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३- वन्दनकाध्ययनम् :: ७-वन्दनकनियुक्तिः ]
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ता मा कासि पमायं नाणेण चरित्तरहिएणं ।। ७५ ।। सम्मत्तं अचरित्तस्स हुज्ज भयणाइ नियमसो नत्थि । जो पुण चरित्तजुत्तो तस्स उ नियमेण सम्मत्तं ।। ७६ ।। जिणवयणबाहिरा भावणाहिं उन्धट्टणं प्रयागंता । 5 नेरइयतिरियएगिदिएहि जह सिज्झई जीवो ॥ ७७ ।। सुट्ठवि सम्मट्ठिो न सिझई चरणकरणपरिहीणो । ज चेव सिद्धिमूलं मूढो तं चेव नासेइ ॥ ७८ ।। दसणपक्खो सावय चरित्तभट्ठ य मंदधम्मे य ।।
दसणचरित्तपक्खो समणे परलोगकंखिम्मि ।। ७६ ।। 10 पारंपरप्पसिद्धी दसणनाणेहिं होइ चरणस्स ।
पारंपरप्पसिद्धी जह होइ तहऽन्नपाणाणं ॥११८० ॥ जम्हा दंसणनाणा संपुण्णफलं न दिति पत्तेयं । चारित्तजुया दिति उ विसिस्सए तेण चारित्तं ॥८१ ।।
उज्जममाणस्स गुणा जह हुँति ससत्तिओ तवसुएसु। 15 एमेव जहासत्ती संजममाणे कहं न गुणा ? ।। ६२ ।।
अणिगृहंतो विरियं न विराहेइ चरणं तवसुएसु। जइ सजमेऽवि विरियं न निगूहिज्जा न हाविज्जा ॥ ८३ ।। संजमजोएस सया जे पुण संतविरियावि सीयंति ।
कह ते विसुद्धचरणा बाहिरकरणालसा हुँति ? ।। ८४ ।। 20 आलंबणेण केणइ जे मन्ने संयम पमायति ।
न हु तं होइ पमाणं भूयत्थगवेसणं कुज्जा ।। ८५ ॥ सालंबणो पडतो अप्पाणं दुग्गमेऽवि धारेइ ।
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