________________
३२२ ]
[ नियुक्तिसंग्रहः :: (३) श्रीपिण्डनियुक्तिः
तंपि य सुक्के सुक्कं भंगा चत्तारि जह उ साहरणे। अप्पबहुएऽवि चउरो तहेव आइन्नऽणाइन्ने ।। ६०८ ।। अपरिणयंपि य दुविहं दव्वे भावे य दुविहमेक्केक्कं ।
दध्वंमि होइ छक्कं भावंमि य होइ सझिलगा ।। ६०६ ।। 5 जीवत्तमि अविगए अपरिणयं परिणयं गए जीवे ।
दिढतो दुद्धदही इय अपरिणय परिणयं तं च ।। ६१० ।। दुगमाई सामन्ने जइ परिणमई उ तत्थ एगस्स।.. देमित्ति न सेसाणं अपरिणयं भावओ एयं ।। ११ ।।
एगेण वावि एसि मणमि परिणामियं न इयरेणं । 10 तंपि हु होइ अगिज्झ सज्झिलगा सामि साहू वा ।। १२ ।।
घेत्तव्व-मलेवकडं लेवकडे मा हु पच्छ कम्माई। न य रसगेहिपसंगो इन वृत्ते चोयगो भणइ ॥ १३ ।। जइ पच्छकम्मदोसा हवंति मा चेव भुजऊ सययं ।
तवनियम-संजमाणं चोयग ! हाणी खमंतस्स ।। १४ ।। 15 लित्तांति भाणिऊणं छम्मासा हायए चउत्थं तु ।
आयंबिलस्स गहणं असंथरे अप्पलेवं तु ।। १५ । प्रायंबिल-पारणए छम्मास निरंतरं तु खविऊणं । जइ न तरइ छम्मासे एगदिणूणं तओ कुणउ ।। १६ ।।
एवं एक्केक्कदिणं आयंबिलपारणं खवेऊणं । 20 दिवसे दिवसे गिण्हउ आयंबिलमेव निल्लेवं ॥ १७ ॥
जइ से न जोगहाणी संपइ एसे व होइ तो खमओ। खमणतरेण आयंबिलं तु निययं तवं कुणइ ।। १८ ।।
Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org