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________________ (४) श्रीदशवैकालिकनियुक्तिः ] [ ३४७ आयपरसरीरगया इहलोए चेव तहय परलोए । एसा चउम्विहा खलु कहा उ संवेयरणी होइ ॥ ९९ ॥ वीरियविउध्वणिड्डी नाणचरणदंसणाण तह इड्डी । उदइस्पाइ खलु जहियं कहाइ संवेयणीइ रसो ॥ २०० ॥ 5 पावाणं कम्माणं असुभविवागो कहिज्जए जत्थ । इह य परत्थ य लोए कहा उणिवेयणी नाम ॥२०१।। थोपि पमायकयं कम्मं साहिज्जई जहि नियमा। पउरासुहपरिणामं कहाइ निवेयणीइ रसो ॥२०२ ।। सिद्धी य देवलोगो सुकुलुप्पत्ती य होइ संवेगो। 10 नरगो तिरिक्खजोणो कुमाणुसत्तं च निम्वेनो । २०३ ।। वेणइयस्स [य] पढमया कहा उ अक्खेवणी कहेयव्वा । तो ससमयगहियत्थो कहिज्ज विक्खेवणी पच्छा ।। २०४ ।। अक्खेवणीप्रक्खित्ता जे जीवा ते लमन्ति संमत्तं । विक्खेवणीऍ भज्जं गाढतरागं च मिच्छत्तं ।। २०५ ।। 15 धम्मो अत्थो कामो उवइस्सइ जत्थ सुत्तकव्वेसुं । लोगे वेए समये सा उ कहा मीसिया णाम ।। २०६ ॥ इथिकहा भत्तकहा रायकहा चोरजणवयकहा य । नडनट्टजल्लमुट्ठियकहा उ एसा भवे विकहा ॥ २०७।। एया चेव कहाओ पन्नवगपरूवगं समासज्ज । 20 अकहा कहा य विकहा हविज्ज पुरिसंतरं पप्प ॥ २०८ ।। मिच्छत्तं वेयन्तो जं अन्नाणी कहं परिकहेइ । लिंगत्थो व गिही वा सा अकहा देसिया समए ॥ २०६ ।। Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002598
Book TitleNiryukti Sangraha
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorJinendrasuri
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year1989
Total Pages624
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Spiritual
File Size19 MB
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