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________________ २८० ] [ नियुक्तिसंग्रहः :: (३) श्री पिण्डनियुक्तिः लिगेण उ नाभिग्गह अणभिग्गह वीसुऽभिग्गहा चेव । जइ सावग बीयभंगे पत्तेयबुहा य तित्थयरा ।। ५२ ।। एवं लिङ्गण भावण, दसणनाणे य पढम भंगो उ । जइ सावग वीसुनाणी एवं चिय बिइयभंगोऽवि ॥ ५३ ।। दसणचरणे पढमो सावग जइणो य बीयभंगो उ। जइणो विसरिसदंसी दंसे य अभिग्गहे वोच्छं ॥ ५४ ।। सावग जइ बीसऽभिग्गह पढमो बीओ य भावणा चेवं । नाणेऽवि नेज्जेवं एत्तो चरणेण वोच्छामि ।। ५५ ॥ जइणो वीसाभिग्गह पढमो बिय निण्हसावगज इणो उ (ईणो)। 10 एवं तु भावणासुऽवि वोच्छं दोहंतिमाणित्तो ।। ५६ ।। जइणो सावग निण्हव पढमे बिइए य हुँति भंगे य ।। केवलनाणे तित्थंकरस्स नो कप्पइ कयं तु ।। ५७ ।। पत्तेयबुद्ध निण्हव उवासए केवलीवि आसज्ज । खइयाइए य भावे पडुच्च भंगे उ जोएज्जा ।। ५८ ।। जत्थ उ तइयो भंगो तत्थ न कप्पं तु सेसए भयणा । तित्थंकर-केवलिणो जह कप्पं नो य सेसाणं ॥ ५६ ।। कि तं आहाकम्मति पुच्छिए तस्सरूव-कहणत्थं । संभव-पदरिसणत्थं च तस्स असणाइयं भणइ ।। १६० ।। सालीमाइ अवडे फलाइ सुठाइ साइमं होइ। तस्स कडनिट्ठियंमी सुद्धमसुद्धे य चत्तारि ।। ६१ ।। कोद्दवरालगगामे वसही रमणिज्ज भिक्खसज्झाए । खेत्तपडिलेहसंजय सावयपुच्छुज्जुए कहणा ॥६२ ।। 20 Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002598
Book TitleNiryukti Sangraha
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorJinendrasuri
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year1989
Total Pages624
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Spiritual
File Size19 MB
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