राद्यांश ग्रन्थ-गाथांक पृष्ठ छट्ट मि छुट्टाणा छद्र हिट्रिम श्राचा. २५६-४४५ प्रो. ८६ - २६३ श्राव. ५०-६ छहमन्न श्री. ५७९-२४३ छत्तीसगुणा प्रो. ७६४-२६३ छत्तीसा सोल श्राव. ६५१-६५ छंदेणऽणु श्राव. १२३८-१२३ छप्पिय श्राचा. २२६-४४२ छप्पुव्व छब्बगवार छम्माणि छम्मासभ छम्मासे छलया व श्राव. १३५४-१५२ छव्वीसाए श्राव. १०-४२ छहि कारणेहि श्राव. १९६-२० पि. २७८-२६१ श्राव: ५२५-५४ श्राव. ३-१४२ श्राव. ५१३-५२ पि. ६६१-३२६ छह मासे दश. ३७०-३६४ छायंपि पि. १७२ - २८१ श्राव. २५८-२६ छाव छिन्नंमि तो० · 2010_04 पि. ३१-३०२ छिन्नंमि संसयंमि श्राव. ६०१-६०, ६०५-६१,६०९६१, ६१३-६२, ६१७-६२, Page #555 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५३२ ] [ नियुक्तिसंग्रहः प्राद्यांश ग्रन्थ-गाथांक पृष्ठं । प्राद्यांश ग्रन्थ-गाथांक पृष्ठं ६२१-६२, ६२५-६३, ६३३- जइ पुण खद्ध प्रो. १५१-२०४ ६३, ६३७-६४, ६४१-६४ । जह वतं तु पि. १६१-२८३ छिन्नमछिन्नं पि. २३१-२८७ जइ पुण गच्छं छिन्नमछिन्नो पि. ८४-३०१ प्राव. १३८६-१५५ छिन्नो दिट्ट पि. ८५-३०१ ,, ,, वच्चं प्रो. ४२-२४९ जइ अस्थि दशा. ७०-४८३ , निवाघाए जइ अब्भत्थे प्राव. ६६८-६७ प्राव. १५३२-१७१ , अब्भासे प्रो. १८१-२०७ ,,, निवाघालो . " असरगमेव प्रो.३५-२४८ प्राव. १६०४-१८६. " " प्राव.१३७६-१५५ जइमा चेव प्रो. १६६-२०६ , ध्वयाल ओ. १६८-२०८ जइ उवसंत प्राव. ११६-१२ जइ य पडि प्राव. ६८३-६८ जइ एगग्गं प्राव.१४८५-१६५ ,, रितो प्रो. २५२-२१३ ,, वीसा पि. १५६-२८० , लिंगम जइणो सावग पि. १५७-२८० प्राव. ११३८-११३ जइ तरुणो प्रो. ६०८-२४६ . , लुद्धो प्रो. ५६२-२४२ , तं लिंग पाव.११३७-११३ जइ वारिमझ ,, ताव सू-४४-४५६ ___ प्राव. ८३७-८२ , ता गिहि दशा. ४२-४८० ,, वासुदेव प्राव. ४३१-४५ , तिन्नि प्रो. १५६-२०४ , विय पडि , ते चित्तं प्राव. ११४९-११४ प्राव. १५०१-१६७ "दोण्ह प्रो. ४१९-२२६ , ता पि. ४६७-३०९ " पगई दश. १०७-३३८ जइवि वय पाव. ७१३-७१ १. पच्छ पि. ६१४-३२२ , पि. ५११-३१३ 2010_04 Page #556 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गाथानां अकारादिक्रमः ] [ ५३३ आद्यांश ग्रन्थ-गाथांक पृष्ठ प्राद्यांश ग्रन्थ-गाथांक पृष्ठं जइ वेलंबग जत्थ राया उत्त. १३३-३७७ प्राव. ११५१-११४ " साहम्मिया ,, संका पि. ५२९.३१४ प्रो. ७७९-२६२ , से न पि. ६१८-३२२ " , . प्रो. ७८०-२६२ ,, सुद्धा प्रो. ९७-१६६ " , प्रो. ७८१-२६२ "हुज्ज प्राव. ६७०-६७ ,,, प्रो. ७८३-२६२ जउघर उत्त. ३५५--३६६ . जदि पढमं प्रो. ६२१-२४७ जइ तमिह प्राव. ६०७-८९ जमदग्गि उत्त. १४५-३७८ जडस प्रो. २३८-२१२ जम्मण वि प्राव. ३६७-३६ जण्णसेव प्राव. २०५-२१ जम्मणे नाम प्राव. १८६-१९ जणणी प्राव. १०६५-१०८ जम्मं एसइ पि. ७५-२७३ जणसावगारग पि. ५०४-३१२ . जम्मं मयंग उत्त. ३२३-३९५ जणवय दश. २७३-३५४ जम्माभि प्राचा. ३१६-४५२ जत्तासाहण प्रो. ५७७-२४३ जम्हा सण जत्थऽम्हे ओ. ३०४-२१८ प्राव. ११८१-११७ जत्थ अपुवो प्राव. ५४४-५५ गविण प्राव. १२३१-१२२ ,, , पाव. ५६८-५७ जमहं दिया उत्त. १२६-३७६ ,, उ तइओ पि. १५६-२८० जयघोसा उत्त.४६३-४१० ,, उ थोवे पि. ५६६-३१८ जयणम .. प्रो. ४६-१६५ , उ अचित्त पि. ५४५-३१६ जय नव ओ.१-२६५ ,, पुण प्रो. ५७३-२४३ जयमाणस्स जस्थ य एगो प्राव.६७५-६६ प्राचा. ३१४-४५२ ,,, जं प्राचा. ४-४२० जयमाणा खलु प्रो. ४-२०२ " , जो प्राचा. ५१-४२४ जयमारणा विह ,, नत्थि प्राव.५१-१३६ प्रो. १२४-२०१ 2010_04 Page #557 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५३४ ] [ नियुक्तिसग्रहः आद्यांश ग्रन्थ-गाथांक पृष्ठं प्राद्यांश ग्रन्थ-गाथांक पृष्ठ जया ते उत्त. २७६-३६१ ।। जह गयकुल दशा. ३०-४७९ जया रज्जं उत्त. २७५-३६१ , चेव य पि. ६०६-३२१ जया सव्वं उत्त. २७७-३९१ .,, ,, उ पि. ५५६-३१७ जलमाल सू. १६१-४७१ , उ पि. ५६४-३१७ जलयर . सू.१४८-४७० " ॥ पुव्व पि. ३५१-२६८ जस्स अणु प्राव. ७६७-७६ छेय प्राव. ९५-१० ,, खलु दश. २६४-३५७ , जच्च . प्राव. ६७८-६७ जसभद्दे प्राव. १३०३-१४७ ,, जह सुप्राव.११६९-११६ जस्स जो प्राचा. ४७-४२४ ,,जिण दश. ९४-३३६ , जएहिं दश. १२५-३३९ ,, णामगो सू. ६०-४६३ " जहा प्रो. ६३१-२४८ ,, णाम मंड सू. ५१-४६० , य इच्छा प्राव. ६६०-६९ जहण्णं उत्त. २-३६५ ,,,, जोग प्रो. ४२८-२३० , तिक्ख प्राव. २-११६ , विप्र दश. ३००-३५७ , तिपएसो पि. ५७-२७१ ,, सामाणिोपाव.७९७-७८ " तुझे उत्त. ३०७-३९४ जह अंतरिक्ख प्रो. ४०-१६४ , देसण पि. २१६-२८५ जह अब्भंग प्रो. ५४६-२४० , दारु दश. ३३५-३६१ जह एसो दश. २९७-३५७ , दीवा दश. ३१-३३१ , इत्थ दश. १३०-३४० "दुमगणा दश. १२७-३४० ,, उल्ला प्राव, ७५६-९४ , दुओ प्राव. १२४३-१२३ , कम्मं पि. १८९-२८३ जहदेवस्स प्राचा.१६७-४३६ , कारण पि. ७१-२७२ जह देह प्राचा. ११६-४३१ ,, काय प्राव. १४८६-१६५ , धाऊ उत्त. ३४-३६८ , खलु झुप्राचा.२३४-४४३ जह नाणेणं ", मह प्राचा. २८३-४४० प्राव. ११६७-११५ साव. 2010_04 Page #558 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गाथानां अकारादिक्रम: ] प्राद्यांश जह नाम श्राउर दश. ३६४-३६४ कोइ आव. ६८३-६६ महुर श्राव. १९३३ -११२ प्रो. ७६-२६१ 11 सिरि सु. ५३-४६० "" 13 प्रो. ४२५-२२६ जहणेण जह बालो प्रो. ८०१-२६४ भमरो दश. ६६-३३७ मन्ने उत्त. ३०३-३६३ मम दश. १५४-३४२ वक्कं श्राचा. ३०१-४५० दश. ६४-३३४ 37 33 " 19 "" 39 3) "1 " ग्रन्थ-गाथांक पृष्ठ 99 "" 17 asस्सा " वा तिल प्राचा. १३२-४३२ " वा विस सू. ५२-४६० ,, सगल श्राचा. १३१-४३२ ,” सव्वपाय श्राचा. १६६-४३७ ,” सव्वकाम श्राव. ६८५-६६ समिला श्राव. ८३४-८२ सागरंमि श्रो. ११६-२०१ " " साहिर प्रो. ५००-२३६ सावज्जा "" [ ५३५ श्राद्यांश ग्रन्थ- गाथांक पृष्ठ श्राव. ११४७-११४ सुकुसलो प्रो. ७९५-२६३ सुत्तं श्राचा. २१२ -४४० 11 सुतं " " सू. १२४-४६७ हत्थिस्स श्राचा. ११०-४३० प्राव. १००-११ 11 जहा खरो जहा जलताइ श्राव. १३२६-१४९ जहा लाहो उत्त. २५५-३८६ जहियं तु श्राव. १-१३४ पि. ३५४-२६८ जहेब कु जाइस्सरो श्राव. १९३-२० जाई खेत्ताइं सू. १५२-४७० भणियाई दशा २३-४७८ 39 जाईइ पगास उत्त. ३५२-३६८ जाई कुल गण पि. ४३७-३०६ जाई कुले पि. ४३८-३०६ प्रो. ८३-१६८ जाए दिसाए प्रो. २४६ - २१३ श्राव. ५२-१३६ 19 "1 " जा जयमाणस्स " पि. ६७१-३२७ प्रो. ५५६-२६० ४१६-३०४ ?? 17 जा जेरण होइ पि. 2010_04 Page #559 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५३६ ] [ नियुक्तिसंग्रहः प्राद्यांश ग्रन्थ-गाथांक पृष्ठं जाणइ सयं प्राचा. ६४-४२६ जाणगसरीरभविए उत्त. ६६-३७१, २३७-३८७, २४४-३८८, २५०-३८८, २६०-३८६, २८०-३६१, ३१८-३६५, ३२८-३६६, ३५९-३९६, ३७३-४००, ३९२-४०३, ४०६-४०४, ४२४-४०६, ४५७-४०६, ४५६-४०६, ४६२-४१० ४८२-४१२, ४८६-४१२ ४८६-४१२, ४९८-४१३ ५००-४१३, ५०२-४१३ जाणगभविय उत्त.५०६-४१४ ५०८-४१४, ५१२-४१४ ५१६-४१५, ५१८-४१५ ५२१-४१५, ५२६-४१६ ५३२-४१६, ५३५-४१७ ५४४-४१८, ५४७-४१८ ५५०-४१०, ५५२-४१८ ५५४-४१६, जाणगपुच्छं उत्त. ३०४-३९३ जाणाऽऽवरण पाव. ८४३-८३ , उत्त. १५३-३७६ जाणि भणि दशा. १३६-४८६ प्राद्यांश ग्रन्थ-गाथांक पृष्ठ जाणि भणि दशा. २१-४७८ जाणं पाहं आव. ७-१४५ जाणंतरिए प्रो. १८०-२०७ जाणंतोऽवि प्राव. ११६०-११५ जाती प्राजा दशा. १३०-४८९ जत्तो चम्रो दशा. १३१-४८९ जादवकम्म उत्त.५३६-४१७ जा देवसियं प्राव. १५३५-१७१ जामाइपुत्त पि. ४३४-३०५ जायण उत्त. ११४-३७५ जायतेएण प्राव. ९-१४५ जायसु न पि. ४७२-३०९ जाया य प्राव. १-१३८ जारिसया पि. ५२८-३१४ जावइया तिस प्राव. ३०-४ जावइयं प्रो. ६०६-२४६ जावइया किर प्राव. १५६७-१७६ जाव गुरूण प्रो. १५३-२०४ जावदव प्राव. १०५५-१०४ जाव न पि. २१-२६८ जाव वुच्छं उत्त. १३१-३७७ 2010_04 Page #560 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गाथानां अकारादिक्रमः ] [ ५३७ प्राद्यांश ग्रन्थ-गाथांक पृष्ठ जावंति अज्ज प्राव. ७६३-७५ जातिए पि. ३६०-३०१ जावंतट्टा पि. २७२-२६१ जावंतियमुद्देसं पि. २३०-२८७ जा ससमय दश. १९७-३४६ जा ससमए दश. १९८-३४६ जाहे य उन्न प्रो. ४९०-२३५ जाहेवि प्राव. ११६०-१६८ जिअसंजमो प्राचा. ३३-४२३ जिट्रासाढे उत्त. १२६-३७७ जिट्टा सुदंसण उत्त. १६७-३८० जिरणचदिक प्राव. ३६८-३६ जिणवयणं दश. ४९.३३२ जिरणपवयण प्राव. १२८-१३ जिणवयणबा . प्राव. ११७७-११७ जिणवयणमि दश. २६४-३५३ जिणवयणपदु दश. १४०-३४१ जिणाणं प्राव. ५-११४ जिरणा बारस प्रो ७१-२५२ जिनवसह प्राव. ३-४२ जियसत्तु प्रो. ४५०-२३२ , पि. ८०-२७३ जीवकरणं उत्त. २०३-३८४ जीवमजीवे आव. १०३२-१०१ प्राद्यांश ग्रन्थ-गाथांक पृष्ठ जीवंतमि पि. ६१०-३२२ जीवनिकाया पाव. ६१६-९० जीवस्स अत्त प्राचा. २६२-४४६ उ दश. २२०-३४६ जीवाजीवा दश. २३३-३५० , दश. २१६-३४८ जीवाणऽणंत पाव. ६०१-८९ जीवाणम उत्त. ५३६-४१७ जीवा भवट्टिए सू. १५३-४७० जीवामु पि. २२०-२८६ जीवे कम्मे प्राव. ५६६-६० जीवो अणा पाव. ११२६-११२ जीवो, प्रो. ७७५-२६१ जीवो उ प्राव. १२४६-१२४ जीवो गुरण प्राव. ७६२-७८ जीवो छक्काय प्राचा. ३५-४२३ जीवो पमाय प्राव. ८०२-७६ जीवोवलंभ प्राव. २१०-२२ जुगवंपि प्राव. ११६८-११५. जुज्जइ अकाल प्राव. १५४६-१७४ , गणस्स पि. १६३-२८१ 2010_04 Page #561 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५३८ ] आद्यांश ग्रन्थ-गाथांक पृष्ठ जुंजण श्राव. १०३८-१०२ जुण्णमएहि श्रो. १३६-२०३ जुत्ती उ प्रो. ४०३-२२७ जुत्तीसुव्वरण दश. ३५४-३६३ जे अन्ने श्री. ७६६-२६१ जे अज्भयणे दश. ३५५-३६३ जे किर गुरु उत्त. ४ε४-४१३ चउ उत्त. ३१६-३६५ " 13 भव उत्त. ५५७-४१६ जे चेव पडि श्रो. ६३-१९६ जे जत्तिया श्री. ५३-१६५ जे जत्थ श्राव. १२०३ - ११९, १२०४ - ११९, ११८८-११८ जे जिरणवरा श्राचा. २२५-४४२ प्रो. ४४२-२३१ जे जह जेट्ठा कित्तिय श्राव. ६४६-६५ जेट्ठामूले प्रो. २८६ - २१७ जेरण जीवंती उत्त. १३० - ३७७ जेरण भिक्खं उत्त. १२३-३७६ जेरण रोहंति उत्तः १२५-३७६ जेरण व जं व दश. १३-३२६ जेणुद्धरिया आव. ७६६ - ७६ जेणुवगहिश्रो आव. १४४९-१६२ [ निर्युक्तिसंग्रहः श्राद्यांश ग्रन्थ-गाथांक पृष्ठ जेणे विस्तरियं आव. १३-१४५ जे तिव्व श्राचा. २०३-४३६ जे ते देवेहि श्राव. ५५७ - ५६ जे बायरा श्राचा. १६८-४३६ जे बायरपज्जत्ता श्राचा. ७६-४२७, ८६-४२८, १०६-४३० १२०-४३१, १४५-४३३ जे बंभचेर प्राव. ११२३-१११ जे भावा उत्त. ३८६-४०२ जे मंदरस्स श्राचा. ४६-४२४ जेवि न वा प्रो. ७५३-२५६ पि. ५०१-३१२ उत्त. ५२६-४१६ जे विज्ज जेसि तु जे सद्दरूव जे सिपि आव. ५-१४३ दश. ७५-३३५ जे सुत्तगुणा श्राव. १६-१३२ जेहि सविया प्रो. ६६७-२५४ जे हुंति उत्त. ५५८-४१९ जो इंदकेऊं उत्त. २७१-३९० जोइ पइवं जोइसतणो fa. ३०४-२६३ पि. ८७ - २७४ जोए कररणे दश. १७७-३४४ जोएण सू. १७७-४७३ 2010_04 Page #562 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गाथानां अकारादिक्रमः ] [ ५३९ प्राद्यांश ग्रन्थ-गाथांक पृष्ठ जो कन्नाइ प्राव. ७६८-७६ जो कोंचगा प्राव. ८६९-८५ जो गच्छं प्राव. १३६६-१५६ जोग्गा अजिष्ण पि.८६-२७४ जो गुज्झएहिं प्राव. ७६५-७५ जोगु वयोग उत्त. ४२६-४०६ जोगंमि उ प्रो. ६००-२४५ जोगे जोगे जिण प्रो. २७७-२१६ जोगो जोगो प्रो. २७६-२१६ जो चम उत्त. २७४-३६१ जो चेव प्र प्रो ६६४-२५१ जो चेव होइ प्राचा. ३३-४५३ जो णवि व प्राव. ८०३-७६ जोणिभूए प्राचा. १३८-४३३ जो जइया प्राचा. २७६-४४७ जो जह व प्रो. ४४६-२३१ जो जहवायं पि. १८६-२८३ जो जहियं सो प्राव. ५८-१३६ जो जाहे प्राव. १२५६- १२५ जो जीवो सू. १४५-४७० जो तिहि प्राव. ८७२-८५ जो तेसु दश. ६५-३३७ जो निच्च प्राव.९३६-९२ जो पुढवि प्राचा. १०२-४२६ प्राद्यांश ग्रन्थ-गाथांक पृष्ठ जो पुण करणे प्राव. ३०-१३३ जो पुरण वीसा पि. २६-२६८ जो पुरण हवेज्ज प्रो. ५६४-२४२ जो पुण हिंसाय ओ.५८-१९५ जो पुत्वि उद्दिट्टो - दश. २४५-३५२ ___" , , दश. २६३-३५७ जोमणुएहिं प्राव. ६६-१३७ जो मागहरो प्रो. १३-२५६ जो भिक्खू दश. ३५६- ३६३ जो य तवो प्राव. ५२७-५४ जो य पोगं प्रो.७५५-२५६ जो य पमत्तो प्रो. ७५२-२५६ जो वच्चंतमि प्रो. ५२-२५० जो सन्निवाइनो उत्त. ५१-३६९ , उत्त. ५३-३७० जो समो प्राव. ७६८-७८ जो सम्वसिप्प प्राव. ९३०-९१ " ,कम्म प्राव. ९२६-६१ जो सोअरिट्र उत्त. ४४७-४०८ जो सो नमि उत्त. २६७-३६० जो हज्ज उप्राव.१५३४-१७१ " प्राव. १३८१-१५५ 2010_04 Page #563 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५४० ] श्राद्यांश ग्रन्थ-गाथांक पृष्ठ जो होज्ज उ प्रो. ३७ - २४९ जं कारण जं किंचि जं किर दव्वं उत्त. ४६१-४१३ श्री. ८००-२६४ श्राव. ७५-८ पि. ५०७-३१२ पि. जं कुणइ जं केसवस्स जंघा परि जंघा बाह जं चण्ण जं च तवे जं च महाकप्प श्राव. ७७७-७६ दश. १३६-३४० 17 जं चेव प्राउयं श्राव. १६२-१७ जं जस्स श्राव. १६३-१७ जं जह व कथं पि. २४२-२८८ जं जुज्जइ प्रो. ७४१-२५८ जं जं जे जे श्राव. ७६४-७८ "" आव. ५९५-६० श्रो. ८००-२६४ 19 श्राव. ७६५-७८ जं तेहि आव. ११०६-११० जं दव्वं पि. ६८-२७५ जं दिसि जं दुक्कडंति श्राव. ६८४-६८ आव. ६२-१३७ आव. ६८५-६८ उत्त. ८१-३७२ जं पप्प जं पढम सू. १३३-४६८ जं पुण चित्त पि. ५४७-३१६ "" ३३१-२६६ प्रो. २६-२५७ " [ नियुक्तिसंग्रहः श्राद्यांश ग्रन्थ-गाथांक पृष्ठ जं पुण उद्दिस श्राव. १५५० - १७४ जं जं पुण पुण गुरुस्स प्रो. ५७४- २४३ प्रो. २७-२५७ जं भरणसि दश. ७१-३३४ जं भिवखमत्त दश. ३४४-३६२ जंभियगामे श्राव. ५२४ - ५३ बहि आव. ५२६-५४ प्रो. ५६-१९५ दश. २८८-३५६ 19 जंमि निसे जं वक्कं जं वेलं जं संठारणं ठवणकुल ठवणाए दशा. ५४-४८१ ठवरणाकम्मं दश. ६७-३३४ ठवरणा मिल प्रो. ४४० - २३१ ठाण दिसि ओ ५५० - २४१ प्रो. ५६३-२४२ निसीयतु प्रो. ३४२-२२२ निसियण पि. १५-२६७ ठाणासति प्रो. ६६१-२५१ ठाणास आव. १४०६-१५७ ठाणे उव श्रो २६३ - २१४ ठाणे य दायए प्रो. ४६२-२३३ ठाणं पमज्जि प्राव. ७०४-७० 11 11 37 श्राव. ३८-१३४ आव. ९६९-६५ श्री. १२- १९१ 2010_04 Page #564 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गाथानां अकारादिक्रमः ] [ ५४१ आद्यांश ग्रन्थ-गाथांक पृष्ठं प्राद्यांश ग्रन्थ-गाथांक पृष्ठं ठिइअणु भावे सू. १७-४५६ ।। ण्हारणे पिपरणे डक्को जेरण प्राचा १११-४३० प्राव. १२६८-१२६ रग हु अफल सू. ३५-४५८ ,, प्राव. १२७५-१२६ णाणस्स प्रो. ७८-२६२ डज्झइ प्राचा. २०८-४४० णाणायट्ठा आव. २२-१३३ डहरीयो उ दशा. ५-४७६ णारणावरणे उत्त. ७३-३७२ दशा. ६-४७६ णाणे जोग प्राव. ८०५-७९ डहरे श्रो. १७८-२०७ णिदाविगहा प्राव. ७०७-७० ढडरसर पि. ४२५-३०५ रणामप्रलं सू. २०१-४७५ णउईए प्राव. ८-४२ णामंठवणा सू. १४३-४६९ गउई य प्राव. ५-४२ णामतहं . सू. १२२-४६७ रग करेति सू. १२६-४६७ . णाममो दश. ३४-३३१ रगत्थि णएहिं प्राव. ७६१-७५ णामपयं दश. १६६-३४३ , य से प्राव.८६८-८५ णामादी सू. १३४-४६० ण दुक्करं सू. २००-४७५ णामंठवणादविए णमिपव्वज्ज उत्त. १४-३६६ प्राव. ३३-३४, ३५-१२२, णयरं च प्राव. १३३१-१५० १२४८-१२४९-१२५० रणव धनु प्राव. १५६-१६ १२५१-१२५२-१२५३ णवमो अ. प्राव. ३७५-३७ १२४-१२५४- १२५५-१२ णवबंभचेर प्राचा. ११-४२१ णामंठवणादविए ण विणा उत्त. १६६-३८३ पि. ४०४-३०३ " सू. ९-४५५ पि. ६२९-३२३ ण सेरिणम्रो " दश. ८-३२८, प्राव. ११७२-११६६ -३२६, १६०-३४३, ण्हाणाईसु प्रो. ४५५-२३२ २१८-३४६ 2010_04 Page #565 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५४२ ] श्राद्यांश ग्रन्थ- गाथांक पृष्ठ णामंठवणादविए उत्त. १४१-३६८, १४२-३७८, ३७८-४०१ णामं ठवणा दविए श्रचा. १८४-४३७, १९०-४३८ णामं ठवणा दविए सू. १०७-४६५ स. १०४-४६५ " णामंठवणाधम्मो " " " ठवणसरीरे 33 33 ,, ठवणा सुद्धी 11 77 ,” ठवणा दश. ३९-३३१ सू. १०० - ४६४ "1 ,, ठवण णामंगं णायंमि दश. २२८-३५० ,, ठवणा कम्मं दश. २८३-३५५ भिक्ख दश. ३३३-३६१ प्राचा. १६२-४३८ सू. ५५-४६० जाई दशा. १२८ - ४८८ १७८-४७३ उत्त. १४३-३७८ दश. १४९-३४२ x6 [ नियुक्तिसंग्रहः श्राद्यांश ग्रन्थ- गाथांक पृष्ठ णावि प्र आव. ४२८-४५ उत्त. ६५-३७१ णासो परी णिक्खेवो उ उत्त. ५१७-४१५ 31 कारणं आव. ७३७-७३ णिगलादि दशा. १३८-४८६ णिद्दाए भाव श्राव. ८१६ -८० णियमा आाव. ७४४-७३. णिरए ६२-४६१ निर्वाचित दशा १०५-४८६ णिविवयतियं श्राव. सू. १८७ णिव्वेढरण श्राव. ८०६-७६ णीसवमाणो श्राव. ६२८-८१ णेगमसंगह आव. ७५४-७४ गावि प्रो. १२३-२०१ 6 गेह श्राव. ७५५-७४ णोश्राहारंमी श्राव. ७७ - १३८ णोकम्मंमि य उत्त. ६७-३७१ गोतसपाणे ग्राव. ७१-१३७ णो य विव दश ७२-३३४ णो सरसि प्राव. ३-१५० तइए ग्राहा सू. ३२-४५८ तइए जयंत प्राचा. २६२-४४६ तइए य प्रो. ६२०-२४७ तइग्रमवच्चं प्राव. ४६६-४८ तइए एसो प्राचा. २३६-४४३ 2010_04 Page #566 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गाथानां अकारादिक्रमः ] श्राद्यांश ग्रन्थ- गाथांक पृष्ठ जइ श्रायार दश. २१-३३० निसाइ श्राव. १५४१-१७३ तइयकसा श्राव. ११०-११ तइयंमि श्राचा. ३०० ४४६ अंग आचा २५४-४४५ 19 करं पि. ३६६-३०२ प्रो. ४५ - १६४ प्रो. ६०-१९८ "" "" तऊवाउ तक्कोय तगराइ उत्त. ६२-३७३ तच्चावाई श्राव. ५२१-५३ तज्जाय प्रो. ४०२-२२७ तज्जीव श्राव. ६०८-६१ तडतडतडस्स सू. ७९-४६२ तरणकट्ठ प्रो. ४६७-२३६ तणगहणा प्रो. ७०६-२५५ तण छेयं श्राव. ४६५-४८ तणुप्रो श्राव. १४३४-१६० तणूई पव्व प्रो. ३७-२५८ तण्हाछुहा उत्त. ३३१-३६६ तण्हाबुच्छे. श्राव. १६०६-१८६ ततियपंति श्राव. प्र. ४-४४ तत्तो इत्थि श्रो. ३२१-२२० तत्तो गुरु प्रो. २६-२४८ तत्तो दुन्नि उत्त. ३३२-३६६ [ ५४३ श्राद्यांश ग्रन्थ- गाथांक पृष्ठ तत्तो चरित ततो य श्रप्प " -,, चुना उत्त. ३६३-३६६ तत्तो य गंग श्राव. ४८०-४९ ,, 13 "" 31 13 17 "" "3 तत्थ श्रसं "1 "" "" 11 17 उ श्राव. १४८१-१९५ किल श्राव. ५४१-५५ ऽज्भयणं उत्त २८-३६७ दश. १४७-३४१ 31 "1 श्राव. १६१०-१८६ आव. २- १४० पूरिम श्राव. ४०-५० राय पिंड य समतेणं श्राव. ५५१-५६ सुमंगलाए श्राव. ५२२-५३ दश. २६०-३५३ भवे मरीई श्राव. प्र. २- १४१ समणा दश. ११५-३३८ समणो श्राव. सू. + 2010_04 श्राव. २२-४४ श्राव. ७८-१६४ १-१७८ हिगारो दशा. ४१-४८० 19 तत्तं जीवा श्राचा. ३२३-४५३ तत्थवि सो प्राव. ६७५-६७ तत्थावायं प्रो. २६७-२१८ तत्थाहरणं दश. ५१-३३२ Page #567 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५४४ ] [ नियुक्तिसंग्रहः प्राद्यांश ग्रन्थ-गाथांक पृष्ठं प्राद्यांश ग्रन्थ-गाथांक पृष्ठं तत्थेव प्रो ११२-२०० ,, सया प्रो. ५६-१९६ तद्दिवस प्राव. १३६०-१५३ तम्हा जइ प्रो. ५३१-२३६ तदुभय ओ. १७५-२०६ तरुण प्राव. १२६७-१२६ तहोस प्रो.४६८-२३३ तरुणा प्रो. १३५-२०३ तप्पागारे प्राव. ५५-६ तरुणित्थि प्रो. ४६१-२३५ तप्पुग्विया प्राव. ५६१-५७ तरुपो प्राव. १५५६-१७५ तम्मूलं प्राव. ४३६-४६ तव्वत्थु दश. ८५-३३६ तम्हा उ अप्प दश.३०८-३५८ तवनियम पाव. ८६-६ तम्हा उ निम्म तव्वयणं आव. ४३० -४५ प्राव. १५६८-१७६ तवसंजमगुण दश. २१०-३४८ ,, ,, सुर दश. १४८-३४१ , नाणे सू. ४३ -४५६ , कम्माणीयं , प्पहाणा स. ११४-४६६ प्राचा. २२१-४४१ तवसंजमो प्राव. ७८९-७८ ,, खलुप्प उत्त. ५२७-४१६ तवहेउ पि. ६६८-३२७ ., खलूक उत्त. ४६६-४१३ तस्स असं प्रो. ७५१-२५६ ,, जे दश. ३५८-३६३ , उत्तरी प्राव. सत्र-१६८ , ण बज्झ ,, कड पि. १७८-२८२ प्राव. ११५५-११४ , कसाया "दयाइ दश. १३२-३४० प्राव. १४७१-१६४ , दुचक्क प्रो. ३८६-२२६ तसकाए प्राचा. १५२-४३४ , जिण उत्त. ५५६-४१६ तसपाणेहि प्राव. ६-१३१ धम्मे दश. ३६७-३६४ तस्स य पाय प्रो. ८०२-२६४ , पमाण प्रो. २२६-२११ तस्स य वेस उत्त. २६३-३९२ , पुव्वं ओ. १३०-२०२। तस्सासाइ अोघ. २५-१६२ , न एस पि. १७६-२८२ तस्सेगट्ठ प्राचा. ६-४२० 2010_04 Page #568 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गाथानां अकारादिक्रमः ] [ ५४५ प्रावर प्राद्यांश ग्रन्थ-गाथांक पृष्ठं प्राद्यांश ग्रन्थ-गाथांक पृष्ठं तह उवदंस प्राव. प्र-२-१५० तिण्णव य वास तह चेव प्रो. ७८-१९७ प्राव. २९८-३० तह पवयरण दशा. ३१-४७९ तित्तीस प्राव. ६८-२७ , बारस प्राव. २४०-२४ तित्थगराण प्राचा.३१८-४५२ , नाण प्राव. ९६-१० " गणो प्राव. २११-२२ ,, रेवइ प्राव. ४४-१३५ ,, गरसिद्ध दश. ३२५-३६० , विय प्राव. १४३८-१६१ तित्थं चाउ प्राव. २६५-२७ " , कोइ सू. १८६-४७४ तित्थयरे य स. १-४५५ तायंमि आव. ४३-३४ तित्थयरो प्राचा. २७८-४४७ तिग दुग प्राव. २३९-२४ तित्थपणामं प्राव. ५६६-५७ तिगसंजो आव. २-१७८ तित्थयरकेव उत्त. ३१५-३६५ तिण्ह सह प्राव. ८५८-८४ , गुणा प्राव. ११४४-११३ तिण्णि अडापाव.२५७-२६ तित्थयरा राया तिण्हं अण उत्त. १०१-३७४ प्रो. २६१-२१४ तिण्ह सह प्राव.८५७-८४ तित्थयराणं प्राव. ३३८-३३ तिण्हपि उत्त. ७०-३७१ तित्थयरे भग प्राव. ८०-६ तिणि दुवे दशा.७७-४८३ तित्थयरो कि प्राव. ७४२-७३ , दिणे प्रो. २१५-२१० तित्थाइ प्राव. ५५८-५७ सय गो प्राव.६४६-६५ तिन्नि य पागार ,, विहत्थी प्रो. ६८०-२५३ प्राव. ५४८-५६ ,, सल्ला प्रो. २३-२४७ ,, सया प्राव. ९७१-९५ "सए आव. ५३५-५४ " " प्राव. ९६६-६५ तिण्णेव उत्त प्राव. ४२-१३५ तिन्नि उ पए पि.५५-२७१ , य कोडि प्राव. २२०-२२।। तिन्ने ताई दश. ३४५-३६२ , लक्खाइं प्राव.२६०-२६ , दश. १५६-३४३ 2010_04 Page #569 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५४६ ] [ नियुक्तिसंग्रहः प्राद्यांश ग्रन्थ-गाथांक पृष्ठं तिन्नेव य प्रो. ६९-२५२ प्रो. ७२-२५२ प्रो. ७५-२५२ तिबलाग पि. ६३२-३२४ प्रो. ५४२-२४० तियमणा प्राव. १४५१-१६२ तिय सीयं . पि. ६२०-३२३ तिरिएसु प्राव. ८२६-८१ तिरियाय य पि. ३६५-२६६ तिविहा उ दश. २८४-३५५ तिविहाणु प्राव. १५६३-१७६ तिविहा य दव्व प्राचा. २८७-४४८ ,, तिविहा प्राचा. १५५-४३४ ,, बेइं प्रो. ४२-१९४ तिविहेणंति प्राव. १०६०-१०४ तिविहोवघा प्रो. ४४६-२३२ तिविहो वण प्रो. ४१-१६४ "उ दव्व पि. ८-२६६ ,, य दव्व प्रो. ३३५-२२१ ,, य होइ प्रो. ४८३-२३५ " य होइ प्राव. २०-१३३ "होइ प्रो. ४०९-२२८ आद्यांश ग्रन्थ-गाथांक पृष्ठं तिविहो तेउ पि. ३५-२६६ " पुढवि ओ. २२-१६२ ,, सरीर प्राव. २३-१३३ तिविहं तु प्राचा. २१८-४४१ तिसु तिन्नि आव.१४०५-१५७ तोत्थंकर गुरु दशा. १३४-४८६ तीसा बारस प्राव. ६५२-६५ तिल्लं तेगि आव. १७४-१८ तुगयसन्नि प्राव. ६४५-६४ तुज्झट्राए पि. २०५-२८४ तुज्झ पिया दश ८६-३३६ तुबवण प्राव.७६४-७५ तुम एव य उत्त. १३५-३७७ तुमए समगं प्राव. १६-१३२ तेप्राकम्म प्राव. ४३-५ तेउस्सवि आचा. ११६-४३१ ते उ पडि प्रो. ५१३-२३७ तेण समं पि. ४८०-३१० तेरगविपडि प्राव. १२३६-१२३ तेण परं प्रावा . प्रो. ३२०-२२० , , पास ओ. १०८-२०० " , पुरि प्रो. ३१६-२२० 2010_04 Page #570 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गाथानां अकारादिक्रमः ] [ ५४७ आद्यांश ग्रन्थ-गाथांक पृष्ठ तेणा सावय प्रो. १३२-२०२ तेणियं प्राव. १२२३-१२१ तेणेहि पहे प्राव. ४८५-५० तेरपो व पि. ७४-३०० तेत्तीसइमे उत्त. २६-३६७ तेत्तीसाए प्राव. सू-१५० ते पव्वइए आव. ६१० ६१, ६१४-६२, ६१८-६२, ६२२-६२, ६२६-६३, ६३०-६३, ६३४-६३, ६३८-६४ ते पुरण ससू प्राव. १५३१-१७१ तेरसमे अ उत्त. २१-३६७ तेरसपए प्राचा. ४१-४२४ तेरिच्छिया स. १४७-४७० तेल्लदहि पि. ६४६-३२५ तेवीसाए प्राव. २५३-२५ तेवीसं च प्राव. २७५-२७ ते वंदिऊण प्राव. ८३-६ तेलोक्कं प्राव. ५००-५१ तेसि उत्तर उत्त. १९१-३८३ तेसि गुरूण पि. १०२-२७५ " दुहवि उत्त. ४१०-४०४ ,, पुत्ता उत्त. ४४६-४०८ प्राद्यांश ग्रन्थ-गाथांक पृष्ठ तेसि मताणु स. १२०-४६७ तेसिमेव य प्राव. ६-१४५ तेसुवि य दश. ६५-३३६ तेहि अ उत्त. ३६७-४०० तो उद्धरंति प्रो. ८०५-२६४ तो उवगारि आव ८१७-६० तो ते सावग दशा. ३७-४८० तो समणो दश. १५६-३४२ तो , प्राव.८६७-८५ तोसलि पाव. ५०६-५२ तं अन्न उत्त. ४६९-४१० तं कसिण · दश. ३५३-३६२ तं जह उ प्राव. १-१४१ तं च सि प्राव. १२७२-१२६ तं च कहं आव. ४५५-४७ प्राव. ७४३-७३ तंडुलजल पि. ८६-३०१ तं च कहं प्राव. १८३-१९ तं तह दु प्राव. ८४०-८२ तंतिसमं दश. १७३-३४४ तं दाएइ प्राव. ४२३-४४ तं दिव्व प्राव. ५९१-६० तं न भवइ दश. १०५-३३७ तं नेह पित्ता सू. १९६-४७५ तं पव्वइए प्राव. ६०६-६१ 2010_04 Page #571 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५४८ ] [ नियुक्तिसंग्रहः प्राद्यांश ग्रन्थ-गाथांक पृष्ठ तं पव्वइयं प्राव. ६०२-६१ तं पासिऊण उत्त. २६८-३६३ तंपि य सु पि. ६०८-३२२ तंबाए नंदि प्राव. ४८४-५० तं बुद्धिम प्राव. ९०-१० तं मेरु प्राव. १२७०-१२६ तं वयणं उत्त. ३६८-४०० , प्राव. ४२५-४४ तं सोऊण उत्त. ३४४-३९८ तं होइ पि. ६५५-३२६ थक्के थक्का पि. १६६-२८१ थरो पहं प्रो. १७-१६२ थुल्लीएं पि. ४२६-३०५ थिव्यायार प्राव. ५४-६ थुइमंगल प्रो. १३७-२०३ थुईणिक्खेवो स. ८४-४६३ थुइथुणण प्राव. ११०५-१०६ थुणाइ पूस आव. ४४१-४६ " बहिं प्राव. ४७२-४६ थूलगप्रदत्ता प्राव. ३-स-१७६ , मुसावायं प्राव. स. १७६ थूहं रयण प्राव. ११०१-१०६ थेर पहु पि. ५९८-३२१ थेरी दुब्बल पि. ४१८-३०४ roM xr mr आद्यांश ग्रन्थ-गाथांक पृष्ठं थेरो गलंत पि. ५८०-३१६ थोवाहारो प्राव.१२८-१२७ थोवे थोवं पि. ५७१-३१८ थोपि पमा दश. २०२-३४७ थोवावसेसि आव. १३६३-१५६ , प्रो. ६५०-२५० थोवावसेस प्राव.१३४०-१५१ थंडिलवाघा प्राव. १४७-१३५ थंडिल्ल पुव्व प्रो. ६१८-२४७ दइएण वस्थिणा प्रो. ३६२-२२४ , पि. ४२-२७० दक्खत्तणयं दश. १६१-३४६ दक्खिण्णे उत्त. २५४-३८६ दगतीरे प्रो. ३५-१९३ दगघट्ट दशा. ७८-४८४ दगबीए पि. ५८८-३२० दठ्ठ संबुद्धो सू. १९४-४७४ दठ्ठण कीर प्राव. ३४७-३४ , चेडि उत्त. ९५-३७४ , य प्ररण पि. २९३-२६२ " तहिं उत्त. ३७०-४०० दट्ठसिणेह प्राव. १५४-१६ 2010_04 Page #572 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गाथानां अकारादिक्रमः ] [ ५४६ प्राद्यांश ग्रन्थ-गाथांक पृष्ठं दढसम्मत्त दशा. ५०-४८१ दढभूमीए प्राव. ४९७-५१ दत्तेण पुच्छि प्राव. ८७१-८५ दत्तीहि उप्राव. १५६०-१८४ दद्दर पि. ३६४-२६६ दमदंते प्राव. ८६५-८५ दया य उत्त. १५७-३७६ दरहिडिए प्रो. ५४-२१३ दव अप्प प्रो. ३०५-२१८ दव्वइरिया प्राचा. २६४-४४६ दव्वकरण उत्त. १८४-३८२ दव्वगुणो प्राचा. १७९-४३७ दव्वट्ठवणा दशा. ७६-४८४ दव्व तदट्टो दशा. ३२-४७९ " " दशा. ३३-४७९ दवदव प्राव. १-१४१ दव्वप्पलोग दशा. १३७-४८६ दव्वमरण उत्त. २०८-३८४ दवमाइ प्रो. २४२-२१२ दव्वविउ प्राव. १०६४-१०४ दव्वविमु प्राचा. २५६-४४५ दव्वसुय उत्त. ३११-३६४ दव्वाइछिन्नपि पि.२३४-२८७ दवावाए दश. ५५-३३३ प्राद्यांश ग्रन्थ-गाथांक पृष्ठं दव्वाइनो पि. ३९६-३०२ दव्वाप्रो असं प्राव. ६४-७ दव्वाण सव्व दश.३१५-३५९ दव्वादिएहिं दश. ५९-३३३ दव्वाभिलाव प्राव. ७३६-७३ दव्वाभिलाव स. ५४-४६० दव्वाया पि. १०४-२७५ दविध कार दश. ५८-३३३ दव्वीए भाय प्राव. १०-१४२ दव्वीछुढे पि. २५४-२८६ दव्वुग्गहो प्राचा. ३०५-४५० दव्वुज्झणा प्राव.१४६२-१६३ दन्वुज्जो प्राव. १०७५-१०६ दुव्वुवहाणं प्राचा. २८२-४४८ दव्वे अद्ध प्राव. ६६०-६६ , दश. ११-३२९ दवे अच्चि पि. ६७-२७२ दव्वे किरिए स. १६६-४७२ दव्वे खित्ते प्राचा. १७८-४३७ २८६-४४८, ३०४-४५०, ३५९-३६३, ३-४५४, २-४५४, ४-४५४, १६१-४३८, दव्वे चित्त दशा १२-४७७ दव्वेण या पाव. ८२५-८१ 2010_04 Page #573 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५५० ] श्राद्यांश ग्रन्थ- गाथांक पृष्ठ दव्वे तिविहा श्राव. २७१-३५४ दश. ३६२-३६३ दब्बे दुहा दव्वे निहाण दश. २६४-३५७ 31 27 11 33 33 मण आव. १०५२-१०३ भावे य 17 " 33 11 दव्वे सच्चित्ताई 32 23 दश. ३६०-३६३ दशा. १२१-४८० सू. १७०-४७२ 13 श्राचा. ३८-४२३ सरीर दश. ३६८-३६४ सीयक्त प्राचा. २००-४३६ दाव्वेसणा उ दश. २३७-३५१ दव्वे रसे श्राव. १६१८-१८७ दव्वे रुद्द श्रो. ७६५-२६० दव्वं गंधंग श्राचा. ३१५-४५२ च पर सू. ३७-४५८ श्राव. १५२३-१७० ,, य श्राव. १६३१-१८८ सरीर दशा. २९-४७६ भावेऽवि दश. ४४-३३२ भावे घासे "" " 17 प्रो. ५३९ - २४० संजो पि. ६३६-३२४ "" [ निर्युक्तिसंग्रहः श्राद्यांश ग्रन्थ-गाथांक पृष्ठ दव्वं जाणण श्राचा. ३७-४२३ जेण व दश. ३२७-३६० च अत्थि दश ४० - ३३१ तु पोण्ड सू. ३-४५५ رو -17 11 33 31 11 " माणु द्वव्वंमित्त पि. 11 11 " 33 11 आव. १०६१ - १०४ पि. ८६-२७४ लड्डु दव्वं सरोर श्राचा. ७०-४२६ दशा २५-४७८ संट्ठा आचा. ३११-४५१ श्राचा. ३१२-४५१ 17 "} दव्व दशा १२६-४८८ निहा पप्रोग 13 १०६-२७५ ठाण प्रो. १०२ - १६६ निव्ह आव. १०५३-१०३ 11 " " " दव्वं सत्थ श्राचा. ३६-४२३ आचा. २३०-३५० सू. ४२-४५६ सू. ५-४५५ दश. १७-४७७ 17 सरीर आचा. २८-४२२ दशा. ४-४७६ आव. १-१४३ दश. ७-३२८ दसश्राश्रो दस उद्देसण दसकालि 2010_04 Page #574 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गाथानां अकारादिक्रमः ] [ ५५१ प्राधांश ग्रन्थ- गाथांक पृष्ठं प्राद्यांश ग्रन्थ-गाथांक पृष्ठ दसणपक्खो दासो दासी दशा. ६६-४८५ प्राव. ११७९-११७ दिज्जाहि भाण दस दगलेवे प्राव. ९-१४२ ___ प्रो. ६८४-२५३ दस दो य प्राव. ३२-५४ . दिज्जते पडि पि. ३११-२६४ दसपुर उत्त. १७५-३८१ दित्तादित्ता प्रो. ३०२-२१८ दस ससि पि. १४६-२७६ दिनाउ ताउ पि. २२३-२८६ दससुअ उत्त. ३७६-४०१ दिन्ने कोडिन्ने दसहि प्राव. ३११-३१ उत्त. २६५-३९३ दसाणं पिंड दशा. ८-४७६ दिट्ठमदिट्ठा प्रो. ९५-१६६ दसारसीह प्राव.११७४-११६ दिट्ठमदिट्ठ प्राव.१२२४-१२१ दहणे पया प्राचा. १२१-४३१ दिट्ठा व समो प्रो. ६६-१६६ दाऊण प्रो. ५८६-२४४ दिट्ठ सुए प्राव. ८४४-८३ दाणे अभिग प्रो. ४३५--२३० दिखीरं पि. १३१-२७० दाणे कय पि. ३५३-२९८ दिट्ठत सुद्धि दश. ११६-३३९ दाणेति दत्त दश. १२३-३३६ दिट्ठतो पर दश. ६१-३३६ दाणं च माह प्राव. ३६६-३६ दिण्णे गुरूहि प्रो. ५२४-२३८ दाणं न होइ पि. ४५५-३०७ दिसा अवर प्राव.३३-१३४ दायत्वमदा पि. ६०७-३२१ । दिसिदाह प्राव. १३४६-१५२ दाहिणपासंमि य दिसिपवण प्रो. ३१६-२१६ प्राचा. ४८-४२४ दिसिवए प्राव. सू-६-१८० , उ प्राचा. ५२-४२५ दिसिव्वय प्राव. १० सू. १८१ दाहित्ति तेण पि. ४७०-३०९ दोहकाल प्राव. ९५३-६४ दाहोवसमं प्राव.१०७६-१०६ दोह वा हस्सं आव. ९७०-६५ दारं जा पडि प्रो. २०७-२०६ दुग्गइफल सू. १११-४६६ दावद्दवे प्राव. २-१४१ ।। दुग तिग प्राव. १४५६-१६३ 2010_04 Page #575 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५५२ ] [ नियुक्तिसंग्रहः प्राद्यांश ग्रन्थ-गाथांक पृष्ठं । प्राद्यांश ग्रन्थ-गाथांक पृष्ठ दुगमाई पि. ६११-३२२ दुविह वण प्राचा. १२७-४३२ दुग्गाइतो प्राव. १३४२-१५१ विराहण पि. ५५६-३१७ दुगुणो प्रो. २१-२५६ दुविहंपि णेग प्राव. १४४-१५ दुपसु प्रो. ३६-२५८ दुविहं पयोग उत्त. १८८-३८२ दुन्निवि तिन्नि दुविहा य चरि प्राव.७१८-७१ उत्त. २२६-३८६ ,,य तेउप्राचा.११७-४३१ " नमी उत्त. २६६-३९० दुविहा उ उत्त. ५४०-४१७ ,, रयरणी उत्त. १४८-३७६ " , प्राचा. १०७-४३० दुपएसाइ प्राचा. ४४-४२४ , प्राचा. २८९-४४८. दुप्पणिहि दश. ३०६-३५८. दुविहाए प्राव. ८२४-८१ दुपयचउ दश. ३३८-३६१ दुविहा खलु दुमपत्ते उत्त. २८२-३६१ प्राचा. १५३-४३४ दुमपुफियनिज्जु दश. ___ , प्रो. ५६-२१४ - १५१-३४२ दुविहा जा आव. ७६-१३८ दुमपुस्फिया य दश. ३७-३३१ परू प्राव. ८६१-८८ दुमपुष्फियाइया दश. ,, बायर प्राचा. ७२-४२६ १६-३२६ दुविहा य पुढ दुमयाउ उत्त. २८१-३६१ प्राचा. ७१-४२६ दुमा य पायवा दश. ३५-३३१ ,, य वाउ प्राचा.१६५-४३५ दुब्भासिएण प्राव. ४३८-४६ ", होइ अो. ७९३-२६३ दुल्लभदव्वं प्रो. ६१४-२४७ ,, होति प्रो. ७७-२२५ प्रो. १६-२५६ दुविहत उत्त. ५१४-४१५ दुविहो उ पि. ४८४-३१० दुविहतिविहेण ,,, पि. ५६-२७१ प्राव. १५७२~१७७ " गाव. १३८३-१५५ m. 2010_04 Page #576 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गाथानां अकारादिक्रमः ] [ ५५३ आद्यांश ग्रन्थ-गाथांक पृष्ठं दुविहो अहोइ प्राचा. १८८-४३८ , कायंमि प्राव. १४३३-१६० " खलु आव.१०७२-१०६ खलु मा प्रो.५४९-२४१ ,, अभि प्रो. ५६७-२४५ "य होइ उत्त. २३६-३८७ देवकुरु प्राचा. १८१-४३७ देवगइ प्राव. १२५-१३ देवाणुमत्ति प्राव. ५८३-५९ देवासुरमण आव. ९२२-६० देविद प्राव. ७७४-७६ देवी अ उत्त. ३३७-३६७ देवीणं प्राचा. ७-४५४ देवेसु प्राव. ८२७-८१ देवो चुप्रो प्राव. ५१४-५३ देसियदं प्राव. १४८६-१६५ देसिय प्राव. १५१५-१६६ देसुणगं प्राव. १८९-१६ देहमइ प्राव. १४७६-१६४ देहि इमं पि. २३३-२८७ दोवि प्र. उत्त. ४६५-४१० दो अज्झयणा दश. २४-३३० प्राधांश ग्रन्थ-गाथांक पृष्ठं दो (दु)ोणयं प्राव. १२१६-१२० दो चक्की प्राव. प्र-३-४४ दो च्चेव प्राव. १६१३-१८६ दो चेव प्राव. ७०५-७० दो चेव य प्राव. ५३३-५४ " सुय प्राव. २२-५४ ,,,सुवण्णेसु प्राव. १६५-१७ दो छच्च प्राव. १६१२-१८६ दोन्नि उ पि. ५१५-३१३ दोन्नि य. प्राव. ४१-१३५ दोसग्गीवि पि. ६५८-३२६ दोसेण जस्स प्रो. ४४४-२३१ ,, जेण प्रो. दोसोला प्राव. ७३-८ दंडए लट्ठिया प्रो. २८-२५७ दंडकस प्राव. ७२५-७२ दंड कवाडे प्राव. ६५५-६४ दंतपुर प्राव. ९४-१४६ दंते दिट्टि प्राव. १३७१-१५४ दसण विणए प्राव. १८०-१८ ,, प्राव. ४५२-४७ , चरणे पि. १५४-२८० , मोहे उत्त. ७७-३७२ " , चरणे पि. १४१-२७६ 2010_04 Page #577 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५५४ ] [ नियुक्तिसंग्रहः प्राद्यांश ग्रन्थ-गाथांक पृष्ठ दंसण नारण चरित्ताणि दश. ३०५-३५८ " , चरित्ताण पि. ६५-२७२ , " चरित्तेसु प्राव. १०८२-१०७ " , चरित्त दशा-२२-४७८ ,, नाण प्राचा.३१७-४५२ ,, , चरित्ते प्राव. १२०५-११९, २१-१३३, १२०७-११६ दसणनाणचरित्ते दश. १८१-३४५, ३१४-३५६, २८७-३५६ ,, , , प्राचा. १५६-४३४ दंसिअच्छं प्रो. ३८६-२२६ दसणवय प्राव.४-१३९ दंसणनाणप्प पि. ९१-२७४ धडगाइ प्रो. २७४-२१५ धणदेवे उत्त. ३३८-३९७ धणसत्थ प्राव. १७१-१७ धणजय पि. ९६-२७४ धन्नाइं चउ दश. २५२-३५२ धन्नाणि दश. २५०-३५२ प्राद्यांश ग्रन्थ-गाथांक पृष्ठं धम्मकह पि. ३१२-२६४ धम्मकहावि प्राव. ३६१-३६ , अक्खि पि. ३१३-२६४ , बोद्धव्वा दश.१६३-३४६ धम्मत्थि दश. ४१-३३२ धम्मनियत्त प्राव. ११७१-११६ धम्मनिणाप्रो प्राव. प्र-१३-४३ धम्मस्स कुमार आव. २६१-२९ , फलं दश. २६५-३५४ धम्मरूइ प्रो. ४५६-२३२ धम्माइपए उत्त. ४२-३६६ धम्माधम्मा उत्त.१८६-३८२ धम्मासे उत्त. २५७-३८६ धम्मो अत्थो दश. २०६-३४७ " " दश. २६३-३५३ धम्मो एसु दश. २४६-३५२ धम्मो गुरणा दश. ९०-३३६ धम्मोदएरग प्राव. ५७४-५८ धम्मो पुवु सू. ६६-४६४ , बावीश दश.२४६-३५२ , वाम्रो प्राव. २७०-२७ , मंगल दश. १३८-३४१ 2010_04 Page #578 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गाथानां अकारादिक्रमः ] [ ५५५ ० आद्यांश ग्रन्थ- गाथांक पृष्ठं प्राद्यांश ग्रन्थ-गाथांक पृष्ठ धम्मं समाहि सू. २७-४५७ नवलं प्रो. ५१६-२३८ " सुक्कं च न सुहम पि. २६०-२८९ प्राव. १४९३-१६६, न तरेज्जा प्रो. ३६३-२२६ १५०५-१६७,१४९४-१६६ नस्थि उ प्रो. ३१-२११ १५०७-१६७, १५०८-१६७ । छुहाए पि. ६६३-३२७ १५०४-१६७ , य सि दश. १५५-३४२ धम्ममि जो सू. ६०-४६१ ,,, प्राचा. ६८-४२६ धाइ दूइ पि. ४०८-३०३ नद्धमगं प्राव. ७२७-७२ धाति य सू-६८-४६१ नमिविनमी प्राव. ३१७-३१ धारेइ तं तु दशा. ११७-३३९ नमिप्राउ उत्त. २६१-३८६ , धीयए पि. ४११-३०३ नमिणो प्राव. २६७-२६ धिई मई प्राव. १२६०-१४६ नमुक्कार प्राव. १५३६-१७१ धीसे चिलाय प्राव.८७४-८५ " प्राव. १६११-१८६ धर्ममि जो प्राचा. २०४-४३६ _ नमो अरिहंता प्राव. सू. १२७ धुवलोप्रो उ दशा.८५-४८४ " , प्रो. १-१९८ धयदुए पि. ४७६-३०६ न य उग्गम दश. १३४-३४० धूली पिवीलि प्राव. ५०२-५१ न य तस्स प्रो. ४६-२५६ धोयंपि निरा पि. २६४-२६० नयरी य चंपनामा धोयंमि उ प्राव.१४१८-१५८ प्राव. १३३३-१५० न करेइ दशा. २०-४७८ , पडु प्राव. १५-१४८ नइखेड उत्त. १७१-३८१ नयरं प्राव. १२-१४८ नउई प्राव. ३७६-३७ न य हिंसा प्रो. ७५८-२६० न किल प्राव. ९५२-६३ न वनो प्राव. ७१५-७१ न कुणइ प्राव. १५२६-१७० नव किर ग्राव. ५२८-५४ न चयन्ति प्रो. ५-२६५ नव कोडी दश. १-३३८ 2010_04 Page #579 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५५६ ] आद्यांश ग्रन्थ-गाथांक पृष्ठ नवगनिवेशे प्रो. २६१-२१७ नव चेवद्वार दश. २४३-३५१ नव चैव श्रढार 11 नवणीश्रोगा आव. १६१६-१८७ नवमय नवणीय पि. २८२-२६१ प्रो. २- १६० नवमास कु उत्त. १३६-३७७ नविमाससए उत्त. ४४९-४०८ नवि अत्थि माणु पि. ४०२-३०३ ," तहा उत्त. ४०-३६८ श्राव. ६८०-६६ नवि उत्त. ३०८-३६४ प्रो. ८०३ - २६४ श्र. ३८-१९४ संखेव प्रव. १०१९-१०० $1 नह दीवा उत्त. ८-३६५ नहु सुज्झई श्रो. ७६८-२६३ नाइविगि श्राचा. २७२-४४७ नाऊण उत्त. ४१७-४०५ वैयणिज्जं 13 "1 तं 11 नवि पुरश्रो 17 17 39 आव ६५४ - ६४ नो. ५९-२१४ 11 य श्राव. १९५६-११४ [ निर्युक्तिसंग्रहः श्राद्यांश ग्रन्थ-गाथांक पृष्ठं 13 नाउ नियट्ट श्रो. ५५४-२४१ नाणचरिता पि. १४८ - २७९ नाणदंसण आव. २८-४ नाणस्स जइ आव. १-११६ दंसण दश. ३२-३३१ नाणावरणि श्राव. ८६३-८८ नाणाविहसं श्राचा. १३३-४३२ नाणाविहो दश. २५८-३५३ नारणी कम्म श्रो. ७५० - २५९ नाणेण दंस उत्त. ४१६-४०५ नाणं दंसण पि. ६१-२७१ नाणं पयासगं श्राव. १०३ - ११ नाणंमि आव. ९७६ - ६६ नाणं भविस्सई श्राचा. ३२५-४५३ नाणं भाव प्राव. १०७३-१०६ नाण व दंसणं प्रो. ५२६-२३६ सविस 11 श्राव. १९५७-११४ सिक्खइ दश. ३१६-३५ε नानिविट्ठ पि. ३७०-३०० नाभी जित्तू नाभी विणी 31 2010_04 आाव. ८७-३८ आव. १७०-१७ Page #580 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गाथानां अकारादिक्रमः ] प्राद्यांश ग्रन्थ-गाथांक पृष्ठं नामकरो प्राव. १०८३-१०७ नामणधावण दश. १८०-३४५ नामाइ दश. २८-३३० नाम ठवण ज्झयणे उत्त. ५-३६५ " "पमानो उत्त. १७६-३८२ " , विम् प्राचा. २५८-४४५ " सरीरे प्राव. १४४४-१६१ " , सयारो दश. ३२८-३६० नाम ठवणा सीयं प्राचा. १९६-४३९ नामंठवणाई सू. १८४-४७३ , दविए प्राचा. ४०-४२३ " " सू. २६-४५७ __, सू. ६४-४६१ " प्राव. ७५१-७४ , सम्म प्राचा. २१६-४४१ " , इरिया प्राचा. २६३-४४९ [ ५५७ प्राद्यांश ग्रन्थ-गाथांक पृष्ठं नामं ठवणा करणं उत्त. १८३-३८२ " "कामा दश. १६१-३४३ " " गाहा . स. १३७-४६८ , ,जीवो दश. २२२-३४९ , ,तित्थ प्राव. १०७८-१०६ नाम ठवणा दविए प्राव. २६-४ १३२-१४, १४२-१४, १४५-१५, ८०९-७६,९९३-९७, १०००-६८,१०५०-१०३, १०५६-१०४,१०७०-१०५ १४६१-१६३, नामं ठवणा दविए प्रो. ४१०-२२८, ४५८-२३२ नामं ठवणा दविए पि.७४-२७२,१३८-२७८, ७६-२७३, ५१६-३१३ नामं ठवणा दविए दश. १७८-३४५. 2010_04 Page #581 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५५८ ] [ नियुक्तिसंग्रहः प्राद्यांश ग्रन्थ-गाथांक पृष्ठ प्राद्यांश ग्रन्थ-गाथांक पृष्ठं नामं ठवणा दविए नायमुदाहर दश. ५२-३३३ दश. २१६-३४६ नासंति प्रो. ६१-२६० " , "दशा. १०-४७७ निइकण्ह पि. ५०३-३१२ " , " सू. १४४-४६६, निउणो उ प्राचा.८६-४२८ १४२-४६९, १६७-४७२, निक्कारणिनं प्रो. ७९-१९७ १६९-४७२ निक्कडं प्राव. १५५५-१७५ ,, ठवणा दविए उत्त.१-३६५ निक्कंपया उत्त. २०-३६७ २३५-३८७, ३१७-३६५ निक्खम प्राचा. १५६-४३५ ४२२-४०६,५२२-४१६ निक्खविउं प्रो. ६८-१९६ नाम ठवणा पुढवी निक्खेव उत्त. ४५६-४०६ प्राचा. ६९-४२६ - निक्खेवेगट्ठ प्राव.१४४२-१६१ " " पिंडो पि. ५-२६६ " दश. ५-३२८ , ,,प्रो. ३३२-२२१ निक्खेवो उत्त. ३८५-४०२ " " दश. २३५-३५० "अमित्राए उत्त. ४०५-४०४ . दशा. १२०-४८७ ,, अजीवंमि " " साहू उत्त.५५१-४१८ प्राव. १००८-88 ,, अपमाए "ठवणुव प्राचा.२८१-४४७ उत्त. ५२०-४१५ नामंमि सरिस पि.१३९-२७८ " , उत्त. ५०५-४१४ , अखित्तं उत्त. ५६-३७० , असुअंमि नायंमि गिहि उत्त. ५०७-४१४ प्राव. १६३६-१८६ " उ उरबभे नायंमि गिहि उत्त. २४३-३८८ प्राव. १०६७-१०५ ,, उ गईए उत्त ५०१-४१३ " , मोहो 2010_04 Page #582 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गाथानां प्रकारादिक्रमः ] [ ५५६ प्राद्यांश ग्रन्थ-गाथांक पृष्ठं निक्लेवो उ दुमंमि उत्त. २७६-३९१ ,, उ नमिमि उत्त. २५९-३८६ ,, कविलंमि उत्त. २४६-३८८ निक्किचणा प्राव. ३५५-३५ निक्खेवो उ दश. २६९-३५४ " खलुकमि उत्त. ४८८-४१२ गाहाए सू. २३-४५७ " गोत्रम उत्त. ४५०-४०९ चरणंमि उत्त. ५१५-४१५ , जन्न उत्त. ४६१-४१० " जीवंमि उत्त. ५४६-४१८ ,, (उ) तमि उत्त. ५११-४१४ नियंठंमि उत्त. २३६-३८७ नियंठेमि उत्त. ४२३-४०६ श्राद्यांश प्रन्थ-गाथांक पृष्ठं निक्लेवो पयडीए उत्त. ५३१-४१६ भिक्खुमी उत्त. ३७२-४०० मग्गंमि उत्त. ४६९-४१३ मुक्खंमि उत्त. ४६७-४१३ विभत्तीए उत्त. ५५३-४१६ सामंमि उत्त. ४८१-४१२ संजइ उत्त. ३६१-४०३ निक्खंतो उत्त. १०७-३७५ निगमण दश. १३३-३४० निग्गंथ पि. ४४५-३०७ निच्छयनो दुन्ने प्राव. ७१६-७१ निच्छयो सच्चितो प्रो. ३३८-२२१ निच्छयो पि. ११-२६७ निच्छयनयस्य पि. १०५-२७५ निच्छयमव प्रो. ७६१-२६० निच्छिन्न पाव.९८८-६७ 2010_04 | Page #583 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५६० ] [ नियुक्तिसंग्रहः प्राद्यांश ग्रन्थ-गाथांक पृष्ठ निच्छोडिए पि. २७६-२९१ निज्जवण प्राव. ७७६-७६ निज्जाम प्राव. ९१४-६० निज्जाय प्राव. १५८९-१८४ निज्जुत्ता प्राव. ८८-६ निज्जंतं प्राव. १३७४-१५४ निद्दामत्तो प्राव. १५३९-१७३ निद्देसपसंसाए दश. ३२६-३६० निद्दोसं सार आव.८८५-८७ निन्हाइ प्राव. ८९०-८८ निप्फाईया प्राचा. २७०-४४६ नायंगणिनं दशा. २६-४७८ नालंदाए सू. २०४-४७५ निप्फेडियाणि पाव.८७०-८५ निमए प्रो. ३४-१९३ निम्मल्लगंध पि. ३०८-२९४ निम्मलदग प्राव. ६६१-६४ निमित्त प्राव. ९४४-६३ नियमाल प्राव. १-१७४ नियडुवहि प्राव. १०-१४५ नियमा चित्तं प्राव. १५०२-१६७ नियमा जिणेसु प्राव. ११५०-११४ hil almiralli i प्राद्यांश ग्रन्थ-गाथांक पृष्ठं नियमा मणुय प्राव. १८४-१६ निययमहियो प्राव. १४५०-१६२ निरामया दश. २२६-३४६ निवणुस्सियो प्राव. १४७४-१६४ निवपिडो पि. ८७-३०१ निववल्लभ प्राव. १८-१३२ निव्वाणमंत प्राव. ३०६-३० निव्वाणसाहए प्राव. १०१०-६६ निव्वाणसुहं प्राचा. २०७-४४० निव्वाणं आव. ४३५-४५ निव्वाणं खलु पि. ६६-२७२ निव्वोदग पि. ३२-२६६ निव्वोदग प्रो. ५५-२२३ निसिन प्रो. १०६-२०० निसिभत्त प्राव. २-१४२ निसीहिया आव.१३६२-१५६ निसीहिया आसज्ज आव. १-१५६ निसीहिया नमु प्रो. ५३-२५० , नमो प्रो. ४६-२५० 2010_04 Page #584 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गाथानां अकारादिक्रमः ] [ ५६१ श्राद्यांश ग्रन्थ- गाथांक पृष्ठं निस्संकिय प्राव.१५७५-१७७ , दश. १८२-३४५ निस्संकि.प्रथभा प्रो.६७-१६६ निस्संगया प्राचा. ३४-४२३ नीयदुवारंमि पि. २६६-२९३ , घरे पि. २६४-२६३ नीयदुवार प्रो. ४७६-२३४ नीयं पहेणगं पि. ३४२-२६७ नीयाइ प्रो. १०७-२०० नीयावास प्राव. ११८६-११८ नीरुयत्ताए प्राव. ७४८-७४ नेगंगि प्रो. ३१-१६३ नेच्छह पि. ३०१-२९३ नेमीनो प्राव. १७-४३ नेरइयतिरिय प्राव. ६६४-६६ , प्राचा. १५४-४३४ , देव प्राव. ६६-७ नोउवगरणे प्राव. ८०-१३८ नोएगिदिएहिं प्राव. ५-१३१ नोकम्मदव्व उत्त. ५३०-४१६ दव्वाइ उत्त.५३२-४१७ "दव्वलेसा उत्त. ५४२-४१७ नो कय प्राव. १५९६-१८५ नोघरंतर पि. ३३४-२६६ प्राद्यांश ग्रन्थ- गाथांक पृष्ठं नोतीविहं प्राव. १५९७-१८५ नोमाउगंपि दश. १६६-३४४ नोसन्ना उत्त. १८५-३८२ नोसमणीसा पि. १४४-२७६ नोसिठ्ठ प्रो. ५०७-२३७ नोसुअकरणं आव. १०३७-१०२ नंदिअणु प्राव. १०२६-१०१ पइठाणे प्राव. १२९६-१४७ पइखड़ दश. १७९-३४५ पउमाभ प्राव. ३७६-३७ पउमप्पह प्राव. ६-४२ पउमस्स प्राव. २८२-२८ पउमुत्तरे प्राव. ४००-३६ पउमुप्पले प्रो. ६८६-२५३ पउरन्नपाण प्राव. ३४-१३४ पउमं उल्लं सू. १६२-४७१ पक्कणकुले प्राव.११२६-११२ पगई एस गिहीरणं दश. ११४-३३८ __ " " दुमाणं दश. १०८-३३८ ,, चउक्क प्राचा. २१-४२२ गठिई उत्त. ५३३-४१७ पगडीणं प्राव. ५७२-५८ 2010_04 Page #585 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५६२ ] [ नियुक्तिसंग्रहः प्राद्यांश ग्रन्थ-गाथांक पृष्ठ पगयं तु उत्त. ५१६-४१५ पगामं च पि. ६४४-३२५ पच्चक्खाएण प्राव. १६२७-१८८ पच्चक्खाणं उत्तर प्राव. १५७७-१८३ " णमिकए _प्राव. १६०८-१८६ ,, मिणं आव. १६३५-१८६ " , प्राव. २३७-२४ , णस्स प्राव. १६३४-१८९ ,, णं सेयं उत्त. १७७-३८१ "" प्राव. १५६६-१७७ ,, णा प्राव. १२६१-१४६ पच्चक्खे प्राव. ८७६-८६ पच्चयो उत्त. ६०-३७० पच्चय प्राव. ७४६-७४ पच्चवाया प्रो. २४-१६२ पच्चसु सू. १०५-४६५ पच्चुप्पण्ण प्राव.७५७-७५ पच्छित्ते दशा. ११३-४८७ पच्छा -संथ पि. ४८८-३१० पज्जत्तीभावे सू. २०२-४७५ पज्जवकामो प्राव. १४५७-१६२ प्राद्यांश ग्रन्थ-गाथांक पृष्ठं पज्जोसवणाइ प्राव. १५८२-१८३ पज्जोसमणाए दशा. ५२-४८१ पज्जं तु होई दश. १७२-३४४ पट्टग प्रो. ६३०-२४८ पट्टवणो प्राव. १५८४-१८४ पट्टविय प्राव. १३६६-१५७ पट्टविय वंदिए प्रो. ५६-२५० पट्टवियंमि प्राव. १३१४-१५८ पत्तट्ठवणं प्रो. ६९४-२५४ पड्डुच्छि प्रो. ८७-१९८ पडलाइं प्रो. ७३-२५२ पडिप्रो खलु प्रो. ४७९-२३४ पडिकमणं आव. १२६१-१२५ पडिक्कमणे प्राव. ११४-१२ पडिकमरणं आव. ४७-१२४ , प्राव. १२४५-१२४ पडिक्कमामि प्राव. सू-१३६ पडिकुट्ट प्रो. ४३६-२३१ पडिभग्गस्स प्रो. ५३३-२३६ पडिचोइरो प्राचा. २६९-४४६ पडिजग्गियंमि पाव. १४११-१५४ 2010_04 Page #586 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गाथानां अकारादिक्रमः ] [ ५६३ प्राद्यांश ग्रन्थ-गाथांक पृष्ठं पडिणीयगेह प्रो. ४२३-२२६ , सरीर आव. ६८-१३७ पडिमापडि दशा. ६१-४८२ " भद्द प्राव. ४९६-५१ " गत सू. १९७-४७५ पडिमंत पि. ४६६-३११ पडियरण पि ३६९-२९६ पडिरूवो खलु दश. ३२०-३५६ " , दश. ३२३-३६० पडिलाभिय पि. ५०५-३१२ पडिलेहगा आव. १२८६-१३४ पडिलेहणं प्रो. २७२-२१५ पडिलेहो प्रो. ४-१६१ पडिलेहगा उ प्रो. २८-२४८ पडिलोमे सुद्दा प्राचा. २४-४२२ , जह दश. ८२-३३५ पडिविज्ज पि. ४६७-३११ पडिसिद्धारणं - प्राव. १२८५-१२८ पडिसेवण पि. १२४-२७७ पडिसेवणाएं पि. ११८-२७६ पडिसेवणामइ प्रो.७८८-२६२ श्राद्यांश ग्रन्थ-गाथांक पृष्ठं पडिसेमाईणं पि. ११३-२७६ " य प्रो. ८६-२६२ पडिसेहण सू. २०३-४७५ पडिसेहेण प्राव. १-१४५ पढमज्झयणं दश. २६-३३० पढमस्स आव. २३६-२४ पढमचरिमा प्रो. ३६८-२२७ पढमदिवसंमि पि.२६८- २६० , बिइया प्रो. ६१-१९६ ,, बियाए प्रो १८२-२०७ ,, बीयाण प्राव.१६८-१७ पढमाए नस्थि प्रो. १५८-२०५ पढमाणुनोग प्राव. २६४-२६ पढमा वियार प्रो. ७१-१९७ पढमासइ प्रो. ३१८-२२० पढमित्थ विमल प्राव. १५५-१६ पढमित्थ इंदभूई प्राव. ५६३-६० पढमिल्लु आव. १०८-११ पढमे उवा प्राचा. २६६-४४६ , गहणं प्राचा. ३०३-४५० ॥ धम्म दश. २०-३३० ,, नियगाचा. २४६-४४४ w 2010_04 Page #587 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५६४ ] आद्यांश ग्रन्थ- गाथांक पृष्ठं पढमे विणो उत्त. १८-३६६ सम्मावालो "" आचा. २१४-४४१ संथव सू. ५६-४६० संबोहो सू. ४०-४५८ 11 सुत्ता श्राचा. १९७-४३९ पढमो अकाल श्राव. १९४-२० चउदस आव. १७७-१८ पढमोत्थ श्राव. १७६-१८ पढमो धणूण श्राव. ४०३-४० य 17 आव. १६४-१७ पढमं श्रहम्म दश. ८१-३३५ पढमंमि टु उत्त. ७१ - ३७१ ४६-४५९ श्राव. ७९१-७८ 33 31 " य सव्व पणतीसा " 77 श्राव. ३६३-३६ १६३-२०५ पणपण्णगस्स श्री. पणय चउ प्राव. १५७४- १७७ पणया श्राव. ११०३-१०६ पणयालीसा उत्त. ४१-३६६ पण्णरसि श्राव. २४६ - २५ पण्णरस दस श्राव. ३५०-३७ सय आव. २७६-२८ " श्राव. २८६-२६ सू. १४०-४६६ 37 ८ 11 पण्णरससु [ निर्युक्तिसंग्रहः श्राद्यांश ग्रन्थ गाथांक पृष्ठं पत्तस्स उ पत्तलदुम पत्ताण खेत्त पत्ता बंध पत्तेय पर 11 प्रो. ३६-२१२ श्री. ६६३-२५४ पि. ६४०-३२४ पत्तेयबुद्ध प्राव. १९६५-११५ पत्तेयमक्ख श्राव. १७-३ पत्तेयबुद्ध जिण प्रो. १२५-२०२ निण्हव पत्तेया पज्जत्ता " प्रो. ४७८-२३४ पि. २१४ - २८५ - पन्नरस ,, साहरण श्राचा. १२८-४३२ पत्ते वसंत आव. २६-१४६ पत्तं च मग्ग प्रो. ३२७-२२० पत्तं पमज्जिऊणं 13 पि. १५८ - २८० प्रो. २६४-२१७ पत्तं पत्ताबंधी प्रो. ६८- २५१ प्रो. ७४-२५२ 21 1) श्राव. ४१२-४० परिक्षाओ पत्थेण व आचा. १४४-४३३ श्राचा. ८७-४२८ आव. २-४३ श्राचा. १३४-४३२ 2010_04 Page #588 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गाथानां अकारादिक्रमः ] [ ५६५ आद्यांश ग्रन्थ-गाथांक पृष्ठं पन्नान्नाण उत्त. ७४-३७२ पमाणे काले प्रो. ४११-२२८ पयलायइ प्राव. १५५७-१७५ पयलायंत प्राव. १४९५-१६६ पयसमदुग पि. ५५५-३१७ परकम्म पि. १०८-२७६ परदार पाव. स. ४-१७९ परपक्खो उ पि. ११७-२८२ परपक्खेवि प्रो. २६६-२१८ परपिडिय पि. ४९५..३११ परमरहस्स ओ. ५६०-२६० परमाणुपुग्गला उत्त. ३७-३६८ परमोहि प्राव. ४५-५ परवइ प्राचा. ६६-४२६ परलोगु दश. २६६-३५४ परस्स तं पि. ३५२-३६८ परिचिन दशा. ५१-४८१ परिचित्त स. २६-४५७ परिजाणिऊण प्राव. ८७८-८६ परिजाणिऊण प्राव. २-१६६ परिणिन्वया पाव. ६५८-६६ परितंतो उत्त. १२०-३७६ परिभासिया स. ८८-४६३ प्राद्यांश प्रन्थ-गाथांक पृष्ठं परिमंडले य उत्त. ३८-३६८ परियट्टिय उत्त ३०६-३९४ परिट्टियंपि पि. ३२३-२६५ परिट्टिए पि. ६३-२७४ परियापरिस प्राव. ११४२-११३ परिवसणा दशा. ५३-४८१ परिवेसरण पि. ३४५-२९७ परिसडिय पि. ५१७-३१३ प्रो. ४५६-२३२ परिसेयपियण पि. २३-२६८ " प्रो. ३४७-२२२ पल्लत्थिया उत्त. १०-३६६ पल्लय गिरि आव. १०७-११ पलिप्रचउ प्राव. १४-४३ पलिप्रासंखि प्राव. ८९८-८८ पलिप्रोवम प्राव. १६१-१६ पल्लीवहंमि पि. १२५-२७७ पव्वइए दश. १५८-३४३ " दश. ३४६-३६२ पव्वइयाण प्राव. १-१७१ पवज्ज पुट्टिले प्राव. ४५०-४७ , सावनो प्रो. १७४-२०६ पव्वजाए प्राव. ५३६-५५ . 2010_04 Page #589 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५६६ ] [ नियुक्तिसंग्रहः प्राद्यांश ग्रन्थ-गाथांक पृष्ठ पव्वज्जा गागि उत्त. २८४-३६२ ,, निक्खेवो उत्त. २६२-३९० पवयणनीहू प्राव. ७८७-७७ , मण प्रो. ४४५-२३७ , माया पि. ६२-२७१ पवयंति य प्राचा. 88-४२९ पव्वाण प्रो. ४८८-२३५ पविसणमग्ग प्रो. १६२-२०८ पविसंत प्रो. १०१-१६९ पसत्थ दशा. ८२-४८४ पसंते प्राव. १२१३-१२० पसिढिल प्रो. २६७-२१५ पाउग्गाईण प्रो. २४५-२१३ पाउय दुरूढ पि.५८४-३१६ पाएण एरिसो दशा. १३५-४८९ ,, देइ पि ४५०-३०७ पापोकरणं पि. २६८-२६३ पासोसिय प्रो. ६६२-२५१ प्राव. १४०७-१५७ पागड - पि. ३०५-२६४ पाडलिपुत्त प्राव. १२६७-१४६ पाडिच्छग प्रो. ७८-२२५ प्राद्यांश ग्रन्थ-गाथांक पृष्ठं पाणवहमुसा प्राव. १५५२-१७५ पाणादिरेणु प्रो. २४-२५७ पाणीपत्तं प्राव. ४६३-४८ पाणेहि उ प्रो. ५७-२१४ पाभाइय प्राव. १४१२-१५८ पामिच्चंपिय पि. ३१६-२६५ पायग्गहणंमि प्रो. ७५-२२५ पायच्छित्त प्राव. १३३४-१५० पायच्छित्तं दश. ४८-३३२ पायच्छेयण प्राचा. ६७-४२६ पायपज्जण निसी प्रो. ५०९-२३७ , पडि प्रो. ४३१-२३० , हे ओ. ६६६-२५४ पारिट्ठा प्राव. १-१३१ पारंपर आव ११८०-११७ पायस्स पडो प्रो. ३५२-२२३ , , पि. २८-२६८ , लक्ख प्रो. ६८५-२५३ पायसहरणं दशा. ९८-४८५ पायसमा प्राव. १५५३-१७५ पावइ धुव दशा. १४१-४९० पावसमणिज्जं उत्त.१५-३६६ 2010_04 Page #590 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गाथानां अकारादिक्रमः ] [ ५६७ प्राद्यांश ग्रन्थ-गाथांक पृष्ठं पावाणं कम्माणं दश. २०१-३४७ , वज्जणा उत्त. २२-३६७ पावे छक्कं उत्त. ३८६-४०२ पावे वज्जे दशा. १२३-४८८ पावोवरए प्राचा. २४८-४४४ पावं छिदए पाव. १५२२-१७० पावंति जहा पार प्राव. ६१२-६० ,,, गावो प्राव. ९१५-६० ,, निव्वइ प्राव.६०६-८६ पासस्था प्राव. १-१११ पासटिनो प्रो. १८-१९२ पासत्थाई आव. ११२२-१११ पासत्थि दशा. १०८-४८६ पासत्थोसण्ण सू. १०२-४६५ पासस्स प्राव. २६९-३० पासवरगे प्रो. ४६६-२३३ पासावच्चि सू. २०५-४७५ पासो रिट्ठ प्राव. २३२-२४ पासोलित्त पि. ५५२-३१६ , पि. ५५४-३१७ पासंडिय पि.१४५-२७१ पासंडी पि. १४३-२७६ प्राद्यांश ग्रन्थ-गाथांक पृष्ठं पाहण्णे मह प्राचा. १ ४५४ " स. ८३-४६३ पाडियं पि. ५७७-३१६ पाहुडि ठविय पि.५६५-३२० पाहडिभत्तं पि. २९१-२६२ पाहाणे प्रो. ३३-१९३ पाडियावि पि. २८५-२६२ पिट्रीचंपा प्राव. ४७८-४९ पिंड निकाय प्रो. ४०७-२२८ पि. २-२६६ पिंडस्स उ प्रो. ३३१-२२१ पि. ३-२६६ पिडि संघाए दश. २३६-३५० पिडो अ दश. २३४-३५० पिंडे उग्गम पि. १-२६६ पिडेसणसिज्जि आव. २-१४४ पिडेसणा य दश. २४०-३५१ पिडेग सुत्त प्रो. ३५-२१२ पिडे व एसणं प्रो. ३३०-२२१ पियधम्मो प्रो. ४७-२५० " प्राव. १३८९-१५६ पिसुणा उत्त. ४९५-४१३ पिहिउभिन्न पि. ३४७-२६७ पीती य स. १६३-४७४ पीसंती पि.६०२-३२१ पुक्खरवर आव. स.-१७२ 2010_04 Page #591 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५६८ ] [ नियुक्तिसंग्रहः प्राद्यांश ग्रन्थ-गाथांक पृष्ठं पुच्छाए कोणिो दश. ७८-३३५ , तिणि प्रो. १४-१६१ पुच्छा प्रो. २३६-२१२ पुच्छताणं आव. ४३७-४५ पुच्छिसु सू. ८५-४६३ पुट्ठो जहा उत्त. १७६-३८१ पुटुसुणे प्राव ५-२ पुंडरीय प्राव. १-१४३ पुढविक्कानो प्रो. ३३७-२२१ पुढवि तस प्राव. ८२-१३६ पुढविदग प्रो. ४६५-२३३ प्राव. १-१४० दश. ४६-३३२ पुढविदए प्रो. ४३-१६४ पुढवि समार प्राचा. १०३-४२६ पुढवी प्राउक्काए प्राव. ३-१३१ " , प्रो. २७३-२१५ २७५-२१५, ३३६-२२१ ,, , पि. ५४१-३१५ " "प्राचा. १२३-४३१ , प्राउक्कामो पि. ५३२-३१५ प्राद्यांश ग्रन्थ-गाथांक पृष्ठं पुढवी कामो पि. १०-२६७ पुढवीए जे प्राचा. १२६-४३२ ., निक्लेवो प्राचा. ६८-४२६ पुढवी य प्राचा. ७३-४२७ पुण्णंमि मास प्रो. १२८-२०२ पूणरवि अ प्राव ३६७-३६ अयं प्रो. ६६-१९६ , भद्दि आव. ४८७ ५० पुत्तस्स पि. २८८-२९२ पुत्तो धणं आव. ४४९-४७ पुत्तो पयावइ प्राव. ४४७-४६ पुव्वण्ह प्रो. ७९-२२५ पुप्फफलोदय प्रो. ७०२-२५५ पुष्फाणि अ दश. ३६-३३१ पुप्फाणं पि. ४५-२७० पुप्फुत्तराउ उत्त. २६९-३९० पुवुद्दि? ओ. १५४-२०४ " ढाणे प्रो. ५११-२३७ पुवुद्दिट्टो प्रो. २७-२४८ , प्रो. २२९-२११ पुव्वपडि प्राव. ८०८-७९ पुत्वभव प्राव. १५२-१६ , भवे संघ उत्त. ३६१-३६६ ,, ,, संखस्स उत्त.३२०-३६५ 2010_04 | Page #592 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गाथानां अकारादिक्रमः ] [ ५६९ प्राद्यांश ग्रन्थ-गाथांक पृष्ठं प्राद्यांश ग्रन्थ-गाथांक पृष्ठं पुव्वाईपासु प्राव. ८१०-८० पुरिसज्जा प्राव. ६७९-६८ पुव्वाणुपुन्वि पुरिसावायं प्रो. ३००-२१८ प्राव. १०२१-१०० पुरिसुवहि प्रो. २७१-२१५ पुव्वा य प्राचा. ५६-४२५ पुस्से प्राव. ३२८-३२ पुत्वावर प्राव. १५-१३२ पुरिसो इत्थि प्रो. १५-१६२ पुश्वाहारो दशा. ८०-४८४ पुहवी य आव. ६४८-६५ पुवाहीयं दशा. ११८-४८७ पूईकम्मं . पि. २४३-२८८ पुव्वसय . प्राव. २८३-२८ पूणि प्रो. ७४-२२५ पुव्वं च जं प्राव.१४९९-१६६ प्रयरुहिर सू. ८०-४६२ पुवं ठंति आव. १५५८-१७५ पोसस्स पुण्णि प्राव.२४८-२५ पुत्वते होज्ज प्राव. ८३३-८२ ____" सुद्ध प्राव. २४७-२५ पुव्वं दव्वा प्राव. ३६-१३४ . पोरिसिमापुच्छ पुव्वं बुद्धीइ दश. २६२-३५६ प्रो. २०४-२०६ पुटिव पच्छा पि. ४०९-३०३ , पमाण प्रो. २८१-२१६ पुरमो पवखा आव. १-१५० , करणं प्रो. ८-१९१ पुरो मझे प्रो. १७७-२०६ पोसहोववासे पुरकम्म प्रो. ५१६-२३८ प्राव सू. ११-१८२ पुरकम्म उद प्रो. ४८५-२३५ पंचण्हं स. ३३-४५८ पुरतो जुग प्रो. ४३०-२३० पंचएहि प्राव. ३०६-३१ पुरपच्छ पि. ५३४-३१५ पंचंग बारस उत्त. ३९-३६८ पुरिमचरिमाण पंच चउरो दशा. ११४-४८७ प्राव. १६१५-१८७ पुरिमेण प्राव. ४५४-४७ पंचण्हं प्राव. ५९७-६० प्राव. १८२-१६ पंचपव्वा उ प्रो. ३२-२५७ पुरिमंतरंजि उत्त. १७२-३८१ पंचमहब्वय उत्त. ४७१-४११ 2010_04 | Page #593 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५७० ] [ नियुक्तिसंग्रहः प्राद्यांश ग्रन्थ-गाथांक पृष्ठं । प्राद्यांश ग्रन्थ-गाथांक पृष्ठं पंचमहव्वय पंचासीई सइ उत्त. ४०७-४० प्राव. १२११-१२० पंचिदिएहि गुत्तो पंचमियाए प्राव. ३५-१३४ प्रो. २८०-२१६ पंच य प्रण दश. २४७-३५२ , जा सा पाव. ८-१३१ " " पुत्त प्राव. ३४५-३४ पंचिदियाण " ,, मह प्राव. १२६२-१२५ प्राव. १३६४-१५३ ", " प्राचा. १४-४२१ पंचेव अद्ध प्राव. ३७८-३७ पंचऽरहते प्राव. ४१६-४४ " प्राणु उत्त. ७०-३७२ पंचविह विसय , य खीराई पि. २२६-२८६ प्राव. १६२०-१८७ " प्रसज्झा , सिप्पाइं प्राव. ७-२१ प्राव. १३७६-१५४ पच्चंति प्रो. १३३-२०२ पंचविहो अ उत्त. १८१-३८२ पंचसया उत्त. ११३-३७५ पंचविहं प्राव ९६४-६७ पंडग अप्पडि प्रो. ४७१-२३४ पंचसय अद्ध प्राव. ३६२-३६ , , पि. ६०१-३२१ पंचसया चल पाव. ७८३-७७ पंथन्भासे प्रो. १६-१९२ पंचसु प्राचा. १८५-४३७ ___ • पंथुच्चारे प्रो. १४३-२०३ पंचण्ह मणु प्राव. १-१७७ पंथेणेगो प्रो. २४७-२१३ पंचण्हंकिइ प्राव.११२१-१११ पंथं तु प्रो. ३२५-२२० "वण्णाणं पंथं किर पाव. १४६-१५ प्राव. ७३१-७२ पंथो मग्गो सू. ११५-४६६ पंचहि प्राव. प्र. १६-४३ पंसू अचित्त पंचाणउइ प्राव. ३६६-३९ प्राव १३४६-१५२ प्राव. ३०५-३० पंसू अमंस पंचासीई पन्न आव.४०६-४० प्राव. १३४५-१५२ 2010_04 Page #594 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गाथानां अकारादिक्रमः ] प्राद्यांश ग्रन्थ-गाथांक पृष्ठ फग्गुण बहुलि श्राव. २४१-२४ फग्गुण आव. ३४०-३३ श्राव. २४४-२५ बहु फड्डा य असं }; श्राव. ६०-७ 11 श्राणु आाव. ६१-७ फलगलयं सू. १०८ - ४६५ फलोदएणं प्राचा. २२६-४४२ फासियं प्रव. १६०७-१८६ फिडिए ओ. १६४-२०८ फिडियंमि श्राव. १४०६ - १५८ फुसइ प्रणते व. ६७६-६६ बत्तीसदोस "" आव. १२२७-१२१ बत्तीसाइ पि ६४५-३२५ बत्तीसा साम पि. ७८-३० बत्तीसं धरयाई आव. १-४३ बत्तीस किर पि. ६४२ - ३२५ बत्तीसंगुल श्रो. ७०८-२५५ बज्झइ य fq. ६४-२७२ बद्धइ १०१-२७५ पि. बद्धमबद्धं श्राव. १०३३-१०२ बद्धो य बंध बंभणगामे बंभगुण आचा. ३२४-४५३ आाव. ४७५-४९ उत्त. २४-३६७ [ ५७१ प्राद्यांश ग्रन्थ-गाथांक पृष्ठ बंभम्मी श्राचा. १८-४२१ बलकुट्ट बलदेव उत्त. ३२४-३९६ श्राव. ४०४-४० बलिपविण आव. ५८६-५६ बवं च बालवं सू. ११-४५६ उत्त. १६८-३८३ 37 17 13 बहली अ जो श्राव. ३३७-३३ श्रडं नाव. ३३६-३३ 11 बहिधोयर आव. १३६७-१५४ बहुश्राणं उत्त. २७३-३६१ बहुजणस्स श्राव. ३-१४४ बहुमज्झदेस श्राव. ९६३-६४ बहुयातीय पि. ६४७-३२५ बहुसालग बहुस्सुयं श्राव. ४८६-५० उत्त. १२४-३७६ उत्त. ३०६-३९४ बहु सुए बहुरय जमालि 11 " ,, पएस श्राव. ७७६-७७ 11 "} बायरपुढवि प्राचा. ६१-४२८ सुहुमं पि. २४६ - २८८ बायालीसेसण श्री ५४५-२४० 13 उत्त. १६५-३८० ग्राव. ७७९-७७ उत्त. १६४-३८० 2010_04 Page #595 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५७२ ] [ नियुक्तिसंग्रहः आद्यांश ग्रन्थ-गाथांक पृष्ठं बायालीसेण पि. ६३४-३२४ बाणउई प्राव. ५५-६५ बारवई आव. २२-१४६ बारस चेव प्राव. ५३७-५५ , वासे प्राव. ५३४-५४ " हि भिक्खु प्राव. सू. १३६ , स्स प्रो ५६६-२४५ बारस सोलस प्राव. ६५४-६५ , विहम्मि दश. १८६-३४५ ,विहे प्राव. ११३-१२ ,, अंगुल ओ. २७-१९३ बारसंगो प्राव. १००१-६८ बारवई प्राव. १३१९-१४८ बाले सुत्ते दशा. ११६-४८७ बाला किड्डा दश. १०-३२६ , मंदा दशा. ३-४७६ बाले वुड्ढे पि. ५७२-३१८ बावरि उत्त. ४३६-४०७ बावीसं तित्थ प्राव. १२६०-१२५ "बायर उत्त. ७६-३७२ बाहाए प्रो. ४३७-२३० बाहिं ठित्त दशा. ६४-४८२ , जइवि प्रो. १००-१६६ प्राद्यांश ग्रन्थ-गाांक पृष्ठं बाहिरखित्तं प्राव. १२३६-१२३ ,, लंभे आव. ६२-७ 'बाहबलि प्राव. ३४९-३४ बिइअमेयं पि ८२-२७३ बिइउद्देसे प्राचा. १९६-४३८ बिंदू छोए प्राव. १३८४-१५६ बिइयकसाया पाव. १०६-११ बिइयदुय दश. १४१-३४१ , पइन्ना दश. ६३-३३६ , मेयं प्रो. ४५४-२३२ , स्स प्रो. ४९८-२३६ बिइयंभि होति आव. ५६३-५७ दिइयं सुत्त प्रो. १६१-२०५ बितियंतरे प्राचा. २५-४२२ बियतिय प्रो. ६५-२२४ " पि. ४७-२७० बीए नियइ सू. ३१-४५७ बीओऽविनमि उत्त. २६८-३६० ,, य पाएसो दश. १८-३२९ " " उत्त. ५४-३७० बुद्धाई दश. १४५-३४१ बेइंदियपरि पि. ४८-२७० 2010_04 Page #596 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गाथानां अकारादिक्रमः ] [ ५७३ प्राद्यांश ग्रन्थ-गाथांक पृष्ठं प्राद्यांश ग्रन्थ-गाथांक पृष्ठं बेइंदियपरि ओ. ६६-२२४ भदं च प्राव. ५३०-५४ बोहण दशा. ६४-४८५ भयपि उत्त. १०४-३७४ बभंमी उ उत्त. ३८०-४०१ भरनित्थ प्राव. ६४३-६३ भगवं अदी प्राव. ३१८-३१ भरहेरवय प्रो. ५२७-२३६ भज्जति य पि. ५७४-३१८ प्रो. ५२६-२३६ भट्टेण प्रास. ११७३-११६ भरहो बाहु प्रो. ५३५-२३६ भणइ अाहिं " पसन्न प्राव. ११६४-११५ प्राव. ७७०-७६ भरहंमि प्राव. ३४-४ , अधारे प्राव. ७७१-७६ भरयच्छे प्राव. १८-१४८ ,, ,, नाहं पि. ४५६-३०८ भरुयच्छमि भण्णइ पुत्व प्रो. २४१-२१२ पाव. १३३०-१४६ भणियं प्राव. १५६४-१८४ . भरहसिल पाव. ९४०-६२ भत्तट्टिा प्रो. २११-२१० भद्द सुभद्दा प्राव. ४१०-४० भत्तट्टिय प्रो. ५८४-२४४ भवणवइ प्राव. ३४६-३४ भत्तपरिण्णा उत्त. २२४-३८६ भवणवइ प्राव. ५६०.-५७ भत्तपरिन्ना पाचा.२६३-४४६ " सू. १५०-४७० भत्तिविह प्राव. ५८२-५६ भवणवण आव. १-१४३ भत्तीइ जिण भवसिद्धियो उ प्राव. १११०-११० प्राव. ८१३-८० " प्राव. ११११-११० भवसिद्धिया उ भत्तुवरियं पि. २३२-२८७ उत्त. ३१२-३६४ भत्तं वा पारणं भाइयपुणा प्राव. ५८५-५६ आव. ११६६-११६ भावइरिया प्राचा.२९५-४४६ भद्दएणेव उत्त. ३२५-३६६ भावकरणं उत्त. २०१-३८४ भद्दिलपुर आव. ३८३-३० भावगइ दश. ११९-३३६ mmm ना 2010_04 Page #597 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५७४ ] प्राद्यांश ग्रन्थ- गायक पृष्ठं भारेण वेयणाए प्रो. १६०-२०८ भावतहं सू. १२३-४६७ भावपयंपि दश. १६८-३४४ भावपरिण्णा श्राचा. महा. ५-४५४ भावप्पमाय उत्त. ५२३- ४१६ भावबहुएरण उत्त. ३१०-३९४ भावसमाहि स. १०६-४६५ भावसमोसरणं स. ११७-४६६ भावसुश्र श्राव. १०३६ - १०२ भावसुभ्रं उत्त. ५०६-४१४ भावस्सुव दश. २३६-३५१ भावाssगरिसे 2 उत्त. ४२७-४०६ " भावावयार पि. १०० - २७५ भावासन्नो प्रो. ४१७-२२६ भावुग श्रव. ११२८ - ११२ प्रो. ७३ - २६१ भावे कसाय दशा. १४०-४८९ भावे खोव श्राव. १०४-११ भावे गइमा श्राचा. ३०-४२३ भावे सणा उ पि. ७७-२७३ दश. २३८-३५१ 31 "" भावे उ णिरय सू. ६३-४६१ [ नियुक्तिसंग्रहः श्राद्यांश ग्रन्थ- गाथांक पृष्ठं भावे उ बत्थि उत्त. ३८१-४०१ उ सम्म दशा. ३५-४७९ पद्मोग १४-४५६ पसत्थ उत्त. ९-३६५ उत्त. ६-३६५ 37 19 11 11 39 ,, आाव. १४६३-१६३ पावं उत्त. ३८७-४०२ फल प्राचा. २४०-४४३ 33 भावो जीवस्स सु. ९४-४६४ भावंगंपि य उत्त. १५४-३७६ भावमि विभत्ती " "1 भासणे भासासम भासा अस R आव. ११०८ - ११० प्रो. ५१-२५० भासंतमूढ भिक्ख दग पि ३१६-२६५ भिक्खविसोही 23 उत्त. ५५६-४१६ दशा. ८६-४८५ आव. ६-२ दश. २२-३३० भवखाइ गोपि. ४५७-३०८ भिक्खाई व पि. ४३०-३०५ भिक्खागाही पि. २८४ - २६२ भिक्खामते प्रो. ४६६-२३३ मित्ते पि. ५६७-३२१ 2010_04 Page #598 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गाथानां अकारादिक्रमः ] श्राद्यांश ग्रन्थ- गाथांक पृष्ठ भिक्खायरियाइ श्राव. १४३६- १६१ भिक्खुस्स दश. ३३२-३६१ भिक्खेण न उत्त. ४७९-४११ भिक्खूणं दशा. ४४-४८० उव दश. ४८-४८ १ आव. ८- १४५ 11 बहु भिक्खू जह पि. ३५८-२९८ भिक्खं श्राचा. २२८ - ४४२ भिज्जिज्ज श्रो. ४०५-२२७ भिदंतो जह भिन्नविसयं श्राव. १२४१-१२३ भिसिणीपत्ते प्राव. २००-२० भीए य सू. ८२-४६३ भुंजण जीर पि. ३३६-२९७ भुज न भुजे पि. १२२-२७७ भुंजह भत्ता प्रो. २१४-२१० भुजंति चित्त पि. ४४६-३०७ भुजंती प्राय पि. ५८७ ३२० भुजतो श्री. ५८३ - २४४ २२८-२११ "3 दश. ३४३-३६२ भुत्ताभुत्त भूप्रापरिणय श्री. श्राव. १०३४-१२० [ ५७५ श्राद्यांश ग्रन्थ-गाथांक पृष्ठ भूमी घरा य दश. २५६-३५३ भेश्रो भेश्रणं दश. ३३४-३६१ भेत्ताऽऽगमो दश. ३४२-३६१ भेत्ता य भेश्रणं भोगफलं भोगंमि श्राव. ५७- भा०-१०० भोगसमस्थं श्राव. ६५-२० स. ७३-४६२ भंजति श्रंग भंडगपास पि. १६-२६७ मइउग्गो श्राचा. ३०६-४५० जोगेण सू. - १६-४५६ " मइमं रोगि पि. ४१३ - ३०४ मइलिय पि. ३२१-२९५ मग्गगईणं उत्त. ५४८ - ४१८ उत्त. ५१३- ४१५ मगहा गोब्बर श्राव. ४९३-५१ 33 33 मगहापुर श्राव. ६४३-६४ उत्त. २८३-३९१ मगहाराय आव. २३४- २४ मग्गसिरसुद्ध प्राव. २५० - २५ सुद्धिक्का 31 11 मग्गे श्रवि उत्त. ३७४-४०० आव. १७८ - १८ 2010_04 2 श्राव. २५१-२५ श्राव. ६०३ - ८६ Page #599 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५७६ ] [ नियुक्तिसंग्रहः आद्यांश ग्रन्थ-गाथांक पृष्ठं मच्छियधम्मा पि. ३०२-२६३ मच्छुव्वत्तं प्राव. १२२२-१२१ मणगं पडुच्च दश. १५-३२९ मणपज्जव प्राव. ७६-८ मणपज्जवोहि उत्त. २२२-३८४ मणवइकाया स. ६५-४६४ मणवयण दशा. ६०-४४५ मणसहिएण प्राव. १५००-१६६ मणसा प्राव. १४६२-१६६ मोत्तूणमेसिमिक्कं प्राव. ७८५-७७ मणिकणगर प्राव. ५४५-५५ मणिकणग प्राव. ५४७-५६ मणिरयण आव. ५५०-५६ मणुएहि खलु प्राव. E-१३२ मणुए चउ प्राव. ५६५-५७ मणुया तिरिया प्राचा. ६०-४२५ मज्जार खइय पि. १६२-२८३ , मूसगाइ प्रो. २२७-२११ मज्जणणिसे पाव. ७०३-७० मज्जं विसय उत्त. १८०-३८२ मज्झण्हि प्रो. १४७-२०४ । प्राद्यांश ग्रन्थ- गाथांक पृष्ठं मत्तेण जेण पि.५६५-३१८ मयगहणं . प्रो. १६०-२०५ मयमाइव पि. ४४४-३०६ मयहरगा प्राव. १५८८-१८४ मयहरपगए ... पाव. १३६१-१५३ मरणविभत्ति उत्त. २०९-३८४ मरणे अणंत उत्त. २३०-३८६ मरणं च होइ दश.२६१-३५३ मरणंमि उत्त. २१०-३८४ मरहसिलामढ प्राव. ५४१-६२ मरुदेवि प्राव. ३८५-३८ मलए प्राव. ५०८-५२ मल्लि प्राव. १५-४३ मल्लिस्सवि प्राव. २९५-२६ महईए पि. २२८-२८६ महपंच सू. ३०-४५७ महुपुग्गल प्राव. १६२३-१८७ महुरपरिणाम प्राव. १०४४-१०३ महुराइ इंद उत्त. ११८-३७६ , काल उत्त. ११५-३७५ महुराए जउण पाव.६६-१४६ 2010_04 Page #600 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गाथानां अकारादिक्रमः ] [ ५७७ प्राद्यांश ग्रन्थ-गाथांक पृष्ठं प्राद्यांश ग्रन्थ-गाथांक पृष्ठ महुराए जिरण पाव.४७०-४६ मा दिच्छिहिति. , संखो उत्त. ३२१-३९५ . २२२-२११ महरिहसिज्जा मायपि पि. ४८५-३१० आव. १०६८-१०८ मायरं पियरं महिनावासं प्रो. २९-१९३ प्राव. १२१०-१२० महिया य पाव. १३४१-१५१ मायाए उस्सग्गं महुरं दश. १७१-३४४ प्राव. १५५४-१७५ महुसित्थ आव. ६४२-६२ मायागार दश. ३०३-३५८ महुरा मंगू दशा. ११०-४८६ मासिय पि. २०९-२८५ मा एयं देहि पि. २३७-२८७ माया मेत्ति प्राचा.१६५-४३८ मासं पाओ प्रो. ६५९-६६ माया य रुद्द उत्त.६६-३७४ मा काहंति पि. २३६-२८७ , , आव. ७७५-७६ मागहमाई प्राव. ३४८-३४ मायावी चड्यारी. माणुस्स खित्त . पि. ४८६-३११ उत्त. १५८-३८० मायंमि उ उत्त. ४५८-४०६ , खेत्त प्राव. ८३१-८१ मालाभिमुहं पि. ३५६-२६६ माणुस्सयं प्राव. १३६९-१५४ - मालाविहा प्राचा.२३०-४४२ माणुस्सं धम्म मालोहडंपि पि. ३५७-२९८ - उत्त. १५५-३७९ मालंमि कुडे पि. ३६०-२६६ माणं तु. ओ. ७०३-२५५ मा वेप्रणा प्राव.१४३६-१६० मा ताव पि. २८६-२६२ मासग प्राव. १५-२ मा ते फंसेज्ज पि. ५०८-३१२ मासब्भं प्राव. ४-१४२ मा मे चलउ मासाइ सत्ता प्राव. १-१४० प्राव. १४९०-१६६ मासे मासे प्राव.१५८५-१८४ , एजउ आव. १४४८-१६५ माहणकुड प्राव. ४५७-४७ 2010_04 | Page #601 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५७८ ] श्राद्यांश ग्रन्थ-गाथांक पृष्ठ माहेसरीउ श्राव. ७७२–७६ मिश्रश्राउ उत्त. ४०७-४०४ मिगदेवी उत्त ४०८-४०४ मिगावइ श्राव. ४०६-४० मिच्छत्तकालि मिच्छत्तमोह श्राव. ११०६-१०६ थिरी पि. ४४७-३०७ 32 पडि श्राव. १२६४-१२५ मिच्छत्तं वेय दश. २०९-३४७ मिच्छादिट्ठी श्राव. १ - १४० " आव. ९१३ -६० याणं श्राव. ७८८-७७ जीवा उत्त. ३१३-३६४ मिच्छभय श्राव. १३३८ - १५१ मिच्छा पडि दशा. १९-४७८ मित्ति मिउ "1 "" आव. १५१६-१७० आव. ६८६-६८ 11 मिहिलाए लच्छि उत्त. १७०-३८१ मिहिलावर उत्त. २६५ - ३६० मिहिला सोरिय मीरासु आव. ३६४-३८ सू. ७४-४६२ [ नियुक्तिसंग्रहः श्राद्यांश ग्रन्थ-गाथांक पृष्ठ मीसज्जायं पि. २७१-२६० मुहुंकारं आव. २३-३ मुक्कधुरा श्राव. ११४०-११३ मुक्खमग्गं उत्त २७८- ३६१ मुक्खो मग्गो उत्त. ५०३-४१४ मुणिचंद आव. ४७७-४९ मुरिगणा श्रचा. ३१० - ४५१ मुणिसुव्वयं उत्त. ११२-३७५ मुनिसुव्वो ग्राव. ३८१-३८ मुनिसुव्व श्राव. ४१८-४३ मुत्तदविएसु पि. ५६-२७१ ५९१-२४४ मुत्तंमि मुत्तनिरोहे प्रो. १६७ - २०८ मुत्ते वियार प्रो. ५०८-२३७ श्राव. ८५५-८४ मुयसम्म मुहणंत मुह घोवण श्री. प्रो. २८८-२१७ प्रो. ४६६-२३६ मूइंगाइ प्रो. ५५८-२४१ मूढनइयं आव. ७६२-७५ मूढो व प्राव. १३९५-१५६ मूभाइएसु पि. ५६६-३१८ मूयं च आव. १२२५-१२१ मूलकरणं मूलगुण "" सू. ६-४५५ दशा. १३३-४८६ श्राव. १६२८ - १८८ 2010_04 Page #602 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गाथानां प्रकारादिक्रमः ] [ ५७६ प्राद्यांश ग्रन्थ-गाथांक पृष्ठं प्राद्यांश ग्रन्थ-गाथांक पृष्ठं मूलगुणाणं प्राव. १११-१२ मंडल-पसूति पि. ६००-३२१ मूलगुणावि प्राव. १-१७७ मंडियमोरिय प्राव. ५६४-६० मूलुत्तरगुण प्राव. १-१६१ मंडलिभायण मूले कंदे उत्त. ३२-३६८ प्राव. ५६६-२४२ मूले छक्कं प्राचा. १८२-४३७ मंदिरे प्राव.४४२-४६ मूसयरज प्रो. ७०४-२५५ मंसवस पि. ५३९-३१५ मूसयरय प्रो. २९०-२१७ मंसस्स प्राचा. १६१-४३५ मेरुगिरितुग मंसाई प्राचा. १६०-४३५ प्राव. १२६६-१२६ रज्जाइच्चा प्राव. २१३-२२ मेरुगिरिसम प्राव. ३५१-३५ रज्जाणि उ उत्त. ४७७-४११ मोक्खट्रा प्रो. ७४०-२५८ रत्तुक्कडा उ मोत्तु अकम्म प्राव. १३७०-१५४ उत्त. २२०-३८५ रत्तो वा प्रो. ७५७-२६० मोत्तु गिलाण प्राव.२६-१३३ ।। रयणपइवे पि. २६६-२६३ " पुराण दशा. ८६-४८४ रयणाणि दश. २५४-३५३ मोरागसण्णि प्राव. १-४८ रयणुप्पया उत्त. ३५१-३९८ मोसलि संधि प्राव. ५१०-५२ रयणादि प्रो. ६९५-२५४ मोरिय उत्त. १७४-३८१ रयहरणपट्ट प्रो. २५-२५७ मोरीयसन्नि रसभायण पि. २३८-२८७ प्राव. ६४४-६४ रसहेउं पि. ६४१-३२५ मोहचिगि प्रो. ५८८-२४४ रहकार उत्त.३७५-४०१ मोहपयडी प्राव. १४६८-१६४ रहनेमिस्स उत्त. ४४८-४०८ मोहुन्भवगो ओ. १६२-२०५ रहनेमीनाम उत्त. ४४४-४०८ मंखलि प्राव. ४७३-४९ , निक्खेवो मंगलहेउं पि. २६०-२६२ उत्त.४४३-४०८ MC M 2010_04 | Page #603 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५८० ] प्राद्यांश ग्रन्थ- गाथांक पृष्ठ रहवीरपुरं उत्त. १७८ - ३८१ राइणियं आाव. ६७१-६७ राईसरिसव उत्त. १३९-३७८ राश्रवणीय श्राव. ५८९-५९ रागग्गि पि. ६५७-३२६ रागद्दोसकसाए श्राव. ९१८-६० " छोसा उत्त. ३७६-४०१ रागाई दश. २४४-३५१ रागेर व श्राव. १४२६-१५९ रागेण सई पि. ६५६-३२६ राय करेइ श्राव. १९८-२० रायकुले श्राव. २२२-२३ रायगिहमिहिल 11 " 11 उत्त. ३५०-३९८ विस्स श्राव. ४४४-४६ विस्स आव. ४४५-४६ 17 माल उत्त. ११०-३७५ रायगिहागम सू. १९८-४७५ राग गुण उत्त. १६८-३८० धम्म पि. ४७४-३०६ रायगिमि उत्त. ६१-३७३ राया श्राइ श्राव. ३६३-३६ राया इह प्राव. १३३६ - १५१ [ निर्युक्तिसंग्रहः श्राद्यांश ग्रन्थ- गाथांक पृष्ठ राया उसुयारो रायघरे य राया य तत्थ राया य बंभ उत्त. ३६४-३९९ पि. ४७७ - ३०६ उत्त. ३३३-३६७ राया य राय रुक्खाणं रूप्यं पत्तेय उत्स. ३३५-३६७ श्राव. ५८४- ५९ राया विज्जमि ओ. २४-२४७ रायारोह पि. १२७-२७७ राया सप्पे दशा. ७२-४८३ रोद्दा य सत्त प्राव. ४६४-४८ रोहीडगं श्राव. १३३२-१५० रोहेइ वर्ण आव. १४३७-१६० रुपं टंकं श्राव. ११५२-११४ रुक्खा गच्छा श्राचा. १२९-४३२ आचा. ८०-४२७ 2010_04 आव. ११५३ - ११४ रूवं वनो दश. १६२-३४६ लक्खणमेवं श्राचा. १५८-४३५ लक्खं श्रट्ट श्राव. २६२-२६ लट्ठी श्राय प्रो. ७३० - २५६ Page #604 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गाथानां अकारादिक्रमः ] [ ५८१ प्राद्यांश ग्रन्थ-गाथांक पृष्ठं प्राद्यांश ग्रन्थ-गाथांक पृष्ठ लद्धण य प्राव. १४७-१५ लित्तंति पि. ६१५-३२२ लद्धिल्लियं लेसा कासाय उत्त. ५२-३७० प्राव. १११२-११० लेसाणं निक्खेवो , प्राव. ५११३-११० . उत्त. ५३४-४१७ लद्धं पहेणगं पि. ३४१-२६७ लोइय सू. १०१ ४६५ लग्गुद्धियं प्राव. १४३५-१६० लोइंदिप प्राव. ३५४-३५ लभंतंपि पि. ४८१-३१० लोएवि पि. २६५-२५० लाउन एरंड प्राव. ९५७-६४ लोए वेए प्राव. १६१६-१८७ लाढसु य प्राव. ४८२-५० लोए संथारंमि उत्त.८५-३७३ लज्जाइ गार उत्त.२१७-३८५ लोगे चउ आचा. २४७-४४४ लाभा लाभं सुहं पि. प्र-३०६ लोगोत्ति प्राचा. १७४-४३६ लाभिय नेतो पि. ३८०-३०१ . लोगस्स प्राचा. २४३-४४४ लाभेण जो प्रो. ५३४-२३६ लोगस्स य प्राचा. १७३-४३६ लाभे सति प्रो. ६१२-२४६ य निक्खे लाहा हु ते प्राव. ४२७-४४ प्राचा. १७५-४३६ लिंगाइहिवि पि. १५०-२७६ "सार आचा. २४४-४४४ लिगेण उ नाभि लोगस्सुज्जो पि. १५२-२८० .. आव. १०७४-१०६ ., उ साहम्मी __, आव. सू. १-१०५ पि. १५१-२७६ लोगागास प्राचा.८८-४२८ लिगं जिण आव.१४४५-११३ लोगो भणियो. लिप्पग प्राव. १४४७-१६१ प्राचा. १७६-४३७ लित्ते छगणि प्रो. ३९६-२२७ लोगोवयार दश. ३१०-३५८ लोत्थारियाणि लोगंमि प्राचा. २४१-४४३ प्रो. ३९४-२२६ लोणागडो पि. १६८-२८१ 2010_04 Page #605 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५८२ ] प्राद्यांश ग्रन्थ-गाथांक पृष्ठ लोणंदग पि. ५८६-३२० लोभाणु वेतो श्राव. ११७-१२ लोयविरलुत्त पि. २६२-२९२ लोयाणुग्गह पि. ४४८ - ३०७ लोलइ पि. ४२२-३०४ लंघणपवण उत्तः १२८-३७७ वड्ढे इ पि. १८७-२८३ वि. वइयाइ ३०९-२९४ वइसाहसुद्ध श्राव. ७३४-७३ वंका कोड प्रो. ३५-२५८ वक्कं तु पुव्व दश. ३६३-३६३ वक्कं वयणं दश. २७०-३५४ वक्खाण वक्खित्त 23 वग्घस्स वग्घो वा आव. ७१०-७० प्रो. ५१४-२३७ श्राव. १२१२-१२० उत्त. १२७-३७७ उत्त. १०३-३७४ श्राव. ५१२-५२ वच्चह वच्चतेण श्री. ३८३ - २२५ वच्छगगोणी श्राव. १३३-१४ वज्जरिसह श्राव. १५७-१६ वज्जेत्तु प्रो. ७६४-२६० वज्जेमित्ति प्रो. ६०-१९६ वज्जंत श्राव. ३५८-३५ [ नियुक्तिसंग्रहः श्राद्यांश ग्रन्थ-गाथांक पृष्ठ पि. ३०६ - २९४ वइयाइ वढइ हायइ वट्ट सम वडपुरग वडते वण्णरस 33 वणस्सइ प्राचा. ७७-४२७ पि. ४३-२७० उत्त. ३४६-३६८ उत्त. ८८- - ३७३ वणहत्थी वणे रामे वण्णादिया सू. १५-४५६ वणिधूया दशा. १०४-४८६ वण्णेण आव. ४०२-३९ वण्णंमि य श्राचा. ७८-४२७ ग्राव. ६६६-६६ पि. १७४-२८२ श्रो ६८६-२५३ उत्त. ३४५-३९८ श्राव. ८२३-८१ उत्त. २०२ - ३८४ वत्तणा वत्थश्रो आव. ७५८-७५ प्रो. ४६६-२३६ वन्नबल वन्नाइ पि. १९५ - २८३ पि. ४१६-३०४ वयगंड वयछक्कfमंदि आव. १ - १४३ वयछक्क दश. २६८-३५४ वयणविभत्तोश्र " दश. २६०-३५६ कुस दश. २६१-३५६ 2010_04 Page #606 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गाथानां अकारादिक्रमः ]] [ ५८३ . w प्राद्यांश ग्रन्थ-गाथांक पृष्ठ वयणविभत्तीय पुण दश २३-३३० वयमिक्क प्राव. १-१७८ वरकणगत प्राव. ३७७-३७ वरवरिया प्राव. २१६-२२ वरसुरहि प्राव. ११०२-१०६ वरिसंती प्राव. १-१४२ ववगय प्राव. ३५६-३५ ववहरमाण उत्त. ४३३-४०७ ववहारे नोड प्राव. ४-२१ वसभे अ उत्त. २६४-३६० वसहिकह प्राव. २-१३९ ,, निवेसण प्राव. ५५-१३६ " " प्राव.५४-१३६ वसहीए प्रो. १३ प्र.-२०६ वसही समणु प्रो. १०५-२०० वसुभूई प्राव. ६४७-६५ वाउक्कामो पि. ३८-२६६ वाउस्स प्राचा. १६४-४३५ वामोदएण दशा. ६६-४८५ वाणारसी य को प्राव.२१-१४६ ,, य नयरी आव. २५-१४६ वाणारसि उत्त. ४६४-४१० वाणियगामा प्राव. ४९५-५१ वादे परा सू. १९६-४७५ प्राद्यांश ग्रन्थ-गाथांक पृष्ठ वाघाए अण्णं प्रो. १८३-२०७ वाघाए तइयो प्राव. १३८४-१५५ वाघाएरण पि. ४७८-३१० वाघाइय प्राचा. २६७-४४६ वाघाते प्रो. ६४०-२४६ वायाइ नमो प्राव. ११४१-११३ वायाईधा प्राव. १४८२-१६५ वायनिसग्गु श्राव. १५२६-१७० वारण प्राव. ५१६-५३ वारेयव्वु दश. ७०-३३४ वारिमझे प्राव. १-१४४ वालय प्राव. ५०७-५२ वालेराइ दशा. १४-४७७ वासइ तो किं दश.१०२.-३७३ " न तणस्स दश.६६-३३७ वासग्गसो उत्त. ८३-३७३ वासत्ताणा उत्त. १३४४-१५१ वाससवासे उत्त. ५२५-४१६ वाससहस्सं प्राव, २३८-२४ वासारण प्राव. २८७-२९ वासहरा पि.८८-२७४ वासाखे दशा. ६०-४८२ 2010_04 Page #607 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५८४ ] [ नियुक्तिसंग्रहः प्राद्यांश ग्रन्थ-गाथांक पृष्ठं वासासुउ प्रो. ११३-२०० वासासु य प्राव. १४०४-१५७ वासीचंदण प्राव. १५६२-१७६ वासोदयस्स प्राव. ५७७-५८ वासोवग्ग प्रो. २६-२५७ वासं कोडी प्राचा.२७३-४४७ वासं व दशा. ७३-४८३ विअणे प्राचा. १७०-४३६ विइयमेयं कुरं ____ो . ४५२-२३२ , गज पि. ८४-२७३ विउला प्राव. ९३७-९२ विकहा प्रो. ९६-१९६ विर्गात दशा. ८१-४८४ विलिदिए प्राव. ७-१३१ विच्छुय उत्त. १७३-३८१ विज्जाए हो प्रो. ५६८-२४५ विज्जाच पाव. १०६६-१०५ विज्जा चरणं दश. १६५-३४६ विज्जसुयस्स प्राव. १७३-१८ विज्झाउत्ति पि. ५५०-३१६ विज्जातवप्प पि. ४६२-२०८ विसयसुहनिअत्ताणं प्राव. १२-६६ प्राद्यांश ग्रन्थ-गाथांक पृष्ठं विज्जामंत पि. ४६४-३११ विज्झाय पि. ५४६-३१६ विज्जासिप्प दश. १८९-३४६ विज्जा व देव सू. १६३-४७१ विजियो प्राचा. १७७-४३७ विटिबंध प्रो. २६५-२१७ विणएण प्रो. ५२१-२३८ विरगोणएहि प्राव.१३८-१४ विणो पुव्वु उत्त. २६-३६७ विणग्रोवयार आव. १२२६-१२१ विणो सासणे प्राव. १२३०-१२१ विणयस्स समा दश. ३०९-३५८ विणयसुयं च उत्त. १३-३६६ वित्तासेज्ज प्राव. ४०-१३५ वित्थिण्णा प्रो. २१७-२१० वित्थिपणे प्रो. ३१४-२१६ विमलजिण पाव. प्र-१२-४३ विमलतणु प्राव.१०६६-१०८ विमलमणंत आव. ३७१-३७ विमली पि. ४६३-३११ वियणधमरणा प्राचा. १६९-४३६ 2010_04 Page #608 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गाथानां अकारादिक्रमः ] श्राद्यांश ग्रन्थ-गाथांक पृष्ठ विरिए छक्कं सू. ९१- ४६४ विरयाविरई प्राव. ८६३-६४ विसघाइय पि. २७४-२९१ विसघाइ रसा दश. ३५१-३६२ विसतिणि दश. १- प्र - ३४३ विसमा जह श्राव. ४९ - १३५ विसमेसु ३६-२५८ विसयसुहेसु दश. १६४-३४३ विसरिस पि. १४७-२७९ वाससहस्सं उत्त. ५२४-४१६ विहगगई दश. १२०-३३६ विहिगहिश्रं श्रो. ५९२-२४५ श्राव. १६२५-१८८ 33 "" 21 श्राव. ०-१८८ विहमा दश. ११८- ३३९ विहिपुच्छाए श्रो. ८१-१६८ वीयभय उत्त. ६४-३७४ वीरवरस्स वोरियधम्म श्राव. ४७१-४६ श्राव. २ -१४० भावे श्राव. ७५२-७४ विउच्व दश. २००-३४७ सजोग श्राव. १५२७--१७० 17 श्री. " वीरो रिट्ठ श्राव. २६-२३ वीरं श्राव. २२१-२३ वीसज्जिऊण उत्त. ३६८-४०३ 13 [ ५८५ प्राद्यांश ग्रन्थ-गाथांक पृष्ठं वीसमिऊण प्राव. १२४ - १३ वीसं उक्कोस उत्त. ८२-३७२ वीसं तु दशा. ११-४७७ बुडि च उत्त. २७२-३९० वुड्डी वा चेइदुम वेउव्विबाउडे प्रो. वेज्जे मेंढ टाई बेंटल पुट्ठो वेणइयस्स वित्ति उ वेयणवेया " वेयावच्चे वेयावच्चं श्राव. ५६-७ श्राव. ५५३-५६ २२-२५६ आव. ८४६-८३ आव. ५४६-५५ प्रो. ४२४- २२ε दश. २०४-३४७ श्राव. ५८०-५६ प्रो. ५८०-२४३ पि. ६६२-३२६ प्रो. ५३७-२४० श्री. ५३२-२३६ वेयालियं इह सू. ३८-४५८ वेयालियंमि सू. ३६-४५८ वेररयमप्प श्राचा. ३२७-४५३ वेसालीए वेसालि आव. ४९४ - ५१ आाव. ५१८-५३ वेविय परि पि. ५८२-३५६ वोग्गह आव. १३५८- १५३ वोलिता पि. १६४ - २८० वोलिने प्रो. ३६-१६४ 2010_04 Page #609 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५८६ ] [ नियुक्तिसंग्रहः प्राद्यांश ग्रन्थ-गाथांक पृष्ठ वोहण प्रो. ६-१९१ वंतुच्चार पि. १९७-२८४ वंदणचिइ प्राव. १११६-१११ वदिज्जमाणा प्राव. ८६६-८५ वंदित्तु प्राचा. १-४२० वंदामि महा प्राव. ८१-६ , भद्दबाहुं दशा. १-४७६ वायणपडि प्राव. ६८९-६८ सणि चउ उत्त. १६६-३८३ " , सू. १२-४५६ सक्कारो प्रो. १५५-२०४ सक्को अ प्राव. ४६८-५१ सक्कीसाणा प्राव. ४८-६ सगडुद्धी प्राचा. ४६-४२४ सग्गह प्राव. १३५७-१५३ सग्गाम पि. ४२८-३०५ , पि. ३३०-२६६ सग्गामेऽवि पि. ३३३-२६६ सचरित प्राव. १०६२-१०४ सच्चित्तपुढ पि. ३४६-२६८ सच्चित्तमक्खि पि.५३६-३१५ ., मीसएसु पि.५४० ३१५ " आव. ३-१४२ , अच्चित्ते पि.६२७-३२३ , , पि. ६०५-३२१ प्राद्यांश ग्रन्थ-गाथांक पृष्ठं सच्चि अच्चित्ते पि.५५८-३१७ , पव्वावण पि. ५१-२७० सच्चित्तो प्रो. ६९-२२४ सच्चप्प दश. १७-३२६ सज्झम पि. २६२-२६० सज्झायझारण प्राव. १५१८-१६६ ,, मचितं प्राव.१३८७-१५५ , संजम दश. ३६६-३६४ सज्झायं काऊ प्रो. ६६३-२५१ सभिल ओ. ४६५-२३६ सङ्कऽङ्क पि. ४८३-३१० सङ्घस्स पि. २७०-२६० सट्रारण पि. २७७-२६१ सट्टि पण आव. २६३-२६ सड्ढेसु . प्रो. ६५-१६६ सड्ढो व प्रो. ४७२-२३४ सत्तविभागेण प्रो. ४८९-२३५ सम्वेसिं उत्तरेणं प्राचा. ५०-४२४ ससरक्ख पाणिपाए आव. १४१ (सं.) सत्तरस उत्त. २१३-३८५ सत्तसहस्स प्राव. ३१०-३१ सत्तण्हं प्राव. १०६-११ 2010_04 Page #610 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गाथानां अकारादिक्रमः ] [ ५८७ प्राद्यांश ग्रन्थ-गाथांक पृष्ठं प्राद्यांश ग्रन्थ-गाथांक पृष्ठं सहिं प्राचा. ३३३-४५४ । सपडिक्कमयो सत्तिक्कगाणि प्राव. १२५८-१२५ . प्राचा. ३०८-४५१ सपरक्कम प्राचा. २६५-४४६ सति लाभे प्रो. ६११-२४६ सपरिक्कमे प्राचा. २६४-४६ सत्तुतरि प्राव. ३-१७८ सप्पोऽवि उत्त. ४६७-४१० सत्तगट्ठा प्राव. १४-१८६ सप्पं सयणे प्राव.११०४-१०६ सत्तेया आव. ७८६-७७ सुक्कंबरा य आव. ५७-३५ सत्थपरिण्णा प्राव. १-१४४ सोऊण तं भगवनो " प्राचा. १३-४२१ उत्त. २६०-३६२ प्राचा. ३१-४२३ समए वासत्ताणं प्रो.३०.-१९३ सत्थाह दश. १६०-३४६ समकडगाम्रो उत्त.३४२-३६७ सत्थं असि स. ६८-४६४ समणकडाहा पि. २६९-२६० सहरसरूव दश. १६२-३४३ , ऽणुकप दश. ११०-३३८ सद्दहण आव. ७५३-७४ समणस्स उ दश. १५३-३४२ सहसा अण्णा प्रो. ७६९-२६३ समणाणं प्रो. १७२-२०६ सद्दाइएसु प्राव. १४४०-१६१ समणा तिदंड प्राव. ३५३-३५ ___" पि. २२४-२८६ समणिपवेसि प्रो. ७६-१६७ सद्देसुम दश. २६५-३५७ समणुप्रणेसु प्रो. ४३३-२३० सिद्दस्स सुहो प्राव. ९८२-९६ समण चउक्क उत्त.३८८-४०२ सन्नाइगमण उत्त. १०९-३७५ समरोण दश. २१३-३४८ सन्नातो पागतो समणे माहणि पि.४४३-३०६ प्रो. २६-२४८ समणो उ प्राव. १४१९-१५६ सन्नासिद्धि दश. १२२-३३६ समरणोऽसि उत्त. १४०-३७८ सन्निहियाण समणं वंदिज्ज आव. १३६८-१५७ आव. ११२०-१११ 2010_04 Page #611 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५८८ ] [ नियुक्तिसंग्रहः प्राद्यांश ग्रन्थ-गाथांक पृष्ठं समणं समणि प्रो. ४३२-२३० सम्मत्तचरण पाव. ८५६-८४ सम्मत्तदेस प्राव. ८५६-८४ प्राव. ८५०-८३ प्राव. ८५१-८३ "मप्प उत्त ५१०-४१४ , नाण प्राव. ८९७-८८ , सुयं प्राव. ८२२-८१ सम्मत्तस्स प्राव.८४६-८३ सम्मत्तुपत्ती प्राचा. २२२-४४१ सम्मत्तं प्राव. ११७६-११७ सम्मद्दिट्टि प्राव. ८६१-८४ , हिट्ठी जीवो उत्त. १६३-३८० , उ दश. २८०-३५५ , किरिया सू. १२१-४६७ सम्मदंसण प्राव. ६१०-८९ सम्मप्पणियो सू ११२-४६६ सम्ममसम्मा पि. ४४०-३०६ समभावंमि - प्राव. १५१७-१६६ समयावलिय प्राव. ६६३-६६ समया सम्मत्त प्राव. १०४६-१०३ आद्यांश ग्रन्थ-गाथांक पृष्ठं समयो वेया प्राव. १-१४० समवसरणे सू. ११६-४६६ समवाइ प्राव. ७३८-७३ सम्मसुमारणं प्राव. ८०७-७९ सम्मसूयप्रगा प्राव. ८५४-८४ समाहिमोव दशा. ४५-४८० समाहीइ उत्त. ३८३-४०१ समिइप्रो उत्त. १६-३६६ समुद्राण आव. ८८९-८७ समुद्दपालि उत्त. ४३०-४०७ समुदाणिया सू. १६८-४७२ समुद्देण उत्त. ४२९-४०७ समुसरण पाव. ३६२-३६ समोयारो उत्त. ७२-३७२ समोसरणे प्राव. ५४३-५५ सयगुण दशा. १०७-४८६ सयणासण आव.१५१२-१६६ सयणे य प्राचा. १७२-४३६ सयमेव उ प्राव.३-१४३ , ऽणु प्राव. १५६८-१८५ " दिट्ठ प्रो. ७४-१९७ , य उत्त. १३७-३७७ सयमेवासोएउंपि.५१८-३१३ सयभिसया प्राव. ४५-१३५ सयसाइस्सा प्राव. ८७६-८६ 2010_04 Page #612 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गाथानां अकारादिक्रम: ] श्राद्यांश ग्रन्थ- गाथांक पृष्ठ सरीरेणोया सू. १७१-४७२ सललिय श्राव. १२७१-१२६ Hearयं श्राव. ८३०-८१ सव्वजीवेहि श्राव. ८६०-८४ सव्वत्थ श्रवि श्राव. ५७६-५८ ?? संजमं श्रो. ४६-१९४ सव्वन्नु दश. २२७-३४६ सव्वं पाणाइ आव. १२८४ - १२७ सव्वमिरणं उत्त. ४०२-४०४ सव्वभिचारं दश. ६८-३३४ प्रो. ३६०-२२३ पि. ३९-२६६ सवलय सवलय. सव्वलोए श्राव. सू- १७२ आव. ३१-४ सव्वबहुय सव्वविही श्राव. १०६७-१०८ सव्वस्स आचा. २३६-४४३ सव्वसुरा श्राव. ५६६-५८ सव्वाउश्रपि श्राव. ५७६-५८ सव्वानोवि श्राव. १९७५-११६ सव्वा प्रोसह उत्त. ४४-३६६ सव्वाविश्र सा दश. २७८-३५५ उत्त. २३२-३८६ सव्वे एए [ ५८६ श्राद्यांश ग्रन्थ-गाथांक पृष्ठ सव्वे काउस्सग्गं श्राव. ७०६-७० ,, भवत्थ उत्त. २२७-३८६ य माहणा श्राव. ६५७-६६ 13 अ अइयारा 11 "" 11 वि ईरिय सव्वेऽवि एगदूसेण " एगवन्ना गया 17 श्राव. ११२-१२ श्राचा. २९८-४४६ "" 39 दव्व श्राव. ६३४-९२ ,, पढम श्र. ६६०-२५१ " य वयण श्राचा. ३०२-४५० य सिज्ज श्राचा. २९०-४४८ " सयंबुद्धा श्राव. २१२-२२ सव्वेसि श्रायारो श्राचा. ८-४२१ श्राव. २२७-२३ श्राव. ३६१-३७ श्राव. ३६०-३८ सव्वेसुवि तवोकम्मं श्राचा. २७७-४४७ 31 पि नयाणं दश. १५०- ३४२ पि जिणाणं श्राव. ३३३-३३ "" श्राव. ८२१-८१ 2010_04 Page #613 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५६० ] "" आद्यांश ग्रन्थ-गाथांक पृष्ठ सव्वो वडणंत प्रो. ६३-२२४ sविय श्राव. १६०३-१८५ सव्वं सण श्राव. १५६१-१८४ सव्वं च देस आव. ५६४-५७ सव्वंति श्राव. ८००-७६ सव्वंपिय तं सू. ६७- ४६४ ससमय सू. २४-४५७ ससिणिर्द्धपि प्रो. ४८७-२३५ सहस पइट्टा पि. २१५-२८५ सहसा काल श्राव. ३७-१३४ सह मरुदेवीइ श्राव. ३४४-३४ सा उ अवि पि. २२१-२८६ उं पज्जत्तं पि. १२८ - २७७ साएए पुंड " आव. १३०२-१४७ प्रो. सागरिय १६६-२०५ सागारमणा आव. ६५-७ सागारि मंख पि. ३१०-२६४ सागारियाइ आव. १३६२-१५३ वरिण प्रो. ४३६-२३० " सागारं संवरणं प्रो. ३७-१६४ सागेए उत्त. ३३०-३६६ सायमि व. १३११-१४८ सा चंडवाय आव. ८३५-८२ [ नियुक्तिसंग्रहः प्राद्यांश ग्रन्थ- गाथांक पृष्ठ साडणपाडण सू. ७०-४६२ सारणगोरखा प्रो. ४२२-२२६ सादीसपज्ज आव. ७३२-७२ सा दुविहा साधारणं दश. ४०-४८० पि. ५६४-३२० दश. २४१-३५१ सा नवहा सा पुण जाय प्रो. ५९४-२४५ ,,,, सद्द आव. १६००-१८५ सामाविय श्राव. १३४७- १५२ सामिग्गहा श्राव. १५७१-१७७ दश. १५२-३४२ सामत्थण पि. १२१-२७७ सामन्नमणु दश. ३०१-३५७ सामाइ करेमी सामण्ण आव. १०५६-१०४ नाम श्राव. स.-६ - १०१ 21 सामाइयप्रणु दश. १२-३२६ निज्जुत्ति प्राव, ८७-६ माईयं श्राव. ६३-१० याइया आव. २७१-२७ य संम श्राव. ८६४-८५ श्राव. ७६६-७८ च 11 च पढमं आव. ११४-१२ सामाइयंमि श्राव. ८०१-७६ सामाणि श्राव. ५०५-५२ "1 " 11 11 11 2010_04 Page #614 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गाथानां अकारादिक्रमः ] श्राद्यांश ग्रन्थ-गाथांक पृष्ठ सामायारि प्रो. १४२ - २०३ सामित्तं दशा. ५६-४८२ पि. ७१-३०० सामी चार सामुत्थारणी प्राचा. ५७-४२५ सामं समं प्रव. १०४३ - १०२ साय सयं श्राव. १५४४-१७४ सायं संमत्त दश. १४३-३४१ सारस्सय प्राव. २१४ - २२ सारीरपि श्रव. १३६३-१५३ सारो परूव प्राचा. १७-४२१ सालीश्रो पि. १६८-२८४ सालीघय पि. १८०-२८२ सालीमाई पि. १६१-२८० सालंबो श्राव. ११८६- ११७ सावग जइ पि. १५५ - २८० ,, भज्जा प्राव. १३४ - १४ सावज्जगंथ उत्त. ४२८-४०६ "" उत्त. २४२-३८७ सावज्जमणा प्रो. ७६३-२६० सावज्जजोग श्राव. ७९९-७८ सावत्थीइ उत्त. ११६-३७६ सावत्थी उसभ आव. ७८१-७७ जिय उत्त. १११- ३७५ सिरि श्राव. ४७९-४९ 17 सावयतेणा प्रो. १६३ - २०८ 11 [ ५६१ श्राद्यांश ग्रन्थ- गाथांक पृष्ठ सावयतेणा श्राव. १९१-२०८ धम्मस्स श्रव. १५७० - १७७ सावरणं श्री. ७३-१६७ दश. ८६-३३६ "} सा सगड दश. ७४-३३५ साहुकार साहुगुणेसण पि. २६७-२६३ साहम्मिभि पि. १४६-२७६ अपुरि प्रो. १६- १६२ साहारणप्रोस श्राव. ५५४-५६ मपज्जत्तं श्राव. १२३ - १३ माहारो رو 17 " श्राचा. १३६-४३३ सवत्ते श्राव. ५७८-५८ , श्राव. ९३३ - ६१ साहीण साही पुरो प्रो. ६२२-२४७ साहुमहंसा श्राचा. ३२६-४५३ साहू अक्कम आव. ४-१४४ साहूण नमु श्राव. १०१४-६६ १०१५ - ६६, १०१६ - ९६, १०१७-६६ साहू तेणे दशा. १६-४७७ 31 लूहे दश. ३४७ - ३६२ साहु तिगि आव. १७५-१८ संवासेइ उत्त. २६८- ३६२ " 2010_04 Page #615 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५९२ ] प्राद्यांश ग्रन्थ-गाथांक पृष्ठ सिइश्रवणण पि. ४७३-३०६ सिउंबरजंघाए श्राव. १०८५-१०७ सिप्रो उसिनो पि. ६५१-३२५ सिक्खग दश. ५७-३३३ सिक्खाबए उत्त ४५३- ४०९ सिंगाररसु दश. २१२-३४८ सिज्यंतस्सु पि. २५१ - २८६ सिज्जंस श्राव. ३२७-३२ सिसि सहू श्री. ७७-१६७ सिद्धत्थपुरे श्राव. ५११-५२ सिद्धत्ति श्र श्राव. ६८७-६७ सिद्धाणम उत्त. ५५५-४१६ " नमु श्राव. ६६०-६७, ९९१ - ९७, ९६२-६७, ६६६-६७ सिद्धाणं बुद्धाणं श्राव. सू. - १७३ सिद्धिगइमुव दश. १-३२८ सिद्धिवसहि श्राव. ६११-८६ सिद्धि य देव दश. २०३-३४७ सिद्धे नमंसि श्राव. १२८३-१२७ उत्त. १६६-३८१ उत्त. ६७-३७४ पि. २२-२६८ सियवि सिंहगिरि ਲੀਦਾਨੁ [ नियुक्तिसंग्रहः श्राद्यांश ग्रन्थ-गाथांक पृष्ठ पि. १३-२६७ सीउन्ह सीउण्हखार प्रो. ३४६-२२२ प्रो. ३४०-२२२ 31 सोल श्राव. प्र-६-४२ सीझालं श्राव. १०५८ - १०४ सीग्रा साडी आव. ९४५-६३ सोईभूग्रो प्राचा. २०५-४३६ सीउन्हफास श्राचा. २०१-४४० सीए दवस्स पि. ६५२-३२६ सीमंधरो उत्त. ३७१-४०० सीयललुक्खा आव. १२०० - ६११ सीयले आव. १९१८ - १११ सोयाणि य प्राचा. २१०-४४० सोयं परी प्राचा. २०१-४३६ सोलं चउ सीवन्नि सू.-८६-४६३ पि. ८१-२७३ सीसमुरोयर उत्त. १८६-३८३ सोसावेढेण आव. २- १४४ सीसुक्कंपि सीसे जइ सोसो सोहत्ता श्राव. १५६१-१७६ प्रो. १३४-२०२ आव. १२४२ - १२३ उत्त. ४१८-४०५ 2010_04 Page #616 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गाथानां अकारादिक्रमः ] [ ५६३ प्राद्यांश ग्रन्थ-गाथांक पृष्ठ सुप्रणो सुत्र प्राव. १०५४-१०३ सुप्रधम्मे दश. २७६-३५५ सुइभद्द पि. ५९९-३२१ सुकयं आत्ति माव. १५३८-१७३ सुकुमाल प्रो. ४-२६५ सुक्केरण पि. ५३३-३१५ सुक्के सुक्कं पि. ५६७-३१८ सुक्कोल्ल उल्ल प्रो. २३-१९२ , यडि प्रो. ५७५-२४३ , सरिस पि. ३६७-३०२ सुक्कंबरा प्राव. ३५७-३५ सुग्गीवे दढ प्राव. ३८८-३८ , नयरंमि उत्त. ४०९-४०४ सुचिरंपि प्राव. ११२७-११२ " अच्छ प्रो. ७२-२६१ , वंकडाई उत्त. ४६२-४१३ ,, वंकुडाई प्राव. १३२७-१४९ सुजसा आव. ३८६-३८ सुठुत्तरं प्राव. २४-१११ प्राद्यांश ग्रन्थ-गाथांक पृष्ठं सुठ्ठ वाइयं प्राव. १३०४-१४७ , विसम्म प्राव. ११७८-११७ सुत्तत्थऽकरण प्रो. २२१.-२१० सुत्तत्थत प्राव. ४६-१३५ , थिरी प्रो. ६०९-२४६ , बाल प्राव. १-११६ सुत्तत्थो खलु प्राव. २४-३ सुत्तस्स पि. ५२५-३१४ सुत्तेण सू. २१-४५७ सुत्तत्थं अक प्रो. १४४-२०३ सुत्ता अमु प्राचा. २११-४४० सुत्ते जहा दशा. ११५--४८७ सुत्तं वित्ती प्राव. २-१४४ सुदरजण प्रो. ८४-२६२ सुद्धोदए प्राचा. १०८-४३० सुद्धप्पभोग स. १६४-४७१ सुन्नघर प्रो. ५०३-२३६ सुन्नं व प्रसइ पि. ३३५-२६६ सुपइ8 उत्त. ३४८-३९८ सुप्पणिहि दश. ३०७-३५८ सुमइस्स प्राव. २८१-२८ सुमईऽत्थ प्राव. २२८-२३ सुमिणमव प्राव. ४५८-४७ 2010_04 Page #617 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५६४ ] [ नियुक्तिसंग्रहः THE प्राद्यांश ग्रन्थ-गाथांक पृष्ठं सुमंगला प्राव. ३६ -३६ सुयप्रभि पि. ३१७-२६५ सुयखंधे उत्त. १२-३६६ सुयधम्म प्राव. १३०-१३ सुयनारणे दश. ३-३२८ सुयनाणंमि प्राव. १४२२-१५६ ,, वि जीवो प्राव.६४-१० सयपडिवण्णा प्राव.८५२-८३ सुरगण प्राव. ९८१-९६ सुरमणुय स. १५६-४७१ सुरपूइप्रोत्ति दश. १३९-३४१ सुरहिपुर आव. ४६६-४८ सुबहुंपि प्राव. ६८-१० सुविहिं च सू. ३-१०८ सुविहिय प्राव. ११३६-११३ ससमत्था स. ५९-४६० सुस्सूसइ प्राव. २२-३ सुहदुक्ख दश. ६०-३३३ सहमो य प्राव. ३७-५ सएग प्राचा. २७-४२२ सुभगदुब्भ पि. ५०२-३१२ सूयगडं सू. २-४५५ सूरा मो सू. ५७-४६० सूरे उग्गए प्राव. सू-१८५ प्राद्यांश ग्रन्थ-गाथांक पृष्ठं सूरे सुदंसणे आव. ३८९-३८ सूरोदय प्राव. ५५५-५६ सूरोदयं गच्छ पि. २१३-२८५ सूवोदणस्स प्रो. १४-२५६ सेनं सुजायं उत्त. २७०-३६० सेएरण प्राव. २६-१३३ सेज्जं ठाणं प्राव. ६६५-६६ .., " प्राव. ६६६-६६ सेज्जंभवं दश. १४-३२६ सेणावई प्राव. १४-१४५ सेणाहिवई प्राव. १३५६-१५३ सेयपुरं प्राव. ३२४-३२ सेयंगलि . पि. ४७१-३०९ सेलटि दशा. १०१-४८६ सेलघरण प्राव. १३९-१४ सेवालक प्राचा. १४१-४३३ सेसाई प्राचा. ११५-४३० , प्राचा. १२५-४३१, १५१-४३४, १६३-४३५, १७१-४३६ सेसा उ जहा पाव. १३८०-१५५ , , प्राव. १५३३-१७१ " , ओ. ३६-२४६ 2010_04 Page #618 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गाथानां अकारादिक्रम: ] श्राद्यांश ग्रन्थ-गाथांक पृष्ठ सेसा उ दंड प्राव १६६-१७ सेसारणं परि श्राव. ३०१-३० मरणाणं 13 उत्त २३१-३८६ सेवामि श्राव. १२७६ - १२७ सेसा विसोहि पि. ३६५-३०२ प्रो. ३८१-२२५ प्रो. २७६- २१६ से सेवि सेसेस सेसेहि उदव्वे पि. २६६-२९० " काहिं पि. ५३५-३१५ लोइय प्रो. ६५१-२४१ सो सोइंदिवरस्सी दश. २६६-३५७ मादीना दशा. ४६-४८१ 11 सोउं उवट्टियाए श्राव. १६३२-१८८ सो उवक्क प्रो. ३-१९० सो उज्जाण उत्त. ४७३- ४११ सो उस्सग्गो श्राव. १४६६-१६३ सोऊरण प्रणा आव. ८७७-८६ सोऊण कीरमाणों श्राव. ५९८-६० [ ५६५ श्राद्यांश ग्रन्थ- गाथांक पृष्ठ सोऊण जिण सोऊण तं सू. १८-४५६ उत्त. ३०१-३६३ सो श्रापुच्छि प्रो. ४२६-२३० सोऊण तं उत्त. २६०-३६२ उत्त. ३०५-३६४ "" "" सो एवं सो गुरु सो दाइ तवो 11 11 सो देव उत्त. ४०३-४०४ उत्त. ४७५-४११ दशा. २४-४७८ 37 श्राव. १५८१-१८३ आव. १५८३-१८३ आव. ४६०-४८ सोरिश्र आव. १३०८ - १४७ सोरियपुरं मि सोरियसमुद्द आव. १३०९-१४८ सोलस उग्गम पि. ६६६-३२७ " पि. ४०३ - ३०३ दक्खा उत्त. १५०-३७६ सो लद्ध "1 उत्त. ४१६-४०५ सू. १४१-४६६ सोलसमे सोलस राय श्राव. ७१-८ सोलसवी श्राचा. ५६-४२५ सोलसं चैव श्राव. प्र.-४- १७८ 2010_04 उत्त. ४४५-४०८ Page #619 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५९६ ] [ नियुक्तिसंग्रहः प्राद्यांश ग्रन्थ-गाथांक पृष्ठ सोवक्कमो उत्त. २२५-३८६ सो वाणरज प्राव. १३२०-१४६ सो , प्राव. ८४७-८३ सोविणएण प्राव. ४२६-४४ सोवीर पि. ५४-२७१ सो सिक्खगो सू. १२८-४६७ सो समणो उत्त. ४७०-४११ उत्त. ४८०-४११. सो सोयइ ८३८-८२ सो हम्मई उत्त. ३४३-३६७ सोहम्मकप्प पाव. ४६९-५१ संकाए चउ पि. ५२१-३१४ ,, स प्रो. ६०१-२४५ संकामेउं कम्मं पि.२५६-२८९ संकिय पि. ५२०-३१३ संकुचिय प्राचा १८०-४३७ संकेयं चेव प्राव. १५७६-१८३ संकोए संडासं प्रो. २०६-२०६ संखडि पि. ५१२-३१३ संखमसंख उत्त. ५२६-३८६ संखाइमामो प्राव. २५-३ संखाइएऽवि प्राव. ५६०-५६ प्राद्यांश ग्रन्थ-गाथांक पृष्ठं संखिज्ज मणो प्राव. ४२-५ संखिज्जाऊ प्राव. ८१९-८० संखिज्जमसं आव. ६७-७ संखिज्जमि प्राव. ३५-४ संखेज्जोयण प्राव. ५२-६ संखेवपिडियत्थो - पि. ७२-२७२ संखो तिणि दश. २५५-३५३ संगमथेरा प्राव. ११६१-११८ संगहकामो प्राव. १४५६-१६२ संगहिय प्राव. ७५६-७५ संगाणं च प्राव. १२६२-१४६ संगाम अस्थि उत्त. ३५४-३६८ संगार बीय प्रो. १७६-२०६ संघुद्दिट्टि पि. २०८-२८५ संघयण रूव प्राव. ५७१-५८ संघयणं संट्रा प्राव. १६०-१६ सिंघाडग प्राव. २१८-२२ संघायणपरि उत्त. १९२-३८३ संघाडग प्रो. २१६-२१० संठियंमि प्रो. ६८७-२५३ संडसपाण प्राव.७-१४२ संधायणा य उत्त. १६४-३८३ संघायणे m mu 2010_04 Page #620 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गाथानां अकारादिक्रमः ] [ ५९७ प्राद्यांश ग्रन्थ-गाथांक पृष्ठ प्राद्यांश ग्रन्थ-गाथांक पृष्ठं संचर कुथु ओ. ३२३-२२० संजोयणा पि. ६३६-३२४ संचारिमा य पि. ३००-२६३ संतपयपरू प्राव. १३-२ संजमनाय प्रो. १२२-२०१ , प्राव. ८९५-८८ संजमखेत्त दशा. ११६-४८७ संतपयं पडि प्राव. ८६६-८८ संजमजोएसु संता तित्थयर प्राव. ११८४-११७ प्राव. ११४६-११३ ,, जोग उत्त. २१६-३८५ संतिस्स प्राव. २६२-२९ संजमघाउ प्राव.१३३७-१५१ संती कुथं प्राव. १७-४३ संजमजोए प्राव.६८१-६८ प्राव. २२३-२३ संजमहेउं देहो प्रो. ४७-१९४ संथरे सव्व पि. ४००-३०२ , लेवो प्रो. ४०४-२२७ ___संथारग्गह प्रो. २०३-२०६ संजमजोए प्राव. ६८२-६८ " गभूमि संजयमणु प्राव. १०-१३२ प्रो. २०२-२०६ संजयनामं उत्त. ३६३-४०३ संथारपाय प्रो. ६४-२२४ संजयभद्दा पि. ७५-३०० . पि. ४६-२७० संजलण आव. २-१४१ संथारुत्तर प्रो. २३-२५७ संजाणंतो उत्त. ४७८-४११ संदिस्संतं पि. २३६-२८७ संजाय-लित्त पि. २४६-२८८ संदिदा प्रो. ५८५-२४४ संझासु प्राव. १४५५-१६२ संदीरगम उत्त. २०६-३८४ संजुत्तग उत्त. ३१-३६८ संन्निहियाण प्रो. ५५-२५० संजोगसिद्धि प्राव. १०२-११ संपाइमतस प्रो. १५-२५६ संजोगे निक्लेवो उत्त. ३०-३६८ संपातिमरय ओ. १२-२५६ , सोलसगं संमत्तस्स प्राव. ८११-८० आचा. २०-४२२ संबुद्धो सो उत्त. ४४१-४०८ 2010_04 | Page #621 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५९८ ] [ नियुक्तिसंग्रहः प्राद्यांश ग्रन्थ-गाथांक पृष्ठं संसज्जिमेहिं पि. ५३४-३१५ संसट्टयर पि. ६२६-३२३ संसत्तम प्रो. २६०-२१४ " भत्त. प्रो. ७२०-२५६ " तत्तो प्रो. ५०४-२३७ संसत्तण पि. ५७६-३१६ संसारं छेत्तु । प्राचा. १९४-४३८ " पडि आद्यांश ग्रन्थ-गाथांक पृष्ठं संबंधणसंजोगो उत्त.६१-३७०। ६३-३७१, ४६-३६९, ६२-३७० संभिण्णं प्राव. १२७-१३ संयोयणाए पि. ६३८-३२४ संवट्ट मेह प्राव. १८८-१९ संवच्छर प्राव. १४७२-१६४ संवच्छरेण भिक्खा प्राव. ३१९-३१ " होही प्राव. २१७-२२ संवरियासवदारा प्राव. १४७६-१६५ संवासो उ पि. ११७-२७६ संविग्गम प्रो. २९८-२१८ संविग्गसंनि प्रो. ११४-२०१ , प्रो. १०४-२०० " मुप प्रो. १०३-२०० संवेगजणि उत्त.४२०-४०५ , समा सू. १९२-४७४ संवेगो दश. ३४८-३६२ सव्वे वा प्रो. १८४-२०७ संबोहण प्राव. २०९-२१ संसज्जइ प्रो. ५८-२१४ संसज्जिमम्मि पि. ५९३-३२० प्राव. १२६५-१२६ " पारग उत्त. ४५५-४०४ संसारस्स उ आचा. १८९-४३८ संसारसागरामो प्राव. ९७-१० संसारा प्राव. ९०९-८९ संसरिम प्राव. ४४३-४६ हक्कारे प्राव. १६७-१७ हत्थकप्प पि. ४६१-३०८ हत्थसयमेग प्रो. ३६१-२२३ " पि. ४१-२६६ हत्थसयं पि. ३४४-२९७ हत्थिणउरं प्राव. ३२३-३२ हत्थिगहणं पि. ८३-२७३ 2010_04 Page #622 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गाथानां अकारादिक्रमः ] [ ५६६ प्राद्यांश ग्रन्थ-गाथांक पृष्ठं । प्राद्यांश ग्रन्थ-गाथांक पृष्ठं हत्थिगहणं दुनियाल हवइ उ असच्च पि. ५७३-३१८ __दश. २८१-३५५ हत्थी हत्थी प्राव. ५०३-५२ हवइ पयावइ प्राव. ४११-४० हत्थी छच्चि प्राव. १६६-१७ हसिन ललिम हत्थुत्तर प्राव. ४५६-४७ दश. २६२-३५३ हत्थे पाए सू. ७६-४६२ हिअमिन दश. ३२२-३५६ हत्थोवधाय प्रो. ७६-२२५ हिमतेण प्रो. ११-१९१ हत्थंमि प्राव. ३३-४ हियएण पि. ५२७-३१४ हयमारूढो उत्त. ३६५-४०३ हियाहारा प्रो. ५७८-२४३ हयं नाणं प्राव. १०१-११ हियाहारा पि. ६४८-३२५ हरप्रोवमो प्राचा. २३७-४४३। हिंसत्थं प्रो. ७५६-२६० हरिमच्छेयण प्रो ६८-२०६ हिंसागविसया हरिएसनाम उत्त. ३१६-३९५ प्राचा. २३५-४४३ हरिएसा चं उत्त. ३२२-३६५ हिंसाए पडि दशा. ४५-३३२ हरिए बीए प्रो. ३८७-२२६ हिंसाऽलिय प्रो. ८७-२६२ हरिएसा गोदत्ता हुडे चरित्त प्रो. ६८८-२५३ उत्त. ३४०-३९७ हंति उवंगा उत्त. १९०-३८३ हरियाइ पि. ५५७-३१७।। हेट्ठा नेरइ प्राचा. ५८-४२५ हरियाले प्राचा. ७४-४२७ , पाय प्राचा. ५४-४२५ हरिसह आव. ५१६-५३ हेटावणि पि. ६१६-३२३ हलकुलिय प्राचा. ६५-४२६ हेझिल्ला उत्त. २६६-३६३ 2010_04 | Page #623 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६०० ] [ नियुक्तिसंग्रहः प्राद्यांश ग्रन्थ-गाथांक पृष्ठं हेरनिए प्राव. ६४७-६३ होइ पवित्ति प्राव.७४६-७४ होइ प्राव. ७४१-७३ होइपुण पि.प्र. २६७ हेउसरिसेहिं सू. ५०-४६० होज्ज न व प्रो. ५३६-२३६ होज्ज सिमा प्रो. ५८७-२४४ होति पडुप्पन्न दश. ६९-३३४ प्राद्यांश ग्रन्थ-गाथांक पृष्ठ होति पुण भाव सू. १३८-४६९ होमाय .. पि. ४३९-३०६ होही अजिनो आव. ३७०-३६ __, ते प्राव. १२७३-१२६ , पज्जो प्राव. १५८० १८३ , सगरो आव. ७४-३७ * समाप्तोऽकारादिक्रमः ************ 2010_04 Page #624 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 2010_04