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१५८ ] [ नियुक्तिसंग्रहः :: (१) आवश्यकनियुक्तिः
कालच उक्कं उक्कोसएण जहन्न तियं तु बोद्धव्वं । बीयपएणं तु दुगं मायामयविप्पमुक्काणं ॥ १४०८ ।। फिडियंमि अड्डरत्ते कालं घित्तु सुवंति जागरिया।
ताहे गुरू गुणंती चउस्थि सध्वे. गुरू सुबइ ।। १४०९ ॥ 5 गहियंमि अट्टरते वेरत्तिय अगहिए भवइ तिन्नि ।
वेरत्तिय प्रड्डरसे अइ उवओगा भवे दुण्णि ।। १४१० ।। पडिजग्गियंमि पढमे बीय विवज्जा हवंति तिन्नेव । पाओसिय वेरत्तिय अइउवयोगा उ दुण्णि भवे ।। ११ ॥
पाभाइयकालंमि उ संचिक्खे तिनि छीयरुन्नाणि । 10 परवयणे खरमाई पावासिय एवमादोणि ॥१२ ।।
पाइन्न पिसिय महिया पेहिता तिन्नि तिन्नि ठाणाई। नववारहए काले हउत्ति पढमाइ न पढंति ।। १३ ।। पट्टवियंमि सिलोगे छीए पडिलेह तिन्नि अन्नत्थ ।
सोणिय मुत्तपुरीसे घाणालोअं परिहरिज्जा ॥१४ ।। 15 अलोग्रंमि चिलिमिणी गंधे अन्नत्थ गंतु पकरंति ।
वाघाइयकालंमी दंडग मरुआ नवरि नस्थि ॥१५ ।। एएसामनयरेऽसज्झाए जो करेइ सज्झायं । सो प्राणाअणावत्थं मिच्छत्त विराहणं पावे ॥१६ ।। आयसमुत्थमसज्झाइयं तु एगविध होइ दुविहं वा । एगविहं समणाणं दुविहं पुण होइ समणीणं ।। १७ ।। धोयंमि उ निप्पगले बंधा तिन्नेव हुँति उक्कोसं । परिगलमाणे जयणा दुविहंमि य होइ कायम्वा। ॥
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