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________________ (३) श्रीपिण्डनियुक्तिः ] [ २७९ दसण नाणे चरणे तिग पण पण तिविह होइ उ चरित्ते। दवाइयो अभिग्गह अह भावणमो अणिच्चाई ॥ ४१ ।। जावंत देवदत्ता गिहीव अगिहीव तेसि दाहामि । नो कप्पई गिहोणं दाहंति विसेसिये कप्पे ॥ ४२ ।। 5 पासंडीसुवि एवं मीसामीसेसु होइ हु विभासा । समणेसु संजयाण उ विसरिसनामाणवि न कप्पे ।। ४३ ॥ नोसमनीसा व कडं ठवणासाहम्मिम्मि उ विभासा । दवे मयतणुभत्तं न तं तु कुच्छा विवज्जेज्जा ॥ ४४ ।। पासंडिय-समणाणं गिहिनिग्गंथाण चेव उ विभासा । 10 जह नामंमि तहेव य खेत्ते काले य नायव्वं ।। ४५ ।। दस ससिहागा सावग पवयण साहम्मिया न लिङ्गण । लिङ्गण उ साहम्मी नो पवयण निगा सव्वे ॥ ४६॥ विसरिस-दसणजुत्ता पवयण-साहम्मिया न दंसणनो। तित्थगरा पत्तेया नो पवयणदंस-साहम्मी ॥ ४७ ॥ 15 नाणचरित्ता एवं नायव्या होति पवयणेणं तु। पवयणओ साहम्मी नाभिग्गह सावगा जइणो ॥ ४८ ।। साहम्मऽभिग्गहेणं नो पवयण निण्ह तित्थ पत्तेया। एवं पवयणभावण एत्तो सेसाण वोच्छामि ॥४९॥ लिंगाईहिवि एवं एक्केकेणं तु उवरिमा नेया। 20 जेऽनन्ने उरिल्ला ते मोत्तु सेसए एवं ॥१५० ॥ लिङ्गण उ साहम्मी न दंसणे वीसुदंसि जइ निण्हा । पत्तेयबुद्ध तित्थंकरा य बीयंमि भंगमि ॥५१॥ Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002598
Book TitleNiryukti Sangraha
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorJinendrasuri
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year1989
Total Pages624
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Spiritual
File Size19 MB
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