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________________ ३४६ ] [ नियुक्तिसंग्रहः :: (४) श्रीदशवैकालिकनियुक्तिः अत्थकहा कामकहा घम्मकहा चेव मीसिया य कहा । एत्तो एक्केक्कावि य णेगविहा होइ नायव्वा ।। ८८ ।। विज्जासिप्पमुवानो अणिवेओ संचओ य दक्खत्तं । सामं दंडो मेरो उथप्पयाणं च अत्थकहा ।। ८६ ।। 5 सस्थाहसुओ दक्खत्तणेण सेट्ठीसुप्रो य रूवेणं । बुद्धीएँ अमच्चसुओ जीवइ पुग्नहि रायसुप्रो ॥ १९० ।। दक्खत्तणयं पुरिसस्स पंचगं सएगमाहु सुंदेरं । बुद्धी पुरण साहस्सा सयसाहस्साई पुन्नाइं ॥ ९१ ।। रूवं वओ य वेसो दक्खत्तं सिक्खियं च विसएसुं। 10 दिटु सुयमणुभूयं च संथवो चेव कामकहा ।। ६२ ।। धम्मकहा बोद्धव्वा चउम्विहा धीरपुरिसपन्नत्ता । अक्खेवणि विक्खेवरिण संवेगे चेव निम्वेए ।। ६३ ।। प्रायारे ववहारे पन्नत्ती चेव दिट्ठीवाए य। एसा चउस्विहा खलु कहा उ अक्खेवणी होइ ॥ ९४ ।। विज्जा चरणं च तवो पुरिसक्कारो य समिइगुत्तीप्रो । उवइस्सइ खलु जहियं कहाइ प्रक्खेवणीइ रसो ।। ६५ ।। कहिऊण ससमयं तो कहेइ परसमयमह विवच्चासा । मिच्छासम्मावाए एमेव हवंति दो भेया ॥ ९६ ।। जा ससमयवज्जा खलु होइ कहा लोगवेयसंजुत्ता । 20 परसमयाणं च कहा एसा विक्खेवणी नाम ।। ९७ ॥ जा ससमएण पुचि प्रक्खाया तं छुभेज्ज परसमए । परसासणवक्खेवा परस्स समयं परिकहेइ ॥६८।। 15 Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002598
Book TitleNiryukti Sangraha
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorJinendrasuri
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year1989
Total Pages624
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Spiritual
File Size19 MB
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