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[ नियुक्तिसंग्रहः :: (४) श्रीदशवैकालिकनियुक्तिः
तवसंजमगुणधारी जं चरणस्था कहिंति सम्भावं । सम्वजगज्जीवहियं सा उ कहा देसिया समए ।। २१० ॥ जो संजओ पमत्तो रागद्दोसबसगनो परिकहेइ । सा उ विकहा पवयणे पण्णत्ता धीरपुरिसेहिं ।। ११ ।। सिंगाररसुत्तइया मोहकुवियफुफुगा सहासिति । जं सुणमाणस्स कह समणेण ण सा कहेयवा ।। १२ ।। समण कहेयत्वा तवनियमकहा विरागसजुत्ता । जं सोऊण मणुस्सो वच्चइ संवेगनिव्वेयं ।। १३ ।। प्रथमहंतीवि कहा अपरिकिलेसबहुला कहेयव्वा । हंदि महया चडारत्तणेण अत्थं कहा हणइ ।। १४ ।। खेां कालं पुरिसं सामत्थं चऽप्पणो वियाणेत्ता । समणेण उ प्रणवज्जा पगमि कहा कहेयव्वा ।। २१५ ।।
॥ तइयज्झयणनिज्जुत्ती समत्ता ॥ ३ ॥
- ॥ ४॥ अथ चतुर्थाध्ययननियुक्तिः ॥
15 जीवाजीवाहिगमो चरित्तधम्मो तहेव जयणा य ।
उवएसो धम्मफलं छज्जीवणियाइ अहिगारा ।। २१६ ।। छज्जीवणियाए खलु निक्खेवो होइ नामनिप्फन्नो। एएसि तिण्हंपि उ पत्तेयपरूवणं वोच्छं ।। १७ ।।
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