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________________ [ नियुक्तिसंग्रहः :: (१) आवश्यकनियुक्ति: जह कायगमंजणाई जलदिट्टीओ विसोहंति ॥ ६८ ।। जह जह सुज्झइ सलिलं तह तह रूवाई पासई दिट्ठी । इय जह जह तत्तरुई तह तह तत्तागमो होइ ।। ६९ ।। कारणकज्जविभागो दीवपगासाण जुगवजम्मेवि । 5 जुगवृप्पन्नपि तहा हेऊ नाणस्स सम्मत्तं ।। ११७० ॥ नाणस्स जइवि हेऊ सविसयनिययं तहावि सम्मत्तं । तम्हा फलसंपत्ती न जुज्जए नाणपक्खव ॥१॥ जह तिक्खरुईवि नरो गंतु देसंतरं नयविहूणो। पाबेइ न तं देसं नयजुत्तो चेव पाउणइ ॥२॥ 10 इय नाण चरणहीणो सम्मदिट्ठीवि मुक्खदेसं तु । पाउणइ नेय (व)नाणाइसंजुओ चेव पाउणइ ।। ३ ।। (प्र०) धम्मनियत्तमईया परलोगपरम्मुहा विसयगिद्धा । चरणकरणे असत्ता सेणियरायं ववइति ।। ११७१ ।। ण सेणिओ आसि तया बहुस्सुनो, न यावि पन्नत्तिधरो न वायगो । सो प्रागमिस्साइ जिणो भविस्सइ, समिक्ख पन्नाइ वरं खू दंसणं ।। ७२ ।। भट्ठण चरित्ताओ सुट्ट्यरं दंसणं गहेयव्वं । सिझंति चरणरहिया दंसणरहिया न सिझंति ।। ७३ ।। दसारसीहस्स य सेणियस्सा, पेढालपुत्तस्स य सच्चइस्स । अणुत्तरा सणसंपया तया, विणा चरित्तेणहरं गई गया।७४। सवाओवि गईप्रो अविरहिया नाणदंसणधरेहिं । 15 Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002598
Book TitleNiryukti Sangraha
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorJinendrasuri
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year1989
Total Pages624
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Spiritual
File Size19 MB
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